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Saturday, October 18, 2014

भोँटक गहमी


भोँटक गहमी





पाँच बरख पहि‍लुका भोँटक बात कि‍छु गोटेकेँ मनो रहल आ अधि‍क गोटे बि‍सरि‍ए गेला। मनो रहैक कारण आ बि‍सरैओक कारण अपन-अपन छेलै। कि‍ए लोक बि‍सरि‍ जाएत जे हमरे भोँटपर सरकार नै बनल। नै बनैत तँ करोड़क लाभ केना भेटल, मुदा अधि‍क लोक ओहने जेकरा भोँटक अधि‍कार तँ छै, चीन-पहचीन नै छै। दू देशक सीमान परहक पगलखन्ना जकाँ, केकरो नै दुनूक। भलहिं पगलपनी दुआरे दुनूमे सँ केकरो मोजरे कि‍ए ने नै दइत होइ।
रङ्ग-रङ्गक मुखौटा, रङ्ग-रङ्गक रूप बना एबे करत। मुखौटा ई जे कि‍यो सम्‍प्रदायकेँ अगुऔत कि‍यो पछुऔत मुदा रहत दुनू काते-कात। जँ से नै तँ पन्‍थ नि‍रपेक्ष जीवन शैली छि‍ऐ आकि‍ भाषण? जँ जि‍नगी भाषण बनि‍ जाए आ लोक नै भँसिअए तँ भाषणे की भेल। कि‍यो जाति‍क ढोल पीटि‍ सम्‍प्रदाय छि‍पबैत तँ कि‍यो ओकरे उजागर करैत, मुदा रहैत दुनू अगले-बगले। खैर जे होउ, मुदा छी तँ ओहेन पावनि‍ नि‍सचि‍ते, जेकरा कि‍यो नि‍ष्‍ठा बूझि‍ करत कि‍यो पावती[1] बूझि‍ करत। तँ कि‍यो खेल बूझि‍ खेलाएत। खेल बूझब ई भेल जे देशक चक्की कोन दि‍स घुमए चाहैए। बामी आकि‍ दहि‍नी।
रङ्ग-रङ्गक हवा-बि‍हाड़ि‍‍क बात सुनि‍ मोहन, दसम कक्षाक वि‍द्यार्थी, ठाढ़ भऽ कि‍लासमे बाजल-
सरजी, ओना पछि‍ला भोँट नीक जकाँ मनो ने अछि‍, मुदा ऐबेर तँ बहुत गहमा-गहमी देखै छि‍ऐ, से की?” 


अंतिम पेज.....................................




श्‍यामचरणक वि‍चार सुनि‍ सौंसे कि‍लासक वि‍द्यार्थी थोपड़ी बजबए लगल। जेना देव मन्‍दि‍रमे बैसल भजनमे लीन भक्‍त थोपड़ी बजबैत बि‍सरि‍ जाइए जे भजनक कड़ी कखनि‍ खतम भेल। कि‍छु गोटे थोपड़ी बन्नो केलक आ कि‍छु गोटे बजबि‍ते रहल। थोपड़ीक स्‍वागत पाबि‍ दुनू हाथसँ बच्‍चाक थोपड़ी बन्न करबैत श्‍यामचरण बजला-
आइ भरि‍ प्रश्न रखैक छह, काल्हि‍ सबहक बीच वाद-वि‍वाद करेबह, जँ समए बँचत तँ काल्हि‍ये नै तँ परसू, छूटल-बढ़ल सभ सवालक रस्‍ता बुझा देबह। अखनि‍ एतबे बूझि‍ लैह जे साम्राज्‍यवादी जालमे फँसल जा रहल छी।¦५०८¦

२४ मार्च २०१४


[1] पौनाइ

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