Pages

Saturday, October 18, 2014

पल भरि


पल भरि





ति‍रसैठि‍म बरख गमौला पछाति‍ शि‍वजी बाबूक मन गरानि‍सँ गड़ि‍‍ रहल छन्‍हि‍। जि‍नगीक सङ्ग दुनि‍योँ अन्‍हार जकाँ लगि‍ रहल छन्‍हि‍। केकरा कहथि‍न आ कहलो पछाति‍ के बि‍सवास करतनि‍ जे उवाह-उवाहमे जि‍नगीक ति‍रसैठ‍ बरख बोहि‍ गेल। समाजक केते लोक ऐ बातकेँ बूझि‍ रहल छथि‍ जे जइ आशामे अखनि‍ धरि‍ आस लगौने छेलौं ओ सोलहन्नी नि‍आस बनि‍ नि‍कलि‍ गेल! ओना बेसी लोक तँ यएह ने बूझि‍ रहल छथि‍ जे कौलेजक प्रोफेसर छथि‍, नीक दरमाहाक नोकरी करै छथि‍, आ नोकरी छूटलो पछाति‍ तेते पेन्‍शन भेटतनि‍ जे जि‍नगीमे कहि‍यो कोनो अभाव नै हेतनि‍, मुदा भेल की? असकरे अपन कोठरीमे बैसि‍ पोथीक अलमारीपर आँखि‍ गड़ौने मने-मन अपन हूसल जि‍नगीपर नजरि‍ दौगा रहल छथि‍। जेते नजरि‍ दौग रहल छन्‍हि‍ तेते मन वि‍षादसँ बि‍सबि‍‍सा रहल छन्‍हि‍। बि‍सबि‍सेबो केना नै करतनि‍, ‘नीक नोकरी’ ‘नीक दरमाहा’ केतए गेल? सौनक घट जकाँ दुनू आँखि‍ नोरसँ बोझि‍ल भऽ जि‍नगीक बि‍तल दि‍न देखि‍ रहल छन्‍हि‍। अनायास बकार फुटलनि‍-
धारक पानि‍ जहि‍ना धारे-धार बहैत समुद्रमे समा जाइए, तहि‍ना ने अपनो जि‍नगीक धारक भेल!
असगर कोठरीमे रहने िकयो दोसर तँ नै सुनि‍ पौलक मुदा अपन मनक ‘सोग’ जे मुँह होइत नि‍कलल, ओ दुनू कान तँ सुनबे केलकनि‍‍। फेर मन घुमलनि‍। भने कि‍यो आन नै सुनलक। जँ सुनबो करैत तँ लाभे कथी होइतै। यएह ने जे जहि‍ना अपन जि‍नगी फुर्र-फाँइमे गेल तहि‍ना ओकरो जइतै।
तैंतालि‍स बरख पहि‍ने शि‍वजी सी.एम. कौलेजसँ एम.ए. पास केलनि‍। औनर्सोमे नीक अङ्क आ एम.ए.मे सेहो नीक अङ्क भेटल छेलनि‍। 


अंतिम पेज...............................



पोताक दोहरबैत प्रश्न सुनि‍ कहलखि‍न-
बाउ, जे मनुख पल-पल जि‍नगीक महत बूझि‍ पग-पग बढ़ैए ओकर जि‍नगी आ पल-पलकेँ पलपलाएल रस पीब बढ़ैए तेकर जि‍नगीमे अकास-पतालक अन्‍तर होइ छै। कि‍एक तँ नीको आ अधलोमे पलपली होइते छै।
नन्‍दन-
अकास-पतालक ई अन्‍तर मेटाएत केना?”
शि‍वजी-
प्रकृति‍केँ अनेको रूप छै मुदा अखनि‍ दुइए रूप देखहक। धरती-अकास तँ देखै छहक, पताल नुकाएल अछि‍। मुदा मनुखोक प्रकृति‍ होइ छै, जे मनराजमे बास करै छै। वएह रूपान्‍तरण एक रूपता आनि‍ एकबट करैत बाट पकड़ैए।
बाबाक वि‍चार सुनि‍ नन्‍दनो आ नन्‍दनक दादीओ उठि‍ कऽ ठाढ़ भेली। दुनूकेँ ठाढ़ होइत देखि‍ नमहर साँस छोड़ैत शि‍वजी अपन मनकेँ बुझबैत घुनघुनेला-
दि‍नक हेराएल जँ साँझमे घूमि‍ आबए तँ ओ हराएब नै भेल। मुदा जे हेराएल से हेराएल जे बाँकी अछि‍ ओकरा पलो भरि‍ हाथसँ छोड़ब जि‍नगीकेँ धोखाड़ब हएत।¦१११६¦

२४ मई २०१४

No comments:

Post a Comment