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Friday, October 17, 2014

सुआद


सुआद






केते दि‍नक पछाति‍ कछुआ हाट गेल छेलौं। ओना गेनेसँ नफे भेल। नफा ई भेल जे, मनो ने अछि‍ जे कहि‍या कबछुआ सीम खेने छेलौं, से भेट गेल। सेहो कि‍ ओना भेटल, एकटा तरकारीवालीकेँ समैया सीम हता गेलनि‍। हाट छुटै छेलनि‍, वेचारी जखनि‍ सौदाक पोखरि‍ नहाइले गेल रहथि‍ तखनि‍ एकटा गाछपर खूब लतरल-चतरल-पसरल फूल-कोढ़ी आ फड़सँ भरल देखि‍ नेने छेली। हाटक बेर जखनि‍ कोनो गर नै लगलनि‍ तखनि‍ पथि‍या तराजू-बैटखाड़ा नेने पोखरि‍ए महारक रस्‍तासँ आबि‍ बाटेमे एक पथि‍या सीम तोड़ि‍ नेने रहथि‍। मुदा वेचारीक जहि‍ना मुफ्तक माल रहनि‍ तहि‍ना लेबालो सुखाएले रहनि‍।
हि‍या कऽ देखलौं तँ मन मानि‍ गेल जे सीमे छी। अनभुआर जकाँ लगमे पहुँच पुछलि‍यनि‍-
दादी, ई की छी?” 


अन्‍तिममे.....................



हाथ ससरल, ढेकार भेल, बजलौं-
ओकरा की करबै?”
दि‍न-देखार अहाँले बना देब। अपना नै हएत तँ नूनो-मि‍रचाइक संग खा लेब। इछानि‍क गन्‍ध मछानि‍ महकि‍ते छै, तँए सूखल नोन-मि‍रचाइ कि‍ इछानि‍-मछानि‍ हएत, अपना रंगमे रहत।¦६२४¦
१४ मार्च २०१४

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