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Thursday, October 23, 2014

बड़की माता

बड़की माता 


अनसोहाँत भऽ गेल! एहेन कहियो ने देखने छेलिऐ!
-ओछाइनपर पड़ल, अपन कुहरब छोड़ि अठासी बर्खक मंगली दादी बजली।
जहिना बाट चलैत बटोही हारि‍-मारि‍ थकान पीड़ासँ पीड़ाएल बजैत तहि‍ना मंगली दादी सेहो बजली। दोसराइत लगमे नै तँए कि‍यो नै सुनि‍ पौलक। जहि‍ना अकासमे मेघक टुकड़ी उड़ि-उड़ि‍ सुर्जक प्रभाकेँ झँपैत तहि‍ना सोगाएल सोग दादीक बोलतीकेँ झाँपि‍ देलकनि। जइसँ बोलती तँ बन्न भेलनि‍ मुदा वि‍चार भीतरे-भीतर सुरकुनि‍याँ मारि बिचड़ए लगलनि। जुग बदलि गेल वृन्‍दावनक गोपी एक सेकेण्‍डक सतरह सौमा भागकेँ जुग मानि कृष्‍णसँ अलग नै हुअ चाहैत, मुदा से थोड़े अछि। अनेरे कि‍यो बजैए जे कलयुग अखनि ढेरबे भेल अछि, समरथाइओ पछुआएले छै आ औरुदो बहुत बाँकी छै। केता हजार बरख आरो रहत। मनमे बि‍चरि‍ते रहनि‍ आकि‍ दुबटि‍या लग पहुँच गेली। पहुँचिते वि‍चार उचड़लनि, ऐ बीच तँ मनुखक केता पीढ़ी गुजरि जाएत! मनुखक जि‍नगीए केतेटा होइ छै! तहूमे चारि‍ टुकड़ी अछि। जँ सए बर्खक मानब तँ पचीस-पचीस बर्खक टुकड़ी भेल, नै जँ अस्‍सी मानब तँ बीस बर्खक भेल आ जँ सरकारी मानब तँ साठि बर्खक पनरह बरख भेल। तइ हिसाबसँ कलयुगक कि‍ए ने बेसी औरुदा पछुआएले छै। तैबीच पोता मनोज आबि‍ अँगनामे बाजल-
दछि‍नवरि‍या टोलमे बड़की माता एलखि‍न, तँए ओइ टोल दि‍स नै जाएब।” 


अंतिम   पेजसँ.................................................



ओझहा-वैदक नाओं सुनि बुधि‍यारक मन मानि‍ गेल जे बि‍ना झूठ बजने काज नै चलत। मुदा जहि‍ना बालवोध तहि‍ना थाकल-ठेहि‍याएल बूढ़-बुढ़ानुसकेँ बौसब बड़ भारी नहियेँ अछि। बाजल-
अनेरे कोन फेड़मे पड़ै छेँ। राम-राम कर सभ नीक भऽ जेतै।
‘राम-राम’ सुनि‍ मंगली दादी तारतम करए लगली जे ‘राम-राम’ की कहलक। मरैकाल राम-रामकेँ सत् लोक मानैए। अधला काज केला पछाति‍ राम-राम कहि‍ दुतकारि‍ दइ छै। शुभ काजक बेर जँ राम-नाम सत् छी बाजब तँ कपर फोड़ौबलि‍ करा लेब, तखनि बुधि‍यार की‍ बाजल। माइओ रगड़ी बजली-
बौआ, ओझहो-गुणी नै देखलक-सुनलक हेन?”
माइक रगड़गड़ बात सुनि बुधि‍यार रगड़ाइत बाजल-
नेति-नेति कहि कातेसँ छुअब छोड़ि सतदिना रोग कहि‍ जीबै-मरैले छोड़ि‍ देलक।¦१२२४¦
 
१८ फरवरी २०१४

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