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Monday, October 27, 2014

जितिया पावनि (बाल साहित्‍य) कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल

A Maithili Story written by Jagdish Prasad Mandal.

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ओछाइनपर जीतलाल बाबा पड़ले-पड़ल अपन दिन-दुनियाँक रेखागणित मने-मन बनबैत रहथि, तखने बारह बर्खक पोता भागीरथ जे हाई स्‍कूलक नअम वर्गमे पढ़ैत, देहपर दहिना हाथ रखि आस्‍तेसँ हिलबैत बाजल-
बाबा! बाबा!! उठू ने आइ पावनिक दिन छी, किए एते अबेर तक सूतल छी!”
ननमुँह बच्‍चा भागीरथ नै बूझि पेने छल जे जितिया पावनि बबोकेँ बूझल हेतनि। ओ आने बच्‍चा जकाँ बुझैत जे हमरेटा बूझल अछि तँए दोसरोकेँ कहि बुझा दिऐ। बिना कोनो करोट फेड़ने पड़ले-पड़ल जीतलाल बाबा बजला-
पावनि! कोन पावनि छी हौ बौआ?”
जहिना गुरु पेला पछाति गुरुआइ बढ़ै छै तहिना भागीरथोक मनमे कौल्हुके पावनिक छुट्टी गुरुजीक मुहेँ सुनि जगल रहै। टटके ज्ञान तँए स्‍वादिष्‍ट हेबे करत। जखने जीहपर सुआद औत तखने ने मन हरखित हएत। भलहिं तेतरीक खट-मिठी सुआद पाबि मन तल-बीचल किए ने हुअए, आकि अमरा पाबि सोलहन्नी खट्टे! चाहे पाकल आम पाबि सोलहन्नी मीठे किए ने हुअए। मुदा जीतलाल बाबाक मनमे से सभ नै भेलनि, भेलनि ई जे दुधमुँह बच्‍चा पावनिक खुशीमे अछि। मुदा ई कहाँ देखियो कऽ बूझि पबैए जे पाबन दिन छी। किछु पबैक अछि। चारि-आठ आनाक दबाइ-गोटी खैरातमे बँटबारा होउ आकि दू-चारि किलो चाउर-गहुम, आकि बाढ़िक समए सेर-आध-सेर चूड़ा आ कनमा भरि गुड़, लेबालक ढबाहि लगि जाइए, तहिना ने धर्मक पावनिओं होइए। धर्मस्‍थलक रूपमे गामक खेत बनत, खेतक सुअदगर अन्न-पानि, फल-फूल इत्‍यादि बनत, धर्मक विचार बिलहाएत। जहिना भोजैत भरि मन परसत तहिना भोजी सेहो भरि मन खेबो करत किने, से दिन छी। मुदा से थोड़े बुझैए। तहूमे केना ऐ बच्‍चाकेँ नाकारात्‍मक बात कहबै। तेरह-चौदह बर्खक बच्‍चाकेँ केना शुभ-अशुभ दुनू बात कहबै जे बौआ बाढ़िक पनरह दिन ओहन भेल जे मनक बिसवास समापते जकाँ भऽ गेल रहए जे बाढ़िक उगरासक पछाति परिवारक सभ जीवित बँचल रहब की नै? केना कहबै जे भुमकममे घरे देहपर खसि पड़ल रहए। अपन सोग-पीड़ा किए अनेरे पोताकेँ पावनिक दिन कहबै। मुदा लगले मन हूमरलनि, हूमरलनि ई जे जँ अपन सोग-पीड़ा नै कहबै, तखनि ओ वंशक वंशावलीक जे सोझ रस्‍ता बनल आबि रहल अछि ओइमे कटारिओ बनत किने! देहसँ श्रम करैबला वंश श्रमक चोरि जान-अनजानमे काइए रहल अछि जइसँ जिनगीक धारा बदलि रहल छै, तेहेन स्‍थितिमे ओहनो तँ असंख्‍य लोक छथिए जे अपन पुरुखाक जीवन-धारक बीच अपन धार मिलबैत अगिला पीढ़ी लेल सत्‍यम् शिवम् सुन्‍दरम्-क धार फोड़ि आगू धकेलिये रहल छथि। मुदा कोनो बातो विचारैक तँ जगहो होइते छै, ऐठाम दूधमुहाँ बच्‍चाकेँ की कहबै, केते कहबै? पोखरि-इनारक पानि जकाँ जीतलाल बाबाक मन रसे-रसे थीर हुअए लगलनि। नीक जकाँ मनकेँ थीर करैत थारी-बाटीक पानि जकाँ जखनि थीर बूझि पड़लनि तखनि बजला-
बौआ, पावनिक ओरियानक की सभ विचार करै छह?”
जहिना कोनो चोरनुकबा पिता अपना अवोध बच्‍चाकेँ सिखबैत जे सोर पाड़निहारकेँ बाटपर जा कहुन जे बाबू नै छथि, आ ओ बच्‍चो ओहिना जा कऽ कहैत जे बाबूजी कहलनिहेँ कहुन आँगनमे नै छथिन। तखनि केकर गलती भेल? के केकर गलती पकड़त? बाप पकड़त बच्‍चाक आकि बच्‍चा पकड़त बापक! मुदा से जगहे नै बनल। अबोध बच्‍चाकेँ सबोधैत बेवहार नै करब तँ ओकरामे सबोध-शक्‍तिक विचार केना उठत अा बिनु विचार उठने जिनगीक बाट भोथियेबे करत किने। ओहुना पनियाएलसँ पनियाएल लोहाक औजार माटिपर किछु दिन रहने भोथिया जाइ छै मुदा ईहो तँ होइते छै किने जे मुँह मारि खाइत-खाइत पनिगरो-धरगर भोथा जाइ छै, खैर जे से...। बबेक प्रश्नकेँ उनटबैत भागीरथ बाजल-
बाबा, अहाँ अखनि तक ओछाइनेपर छी, अहीं ने कहब जे की सभ हेतै?”
पोताक जिज्ञासा पाबि, किछु विचार करैक समए बनबै दुआरे अपने कनी पाछू घुसकैत जीतलाल बाबा बजला-
बाैआ, अखनि ओछाइनेपर छिअ, मूड फ्रेश नै भेलह हेन, उठै छी मुँह-हाथ धोइ कऽ चाह-ताह पीब पान खेबह, तखनि ने चालनिमे चालल तीसी जकाँ मन चिकनेतह। जखने मन चिकनेतह तखने तोहर प्रश्नक उत्तर देबह।
कहि, देह परहक चद्दरि उतारि दू झाड़नि चद्दरिमे लगा अलगनीपर रखि नित्‍यक्रिया दिस बढ़ैक उपक्रम जीतलाल बाबा करए लगला। मुदा जहिना विपति एलापर देह छिनगि जाइ छै तहिना मनोमे एने तँ मन छिनगिते छै, तहिना जीललालो बाबाक मन छिनगलनि। छिनगलनि ई जे आमक मासमे अामोक ओगरवाहि आ जेठ मासक रौदोक जरौनसँ बँचैले गाछमे मचकी लगा जहिना वृन्‍दावनमे गोपी-कृष्‍ण कदमक सघन छाहरिक गाछ, जेकर फूलो घुंघरू पहिरने रहैए आ पत्तोक नमगर-चौड़गर मुँह-कान रहै छै, तैपर झूलै छला, तहिना ने बारहो मासक बारहो बहिनियाँ गड़ाजोड़ी कऽ बरहमासा झूलि-मिल गबै छेलौं- आसिन हे सखी आस लगाओल...।
मन ठमकलनि, एक तँ ओहिना आसिनमे कुमहरो कुम्‍हराए लगैत अछि, धानो कुम्‍हराए लगैत अछि जेकरा देखि-देखि अनेरो लोकोक मन कुम्‍हराए लगै छै! तैपर सँ जितिया सन पावनि? एक तँ अोहुना बाल-बोधक पिपाशु पंछीक पिपाशु मन, तैपर ओकर आँखिओ तँ हमरे आँखिपर ने हेतै। जँ एकोरत्ती ढिली-सिली करब देखि बीचमे किछु बाजि ने दिअए। तँए जइ काजमे जेते समए आन दिन लगै छल तइमे तइसँ कनीओं बेसी नै लगए। जखने घटी-बढ़ी हएत तखने कमलाएल डण्‍टी डोलबे करत। तँए ओही गतिए निवृत भेला। अपन क्रियासँ निवृत बाबाकेँ देखि भागीरथ सेहो अपन काज-भारक गति-विधिक परीछा दइते अपनो बिसवासू रूप देखैत तँए मनो बुलंद। होइतो अहिना छै जे शिकारक खेतपर जहिना सभ शिकारीक बुलंद नजरि अँटकल रहैत तहिना भागीरथोक मन बुलंद। जीतलालो बाबाकेँ चाह-पान चढ़िते चेहरा चहचहेलनि। बजला-
बौआ, पावनिक दिन छी! पावनिक विधि भोरहरबेसँ अँगना-घर नीपैक प्रक्रियासँ शुरू भऽ जाइ छै, तखनि काजक बीच सोचै-विचारैक समए नै होइ छै, काजक अपन गति-विधि होइ छै। जेकरा पकड़ि लोक चलैत अाबि रहल अछि।
जीतलाल बाबाकेँ आगू बजैक बात पेटेमे रहनि आकि बिच्‍चेमे भागीरथकेँ भेलै जे पावनि शुरू भऽ गेल, हम तँ बाबाक बोल सुनै पाछू पछुआएल छी! सबहक पावनि छिऐ, सभ मिलि करत, खाएत, खुशी मनाएत, आकि एक गोरे करै पाछू बेहाल, दोसर खाइ पाछू बेहाल अा तेसर कुम्‍हारक चाकपर बात गढ़ैक पाछू बेहाल रहत तखनि केना भेल। भागीरथक हाव-भावसँ जीतलाल बाबाकेँ बूझि पड़लनि जे अपन उपस्‍थिति भागीरथो दर्ज करबए चाहैए। मुदा करत की से बूझल छै? जखनि बूझल नै छै तखनि तँ बाल-बोध जकाँ देखौंस करैमे अनकर काजे बरदौत। मनमे नचिते रहनि आकि बिच्‍चेमे भागीरथ टोकलकनि-
बाबा, गप-सरक्का छोड़ि दियौ, साँझू पहर निचेनसँ बुझा देब।
भागीरथकेँ काजक धड़फड़ी देखि बाबाकेँ बूझि पड़लनि जे गेल महिंस पानिमे छोर-तोर नेने! अखनि सम्‍हरै-सम्‍हारैक समए अछि, अखनि जँ नै सीखत तँ जिनगी भरि अन्‍ट-सन्‍ट करिते रहत। मुदा ओकरा बौस कऽ बुझाएबो तँ कठिन अछि। अपन दादी-नानीक बौसैक गीत मन पड़लनि। मन पड़लनि दुनियाँक ओ स्‍वरूप जे समैक संग चलैत अपन रंगो-रूप परिमार्जित[1] करैत अछि। कहलखिन-
बौआ, जखनि उठि कऽ विदा हुअ लगिहऽ, तखनि एकटा काजक विधि तोरो देखा देबह ओ अनिहऽ। 
पावनिमे अपन अन्‍यता पाबि भागीरथक मन कनी ठहरल। मुदा औगताएल रहबे करए। सोभाविको छै सभ चाहैए, नीक काजमे बेसी भागीदारी निमाही। पड़ाइक बाट पकड़ि भागीरथ बाजल-
बाबा, अखनि फूल लोढ़ै-बेर छै, अखनि जे बरदाएब तँ फूले विला जाएत।
भागीरथक विचार जेते हल्‍लुक तेते भारीओ। हल्‍लुक ई जे बाबा अपने तँ जानदार दइबला देवी-देवताक फूलक रंग-रूपक अन्‍तर बुझै छथि मुदा बाल-बोध भागीरथ तँ से नै बुझैए सहरगंजा फूल बुझैए, जे मौसमी भेटै छै, लोढ़ि-बीछि कऽ आनि पूजा करए चाहैए। बाबाकेँ सुतरलनि, बजला-
सएह ने हमहूँ कहै छिअ।
बाबाक बातसँ, जहिना बच्‍चाक म्‍याँउ-म्‍याँउ सुनि बिलाइओ-बच्‍चा लगमे आबि बैसि जाइए, तहिना भागीरथो नुरसुराए लगल। बबोकेँ बौसब जरूरी बूझि पड़लनि। कहलखिन-
दहिना हाथ लाबह।
बाल-बोधक जेहने कानब तेहने हँसब। एक पाँती सीता विलाप दोसर राक्षसिनीक किरदानी। मुदा से तँ तुलसी बाबा ने बुझै छथिन, बाल-बोध थोड़े बूझत। हाथपर हाथ रखि जीतलाल बाबा मंत्र जकाँ चाटपर चाट झाड़ैत दादी-नानीक दुहाइ दैत बजला-
अट्टा-पट्टा बौआकेँ सातगो बेटा। एकटा जेतै घास छीलए, एकटा जेतै भैंस चरबए, एकटा जेतै पोखरि नहाइले, एकटा जेतै खेनाइ दइले, एकटा जेतै दूध दूहऽ, एकटा जेतै दही पौड़ए, से चलिहो बाबा, बौआ मँए-मँए घुटुर-घुटुर।
ओना बाबा भागीरथकेँ बुझबै दुआरे पढ़ि देलखिन, मुदा पछाति अपने भेलनि जे ई पढ़ब तँ दादी-नानीक छियनि। मुदा फेर भेलनि जे जे दादी-नानीसँ छूटि गेल होन्‍हि तेकर भरपाइ तँ पुरुखे ने करत। मुदा ई तँ बाल-बोधक बात भेल जे भागीरथ तँ मध्‍यमे कोटिक अछि। तँए मार-सम्‍हार तँ करैए पड़त। तैबीच भागीरथ दोहरबैत बाजल-
बाबा, सिंगहारक सभटा फूल लोक बीछि नेने हएत। गुलाब आब केकरा के तोड़ए दइ छै, सभ कहै छै हजार-रूपैआ पूजी लगा तोरेले रोपने छियौ।
जहिना बाढ़िक पानिसँ दाबल ओ धरती जे सदीओसँ पानिक तरमे सड़ैत रहल अा संयोग पाबि ओ पानिसँ ऊपर भेल, ओहेन धरतीक फूल- कुमहरक फूल-सँ ऐ पूजाक पावनि हएत! बिहुसैत बाबा बजला-
अझुका जे पावनि छी ओ कुमहरक फूलसँ हएत। तइले एते धड़फड़ किए करै छह। अपने चारपर कुमहरक लत्ती फुलाएल अछि।
आँखि उठा भागीरथ छानिपर कुमहरक फूलो आ फुलबतियो आँगुर देखा-देखा गनि लेलक। जीतलाल बाबा सेहो देखैत रहथि। आँगनमे दादीकेँ आँगुरसँ कुमहरक फुलबतिया देखबैत भागीरथ बाजल-
दादी, कुमहर फड़ल!”
जहिना शुभ काजमे राम-राम कहब अशुभ बूझल जाइ छै तहिना आँगुरसँ बतिया देखाएबकेँ सेहो बूझल जाइ छै। भागीरथक बातो आ काजोकेँ देखि दादी जरि कऽ कोयला-कोइली भऽ गेली मुदा बजली किछु ने। जी-दाँत-ठोर कुटि-पीसि कऽ रखि लेली। रखबो केना ने करितथि एक तँ जितिया सन पावनिक दिन, तैपर जागरणक समए, अपन कोखिक सन्‍तानकेँ जइ सीमा तक कहि-सुनि सकै छिऐ, तैबीच बेटा-बेटीक सीमानक बीच तँ किछु आड़ि पड़िए जाइ छै। मुदा से सभ दादीकेँ मनमे नै एलनि। एलनि एतबे जे जहिना अपने ठोराहि छी तइसँ कि कम पुतोहुओ-जनी छथि! जँ अखनि अशुभ बात मुहसँ निकालब तँ ओहो थोड़े चुपेचाप बरदाश करती। तहूमे बुड़हा सोझहेमे छथिन, दोखी बनि जाएब। दादीक संकल्‍प तँ अोही बेटा-पुतोहु आ पोता-पोती ले ने छन्‍हि। भलहिं तइमे भुमकमित सामाजिक परिवेशमे बौआइत-ढहनाइत सामाजिक-पारिवारिक जिनगीक सड़लोसँ सड़ल मन कहाँ कहै छै जे हमरा पेटसँ कमल नै फूलए-फलकए। मुदा दादीक बिढ़नी सदृश चालि देखि जीतलाल बाबा बूझि गेला जे हो-ने-हो भोजे कालमे ने कहीं दियादी लड़ाइ उठि पटका-पटकी शुरू भऽ जाए आ नौतल पंचक चुल्हिमे पानि उझला जाए! भागीरथकेँ सोर पाड़ि जीतलाल बाबा पुछलखिन-
बौआ, एकटा बात नै बूझि पेलिअ जे की कहने छेलह जे अखनि फूल नै लोढ़ि लेब तँ विला जाएत?”
नब लत्तीक मुड़ी सदृश भागीरथक मन खिलल-
बाबा, कनी थमहू, दादीक मुहेँ सुनने रही।  
एक तँ ओहिना दादीक मन खापरिक पनिमरू बदाम जकाँ खरहर रहबे करनि तैपर पोताक मुहेँ ओ बोल सुनि छाती जुड़ि गेलनि। जे पोताक आत्‍मामे जीवै छी! ओना मुहाँ-मुहीं भागीरथ आ दादीक बीच संवाद नै भेल छल मुदा भागीरथक अवाज तँ दादीक कानमे पड़िए गेल रहनि, भागीरथक मधुआएल अवाजक झलक दादीक हृदए तँ पकड़िए नेने छेलनि। अँगनेसँ बजली-
गज-गज करे गजनती फूल, नअ सए हाथी करे कबुल, तैयो ने भेटै गजनती फूल।
जहिना दूरो-स्‍थानमे रामधुन भेने साधु अपन धून मिला गबैत बाट चलैत रहैए तहिना भागीरथो दादीक बोलक संग अपन बोल मिलबैत बाबाकेँ सुना देलकनि। मुदा दादीओ कि दादी छथि ओहिना थोड़े गामक लोक रगड़ी कहै छन्‍हि। अपन बात जोरसँ दादी बाजि कौआ जकाँ टोहियबैत कनसोह लैत दरबज्‍जा दिस बढ़ली जे हमर बात दरबार तक पहुँचल की नै? जहिना पोखरि-इनारमे पानिक सोह फुटैत तहिना ने कानोक सोह अछि। ओहीमे ने देखए पड़ै छै जे सोहक पानि केहेन अछि। नीक अछि कि अधला। एकान्‍त भऽ सुनब तँ दूरोक सुनब आ जँ चौचंग भऽ सुनब तँ लगोक हेरा जाइ छै।
तैबीच जीतलाल बाबा भागीरथकेँ पूछि देलखिन-
गजनती फूल की भेल भागीरथ जे विला जाइए?”
जहिना अपने बनौने परिवेश बनैए तहिना दादीकेँ सेहो परिवेशो बनबैक लूरि छन्‍हिहेँ। चिलहोरि जकाँ झपटि बजली-
गुलैरक फूल एहेन फड़नमा फूल अछि जे गाछमे फूल रहितो नै भँजियाइए।
भागीरथकेँ जे बात जीतलाल बाबा कहए चाहै छेलखिन तइ बीचमे दादीक विचार बाधक बनि-बनि ठाढ़ होइ छेलनि। अोना भागीरथ लेल बाधक नै साधके छेलै। मुदा बजनिहारकेँ रोकनिहार के, एक तँ पावनिक दिन, तहूमे भिनसुरका जागरणक समए। बात फेकैत जीतलाल बाबा भागीरथकेँ कहलखिन-
बौआ, दादी की ओरियान पावनिक केलखुन हेँ।
जीतलाल बाबाक मुहसँ खसिते सुधिया दादी अधडरेड़ेपर लपकि बजली-
राम-धनीकेँ कोन कमी, जे पावनि नइ हएत। मरूआ चिक्कस घरेमे अछि बाड़ीमे गेनहारी चतलरे अछि तखनि पावनि किए ने हएत? ओरियान करब कि अछिए!”  
सुधिया दादी अपन विचारकेँ सरोवर रूपी परिवारमे पानिक ऊपर हिलकोरक उतार-चढ़ावमे दहलाइत देखि सुधि-बुधि बिसरि गेल छेली। होन्‍हि जे नाचि-नाचि लोककेँ कहिऐ जे जितिया पावनि बड़ भारी, बाल-बच्‍चाकेँ ठोकि सुता, अपने पाबी भरि थारी। ई तँ अदौसँ लत्ती जकाँ बढ़ैत आबि रहल अछि!! मुदा परिवारमे जखनि अपनो[2] छथि तखनि वएह ने जे कहता से करब। तैबीच बलाए टाड़ै दुआरे जीतलाल बाबा बजला-
देखू, अखनि गेनहारी सागकेँ जुआनीक लहकी देने हेतै, से कनी ओकरा बेरा-बेरा काटब। जुआनीक लहकीक माने फूल-बीआ। अच्‍छा एकटा कहू ते साग खोंटै छिऐ आकि हँसुआसँ काटै छिऐ?”
जीतलाल बाबाक गोटी सुतरलनि। सुधिया दादी ससरि कऽ अपन काजपर आबि गेली। बजली-
देखियौ, गेनहारीए एहेन साग अछि जे काटलो जाइए आ खोंटलो जाइए।
दुनू बात सुनि बिच्‍चेमे भागीरथ टभकल-
दादी, दुनू केना हएत? जे काज हाथेसँ हएत तइमे हँसुआ चलबैक की खगता?”
ओना जीतलाल बाबाकेँ पत्नीक समए लेब अनुचित बूझि पड़नि। अनुचित ई जे किछु मूल बात भागीरथकेँ बुझा देने आगू नीक हेतै, तैठाम जँ उलफीए बातमे समए चलि जाए सेहो नीक नै। मुदा अपनो मन कहनि ई तँ हमर विचार ने कहैए मुदा ओहो[3] कोन एहेन अनुिचत बात बाजि रहली अछि जेकर खगता भागीरथकेँ नै छै? अखुनके संकलित संकल्‍प  ने भागीरथक जिनगीक प्रवाहकेँ गंगा जल सदृश पवित्र बनि धार फोड़त। आकि बुढ़ाड़ीमे मरैकाल जे हाँइ-हाँइ कऽ गोदाने करा बाछी उसरगि देत आकि कण्‍ठमे कण्‍ठीए बान्‍हि देतै तइसँ की हेतै। देखिनिहार-सुनिनिहार-बजनिहार काते रहथु मुदा जे मरनासन्न छथि हुनके आत्‍मा ने दर्दक पीड़ा-बीच एहेन बात कबुल कऽ सकै छन्‍हि। मुँहमे जाबी लगा जीतलाल बाबा पोता-दादीक बीचक संवाद सुनए लगला।
भागीरथक शब्‍दक सवाल तँ समाप्‍त भऽ गेल छल मुदा पूर्ण विराम बाँकीए छल तइ बिच्‍चेमे सुधिया दादी बजली-
बौआ, ताेरा अखनि नेनमति छह, तँए हँसुआ-खुरपीक बात आकि ठोकि कऽ सुतेनाइक माने कथीले सुनबह, अखनि कलम-कागजक बात सुनैक समए छह।
ओना दादीक नजरि साग काटैपर चलि गेल रहनि तँए गप-सप्‍पकेँ बहटारए चाहै छेली मुदा भागीरथो तँ बाले-बोध अछि। बाल-बोधकेँ बौसला पछातिए ने काज करब नीक हएत। नै तँ अनेरे ओसारपर ठुनकैत रहत। जीतलाल बाबा भागीरथक प्रश्न सुनि अपने मगन रहथि जे बड़-बढ़ियाँ पावनिक जागरणक समए संवाद चलि रहल अछि। सुधिया दादी कनडेरीए आँखिए जीतलाल बाबाक चेहराकेँ देखै छेली जे जँ कनीओं सह काज करैक भेटत तँ बहाना बना निकलि जाएब। जँ पोता बड़ जोर करत तँ कहबै बौआ, साग काटि अबै छी, तखनि ओसारपर बैसि झाड़बो करब आ तोरा कहबो करबह। नै जँ तहूसँ बेसी जोर करत तँ कहबै जे तोहीं सगतोरा पथिया आ हँसुआ ले, मुहसँ कथीले सुनमेँ संगे चल, साग देखा देबौ, काटि लिहेँ। ओना जीतलाल बाबाक मनमे ईहो घुरियाइत रहनि जे पहिने गजनती फूलक चर्च होइ, मुदा तीन मनक बात छी। जहिना बरियाती तीन मन होइए तहिना। तहूमे दू मन एक-भगाह भऽ गेल अछि।
दादीक बात सुनि भागीरथ बाजल-
मास्‍सैव काल्हिए छुट्टी दइकाल कहने रहथिन जे हँसी-खुशीसँ सभ पावनि मनबिहऽ।
पोताक गछारमे पड़ि दादी गछरि गेली जे जेहने जेकर कुल-खनदान रगड़ी रहत तेहने ने तेकर छुओ-पुओ हेतै। मुदा दादीक मन तेहेन चौचंग भऽ गेल छन्‍हि जे अपनो होन्‍हि जे बजैमे काज एहेन ने हुअए जे केतौक पजेबा केतौ जोड़ा घरक देवाले बिगाड़ि दिअए। मनकेँ ओरिया कऽ असथिर करैत-करैत असथिर होइत बजली-
बौआ, बेस कहलह, पावनिक तँ दिने वएह होइए जे चौबीसो घण्‍टा हँसी-खुशी मनाबी। ओना बतपदौनक कमी अछि ओ तँ कहबे करत जे सुतैकालकेँ जे हँसी-खुशीमे बिताएब तँ नीन कखनि औत। मुदा से नै, नीनक हँसी-खुशी गाढ़ नीन भेल।
एक तँ पावनिक दिन, जइ दिन निअमित परिवारमे सेहो अतिरिक्‍त  बहुत रास नब-नूतन काज आबिए जाइ छै, तैपर बाता-बातीमे समए गमौने पावनिक विहित बाधित हएत। ओहो दिन तँ पावनिक पूर्ण विहितक दिन छी। विचारो तँ ओही विहितक बीच अबैए। मुदा विचारक धाराक पाछू भूमिधारा सेहो फुटै छै आ भूमिधाराक बीच बहैत धाराकेँ सेहो विचारधारा अनुकूल बनबैए। दादीक दहलाइत विचारकेँ जीतलाल बाबा अपना हाथसँ पानिक धफार दैत एकवाहि करए चाहै छला, मुदा बिच्‍चेमे भागीरथ तेहेन खोंरनासँ खोरि दइ जे दादी अनेरे दहलाए लगथि। भागीरथकेँ इशारा करैत जीतलाल बाबा बजला-
बौआ, दादी अखनि ढेनुआर जकाँ सुधरल छथुन, मुदा पहिलुका साग कटैबला बात पछुआ गेलह।
भागीरथ मने-मन विचारिते छल आकि बिच्‍चेमे दादी चिलहोरि जकाँ अकासेसँ टाँहि देलनि-
बौआ, गेनहारी अदौक साग छी, ठरियाक पूर्वज छी। अपने धरतीपर चतरि जिनगी बितबैत ठरिया बनि ठाढ़ भेल। सभ मासक सागकेँ अपन-अपन नीक-अधलाक गुण होइते छै, मुदा जहिना गेनहारी रानी छथि, तहिना मरूओ ने राजा भेल।
जहिना धारमे भँसियाइत नाहकेँ सभ यात्री नै बूझि पबैत जे नाह भँसिया गेल, केतए डुमत तेकर ठेकान नै। मुदा खेबिनिहार तँ बुझिए जाइए, तहिना जीतलाल बाबा बुझलनि जे फेर दुनू भँसिया गेल। जहिना भागीरथ विचारमे दहलाए लगल तहिना दादी पोताकेँ छाती लगौने अथाह समुद्रक जुआरिमे तर-ऊपर करैत खेलए लगली। मने-मन जीतलाल बाबा सोचथि जे ई तँ बानरक करहर उखारब भेल। बानरक करहर ई जे बानर करहर उखारि माथपर रखि दोसर उखारए डुमै छै आकि बिच्‍चेमे पानिक धफारमे करहर भँसिया जाइ छै। प्रश्नक नागड़ि पकड़ि पाछू मुहेँ धकेलि जीतलाल बाबा बजला-
एना जे सुग्‍गा जकाँ भरि दुनियाँक बात एकेबेर पोताकेँ सीखाएब तइसँ ओ थोड़े सीखत। पहिने गेनहारी रानीक सोखरि बुझा दियौ।
पतिक बात सुनि सुधनी दादीकेँ अपनो मनमे भेलनि जे अनेरे एक ढकिया बरतन-बासन पसारि अँगना अजवारि लेलौं! गेनहारी रानीक नख-सिख पकड़बे ने केलौं आ मरूआ राजाक सिख-नख पकड़ि लेलौं। पावनिए छी जेकरा जे जुड़त से तइसँ करत। तइले केकरो कियो बान्‍ह-छान करै छै। मुदा विचारेमे दादी फेरि भँसिआइत बजली-
जेकरा जुड़तै ओ माछ-मरूआ करत जेकरा से नै जुड़तै ओ साग-मरूआ करत आ जेकरा सेहो ने जुड़तै अो जितियाक उपास करत।
जीतलाल बाबाक मन पाछू हटैत विचार देलकनि जे बौराएलकेँ पहिने भरि मन बड़बड़ाइए देब नीक हएत, तँए चुप भऽ गेला। मुदा भागीरथ दादीक भँसिआइत बोल पकड़ि दोहरौलक-
दादी, पहिने सागक संविधान सम्‍पन्न कर तखनि खट्टर कक्काक गैंचीक चर्च करिहेँ। मुदा जितिया पावनिक महत कहनाइ नै बिसरिहेँ।
अपन ऊँचगर आसन देखि सुधनी दादी बताहि भऽ गेली। होशे ने रहनि जे पावनिक मुड़ी केमहर छै अा नागड़ि केमहर छै। ई तँ अमरलत्ती जकाँ सगतरि मुहेँ-मुँह छै, नागड़ि केतौ छइहे नै। सुतिया कऽ साग लग पहुँच दादी बजली-
बौआ, सौनक फुहार पड़िते गेनहारी अपने उगए लगैए, ओना प्रकृतिकेँ अथाह परकित छै, थाह नै छै, मुदा नमी पाबि गेनहारी धरतीसँ उठैए। बरसात भरिक साग छी। शुरूमे ओ ओते कोमल रहैए जे नहसँ खोंटल जाइ छै, मुदा रसे-रसे जेना-जेना रसाइए तेना-तेना ओकर डारि-पात सेहो सकताइ छै, तखनि ओ नहक काजसँ भारी भऽ जाइ छै, तँए हाँसूक खगता होइ छै।
दादीक बात अन्‍तो ने भेल छेलनि, बिच्‍चेमे भागीरथ बाजल-
दादी, लगले माछ-मरूआ आ लगले साग-मरूआ कहलीही...? पावनि तँ पावनि छी। एक-चलिया हएत किने।
जहिना आनोकेँ होइ छै जे पचास किसिमक आमक ढेरीमे जइ आमपर जीह गरल रहल, नजरि ओहीपर जाए चाहै छै। भलहिं ओ ढेरीक तरेमे किए ने हुअए। तहिना सुधनीओं दादीकेँ भेलनि। नजरिसँ साग बहटि गेलनि आ माछे आगुआ गेलनि। मुदा पछिला सालक जितिया पावनि सेहो बीचमे आबि ठाढ़ भऽ गेलनि। आगूमे ठाढ़ होइते जीहसँ ठोर चाटए लगली कखनो माछक सुआद तँ कखनो सागक कँचका मिरचाइक कड़ू मन पड़ए लगलनि। मुँह चटपटबए लगली। मुदा भागीरथकेँ ठोर चाटब नीक नै लगल। मन तरंगलै, बाजल-
दादी, एना जे बजैकाल ठोर चटमेँ तब तोहर बात नै सुनबौ?”
सुधनी दादीकेँ पोताक बात कनी खरछाइन जरूर लगलनि, मुदा सुतली रातिमे उठि कऽ जँ बच्‍चा माए-बापक मुँहमे लघीए कऽ देत तँ कि ओ माए-बाप ओकरा कण्‍ठ दाबि मारतै जे एना किए केलेँ। अपनो तँ माए-बापकेँ बुझए पड़तनि जे जे बच्‍चा अखनि थलियाएल-पनियाएल अछि, सकताएल नै अछि, तखनि ओकर दोख की भेल। दादीओ अपन खरछाएल मनकेँ नीक बना बजली-
बौआ, लोक जखनि एकरस भऽ काज करए लगैए तखनि अहिना कखनो-कखनो मन टहलए लगै छै। सएह भरिसक भेल।
दादी तँ सामंजस्‍य करैत बजली मुदा बाल-बोधक उग्र मन तङ्गल रहबे करै, बाजल-
बजैकाल मुँह चटपटेमेँ आकि ठोर चटमेँ तँ बूझि जेबौ जे झूठ बजैक ओरियान करै छेँ।
जहिना अपन अनुिचत काज भेलापर मन भिन-भिनाए लगै छै तहिना दादीओकेँ भेलनि। बजली-
बौआ, बूढ़ भेलौं, आब जे तोरा सभ जकाँ मनकेँ छान-पगहा लगाएब से पार लगत, जे लगैत-लगैत खरकटि कऽ पकड़ि लेलक, ओ अपन चालि लगले छोड़त। हँ तँ कहै छेलिअ जे कातिकक गैंची! कातिकमे थाल-पानिमे जनमल गैंची अण्‍डाए जाइए। तँए ओकर सुआदो बदलि जाइ छै, मुदा जितियामे तँ वएह गैंची जीरिआएल रहैए, तेकर बराबरी थोड़े कातिकक करत। जखनि जीर-मरीचक मसल्‍ला देला पछाति सागो सागवान भऽ जाइए तखनि जितियाक गैंची तँ सहजे गैंचीए भेल!”
सुधनी दादी आ भागीरथ पोताक बीचक संवादसँ जीतलाल बाबाकेँ बूझि पड़लनि जे पावनिक दिन रीब-रीबेमे जाएत। कहू जे अखनि पावनिक समए बीता रहल छी, ने खाइक ठेकान आ ने पीबैक ठेकान अछि तखनि पावनि की भेल? अकछाइत बजला-
बौआ, ने तोहर दादी केतौ पड़ेथुन आ ने तूँ पड़ेबह, मुदा पावनिक दिन तँ पड़ाएल जाइए। नहाइक बेर भेल। आइ पावनि छी, जँ आइयो चयन स्‍नान नै करब, तखनि पाबने की भेल?”
पतिक सूढ़मे सूढ़ मिला सुधनी दादी पुतोहुकेँ जोरसँ दरबज्‍जेपर सँ कहलखिन-
कनियाँ, आब कि हम ऐ घरक घरनी बनि रहए चाहब से नीक हएत। जाउ, अपन साग काटि कऽ आनि लिअ। ताबे हम बौआकेँ बौसै छी।
पत्नीक विचारो आ आढ़ैतोकेँ देखि जीतलाला बाबाक मनमे खुशी भेलनि। खुशी ई भेलनि जे पत्नी काजुले टा नै काजक जोगाड़ीओ छथि। बजला-
बौआकेँ राजा मरूआक चौमासा झब दे सुना दियौ।
पतिक गुरुवचन सुनि गुरुआइ करैत सुधनी दादी बजली-
बौआ, मरूआकेँ अन्नमे नै गनल जाइए। अन्नमे सूरा-फारा इत्‍यादिक सृजन शक्‍ति होइ छै, मुरूआकेँ से नै छै तँए मरूआमे सूरा नै फड़ै छै।  
ऊपरका बातकेँ झमारि भागीरथ निच्‍चाँ आनि बाजल-
दादी, जखनि मरूआ अन्न नै भेल तखनि पावनिक पकवान केना भेल?”
दादी आँगुरक टुकड़ीपर हिसाब जोड़ैत बजली-
बौआ, भादो-आसिन मरूआ तैयारीक समए छी, टटका कुअन्नो तँ बसिया सुअन्नसँ नीक होइते छै। तहूमे मरूआ एक राजक राजा छीहे।
एक राजक राजाक नाओं सुनि भागीरथक मनमे शंका भेल जे अन्न केना राजा भेल। मुदा जे दादी एते सत् बात बजै छथि ओ बीचमे एकटा फूसि किए बजती। फेर मनमे उठलै अनेरे मने-मन घमर्थन करै छी, दादी जखनि सोझहेमे छथि, तखनि पुछिए किए ने लियनि। पुछलक-
दादी, मरूआ कोन राजक राजा छी?”
भागीरथक प्रश्न सुनि दादीक मन जुड़ैत-जुड़ैत जुड़ा गेलनि। हृदए हलसि गेलनि। हलसैत बजली-
बौआ, माटिमे उस्‍सर-खासर एक किसिम अछि। जे उपजाउ माटिक रोग छी। जेते अधिक मात्रामे रहत ओ ओते नमहर रोगी भेल। मुदा से नै, मरूआ ओही रोगाएल माटिक राजा छी। ओहनो उस्‍सर होइए जइमे कुशो ने उपजैए। आ ओहनो होइए जइमे कुश उपजैए। तहिना कम अंश रहने सुअन्नो उपजि जाइए मुदा बीचक एक अवस्‍था छै जइमे आन कोनो अन्न नै लगैए, तइमे मरूआ लगि जाइए! वएह ओकर राज-पाट भेल।
बजैत-बजैत सुधनी दादी ईहो बाजि गेली-
आब बड़ बेर भऽ गेल। बाँकी आगू बूझल जेतइ।
मुदा जीतलाल बाबा पावनिकेँ हाथसँ गमबए नै चाहथि, बजला-
जखनि सौंसे रामायण पोताकेँ पढ़ाइए देलिऐ तखनि जग-जननीक चर्च किए छोड़ि देलिऐ।
ओना जीतलाल बाबा चिक्कारीमे बाजल छला, जे भागीरथ नै बूझि पेलक। मुदा मोबाइलिक टाबर जकाँ सुधनी दादी पकड़ि लेलनि। अपनो मन गवाही देलकनि जे जखनि रामायण बाचिए गेलौं तखनि सीतोक दर्शन कराइए दिऐ। बजली-
बौआ, हमर सोझ-साझ बात बुझिहऽ। जितिया पावनि जहिना मनुखकेँ जीहमे शक्‍ति परदान करै छै जइसँ ओकरा रसक बोध होइ छै, तहिना धानमे सेहो शीशक गोभ जीह रूपमे अबै छै...।
दादीकेँ आगू बजैले मन लुसफुसाइते रहनि आकि बिच्‍चेमे भागीरथ टोकलकनि-
दादी, नीक जहानि नै बुझै छी।
जेना तान साधैकाल काेनो ऊँच अवाज आबि टकरा जाइत तहिना दादीओकेँ भेलनि। खिसिया कऽ बजली-
भूखलमे भजनो ने नीक लगै छै। अखनि चलह पावनि करए साँझमे बाँकी सभ गायित्री जप कऽ लेब।¦३७०३¦  
  
Courtesy-
Gamak Saksl-Surat by Jagdish prasad Mandal
Dated the 24th October 2014




[1] पर-मार-जीत
[2] पति
[3] पत्नी

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