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Thursday, October 23, 2014

समधीन

समधीन








बरदहट्टामे जहिना गोटे बरदक जोड़ा एहेन रहैत जेकर सिंग-सिंगहारक संग रंगो-रूप आ पुछो-पएरक एहेन मिलान रहैए जे अनठियाकेँ परेखेमे ने अबैए जे दुनू दू छी आकि एक्के, तहिना गाममे सिनुरिया काका आ खजुरिया समधीनक बीच अछि। ओना सिनुरिया कक्काक असल नाआें राधारमण आ खजुरिया समधीनक नाआें हसीना खातून छियनि। मुदा से छियनि माए-बापक देल नाआें। जाबे राधारमणक माता-पिता जीबैत रहथिन ताबे तक तँ राधारमणे नाआें बेसी लोक जनै छेलनि मुदा अपन आँखि-पाँखि भेला पछाति सिनुरिया काका नाआें अरजि लेलनि। जइसँ पछिला नाआें मटिया-मेट भऽ गेलनि आ सिनुरिया काकाक नाआेंसँ सभ जानए लगलनि, जनैत-जनैत नाउँए पड़ि गेलनि। मुदा तइले सिनुरिया काकाकेँ मिसियो भरि रोग-राग मनमे नै छन्‍हि, जहाँ धरि खुशीए छन्‍हि। खुशीक कारण ई छन्‍हि जे गामक लोक जखनि बहराए लगल आ जाबे तक गाम बिसराएल नै छेलै ताबे तक जे कोनो-कोनो फूल, फल, तरकारी आ अन्नोक बीआ अनतएसँ आनि गाममे लगौलक, तहीमे दस-बारह तरहक सिनुरिया आम सेहो आबि गेल। ओना सभ आमक रंगो आ साइजो एके रंग नहियेँ आ ने सुआदे आकि रसे-गुद्दा एकरंग। मुदा देखैमे तँ लाले-लाल, सिनुराएल लाल, अलाएल लाल, गुलाएल लाल तँ अछिए। किछु एहनो अछि जे जखने टिकुला होइए तखनेसँ ललए लगैए आ किछु एहनो अछि जे जखनि कोशाइए तखनि लाली पकड़ै छै अा किछु एहनो अछि जे जुआइत-जुआइत पकड़ै छै। ओना पकलापर तँ अधिकांश आनो आम ललिआइए जाइए।
गाममे आम तँ दस-बारह रंगक बढ़ि गेल, मुदा नाआें सबहक हेरा गेल। हेराएल ऐ दुआरे जे रोपिनिहारे बिसरि गेला। बिनु फड़ने गौआँकेँ मतलबे कोन, बिसरबो केना ने करैत, समए छल जखनि उत्तर-प्रदेश, भोजपुरसँ लऽ कऽ ढाका-बंगाल तक जोड़ल छल, जे ससरि पंजाब दिस बढ़ल आ बढ़ैत-बढ़ैत दिल्‍ली, बंगलोर, बम्‍बइ दिस बढ़ि गेल। नोकरीए करैक छै तँ जेतए बेसी पाइ हेतै, तेतए जाएत। ओकरा कोन जरूरी छै जे गामक गुलाब खासक सिनुर परखत। जखनि गामेक नै परखत तँ आनठामक तँ सहजे बाढ़िक पानि जकाँ आएल-गेल।
सुभ्‍यस्‍त समए भेने अदरो नक्षत्र अपन रंग जहिना देखा देलक, तहिना गामक आमो गाछी देखौलक। लाले-लाल गाछी सबहक बहरबैया आम चमकए लगल। कोनो नब वस्‍तु भेटने मनमे उत्‍साह जगिते छै, तहिना आमक रंग देखि-देखि लोकोकेँ जगल। मुदा सभ साइजक रहितो सबहक रंग एकरंगाहे छै। गुलाब-लाल, सिनुर-लाल आ आल-लाल परखैक लोककेँ जरूरते की छै। आम छी खाइक वस्‍तु भेल। ओकर गुण तँ ओतबे ने भेल जे मीठो हुअए आ बेसीओ हुअए। तैसंग बेसी फड़बो करए। गौआँक उत्‍साह एते बढ़ि गेल जे आमक विचार करब जरूरी भऽ गेल। तइमे सबहक गाछीक आम सहरगंजा भऽ गेल। एक तँ अपन जे पुश्‍तैनी अछि ओ तँ अपन नाआें जपिए रहल अछि मुदा नबकाक नामकरण भेने बिना काज केना चलत। अही नामकरणक उत्‍सवमे राधारमणक नाआें सिनुरिया काका पड़ि गेलनि। जेकरो पित्ती हेथिन सेहो कक्के कहै छन्‍हि। आ जेकर भातीज हेथिन सेहो कके कहै छन्‍हि। अहुना लाेक अपन नामो बाबा, दादा, काका इत्‍यादि रखिते अछि। सिनुरिया काका नाआें किए समाज देलकनि? एके समैमे सभ बहरबैया आम पकैक समए भेल, अहुना जेठसँ शुरू भऽ अखाढ़मे भरखरि पकिते अछि। उत्‍सवक माहौल रहबे करै, गाछीए-कलम देखैत-देखैत दस गोटे बिनु बजौले एकठाम भऽ बैसि गेला। बैसारमे प्रश्न उठल जे, जे आम टिकुलासँ जुआइ धरि लाले-सिनुराएले अछि, ओ जे पाकत से केना बुझबै? दोसर प्रश्न उठल जे कोन राज्‍यसँ कोन आम आएल अछि तेकरो ठेकान नहियेँ अछि, ओ केना ठेकनाएब? तेसर प्रश्न उठल जे कोन आम कोगर हएत, कोन गुदगर हएत आ कोन रसगर हएत से ठेकान केना पएब? तहूमे सभ आम सभकेँ अछिओ नहियेँ, तँए अन्‍हराक हाथी भऽ जाएत, जेकर रसगर हएत ओ रसगरे बुझबै आ जेकर गुदगर हएत ओ गुदगरे बुझबै। रंग-बिरंगक प्रश्नक बीच सभ ओझरा गेला। मुदा बिना रस्‍ता भेटने समाज चलबो केना करत। जहिना लोक चलैए तहिना ने समाजो चलै छै। गुम्‍मा-गुम्‍मी बैसार देखि राधारमण फनकि बाजल-
एतबे टा ओझरीमे जखनि सभ ओझरा गेलह, तखनि काज केना चलतह?”
राधारमणक विचार सुनिते सुकरतिया प्रश्नकेँ उनटबैत बाजल-
राधारमणे जे कहता से सभ मानि लेब।
आगू-पाछू जेते राधारमण सोचने हुअए मुदा ठाँहि-पठाँहि बाजल-
भाय, आम तँ सहजे अामे छी जे सिनुरिया चानिकेँ सेहो चीन्‍हि सकै छी।
तहीपर गौआँ सिनुरिया काका नाआें रखि बजबए लगलनि। अपन अरजल नाआें छियनि तँए केकरो अधला नजरिए देखबे किए करता। पितातुल्‍य पित्तीए भेला।
खजुरिया समधीन गामक समधीन छथि। अपन माए-बापक देल नाआें हसीना खातून छेलनि। मुदा जगह बदलने बेटीए ने कनियाँ आ आकि आरो-आरो नाआें अरजैत अछि। तीस बर्खसँ अपने बेटी-जमाए लग रहै छथि। ताड़क आ खजूरक पातक बौस गढ़ैक लूरिसँ हसीना भरल। खजूर-पातक ओछाइन, सिरमा, पौती बीअनि इत्‍यादि रंग-रंगक बौस बनबैक लूरि, तहिना ताड़क पातकेँ चटाइ, पंखा, झुनझुना इत्‍यादि गढ़ैक लूरिसँ सेहो भरल छथि। जहिए बेटी ऐठाम हसीना पएर रोपि काजमे भागीदारिनी भेली तहिएसँ लोक खजुरिया समधीन कहए लगलनि। ओना वयस पौला पछाति समधि-समधीनक समए अबैए मुदा से हसीनाक संग नै भेल। भेल ई जे जहिना कु-समैओमे अन्‍हर-बिहाड़ि, पानि-पाथर आबि जाइ छै तहिना खजुरियाे समधीनकेँ भेल। सिनुरियाे काका समधीने कहै छन्‍हि  आ जे सभ सिनुरिया काका कहै छन्‍हि सेहो खजुरिये समधीन कहै छन्‍हि। मुदा जे जे कहनि, समाज तँ विशेषाधिकार दइए देने छन्‍हि। जइसँ किए ओ बुझती जे गाम अपन नै छी, तहूमे बराबरीक हिस्‍सा। कहुना भेली तँ गामक समधीन भेली, किए मनमे कुवाथ हेतनि जे कोनो पुरुख आँखि चढ़ि किछु कहैए। बजैक अधिकार जेते समधिकेँ तइसँ कम किए समधीनकेँ हेतनि। हएबो उचित नहियेँ। किएक तँ सृष्‍टिक सृजनमे दुनू एहेन अछि जे जात जकाँ असगरे चलिओ नहियेँ सकैए। ओना महिला जगत नमहर अछि, तँए रंग-रंगक घर-दुआर, बोल-बाइन, सर-सम्‍बन्‍ध तँ अछिए मुदा तइमे समधीन अगिला मुहराक भेली। अगिले मुहरा ने गाड़ीकेँ रस्‍तो धड़ा चला सकैए आ दब-उनार करैत उनटाइओ सकैए। जँ समधि प्रेमसँ कहथिन, तँ समधीनो प्रमाग्‍नि भऽ बजती, नै जँ क्रोधसँ कहथिन तँ ऊहो क्रोधाग्‍नि नै होथि, सेहो उचित नहियेँ।
मुदा से बात सिनुरिया काका आ खजुरिया समधीनक बीच नै अछि। जहिना राधारमणकेँ सौंसे गामक लोक सिनुरिया काका कहै छन्‍हि  तहिना हसीनाकेँ सेहो खजुरिया समधीन कहिते छन्‍हि। से कोनो पुरुखे-पात्र नै महिलो-पात्र। जहिना एक उमेरिया दुनू तहिना एक कान्‍हीक सेहो। रंगो-रूप भगवानेक देल। कोन भगवानक देल, से ओ दुनू जानथि। मुदा मासक हिसावसँ जहिना भगवान रंग बँटै छथि तहिना दुनूकेँ एकमसुआ बूझि रंगो-टीप देने छथिन। तेतबे नै, हाथ-पएरक मिलान एहेन जे तेहल्‍लाकेँ परखब कठिन। एक तँ अहुना जखनि लोक घर छोड़ि आगू निकलैए तखनि बोलीमे टाँस आनए पड़ै छै, हसीना तँ सहजे माए-बापक घरसँ सासु-ससुरक घर होइत बेटी-जमाए ऐठाम समधीन बनि रहली अछि, तँए तेखार कएल खेत जकाँ जहिना गामक समधीन तहिना समतल बोल। सिनुरियो काका तेहने, जखनि जे मनमे उचरल तखनि सएह बजलौं। मुदा से पारखी खजुरिया समधीन। तहूमे ताड़-खजूरक बीच रहनिहारि, जइ जगहपर टगल-मरल आबि सिंहासन जमा सिंह बनि घण्‍टे  भरिमे केते राज-पाट उनटा अपने उनटि घर दिस विदा होइए। तइ खेत परहक उपज हसीना।
ओना सिनुरिया काका सौंसे गाम एक-बेर-दू-बेर दिनमे घुमिते छथि, मुदा बैसार तीनिए-चारिठाम छन्‍हि। चारू बेवसायी जगह, जइमे एकटा खजुरियो समधीनक छन्‍हि। ओना घर, बेटी-जमायक छी, मुदा घरोक बात तँ छोट-छीन नहियेँ अछि। जइ नाआेंसँ बेसी लोक घरकेँ जनलक घर तेकर भेल। जेकरा समाजक अधिकार भेटि जाइ छै। केना नै भेटौ, जएह पंचवैया, सएह नीर-नैया। मुदा किछु होउ, हसना तँ हसने भेली। जमाए-रशूलोक विचारमे कोनो घटी-बढ़ी नै। अनुकूले। अनुकूल ई जे घरक सभ कियो तँ जोटले छी, सभ सबहक तरी-घटी जनिते छी, तखनि माइए-बापक नाआें ने लोक जगबए चाहैए से तँ अछिए, जेहने अपन माए तेहने ने घरोवालीक माए। तेतबे किए, कुलक्षण-सुलक्षणक परीछा सेहो एकेठाम वृतिए अछि, भलहिं कियो अनेरूआ आ कियो कुलपूज हुअ। बरसाती समए भेने सिनुरिया काकाकेँ बैसारीमे बढ़ोतरी भऽ गेल छन्‍हि। हाटक काजसँ विदा भेला, रस्‍तामे खजुरिया समधीनक घर पड़ैत, दुनूकेँ अजमा नेने रहथि। करीब अदहा किलो मीटरक दूरीमे दुनू गोटेक घर। ओना ई बात सिनुरिया काकाकेँ बूझल जे माघक चद्दरि, भदवरिया छत्ता-लाठी लाइए कऽ घरसँ निकली मुदा गामसँ कनीए हटि हाट, करीब किलो मीटरक दूरीपर। तहूमे जँघियाएल हाट। जँघियाएल ई जे एक दिन अहिना हाटपर रहथि तखने बरखा शुरू भेलै, पुबरिया हवा सह दैत रहै आ पुबेसँ बरखो अबैत रहै, जेकरा लोक कातेसँ घुआँ जकाँ देखै। तीमन-तरकारी कीनि गमछामे बान्‍हि विदा होइत रहथि आकि बर्खा-पानि अबैत देखलखिन। मनमे एलनि जे जखनि हाटक काज भाइए गेल तखनि अनेरे किए हाटोकेँ अजबाड़ने रहबै। अनेरे हाट-बजार भरल रहने जेबीक हेरा-फेरी हएत। तहूमे पँजराक जेबी, एक-दोसरसँ सटल, लोकक जेबीमे हाथ दऽ दियौ, जँ बूझि गेल तँ कहबै, अपना जेबीमे दइ छेलिऐ, अहाँमे चलि गेल। जँ सुतरल तँ शिकारी भेलौं। नै सुतरल तँ शिकार भेलौं। धोतीक ढट्ठा बान्‍हि सिनुरिया काका घर दिस दौगला, घर तक दौगले एला, मुदा बरखाकेँ पकड़ऽ नै देलखिन। से केलहा अनुभव रहनि, तँए बेसी बिसवास छेलनि। 



अंतमे......................................................... 



जइ दुआरे सिनुरिया काका बात उठौलनि से फेर नै भेलनि। मनमे छन्‍हि जे एको गोटेसँ पातक भाँज लगलासँ सभ भाँज जँ नहियोँ तँ बहुत भाँज तँ लगिए जाएत। तेकर कारण भेलनि जे जहिना कोनो गाछक सिर उखाड़ला पछाति उखाड़ैक सम्‍भावना बढि जाइए, तहिना भेलनि, मुदा गाछक मुसरा उखड़त आकि नै उखड़त ई तँ प्रश्न अछिए। उखड़ियो सकैए आ नहियोँ उखड़ि सकैए। ई तँ गाछपर निर्भर करैए। मुदा जिनगीक गाछक मुसरा सिराहेटा नै जलाहो होइए। सिनुरिया कक्काक मन थकमकेलनि। थकमकाइते पाछू उनटि देखलनि तँ एकटा मोटगर सोड़ि पकड़ल बूझि पड़लनि। बजला-
समधीन, नै बुझलौं जे की कहलिऐ- जानियेँ कऽ गरीब भेलौं?”
खजुरिया समधीन जानि आ मानिक अरथे ने बुझै छेली। एकेकेँ दुनू बुझै छथि, मुदा सिनुरिया काका तेहेन बात पुछि रहल छथि जे की कहबनि। धकाइत बजली-
समधी, ईहो बड़ बतबनौन छथि, हमरा गाम दिस अहिना लोक बजैए जे जान-मान एके छी।
ओना सिनुरिया काका जान-मानमे ओझरए लगला। मुदा मनमे एलनि, जिनगी जाल छी, एक दिस घुरछी छोड़बै छी दोसर दिस लगि जाइए। आकि नबके बनि जाइए। आब कहू जे अमीर-गरीब जनमाउ छी आकि बरखाउ? ई केना झाँपल-तोपलमे बूझब? होइ तँ दुनू छइहे, बुढ़ाड़ीमे बजै काल सभ बजैए जे हमर जिनगीक अमुक समए स्‍वर्ण काल छल, आ अमुक समए अन्‍धकार काल। मुदा केना स्‍वर्ण काल एबो कएल आ गेबो कएल, से केना बुझबै? जी जाँति बजला-
समधीन, एहनो तँ समए रहबे ने कएल हएत जे नीक-निकुत खेबो-पीबो केने हएब आ घरो-दुआर बनौने हएब?”
सिनुरिया कक्काक बात सुनि खजुरिया समधीनक मनमे खुशी उधकलनि। उधकिते चौअनियाँ मुँह फुल-फुलेलनि। फुल-फुलाइते बजला-
समधी, की दिन छल आ की दुनियाँ, चारूकात हरिहरे देखिऐ। मुदा दिन धराबए तीन नाम।
खजुरिया समधीनक बात सुनि सिनुरिया काका फेरि भोथियए लगला। मनमे उठलनि कहू, ई की भेल? एक दिस हरिहरे दोसर दिस तीन नाम सेहो बाजिए देलनि। मन कहलकनि, जहिना अपनेकेँ पीछराह पुरुख बुझै छी तहिना भरिसक समधीनो पिछराहे छथि। एक तँ एके पीच्‍छर केतेकेँ पीछरा खसबैए, तैपर टिकाशन धेने समधीनो...। लगले मन धक्का मारलकनि। बजला-
घरक नोन-तेल जारनि-काठीसँ लऽ कऽ लत्ता-कपड़ा अा घर-घरहट करैत हाथ-मुट्ठीमे केते, सालक पछाति बँचै छेलए?”
सिनुरिया कक्काक बात सुनि फेर खजुरिया समधीन सुरकुनियाँ मारि बजली-
समधी, हिनकासँ कोनो लाथ किए करबनि। जहिना ई पोता-पोतीक बीच जीबै छथि तहिना ने हमहूँ नाति-नातीन संग अही समाजमे जीबै छी। दुनू गोटे एक बतरिया भेलौं, हम अहाँ जे करबै, जेना चलबै तहिना ने बालो-बच्‍चा ठेकना कऽ चलतै। जखनि अहूँ बाबा-दादाक कोरामे छेलौं तही समए ने हमहूँ छेलौं, जखनि दुनू गोरेक माए-बाबू एकठाम दुनू गोरेकेँ रखि खेलौने हेता तखनि भाइए-बहिनक सम्‍बन्‍ध बनौने हेता किने?”
एक संग अनेको प्रश्न खजुरिया समधीनक सिनुरिया कक्काक मनमे आबि अँटकि गेलनि। बर्खाक बुन्नो छोट होइत-होइत छूटि गेल। वादलो टुकड़ी-टुकड़ी होइत छँटए लगल। बीच दोग देने सुर्जक लाली उगल। लाली उगिते खजुरिया समधीनक मन सेहो ललियए लगलनि। सिनुरिया काका बजला-
समधीन, जेतबो दिन हम सभ ललियाएल रहलौं तेतबो दिन धिया-पुता थोड़बे ललियाएल रहत। तखनि तँ जेतबे दिन जीबै छी तेतबे दिनक ने भागी हेबै। जाइ छी।¦,०९६¦
  ०४ अक्‍टुबर २०१४

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