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Thursday, October 23, 2014

एक मुठी घास

एक मुठी घास










छुब्‍द भऽ छगुन्‍तामे पड़ि‍ गेलौं जखनि‍ नअ बर्खक भतीजी आबि‍ कहलक-
काका, हँसुओ आ पथीओ छीनि‍ लेलक आ गारि‍ओ पढ़लक।
बाध दि‍ससँ टहलि‍ कऽ आएले रही, एक तँ पानि‍क झमार दोसर भदवरि‍या रौद लगल रहए। मन पीताएल रहबे करए, पि‍यास सेहो लगल रहए, रौदाएल दुआरे कलसँ कनी हटि‍ लतामक गाछक छाहरि‍मे बैसल ठण्‍ढाइत रही जे ठण्‍ढेला पछाति‍ पानि‍ पीब। तही बीच भतीजी आबि‍ बाजल। पुछलि‍ऐ-
के छि‍नलकौ?”
रेखा बाजलि‍-
जुगेसर काका।
‘जुगेसर’ नाअों सुनि‍ आरो चकि‍त भऽ गेलौं। मन पड़ि‍ गेल पहि‍लुका घटना। बीस बरख पूर्ब जुगेसरक घरवालीकेँ अहि‍ना खुरपी-पथि‍या मोहन बाबूक कमति‍या छीनि‍ नेने रहै। जेकरा चलैत गारि‍-गरौबलि‍सँ लऽ कऽ मारि‍-पीट भऽ गेल। मारि‍-पीटक पछाति‍ मुकदमो भऽ गेल, जइमे मुद्दालह बनि‍ हमहूँ आठ बरख कोट-कचहरीक चक्कर लगौने रही। पुछलि‍ऐ-
की केने रही जे हँसुओ-पथि‍या छि‍नलकौ, आ गारि‍ओ पढ़लकौ?”
सुनि‍ते रेखा हुचैक-हुचैक कानए लगल। जहि‍ना कोनो नि‍रदोस फँसौल आदमी जहल जाइकाल कनैए तहि‍ना कनैत बाजलि‍-
घासले गेल छेलौं, सौंसे बाधक आड़ि‍-धुर डुमल देखलि‍ऐ। खाली गाछी कातक खेत सूखल देखि‍ घास कटैले बैसलौं। एके मुठी कटने रही आकि‍ जुगेसर काका आबि‍ कहलक जे घास कि‍ए कटै छेँ?”
थोड़-थाड़ घासोक खेती गाममे हुअ लगल अछि‍। पुछलि‍ऐ-
बगहा घास छेलै आकि‍ अनेरूआ?” 


अंतिम पेजसँ...........................................................


एक तँ नहाइ बेर रहए दोसर जलखैओ ने केने रही। दू-दि‍सि‍या काज भऽ गेल रहए। दू-दि‍सि‍या ई जे नहाएब-खाएब आकि‍ हाँसू-पथि‍याक बात बुझए जाएब। बर-बेमारी जकाँ हलतलबी नै बूझि‍ पड़ल। भतीजीकेँ कहलि‍ऐ-
बुची, अखनि‍ नहा-खा लइ छी, बेरूपहर तोहूँ चलि‍हेँ, जा कऽ पुछबै जे कि‍ए हाँसू-पथि‍या छीनलहक।
रेखा मानि‍ कऽ आँगन चलि‍ गेल, मुदा मन गदमि‍शान करए लगल। गदमि‍शान ई करए लगल जे एना जे जहि‍ना लोक रस्‍ताक मोड़पर आबि‍ मोरा जाइए भरि‍सक तहि‍ना जुगेसरो तँ ने भकमोड़मे फँसि‍, जाति‍-सम्‍प्रदाइक जालमे ओझरा एना केलक। मन ठमकि‍ गेल। ठमकि‍ते कबुल लेलक जे काजक जबाव काज छि‍ऐ, तँए ओकरो काजेसँ जबाव देब नीक हएत। जहि‍ना हाँसू पुरान तहि‍ना पथीओ हेतै, की एक मुठी घास के प्रति‍ष्‍ठाक प्रश्न बनाएब उचि‍त हएत? तोहूमे जैठाम जाति‍-मजहबक भूत मगज छूबि‍ नेने छै।¦४११¦

२१ अगस्‍त २०१४

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