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Monday, October 20, 2014

कलम हानि कऽ

कलम हानि कऽ








ओछाइनपर मरू अवस्‍थामे पड़ल देवानन्‍दक मुहसँ एतबे निकलि रहल छन्‍हि-
सुचितलाल छुटि कऽ आएल।
गामोक आ कुटमो परिवारक जिज्ञासु लोकक आबाजाहीक ढवाहि लागल। कखनो दुआर-दरबज्‍जा खाली नै। घर-बाहर सभतरि देवेनन्‍दक बातक चर्च। चर्च ई जे जेना देवानन्‍द सभ किछु बिसरि गेला आकि हेरा गेलनि तहिना भऽ गेल छन्‍हि। अही बीचक ओझरीमे घरसँ बाहर धरि सभ अपना-अपना बुधिए-विवेके ओझरी सोझड़बैए। मुदा करीनक पानि जकाँ पहिने छीप उठत तखनि ने करीन पानि पकड़त आकि बिना छीप उठने करीन पानि पकड़ि लेत। जिनका हुनका घर दिससँ अबैत देखियनि आ पुछियनि जे की हालत देवानन्‍द बाबाक छन्‍हि? तँ सबहक एक्के उत्तर जे सुधि-बुधि हेरा गेलनि, एकेटा रट छन्‍हि जे सुचितलाल छुटि कऽ आएल?’
सुनि-सुनि मुँह बन्न केने रही जे जँ ऐसँ बेसी किछु खोद-वेद करब तँ गपेक ओझरीमे तेना ओझरा जाएब जे अपन सभ काज चौपट भऽ जाएत। जेते मुँह तेते रंगक गरहनि, कियो नोन-मिरचाइ मिला सुअदगर बनबैत तँ कियो तेतैर मिला खट-मिट्ठी बनबैत, एहेन जालमे नहियेँ पड़ब नीक। मुदा समाजक बीचक प्रश्न छी जे छोड़िओ कऽ भागब तँ काल्हिक समाज जे गरिऔत तेकर भागी नै हेबै? मुँह चुप राखब कापरपना हएत। जिज्ञासा जगल, देवानन्‍द बाबा लग पहुँचलौं। पहुँचिते गोड़ लागि पुछलियनि-
बाबा, हमरा चिन्हलौं। हम फल्लाँ।
समाधिमे लीन देवानन्‍द बाबा, हँ-हूँ किछु ने बजला। ओना हमर तुरिया बाबा कहै छन्‍हि तइसँ अगिला पीढ़ी काका कहै छन्‍हि आ तहूसँ अगिला देवभाय कहै छन्‍हि। अपनो परिवारक सएह हिसाब-किताब छन्‍हि। बाबा तँ बनिए गेल छथि। जहिना तपस्‍यामे लीन योगीक मुहसँ फुटैत-
श्रीराम, श्रीकृष्‍ण, राधे-राधे, सीते-सीते, सीता-राम, राधे-कृष्‍ण।
तहिना फुटनि-
सुचितलाल छुटि कऽ आएल।
चुपचाप सुनि कान ठाढ़ केलौं जे आरो किछु बजता। मुदा किछु ने। अचेत अवस्‍थामे। मुदा अचेतकेँ चेतक अवस्‍था देखिए कऽ ने जगह छोड़ब, ओना तैबीच बेराबेरी केते गोटे एबो केला आ गेबो केला। फेर वएह बात निकलनि-
सुचितलाल छुटि कऽ आएल।
उठि कऽ विदा हुअए चाहलौं। मन कहलक-
केतए एलौं तँ केतौ ने।
देवानन्‍द बाबाक ओछानिक आगू नमहर ओछाइन बिछाएल आ अपन समांगक चौखरी कनी हटि कऽ रहनि। सहटि कऽ आगू बढ़ि बैसलौं। बाबेक गप चलैत। कान ठाढ़ केलौं तँ सुनलौं-
चौबीसो घंटा सीता-रामक रट लगेनौं बिना रामायण पढ़ने आ सुनने सीता-रामकेँ नै जनबनि, मुदा जखनि जानि लेब तखनि जे सीताराम मुहसँ निकलत ओ दोसर रूपमे निकलत। वएह असल रूप भेल। भरिसक तहिना देवानन्‍दो काका कोनो रचित रचनाक मंत्र पढ़ि रहला अछि। -देवानन्‍दक भातीज व्‍याख्‍या करैत बजैत रहथि।
झाँपल-तोपल पढ़ल-लिखलक भाखा, चुपचाप सुनि लेलौं। बजबो केना करितौं। हम कि काेनो धरमराज छी जे केकरो जीवन-मरणक हिसाब जोड़ब। फेर मन भेल जे खिस्‍सा-पीहानी सुनौनिहारकेँ जँ हँूहकारी नै पड़ल तँ बेरस जकाँ भऽ जाइए। मुदा लगले मनमे भेल जे हूँहकारीओ बिनु बुझने केहेन भरब। पढ़ल-लिखल लोकक बीचमे छी जँ कहीं उनटा हँूहकारी पड़ि जेतनि तँ करेजमे दर्द हेतनि एक दर्द देखए एलौं, दोसर देने जैयनि, ई नीक नै। मुदा बैसलो नीक नै लगल। जेते काल बैसि कऽ जिज्ञासा करैक छल तेकर अदहो समए नै खटियाएल छल तखनि चलिओ केना अबितौं। मुदा मनमे भेल जे कहि दियनि अखनि कनी धड़फड़ीमे छी निचेनसँ फेर आएब। फेर आएबो तँ अछिए अखनि जीवित-मृत्‍युक जिज्ञासा भेल, दू दिनमे मरबे करता तखनि ने मुइल-जीवितक भाँज लागत। ठाढ़ होइत बजलौं-
कक्काजी, अखनि कनी दोसर ठाम जाएब, ओमहरसँ एला पछाति फेर आएब।
विदा भेलौं, दस लग्गा आगू बढ़लौं आकि पाछूसँ सोने काका कहलनि-
कनी रूकह। संगे चलब।
बड़बढ़ियाँ। कहि रूकि गेलौं।
लगमे अबिते कहलनि-
सभटा केलहा बिसाइ छन्‍हि।  
सोने कक्काक बातक कोनो अरथे ने लगल जे की कहलनि। तहूमे जँ कनेक कड़ैक कऽ कहितथि तँ अनुमानो करितौं जे भरिसक कोनो कारणे रीशियाएल छथि, तँए अहू अवस्‍थामे देवानन्‍द अपन रीश झाड़ै छथि। सेहो नै बूझि पड़ल। असथिरसँ मुँह दाबि तेना बजला जे दू गोटे छोड़ि तेसर कान तक नै पहुँचल। गड़ भेटल। गड़ ई भेटल जे ताबे दस डेग आरो आगू बढ़ि गेल छेलौं। ओना मनमे उदासी छल तँए ने दोसर काज दिस नजरि उठए आ ने रस्‍ते चलैमे नीक लगए। आगूमे बामा भाग एकटा किसुनभोग आमक गाछ। सघन छाहरिओ आ निच्‍चाँमे चिक्कनो। कहलियनि-
काका, अहाँ ते तेहेन शिकारी जकाँ बजलौं जे बुझिए ने पेलौं जे खिखिरक बोली देलिऐ कि हरिणक आकि कोइलीक।
हमर बात सोने काकाकेँ नीक लगलनि। नीक ई लगलनि जे जहिना शरीरक चमड़ाक घाओ, माँस सड़बैत हड्डी छूबि पीजुआ जाइए मुदा जखनि ओकरा निकालल जाइ छै तखनि पीज निकलिते सुआस पड़ए लगै छै तहिना सोने काकाकेँ सेहो भेलनि। बजला-
बौआ, जखनि तोरा नीक जकाँ बुझैक मन छह, तखनि ऐठाम[1] बैसह। खरिआरि कऽ कहै छिअ।
अपनो मनमे रहए जे आएल छेलौं देव बाबाक जिज्ञासा करए बुझलौं किछु ने, तखनि अगर किछु नीक आकि अधला रस्‍तो-पेरा भेटि जाइए तँ ओहो शुभे भेल। दोसर ईहो भेल जे भने दुइए गोरे छीहो। तेहल्ला रहने ने बेसी हो-हल्ला होइए मुदा दू गोटेमे से तँ नै हएत। जँ कोनो तीत-मीठ बात बजाइओ जाएत तँ अदहा-फूसि, अदहा सत्-क जगह तँ भेबे कएल। माने ई जे कोनो बात सोने काका बाजथि जे तेहल्ला-गवाहीक अभावमे सतो फूसि भऽ सकैए तँ फूसिओ सत्। तहिना ने अपनो बाजब हएत। हुनको गवाहीक अभावमे सतो फूसि आ फूसिओ सत् हेबे करतनि। नीक जगह पाबि बजलौं-
काका, एक तँ अहाँ दुनू गोरे[2] एक जाति एक दियादीक छी, हम तेसर भेलौं, केना आन परिवारक कोनो अधला बात बाजब। नीक बजैक अधिकार तँ अछि, मुदा...।  
हमर बात सुनिते जेना सोने कक्काक मन सुगबुगेलनि। जहिना कोनो पनचैतीमे कियो एहनो पंच तँ होइते छथि जे मुदै-मुदालहक बात बिनु सुननौं-बुझनौं उड़न्तीए सुनलपर अपन फैसला सुना दइ छथिन, तहिना सोने काका बजला-
बौआ, कहने छेलिअ जे सबटा केलहे बिसाइ छन्‍हि, से कोनो फूसि कहलियऽ।
सोने कक्काक झाँपल-तोपल बात, फेर नै बुझलौं। मुदा सोने कक्काक मुँहक रूखिसँ बूझि पड़ल जे देवालयसँ घूमल पुजेगरी जकाँ अखनि किछु बाँटि सकै छथि। कहलियनि-
काका, कनी मुड़ी सुढ़िया कऽ बान्हियो ने?”
सोने कक्काक छातीमे जेना हमर बात घोंसिया गेलनि। घोंसिआइते बजला-
बौआ, तोहूँ कोनो आन थोड़े छह, समाजेक ने बेटा-भातीज सेहो छिअ। जेहने अपन बेटा-भातिज तेहने समाजक। बतीस दाँतक तरमे पड़ल छी तँए जी-जाँित रखने छी। मुड़ी सुढ़िया कऽ बजैमे उकड़ू होइए। मुदा ऐठाम दुइए गोरे छह तँए जी खोलि बाजब।
सोने कक्काक कोयला-पानिक बनल स्‍टीम देखि बूझि पड़ल जे ऐसँ नीक समए बोलीक गतिक नै होइ छै। पुछलियनि-
की उकड़ू कहलिऐ?”
सुनिते बकर-बकर मुँह दिस ताकए लगला। जेना अपन तपाएल अग्‍नि परीछा दिअ चाहै छथि तहिना। एक क्षण गुम रहि बजला-
बौआ, अपन जे पत्नी छथि आे देवेबाबूक साइर छथिन। दुनूमे सढ़ुआरे अछि। मुदा की कहबह...।
की कहबह सुनि आरो जिज्ञासा भेल। पुछलियनि-
एना किए काका ठेहुन गाड़ि ठाढ़ होइ छी। सोझ-साझ भऽ कऽ ने ठाढ़ हेबै।
जहिना केकरो चानिपर उरकुसीक फूल झाड़ि देने सौंसे देह एकेबेर चुलचुलए लगै छै तहिना हमर बात सुनि सोने कक्काक मनमे भेलनि। बजला-
कहैले पत्नी छथि मुदा जेठ बहिनक चालि-ढालि पकड़ि ओहो टीके पकड़ि रखए चाहै छथि, से केना हएत? भाय! जखनि अहाँक जूट हम नै पकड़ै छी तखनि अहाँ किए हमर टीक पकड़ब। अपन-अपन आड़ि-पाटिमे अहूँ रहू हमहूँ रहब। जँ से नै तँ अपन टीकक रकछा अपने नै करब तँ आनक आशा थोड़बे करब।
मुहसँ अपने निकलि गेल-
अजीब बात।
अजीब सुनिते अजनवी जकाँ दोहरबैत बजला-
बौआ, घरेवालीक दोख की देब। बेटो सएह भऽ गेल।
बेटाक नाओं सुनिते जेना आरो मन उड़ि गेल। जइ परिवारमे मिलानक जगह गरमिलाने बेसी रहत तँ ओइ परिवारक नीक केते हएत? झमाएल पजेबाक देवाल केहेन हएत? कहलियनि-
की बेटा?”
की बेटा सुनिते सोने काका झमान भऽ खसला। चोट खाएल साँपक मुँहकेँ जेना फण जोड़ैक शक्ति समाप्‍त भऽ जाइ छै तहिना सोने काकाकेँ सेहो भेलनि। मुँह दाबि बजला-
बौआ, एकेटा बेटा अछि देखिते छहक जे अपन जथा-पथा केहेन अछि। माइयक किरदानीसँ ओहो घर छोड़ि किरानीक नोकरी करैए।
सोने कक्काक बातक पाछू वौआ गेल छेलौं। जे बुझैक छल से छुटले छल। बातकेँ मोड़ैत बजलौं-
काका, देवबाबा अपन साढ़ूए छथि। तखनि तँ गलती भेल जे अहाँकेँ काका कहै आ हुनका बाबा कहै छिअनि?”
बाबासँ काकाकेँ लगिच पाबि खिल-खिला बजला-
नै बौआ, हमरा तूँ कक्के कहह, हुनकर भागी हम नै हेबह।
भागी सुनि किछु सुराक बूझि पड़ल पुछलियनि-
अपन साढ़ूओक भागी नै हेबै?”
दुनू हाथक पाँचो ओंगरी छिटका तरहत्थी नचबैत बजला-
ओहेन-ओहेन लोकक भागी बनने अपनो भाग नै ने बिगाड़ि लेब। सरकारक जे नोकरी अछि ओकर दरमाहा तँ ओइ स्‍तरकेँ मानि ने बनल छै, तखनि एते झकझकौआ केतएसँ आएल! जे अपनो जीवन-मरण नै बूझि सकल ओ अनकर की बूझत?”
पुछलियनि-
से की?”
नजरिपर नै चढ़ै छह। हमरासँ दुइए बरख जेठ छथि, देखैमे ने बूझि पड़ै छथुन जे मोटाएल छथि मुदा से नै सड़ि कऽ फूलल छथि। दुनियाँमे जे बर-बेमारी अछि सबटा देहमे छन्‍हि!”
सोने कक्काक वाचा शक्‍ति चढ़ि गेल छेलनि। केतौसँ केतौ मुड़ी-नांगरि पकड़ि नचबए लगला। पुछलियनि-
काका, देवबाबा सुचितलालक की चर्च करै छथिन?”
सुचितलाल सुनिते सोने कक्काक आँखिक रंग सिनुरए लगलनि। मनमे जेना उफान उठए लगलनि। चेहराक रंग चढ़ए लगलनि। बजला-
बौआ, अखनि एतबे कहबह जे केते दिनसँ सुचितलाल जहलमे अछि, ओकरेसँ जा कऽ भेँट कऽ आबह, पछाति तीनू मुँह-मिलानी दुनू गोरे कऽ लेब। किए तोरा मनमे हेतह जे सोने कक्काक चालि-चलनि नीक नै छन्‍हि आ अपनो मनमे किए खुट-खुटी रहत जे फल्लाँकेँ टिटकारी दऽ टिटकारि देलिऐ।
सोने कक्काक दबल शक्‍तिक सरिता पाबि मन दहलि गेल। दहलाइत मन बाजल-
काका, अखनि तक अहाँकेँ नै चिन्‍है छेलौं, मुदा आइ बूझि पड़ैए जे अहाँक पेटमे गामक इतिहास अछि।  
गामक इतिहास सुनि डराएल हरिणक बच्‍चा जकाँ कानो ठाढ़ केलनि आ चारूकात चकोनो भेला। बूझि पड़ल जे पेटमे कोनो गहींरगर बात अँकुड़ैले जोर मारि रहल छन्‍हि, मुदा डराएल मन ईहो कहै छन्‍हि जे अपने बात बजने लोक फाँसीओपर चढ़ि जाइए, गोबरखत्तोमे खसैए आ इन्‍द्रासनो हिलबैए। मुदा से भेल नै, जहिना कोनो घावकेँ मुँह फोरि बहौल जाइ छै आ कोनो अपन मुँह अपने बना फुटि कऽ निकलि जाइए तहिना सोने कक्काक घाव अपने फुटि निकललनि। बजला-
बौआ, तूँ अखनि बाल-बोध छह, नै चिन्‍हलह तइले दोखी हम थोड़बे कहबह। मुदा सभ तँ बाले-बोध नै अछि, ई बात सत् जे अपन-अपन रस्‍ता चलने सबहक बुधिओ-विचारोमे कनी दूरी बनिए जाइए। तेकर तँ एकेटा उपए अछि, जेते गोटेक बीचक काज रहल तइमे विचारि करक चाही।
सोने कक्काक बात नीक जकाँ नै बूझि सकलौं। पुछलियनि-
काका, तेना ने बाजि देलिऐ जे नै बूझि पेलौं?”
हमर बात सुनिते जेना मन कोदारि भाँजए लगलनि। चारि छह पारिते मन नचलनि। नचिते बजला-
बौआ, तोहूँ बुझै छह जे दुनू गोरे एके उमेरियाक संग एक दियादीक सेहो छी। हुनका नोकरी करैक छेलनि तँए बेसी पढ़लनि हमरा अपने बाप-दादाक घराड़ी पुजैक छल तँए हम एके विहित पढ़लौं। एकर माने ई नै ने भेल जे अहाँ बड़ होशियार भऽ गेलौं आ हम ओहिना रहि गेलौं।
काकाकेँ भँसियाइत देखि बिच्‍चेमे रोकि देलियनि-
काका, बड़ बेर भऽ गेल आब छुट्टी दिअ।
जहिना कोनो रचनाकार समयाभावमे हाँइ-हाँइ रचैत अपन रचनाक विसरजन करै छथि तहिना अपन हूसैत विचारकेँ सम्‍हारि बजला-
बौआ, जखनि एते नगीचक सम्‍बन्‍ध अछि, एके परिवारमे जेठ-छोट बहिनसँ बिआह भेल। ओना दू-तीन साल उमेरोमे बेसी छथि। तखनि किए हमरा बेटाकेँ तीनू[3] गोटे मिलि बिना पुछने नोकरी लगा अपन नोकर बना लेलनि!”
सोने कक्काक बातक कोनो अरथे ने लगल जे किए सभकेँ एके सिरहौने सुतबै छथिन। पुछलियनि-
काका, नीक जकाँ नै बुझलौं?”
जहिना कियो अपन बेथा-कथा छाती खोलि दुनू बाँहिसँ जकड़ि छातीमे साटि बजैए तहिना सोने काका साटि बजला-
बौआ, जँ ओ देवानन्‍द बड़ हिताइसी छला तँ अपना ढंगक शिक्षा दिआ अपना स्‍तरक बना दुनियाँमे ठाढ़ करितथि तखनि भेल पुरुखपना, जँ ओते शक्‍ति नै छेलनि आ नोकरीकेँ नीक बूझि उपकार करए चाहलनि तँ एकबेर पुछैओसँ गेलौं।
सोने कक्काक मनक मनकी-फनकी नीक जकाँ नै बूझि पेलौं। कहलियनि-
काका, दूबिक फूल जहिना अपने उड़ि अकासमे चलि जाइए तहिना ने तेना कऽ बजै छी जे बुझबे ने करै छी। अबेरो भेल जाइए।
अबेर सुनि अपन विचारक बिछानिकेँ हाँइ-हाँइ समेटि, बजला-
बौआ, बातक बात छी तँए तोरो मनमे किछु बात हेतह। आब तोहीं पुछह। मुदा दूटा बात हमर बाँकी अछि ओ सुनिए कऽ जइहऽ।
सोने काकाकेँ सीमावद्ध होइत देखि पुछलियनि-
काका, अपन समांग सभ बजै छथिन जे जहिना तुलसीबाबा रामरूपकेँ राम बना ठाढ़ कऽ देलखिन तहिना हिनको[4] अपन किछु रचित रचना छन्‍हि जे प्रकाशित नै भऽ सकलनि, वएह मंत्र जप कऽ रहल छथि।
हमर बात सुनिते सोने कक्काक मन चकभौड़ लेलकनि। चिलहोरि जकाँ टाँहि देलनि-
बौआ, अहिना लोक अपन पापकेँ दाबि-दाबि रखैए। बड़ भारी बात अछि बौआ!”
अदहा बात बाजि सोने काका आरो जिज्ञासा बढ़ा देलनि। बड़ भारी बात अछि’, की भारी बात अछि? पुछलियनि-
तेना ने बातकेँ महजाल जकाँ ओझरा दइ छिऐ जे नीक जकाँ बुझिए ने पबै छी। कनी ओझरी सोझरा कऽ बजियौ।
एकटक भऽ सोने काका आँखिपर आँखि गाड़लनि। गाड़ले-गाड़ल मन खिल उठलनि। खिलिते खिलखिलेला-
बौआ, जिला न्‍यायालयमे नोकरी करै छला। सुचितलालक बाबाक संग देवानन्‍दक बाबाकेँ कोनो बाते झगड़ा भेल, तइसँ दुश्‍मनी ठाढ़ भऽ गेल। सुचितलालक परिवार मुर्ख, दोसर पीढ़ी अबैत-अबैत बिसरि गेल। मुदा देवानन्‍दक परिवार ओकरा मन रखलक...।
जहिना कोनो कटल रस्‍ता देखि राही आगू-पाछू तजबीज करए लगैए तहिना सोने काका सेहो चुप भऽ तजबीज करए लगला। मुदा मन जेना धिक्कारी दिअ लगलनि तहिना मुँहक सुरखी भेल जाइत रहनि। बिच्‍चेमे पूछि देलियनि-
काका, लोक कहै छै जे धोती जखनि पहिरै जोकर होइ छै तखनि फाटिए जाइ छै, तहिना सुनैबला बात दाबिए लइ छिऐ।
बजला-
बौआ, सुचितलाल नाँहक जेलमे अछि। नहरक पाइनिक झगड़ा गाममे भेल। पनरह गोटेपर केस भऽ गेल ओही केसक सुनबाइ देवानन्‍दकेँ हाथ लगलनि। बाबाक कनाड़ि असुलि लेलनि। तेना कऽ हािन कलम चलौलनि जे वेचारा जहलमे अछि। ओकरे परिवारक कनैत मनमा जी खीच डिरियबै छन्‍हि!”  
जहिना काज करैत-करैत देह-हाथ दुखा जाइ छै तहिना सोने कक्काक बात सुनि मन दुखा गेल। आगूक किछु नीके ने लगए, कहलियनि-
काका, दोसर दिन निचेनसँ आबि आरो सुनब। अखनि छुट्टी दिअ।
जेना ठोरेपर रहनि तहिना बजला-
केकरो कियो बान्‍हि कऽ राखत तँ रहतै, कियो अपना विचारसँ केतौ रहैए। जा-जाह हमरो बड़ समए लगि गेल।¦२२१६¦
  १० अक्‍टुबर २०१४


[1] गाछक नीचाँ
[2] देवाेनन्‍द आ सोनेओं काका
[3] देवानन्‍द, देवानन्‍दक पत्नी आ सोनेलालक पत्नी
[4] देवानन्‍दकेँ

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