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Saturday, October 18, 2014

गरदनि‍ कट्टा बेटा


गरदनि‍ कट्टा बेटा






मक गाछीसँ घूमि‍‍ आबि‍ लाल भौजी ओछाइनपर पड़ल बेटाकेँ कहलखि‍न-
गरदनि‍ कट्टा कहीं कऽ, सबेर उठि‍ गाछी-कलम जेता से नै तँ दुखताह जकाँ ओछाइनपर पड़ल छथि‍!
माइक बात सुनि‍ ललबबुआक तँ नीन टूटि‍‍ गेल, मुदा मन भकुआएले रहै। भकुआएले मोने बाजल-
कथी ‘गरदनि‍ कटलि‍औ’ जे भोरे-भोर बजै छँह?”
ओना ललबबुआ गाढ़ नीनमे सूतल जहि‍ना कि‍यो माया वि‍हीन आत्‍मा-परमात्‍मासँ साक्षात्कार करैत मगन होइए तहि‍ना छल। लाल भौजीकेँ अन्‍दाज भेलनि‍ जे जेठ मासक पूरबाक लहकीमे दि‍न-दुनि‍याँ बि‍सरि‍ ‘पड़ल’ अछि‍। मुदा से नै, ललबबुआ ‘पड़ल’ नै छल गाढ़ नीनमे ‘सूतल’ छल। जे माइक कर्कश अवाज सुनि‍ टुटल।
लाल भौजीक तुरुछल मन आरो बेटाक बात सुनि‍ मुरुछि‍ गेल! मुरुछैक कारण भेल जे गाछीक जे आम खसल छल से आन बीछि‍नि‍हार सभ बीछि‍ लेलक। गोटि‍-पङ्गरा गुलाबखासमे तोड़ि‍ओ नेने छल। ओना अपना मनमे ईहो उठैत रहनि‍ जे जेना भोरगरे नीन टुटल तेना जँ गाछीए गेल रहि‍तौं तँ एना नै होइत, मुदा मनक जवाब मनेमे उठलनि‍, सुति‍ उठला पछाति‍ लोक अपन आ अङ्गना-घरक काज सम्‍हारि‍ गाछी-बि‍रछी,  बाध-बोन दि‍स जाएत आकि‍ पहि‍ने घरक देवता छोड़ि‍ बाहरे पूजए जाएत। बेटाक जवाब सुनि‍ लाल भौजी बजली-
हमर की‍ गरदनि‍ कटलेँ, कटै छेँ अपनो आ दुनि‍योँकेँ!” 

अंतिम पेज........................................................



लाल भौजी बजली-
बच्‍चा, जइ घरक काज जेत्ते आगू हएत ओ ओत्ते आगू मुहेँ ससरत आ जइ घरक काज जेते पछुआएत ओ ओते पाछू मुहेँ जाइ छै। ऐ वि‍चारकेँ नै बुझबह तँ जि‍नगीक पार लगतह। दुनि‍योँक आ मनुखोक जड़ि‍ एतै अछि‍। जँ नीक करबह तँ अपनो, परि‍वारो, समाजो आ दुनि‍योँक नीक हएत, जँ नै करबह आ अधला करबह तँ घरसँ बाहर धरि‍ सबहक गरदनि‍ कटत।¦५७५¦
१० मई २०१४

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