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Saturday, October 18, 2014

फेर पुछबनि


फेर पुछबनि





राकेश आ मुकेश गामेक हाइ स्‍कूलक वर्ग दसममे पढ़ैत। एक तँ एकउमेरि‍या तैपर दुनूक मात्रि‍क एके गाम तँए सम्‍बन्‍ध आरो बेसी गाढ़। गाढ़ सम्‍बन्‍ध तँ वएह ने भेल जे झगड़ा-मिलान सङ्गे एक रहैए। तेतबे किए तहूसँ बेसी होइए। तीत-मीठ दुनू सङ्गे रहैए। तँए कि सना बटा कऽ डलना तरकारी जे मसल्‍ला सभकेँ एकबट कऽ दइ छै, से भऽ जाइ छै? नै! से नै होइ छै। होइ छै ई जे समए आ जगह पाबि‍ वएह तीत होइए आ समए-जगह पाबि वएह मीठ होइए।
दस घण्‍टी पढ़ाइक बीच नअम घण्‍टीक पढ़ाइ शुरू भेल। शिक्षक आबि‍ जमीनक सर्वेक विषय पढ़बए लगला। जलियाएल वि‍षय तँए आन शि‍क्षक जकाँ धुर-झाड़ तँ नै बाजि‍ पबथि मुदा मन पाड़ि-पाड़ि बजने वि‍द्यार्थी सभकेँ अकछाइत बूझि पड़लनि। मन मोड़ैले बजला-
जोरू जमीन जोरकेँ नै तँ केकरो औरकेँ।
लयवद्ध पाँति‍ तँए वि‍द्यार्थी एकाग्र भेल। मुदा अपन वि‍षयक नाङ्गरि पकड़ि पुन: शिक्षक सर्वेक वि‍षय पकड़ि लेलनि।
छुट्टीक घण्‍टी बजल। सभ विदा भेल। वि‍द्यालयक अाङ्गनक झुण्‍ड पतराइते राकेश-मुकेश एकठाम भेल। झुण्‍डक हल्‍लो कमल। गप-सप्‍प करैक मौसम पाबि राकेश बाजल-
जोरू जमीन जोरकेँ, नै तँ केकरो औरकेँ।” 


अंतिम पेज........................




मुकेशक चाइलेन्‍जकेँ राकेश केना नै स्‍वीकारैत। बाजल-
घरवाली आ खेत-पथार तागतिक छिऐ जे हर्ही-सुर्ही नै सम्‍हारि‍ पौत।
गपक क्रमक नाङ्गरि पकड़ि मुकेश बाजल-
जहि‍ना सुरेबगरहा लेल सुरेबगरही घरवाली होइ छै तहि‍ना नेङ्गरा लेल नेङ्गरीओ होइ छै, तखनि‍ केना बुझलेँ?”
दुनूक बीच प्रश्नपर रग्‍गड़ नै होइत, नीक-बेजाएक सीमापर हरदा-हरदी कहि‍ मानि‍ लैत। राकेश मानैत बाजल-
तूँ की बुझहै छीही, बाज।
राकेशक बात सुनि‍ मुकेशक मनमे खुशी उपकल। खुशीओ केना नै उपकैत, केतौ बि‍नु पुछनौं ढाकीक-ढाकी बात छि‍ड़ियाइत रहैए आ केतौ सुनिनिहार स्‍वयं जि‍ज्ञासु होइए। बाजल-
खेत-पथारक सङ्ग जेकर जोर भेल अछि‍ ओकरे ने ओ भेल आकि‍ दोसराक?”
ओना अखनि धरि राकेश-मुकेश अपना मतभेदकेँ अपने वि‍वेके फरिछा लइ छल मुदा से नै भेल। रक्का-टोकी शुरू भेल, रङ्ग-बिरङ्गक शब्‍दवाण चलए लगलै। वि‍द्यालयसँ घर लग दुनू पहुँच गेल मुदा फरि‍छौट नै भेल। अन्‍तमे दुनू सहमत भेल जे काल्हि‍ ओही मास्‍टर साहैबकेँ फेर पुछबनि।¦३४६¦
३१ जनवरी २०१४

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