फेर
पुछबनि
राकेश आ मुकेश गामेक
हाइ स्कूलक वर्ग दसममे पढ़ैत। एक तँ एकउमेरिया तैपर दुनूक मात्रिक एके गाम तँए
सम्बन्ध आरो बेसी गाढ़। गाढ़ सम्बन्ध तँ वएह ने भेल जे झगड़ा-मिलान सङ्गे एक
रहैए। तेतबे किए तहूसँ बेसी होइए। तीत-मीठ दुनू सङ्गे रहैए। तँए कि सना बटा कऽ
डलना तरकारी जे मसल्ला सभकेँ एकबट कऽ दइ छै, से भऽ जाइ छै? नै! से नै
होइ छै। होइ छै ई जे समए आ जगह पाबि वएह तीत होइए आ समए-जगह पाबि वएह मीठ होइए।
दस
घण्टी पढ़ाइक बीच नअम घण्टीक पढ़ाइ शुरू भेल। शिक्षक आबि जमीनक सर्वेक विषय
पढ़बए लगला। जलियाएल विषय तँए आन शिक्षक जकाँ धुर-झाड़ तँ नै बाजि पबथि मुदा मन
पाड़ि-पाड़ि बजने विद्यार्थी सभकेँ अकछाइत बूझि पड़लनि। मन मोड़ैले बजला-
“जोरू जमीन जोरकेँ नै तँ केकरो औरकेँ।”
लयवद्ध
पाँति तँए विद्यार्थी एकाग्र भेल। मुदा अपन विषयक नाङ्गरि पकड़ि पुन: शिक्षक
सर्वेक विषय पकड़ि लेलनि।
छुट्टीक
घण्टी बजल। सभ विदा भेल। विद्यालयक अाङ्गनक झुण्ड पतराइते राकेश-मुकेश एकठाम
भेल। झुण्डक हल्लो कमल। गप-सप्प करैक मौसम पाबि राकेश बाजल-
“जोरू जमीन जोरकेँ, नै तँ केकरो औरकेँ।” अंतिम पेज........................
मुकेशक
चाइलेन्जकेँ राकेश केना नै स्वीकारैत। बाजल-
“घरवाली आ खेत-पथार तागतिक छिऐ जे हर्ही-सुर्ही नै सम्हारि पौत।”
गपक
क्रमक नाङ्गरि पकड़ि मुकेश बाजल-
“जहिना सुरेबगरहा लेल सुरेबगरही घरवाली होइ छै तहिना नेङ्गरा लेल नेङ्गरीओ
होइ छै, तखनि केना बुझलेँ?”
दुनूक
बीच प्रश्नपर रग्गड़ नै होइत, नीक-बेजाएक सीमापर हरदा-हरदी कहि मानि लैत। राकेश
मानैत बाजल-
“तूँ की बुझहै छीही, बाज।”
राकेशक
बात सुनि मुकेशक मनमे खुशी उपकल। खुशीओ केना नै उपकैत, केतौ बिनु पुछनौं
ढाकीक-ढाकी बात छिड़ियाइत रहैए आ केतौ सुनिनिहार स्वयं जिज्ञासु होइए। बाजल-
“खेत-पथारक सङ्ग जेकर जोर भेल अछि ओकरे ने ओ भेल आकि दोसराक?”
ओना
अखनि धरि राकेश-मुकेश अपना मतभेदकेँ अपने विवेके फरिछा लइ छल मुदा से नै भेल।
रक्का-टोकी शुरू भेल, रङ्ग-बिरङ्गक शब्दवाण चलए लगलै। विद्यालयसँ घर लग दुनू
पहुँच गेल मुदा फरिछौट नै भेल। अन्तमे दुनू सहमत भेल जे काल्हि ओही मास्टर
साहैबकेँ फेर पुछबनि।¦३४६¦
३१ जनवरी २०१४
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