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Friday, October 17, 2014

हथि‍याएल खुरपी


हथि‍याएल खुरपी





भि‍नसुरका चाह पीला पछाति‍ काजक हि‍साब जोड़ए लगलौं आकि‍ पत्नी आबि‍ कहलनि‍-
लफ साग भँसि‍ गेल, अहाँकेँ कोनो धनि‍ए नै।
अखनि‍ धरि‍क मन सोलहन्नी शुद्ध छल, मुदा काजेक धनि‍ नै अछि‍ तखनि‍ भरि‍ दि‍न करै की छी। मनमे कुवाथ भेल। सागक खेती जानि‍ए कऽ भँसेने छेलौं। जानि‍ कऽ ई जे मरदा-मरदी खेत पथारमे काज करि‍ कऽ सीखि‍ लइत, मुदा स्‍त्रीगण तँ अँगना-घरमे रहैवाली, जँ कनि‍योँ उपारजनक लूरि‍ नै हेतनि‍ तखनि‍ चुल्‍हि‍पर छन-मन केना हएत। सागक खेती आकि‍ लत्ती-फत्तीक बीजमे ओहेन शक्‍ति‍ छै जे माटि‍क ऊपरो आ तरोमे अँकुरि‍ जाइए। तँए ओतबो लूरि‍ भेने तँ मनमे बि‍सवास जगबे करतनि‍ किने जे अपन कएल खाइ छी। बरदास नै भेल। ललकि‍ गेलौं-
बड़ जुति‍हारि‍न छी? जँ आइ नै टमाटरमे कमाएब तँ भँसि‍ये जाएत। तेहेन-तेहेन अमेरि‍कन घास आबि‍ गेल छै जे अढ़ाइ दि‍ना बोाखार जकाँ ओकरो भऽ गेल छै।” 



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अन्‍तिम-
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पत्नीक गद-गदाएल मन रहबे करनि‍, जहि‍ना ढोलकक गदपर हाथ घुसकुनि‍याँ कटैत सूर मि‍लबैत तहि‍ना बजली-
दि‍न दि‍न छि‍ऐ, राति‍ राइत छि‍ऐ। मुदा आँखि‍क बीच दुनू अबैत-जाइत जहि‍ना चलैत अछि‍ तहि‍ना ने जि‍नगीओ भेल।
पत्नीक वि‍चार तँ सुनि‍ लेलौं, मुदा मन हरमाज करए लगल। हरमाज ई जे भरि‍ दि‍नक जे मुँह-फुलौबलि‍ रहल तेकर जड़ि‍ कारण की‍ छल?¦६५०¦

११ मार्च २०१४

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