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Monday, September 15, 2014

दि‍व्‍या (क. नन्‍द वि‍लास राय)

नन्‍द वि‍लास राय ::

दि‍व्‍या


निर्मली टीशनक पाछू, रेलबे परि‍सरेमे गुरु-चेलाक खेल भऽ रहल छल। गुरू लूंगी आ झोलंगा जकाँ कुरता पहि‍रि‍ हाथमे डमरू नेने छला। लगभग दस बर्खक बालक चेला छल। ओकर समुच्‍चा देह कपड़ासँ झाँपल छल। चारू दि‍ससँ लोक ठाढ़ भऽ खेलक मजा लेबए लेल तैयार छल। गुरु डमरू बजा चेलासँ पुछलखि‍न-
बोल चेला की हाल-चाल छौ?”
चेला जवाब देलक-
गुरुजी, हमर हाल-चाल एकदम टनाटन अछि‍। अहाँ अपन कहू।
गुरु कहलखि‍न-
हमहूँ ठीक छी। अच्‍छा ई बता अखनि‍ तों छेँ केतए।
चेला बाजल-
अखनि‍ हम बरही गाममे छी।
गुरु-
ई बरही गाम केतए छै?”
चेला-
बरही गाम नेपाल अधि‍राज्‍यक सप्‍तरी जि‍लामे पड़ै छै। राजवि‍राजसँ लगधग तीन कि‍लोमीटर दछि‍न। बरही गामसँ उत्तर पछि‍मी कोसी नहर‍ छै।
गुरु-
अच्‍छा ई बता ओतए की कऽ रहल छेँ।
चेला-
वि‍देह इन्‍टरनेट पत्रि‍कामे खबरि‍ जुटाबक समदि‍याक काज करए लगलौं हेन। नेपालक दौरापर छी।
गुरु-
तँ बरही गाममे एहेन काेन घटना भेलै जे तों बरही गाममे छेँ।
चेला-
घटना अथवा दुघर्टना तँ नै भेलै मुदा एकटा नव चीज जरूर भेलै।
गुरु-
काेन नव चीज भेलै हेन, कनी फरि‍छा कऽ बाज।
चेला-
बरही गाम सप्‍तरी जि‍लाक सदरमुकाम राजवि‍राज बजारक लग रहि‍तो मुख्‍य रूपसँ कि‍सानक गाम छी। पश्चि‍मी कोसी नहरि‍सँ दछि‍न छै। सि‍चाईक भरपुर साधन रहैक कारण गरमा धान आ अगहनी धानक उपज बड़ नीक होइ छै।
गुरु-
कोन खेती गि‍रहस्‍तीक गप शुरू कऽ देलँह। नव बात जे भेलै से बाज ने।
चेला-
हम सभ गप फरि‍छा कऽ कहै छी। अहाँ धैर्यसँ सुनू। बरही गाममे रूपलाल नामक एकटा कि‍सान छथि‍। हुनका एकटा बेटा आ एकटा बेटी छन्‍हि‍। बेटाक नाओं वि‍वेक अछि‍। आे वि‍राटनगर अस्‍पतालमे पेथोलौजि‍ष्‍ट छथि‍। अपन प्राइवेट जाँच-घर सेहो रखने छथि‍। रूपलालक बेटी दि‍व्‍या बी.ए. पास कऽ राजेवि‍राजमे बी.एड. कऽ रहली हेन।
गुरु-
कोन आहे-माहेक कथा पसारि‍ देलँह से नै जानि‍। हम कहै छि‍यौ नव बात बता।
चेला-
एतएसँ शुरू होइत अछि‍ नव बात। अखनि‍ हम नव बात जे भेल तेकर पृष्‍ठभूमि‍मे चलि‍ रहल छी। अहाँ कनी धैर्यसँ सुनि‍यौ।
गुरु-
अच्‍छा बता। आब हम बीचमे नै टोकबौ।
चेला-
हँ तँ हम कहैत रही जे रूपलालक बेटी जेकर नाओं दि‍व्‍या  छी, राजेवि‍राजमे बी.एड. कऽ रहली हेन। साल भरि‍ पहि‍ने दि‍व्‍याक बि‍आहक बात-चीज ठील्‍ला गामक रामअवतारक बेटाक संग चलल। रामअवतारक बेटा अनि‍ल भोपालमे इंजीनि‍यरिंग कऽ पढ़ाइ कऽ रहल छला। दस लाख नेपाली टकामे बात पक्का भऽ गेल छल। दुनू दि‍ससँ छेका-छुकी सेहो भऽ गेलै। छह महि‍ना पहि‍ने अनि‍ल इंजीनि‍यरिंगक डि‍ग्री लऽ भोपालसँ नेपाल आएल। दूर संचार वि‍भागमे भैकेन्‍सी भेल। ओहो आवेदन देलक।
अनि‍लक पि‍ताजी रामअवतार तेज आदमी अछि‍। ओ दौग-धूप केलक। चारि‍ लाख टका घूस मांगलकै। रामअवतार दौगल बरही आएल। रूपलालकेँ कहलखि‍न- अहाँ जमाएकेँ नौकरी भऽ रहल अछि‍। चारि‍ लाख टका घूस लगै छै। अहाँ दस लाख टका जे बि‍आहमे देब तइमे सँ चारि‍ लाख टका अखनि‍ दऽ दि‍अ। बाँकी छह लाख टका बि‍आहसँ दस दि‍न पहि‍ने दऽ देब। जमाएकेँ नोकरी भऽ जाएत तँ बेटी रानी भऽ कऽ रहत। रूपलाल वि‍वेककेँ फोनपर सभ बात बतौलखि‍न। वि‍वेक कहलकनि‍, ठीक छै, अहाँ रामअवतार बाबूकेँ वि‍राटनगर भेज दि‍यौ। हम चारि‍ लाख टका दऽ देबनि‍। रामअवतार वि‍राटनगर जा वि‍वेकसँ चालि‍ लाख टका आनि‍ बेटाकेँ संग कऽ काठमाडू गेला। घूस दऽ बेटाकेँ नोकरी लगौलनि‍।
गुरु बजला-
अच्‍छा, ई बता दि‍व्‍याक बि‍आह रामअवतारक बेटा अनि‍लसँ भऽ गेल ने।
चेला-
असलका गप तँ आब सुनाबै छी। कनी धि‍यानसँ सुनि‍यौ ने। आइसँ दस दि‍न पहि‍ने रूपलाल अपना भातीजकेँ संग कऽ ठील्‍ला पहुँचला। रामअवतारकेँ बि‍आहक दि‍न पक्का करैले कहलखि‍न। ओ तीनटा दि‍नक प्रस्‍ताव रामअवतार लग रखलनि‍। आ कहलखि‍न अही तीनू दि‍नमे जे दि‍न अहाँकेँ सहुलि‍यत हुअए से दि‍न तँइ करि‍ लि‍अ। ढौआ जे बाँकी अछि‍ ओ नगद लेब आकि‍ चेक, सेहो कहि‍ दि‍अ।
रामअवतार कहलखि‍न-
यौ रूपलाल बाबू, हमरा बेटाक भठि‍यन गामबला पनरह लाख टका नगद, एकटा पल्‍शर मोटर साइकि‍ल आ पाँच भरि‍ सुन दऽ रहल अछि‍। अहाँक बेटीसँ हमरा बेटाक बि‍आहक गप पक्का अछि‍। अहाँ अनि‍लक नोकरी लेल चािर टका देने छी। तँए अहाँसँ मात्र पनरह लाख टकेटा लेब। गाड़ी आ सुन छोड़ि‍ देब। जँ अहाँ पनरह लाख टकापर बि‍आह करैले तैयार छी, तँ फागुन दस गतेक दि‍न पक्का भेल। हमरा नगद टका दी अथवा चेक दी, हम सभमे तैयार छी। अहांकेँ जइमे सुवि‍धा हुअए से करब।
तैपर रूपलाल बजला-
अहाँसँ तँ हमरा दसे लाखपर बात भेल अछि‍‍। आब अहाँ मन नै बढ़ाउ। हम बँकि‍यौता छह लाख टकाक चेक भातीज मार्फत भेज देब।
रूपलालक गप सुनि‍ रामअवतार तैशमे बजला-
जँ हमरा बेटाक संग अहाँकेँ अपना बेटीक बि‍आह करबाक अछि‍ तँ मोल-मोलाइ छोड़ू आ पनरह लाख टकामे बात पक्का करि‍ तीन दि‍नक भीतर बाँकी एबारह लाख टका पहुँचाउ। नै तँ कुटुमैती नै हएत। अहाँ चारि‍ लाख टका हम अगि‍ला महि‍नामे आपस कऽ देब।
आब तँ रूपलाल झमा गेला। आँखि‍क आगू अन्‍हार पसरि‍ गेलनि‍। कि‍छु फुड़बे ने करनि‍।
गुरु फेर टोकलखि‍न-
अँइ रौ चेला, ई रामअवतार तँ बड़ नीच आदमी बुझाइत अछि‍।
चेला बाजल-
आगू सुनि‍यौ ने।
गुरु-
अच्‍छा कह, आगू की भेलै।
चेला कहए लगल-
कनीकालक बाद रूपलाल अपनाकेँ सम्‍हारैत बजला, ठीक छै हम गाम जाइ छी। बेटासँ वि‍चार करब। ओ जे कहत सएह करब।
रूपलाल आपस गाम आबि‍ गेला। मुँहक उदासी देखि‍ हुनकर पत्नी बूझि‍ गेली जे शाइत दि‍न पक्का नै भेल। कोनो झंझट लगि‍ गेल। दि‍व्‍या  राजवि‍राजसँ पढ़ि‍ कऽ आपस नै आएल छेली। रूपलाल सभ बात पत्नीकेँ बतौलखि‍न। पत्नी कहलकनि‍, वि‍वेकसँ फोनपर गप करू। तैपर रूपलाल बजला, अखनि‍ तँ ओ क्‍लि‍नि‍कपर हएत राति‍मे नि‍चेनसँ गप करब। रूपलाल दुनू परानी राति‍मे खेबो ने केलनि‍।
राति‍मे रूपलाल मोबाइलपर वि‍वेकसँ गप करए लगला। गप करि‍ते-करि‍ते ओ कानए लगला। जखनि‍ ओ बेटासँ मोबाइलपर गप करै छला, तखनि‍ दि‍व्‍या अपना कोठरीमे पढ़ै छेली। कोनो गपक पता नै छेलनि‍। जखनि‍ पि‍ताजीकेँ कानब सुनली तखि‍न कान पाथि‍ कऽ सभ गप सुनए लगली। सभ गपक थाह लगि गेलनि‍ जे पि‍ताजी फोनपर कि‍ए कनै छथि‍। दि‍व्‍याकेँ भरि‍ राति‍ नीन नै भेलै। ओ भरि‍ राति‍ सोचि‍ते रहली। रामअवतार केते नीच आ कमीना अछि‍। चारि‍ लाख टका हमरे बाबूजी सँ लऽ घूस दऽ बेटाकेँ नोकरी दि‍यौलक। आइ बेटा नौकरी करए लगलनि‍ तँ मन बढ़ि‍ गेलनि‍। पाँच लाख टका बेसी कऽ हमरा बाबूजी सँ मंगै छथि‍न। एहेन नीच आ लोभी मनुखक बेटासँ हम अपन बि‍आह कि‍न्नौं ने करब, चाहे जि‍नगी भरि‍ कुमारि‍ए कि‍ए ने रहि‍ जाइ।
गुरु फेर बजला-
वाह! वाह! दि‍व्‍या बड़ नीक बात सोचलक।
चेला बाजल-
आगू सुनि‍यौ ने।
गुरु-
अच्‍छा सुना।
चेला कहए लगल-
वि‍वेक फोनपर पि‍ताजीकेँ कहलकनि‍, बाबू अहाँ जुनि‍ कानू। हमरा एकेटा बहि‍न अछि‍ दि‍व्‍या। अहाँक पएरक कृपासँ हम चारि‍-पाँच हजार टका डेली कमाइ छी। की करबै रामअवतार बाबूकेँ लोभ भऽ गेलनि‍। हम पाँच लाख टका आरो देबै। अहाँ शुक्र दि‍न रामअवतार बाबूकेँ बरही बजा लि‍यौ। हम नगद एगारह लाख गि‍न देबै। चारि‍ लाख तँ देनैहि‍ए छि‍यनि‍। शुक्र दि‍न साँझ धरि‍ हमहूँ गाम पहुँच जाएब।
शुक्र दि‍न साँझमे रामअवतार बरही पहुँचला। सोचने रहथि‍ जे नगद ढौआ देता तँ राजेवि‍राज नेपाल बैंक लि‍मि‍टेडमे ड्राफ्ट बनबा लेब। नगद ढौआ लऽ जाइमे खतरा अछि‍। साँझमे वि‍वेको गाम पहुँचला।
खेनाइमे रामअवतारकेँ खूब सुआगत भेलनि‍। तरूआ, भुजुआक अलाबे खस्‍सीक मासु सेहो रहए। मुदा दि‍व्‍या एकदम गुमशुम।
शनि‍ दि‍न दस बजे रामअवतारकेँ पराठा आ अल्‍लुक भुजि‍या, हलुआ, सेबैक खीर आ रसगुल्‍लाक जलखै खुआएल गेल। जलखै करा एकटा कोठरीमे वि‍वेक, रामअवतार आ रूपलाल बैसला। वि‍वेक पुछलकनि‍-
ढौआ केना लऽ जेबै?”
तैपर रामअवतार कहलखि‍न-
ढौआ दऽ दि‍अ आ अहाँ चलू राजवि‍राज, नेपाल बैंकमे ड्राफ बनबा देब।
तैपर वि‍वेक बजला-
आइ तँ शनि‍ छी। छुट्टीक दि‍न छी। बैंक बन्न हएत।
रामअवतार बजला-
अच्‍छा अहाँ टका गि‍न कऽ दि‍अ। हम समधीकेँ संग कऽ ठील्‍ला चल जाएब। दू गोटे रहब तँ डर कम रहत।
वि‍वेक आलमारी खोलि‍ रूपैआ नि‍कालि‍ गि‍न कऽ रामअवतारकेँ देबए लगला आकि‍ हहाएल-फुहाएल दि‍व्‍या पहुँच कऽ बजली-
रूकू भैया, रूकू। रूपैआ राखू। हम एहेन लोभी आ कमीना आदमीक बेटासँ अपन बि‍आह कि‍न्नौं नै करब। चाहे जि‍नगी भरि‍ कुमारि‍ कि‍एक ने रहि‍ जाइ।
दि‍व्‍याक गप सुनि‍, सभ कि‍यो अवाक् भऽ गेल। वि‍वेक आ रूपलाल समझाबैक परि‍यास केलनि‍ तँ दि‍व्‍या अपना हाथमे एकटा शीशी देखबैत कहलकनि‍-
ऐ शीशीमे जहर छी। जँ अहाँ सभ जि‍द्द करब तँ हम जहर पीब लेब।
रामअवतार बाबू दि‍स घूमि‍ बजली-
सुनू रामअवतार बाबू, अहाँ हमरा बाबूजीसँ चारि‍ लाख टका लऽ गेल छी। जाबे धरि‍ चारि‍ लाख टका आपस नै करब अहाँ बरहीसँ आपस ठील्‍ला नै जा सकै छी।
गुरु डमरू बजबैत नाचए लगला। थोड़े काल नाचि‍ बजला-
बड़ नीक बड़ सुन्नर। दि‍व्‍याकेँ बहुत-बहुत धैनवाद।¦¦¦

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