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Thursday, September 4, 2014

बेटीक बिआह (क. ओम प्रकाश झा)

नारी केन्‍द्रि‍त सगर राति‍ दीप जरय'क 83म गोष्‍ठी, सखुआ-भपटि‍याही ओम प्रकाश झाक लि‍खि‍त/पठि‍त लघु कथा- 


बेटीक बिआह


आँगनमे बिआहक गीत चालू छल। दरबज्जापर पाहुनक मेला लागल छल। आइ देवकांतक बेटीक बिआह छै। देवकांत एकटा किसान छथि। हुनकर दू गोट सन्‍तानमे सुलेखा जेठ छन्हि आ शरत छोट। ओ बेटा-बेटीमे कहियो कोनो अन्‍तर नै बूझलखिन्ह आ दुनूकेँ समान रूपेँ पढ़ाइ-लिखाइ करबौलखिन्ह। एकर नतीजा सेहो नीक रहल जे सुलेखा नीक संस्थानसँ एम.बी.ए.क डिग्री लऽ कऽ एकटा प्राइभेट कंपनीमे नीक नौकरी प्राप्त केलन्हि। बेटा शरत सेहो इंजीनि‍यरिंगक पढ़ाइ कऽ रहल अछि। बेटीक शि‍क्षा-दीक्षा पूर्ण भेलापर आ नौकरी भेटलापर देवकांत ओकर बिआहक तैयारी शुरू केलथि। सर-कुटुम आ मित्र-मण्‍डलीसँ एकटा नीक बर ताकबाक अनुरोध केलथि। पढ़ल-लिखल नौकरिहारा बेटी लेल सुयोग्य वरक खोजमे जहाँ-तहाँ अपने सेहो गेला। मुदा सभठाम बेवस्थाक नाओंपर मुद्राक माँग एते भयावह छल जे ओ मुँह लटकौने गाम आबि जाइ छला। सुलेखाकेँ जखनि‍ ऐ तरहक फि‍रि‍शानीक पता चलल तँ ओ अपन माएकेँ कहलक-
“बाबूकेँ कहुन जे हम अपन सहकर्मी हेमंतसँ बिआह करऽ चाहै छी।”
हेमंत सुलेखा संगे काज करै छथि‍ आ ओकर नीक संगी सेहो छथि‍। मुदा ऐ प्रस्तावपर देवकांत तैयार नै भऽ तमसाइत बाजला-
“हेमंत अपन जातिक बर नै छै आ अनजातिमे अपन बेटी बियाहि कऽ हम समाजसँ भतबड़ी नै कराएब।”
देवकांतक ई रूप देखि सुलेखा सहमि गेली आ सकदम भऽ पिताक गप मानबाक सहमति दऽ देली। पुरजोर ताक-हेरक पछाति‍ देवकांतकेँ एकटा वर सुलेखा लेल भेटलन्हि। बरक पिता नंदलाल अपन आई.आई.टी. इंजीनियर, उच्च पदपर सेवारत बेटा शैलेश लेल सुलेखाक प्रस्तावपर मंजूरी देलन्हि। मुदा बिआह रातिक खर्चक माँग सेहो केलन्हि। देवकांत पुछलखिन्ह-
“बिआह रातिक खर्च केतेक हेतै।”
नंदलाल कहलखि‍न्‍ह-
“ई अहाँ अपनेसँ विचार कऽ लिअ आ हमर सबहक हैसियत आ लड़काक योग्यता देखैत खर्च बिआहसँ पूर्व हमरा लग पठा दिअ।”
देवकांत अपन जमा-पूजी तोड़ि पाँच लाख टाका अपन पुत्र- शरत-क मार्फत बिआहसँ दू दिन पूर्व पठा देलखिन्ह। पाँचे लाख टका देखि नंदलालक पारा चढ़ि गेलन्‍हि‍ आ ओ शरतक फजहति करैत बजला-
“हम पच्चीस लाख आ बीस लाखक कथा छोड़ि अहाँ ओइठाम सम्‍बन्‍ध कऽ रहल छी से की ऐ भीखमङ्गीए लेल!”
शरत बाजला-
“ई अहाँ हमर बाबूसँ कहियनु, हम की कऽ सकै छी।”
खैर बिआहक दिन आएल आ नंदलाल वर-बरियाती साजि देवकांतक दरबज्जापर एला। बरियाती दुआरि लगि गेल छल आ नश्‍ता-पानि इत्र-फुलेलसँ हुनकर सबहक सुआगत होमए लगल छल। नंदलाल अपन होइबला समधि- देवकांत-केँ बजा कऽ कहलखिन्ह-
“बिआह रातिक समुच्‍चा बेवस्था अहाँ नै पठेलौं, मुदा तखनो हम आएल छी किएक तँ हम सभ भलामानुस छी। अहाँ आर पाँच लाख टका अबिलम दिअ तँ वर वेदीपर जाएत।”  
देवकांत अकाससँ खसला आ नंदलालक निहोरा करैत बाजला-
“अखनि‍ पाँच लाख केतएसँ आनब। बच्चा सबहक पढ़ाइ-लिखइमे सभ जमा पूजी पहिनहि खरच भऽ गेल अछि। अहाँ अखनि‍ बिआह हुअ दियौ। हम गछै छी जे शनैः शनैः हम अहाँक पाँच लाख टका आर दऽ देब।”  
मुदा नंदलालपर ऐ नि‍होराक कोनो प्रभाव नै पड़लन्‍हि‍ आ ओ जिद्द ठानि बैसि गेला जे पाइ एखने चाही। कनी कालमे ई बात आँगनधरि पहुँच गेल जे जावत नंदलालकेँ पाँच लाख टका आर नै भेटतै तावत बिआह नै हेतै। सुलेखा अपन बापक दुर्दशा आ समाजक बेवहारसँ बेथित भऽ गेल छेली। हुनकर माए हुनका लग बैसि कऽ कानए लगली जे आब की हेतै। ओ बाजली-
“हुनका कहैत रहियनि‍ जे बेटी-बिआह लेल पाइ जमा करू मुदा ओ हमर नै सुनलनि‍ आ सबटा पाइ बच्चा सबहक पढ़ाइ-लिखाइपर खर्च कऽ लेलनि‍। ई बेइज्जती लऽ कऽ केना जीअब हम, सभटा हुनके किरदानीसँ भऽ रहल अछि।”
बापक दुर्दशा आ बेइज्जती सुनि सुलेखाक आँखिमे पानि भरि आएल। कनीकाल तँ ओ माइयक विलाप सुनैत रहलि‍। फेर ओ ठाढ़ भऽ गेल आ अपन नोर पोछि दलान दिस बढ़ि गेलि‍। दलानपर पाहुन-परक आ दोस्त-महि‍मक बीचमे ओकर सहकर्मी हेमंत सेहो बैसल छल। ओ सोझहे हेमंत लग गेलि‍ आ ओकर हाथ पकड़ि पुछलक जे अहाँ अखनि‍ हमरासँ बिआह कऽ सकै छी। हेमंत कहलक किएक नै, ई तँ हमर सौभाग्य हएत जे अहाँ सन पढ़ल लिखल सुन्नरि‍ कनिञाँसँ हमर बिआह हएत। सुलेखा हेमंतकेँ लेने वेदीपर पहुँचली आ पंडितजी केँ कहलखिन्ह जे हमर आ हेमंतक बिआह संपन्न कराैल जाए।
ई समाद दलानपर पहुँचल आ सौंसे अनघोल भऽ गेल। नंदलाल आ देवकांत आँगन दिस दौड़ला। देवकांत बेटीकेँ कहलखिन्ह-
“ई की कऽ रहल छी अहाँ? हमर पगड़ी किएक खसा रहल छी!”
सुलेखा बाजली-
एकटा नीक आ सुलझल वरसँ हमर बिआह भेलासँ अहाँक पगड़ी खसि रहल अछि बाबूजी? आ ई दहेजक राक्षस जे अहाँकेँ नोचि रहल अछि ऐसँ अहाँक सम्मान बढ़ि रहल अछि की? अहाँ पहिने पाँच लाख टका दऽ चुकल छिऐ आ ऊपरसँ आर पाँच लाख? किएक बाबू किएक? हम स्त्री छी, की ई एकर प्रायश्चि‍तमे ई टाका अहाँ दऽ रहल छिऐ? कर्जा लऽ कऽ जँ अहाँ ई टका ऐ दहेज-दानवकेँ दैयौ देबै तँ की ई हमर सुखमय जीवनक गारंटी देता? अहाँ ओइ कर्जाक भारसँ दाबल कुहरैत रहब तँ की हम सुखी रहब? नै बाबू नै हम आब किन्नौं ऐ दहेज-दानवक बेटासँ बिआह नै करब आ हम हेमंतसँ बिआह करब। 
हेमंत आगू बढ़ि देवकांतक पएर छूबि बजला-
बाबूजी, अहाँ हमरापर बि‍सवास करू। सुलेखा ठीक कहै छथि। अहाँ अपन बेटीकेँ पढ़ा लिखा सुयोग्य बनेलौं। तेकर बादो बेटी हेबाक प्रायश्चि‍तमे अपन देह बेचबाक तैयारी किएक केने छी? अहाँ स्वीकृति दियौ तँ हम सभ बिआह करी। 
देवकांतक मोनमे समाजक डर छेलनि‍ जे परजातिमे बिआहसँ भतबड़ी भऽ जाइत। मुदा दोसर दिस नंदलाल जकाँ राक्षसक डर सेहो छेलन्हि। कनीकाल विचार केला उपरान्त बजला-
हाँ सुलेखा, अहाँ ठीक कहै छी। विआहक उपरान्त ई दहेज-दानव अहाँसँ की बेवहार करत, एकर कोनो गारंटी नै। आ समाज की कोनो हमरा मदति केलक अहाँकेँ पढ़ेबा-लिखेबामे आकि‍ बेवस्थाक टाका गानैमे। हम समाजसँ किए डरू? हम अहाँकेँ सुयोग्य बनेलौं आ आगू अहाँक जिनगी जाइसँ सुखमय रहए, तेहने काज हेबाक चाही। जाउ हम अहाँकेँ असि‍रवाद दइ छी। अहाँ हेमंत संगे बिआह करू आ नंदलालजी बरियाती लऽ कऽ अपन गाम जाथु। 
बाजा-गाजा फेरसँ बाजए लगल। बेदीपर हेमंत आ सुलेखा बैसल आ मंत्रोच्चार शुरू भऽ गेल।

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