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Monday, September 8, 2014

विजय-१ आ विजय-२ (क. योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’)

मधुबनी जि‍लाक भपटि‍याहीमे गत ३० अगस्‍तकेँ भेल ८३म सगर राति‍क कथा गोष्‍ठीमे पठि‍त कथा
कथाकार-योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’ 

विजय-१

झुमकी हृष्ट-पुष्ट शरीर बाली युवती छलि। लूरि‍गर आ होशियार, खूब काज करैत। छोट परिवार, घरवाला कुसमाक अतिरिक्त मात्र दूटा बेटा, आठ आ छओ बरखक। दुनू बेकती कमाइत छल आ गुजर बसर करै छल। मुदा ओकरा एकेटा चिन्ता रहैक सभ दिन साँझकेँ घरवाला ताड़ी पीबैक आ घर आबि झुमकीकें अनेरे डेंगा दैत। झुमकी गम खा लइ छलि। एहिना ओ देखने छलि माए आ पितिआइनकेँ सेहो बाबू ओ काकासँ मारि खाति आ सहि लैति। ओकरो सिखाएले गेल छेलै जे घरवाला अपन पौरुष देखबै लेल मौगीकेँ कने मने मारबे पीटबे करतै, से सहि लेबाक चाही।
झुमकी जतेक सहैत जाइ छल, कुसमाक डेंगाएब ओतबे बढ़ि जाइ। एक दिन तँ सभ सीमा पार कऽ देलक। ओइ राति झुमकीक देहपर कुसमा अपन हरवाही पेना तोड़िए कए छोड़लक। कारण एतबे जे झुमकी टोकि देलकै एतेक ताड़ी किएक पीबैत अछि ओ। सौंसे पीठपर चेन्ह भऽ गेलै आ केतेक ठामसँ खून सेहो निकलि गेलै। चोट तँ झुमकी अंगेजि लेने छल मुदा पीठ फुटि गेलासँ छनछनाए सेहो लगलै आ दर्द बहुत बेसी बढ़ि गेलै
झुमकीकेँ लगलै आब बर्दास्तसँ बहार भऽ गेल ई। ओ राति भरि सोचैत रहल एना किएक होइ छै। की ओकर शारीरिक ताकति कुसमासँ कम छैक? खोराक एके रंग छैक। काजो ओ बेसिए करैत अछि। कुसमा हरबाहि करैत अछि तँ ओहो जाँत ढेकीसँ लऽ कए जाड़नि तक फाड़िए लैत अछि। धनरोपनी रहौ कि धनकटनी, कोनो पुरुखसँ ओ कम नै रहैत अछि। धानक बोझ रहौक की नारक बोझ, जतेकटा बोझ कुसमा उठबैत अछि ततबेटा तँ ओहो उठबैत अछि। ओकरा जनानी बुझि कोनो छोट बोझ तँ बान्हल नै जाइ छै। खेत पथारसँ घर आँगन तक के कोनो काजमे एहेन ओकरा नै बुझेलै जे ओकर मात्र जनानी भेलासँ किछु न्यून भेल होइक। ओतबे नै, पुरुखकेँ जँ बच्चा बिअए पड़ितै तँ सभ आत्महत्ये कऽ लितए।
एक बेर अपना बाँहिकेँ पहलमान जकाँ उठा कए देखलक, ओकरा विश्वास भऽ गेलै जे यदि कुसमाक संग ओकरा कुश्ती लड़ए पड़ै तँ ओकरा पछारि सकत। तखनि‍ फेर एना किएक? किएक पुस्त दर पुस्त मौगी सभ अपन घरवालासँ देह पिटबैत रहल अछि आ अपन बेटी सभकेँ बर्दास्त करए लेल सिखबैत रहल अछि? की पुरुख सभ पेना बजारिए कए अपन पुरुषार्थ देखबैत रहतै? ओकरा एकटा विचार एलै दिमागमे
अगिला दिन कुसमाकेँ नबका पेना बनबए पड़लै हरबाही करै लेल। दिन ओहिना बीतल। साँझखन कुसमा अपन कोटाक ताड़ी पीब कए आँगन आएल आ गेल पेना ताकए जेना ई एकटा रुटीन होइक। पेना ओकरा नै भेटलै। ताबत पाछूसँ झुमकी आबि ओही पेनासँ कुसमाकेँ तरतरबै लागल। कुसमा अवाक। जाबत ओ सम्हरए सम्हरए ताबत झुमकी ओकरा खसा कए ओकरा देहपर चढ़ि गेल छल आ एकदम दुर्गा भवानीबला रौद्र रूपमे कुसमाकेँ कहलक जे आइ रातिसँ नित्य प्रति ओकरा झुमकी ओहिना डेंगेतै जहिना एतेक दिन ओ झुमकीकेँ डेंगबैत रहलै अछि। ई कहि ओकरा देहपरसँ ओ उठि गेल, पेना कात कए रखलक आ गेल अपन भानस भातक काजमे
कुसमाक दिमाग चक्कर काटए लगलै। किछु बुझिएमे नै अबैक जे ई परिवर्तन कोना भेलै। बात एहेन छेलै जे केकरो कहियो नै सकै छल। अपन हारल आ बहुक मारल कियो नै बजैत अछि। ओकरा मोनो नै छैक जे कहिया मारि खेने छल। धि‍या-पुतामे एक दू चाट माए की बाबू मारने हेथिन्ह सएह टा। जहियासँ ज्ञान भेलै आ मालिक ओतए महींसक चरबाह बनल तहियासँ अखनि‍ तक, जखनि‍ ओ चरबाहसँ हरबाह भऽ गेल, ओकरा कहियो केकरो कथो सुनबाक अवसर नै भेटल छेलै। अपना तुरियाक छौंड़ा सभकेँ देखने छैक चरबाहीमे मालिक सभसँ मारि खाइत आ हरबाहीमे फज्जति सुनैत मुदा ओकर काजसँ ओकर मालिक सभ दिन खुशीए नै रहलखिन्ह, ओकर प्रशंसो करै छेलखिन्ह।
अजुका चोट ओकरा सोचबापर बाध्य कऽ देलकै जे ओ झुमकीकेँ किएक मारै छल। झुमकीसँ ओकरा कोनो तेहन शिकाएत नहियेँ छेलै। ओ कोनो अलूरि अबूझ मौगी नहियेँ छल, अपितु होशियार मौगी छल। मुदा पसीखानामे सबहक मुहसँ सुनै ओ जे सभ अपना मौगीकेँ पीटै छै से ओकरो अनेरे लत लागि गेलै। आ झुमकीओ कहाँ कहियो प्रतिवाद केलकै? चोट खाइओ कए ओ अपन काजमे लागल रहै छल से आइ तक ओकरा बुझबेमे नै एलै जे ओ कोनो गलती काज कऽ रहल अछि।
ओकरा आश्चर्य लगलै झुमकीक ताकतिपर। कोना ओकरा बजारि कए छातीपर चढ़ि गेलै। ओकरा पहिल बेर भान भेलै जे सत्ते यदि ओकरा झुमकीसँ कुश्ती लड़ए पड़ैक तँ ओ हारियो सकैत अछि। अही गुनधुनमेखनि झुमकी खाए लेल कहलकै तँ ओ मना नै कऽ सकलै। एकदम आज्ञाकारी बच्चा जकाँ खा लेलक आ गोठुल्लामे जा कए पड़ि रहल।
पहिल बेर भरि पोख ताड़ी पीबिओ कए ओकर निन्न निपत्ता भऽ गेल छेलै। सोचिते सोचिते ओ पड़ल छल कि देखलक झुमकी आबि कए ओकर पीठपर तेल मालिस कऽ रहल छैक। कुसमा साहस कऽ कए झुमकीकेँ पुछलक-
“सत्ते तों कालि फेर हमरा मारबें।”
झुमकीकेँ अपना पुरुखपर दया तँ एलै आ अपना केलहापर कने लज्जित सेहो भेल मुदा अपन दुर्गतिकेँ ध्यान करैत  ओ फेर कठोर भऽ गेल। कुसमाकेँ ओ एतबे कहलक-
“दूटा शर्त करतै तखनि‍ हम किछु नै करबैक पहिल जे ताड़ी पीनाइ बन्द करतै आ दोसर हमरापर फेर कहियो हाथ नै उठेतै।”
कुसमाकेँ मारिक चोट मोन पड़लै। ओ झुमकीक दुनू शर्त मानि लेलक। झुमकी अपना विजयपर हर्षित होइत ओही गोठुल्लाक अन्हारमे कुसमासँ लिपटि गेल।
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विजय-२


प्रिया अपन परिवारक बहुत विरोध सहैत सोमेशसँ बियाह केलक। दुनू इंजीनियरिंग कौलेजमे सहपाठी छल। प्रियाक मम्मी पापाक कहब छेलन्हि जे सोमेश पढ़बा लिखबामे प्रियासँ सभ दिन कमजोर रहलै अछि आ आगुओक जीवनमे ओ ढीले ढाल रहत। मुदा प्रिया की कोनो चुनि कए आ रिजल्ट देखि कए प्रेम केने छल? प्रेम एना केतौ कएल गेलै अछि? प्रेम तँ भऽ जाइ छै, बस एतबे।
अन्तर देखेलै करीब दू सालक बाद जखनि दुनू पहिल प्लेसमेंट छोड़ि दोसर जॉब पकड़लक। प्रियाकेँ भेटलै पचीस लाख के पैकेज आ सोमेशकेँ बीस के। मुदा अन्तरसँ दुनूक बीच प्रेममे कहियो कोनो खटास नै एलै। अपितु अपना संगी साथी लोकनिक बीच ई जोड़ी आदर्शे मानल जाइत रहल।
तेकर किछु दिनक बाद सोमेश एक दिन प्रियाकेँ कहलकै जे हमरा सभकेँ आब बच्चाक प्लानिंग करबाक चाही आ ओइले प्रिया किछु दिनक लेल जॉबसँ ब्रेक लऽ लिअए। प्रियाकेँ पहिल बेर सोमेशक कोनो बात अनसोहाँत लगलकै। ओ बच्चा तँ चाहै छलि मुदा ऐ लेल ओकरे किएक जॉबसँ ब्रेक लेबए पड़तै? ओ सोमेशकेँ पुछलक-
“सोमेश, अहाँकेँ नोकरीक पैकेज अछि बीस लाखक, ठीक।”
सोमेश सपाट उत्तर देलक-
“ठीक।”
“आ हमर जॉबक पैकेज अछि पचीस लाखक, ठीक?”
फेर सोमेश ओहने उत्तर देलक-
“ठीक।”
फेर प्रिया ओकरा मोन पारि देलिऐ-
“यद्यपि हम दुनू गोटे अलग अलग कम्पनीमे काज करैत छी, अहाँक पोजीशनसँ हमर पोजीशन इंडस्ट्री हिसाबें सीनियर सेहो अछि आ वर्कलोड बेसी सेहो, ठीक।”
ऐपर ओ कने लजाइते कहलक-
“ठीक मुदा ऐ बातक की माने अखनि‍?”
प्रिया स्पष्ट ओकरा कहलकै-
तँ अहीं किएक ने जॉब छोड़ि दइ छिऐ?”
ऐ बातपर ओ हँसय लागल-
“लेकिन हमरा जॉब छोड़लासँ बच्चा केना आबि जेतै?”
प्रिया ओकरा शान्त भावें बुझा देलक-
“बच्चा हम जन्मा देब, ओइले हरेक कम्पनी मैटर्निटी लीव दइते छै। तेकर बाद ओकरा सम्हारैक काज अहाँ करू आ जॉब छोड़ि दियौ। अमेरिकामे आब बहुत पुरुष एना कऽ रहल छैक।”
सोमेश एकरा हॅंसीमे टारि देलक। मुदा प्रियाकेँ लगलै जे ओ कोनो अनुचित प्रस्ताव नै देलकै। समय बीतैत गेलै। अगिला साल सोमेशकेँ दश प्रतिशत इन्क्रीमेंट भेटलै, प्रियाक कम्पनीमे ओकरा बीस प्रतिशत भेटलै। सोमेशक पैकेज रहलै बाइस लाखक, प्रिया पहुँचि गेल तीसपर। तेकर छओ मासक भीतरे प्रिया फेर जॉब चेन्ज केलक जतए नबका पैकेज छल चालीस के। नवका पोजीसनमे ओ सीधे वी.पी.केँ रिपोर्ट करै छल। ओ फेर सोमेशकेँ पुछलक-
“की विचार केलौं? यदि परिवारमे बच्चा चाहैत छी तँ हमर प्रस्ताव मानि लिअ।” 
सोमेश किछु उत्तर नै देलकै, ओकर पुरुषबला अहं जागि जाइ छेलैअखनि‍ तक ओ पूरा बंगलोरमे एहेन नै सुनने छल जे बच्चा पोसैक लेल पतिए जॉबसँ ब्रेक लेलकै आ पत्नी काज करिते रहलै। अमेरिकन सभ सनकी होइत अछि, ओकर नकल करबाक कोन काज?
दिन बीतैत गेलै, प्रिया आ सोमेशक पोजीसन आ पैकेजमे अन्तर बढ़िते रहलै। बच्चाक लेल प्रिया अपना दिससँ कोनो हड़बड़ी नै देखा रहल छल। मुदा सोमेशकेँ ई जरूरी बुझाइत छेलै। ओ जखनि‍ प्रियाकेँ बातक कोनो हिन्ट दैत, ओ अपन प्रस्ताव दोहरा दैत। एक बेर तँ सोमेश सोचए लगल जे प्रिया जिद्दी अछि आ आब ओकरा संग बेसी दिन नै रहि सकत।
ई एहेन समस्या छेलै जकरा ओ कोनो कलीग अथवा पुरना संगी साथीक बीच सेहो डिस्कस नै कऽ सकै छल। प्रियासँ अलग भेने ओकरा की भेटतै? फेर नव तरीकासँ जीवन साथी चुनबा लेल प्रयास करू। आ की गारंटी जे ओहो लड़की बादमे कोनो दोसरे बखेरा ने ठाढ़ करए? प्रियाक संग ओ आठ नौ साल बिता लेलक अछि, एकटा अही जिद्दक अतिरिक्त प्रियासँ ओकरा कोनो शिकाएत नै छेलै। संगी साथीक बीच अपना दुनूक प्रशंसा आ ‘आइडियल कपुल’क उदाहरण आ प्रियाक तेज बढ़ैत कैरियर ग्राफ ओकरा सोचबाक लेल बाध्य केलकै।
ओ सोचए लगल पहिलुका कथन जे ‘हरेक सफल व्यक्तिक पाछू एकटा स्त्रीक हाथ रहै छै।’
की एकरा उनटाैल नै जा सकै छै? यदि ओ मददि करैक तँ प्रियाक सफलताक ओहने श्रेय ओकरो भेटि सकै छै। फेर जॉब तँ घर बैसल सेहो कएल जा सकै छै। बहुत रास कम्पनीमे लोककेँ एहेन विकल्प भेटि रहलै अछि। रहल बात बेबी सिटिंग के। से तँ जेहने ओ अनाड़ी अछि तेहने प्रिया सेहो अनाड़ी। आइ कालि बंगलोरमे काज केनिहार सभ कपुल अनाड़ी रहैत अछि। तखनि‍ फेर लोक किताब पढ़ि आ इंटरनेटसँ सीखि किछु दिन काज चलबैत अछि। बहुत कमे लोककेँ मम्मी पापा सम्हारि दइ छथिन्ह। ओ फ्लिपकार्टसँ बेबी सिटिंग सम्बन्धी एकटा अमेरिकन किताब आर्डर केलक आ प्रियासँ नुका कए पूरा पढ़ि गेल। ओकरामे किछु क्न्फिडेन्स जगलै जे ओ बच्चाकेँ सम्हारि सकत। आ फेर कोनो इमर्जेन्सी भेलापर बहुत रास्ता छैक, प्रिया अपना बच्चाकेँ छोड़ि थोड़बे देतै? ओ तँ  मात्र ई आश्वासन चाहैत अछि जे ओकरा जॉब छोड़ए नै पड़ैक।
अही सोच विचारमे आ जॉब फ्रोम होम तकबामे आर छओ मास लागि गेलै। तेकर बाद एक दिन सोमेश बेड रूम पहुँचैत घोषणा केलक-
“प्रिया, हम अहाँक प्रस्ताव मानि लेल अछि। ओतबे नै हम दुनूक लेल एकटा एग्रीमेंटो बना लेलौं अछि।”
आ ई कहैत ओ कागज प्रियाक सामने बढ़ा देलक जाहिमे ओ अपन सिग्नेचर पहिनहि कऽ देने छल। प्रियाकेँ तँ विश्वासे नै भेलैविजयक खुशीमे ओ कागजकेँ फाड़ि देलक, घरक सभटा कन्डोमक पैकेट उठा कए फेकि देलक आ सोमेशसँ लिपटि गेल।


योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’

लौफा 29 अगस्त 2014

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