Pages

Monday, September 8, 2014

गलती अपने भेल (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल 

लघु कथा- 
गलती अपने भेल



‘गलती अपने भेल’ ई बुझैमे आएल कखनि‍ तँ जखनि‍ असमसानमे रही तखनि‍। बारह बजे राति‍क पछाति‍ जखने एकादशी चढ़ल आकि‍ सुतलीए राति‍मे बाबाक प्राण छूटि‍ गेलनि‍, अनुमान भेल तखनि‍ जखनि‍ खोलि‍यापर जरैत डि‍बि‍या बुता गेल तखनि‍। जहि‍ना बारह बजे सुतली राति‍मे दि‍न-ति‍थि‍-मि‍ति‍ अपने बदलि‍ जाइए तहि‍ना भरि‍सक बबो अपने चोला-चोली बदलि‍ लेलनि‍। बीस दि‍नसँ बाबा बि‍मार तँए ओगरवाहि‍क भार अपने रहए। ओगरवाहि‍ ई जे कखनि‍ की खगता हेतनि‍, आकि‍ कड़े (देहक गर) बदलैक हेतनि‍। जखनि‍ जि‍नगी जीवै-मरैक बीच संघर्षरत् छन्‍हि‍हेँ तखनि‍ कोन गरे ऊँट बैसत कहबो कठि‍न अछि‍ से कि‍ कोनो हुनकेटा छन्‍हि‍ से तँ नहि‍येँ। सबहक सएह छै। चुल्हि‍पर चढ़ल ताबाक पानि‍ जकाँ छनाक भऽ सकै छथि‍ आ स्‍वस्‍थ होइत जीवि‍ओ सकै छथि‍। मुदा जहि‍ना बारह बजे राति‍ अपन दि‍नुका औरुदा पुड़बैत, तहि‍ना दोसर दीनक अन्‍हार घटैत इजोत बढ़ैत डुमल सुरूजकेँ पकड़ि‍ अकाससँ धरती देखैत अपन कर्मकेँ भूमि‍पर उतारि‍ डेग आगू बढ़बैए, मुदा से होइ कहाँ छै? बारह बजेक अन्‍हार आरो सघने (बेसी करि‍आइत) होइ छै। डि‍बि‍या बुताइते बि‍नु वि‍चार केने मन मानि‍ लेलक जे भरि‍सक बाबा मरि‍ गेला। मुखौटी केता दि‍न सुनने छेलौं जे डि‍बि‍या (प्रकाश) मृत्‍युक समए मि‍झा जाइ छै। कहि‍यो देखै-परखैक अवसरि‍ नै भेटल तँए कनी-मनी ऐपर (डि‍बि‍या मि‍झाइपर) बि‍सवासो होइए आ कनी-मनी नहि‍योँ होइए। मुदा ओइकाल से नै भेल, सोलहन्नी मन कबूल लेलक जे सत्ते एहेन होइ छै। देहक मालि‍क मने ने छी, जेहेन मन तेहने ने देहो हएत। अपाहि‍जो भऽ सकैए आ दि‍व्‍यो भऽ सकैए। ओछाइनपर सँ उठि‍ते वि‍चार झगड़ि‍ गेल। झगड़ि‍ ई गेल जे पहि‍ने डि‍बि‍या लेसि‍ इजोत बना लेब नीक हएत आकि‍ पहि‍ने बबेकेँ नाकक साँस देखब नीक हएत? दुनू प्रश्न ऊपरा-ऊपरी, डि‍बि‍या लेलसा पछाति‍ इजोतमे देखब बेसी नीक हएत। तँ दोसर वि‍चार उठैत जे एक बोलि‍या सि‍पाहीक ड्यूटीमे छी तँए बाबाकेँ देखब-सुनब पहि‍ल काज भेल। फेर मनमे भेल जे पहि‍ने डि‍बि‍ए लेसि‍ लेब नीक हएत, नीक ई हएत जे देखए-परखए पड़त कि‍ने, तँए एते करैले प्रकाशक प्रमुखता अछि‍ए। एक तँ अहुना डि‍बि‍याक इजोतपर कीड़ीओ फतींगी खसने मि‍झाइए। एकटा सलाइयक कटकी खरड़ि‍ डि‍बि‍या लेसैमे केते समैए लगत। सलाइ खरड़ि‍ डि‍बि‍याक मुँहपर भि‍रा देलि‍ऐ, बड़बो कएल मुदा लगले फकफका कऽ मि‍झहए लगल। जहि‍ना प्रेमलहीन ज्‍योति‍ फड़फड़ाइए तहि‍ना। देखि‍ते रही आकि‍ फकफकाइत-फकफकाइत मि‍झाइए गेल। मुहठी खोलि‍ बती घुसकेलौं अन्‍हारमे तेल (सि‍नेह) केना देखब? मुदा लगले मनमे उठल जे मुँह गरे डि‍बि‍याकेँ उनटौलासँ सेहो तेल परखले जाइए। सएह केलौं, सि‍नेह वि‍हि‍न प्रकाश हेबे केना करत? जँ हुऔ चाहत तँ टेमीए जरौत। मन अकछए लगल। मनक सभ वि‍चार छोड़ि‍ डि‍बि‍या-सलाइ रखि‍ बाबा लग जा नाकक साँसपर दहि‍ना हाथक दोसर आङुर दइते बूझि‍ पड़ल जे साँस बन्न भऽ गेल छन्‍हि‍। पहि‍ल खेप नाकपर आङुर देला पछाति‍, साँस बन्न भेनौं, अपनेपर शंखा भेल, तँए दोहरा कऽ फेर आङुर देलि‍यनि‍। मुदा साँस ठीके बन्न भऽ गेल रहनि‍। अनायास स्‍कूलक बात धक दऽ मनमे उठल। उठल जे ई नै बूझि‍ पेलौं जे मरैकाल नाकक दहि‍ना पूराक साँस चलै छेलनि‍ आकि‍ बामा पूराक। जि‍नगीक यएह ने शुभ-अशुभ भेल। अहीठाम ने नीक-बेजए तौलैक तराजू अछि‍। तराजूपर तौलेसँ पहि‍ने चानि‍मे चौन्‍ह उपकि‍ गेल जइसँ दुनि‍येँ चोन्‍हि‍या गेल। चोन्‍हि‍आइते सगतरि‍ अन्‍हार भऽ गेल। आब की करब?  मुँहक बोलकेँ मन धकेल-धकेल कहए लगल जे जोरसँ बाज, जोरसँ हल्‍ला कर। मुदा मुँह तत्-मत् मे पड़ि‍ गेल जे एती राति‍मे की हल्‍ला करब? की जोरसँ बाजब। अधरति‍यामे लोक चोर-डकैतक हल्‍ला करैए से तँ भेबे नै कएल अछि‍‍। बाबाक प्राण छुटलनि‍ अछि‍। जि‍नगीमे लोक केते नीक-नीक प्रण करैए, छुटै छै, केते छोड़बो करैए। ओना अगि‍लग्‍गीमे  सेहो लोक हल्‍ला करैए मुदा जेते हल्‍ला करैए, जहि‍ना ठनका खसैक समए बि‍जलोका लोककेँ सूचि‍त करै छै, तहि‍ना ने अगि‍लग्‍गीओमे आगि‍क इजोतो हल्‍ला करै छै। मुदा सेहो तँ नहि‍येँ भेल अछि‍, तखनि‍ हल्‍ला की करब। हँ एकटा आरो अछि‍ बाढ़ि‍ आ अन्‍हर, मुदा बि‍जलोके जकाँ ने अन्‍हरोक अगि‍ला सि‍हकी सूचि‍त करैए, सेहो नै भेल। बाढ़ि‍क पानि‍ तँ अपना गति‍ये धरतीपर चलैए जे लोक पहि‍ने बूझि‍ जाइए, तखनि हल्‍ला  करब नीक नै। ओना, एहेन हल्‍ला सदि‍खन होइए जे अमुक तारीककेँ प्रलय हएत, तँ कखनो ईहो हल्‍ला होइए जे उनटन हएत तँ कखनो एहनो हल्‍ला तँ होइते अछि‍ जे एते ग्रह एकठाम भेने दुरग्रह हेबे करत। खैर-जे-से। माएकेँ सोर पाड़ि‍ जगेलि‍यनि‍। बगलेक कोठरीमे माए सूतल। परि‍वारमे अनेको एहेन कारण अछि‍ जइमे परि‍वारक लोककेँ जगौल जाइए, तइसँ आन परि‍वारकेँ कि‍ए मतहानि‍ हेतनि‍। जि‍नका हेतनि‍ ति‍नको तँ होइते छन्‍हि‍। दैनंदि‍नक कि‍रि‍या-कलापमे हेबे करत। केबाड़ खोलि‍ माए बजली-
बौआ सि‍रि‍स, कि‍ए सोर पाड़लह?”
‍माइक अवाज सुनि‍ बुकौर लगि‍ गेल। बुकौर ई लगल जे हमर ने बाबा छला, मुदा माइयोक तँ अर्द्ध-पि‍ते छेलखि‍न, दुनि‍याँ छोड़ि‍ चलि‍ गेलखि‍न मुदा बुझबो ने केलनि‍। परि‍वार होउ आकि‍ समाज, सम्‍बन्‍धो तँ दोहरी (दू-रङ्गक) होइए बेक्‍ति‍गत आ पारि‍वारक-सामाजि‍क अपन दोख बँचबैत बजलौं-
माए, डि‍बि‍यामे तेल सठि‍ गेल, तँए मि‍झा गेल। दोसर डि‍बि‍या लेसि‍ कऽ नेने आ।
माइयो सएह केलनि‍। अपने कोठलीसँ डि‍बि‍या नेसने एली। खोलि‍यापर डि‍बि‍या रखि‍ बजली-
एकबेर बाबुओकेँ उठा (नीन तोड़ि‍) पूछि‍ लहुन जे पाइनि‍योँ-ताइनि‍योँक ति‍रखा लगल अछि‍।
माइक बात सुनि‍ मनमे बुमकल्‍ला जकाँ उठए लगल। अपन मन कबूल नेने छल जे बाबाक साँस छूटि‍ गेलनि‍, जखनि‍ कि‍ माए अखनो बूझि‍ रहली अछि‍ जे जीवि‍ते छथि‍। जखनि‍ जीवै छथि‍ तखनि‍ कि‍छु ने कि‍छुक खगता हेबे करतनि‍। जे सोभावि‍को अछि‍। जेना अन्नसँ पेट भरलो पछाति‍ पानि‍क खगता रहबे करैए। तहि‍ना अन्न-पानि‍ भरलो पछाति‍ नीनक खालि‍ए रहैए। जाबे खाली रहत ताबे खगता रहत। माइक बात सुनि‍ चुपे रहलौं। अपन दायि‍त्‍व बूझि‍, दायि‍त्‍व ई जे जखनि‍ हम छी तखनि‍ सि‍रि‍स तँ पछुआ बच्‍चा भेल। अपने माए बाबा लग जा बजली-
बाबू, बाबू।
बाबू जीवि‍त रहि‍तथि‍ तखनि‍ ने, बजैक कोन बात जे सगबगेबो ने केला। देहपर हाथ दए डोलौलनि‍, तैयो नै कि‍छु बूझि‍ पड़लनि‍। छातीक गति‍पर हाथ देलखि‍न, हाथ दइते छाती थीर बूझि‍ पड़लनि‍। थीर छाती अनुभव होइते मनमे जोरसँ धक्का लगलनि‍। धक्का लगि‍ते चि‍चि‍या उठली-
बौआ सि‍रि‍स, बाबू नै रहलखुन?”
जहि‍ना घाट परहक यात्री पछुआएल यात्रीकेँ देखि‍ते नाहपर चढ़ैए तहि‍ना माइयक अवाजमे अपनो मि‍लबैत बजलौं-
बाबाकेँ सासोँ बन्न भऽ गेल छन्‍हि‍।
कहि‍ चुप भऽ गेलौं, मुदा माए झौहरि‍ करैत झड़-झड़ा देलखि‍न। झड़-झड़ाइते एके-दुइए टोल-पड़ोसक लोक आबि‍-आबि‍, देख-देख कानए लगला। सभ कननि‍हारे तँए केकर कानबकेँ के सुनत। झमटगर झौहरि‍ भऽ गेल। मुदा झौहरि‍मे सँ, आगि‍ पड़ल जना लाबा होइते आगि‍सँ कूदि‍ धरतीपर खसैए, ओना आगि‍ओ खसि‍ते अछि‍, तहि‍ना झौहरि‍मे सँ लाबा नि‍कलए लगल-
टोलमे सभसँ बूढ़ बबे छला, जे समाजक बेटीकेँ बि‍नु दहेजक बि‍आह सभसँ बेसी करौलनि‍। अनका जे से हमरा बेटीक तँ वएह अपन खेत भरना लगा करौलनि‍। हम गाए नै खाएब, जहि‍ना जीवि‍तमे बाबाकेँ जनै छेलि‍यनि‍, तहि‍ना जाबे जीब ताबे जनैत रहबनि‍। जनबे नै करबनि‍ जँ धरमो राज लग गवाहीक काज पड़त तँ कहब।
तहि‍ना दोसर उठैत-
दि‍न-वेरागन आब के कहत।”
कि‍म्‍हरोसँ तँ अवाज अबैत-
“मतरनमी पि‍तरपछमे अरबा चाउर, राहड़ि‍क दालि‍ केतएसँ आनब। गामक लोक तेहेन अदत सभ भऽ गेल अछि‍ जे अनके ठकि‍-फुसि‍या कऽ खाएत मुदा अपन नै देत। केना कऽ पइत बँचत।
तँ कि‍म्‍हरोसँ अवाज उठैत-
छइहे केकरा जे बेर-बेगरता सम्‍हारत। जइसँ बेर-बेगरता समहारल जाइए से छइहे केकरा।
झौहरि‍क बीच मरदा-मरदीक वि‍चार भेल जे एते राति‍मे असमसान जाएब गरूगर अछि‍। गरूगर ई अछि‍ जे बि‍ना नव वस्‍त्रे आङ्गनसँ नि‍कालल केना जेतनि‍, तहि‍ना चारि‍ जेना लैयो जाइबला चाही। केना अखनि‍ बाँस काटल जाएत आ ओकर अचरी-चचरी बनत। नव बरतनो कुम्‍हरटोलीसँ आनए पड़त। दि‍नुका बात रहैत तँ सभ असानीसँ होइत, मुदा राति‍मे रस्‍ता चलब गरूगर अछि‍। अनेको रङ्गक वि‍षैला जीव-जन्‍तु  रस्‍ता पकड़ने रहैए। अन्‍तमे वि‍चार भेल जे घरक ओछाइनकेँ अङ्गनाक तुलसी चौरा लग दि‍अनु। सएह भेल। मुदा चौरा लग ओछाइन होइते नव लोक आ पुरान लोकक बीच कहाकही शुरू भेल। पुरान लोक सभ  जगरनाथ बाबकेँ अगुआ अपन वि‍चार रखैले कहलकनि‍। सभ दि‍नक बूझल-गमल जगरनाथ बाबकेँ, धाँइ दऽ बजला-
तुलसी चौरा दि‍स सि‍रहौना करैत उत्तर मुहेँ पाड़ि‍ दि‍अनु।
गाम-घरमे होइतो तहि‍ना छै। अखनि‍ धरि‍क चलि‍ अबैत बेवहारपर जगरनाथ बाबकेँ बि‍सवास छन्‍हि‍ए। तँए बोलीमे कि‍छु तीखपन छेलनि‍हेँ। मुदा जगरनाथ बाबाक वि‍चारकेँ नवतुरि‍या सभ मानैले तैयारे ने भेल। ओ सभ पशुपति‍ भायकेँ अगुअबैत अपन वि‍चार रखैले कहलक। बहरबैया पशुपति‍ भाय, दुनि‍याँक रङ्ग-रङ्गक हवा लगले रहनि‍, लगबो केना ने करि‍तनि‍। पनरह बर्खक नोकरीमे सभ तरहक पन्‍थाइकेँ देखि‍ नेने छला। सङ्गे अझुका वि‍ज्ञानो बुझै छला। बुझै ई छला जे दुनि‍याँ गोल छै। गोलमे पूब-पछि‍म उत्तर दछि‍न बेराएब कठि‍न अछि‍। अपन वि‍चार रखैत पशुपति‍ भाय बाजल-
कोन पुरना बेवहार धेने छी, बाबा जेम्‍हर मुहेँ सुगम गर धरथि‍ तेम्‍हर मुहेँ पाड़ि‍ दि‍अनु।
पशुपति‍ भायक बात सुनि‍ जगरनाथ बाबा पीनकि‍ गेला। पीनकबो केना ने करि‍तथि‍, बाप-बेटामे जुति‍-भाँति‍ले तँ झगड़ो होइए आ केसो-फौदारी होइए, ई तँ सहजे समाजक छी, गामक छी। बजला-
ऐठाम जे ठाढ़ हेबहक तँ चारूकात पूब-पछि‍म, उत्तर-दछि‍न देखबहक कि‍ने?”
पशुपति‍ओ भायकेँ जेना जीहेपर रहनि‍ धाँइ दऽ उत्तर देला-
ऐठामसँ उत्तर जे गाम अछि‍ ओहो तँ केकरो दछि‍ने अछि‍, तहि‍ना दोसरो अछि‍ए।
पशुपति‍ भाइक बात सुनि‍ जगरनाथ बाबा ठमकला, मुदा जनि‍जाति‍ सभ बि‍च्‍चेमे तेते घोल करए लगली जे पशुपति‍ भायकेँ धकेल देलकनि‍। मुदा धकलाइतो बजला-
आइ दुनि‍याँ परि‍वार जकाँ भऽ गेल, तँए उत्तर-दछि‍न, पूब-पछि‍म सभ मेटा गेला। अहुना जँ उत्तर मुहेँ वि‍दा हएब आ चलि‍ते रहब तँ उत्तरे-उत्तरे दछि‍न होइत एतै चलि‍ आएब, तहि‍ना दछि‍नो मुहेँ आ पूबो-पछि‍म मुहेँ चललासँ होइ छै।
बजैत-बजैत पशुपति‍ भाय बाजि‍ गेला मुदा जनानाक हल्‍लासँ पछाड़ खा गेला। अपन वि‍चारकेँ रोकि‍ वि‍चार केलनि‍ जे समाजक जे कर्तव्‍य-धर्म अछि‍ ओइमे सङ्ग पूरब नीक हएत। हो-हल्‍ला होइत भोर भऽ गेल। कि‍रि‍णक लाली पूब दि‍स झलकए लगल। भाय, जखनि‍ मृत्‍युक लहाश देखलौं तखनि‍ बि‍ना पार-घाट लगौने घरमुहोँ हएब उचि‍त नै। बेड-टी-तेड-टी कोन वस्‍तु भेल जे प्राण छूटि‍ जाएत। मुदा जनानो सभ तँ देखबे-छुबे केलनि‍, ओ तँ अङ्गने जेती।
काजो तँ काज छी। चाहे ओ जीवि‍त हुअए आकि‍ मृत्‍यु सि‍रपर सवार हेबे करत। जखने सि‍रपर सवार हएत तखने देहमे फनफनी आनि‍ फुनफुनाइए दइ छै। तहूमे जैठाम लोकक जमघट नै रहल तैठाम मुदा जैठाम से रहत तैठामक रूतबा तँ आरो दोसरे भऽ जाइ छै। जेते मुँह तेते जुति‍। बूढ़-पुरान सभ बैसि‍ वि‍चार केलनि‍ जे जगरनाथ बाबक देख-रेखमे अगि‍ला काज हएत बाँकी सभ काज केनि‍हार भेलौं। जे जे जइ जोकर छी से तेहने काजक भार उठाउ। काजक बाँट सुनि‍ते पशुपति‍ भाय बजला-
हमरा तेज सवारी अछि‍, बजारक काज करए हम जाएब।
पशुपति‍ भायकेँ काजमे अगुआइते धाँइ-धाँइ कि‍यो बाँस कटैक तँ कि‍यो साबेक जौड़ बँटैक तँ कि‍यो कुम्‍हार ऐठामक काज करैक भार उठा चारू दि‍स वि‍दा भेला। समाजो तँ समाज छी, जँ अनठौला तँ सुइयो-साँङ्गि‍पर उठाएब कठि‍न आ जँ सुढ़ि‍एला तँ केहेन-केहेन बहैत धारक मुँह बान्‍हि‍, पानि‍केँ रोकि‍ अपन खेत पनि‍या लइ छथि‍।
मोटर साइकि‍लपर चढ़ि‍ते पशुपति‍ भाइक मनमे बाबाक मृत्‍यु नाचि‍ उठलनि‍। नाचि‍ ई उठलनि‍ जे परि‍वारक बीच मृत्‍यु भेलासँ केते सुगमतासँ सभ काज भऽ रहल अछि‍। मुदा लगले मन मुड़ि‍ गेलनि‍। मुड़ि‍ ई गेलनि‍ जे अनेरे नव वस्‍त्रेक कोन काज छै, अखनो तँ ओहेन लोकक कमी नहि‍येँ अछि‍ जेकरा जीता-जि‍नगी नव वस्‍त्रसँ भेँट नै होइ छै। जखनि‍ बाबा मरि‍ गेला तखनि‍ जे अपन ओढ़न-पहि‍रन वस्‍त्र छन्‍हि‍ तहूसँ काज चलि‍ सकैए। तहूमे फेकलोहो वस्‍त्र जखनि‍ पहि‍नि‍हार अछि‍ तखनि‍ अनेरे जराएब केहेन हएत। गाम-घरक लोक कोनो बेजए कहै छै-
जीतामे गुहाँ-भाता आ मुइलामे दुधा-भाता।
समाज तँ समाजे छी तइसँ कि‍ कम सरकारो अछि‍। दस टुकड़ी भेल ट्रेनक लोहाक पहि‍यासँ कटल लहाशकेँ पोस्‍टमार्टममे लऽ जा बीस टुकड़ी कऽ आरो दुइर करि‍ते अछि‍।
जाबे बजारसँ कपड़ा आएल ताबे तीनटा बाँस काटि‍ सुतै जोग रंथी बनि‍ तैयार भऽ गेल छल। आगि‍-कोहाक ओरि‍यान सेहो भइए गेल छल। कपड़ा अबि‍ते बाबाकेँ ओढ़ा चचरीपर चढ़ा जौड़सँ बान्‍हि‍ देलकनि‍। चारि‍ गोटे कन्‍हापर उठा गाछी लऽ जेता। अखनि‍ धरि‍ कोनो काज सि‍रपर नै आएल छल तँए बाबे लग बैसि‍ देखै छेलौं। अपन भागीदारी चाहै छेलौं मुदा केतौ गर नै लागल। आगूक काज नजरि‍पर पड़ल। पड़ल ई जे चारि‍ गोटे कान्‍हपर उठा लऽ जेतनि‍ तइमे सङ्ग भऽ जाएब। नमगर-छरगर छीहे। जखनि‍ उठै बेर रंथीक भेल आकि‍‍ पढ़ुआ काका हमर बाँहि‍ पकड़ि‍ लेलनि‍। बाँहि‍ पकड़ैक कोनो अरथे ने लगल जे बाँहि‍ कि‍ए पकड़ि‍ लेलनि‍। अखनि‍ तँ गाछी जाइक बेर अछि‍। कहलि‍यनि‍-
काका, अखनि‍ तक कोनो काज बाबा नीवि‍ते नै केलौं हेन, तँए कान्‍हपर हमहूँ उठाएब।
जहि‍ना हम कहलि‍यनि‍ तहि‍ना ओ बुझबैत बजला-
बौआ, अखनि‍ तूँ दसमे कि‍लासमे पढ़ै छह, ब्रहमचर्य आश्रमक भेलह, अखनि‍ जे काज उपस्‍थि‍त अछि‍, ओ गि‍रहताश्रमक काज छी, तँए तोरा अधि‍कार नै बनै छह?”
कक्काक वि‍चार सुनि‍ गुम भऽ गेलौं। जानल-मानल काका छथि‍। कहुना भेलौं तँ अखनि‍ माध्‍यमि‍के स्‍कूलक वि‍द्यार्थी भेलौं। मुदा मनकेँ तेना बाबा पकड़ि‍ नेने रहथि‍ जे मनसँ हटबे ने करथि‍। बजलौं-
काका, अधि‍कार जेतए छै, तेतए छै, मुदा ऐठाम तँ बाबा-पोताक सम्‍बन्‍ध अछि‍।
अनका जकाँ काका तमसेला नै। असथि‍रसँ बुझबैत बजला-
बौआ, तोहर अधि‍कार अपवादमे रहत। ऐठाम समाजक सङ्ग छह, समाज सङ्ग छथुन। तोहर परि‍वार पीड़ि‍त परि‍वार भेल, ऐ पीड़ाकेँ नि‍माहैक समाजक काज बनि‍ गेल अछि‍। तँए ई काज समाजक छि‍अनि‍। बि‍ना हुनका वि‍चारे नै करक चाही।
अपवादक कोनो अरथे ने लगल। पुछलि‍यनि‍-
काका, अपवाद की कहलि‍ऐ?”
अपवाद ई भेल जे एहनो समाज अछि‍ जे रत्ती-बत्ती भऽ टुटि‍-फाटि‍ गेल अछि‍। एते तक कि‍ जे एहनो लोक भऽ गेल अछि‍ जे माए-बाप परि‍वार दि‍स तकबो ने करैए, सेवा कहाँसँ करत। ओहेन परि‍स्‍थि‍ति‍ बनब अपवाद भेल। शि‍ष्‍ट समाज आ अशि‍ष्‍ट समाजमे दुरी बनि‍ जाइ छै, जइसँ कोनो रीति‍-नीति‍ वि‍घटि‍त भऽ जाइ छै।
पढ़ुआ कक्काक सङ्ग गप-सप्‍प चलि‍ते छल आकि‍ बि‍च्‍चेमे छीतन भाय बजला-
बाउ सि‍रि‍स, कोनो काज पहि‍आ कऽ करब बेसी नीक होइ छै, एना धड़फड़ाइ कि‍ए छह, बाबाक पाछू जे छथि‍ हुनकर काज ने हेतनि‍। स्‍कूलो-कौलेजमे नै देखै छहक जे प्रधानाचार्य नै रहने सहायक प्रधानाचार्यक ऊपर भार आबि‍ जाइए। जे उचि‍तो अछि‍।
उचि‍त सुनि‍ टोकि‍ देलि‍यनि‍-
केना उचि‍त भेल?”
छीतन भाय बजला-
क्रमि‍क काज ई भेल जे बाबाक नीचाँ जे छथि‍ हुनकर अधि‍कार उचि‍त भेल। तूँ ते तेसर सीढ़ीमे भेलह, बीचला दोसर सीढ़ीक काज जखनि‍ शुरू हएत तखनि‍ क्रमश: तोरो भाँज औतह। ओ भाँज नि‍माहब तोहर उचि‍त भेल।
छीतन भायसँ गप-सप्‍प करि‍ते रही, आगि‍-कुश-कोहा लऽ आगू-अगूआ चलैक प्रश्न उठल। मुदा जेना पि‍ताजीकेँ बुझले रहनि‍ तहि‍ना हाथमे लऽ आगू वि‍दा भेला। पाछूसँ चारि‍ गोरे बाबाकेँ कान्‍हपर उठा वि‍दा भेला। ‘राम-नाम सत् है’क अवाज धरतीसँ अकास धरि‍ गनगना गेल।
असमसान पहुँचि‍ते बाबाकेँ नि‍च्‍चाँ उतारि‍, काजक जुति‍-भाँति‍मे सभ लगि‍ गेला। जगरनाथ बाबकेँ जेना सभ काज अखि‍हासले छेलनि‍ तहि‍ना बजला-
लहाशक बगलमे अछि‍या खुनू, दोहरा कऽ लहाश नै उठत।
सएह भेल। मनमे भेल जे जुआन-जहान छी कोदरवाहीक काज अछि‍ए आगू बढ़ि‍ एकटा कोदारि‍ पकड़लौं। मुदा लगले जगरनाथ बाबा मनाही करैत बजला-
बाउ सि‍रि‍स, तोरा बुते नै हेतह?”
पुछलि‍यनि‍-
कि‍ए?”
कहलनि‍-
बेसी कारीगीरीक काज अछि‍या खुनब छी, तूँ ने बुझहै छहक जे कोदारि‍सँ माटि‍ खुनब भेल मुदा से बात नै छै, केते गहींर, केते नमगर-चौड़गर हएत ओ बि‍ना नाप-जोखसँ थोड़े होइ छै। लहाश समापनक सभ प्रक्रि‍याक ठौर बनबए पड़ै छै। तँए तोहू एते करह जे सभ कुछ देखहक। एक तँ काजक प्रक्रि‍या छी, दोसर मनेक ने बात छी, जँ कहीं घुसुक-फुसुक गेल तँ काज गड़बड़ो भऽ सकैए। यएह सोझ-साझ करब भेल सनातनी पद्धति‍।
जगरनाथ बाबक मुँहक बात ‘सनातनी पद्धति’‍ सुनि‍ जेना मनमे वि‍द्रोहक वि‍चार पनपल। पनपल ई जे मनुख अपन परि‍वारक काज अपने सम्‍हारि‍ लेत तँ की ओ समाज छि‍ड़ि‍याएले रहत? सभ परि‍वारकेँ अपन इति‍हास छै, जेकरा भीतर जीवनक ऐना छै। ओइ एेनामे देखि‍ ओकर वि‍चार हेबा चाही। जैठाम जे गड़बड़ छै ओकरा बुझा-सुझा ने काज सम्‍हारब नीक भेल। मन कनी उफनि‍ए गेल रहए। कुरहरि‍क काज करए आगू बढ़ि‍ एकटा कुरहरि‍ पकड़लौं। जहाँ कुरहरि‍ पकड़लौं आकि‍ जगरनाथ बाबा रोकैत बजला-
बौआ, सि‍रहौना-पतौना नापि‍योँ-जोखि‍ कऽ आ गरो अँटकारि‍ कऽ बनबए पड़ै छै। तोरा बुते नै हेतह।
जँ सोझहे मुहेँ कहने रहि‍तथि‍ जे तोरा बुते नै हेतह तखनि‍ कि‍नौं नै बात मानि‍ति‍यनि‍ मुदा पाछू जे हनुमानी पुछड़ी लगल अछि‍, नापि‍-जोखि‍  आ गर अँटकारि‍। नाप-जोख तँ हाथेक (बाँहक) काज भेल, हाथ सङ्गेमे अछि‍, मुदा गरक अँटकार केना करब। ई तँ नजरि‍क काज भेल। से कहाँ अछि‍। मन हरदि‍ गेल। हारि‍ओ मानब ऐ अवस्‍थामे उचि‍त नै। खि‍शि‍या कऽ जगरनाथ बाबाकेँ कहलि‍यनि‍-
बाबा, हमरो कोनो काज देखा दि‍अ बैसलमे बाबा धि‍कारता जे जे बैसि‍ कऽ समए बि‍तौत ओ बैसले रहि‍ जाएत आ जे सुति‍ कऽ समए बि‍ताएत ओ सुतले रहि‍ जाएत। तँए जे राति‍ओकेँ सुति‍ कऽ नै जागि‍ कऽ दि‍न जकाँ बना काज करत जि‍नगी ओकरे छि‍ऐ।
अपन बाबाक बात जखनि‍ जगरनाथ बाबा सुनलनि‍ तखनि‍ जेना कि‍यो समुद्रक ढोहि‍पर सँ नहा कऽ आएल होथि‍ तहि‍ना बजला-
बौआ, तूँ बाबाक लहाशे लग बैसि‍ ओगवाहि‍ करह। जएह कौआ, गीध, जागलमे काते रहतह वएह आँखि‍ मुनि‍ते पहि‍ने आँखि‍एपर लोल मारि‍ फौड़ए चाहतह। तँए सचेत भऽ रहब जरूरी छह।
जगरनाथ बाबाक वि‍चार जेना मनकेँ ि‍सर-सि‍रा देलक। बि‍नु कि‍छु बजने-भुकने बाबाक पँजरा लग आबि‍ बैसि‍ गेलौं।
ओना जरबैले कठि‍यारी बहुत लोक गेल रहथि‍ केतबो काज रहै तैयो कि‍छु गोरे बि‍नु काजेक रहथि‍। चारूकात छि‍ड़ि‍या कऽ बैसलो रहथि‍। अजमा कऽ देखलौं तँ बूझि‍ पड़ल जे एते-लोकक बीच कौआ-गीध केना हि‍म्‍मत करि‍ कऽ आबि‍ बाबाक आँखि‍ फोड़ि‍ देतनि‍। मुदा लगले मनमे उठल जे मेला-ठेला आकि‍ हाट-बजारमे तँ लोकेक भीड़ रहै छै तैबीच केना एते-चोरी, पॉकेटमारी होइए। मन ठमकि‍ गेल। चुपचाप बैसि‍ ओगरवाहि‍ करए लगलौं।
बाबा लग बैसला कनीकालक पछाति‍ जेना दुनि‍याँ अन्‍हार जकाँ बूझि‍ पड़ल। ओना आँखि‍ तकि‍ते रही मुदा आँखि‍क रोशनी वि‍लीन भऽ गेल। जहि‍ना कोनो देवालयक सुरता एने डोर लगि‍ जाइत, डोर ई लगैत जे जल्‍दी-सँ-जल्‍दी ओइठाम पहुँच दर्शन करब तहि‍ना मन भेल। होइते ओ बाबा नजरि‍क सोझ आबि‍ गेला जे दरबज्‍जापर कि‍छु-कि‍छु पढ़ैओ-लि‍खैक बात कहै छला आ कोनो-कोनो काजो अढ़ा करबै छला। ओना जि‍नगीक अन्‍ति‍मो समए धरि‍ बाबाकेँ कहि‍यो बि‍नु काजे बैसल नै देखै छेलि‍यनि‍। काजो तँ सभ रङ्ग होइते अछि‍, कि‍छु काज जहि‍ना रौद-वसातमे होइए तहि‍ना कि‍छु काज एहनो अछि‍ए जे घरो-अङ्गनामे होइते अछि‍। जखनि‍ जेहेन समए तखनि‍ तेहेन काज। जँ से नै हएत तँ वएह भेल प्रति‍कूलता। प्रति‍कुलता ई जे जँ जेठ मासक कड़कड़ाएल रौदमे कि‍यो कोदारि‍ पड़ए आकि‍ पाथरक टुकड़ा उघैक काज करए तँ ओ प्रति‍कूलता भेल। ओना सभ कि‍सि‍मक काजक खगता सभकेँ अछि‍ए, तँए काजकेँ समयानुसार सुति‍या कऽ पकड़ब सुति‍हारक काज भेल। जँ से नै भेल तँ ओहीठाम लोक भुति‍या जाइए। जखने भुति‍याएल तखने केम्‍हर कोन मुहेँ केतए चलि‍ जाएत तेकर ठेकान नै रहि‍ पबैए। मन पड़ल बाबाक ओ बात जे केता दि‍न कहने छला-
बौआ सि‍रि‍स, अखनि‍ तूँ बच्‍चा छह, पढ़ै-लि‍खै छह। पढ़ला-लि‍खला पछाति‍ माने वि‍द्यार्थी जीवनक पछाति‍ पारि‍वारि‍क जि‍नगी शुरू होइए, ओ जीवनक एकटा मोड़ छी।
मने-मन पूजाक मंत्र जकाँ मनमे दोहरा-तेहरा उठल। मुदा की मोड़ छी आ केना ऐ मोड़मे मुड़ी पैसाएब, से बुझि‍ए ने पाबि‍ रहल छी। मुड़ोक तँ केते रूप अछि‍, केतो राजमुकुटकेँ सुशोभि‍त करैए तँ लुल्हो- नाङ्गरक माथक शोभा बढ़बैए। केतौ जंगलमे नाच करैए तँ केतौ लोके मोर-मोरनी बनि‍ चौकी तोर नाच करैए। मुदा अगि‍ला बात, जि‍नगीक मोड़क नै बूझि‍ पेलौं। जे बाबा धरतीपर सँ अधडरेड़ गाछपर चढ़ैक बात कहलनि‍ ओ अधडरेड़सँ फुनगीओ धरि‍क कहि‍ सकै छला, मुदा छूटि‍ केतए गेल। की बाबा छोड़लनि‍ आकि‍ अपने छोड़लौं। मनमे अबि‍ते नजरि‍ घूमल। घूमल ई जे अखनि‍ बाबा मृत्‍युसज्‍जापर सूतल छथि‍, ओगरवाहक रूपमे बैसल छी, दुनू गोटेक बीचक बात, तेहल्‍लाक जरूरत नै अछि‍। अपन पनचैती अपने करैक अछि‍। जेना गाम-घरमे होइ छै जे मुहदुबरा बौहु सबहक भौजाइए भऽ जाइ छै, तेना जँ खनदानक पीढ़ीक बीच करब, ई अन्‍याय भेल। मन पाड़ए लगलौं जे कहि‍यो बाबाकेँ पुछबो केि‍लयनि‍ जे बाबा दू जि‍नगीक मोड़े ने संक्रमण छी जेना एक मौसम दोसरमे गर धऽ-धऽ बदलैए तहि‍ना ने जि‍नगीओक मोड़ एक जि‍नगीसँ दोसर जि‍नगीमे बदलैए। मुदा लगले मन ठमकि‍ गेल। ठमकि‍ ई गेल जे मौसम बदलैक पाछू पछि‍ला मौसमकेँ केते अनुकूलता भेटलै आ केते प्रति‍कूलता यएह ने ओकर कारक भेल। जेना कोनो पहाड़ी बोनमे कि‍यो भुति‍या जाइए, जैठाम एक दि‍स बड़का-बड़का पहाड़ ठाढ़ छै, तैबीच बाघ-सिंहक बोन होइ, चारूकात पहाड़पर सँ पानि‍ झहरैत होइ, तहि‍ना भेल। मन पड़ल बाबाक ओ बात-
बौआ, अखनि‍ तोहर मुख काज पढ़ब भेल। पढ़बक माने ई नै भेल जे सोझे कि‍ताब पढ़ै छी। पढ़बक माने भेल जे चतरल बर-पीपरक गाछ जकाँ जि‍नगीओ चतरैत चलए।
मन पड़ि‍ते सौनक मेघ जकाँ आँखि‍ ढबकि‍ गेल। जहि‍ना कोनो चीज लि‍खैकाल पेनक बोकारसँ कागजपर ढबकि‍ जाइत, जे हल्‍लुक बोकरानमे तँ नै मुदा नमहर बोकरानमे तँ सभ लि‍खलाहा दुरि‍ए कऽ दइत। तहि‍ना भेल। मन पाड़ए लगलौं जे एहेन प्रश्नक उत्तर छूटि‍ केना गेल। नबे बर्खक जि‍नगीक भोगल-परखल जि‍नगी छेलनि‍। अनेको रङ्गक प्राकृति‍क प्रकेप- बाढ़ि‍, रौदी, अन्‍हर-वि‍हाड़ि‍, भुमकमसँ मुकाबला केने छला। पछि‍ला भुमकममे घर कमजोर रहनि‍ खसि‍ पड़लनि‍, हालक भुमकममे घर मजगूत छेलनि‍, नै खसलनि‍। भुमकम तँ ओतबे टा छल। यएह भेल प्रकृति‍क बीच जि‍नगीक खेल। अनेरे मन वौआ गेल, बाबाकेँ आब नहबए-सोनबए बेर भऽ गेल। मुदा अन्‍ति‍म क्षण जँ अपन सम्‍बन्‍ध-सम्‍बन्‍धीक पनचैती सोझमे नै कऽ लेब तँ परोछक भोज जेहने तेहने परोछक पनचैती। मन पड़ल बाबाक ओ बात जे कहने रहथि‍-  
बौआ सि‍रि‍स, जहि‍ना स्‍कूलमे पढ़ै छह तहि‍ना घरोपर पढ़ह।
‘घरोपर पढ़ह’ स्‍मरण होइते‍ मन दरकि‍ गेल। दरकि‍ ई गेल जे जहि‍ना स्‍कूलक शि‍क्षक पढ़ल-लि‍खल छथि‍ तहि‍ना तँ बाबो छला मुदा घर-पर नै पढ़ने छूटि‍ गेल। यएह ने अपन गलती भेल। हाथ जोड़ि‍ बाबाकेँ कहि‍ माफी मङ्गलि‍यनि‍। मुदा केहेन माफी आे देलनि‍ से तँ जीवि‍त रहि‍तथि‍ तँ मुहसँ कहि‍तथि‍, मुदा...।
मनक बातक वि‍सरजन भेबो ने कएल छल आकि‍ जगरनाथ बाबा आबि‍ बजला-
बौआ सि‍रि‍स, नहाएब-धोब, अङ्ग वस्‍त्र चढ़ाएब परि‍वारक काज भेल। जारनि‍ तैयार भऽ गेल, अछि‍यो सजि‍ रहल अछि‍ अपन काजमे मुस्‍तैदीसँ लगि‍ जाउ।
देखते-देखते बाबा अछि‍यापर सजि‍ गेला। संस्‍कार पड़ि‍ गेल। देखते-देखते बाबा पञ्चतत्वमे वि‍लीन भऽ गेला।      
¦¦¦

०६ अगस्‍त २०१४

No comments:

Post a Comment