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Thursday, September 4, 2014

झमकी (डा. शि‍वकुमार प्रसाद)

मधुबनी जि‍लाक सखुआ-भपटि‍याहीमे आयोजि‍त 83म सगर राति‍ दीप जरय- नारी केन्‍द्रि‍त कथा गोष्‍ठीमे पठि‍त- 

झमकी


एकटा गाममे एकटा गरीब परि‍वार रहै छल। परि‍वारक मुखि‍याक रूप-रंग, गुण-सोभाव, दह-दशा गामे सन छेलै। नाओं छेलै खखना। भरि‍-दि‍न मर-मजूरीसँ जे बोइन भेटै छेलै, खखना घरवालीकेँ सुमझा दइ छेलै। घरमे अपने तीनटा बेटा-बेटी आ कनि‍याँ। पाँच जनक परि‍वार। माए कि‍छुए दि‍नक पछाति‍ सरग सि‍धारि‍ गेलै। जावत् माए जीबै छेलै ताबत् हुनका कि‍यो पुछैबला छेलै। काजपर सँ लौटला उत्तर एक लोटा पानि‍, एकटा सूखल रोटी वा फुटहो दऽ हि‍या जुड़बै छेलै।
माइक मुइने ठीके बेटा टुगर भऽ जाइ छै। घरवाली मुँहक जोर। एतबे नै, वि‍धाता घरवाली चम-चि‍कनी दऽ देलखि‍न। नाओं छेलै ‘झमकी’। नाउँए गुण सौंसे टोल झमकेत रहैत छल। बाल-बच्‍चा फुटलीओ आँखि‍ नै सोहाइत रहै। जाबत् सासु छेलै बाल-बच्‍चाकेँ थथमारने रहै छल। आब तँ धि‍यो-पुतो छि‍छि‍आइत रहै छै। खखना बरद जकाँ खटैत अछि‍। ति‍रया चरि‍त्तरकेँ ओकरा कि‍छु पता नै। झमकीकेँ एसनो-पोडर, कनफुल-नकफुल चाही। सेहो नव-नव डि‍जाइनक। खखना सन भकुआ, भकुआएले रहि‍ गेल।
आब सुनू आगूक खि‍स्‍सा।
खखना काजे अपसि‍याँत। घरवाली आँचे अपसि‍याँत। टोलसँ अलग एकटा दोसर जाति‍क घर छल। ओइ घरक अगल-बगलमे कएटा मालि‍कक कलम छेलै। जारनि‍ बीछऽ झमकी केतए जेतै? कलमेमे ने! झमकीकेँ संगी-बहि‍नपाक कोन कमी। सबहक संगे कलमे-कलमे, गाछीए-गाछी जारनि‍ बीछैत छल। केना-ने-केना दोसर जाति‍क एकटा नवतुरि‍यासँ झमकीकेँ आँखि‍ लड़ि‍ गेलै।
धीरे-धीरे ओही कलममे जारन-बि‍छनी सबहक पंचैती सेहो बैसए लगल। ओ छौंड़ा सेहो गामक भौजाइक नाते कखनो बैसल कखनो ठाढ़हे-ठाढ़ गोष्‍ठीक हि‍स्‍सा बनि‍ गेल। ओइ छौंड़ाकेँ देखि‍ते झमकीक चमकी दुगुन्ना भऽ जाइत छेलै।
आब बुझू खि‍स्‍सा खतम।
झमकी झपटा मारलक। झपटा तेहेन छेलै जे छौंड़ा घरक खुट्टा तोड़ि‍ जे भागल से आइ धरि‍ गाम नै घुरल। धि‍या-पुता फकरा बनेलक-
झमकी झमैक‍ गेल, छौड़ा लऽ कऽ उड़ि‍ गेल...।
खखना बाल-बच्‍चाक संग ताकि‍ रहल अछि‍ जे कही फेर...।¦¦¦


(83म सगर राति‍ दीप जरय’ भपटि‍याहीमे पठि‍त...।)

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