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Tuesday, September 2, 2014

पुरस्‍कार (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

पुरस्‍कार



सुबहक सात बजे समाजक सभ (बूढ़-बुढ़ानुससँ लऽ कऽ बेदरा धरि‍) बच्‍चाकेँ पुरस्‍कारक असि‍रवादो दइले आ बोन बीच वि‍चरण करैबला वि‍याधो चि‍न्‍हैले एकत्रि‍त भेला। जेना गामे हलचलाएल अछि‍। हलचलेबो केना ने करैत, कोन-परि‍वारक कोन माता-पि‍ताक मन बच्‍चाकेँ पढ़बै दि‍स नै छन्‍हि‍। के नै बुझै छथि‍ जे सए भरि‍ सोनासँ नीक रती भरि‍ बुधि‍ होइ छै। मनक झोंकमे, पुरस्‍कारक उत्‍सवक कारणे, बारह आना लोक बि‍सरि‍ गेला जि‍नकर बच्‍चा स्‍कूलक आँखि‍ नै देखने। राि‍तए सुतैबेर मे बहुलांश पुरुख अपन-अपन पत्नीकेँ कहि‍ देलनि‍ जे तीन बजे भाेरेमे उठि‍, घर-अङ्गनाक काज सम्‍हारि‍, चुल्हि‍-चौका अमैनि‍याँ बना जलखै तैयार कऽ लेब। कहुना भेल तँ सरस्‍वतीक दरबारक सभा भेल कि‍ने सभ कि‍छु चि‍क्कन बना नै जाएब से केहेन हएत? जि‍नको सभकेँ दुनू परानीक बीच खटपटो छेलनि‍ सेहो सभ पति‍क बातकेँ कन्‍हेठ तीन बजे भोरे उठि‍ पति‍केँ सात बजेसँ पहि‍ने ओहेन तैयार (खाइ-पीबैसँ लऽ कऽ ओढ़ै-पहि‍रै तक) कऽ लेलनि‍ जे सचमुच सरस्‍वतीक मन्‍दि‍र पूजा करए जेता। तैपर दोसर कारण ईहो भेल जे पत्नीक जेते क्रि‍या-कलाप पुरुख सभकेँ नै मोहने छेलनि‍, तइसँ बेसी पत्नीक मन-मक्‍खन मोह मोहलकनि‍। से कोनो एक्के-दुइएकेँ नै, जेना समाजेक भऽ गेलनि‍। सात बजैत-बजैत वि‍द्यावादि‍नी सरस्‍वतीक सभा जकाँ स्‍कूलक आङ्गनक परतीक दुभि‍एपर सभा सजल। जुगक अनुकूल तँ वि‍चारो बदलि‍ते अछि‍, जे स्‍कूलक आङ्गन बच्‍चाक लगौल फुलवारीसँ सजल रहै छल, वि‍द्यालयक चारूकात एबा-जेबाक रस्‍ता  बनल रहै छल, आइ ओ दुभि‍ लगौल परती, दुभि‍ओ लगौल परती कि‍ए कहै छि‍ऐ, बेउदाम जगह बनि‍ गेल अछि‍। एहेन उठौन लोकमे उठल केना? गामक एक बेटा जगरनाथ मध्‍यम परि‍वारमे जनम लेलो पछाति‍ अपन आत्‍मबलसँ एम.ए.क नीक डि‍ग्री पाबि‍ शान्‍ति‍-नि‍केतन, वि‍श्व भारतीमे शि‍क्षक बनला। मुदा जि‍नगी भरि‍ रहि‍ गेला ओहेन वि‍द्यार्थी जकाँ जे ट्यूशन पढ़बैत उपैत करैत। इंजीनि‍यर, डाक्‍टर, प्रोफेसर, ओकील इत्‍यादि‍ बनि‍ धरतीपर ठाढ़ होइ छथि‍, पेशा बदलला पछाति‍ जि‍नगीओमे बदलाव अबि‍ते छै, से जगरनाथमे नै एलनि‍। संस्‍कृत वि‍द्यालयक वि‍द्यार्थी जकाँ तेहेन पोथीक चटनमा बनि‍ गेला जे अपनाकेँ कहि‍यो वि‍द्यार्थीसँ ऊपर नै बुझलनि‍। जहि‍ना चि‍ड़ै-चुनमुनी चहरा चुनि‍ घोघमे बच्‍चाले आनि‍ लोलमे दइ छै तहि‍ना जि‍नगीक क्रि‍या-कलाप जगरनाथोक रहलनि‍। बि‍सरि‍ गेला नोकरी आ बि‍सरि‍ गेला नोकरीक साल-बर्ख।

तीन मास पूर्ब जखनि‍ सेवा नि‍वृति‍क चि‍ट्ठी जगरनाथकेँ हाथमे एलनि‍ तखनि‍ भक्क खुजलनि‍। भक्क खुजि‍ते आँखि‍क आगू अन्‍हार पसरि‍ गेलनि‍। ओइ अन्‍हारमे टापर-टोइया दइते भादो-अन्‍हारक जनमअठमी, फागुनक अमवसि‍याक शि‍वराइत आ काति‍कक अमवसि‍याक कालीक दर्शनक पढ़ल-गुणन वि‍चार मन पड़लनि‍। मन पड़ि‍ते हूबा जगलनि‍। हूबा उगि‍ते मनसूबा जगलनि‍। पाछू उनटि‍ तकला तँ देखलनि‍ जे वि‍श्व भारतीसँ चलि‍ जाएब। केतए जाएब? गाम जाएब। केना रवि‍ ‍बाबू गामेमे वि‍श्व भारती जनमौलनि‍? केना अखनो बड़का-बड़का सि‍रीसक गाछक ओहि‍ना फुलाइत रहल आ ओ केना आगूओ फुलाइत रहत। तीन मासक पछाति‍ गाम जाएब तखनि‍ रहब केतए? जुआनीसँ अखनि‍ धरि‍क जे गाछक छाहरि‍क स्‍वच्‍छ हवा पीलौं, की ओइसँ हटि‍ जीब पएब? मन सि‍हरए लगलनि‍। मुदा लगले मनमे उपकलनि‍ जे लाल रवि‍ बाबूक रूपमे ओहि‍ना जहि‍ना रवि‍न्‍द्र नाथक रूपमे तहि‍ना ‘टैगाेर’ आ ‘गुरुदेवोक’ रूपमे दुनि‍याँक ऐनामे चमकि‍ रहल छथि‍ ओइठामसँ गाम जाएब। जँ गुरुदेव केकरो कि‍छु देलखि‍न तँ हमरो देलनि‍। वि‍श्व भारतीएक रूपमे गामोमे बनेबाक वि‍चार जगलनि‍। वि‍चार जगि‍ते मन तरङ्गलनि‍। तरङ्ग ई एलनि‍ जे जँ कोनो जनोपयोगी संस्‍था समाजमे ठाढ़ होइ छै तँ जरूर ओकर असरि‍ समाजमे पसरि‍ते छै जे अपन भवि‍सक बाट-घाट बनबै छै। जेहेन बाट-घाट बनत तेहने ने गामक भवि‍सक दि‍शा-दर्शन हएत। ई दीगर बात भेल जे रूप बदलि‍-बदलि‍ शि‍क्षण संस्‍थान सामाजि‍क जि‍नगीकेँ, काँकोड़ जकाँ कँकोरि‍ खेबो केलक आ खाइतो अछि‍। जेकरा कहि‍यो अछन थोड़े होइबला छै। सेवा-नि‍वृति‍क सूचना पाबि‍ जगरनाथ गाम दि‍स कनछीएला। सोलहन्नी तँ सेवा-नि‍वृति‍क पछाति‍ होइ छै। तीस तारीखकेँ ऐठामसँ काज करैक अधि‍कार समाप्‍त हएत। कि‍ए ने अपन पेन्शनक काज अगुआ ली। कर्तव्‍य-कर्ममे सेहो कि‍छु ढील-ढाल एबे करत। जइ वि‍द्यार्थीकेँ गति‍शील जि‍नगीक बात कहै छेलि‍ऐ, आब तँ ओ सहजे चल-चलौए ने बूझत। नीके भेल। काजो तेदि‍सि‍या भऽ गेल अछि‍। एक दि‍स पेन्‍शनक कागतक तैयारी, दोसर दि‍स वि‍द्यालयक उपस्‍थि‍ति‍, तेसर दि‍स ओ समाज जइमे जा बास करब। तँए ओकरो बसै जोकर ने बास बनबए पड़त। मन ठमकलनि‍। ठमकि‍ते ठनकलनि‍। ठनकलनि‍ ई जे समैए ने अपना गति‍ए चलि‍ रहल अछि‍, तँए जँ अपनो जि‍नगीमे चलन्‍त गति‍ नै आनब तँ जि‍नगीक सारथकते केते। जइ प्राणमे जेते चलन्‍तता अबैत, ओ ओतबे सजीव होइत। ओकर हँसब-वि‍हँसब, ओकर क्रि‍या-कर्म, ओकर आकर्षण, सम्‍मोहन ओतबे ज्‍वलन्‍त-जीवन्‍त हएत। तँए अखनेसँ ने गामक बास बसबैक खगता अछि‍। सूचीबद्ध काज सुति‍आ कऽ जँ नै करब तँ मनक मुराद पूर कऽ हएत? जैठाम जगरनाथ तैठाम पुरी तँ अछि‍ए। गाम पहुँच सभसँ पहि‍ने पढ़ै-लि‍खैबला बच्‍चाकेँ मान-सम्‍मान देब नीक हएत। जाबे समाजमे बच्‍चाक आदर नै हएत ताबे ओ आगू मुहेँ मुखरत केना। मुदा निर्दोष बच्‍चाकेँ लोक कि‍ए बि‍रान बुझैए। मन मानि‍ गेलनि‍ जे पहि‍ल काजमे हाथ लगा देब नीक हएत। मोबालि‍क युग, एक दोसरसँ मोबाइल नम्‍बर लऽ गामक सभकेँ कहि‍ देलखि‍न जे परदेश रहि‍ जे अर्जन केलौं, ओ समाजक भेल। अहीक पहि‍ल कड़ी बच्‍चाकेँ गुरुदेवक नाओंसँ पुरस्‍कृत करब भेल।
जहि‍ना कोनो घटना, कोनो वि‍चार मनकेँ दलमलबैत तहि‍ना जगरनाथकेँ सेवा-नि‍वृति‍क सूचनाक पत्र भेटि‍ते भेलनि‍। आकि‍ वि‍श्व भारतीक अन्न-पानि‍क असरि‍ भेलनि‍, आकि‍ गुरुदेवक देल वस्‍तु पेलासँ भेलनि‍, से ओ जानथि‍। मुदा जहि‍ना पोखरि‍क पानि‍क हि‍लकोर, जे कोनो गोला फेकलासँ आकि‍ हवाक वेगसँ चलि‍ आस्‍ते-आस्‍ते असथि‍र होइत तहि‍ना जगरनाथकेँ सेहो भेलनि‍। वि‍चार ठमकलनि‍। ठमकि‍ते ठनकलनि‍ जे तीस तारीककेँ चारि‍ बजे वि‍द्यालयसँ वि‍दा हएब। ओना ओइ दि‍न वि‍द्यालय नहि‍योँ जाएब तँ केकरो पुछैक अधि‍कारे नै रहतै, ओहुना औझुका शि‍काइत काल्हि‍ ने हएत, काल्हि‍ तँ ओकरा अधीनेमे नै रहबै, तखनि‍ ओ पूछि‍ केना सकैए। बड़ करत तँ दरमाहा काटि‍ लेत, काटि‍ लेत तँ काटि‍ लेत, परसूसँ अधि‍या जाएबसँ बरदास करबे करब आ एक दि‍न पछि‍ला तँ पछुआइए गेल तेकर केते चि‍न्‍ता करब। औझुका चि‍न्‍ता  करैक छुट्टीए ने अछि‍ आ कल्हुका दि‍स कि‍ए ताकब। मुदा लगले मन बदलि‍ पुछलकनि‍,
‘कोनो यज्ञक अन्‍ति‍म समैक की महत अछि‍?
मनमे पश्न उठि‍ते दोसर मन दबैत कहलकनि‍,
‘जहि‍ना सभ दि‍न, सभ दि‍न कि‍ए जि‍नगी भरि‍, चारि‍ बजे वि‍द्यालय छोड़ैत आएल छी, तहि‍ना चारि‍ बजे ओहू दि‍न छोड़ब। जखनि‍ चारि‍ बजे वि‍द्यालयसँ डेरा आएब, तखनि‍ परि‍वारकेँ सम्‍हार करैमे सेहो समए लागत। राता-राती रस्‍ता नै चलब। लगक रस्‍तो नै अछि‍। तखनि‍ तँ भेल जे एक तारीककेँ ऐठामसँ वि‍दा होउ, गाड़ी-सवारीक बात अछि‍, कखनि‍ गाम पहुँचब कखनि‍ नै। गाम पहुँच परि‍वारक सभ बेवस्‍था केले पछाति‍ ने दोसर काज दि‍स बढ़ब। दुनू तँ काजे भेल। गाम गेला पछाति‍ समाजक दरबज्जापर नै जाएब सेहो केहेन हएत। कि‍ए लोक बूझत जे जगरनाथ के अछि‍। तीत अछि‍ आकि‍ मीठ अछि‍। से तँ बाग-बगीचा लगला पछाति‍ए ने कि‍यो बुझता जे फल्लाँ मीठ आकि‍ खट्टा, आकि‍ तीत। जैठाम बाग-बगीचा लगबे ने कएल अछि‍ प्रश्न तँ तैठामक सेहो छी। जहि‍ना बच्‍चाकेँ जन्‍मक पछाति‍ माथक केश कटौल जाइ छै तहि‍ना जगरनाथकेँ माथ साफ बूझि‍ पड़लनि‍ जे अखनि‍ चानि‍पर जहि‍ना पतरखली उगत तहि‍ना ने कोयलो। भलहिं एकटा हंसक रङ्ग आ दोसर कोइलीएक रङ्ग हुअए। दुनू मीठे अछि‍। जखने गमैआ फलक वाड़ीमे बहरबैया फलक गाछ रोपल जाइ छै तखने अपनो नजरि‍ आ आनोक नजरि‍ पड़ि‍ते छै। दू तारीकक समए धड़फड़ीमे बनि‍ गेल। समाजक बीच पहि‍ल काज छी तखनि‍ जँ गोभे सुखा जाए, तँ‍ आशा कथी कएल जाएत। मन झनझनेलनि‍। जहि‍ना झालि‍क झनझनी वीणाक झनझनीसँ मि‍लि‍ सूर भरैत तहि‍ना जगरनाथक सूर चढ़लनि‍। मनमे उठलनि‍ जे जहि‍ना कोनो कार्यक्रमकेँ कोनो कारणे आगू बढ़ौल जाइए तहि‍ना दस दि‍न पहि‍ने कार्यक्रमकेँ आगू बढ़ा देब। मनमे सबुर भेलनि‍। मुदा लगले चनकि‍ गेलनि‍। चनकि‍ ई गेलनि‍ जे अपने जे समए (समारोहक) सभकेँ कहि‍ देलि‍यनि‍ ओइ सोचबमे धड़फड़ी भेल। जखनि‍ सात दि‍न छुट्टी बाँकी अछि‍, तखनि‍ कि‍ए ने एक बेर गामसँ टहलि‍ आबी। टहलि‍ओ लेब आ सभसँ भेँटो-घाँट करैत अपन सभ बात बुझबैत हुनके सभसँ, समैक अँटावेश करैत कार्यक्रमक समए बनाएब। मन फुलेलनि‍। फुलाइते उठलनि‍ जे केकरो भोज-भात, जात-बरि‍आत आकि‍ आरो कोनो कारणे दरबज्जापर जेबा-एबामे बाधा होइ छै, हमरा कोन अछि‍। जखनि‍ समाजक भोजो-भात नहि‍येँ खेलि‍यनि‍ तखनि‍ अनेरे मुँह फुलाएब हएत। समाजक काज छी तँए समाजक भागीदारी आवश्‍यक अछि‍। ओ तँ दस गोटेसँ वि‍चार केले पछाति‍ सम्‍भव अछि‍, तँए नीक हएत जे सेवा-नि‍वृति‍क बीच्‍चेमे गाम जा अपन रहैक बेवस्‍थाक जोगाड़ सेहो कऽ लेब आ कार्यक्रमक भार सेहो समाजेकेँ दऽ देबनि‍। मन थीर भेलनि‍।
दौड़ला पछाति‍ जहि‍ना साँस तेज गति‍ए चलए लगैए तहि‍ना फेर जगरनाथक मनमे उठलनि‍। उठलनि‍ ई जे ‘सम्‍मानक नाओं’ की रहत? मुदा लगले मनमे वि‍चार उठलनि‍,
‘जइ महापुरुषक नाओंसँ सम्‍मान दि‍अ चाहै छी, ओ शब्‍दजालसँ ऊपर छथि‍, तँए सभ नओं बराबरे।’
जहि‍ना राम, कृष्‍ण, महादेव इत्‍यादि‍केँ हजारो नाओं देव स्‍वरूप जेबर बनि‍ चमकि‍ रहल छन्‍हि‍ तहि‍ना ने रवि‍ओ बाबूकेँ ने चमकि‍ रहल छन्‍हि‍। ‘टैगोर’ नाअोंसँ सम्‍मान देब उचि‍त हएत। गामक इति‍हासक धाराक यएह ने कड़ी छी जे गाम-समाजमे जनम लऽ वि‍श्वपुरुष लग अपन समाजकेँ पहुँचा नवेद स्‍वरूप ओइ नाओंसँ शि‍क्षण संस्‍था आकि‍ बाल-बोधकेँ उत्‍सुकता बढ़बैले पुरस्‍कृत कि‍ए ने कएल जाए? मन तनि‍ गेलनि‍। तनैक कारण भेलनि‍ जे जि‍नगी वि‍श्व भारतीक बीच सेवारत् रहल, की ओइ समाजक नै भेल। जखनि‍ सेवा भेल तखनि‍ सेवक बनि‍ सम्‍बन्‍ध  जीवि‍त बना नै राखब, केते धरि‍ उचि‍त भेल। गाम सूतल अछि‍, ओकरा के जगौत? मनमे अबि‍ते जगरनाथ बाँकी सातो दि‍नक छुट्टीक आवेदन लि‍खि‍ प्रातभने देबाक निर्णए केलनि‍।
जहि‍ना कोनो देवस्‍थान, बजार, समुद्र-झील, पहाड़, वि‍श्व वि‍द्यालय, राज भवन देखैक जि‍ज्ञासुकेँ मनमे रङ्ग-रङ्गक प्रश्न उपकलो रहैत आ सोझ पड़ला पछाति‍ उपकबो करैत तहि‍ना जगरनाथकेँ गाम एला पछाति‍ उपकलनि‍। गामक सीमा प्रवेश केला पछाति‍ जे पहि‍ल घर भेटलनि‍ तेतए रूकि‍ गेला। घरवारी थैर खर्ड़ैत रहए‍, रस्‍तापर ठाढ़ जगरनाथकेँ टोकैत बाजल-
बटोही केतए जाएब?”
घरवारीक प्रश्न सुनि‍ जगरनाथक मनमे अनेको प्रश्न जोर मारलकनि‍। जोर मारलकनि‍ जे गामेमे बटोही बनि‍ गेलौं? ओहो हमरासँ कम उमेरक नै छथि‍, तखनि‍ कि‍ए ने चि‍न्‍हलनि‍? मुदा लगले मन रोकि‍ देलकनि‍ जे हमहीं कि‍ए ने फल्लाँ काका, आकि‍ फल्लाँ भैया, आकि‍ फल्लाँ भाय, आकि फल्‍लाँ बौआ कहि‍ पूछि‍ पेलि‍ऐ?‍  मुदा लगले तेसर वि‍चार मनकेँ रोकैत शि‍ष्‍टाचारक बात उठा देलकनि‍। अखनि‍ हमरा की करक चाही, यएह ने भेल शि‍ष्‍टाचार। बजला-
भाय, हम परदेशी छी, अहीं गाममे पूर्वजक बास छल, हमहूँ घर-घराड़ी, खेत-पथार बेचि‍ कऽ नै लऽ गेल छी, जि‍नगी भरि‍ परदेश खटलौं, आब चाहै छी अपने सर-समाजक बीच रहि‍ शेष जि‍नगीक बि‍सरजन करी।    
गौआँ सनि‍ बुधन चौंकल। अपन पूर्वजक बास कहै छथि, तखनि‍ कि‍ए ने खरि‍आइर कऽ पुछि‍यनि‍। बाजल-
आउ, आउ, पहि‍ने पएर धोइ दरबज्‍जापर बैसू, बाट-घाटक चलल बटोही छी थाकल-ठेहि‍याएल हएब, पानि‍ पीबू, चाह पीबू, पछाति‍ नि‍चेनसँ आरो गप हेतइ। कोनो कि‍ रहैक घर नै अछि‍, जे राति‍मे केतए जाएब तेकर चि‍न्‍ता हएत।
बुधनक वि‍चार सुनि‍ जगरनाथकेँ सबुर भेलनि‍। सबुर ई भेलनि‍ जे भरि‍सक समाजमे आगत-भागत अखनो जीवि‍त अछि‍। मुदा प्रश्नक जवाबकेँ अँटकाएब उचि‍त नै बूझि‍ जगरनाथ चौकीपर बैसि‍ बजला-
बड़बढ़ि‍याँ, अहाँ अपन काज सहेज लि‍अ तखनि‍ नि‍चेनसँ गप-सप्‍प हेतइ।
बुधन अपन काज दि‍स बढ़ल। जगरनाथक मनमे उठलनि‍-
‘की अखनो वएह गाम अछि‍ जेहने देखि‍ कऽ गेल रही, मुदा तेहेन कहाँ अछि‍। रस्‍ता-पेरा एकरत्ती चि‍क्कन भेल बूझि‍ पड़ैए। पजेबा घर सेहो बेसि‍याएल, तहि‍ना मरल इनारक बदला चापाकल बूझि‍ पड़ैए, मुदा गाम आ समाज तँ दू छि‍ऐ। गाम भेल घर-दुआर, पोखरि‍-इनार, कलम-गाछी, खेत-पथार इत्‍यादि‍ आ समाज भेला ओइठामक बशि‍न्‍दा। बशि‍न्‍दा केहेन बास कऽ रहला अछि‍ ओ भेल सामाजि‍क जि‍नगीक स्‍तर। जे से वि‍कासक तुलापर तौलल जाइ छै।’
जहि‍ना काजपर काज एलासँ करबारीक देहक पानि‍ पनपैत तहि‍ना बुधनकेँ सेहो भेल। मने-मन वि‍चारि‍ लेलक जे जाबे आङ्गनमे चाह बनत ताबे थैरक काज सेरि‍आ घूर लगा पजारि‍ हाथ-पएर धो तैयार भऽ जाएब। जगरनाथकेँ आग्रह करैत बाजल-
चाह-पानि‍ एकेबेर पीब आकि‍ पहि‍ने पानि‍ पीबि‍ लेब?”
बुधनक आग्रह सुनि‍ जगरनाथक मनमे एलनि‍ जे परदेशी छी भने नीक हएत जे गरम-ठण्‍ढ़ा एकबेर हएत। बजला-
अनेरे कि‍ए बेर-बेर हरान हएब।
चाह पीबि‍ते, बुधन पुछलकनि‍-
अपनेक पि‍ताक नाओं?”
‘पि‍ताक नाओं’ सुनि‍ जगरनाथक मनमे उठलनि‍, बहुत दूर समाजसँ हटि‍ गेल छी। बजला-
चेतनाथ।
‘चेतनाथ’ सुनि‍ते जगरनाथकेँ लपकि‍ कऽ छाती जोड़ि‍ बुधन बाजल-
जगरनाथ भैया!
‘भैया’ सुनि‍ जगरनाथ बजला-
हँ बौआ।
अपने घर बुझू। जखनि‍ गाममे रहैले एलौं तँ समाज थोड़े भगौता। पहि‍नौं की समाज भगौलनि‍, अपने ने गेलौं। तहूमे अहाँ सन रत्नक खगता तँ समाजकेँ छइहे।
सात दि‍नक छुट्टीमे जगरनाथकेँ दू दि‍न रस्‍ते कटलनि‍, शेष पाँच दि‍न गाम-समाजकेँ देखलनि‍-परखलनि‍। सभ टोलक सभ परि‍वारक बीच पहुँच सम्‍बन्‍ध बनबैक परि‍यास केलनि‍। गामक रूप रेखा जहि‍ना कि‍छु नीक तहि‍ना कि‍छु अधलो बूझि‍ पड़लनि‍। नीक बूझि‍ पड़लनि‍ जे बान्‍ह-सड़क सुधरल, गाड़ी-सवारी बढ़ल, बाँस-खढ़क घरक सङ्खया कमल, सि‍मटी-पजेबाक घर बढ़ल, इनार-पोखरि‍ कमल, चापाकल बढ़ल। अदौक फलो-फलहरी आ गाछो-बि‍रि‍छ घटल, बहरबैया बढ़ल, स्‍कूलक पढ़ाइ घटल, मकान बढ़ल। मुदा जे मूल उत्‍पादि‍त पूजी छल ओ ठमकि‍ गेल। खेतीकेँ अगुएबाक जे दि‍शा छै, तइमे कतरनी लगल जइसँ अर्थ कतरा गेल। एहेन गाम जगरनाथकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। समाजक खेनाइ-पीनाइ, लत्ता-कपड़ाक सङ्ग घरो-दुआर नीक बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा बेवहारि‍क चालि‍-ढालि‍ तेते नव पीढ़ीमे कहाँ अछि‍। जे गाममे फगुआ-जुड़शीतलमे सार्वजनि‍क रूपमे नाचो-गान आ खएनो-पीन होइ छल तैठाम कम्‍प्‍यूटर, टी.बी.क नाच-गान आ अपने भरि‍ खाएबो-पीब बनि‍ गेल अछि‍। ने कि‍यो केकरो लग बैसि‍ अपन बेथा-कथा कहैत आ ने सुनैत अछि‍। जे पद्धति‍क शि‍क्षा-दीक्षा छल ओ बदलि‍ गेल। वि‍कासक नाओंपर लोकक मनमे एहेन आगि‍ लगि‍ गेल अछि‍ जे शान्‍त-चि‍त्तसँ ने कोनो काज बुझए चाहैए आ ने बात-वि‍चार। मूल प्रश्न अछि‍, मनुखक जि‍नगी आ जि‍नगीक उदेस? मनुखकेँ की चाही? शि‍क्षा पद्धति‍ एहेन पाठ पढ़ा रहल अछि‍ जे समाजकेँ खाधि‍ दि‍स धकेलने जा रहल अछि‍।
छठम दि‍नक साँझमे जगरनाथ बुधनकेँ कहलखि‍न-
दू तारीककेँ पुरस्‍कार समारोह समाज सूहकारि‍ आयोजनक भार लऽ लेलनि‍। नि‍सचि‍त पहुँचबे करब। काल्हि‍ भोरुका गाड़ीसँ चलि‍ जाएब। अहाँकेँ सभ जोगाड़ कऽ देब। घरमे हाथ सेहो लगा देबइ।
जगरनाथक बात सुनि‍ बुधन कहलकनि‍-
अहाँक सेवा नि‍वृति‍सँ पहि‍ने रहैबला घर जरूर बनि‍ जाएत। समए-समए पर खरचा पठबैत रहब।
सात बजेसँ समारोहक समए निर्धारि‍त भेल, मुदा छबे बजेसँ लोकक जुटान हुअ लगल। पोने सात बजैत-बजैत जगरनाथो आ समाजक सभ पहुँच गेला। पढ़ै-लि‍खैबला बच्‍चो सभ पहुँचल। कि‍छु देखैक खि‍यालसँ कि‍छु प्रति‍योगि‍तामे भाग लइक खि‍यालसँ। तीन गोट- रामकि‍सुन, राधेश्‍याम आ गौरीकान्‍त प्रति‍योगी भेल। प्रति‍योगीकेँ केहेन प्रश्न पुछल जाए? समारोहक बीच प्रश्न उठल। एहेन तँ नै जे सफल होइबला प्रति‍योगीकेँ एकक जगह एक हजार प्रश्न पुछी‍, बि‍नु उत्तर देल प्रश्न पुछल जाए। जँ सभ उत्तर देत तँ पहि‍ल उत्तर देनि‍हार आगू भेल, जँ कि‍यो ने उत्तर देत तँ दोसर प्रश्न पुछल जाएत। मुदा प्रश्नकर्ता के हेता? समाजक सभ (पढ़ल-बि‍नु-पढ़ल) एक स्‍वरमे वि‍चार देलनि‍ जे जगरनाथ बाबूक आराधल काज छि‍यनि‍ तँए हुनके प्रश्न रहतनि‍। प्रश्नकर्ता सुनि‍ जगरनाथ घबड़ेला नै। ओना पहि‍ने मन डोललनि‍। डोललनि‍ ई जे गामक वि‍द्यार्थीकेँ जँ गामक प्रश्न नै पूछल जाएत तँ ओकरा सङ्ग अन्‍याय हेतइ। मुदा अपने तँ गाममे कहि‍यो रहलौं नै तखनि‍ प्रश्न केतएसँ आनब। मुदा मन पड़लनि‍ अपन बालपन। बालपन मन पड़ि‍ते राधोपुरक बरि‍याती मन पड़लनि‍। सरि‍याती-बरि‍यातीक बीच जखनि‍ बौद्धि‍क परि‍चए हुअ लगल छल तखनि‍ सरि‍यातीक प्रश्न रहनि‍- मरूआ केते गि‍रहपर फुटैए? 
मुदा जहि‍ना सरि‍यातीक प्रश्न खसलनि‍ तहि‍ना गोबरधन काका लोकैत बजला- ‘पाँच गि‍रहपर मरूआ फड़ैए।’
माँजल कि‍सान गोबरधन काका, एके सुरे मरूआक सङ्ग-सङ्ग आनो-आन जजाति‍क वृतान्‍त सुना देलखि‍न। समाजक जीत भेल रहए। आन समाजसँ जीत कऽ आएल रही। वएह प्रश्न जगरनाथ प्रति‍योगीक बीच रखला। जेकर जवाब रामकि‍सुन देलक। जे पुरस्‍कारक भागी बनल।
तीनू प्रति‍योगीकेँ जि‍नगीक समीक्षा भेल। तीनूक तीन जि‍नगी। ओना कहैले तीनू कि‍साने परि‍वार, मुदा तीनूक पारि‍वारि‍क क्रि‍या-कलाप भि‍न्न-भि‍न्न।
पुरस्‍कारक घोषणा करैत जगरनाथ अपनो घोषणा केलनि-‍
पुरस्‍कार नाओं ‘टैगोर’ भेल आ जेते कमा कऽ अनने छी तइमे अपन घरो बनाएब आ ‘रवि‍न्‍द्र पुस्‍तकालय’ कऽ कऽ पुस्‍तकालाइओ बनाएब।    
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२४ अगस्‍त २०१४ 

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