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Monday, September 15, 2014

बेटी रूपी बोझ

बेटी रूपी बोझ


रातिक दू बजैत रहै, चारू दिश अन्हार छल। सुमित्राक आँखिसँ जेना नीन उड़ि गेल रहनि‍। तखने एकाएक पतिक कराहब सुनि नीन टुटलनि। नीन टुटि‍ते पति- श्याम-सँ  पुछलखिन-
“की होइए?
श्याम किछु ने बजला। हाथ छूलापर बूझि‍ पड़लनि‍ जे बड़ जोर बोखार छन्हि‍। छोटकी बेटी- गीता-केँ हड़बड़ाइत उठबैत, मुँह पटपटबैत बजली-
“हमर तँ कपारे जरल अछि। भगवानो सभटा दुख हमरे देने छथि!”
दू कट्ठा जमीनक अलाबे एकटा छोट-छीन फूसिक घर। जइमे सुमित्रा पति आ छोटकी बेटी-गीता-क संग जि‍नगी गुजरि‍ रहल छथि‍। पतिक तबियत सेहो बरबरि‍ खरापे रहै छन्‍हि‍। बेटा नै छन्‍हि‍। भगवतीकेँ केतेक कबुला-पातीक पछाति‍ओ बेटा नै भेलनि।
बड़की बेटी गिरजा, जेकर बिआह बि‍नु लेन-देनक भेल छेलनि‍। बि‍नु लेन-देनक बि‍आह ऐ खातिर भेल रहनि‍ जे गिरजा देखै-सुनैमे बड़ सुन्नरि‍‍ संगे गुणशील आ कर्मशील सेहो।
मुदा सुमित्राक जमाए आ समधि बड़ लालची। बिआहक साल भरिक‍ पछतिओ कोनो-ने-कोनो बहानासँ गिरजाकेँ पड़तारि‍त करैत रहथि‍न। गिरजाक सासु बिजनेसक नाओंपर बेटाकेँ ससुरारिसँ पाइ अँइठऽ सेहो कहैत रहथिन‍। बेटो एहेन जे महिने-महिने सासु-ससुरकेँ रूपैआक समाद पठबैत। मुदा कोनो असरि‍ नै देखि‍ एक दि‍न गिरजाक सासु समधिन लग स्‍वयं पहुचि‍ कहलखिन-
जमाए तँ शराबी भऽ गेल, किएक तँ कोनाे रोजगार नै छै, भरि दिन एनए-ओनए बौआइत रहैए। अहाँ लाख-सबा-लाख मदति‍ करि दियौ, जइसँ कोनो काज-धंधा शुरू करत। काज-रोजगार भेने अहाँक बेटीओ सुखी रहत।
एते कहैत ओ बड़बड़ाइत ओतएसँ वि‍दा भऽ गेली। मनमे दू कठ्ठा जमीन आ गि‍रजाक नामे बीमाबला पाइ नाचैत रहनि‍। एक दिन थाकि-हारि कऽ गिरजाक सासु-ससुर गिरजाकेँ नैहर भेज देलक। पति सेहो पाछू लगल गि‍रि‍जा संग एला मुदा दुआरिपर रूकि गेला। गिरजा कानि-कानि कऽ अपन सभटा बेथा माएकेँ कहलखि‍न। बेटीक बात सुनि‍ माए द्वन्‍द्वमे पड़ि‍ गेली। बीमाबला पाइसँ गीताक बिआह करब आकि गिरजाक अशान्त जिनगीकेँ बँचाएब! आन कोनो अवलम्‍ब नै। सोचैत-सोचैत चाह-बिस्कुट आ पानि लऽ कऽ दरबज्जापर पहँुचली। जमाइओ हुनकर गोड़ कि लगि‍तनि‍, ओ तँ अपने बेगरते आन्‍हर! गुस्साइले चाह पटकैत बजला-
ई सभ आदर-सत्कारक ढंग रहए दथुन। हमरा लग समए कम अछि। पुरनि‍मा दिन साइकिन दोकान खोलब। हमरा बीमाबला पाइ चाही। ओनाहितो बिना दान-दहेजक हि‍नका बेटी संग बि‍आह कऽ बहुते दिन घरमे बैसा कऽ खुएलि‍यनि‍।
सुमित्रा गिड़गिड़ाइत बजली-
पाहुन, ई तँ घरक पैघ जमाए छथि‍, गीताक बि‍आहक भार जेतेक हमरा सभकेँ अछि तेते हिनको छन्‍हि‍ ने।
कनीकाल जमाए बाबू कि‍छु ने जवाब देलखिल मुदा किछुकालक पछाति गिरजाकेँ बजा कातमे लऽ गेलखि‍न आ कहलखिन-
आब, अहाँ अपन जिनगी एतै काटू। जाधरि पाइ नै मिलत ताधरि अहाँ घुरि कऽ हमरा लग नै आएब।
ई कहि‍ जमाए बाबू तमतमाएल मोटर साइकिलपर बैस आँखिसँ ओझल भऽ गेला। गीता बहनोइक सभटा बात सुनि‍ लेलक। बहनोइक रूखि‍ देखि‍ गीता बहुत दुखी भऽ गेल। मुदा माए-बाबूक लाख पुछलाक पछातिओ दुनू बहिनमे सँ कि‍यो ई बात नै कहनि‍। कारण छल जे ओनाहि‍तो माए-बाबू गरीबीक चलैत दम्‍माक इलाजो ने करा पबथि‍। ऊपरसँ ई सभटा झंझ-मंझ सुनि‍ आरो दुखे बढ़ि‍तनि‍।  
एकान्तमे बैस दुनू बहिन अपन फूटल किस्मतपर कनैत रहए। दुनू बहि‍नक मनमे उठैत रहै, दहेजक कारण माए-बापक माथपर बाेझ बनल छी।¦¦¦

जे.पी. गुप्ता ऊर्फ मोनूजी
सम्पर्क- निर्मली, सुपौल (बिहार)

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