बेटी रूपी बोझ
रातिक
दू बजैत रहै, चारू दिश अन्हार छल। सुमित्राक आँखिसँ जेना नीन उड़ि गेल रहनि। तखने एकाएक
पतिक कराहब सुनि नीन टुटलनि। नीन टुटिते पति- श्याम-सँ पुछलखिन-
“की
होइए?”
श्याम
किछु ने बजला। हाथ छूलापर बूझि पड़लनि जे बड़ जोर बोखार छन्हि। छोटकी बेटी- गीता-केँ
हड़बड़ाइत उठबैत, मुँह पटपटबैत बजली-
“हमर
तँ कपारे जरल अछि। भगवानो सभटा दुख हमरे देने छथि!”
दू
कट्ठा जमीनक अलाबे एकटा छोट-छीन फूसिक घर। जइमे सुमित्रा पति आ छोटकी बेटी-गीता-क
संग जिनगी गुजरि रहल छथि। पतिक तबियत सेहो बरबरि खरापे रहै छन्हि। बेटा नै
छन्हि। भगवतीकेँ केतेक कबुला-पातीक पछातिओ बेटा नै भेलनि।
बड़की
बेटी गिरजा, जेकर बिआह बिनु लेन-देनक भेल छेलनि। बिनु लेन-देनक बिआह ऐ खातिर
भेल रहनि जे गिरजा देखै-सुनैमे बड़ सुन्नरि संगे गुणशील आ कर्मशील सेहो।
मुदा
सुमित्राक जमाए आ समधि बड़ लालची। बिआहक साल भरिक पछतिओ कोनो-ने-कोनो बहानासँ
गिरजाकेँ पड़तारित करैत रहथिन। गिरजाक सासु बिजनेसक नाओंपर बेटाकेँ ससुरारिसँ पाइ
अँइठऽ सेहो कहैत रहथिन। बेटो एहेन जे महिने-महिने सासु-ससुरकेँ रूपैआक समाद पठबैत।
मुदा कोनो असरि नै देखि एक दिन गिरजाक सासु समधिन लग स्वयं पहुचि कहलखिन-
“जमाए तँ शराबी भऽ गेल, किएक तँ कोनाे रोजगार नै छै,
भरि दिन एनए-ओनए बौआइत रहैए। अहाँ लाख-सबा-लाख मदति करि दियौ,
जइसँ कोनो काज-धंधा शुरू करत। काज-रोजगार भेने अहाँक बेटीओ सुखी रहत।”
एते
कहैत ओ बड़बड़ाइत ओतएसँ विदा भऽ गेली। मनमे दू कठ्ठा जमीन आ गिरजाक नामे बीमाबला
पाइ नाचैत रहनि। एक दिन थाकि-हारि कऽ गिरजाक सासु-ससुर गिरजाकेँ नैहर भेज देलक।
पति सेहो पाछू लगल गिरिजा संग एला मुदा दुआरिपर रूकि गेला। गिरजा कानि-कानि कऽ
अपन सभटा बेथा माएकेँ कहलखिन। बेटीक बात सुनि माए द्वन्द्वमे पड़ि गेली। बीमाबला
पाइसँ गीताक बिआह करब आकि गिरजाक अशान्त जिनगीकेँ बँचाएब! आन कोनो अवलम्ब नै।
सोचैत-सोचैत चाह-बिस्कुट आ पानि लऽ कऽ दरबज्जापर पहँुचली। जमाइओ हुनकर गोड़ कि लगितनि,
ओ तँ अपने बेगरते आन्हर! गुस्साइले चाह पटकैत बजला-
“ई सभ आदर-सत्कारक ढंग रहए दथुन। हमरा लग समए कम अछि। पुरनिमा दिन साइकिन
दोकान खोलब। हमरा बीमाबला पाइ चाही। ओनाहितो बिना दान-दहेजक हिनका बेटी संग बिआह
कऽ बहुते दिन घरमे बैसा कऽ खुएलियनि।”
सुमित्रा
गिड़गिड़ाइत बजली-
“पाहुन, ई तँ घरक पैघ जमाए छथि, गीताक बिआहक भार जेतेक
हमरा सभकेँ अछि तेते हिनको छन्हि ने।”
कनीकाल
जमाए बाबू किछु ने जवाब देलखिल मुदा किछुकालक पछाति गिरजाकेँ बजा कातमे लऽ गेलखिन
आ कहलखिन-
“आब, अहाँ अपन जिनगी एतै काटू। जाधरि पाइ नै मिलत ताधरि अहाँ घुरि कऽ हमरा
लग नै आएब।”
ई कहि
जमाए बाबू तमतमाएल मोटर साइकिलपर बैस आँखिसँ ओझल भऽ गेला। गीता बहनोइक सभटा बात सुनि
लेलक। बहनोइक रूखि देखि गीता बहुत दुखी भऽ गेल। मुदा माए-बाबूक लाख पुछलाक पछातिओ
दुनू बहिनमे सँ कियो ई बात नै कहनि। कारण छल जे ओनाहितो माए-बाबू गरीबीक चलैत
दम्माक इलाजो ने करा पबथि। ऊपरसँ ई सभटा झंझ-मंझ सुनि आरो दुखे बढ़ितनि।
एकान्तमे
बैस दुनू बहिन अपन फूटल किस्मतपर कनैत रहए। दुनू बहिनक मनमे उठैत रहै, दहेजक कारण
माए-बापक माथपर बाेझ बनल छी।¦¦¦
जे.पी.
गुप्ता ऊर्फ मोनूजी
सम्पर्क- निर्मली, सुपौल (बिहार)
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