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Thursday, September 18, 2014

तरकारी चोर (कथाकार- ललन कुमार कामत)

 ललन कुमार कामत जीक ई पहि‍ल कथा छि‍यनि‍, 80म सगर राति‍ दीप जरय- निर्मली गोष्‍ठीमे कथाकार स्‍वयं वाचल केने छला।


तरकारी चोर


जे पापकेँ बुझैत पाप करैए, वएह सभसँ बड़का पापी होइए। आ चोरिकेँ नैतिक हनन, सामाजीक अपराध आ बुिधक छति जनैत, जे चोरि करैए आकि करबैए, ऊहो सभसँ बड़का चोर होइत अछि। बाल बोध जे अबोध होइए, से जखनि चोरि करैए, तब एकर जिम्मेदार के? हमसभ किए नै सोचै छी, ई संस्कार पैसल केतएसँ? बच्चाकेँ जब खरापकेँ, खराप कहि, चोरिकेँ, अनैतिक कहि समझाएल-बुझाएल जाएत तँ बच्चासभ एे बुराइक दल-दलमे कहियो नै फँसत। मनुखक पहिलुक गुरु तँ माइए-बाप होइत अछि। छोट-मोट चोरि आकि खराप आदतिकेँ रोकए चाहत तँ ऐ गुरुकेँ अवज्ञा नै भऽ सकत। जैठामक धिया-पुता चोरि करत ओइठामक असली गुनहगार माए-बापसँ बढ़ि‍ कऽ आर के भऽ सकैए?
बाल-बोध चोरि केहेन कऽ सकैए? शीन नै काटि सकैए। ताला नै तोड़ि सकैए। छोट-मोट चोरि। दुआरि बाटसँ कोनो चीज-बीत उठा सकैए आकि वाड़ी-झाड़ीसँ तीमन-तरकारीक चोरि कऽ सकैए। सजमनि‍पुरक पुवारि टोल, बेदरूकिया चोरिसँ त्रस्त अछि। वास्तविक चोर गाममे दुइए-तीनिएटा अछि मुदा, शकक नजरि‍ सभटा बेदरूकियापर जाइत रहैए। चोरक सरदार दूटा छौड़ा, झबरा आ गोबर जे केते बेर पकड़लो गेल अछि आ गाम-घरमे बदनामो अछि। दुनू बारह बर्खक, कद-काठीमे भुटाँड़ि‍ आ एक दोसरकेँ संगी छी।

झबरा निछट गरीब अछि। नन्हि‍एटा रहए तँ बापक मृत्यु जॉण्‍डि‍ससँ भऽ गेलै। झबराक माए सुगीया बोनि‍हारि‍न। बोइन करि, कहुना-कहुना गुजर-बसर करैए। झबराकेँ जन्मक नाओं गणेशी छी, मुदा जन्मक केश अखनि‍ धरि माथपर झबरले छै, तँए टोला-मोहल्लाक लोक सभ झबरा-झबरा कहैए। झबरा छोटे-मोट चोरि करैए मुदा सभसँ बेसी बदनामी झबरेकेँ छै। कि‍यो चोर कहि बजबै छै, कि‍यो लप्पर-थप्पर जमा दइ छै, तँ कि‍यो दूटा गारि पढ़ि‍ दइ छै.....।

जारी.....

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