Pages

Monday, September 1, 2014

रेहना चाची, 83म सगर राति‍क कथा गोष्‍ठी, भपटि‍याहीमे पठि‍त (जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

रेहना चाची




दि‍न लहसैत कि‍शुन भाय लौफा हाटसँ घुमती बेर जखनि‍ दीप पहुँचला तँ बाटपर ठाढ़ रेहना चाचीपर नजरि‍ पड़लनि‍। कोराक बच्‍चा-प्रपौत्रकेँ रेहना चाची बाजि‍-बाजि‍ खेलबैत रहथि‍। रेहना चाचीक ‘अवाज’ सुनि‍ते कि‍शुन भायकेँ सात-आठ बरख पहि‍लुका बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा सत्तरि‍ बर्खक झूर-झूर भेल शरीर, धँसल आँखि‍, आमक चोकर जकाँ मुँहक सुरखी देखि‍ शंको भेलनि‍। ओना सात-आठ बर्खसँ कि‍शुन भाय रेहना चाचीकेँ नै देखने रहथि‍ तँए हँ-नै दुनूमे मन फँसल रहनि‍। फँसबो उचि‍ते छेलनि‍। एक दि‍नमे तँ राज-पाट उनटि‍ जाइए, सात-आठ बरख तँ सहजे सात-आठ बरख भेल। मुदा तैयो मन तरसैत रहनि‍, तरंगी होइत रहनि‍ जे रेहना चाचीक अवाज छी। लग्‍गा भरि‍ हटि‍ बाटेपर साइकि‍ल दहि‍ना पएरक भरे ठाढ़ केने, रेहना चाचीपर आँखि‍ गड़ौने मने-मन वि‍चारि‍ते छला आकि‍ अनायास मुँह फुटलनि‍-
रेहना चाची।
‘रेहना चाची’ सुनि‍ चाची बच्‍चापर सँ नजरि‍ उठा चारू दि‍स खि‍रौलनि‍। दछि‍नवारि‍ भाग साइकि‍लपर ठाढ़ भेलपर नजरि‍ पड़लनि‍। चेहरासँ चि‍न्‍ह नै सकली। मुदा कानमे कि‍शुनक अवाज ठहकलनि‍। अवाज ठहकि‍ते बोल फुटलनि‍-
बौआ, कि‍शुन।
‘बौआ कि‍शुन’ सुनि‍ कि‍शुन भायकेँ जीहमे जान एलनि‍। जान अबि‍ते जीहपर राखल तीस बरख पहि‍लुका रेहना चाचीक रूप-रंग-बोल ठहकलनि‍। वएह रेहना चाची जि‍नकर जि‍नगीक दुनि‍याँ दछि‍न भाग लखनौर उत्तर बेरमा पूब कछुबी आ पछि‍म सुखेत भरि‍ छेलनि‍। यएह छेलनि‍ हुनकर कर्मभूमि‍ आ दीप छेलनि‍ पति‍भूमि‍। एक तँ अहुना दीप ओहन गाम अछि‍ जइमे छोट घराड़ीक परि‍वार बेसी अछि‍। जइसँ बरो-बाट घराड़ीए बनि‍ सुखसँ रहैए। पहि‍ने घराड़ीपर घर तखनि‍ ने जाइ अबैले आकि‍ चलै-फि‍ड़ैले बर-बाटक खगता होइए। बाटक काज तँ एक पेड़ीओ, खुरपेड़ीओ आ धुरपेड़ीओसँ चलि‍ सकैए मुदा घराड़ी बि‍ना ‘घर’ बाँसक धूजा बनि‍ थोड़े फहराएत। घराड़ी भरि‍ जमीनमे बास करैवाली रेहना चाचीक जीवि‍काक बेवसाय छेलनि‍, भोरे अपन जबावदेहीक अँगना-घरक काज सम्‍हारि‍, पथि‍यामे अपन सौदा-बारी सैंति‍, चारू दि‍सक गामक पारक हि‍साबसँ नि‍कलि‍ एक अनि‍या अलता, पैयाही डोरा, पैयाही सुइयाक संग आनो-आन बौस लऽ गामक सीमान टपि‍ आन सीमानमे भरि‍ दि‍न गमा साँझ पड़ैत फेर अपन सीमानमे पहुँच जाइ छेली। मि‍थि‍लाक जे गौरव-गाथा अछि‍ दुआरपर आएल बाट-बटोही, भूखल-दूखल जँ खाइबेर पहुँचैत वा जलखैए बेर पहुँचैत आकि‍ जखनि‍ जे समए रहल, पहि‍ने हुनकर आग्रह करि‍यनि‍। ओना खाधुरोक अपन राज-पाट छै। जँ से नै छै तँ ओइठामक भोजैतक कोटा हजार रसगुल्‍ला आ बीस कि‍लो माछक ओरि‍यानक पछाति‍ कि‍ए नतहारी ताकब छै। ओहन नतहारी जकाँ तँ नै मुदा हि‍स्‍सामे बखरा तँ लोक नि‍माहि‍ते अछि‍। काेनो गाम अबैसँ पहि‍ने रेहना चाची बि‍सरि‍ जाइ छेली जे भरि‍ दि‍न खाएब की आ रहब केतए। परि‍वार परि‍वारक बीच खाली कारेबारक सम्‍बन्‍ध नै। घंटा-घंटा बैसि‍ रेहना चाची अपनो जि‍नगी आ परि‍वारो-समाजोक जि‍नगीक खि‍स्‍सा-पि‍हानी सुनैत अपन कारोबार करैत आएल छेली।
साइकि‍लपर सँ उतरि‍ कि‍शुन भाय, स्‍टेण्‍डपर साइकि‍ल ठाढ़ करैत बजला-
चाची गोड़ लगै छी?”
कि‍शुन भायक गोड़ लागब रेहना चाची सुनबे ने केली जे असीरवाद दि‍तथि‍न, ले बलैया उनटा कऽ पूछि‍ देलखि‍न-
बौआ, माए नीके छह कि‍ने। जहि‍यासँ गाम छूटल, कारोबार गेल तहि‍यासँ चीन्‍हो-पहचीन गेल। के केतए जीबैए आ केतए मरि‍ गेल। मरि‍ गेल मनक सभ सखी-बहि‍नपा।
रेहना चाचीक बात सुनि‍ कि‍शुन भायक माथ चकरेलनि‍। जहि‍ना एक-जनि‍या, दू-जनि‍या, बहु-जनि‍या ओछाइनो-बि‍छाइन चकराइत जाइए तहि‍ना बुधि‍ओ-बुधि‍यारी आ चासो-बास तँ चकराइते अछि‍। तहि‍ना कि‍शुन भायक मन चकरा गेलनि‍, चकरा ई गेलनि‍ जे गाम छूटल! गाम कि‍ए छूटल? गुम-सुम भेल कि‍शुन भाय रेहना चाचीक झूर-झूर भेल चेहरा देखए लगला, जेना खेसारी-बदामक बीड़ि‍या झूर-झूर भेलो पछाति‍ गरदी तरकारीक रूप पकड़ि‍ भोज्‍य भोग पबैक सुख पबैत अपन जि‍नगी चैनसँ गमबए चाहैए, तहि‍ना चाचीक मन सेहो पुलकैत रहनि‍। मुदा बि‍नु बुझनौं तँ नहि‍ने लोक बुझैत। कोनो बात सूनब आ बूझब, दू भेल। बुझैले बेसी सुनए पड़ै छै, सुनै तँ लोक एकहरफीओ अछि‍। भाय पुछलखि‍न-
चाची, गाम केना छूटल?”
कि‍शुन भायक प्रश्न सुनि‍ रेहना चाचीकेँ एको मि‍सि‍या बि‍सबि‍सी नै लगलनि‍, जेना नीक जि‍नगी पाबि‍ कि‍यो नीक सि‍रासँ अपन जि‍नगीक बाट पबि‍ते खुशी होइए तहि‍ना भगि‍न जमए पाबि‍ रेहना चाची खुशी छथि‍। मुदा पेटमे पेटेले झगड़ा उठि‍ गेलनि‍। झगड़ा ई उठलनि‍ जे बीतल जि‍नगीमे जे घटल सत बात अछि‍ ओ बाजल जा सकैए की‍ नै? ओना आब ओइ बातक खगतो नहि‍येँ जकाँ अछि‍ मुदा इति‍हास तँ काल-खण्‍ड वि‍हीन भाइए जाएत? मन बेकाबू भऽ गेलनि‍! मुदा बि‍सवास देलकनि‍। बि‍सवास ई देलकनि‍ जे अबैया दि‍न सुखैया तँ अछि‍ए तखनि‍ कि‍ए ने अपन जि‍नगीक बात भाइओ-भातीजकेँ कहि‍ दि‍ऐ। आब कि‍यो जि‍नगी लूटि‍ लेत। बजली-
बौआ, सात-आठ बर्खसँ गाम सभ छोड़लौं, ओना खटनी छूटने देहो हर-हरा गेल, मुदा मन अखनो कहैए जे जानि‍ कऽ रोगा गेलौं। गामे-गामे तेना ने छीना-झपटी हुअ लगल, जे आन गामक लोकक कारेबारेेटा नै चलैक रस्‍तो कटि‍-खोंटि‍ गेल।
एक संग कि‍शुन भायक मनमे रंग-बि‍रंगक अनेको प्रश्न उठि‍ गेलनि‍, मुदा जहि‍ना मुड़ी आ टाँग कटल लहासकेँ परखब कठि‍न भऽ जाइए तहि‍ना चाचीक बात सुनि‍ भेलनि‍। छीना-झपटी आकि‍ झपटी-झपटा, वएह ने जे जहि‍ना प्रखर वक्‍ता लोकनि‍ अपन मेहि‍का चाउरमे मोटका चाउर फेँटि‍ काज ससारि‍ लइ छथि‍ आकि‍ मोटके चाउरमे मेहि‍का फेँटि‍ दइ छथि‍न...। मुदा अनेरे मन वौअबै छी। मनकेँ थीर करैत बजला-
चाची, जहि‍या जे भेल, से भेल, आब नीके छी कि‍ने?”
कि‍शुन भायक बात सुनि‍ रेहना चाची बि‍समि‍त भऽ गेली। ‘बि‍समि‍त’ ई भऽ गेली जे यएह देह छी, अपन गाम लगा पाँच गामक लोकसँ हबो-गब करै छेलौं आ खेबो-पीबो करै छेलौं, कमाइओ-खटा लइ छेलौं, से तँ छि‍नाइए गेल! ओना आब अपन उमेरो ने रहल जे माथपर पथि‍या लऽ चारि‍ गाम घूमि‍ कारोबार करब। रेहना चाची बजली-
अपन बेटा-पोता अल्‍ला हेरि‍ लेलनि‍, मुदा फेर वएह ने देबो केलनि‍।
रेहना चाचीक उत्तर कि‍शुन भाय नीक जकाँ नै बूझि‍ सकला। तेकर कारण भेलनि‍ जे लगले सुनला‍ जे बेटा-पोता हेरि‍ लेलनि‍ आ लगले सुनला जे प्रपौत्र बच्‍चा छी आ भगि‍न-जमएक परि‍वारमे रहै छी। मनकेँ सोझरबैत कि‍शुन भाय बजला-
चाची, हमरा ओहि‍ना मन अछि‍, जखनि‍ माइओ आ अहूँ एकेठीन बैसि‍ खेबो करी आ नीक-अधला गपो करी।
कि‍शुन भायक बात सुनि‍ रेहना चाचीक अपन सत्तरि‍ बर्खक जि‍नगी बि‍जलोका जकाँ मनमे चमकलनि‍। करि‍याएल मेघ, बदरि‍याएल मौसम, सरदि‍याएल राति‍मे जखनि‍ बि‍जलोका चमकै छै तखनि‍ ओ अपन इजोतक संग अवाज करैत कहै छै जे हम लाली इजोत छी नै कि‍ पीड़ी। पीड़ी दूर-देशक होइ छै लाली लगक। प्रमाण असतक होइ छै आकि‍ सतक? सत तँ अपने सत भऽ सौंसे फल फड़ जकाँ अछि‍।
रेहना चाचीक आगूमे ठाढ़ कि‍शुन भायक ने ‘अक’ चलनि‍ आ ने ‘बक’। दि‍न सेहो लुक-झुका गेल। सुरूज तँ डूमि‍ गेल मुदा लाली ओहि‍ना पसरल छल। कि‍शुन भाय बजला-
चाची, अखनि‍ तँ दि‍न नि‍सचि‍त नै भेल मुदा अखने कहि‍ दइ छी जे अहाँकेँ लि‍औन करै छी।
कि‍शुन भायक ‘लि‍औन’ सुनि‍ रेहना चाचीक मन ठहकलनि‍। मन ठहकलनि‍ ई जे आब वएह जुग-जमाना रहल आकि‍ ओइसँ नीको-अधला भेल। नीक-अधलाक बीच रेहना चाची बोझक तर पड़ि‍ गेली। जइसँ बोथि‍या गेली। बोथि‍या ई गेली जे की सम्‍बन्‍ध छल! कोरा-काँख तर केते दि‍न कि‍शुन लालकेँ नेने छी, पावनि‍मे पवनौट खुएलौं आ अपने केतए खेलौं, तेकर कोन हि‍साब। जि‍नगीए ओही भरोसे बीतल कि‍ने। आइ ओइ कि‍शुन लालक बेटाक बि‍आह छी, की आब ओतए पहुँच पाइब सकै छी? केना पाबि‍ सकै छी? जैठाम लोक अधला काज करै छल तैठाम गंगाजलसँ सि‍क्‍त कऽ नीक बनौल जाइ छल, आ अखनो बनौल जाइए। मुदा ओहन तँ जगहे खि‍या गेल। मुदा जैठाम गंगेजल अधला बनि‍ जाएत, तैठाम की उपए। रेहना चाचीक मन ओझरा गेलनि‍। मुदा सँझुका तारा जकाँ जेना मनमे भुक दनि‍ उगलनि‍। उगलनि‍ ई जे जँ कहीं काजेक चर्च पाछू पड़ि‍ जाएत आ अनेरूए गप साँझ पड़ा देत तइसँ नीक जे काजक नांगरि‍ पकड़ि‍ धार पार होइ, बजली-
बौआ, ढौओ-कौड़ी लेलहक हेन?”
ढौआ-कौड़ीक बात सुनि‍ कि‍शुन भायक मन पुलकलनि‍। बजला-
चाची, बि‍आहक अखनि‍ गपे-सप उठल हेन, ओ सभ गप पछुआएले अछि‍, जखनि‍ बि‍आहमे एबे करब तखनि‍ सभ गप बुझा देब।
कि‍शुन भायक झाँपल-तोपल बात सुनि‍ रेहनो चाचीक मनमे उठलनि‍, जेते अल्‍ला-मि‍याँ परि‍वार सभकेँ झाँपन-तोपन दैत रहथि‍न तेते नीक। भगवान सभकेँ नीक करथुन। बजली-
कि‍शुन बौआ, देखि‍ते छह जे अथबल भेलौं। चलै-फि‍ड़ै जोकर नै रहलौं, मुदा पोताक बि‍आह देखैक मन तँ होइते अछि‍, से...।
रेहना चाचीक बात सुनि‍ कि‍शुन भाय गुम भऽ गेला। गुम ई भऽ गेला जे की रेहना चाचीकेँ यज्ञ-काजमे लि‍यनु करा लऽ जा पएब? की समाज एकरा पसि‍न करत? जे दुरकाल समए बनल जा रहल अछि‍ ओ भरि‍याएल जरूर अछि‍। मुदा जात तर पड़ल ओंगरी जँ नि‍कालि‍ नै लेब, तँ जातक काजे केना चलत। कोनो एकेटा ने हएत या तँ पीसि‍या हएत वा ओंगरी पि‍साएत। मुदा भवि‍स...।

¦¦¦















No comments:

Post a Comment