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Sunday, August 3, 2014

प्रोफेसर बेटा (क. नन्‍द वि‍लास राय)

प्रोफेसर बेटा
गामक नाओं मौआहा। जि‍ला सप्‍तरी। नेपाल अधि‍राज्‍य। बेस झमटगर गाम। बारहो वर्णक लोकक बसोबास करैबला गाम। ओइ गाममे एक गोटेक नाआंे रौदी राउत। हुनकर उमेर लगधग अस्‍सी बरख। पाँच हाथक लमगर मरद। श्‍याम वर्ण। मेहनती आ स्‍वाभि‍मानी बेकती।
  हम अपना मामा लेल भोँट मागए मौआहा गेल छेलौं। मामा नेपालक संवि‍धान सभाक सदस्‍यक लेल ठाढ़ भेल छला। ओही क्रममे हमरा राउतजीसँ भेँट भेल छल। जखनि‍ हम आ हमर दूगो संगी रामबाबू आ गि‍रि‍श सभ कोइ राउत जीक दरबज्‍जापर पहुँचलौं तँ ओ ओतै छला। हमरा सभकेँ बड़खाति‍र बात केलनि‍। अपना पोताकेँ बजा चाह पियौलनि‍। हम हुनकासँ अपन मामक लेल भोँट मंगलि‍यनि‍ तँ ओ कहला-
जे नीक लोक हएत ति‍नका हम जरूर भोँट देब।
राति‍मे हमरा सभकेँ रूकबाक लेल आग्रह केलनि‍। हमहूँ सभ सोचलौं, एतएसँ बरि‍साइन‍ बारह कि‍लो मीटर अछि‍। ओतए जाइसँ नीक हएत राति‍मे एतै रूकि‍ आरो भोँटर सभसँ सम्‍पर्क करी। हम राउत जीकेँ कहलियनि‍-
हम सभ अहीं ऐठाम राति‍मे रूकब, भोजनो करब आ अरामो करब। ताबे हम सभ भोँटरसँ सम्‍पर्क करैले गाम घुमै छी।
राउतजी कहलनि‍-
सबेरे आबि‍ जाएब।
हम सभ आठ बजे राति‍मे हुनका ओइठाम पहुँचलौं। ओ हमरे सबहक बाट ताकि‍ रहल छला। हमरा सभकेँ पहुँि‍चते पोताकेँ हाक दऽ पानि‍ अनैले कहलखि‍न। हम सभ हाथ मुँह धोलौं। राउतजी अपना पोताकेँ कहलखि‍न-
हि‍नका सभकेँ जल्‍दी भोजन करा दहुन। भूख लगल हेतनि‍।
कि‍छुए काल पछाति‍ हमरा सभकेँ आँगन लऽ गेला।
भीतक देबाल आ ऊपर खपड़ासँ छाड़ल घर छल। अँगना आ ओसारा बड़ चि‍क्कन-चुनमुन छल। पछवरि‍या ओसारि‍पर हमरा सबहक भोजन लेल कम्‍बलक आसन लगौल छल। हम सभ भोजन केलौं। जाबे धरि‍ हम सभ भोजन केलौं ताबे धरि‍ राउतजी अपने बैसल रहला आ पोताकेँ कहि‍ हमरा सभकेँ परसन-पर-परसन दि‍या खुअबैत रहला। हम एक बेर हुनकाेसँ भोजनक आग्रह केलि‍यनि‍ तँ कहला जे हम पछाति‍ करब। भोजनक पछाति‍ हम सभ दरबज्‍जापर आबि‍ गेलौं। कि‍छुए काल पछाति‍ राउतोजी भोजन कऽ हमरा सभ लग आबि‍ कऽ बैसला। हम हुनकासँ परि‍वारक वि‍षयमे चर्चा केलि‍यनि‍। ओ जे अपना परि‍वारक वि‍षयमे कहलनि‍ ओइसँ हुनक वेदना बुझहलि‍यनि‍। ओ कहला-
बौआ, हमर बाबूजी हमरा मात्र दू बीघा खेत दऽ गेल छला। हम दूध बेचि‍ आ तरकारी खेती कऽ आइ दस बीघा जमीन बनेलौं। हमरा तीनटा बेटा आ एकटा बेटी अछि‍। बेटीक बि‍अाह भऽ गेल अछि‍। जमाए मास्‍टर छथि‍। जेठका बेटा गि‍रहस्‍त आ मझिला प्रोफेसर अछि‍। छोटका बेटा बी.ए.पास कऽ गामे धनकुट्टा मील आ आँटाचक्की चलबैए। प्रोफेसर राजवि‍राजमे मकान बनेने अछि‍। लोको वेद ओतै रहै छै। एकटा प्रेस सेहो चलबैए। रूपैआक नीक आमदनी छै।
तैपर हम पुछलि‍यनि‍-
बाबा, प्रोफेसर साहैब तँ भैयारी सभकेँ मदति‍ करि‍ते हेथि‍न।
तैपर राउतजी कहला-
बौआ, से जुनि‍ पूछू। दुनि‍याँमे कोइ केकरो नै छि‍ऐ। लोक केते दुख काटि‍ बाल-बच्‍चाकेँ पढ़बैए। मुदा जखनि‍ बेटा कमाए लगै छै तँ सभटा बि‍सरि‍ जाइ छै। लोकवेदक अलाबे कि‍छु नजरि‍एपर ने चढ़ै छै।
पुछलि‍यनि‍-
से किए कहै छि‍ऐ, अहाँ?”
राउतजी कहला-
जखनि‍ हमर मझि‍ला बेटा दरभंगामे पढ़ैत रहए तखनि‍ जेठका भाय हर जोति कऽ‍ ओकरा खर्चा देलक। जखनि‍ पाइ घटि‍ गेलै तँ एम.ए.क फारम भरै काल जेठकी कनि‍याँ अपन हौंसली बन्‍हक लगा पाइ पठेलक। जखनि‍ राजवि‍राजमे प्रोफेसरी भेलै तँ ओ सभटा बि‍सरि‍ गेल। पछाति‍ एकटा प्रेस खोललक तँ कहलि‍ऐ छोटका भाएकेँ रखि‍ लहक तँ हमर बात नै मानि‍ अपना सारकेँ रखलक। कि‍छु दि‍नक बाद हमरा जेठकी पुतोहुकेँ पेटमे दरद उठलै। राजवि‍राजमे डाक्‍टर लग लऽ गेलि‍ऐ। डाक्‍टर कहलक जे हि‍नका पेटमे पाथर भऽ गेलनि‍। जल्‍दीसँ ऑपरेशन करबए पड़त। दरभंगा लऽ जा करा दि‍यौ। बीस हजारक खर्चक अनुमान डाक्‍टरो कहलनि‍। हम चाउर-गहुम बेचि‍ कऽ पनरह हजारक इंजाम केलौं आ पाँच हजार टाका प्रोफेसरसँ मंगलि‍ऐ तँ कहलक, हमरा लग एक्कोटा टाका नै अछि‍। परि‍वारमे बड़ खर्च होइए। तैपर हम कहलि‍ऐ, हौ, बड़की कनि‍याँ तोरा पढ़ाइमे बड़ मदति‍ केने छथुन। अखनि‍ ओ बेराम अछि‍ तँ तूँ कहै छह पाइए नै अछि‍। केते दुख हेतनि‍ बड़की कनि‍याँकेँ। मुदा ओ एको रूपैआ नै देलक। अंतमे हमर पत्नी अपन कौटबी बेचि‍ टाका देलक। दरभंगा संगे जाइले प्रोफेसरकेँ कहलि‍ऐ तँ सेहो तैयार नै भेल कहलक, मारि‍ काज अछि‍। एको मि‍नटक छुट्टी नै अछि‍। तखनि‍ हम हमर जेठका बेटा आ पत्नी सभ कोइ दरभंगा जा बड़की कनि‍याँक ऑपरेशन करेलौं।
तैपर हम पुछलि‍यनि‍-
अँए यौ, प्रोफेसर साहैब कि‍छु ने मदति‍ केलथि‍?”
राउत जी कहलनि‍-
एकटा दोसर गप बतबै छी। हमर कि‍छु जमीन नहरि‍मे चलि‍ गेल रहए। सरकार जमीनक मुआबजा भुगतान केलक। राजवि‍राजेमे रूपैआ भेटल। राति‍मे हम रूपैआ प्रोफेसरकेँ रखैले देलि‍ऐ। भि‍नसर भने गाम अबै काल रूपैआ मंगलि‍ऐ तँ ओ कहलक, हमरा रूपैआक बेगरता अछि‍। अहाँ लग तँ रखले रहत दू मास पछाति‍ आपस करब। जखनि‍ तीन मास पछाति‍ छोटका बेटाले धनकुट्टा मील आ आटा चक्की बैसबैले रूपैआ मंगलौं तँ कहलक, सभ खेत-पथार तँ ओही भाय सभ लेल छोड़ि‍ देने छि‍ऐ। हम तँ मात्र खरचे जोकर चाउर-गहुम-दालि‍-अल्‍लू-पि‍आजु अनै छी बाँकी सभ कि‍छु तँ ओकरे सभ लेल रहि‍ जाइत अछि‍। पाँच हजार रूपैए रखि‍ लेलौं तँ कोन बड़का अन्‍हैर भऽ गेल। बेटीक जे बि‍आह केलाैं ओहूमे एकोटा छि‍द्दी नै देलक। ई प्रोफेसर तँ ओहू दुनू भाँइक सम्‍पति‍ हरपैले चाहैए। एतेक दि‍नसँ प्रोफेसर अछि‍। प्रेस सेहो चलबैत अछि‍ जइसँ रूपैआक नीक आमदनी छै। मुदा आइ धरि‍ हमरा आकि‍ माएकेँ एक्को टाका नै देने हएत। बौआ, जे वि‍द्वान से बेइमान।
हमरा राउत जीक बात सुनैत-सुनैत नि‍न्न आबए लगल। कहलि‍यनि‍-
बाबा, हम सुतै छी। अहूँ सुति‍ रहू।

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