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Saturday, August 23, 2014

बेटी (क. ललन कुमार कामत)

बेटी


सोमनाथजी म्युनसीपल आँफि‍समे पैंतीस बरख नोकरी केला पछाति रिटायर भेला। जीवनमे एक्को पाइ नजायज नै ग्रहन केलनि। सोनमनाथजी हृदैसँ पवित्र, शालि‍न, विनम्र आ दयाक भाव हिनका मुख-मण्डलसँ हरि‍दम झलकैत रहैए तँए हिनकर बिशेषता बेक्तीगत संज्ञा (उपनाम) मे बदलि‍ गेलनि आ घरसँ लऽ कऽ आँफिस धरि‍ लोक सभ हिनका सोनाजी कहि बोलबए लगलनि।
सोनाजीकेँ तीनटा सन्‍तान, बड़ दुइटा लड़का, जेठ बबलू तैपर सँ डबलू आ सभसँ छोटकी बेटी उषा छन्‍हि‍। उषाक बि‍आह नीक घरमे, इंजीनि‍यर बड़सँ कऽ सम्पन्न केलखिन। जमाइबाबू मुजफरपुरमे नोकरी करै छथिन ओतै सरकारी अवास भेटल छन्‍हि‍, तइमे उषा सङ्गे रहै छथिन।
जेठका बेटा बबलूक किरदानीसँ दुनू परानी सोनाजीक मन बेथित छन्‍हि‍। बबलू इंजीनि‍यरिंग करैले दिल्ली गेला मुदा हरियानाक एकटा लड़िकीक प्रेममे फँसि अपन जीवनक नैयाकेँ किनार कऽ लेलनि आ ओतै प्रेम-बि‍आह करि बसि गेला।
डबलू नागपुरमे बैंक मनेजर छथिन। हिनकरो बि‍आह भेला पछाति पत्नी सङ्गे आतै रहै छनि‍न। सालमे एक-आध बेर कभी-कभार घर अबै छथिन।
सोनाजी अपन जीवनसंगि‍नी ममताक सङ्ग बुढ़ाड़ीक पहिया जेना-तेना खिंचै छथि‍। बेटा-पुतोहुक सुख हिनका नसीब नै होइ छन्‍हि‍ मुदा उषा, बेटी रहैतो, बेटा जकाँ देखभाल करैए। सप्ताहमे एकबेर आबि कऽ जरूरे देखि‍ जाइत अछि। उषाक सोभाव पिताजीसँ बिरासतमे प्राप्त भेल छन्‍हि‍ तँए मधुरो आ एक दोसरसँ अनुकूलो छन्‍हि‍।
सोनाजीक ई पैंसैठम बरख चलि रहल छन्‍हि‍। नोकरीसँ रि‍टायर भेल रहथि‍ तँ शरीरसँ स्वस्थ छला आ भरोसा छेलनि जे आगुओ नीके रहता, मुदा मनुख तँ मात्र इच्छा करैए, होइ तँ अछि वएह जे ऊपरबलाक मरजी रहै छन्हि। उषाक बि‍आहक पछाति दुनू बेटा दू जगह अपन-अपन घर बसा लेलकनि। सोनाजी दुनू परानीकेँ चिन्ता-फिकि‍र घरेड़ देलकनि। जीवन-शक्ति शि‍थि‍ल भऽ गेलनि। हाथ-पएर धीमा पड़ि‍ गेलनि। आँखिक रोशनी कमि गेलनि। कानोसँ कम सुनाइ दिअ लगलनि‍। पाचनतंत्र गड़बड़ा गेलनि आ दिल-दिमाग सेहो दुरूस नै रहलनि। मतलब बुढ़ापा हिनकर समस्या बनि गेलनि।
बेटा सभ कभी-कभार फोन घुमा हालचाल करैत रहै छन्‍हि‍। दोस्त-यारकेँ- दबाइ दोकनदार आ मोहल्लाक डाक्टर- सभकेँ फोन घुमा कहैत रहैए जे माए-बाबूकेँ देखैत रहबै।
सोनाजी दुनू गोटेकेँ ई परिपक्व अवस्था अछि जइमे ज्ञान, स्थिरता आ अनुभव छन्‍हि‍ आ तहिक सहारे दुनू बेकती जीवन रूपी नैयाकेँ आगू खिंच रहल छथि‍। ओना तँ बुढ़ापा भार नै होइत अछि मुदा जब खाएल-पीअल काया जड़जड़ भऽ जाइए आ परि‍वारक सदस्‍यक संग तालमेल नै रहैए तँ परीवारमे अपन उपयोगितापर विराम लगि जाइत अछि। वृद्ध लोकनिकेँ ऐ अवस्थामे सहायता आ सहयोगक जरूरत पड़ि‍तै छै। जे बेटा-पुतोहु अपन वृद्ध माए-बापकेँ सेवा करैए वएह जीवनक उत्तम कर्म करैए। एहेन पूत जे माए-बापकेँ जीबि‍ते छोड़ि दइए आ अपनेमे मगन रहैए ओ ओहने काज करैए जेना धिया-पुता सभ बालुक रेतसँ महल बना लइए आ तैपर गाछक डारि-पात गाड़ि‍ कऽ बगीचा बना लइए आ खुशी मनबैत रहैए मुदा जेकरा ज्ञान अछि ओ अपन जीवनक उत्तम कर्म करैसँ पाछू नै हटैए।
आजुक समाजमे बेकती अपन बाल-बच्चा संग परि‍वारमे रीझल रहैए। माए-बाप, बूढ़-पुरानक मान-मर्यादा, तेकर सेवा सत्कारकेँ साफे बिसरि जाइए। ओहेन मनुख हरिदम पाबैक पाछू बेहाल रहैए मुदा जे हिनका लग प्राप्त वस्तु अछि ओकर उपयोग करनाइ नै जानैए। बूढ़-पुरान अनुभवी होइ छथि‍ तँए हिनका समाजमे विशिष्ट स्थान भेटबाक चाही। जे बेकती वृद्धक सेवा नै करैए, ओ कायर होइए आ कायर लोग काल्पनिक विचारक धनवान आ महा गप्पी होइत अछि। जाबे धरि वृद्धजनक आ जुबकक समाजमे तालमेल आ समानता नै बैसत ताबे धरि‍ समाजिक आ सांस्कृतिक काजमे स्थइरूपसँ बिकास सम्‍भव नै भऽ सकत।
सोनाजी शरीरसँ कमजोर होइत गेला आ बेटा पुतोहुक सहायता आ सहानुभूति घटैत गेलनि‍। आब हिनका याद आबै छन्‍हि‍ ओ दिन, जइ दि‍न बेदरूकिया सभकेँ ठेहुनापर लऽ घौआ-छु मल्ले-छु करैत पढ़ैत रहथि‍ लब घर उठे आ पुरान घर खसे...। खैर जे ऐ हाथसँ करैए ओकरा ओइ हाथसँ भोगए पड़ैए। अहु अवस्थामे सोनाजीकेँ रोज-मर्ड़ाक समान कीनए बास्ते हाट-बजार जाइए पड़ै छन्‍हि‍।
आइ सोनाजी सुति ऊठि कऽ शौचालय गेलखिन। होनीकेँ किछु भेनाइ रहनि‍, बाहर निकलि‍तै चक्कर आबि गेलनि‍ आ शौचालयक दरबाजासँ टकरा कऽ खसि‍ पड़ला। ममताकेँ गिरैक अभास भेलनि, भिरकाएल फाटककेँ ठेल देखलखि‍न सोनाजी ढनमनाएल असहाय अवस्थामे ओङ्गराएल आ कहरि रहल छथि। ममता धबरा गेली आ उठबैक परि‍यास केलखिन, हिला-डोला कऽ पुछै छथिन-
बबलूक पपा! की भेल! केना खसलिऐ! बाजू ने?”
मुदा कोनो जवाब नै भेटलनि। सोनाजीकेँ मुहसँ छर-छर लेहू बहै छेलनि। ई देखि‍ ममता हाय-बाप करए लगली, असगरि‍ हिनकासँ उठि नै सकल, दौगल-दौगल दरबज्‍जापर जा हरेरामकेँ सोर पाड़लक, हरेराम दुनू परानी दौगल आएल, सोनाजीक ई दशा देखि‍ हाँइ-हाँइ कऽ उठा-पुठा कऽ ओसार परहक खाटपर सुतेलकनि। सोनाजीक ई हलात देखि‍ ममताक देह जेना केराक भालरि जकाँ काँपए लगलनि‍। की करब! आ केना हएत! किछु नै फुड़ै छेलनि‍। हरेराम हड़बराइत बाजल-
काकी! डागडरकेँ फोन करू!
मुदा फोनक डायरी सोनेजी रखने छेलखिन। ममताकेँ भेटि‍ते ने रहनि‍। हरेरामक पत्नी मंजू बुझि गेलखि‍न जे बेगरतापर एहेन छोटसन चीज नै भेटैत छन्‍हि‍, डाक्टरकेँ बजबैले दौगल-दौगल गेली।
मोहल्लेमे डाक्‍टर इकबालक घर छन्‍हि‍, एलखिन। सोनाजीक मुँहक ऊपरका दूटा दाँत नीचला ठोरमे भोंका गेल रहनि‍ तइसँ मुहसँ लेहूक टघार चलै छेलनि।़ उपचार शुरू भेल, कनीएकाल पछाति सोनाजीकेँ होश एलनि। ममतोकेँ जानमे जान एलनि। डाक्‍टर इकबाल ढाढ़स दैत कहलखि‍न-
“अखनि‍ कोनो चिन्ता करैक बात नै छै, सोनाजीक ब्लडपेसर आ सूगर बढ़ि‍ गेल छन्‍हि‍ तइसँ, चक्कर एलनि मुदा समैसँ जाँच आ इलाज हेबाक चाही नै तँ हार्टएटेकक सम्भावना बाढ़ि‍ सकैए।
डाक्‍टर इकबाल पूर्जी लीखि‍ हरेरामकेँ हाथमे दैत कहलखि‍न-
ई दबाइ जल्दीए लऽ कऽ आउ, सोनाजीकेँ ठोरमे टाँका लगबए पड़त।
तत्कालीन उपचार भेल। सोनाजीक मन पहि‍नेसँ नीक भेल। ममताक जीक मन हल्‍लुक हुअ लगल आ बेटा सभकेँ फोन लगबए लगली। जेठका बेटा बबलुकेँ पहिने फोन लगा घटनाक जानकारी देलखि‍न मुदा बबलू ऐ बातकेँ गंभीरतासँ नै लैत कहलकनि‍-
केना खसि गेलौ? बाबूजी दबाइ खाइत रहौ की नै? तों केतए रही? दिन राति टेन्‍शन दइमे तूँ सब लगल रहै छँह।
ऐ घड़ीमे बेटासँ एहेन तरहक जवाब सुनि ममताक मोह भंग भऽ गेलनि‍। फेर छोटका बेटा डबलूकेँ फोन लगा स्थितिक जानकारी देलखि‍न। डबलू पिताक हाल सूनि अस्वासन दैत बाजल-
“चिन्ता नै कर। डाक्टर साहेबसँ हम बात करै छी। दीपू दोस्तकेँ घरपर भेजै छियौ डाक्टरसँ देखा कऽ दबाइओ-दारू सभ लाबि देतौ। तूँ कान-खीज नै कर।
ममताकेँ बँचल-खोंचल आस नीरास भऽ गेलनि‍। खैर हिनका सभसँ ओते आसो नै लगेने छेलखि‍न। आब बेटी उषाकेँ फोन लगेलनि‍। आन दिन उषा माए-बाबूकेँ फोन करि‍ हालचाल जनैत रहए मुदा, आइ माइक फोन देखि‍ चौंकली आ उत्सुकता पूर्वक बाजलि‍-
हँ माय! हम सब नीके छी, मुदा बाबूजी केना छथिन?”  
ममता जनैत छेली जे साँच बात बतेलासँ उषा बेसी घबरा जाएत तँए बातकेँ छोट करैत बजली-
“बाबूजीक तबीयत गड़बड़ा गेलौ आबि कऽ देखि जाही।
मुदा भारी मन आ अवाजक थड़-थड़ाहटि‍सँ उषा भाँपि गेली जे साइत बाबूजीकेँ तबीयत बेसी खराब भऽ गेल अछि। घबराहटि‍ तँ भेबे केलनि मुदा संयमसँ फोन रखि सोचए लगली जे की करी! फेर उठि कऽ बैग झारि, कपड़ा-लत्ता चोपतए लगली आ तुरंत नैहर अबैक ओरयान करए लगली। उषाकेँ एक सालक बेटी छेलनि तेकरो मँुह-कान पोछि तैयार कऽ एक काँखमे बच्चा आ दोसर हाथमे बैग उठा ओसारपर रखि घर दरबज्जामे ताला लगबए लगली। घरक चाभी बिसवासी पड़ोसीकेँ दैत पति‍ इंजीनि‍यर साहेबकेँ फोन लगेलकनि जे घंटे भरि पहिले ड्यूटीपर नीकलले छेलखि‍न, इंजीनि‍यर साहैब फोन रीसीभ करैत बजला-
“हँ बाजू, की बात अछि?”
उषाक मन तँ हड़बड़ाएले रहनि‍ मुदा तैयो सम्हरि‍ कऽ बजली-
“हम बाबूजीकेँ देखैले गाम जा रहल छी, माइक फोन आएल जे बाबूजी सि‍रि‍यस छथिन। अहूँ साँझ धरि बाबूजीकेँ देखैले आबि जाएब।
ई बात सुनि इंजीनि‍यर साहैब चौंकि‍ गेला। पुछलखि‍न-
“अखनि! अचानक! किए गाम वि‍दा भेलौं?”
ताबे धरि उषा रिक्सापर बैसि बस स्टैण्ड दिस बिदा भऽ गेल छेली। हड़बड़ाइत बजली-
अखनि ओते गप हम नै करब, बूझि लियनु जे बाबूजीक हालत ठीक नै अछि।
उषाकेँ हड़बड़ाएल अवाजसँ इंजीनि‍यर साहैब बूझि गेला जे आब हिनका कोइ नै रोकि सकैए। भरोस दैत बजला-
जाएब तँ जाउ, मुदा मनके अस्थीर केने जाउ, आ बाजू जे पाइ-कौड़ी किछु संगमे अछि कि‍ने?”
उषा-
अहाँ पाइक चिन्ता नै करू, हमरा संगमे ओते पाइ अछि जइसँ, हम गाम जा सकै छी।
इंजीनि‍यर साहैब बात टोहियबैत पूछि देलकखि‍न-
पाइ केतएसँ लाबलौं अहाँ? बजैत रहै छिऐ जे हमरा हाथमे एकोटा छिद्दीओ ने रहैए।
उषा सकपका गेली। सकपकेबो केना ने करि‍तथि‍? पति‍क जेबीसँ बँचल-खूचल पाइ रोजे निकालि‍ते रहै छेली। तैपर सँ ऊपरौसँ किछु ने किछु मांगि‍ जरूरति‍क समान कीनैबि‍ते रहै छेली आ सभसँ जरूरी काज माए-बाबूकेँ देखै बास्ते जाए पड़ै तइमे खर्चा-बर्चा तँ होइते रहै। ई बात इंजीनि‍यरो साहैब जनि‍ते रहथि‍ तँए उषा बातकेँ खोलैत बजली-
अहाँक जेबी, जे रोज साफ होइत रहैए, वएह कोशलि‍या कऽ हम रखने रही, वि‍शेष पाइक ओरीयान अहाँ साँझ धरि केने आउ।
बेटा सभकेँ नै एलासँ ममता दुखी तँ छेली। मुदा ऊषाकेँ एलासँ निरासाक बादल छँटि‍ गेलनि‍। साँझ होइत-होइत उषाक पति इंजीनि‍यरो साहैब ऑफिससँ छुट्टी लऽ पहुँच गलखिन। वि‍हाने भने एम्बुलेन्ससँ सोनाजीकेँ दरभंगा लऽ गेलनि‍ आ डाक्‍टर यू.के बिश्वाससँ इलाज चलए लगलनि‍। तत्काल किछु दबाइ शुरू काएल गेल, ऑक्सिजनक खगता सेहो पड़लनि आ दिनमे तीन बेर एकर परयोग हुअ लगल। वि‍भिन्न तरहक जाँच कराैल गेल। जाँचक किछु रि‍पोट तीन दिनक पछाति आएल आ किछु रि‍पोट हप्ता भरिक बाद आएत। जे रि‍पोर्ट आएल ओइमे बी.पी हाइ, सूगर बढ़ल आ संगे-संग हार्ट अटेकक सम्‍भावना बताएल गेल।
सप्ताह भरि इलाज चलैत रहल, तबीयतमे उतार-चढ़ाव होइत रहल, कखनो नीक जकाँ गप-सप्‍प करैत रहथि‍ तँ कखनो आँखि पथरा जान्‍हि‍, दम फुलए लगनि‍ आ बेहोस भऽ जाथि‍। कखनो बेसुधि अवस्थामे अपने-आपसँ बड़बड़ए लगथि‍-
बबलू! कखनि‍ एलँह आ आ बैठ! कनि‍याँ! घर जा। अहाँ पोती छी हमर? आब! आब! बिस्कूट एकटा हमरो दिए ने! एे डबलू चाह लाबह! माएकेँ कहक चाह देत! ईह छिनरीक साँए! जेते खाएत नै तेते छिड़याएत!
दुनू पजरामे बैसि‍ उषा आ उषाक माए- ममता- बेना होंकि रहल छन्‍हि‍। सोनाजीक ई बड़बड़ेनाइ रोकैक बास्ते उषा सोनाजीकेँ छातीपर हाथ रखि हिला-डोला कऽ कहैए-
बाबूजी! बाबूजी! केकरासँ गप करै छि‍ऐ?”  
सोनाजी चौंकैत बजला-
“ऊँह! नै नै गप करै छी। तोहर माए केतए छौ?”
सोनाजी किछुकाल ऊपर एकटकी नजरिसँ तकैत रहला। फेरि जेना कोनो आहटि चौंकैए तहि‍ना चौंकैत बजला-
डबलू गाड़ीसँ उतरि गेल जा अगुआ कऽ लाबि लहक! काल्हिए कहै छी तोहर माए किछु बुझि‍ते नै छँह।
सोनाजीक स्‍मरण शक्‍ति‍ छीन्न भऽ गेल रहनि‍। आँखिक रोशनी चलि गेल रहनि‍। रहि-रहि कऽ बिछाैन होंथड़ए लगै छला। ई बेचैनीक अवस्था देखि उषा आ ममताकेँ जी-मन उड़ैत रहनि‍। मुदा उषा साहसी, कखनो अपन घबड़ाहटिकेँ दृष्टिगोचर नै हुअ दैत रहनि‍। मनकेँ थि‍र करैत उषा बाजलि‍-
“बाबूजी! बाबूजी? एम्हर ताकू ने! हमरा चिन्है छि‍ऐ? हम के छी कहू ते?”
सोनाजी आब देखि‍ नै पबथि‍। मुदा जखनि स्‍मरण लौटैत रहनि‍ तखनि अवाज परेखि नजरि घुमा-घुमा एम्हर-ओम्हर ताकि देखैक परि‍यास करैत रहथि‍। कहलखि‍न-
हँ, चिन्है छी! उषा दाइ छी ने अहाँ? केतए छहक आगु आबह ने।
आइ अस्पतालमे नअ दिन भऽ गेल रहनि‍। एकटा जाँचक रिपोट आइ आएत। दस बजे डाक्‍टर बजौने छथिन। उषाक पति आ उषा रिपोटक जानकारीले क्लिनीकपर पहुँचला। कनीए कालक पछाति कम्पाउण्डर अवाज देलकनि-
सोनाजीक गारजियन डाक्‍टर साहैब से मिलिए।
उषा दुनू परानी वेटिंग हाॅलमे बैसल रहथि‍, बोलाहटि‍ सुनि‍ते डाक्‍टरक चेम्बरमे पहुँचला, सोफा-कुरसी लागल रहए, बैसैक संकेतक पछाति दुनू गोटे बैस गेला। डाक्‍टर दुनू गोटेसँ सोनाजीक संग जे सम्‍बन्‍ध छेलनि तेकर परिचए लऽ कहलखि‍न-
मरीजक हालत गम्‍भीर अछि, रीकौभरक सम्‍भावना नै बँचल, जाबै धरि छथि‍, सेवा सत्कार करैत रहि‍यनु।
डाक्‍टरक ई बात सुनि, उषा बौक जकाँ भऽ गेल। मुँहपर रूमाल रखि सिसैक-सिसैक कानए लगली। उषाक पति सेहो अवाक् रहि गेला! तैयो जिज्ञासु भऽ डाक्‍टर साहैबसँ पुछलखि‍न-
डाक्‍टर साहैब! केना एना भऽ गेलनि‍?” 
डाक्‍टर कहलखि‍न-
फेंफड़ा हिनकर बिल्कुल खतम भऽ गेल छन्‍हि‍। ब्रेन ट्युमर सेहो बढ़ि‍ गेलनि‍ आ शरीरक आनो-आनो अंग सबहक कार्यक्षमता शि‍थि‍ल भऽ रहल छन्‍हि‍।
वि‍भिन्न तरहक वि‍मारी आ समस्याक वि‍षयमे वार्तालापक पछाति निष्‍कर्ष यएह भेलनि जे सोनाजीक बि‍मारी ठीक हेबाक कोनो गुंजाइश नै छन्‍हि‍।
दुनू बेकती नीराश भऽ चेम्बरसँ बाहर एला, उषा बाहर निकलिते भोकारि पाड़ि-पाड़ि कानए लगली। पति साहस बढ़बैत कहलखि‍न-
अहाँ जौं एना कनब तँ माएकेँ की हएत? शान्‍त रहू, मनकेँ बुझाउ! जे हेबक छै से तँ भाइए कऽ रहत। सुझि-बुधि‍सँ काम लि‍अ! माएकेँ ऐ बातक जानकारी नै चलक चाही। हुनको सम्हारि कऽ आब अहींकेँ राखए पड़त ने। नै कानू। चूप रहू।
उषो सोचलनि‍ जे अखनि हमरा कानबसँ नोकसान छोड़ि आर कि‍छु नै हएत। कहुना मनकेँ बुझबैत चुप भेली। सोनाजी कमरामे बेडपर पड़ल रहथि‍, बगलमे ममता पंखा हौंकैत रहनि‍, तइ बगलमे पजरा लागि उषा बैस गेली आ सोनाजीकेँ मँुह निहारए लगली।
बेटा सभ टाल-मटोल करैत पि‍ताक पराण छुटैकाल गाम आएल जखनि‍ सोनाजी केकरो ने चिन्ह सकै छेलनि आ ने केकराे देखिए सकै छला।
 
ललन कुमार कामत
सम्पर्क-
ललमनियाँ, मरौना, सुपौल।

गोल इंग्लिश गार्डेन निर्मली।

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