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Wednesday, August 6, 2014

केते लग केते दूर

केते लग केते दूर




जहलक भीतरो आ बाहरो मेला जकाँ लोकक करमान लगल। करमानो केना नै लगि‍तै, बेटा-बेटीक पढ़ाइ जे मंगनीए सभकेँ भेटतै। राजक सभ राजनीति‍क पार्टी आन्‍दोलन केलक, तहीमे सभ चौअनि‍याँ नेतासँ लऽ कऽ नमरी, असरफी धरि‍ जहलमे अछि‍। भाय! चौअनि‍याँ माने ई जे अंग्रेजी‍आ जुगमे बड़को नेता चौअनीए सदस्‍य होइ छला। जखनि‍ मन मि‍ठाएल रहै छै तखनि‍ मीठे नै तीतो मीठ लगै छै आ जखनि‍ मन तीताएल रहै छै तखनि‍ तीतक के कहए जे मीठो तीते लगै छै। मुदा से नै, सबहक मन मि‍ठाएल तँए जहल जाएब उपलब्‍धि‍ भेल नै कि‍ प्रति‍ष्‍ठाक हनन बूझि‍ गाम-गामक लोक जहल जाइले तैयार भऽ नारो देलनि‍ आ जहलो गेला। ओना अखनि‍ धरि‍ जहल जाएबकेँ लोक प्रति‍ष्‍ठाक हनने बुझैए। सबहक बाल बच्‍चाकेँ शि‍क्षाक जन्‍मसि‍द्ध अधि‍कार भेटतै। जहि‍ना कलयुग अबैकाल शदूल हाथीकेँ कहलक-
भाय, समए दुरकाल आबि‍ रहल अछि‍। साढ़े तीनि‍ए हाथक मनुख, जेकर देह अदहा चीरले रहतै, अदहे सौंस रहतै, मुदा रहत तेहने अगि‍या बताल जे तोरो साधि‍ कऽ रखतह।
शदूलक बातसँ हाथी घबड़ाएल नै, अपन शक्‍ति‍क बोध रहै, उत्तर देलकै-
तूँ केना बुझलहक? जँ कि‍यो झूठे कहने हुअ तखनि‍? अपन बाप-दादाक घर-घराड़ी छोड़ि‍ पड़ाएब, जीनगानी नै मरगानी भेल। तँए जेहीठाम छी, तेहीठाम नीक जकाँ केना रहब, एतबे तँ काज भेल, सएह करब अछि‍। मुदा तोरा जकाँ एहेन देह-दशा रखि‍ओ कऽ पड़ाएब नै।
हाथीएक शक्‍ति‍ जकाँ गाम-गामक देशभक्‍तकेँ शक्‍ति‍ जगल। रावणक बान्‍हल सरस्‍वतीकेँ लंकासँ नि‍कालैक वि‍चार जगल। सबहक बेटा डाक्‍टर बनतै, इंजीनि‍यर बनतै, प्रोफेसर बनतै, शि‍क्षक बनतै, हाकि‍म बनतै, सबहक मनमुराद मनोरथपर चढ़ि‍ रणभूमि‍क लेल वि‍दा भेल, जहल गेल। जहल गेने गाम-गाममे कचहरीआ लोक फँसि‍ गेल तँए दुनू गोटे असियो, आशा सेहो पति‍सँ भेँट करए, जहलक गेटपर बाहरक भीड़मे हराएल। मुलाकातीसँ भरल जगह। दछि‍नवारि‍ भाग असि‍या आ उत्तरवारि‍ भाग आशा करीब पाँच लग्‍गाक दूरीपर। जहि‍ना हजारोक भीड़मे असि‍याक नजरि‍‍ छि‍छलैत आशापर पड़ल तहि‍ना आशाक नजरि‍ सेहो असि‍यापर पड़ल। दशको पछाति‍ दुनूक नजरि‍ दुनूपर पड़ल। ओना चेहरामे दुनूकेँ कमी-बेसी आबि‍ गेल मुदा चि‍न्‍हल मुँह कहीं अनचि‍न्‍हार भेलैए। हँ होइतो छै, बहुरूपि‍या नाच की छी? रंगे-रूप बदलब छी कि‍ने। दुनूक नजरि‍ दुनूपर पड़ला पछाति‍ मनमे वैचारि‍क रग्गर उठि‍ गेल। एक वि‍चार कहै जे जोरसँ सोर पाड़ि‍ छाती लगाएब तँ दोसर कहै, अपन दू गोटेक बात छी, ऐठाम हजारोक भीड़ अछि‍, जखने बोलीमे ओज औत तखने लोकक कान ठाढ़ हेतै। मुदा वि‍षय की रहत तँ दू संगीक बीचक बात, तँए चिकड़ब उचि‍त नै। मुदा मनक मणि‍ फूटि‍ ठोरक फाटक तोड़ि‍ दुनूक नि‍कलए चाहलक। पहि‍ने असि‍याक ठोर पटपटाएल-
भरि‍सक आशा छी।
असि‍याक ठोरक सि‍रखार पकड़ि‍ आशाक मुँह फुटल-
भरि‍सक असि‍या बहि‍न छी।
दुनूमे सँ कि‍यो केकरो बात नै सुनि‍ पौलक। मुदा गुरुजनक ठोर पटपटाइक कारण जरूर होइ छै? ई बात दुनूक मनमे घर कऽ नेने छल। गाड़ल आँखि‍ असि‍यापर, आशाकेँ ओ दि‍न मन पड़ि‍ गेल, जइ दि‍न गंगामे पैसि‍ दुनू बहि‍न सप्‍पत खेने रही जे जि‍नगी भरि‍ सम्‍बन्‍ध बना कऽ राखब मुदा से भेल कहाँ? भेल ई रहै जे जहि‍या असि‍यो आ आशो महि‍ला कौलेजमे पढ़ैत रहए, तहि‍या चारू धामक यात्राक प्रोग्राम महावि‍द्यालय दि‍ससँ बनल जइमे दुनू सेहो सेहो गेल रहए। घुमतीकाल सि‍मरि‍या घाट उतरि‍ सभ गंगो स्‍नान केलक आ जेकरा जे मनमे रहै सेहो ठनलक। तहीमे असि‍या आशाक बीच बहि‍ना लगल।
तहि‍ना असि‍याक नजरि‍ ओइ दि‍नपर पड़ल जइ दि‍न दुनू एक होस्‍टलक ठोकरीमे चारि‍ बरख संगे रहल रही। दुनू मि‍लि‍ खेनाइओ-पीनाइ बनाबी आ पढ़बो-लि‍खबो करी आ संगे कौलेजो जाइ-आबी। केतए गेल ओ दि‍न? केतए गेल गंगाक संकल्‍प? तही बीच जहलक भीतर जोरसँ हल्‍ला भेल। भीतरक अवाज बाहरो आएल। सभ मुलाकातीक कान ठाढ़ भेल। मुदा मुलाकातीओ तँ रंग-रंगक, कि‍यो पति‍क, तँ कि‍यो भायक, कि‍यो कुटुमक तँ कि‍यो गताइति‍क। भीतरक हल्‍ला छी, कि‍छु बात हेतै। बात ई रहै जे जहलक भीतर सएओ ग्रुपमे आन्‍दोलनी बँटल। सबहक अपन-अपन जि‍नगी तँए अपन-अपन सबहक देश भक्‍ति‍क फर्मूला। देशो भक्‍ति‍ की‍ देश भक्‍ति‍ छी, रंग-रंगक भक्‍ति‍ छी। कि‍यो काेट-कचहरीकेँ जि‍न्‍दावाद करैत, तँ कि‍यो तरुआरि‍क सानपर चलबकेँ चि‍न्‍दावाद करैत। जहलक भीतरक हल्‍ला रहै जे कि‍यो कुरसी, तँ कि‍यो ठीकेदारी, तँ कि‍यो जि‍नगीक मूल समस्‍याक चर्चमे उलझि गेल। जइसँ कहा-कही हुअ लगलै, सएह हल्‍ला जहलक भीतुरका छेलै। ओना सभ आन्‍दोलनी जन-मानसकेँ आँखि‍ फोड़ैक जि‍ज्ञासासँ शि‍क्षाकेँ जन्‍मसि‍द्ध अधि‍कार बूझि‍ आन्‍दोलन केलनि‍, मुदा वि‍चारो तँ जि‍नगीएक अनुकूल रहै छै, तँए जे जेहेन परि‍वारक तेकर तेहेन बुधि‍-अकील। ओना मनुख ओ शक्‍ति‍ लऽ कऽ जनम नेने अछि‍ जे अधलासँ अधला वृति‍सँ अपन नि‍वारण करैत नीक बनि‍ सकैए। तँए जे सबहक कल्‍याणक वि‍चार होइ से सवोपरि‍ भेल।
मुलाकातीक बीच सेहो तहि‍ना रंग-रंगक वि‍चार गनगनए लगल। गनगनेबो केना ने करैत। कि‍यो जि‍ज्ञासा करए आएल, तँ कि‍यो मुँहछोहनि‍, कि‍यो जहलसँ आन्‍दोलनकर्ताकेँ नि‍कालैले आएल, तँ कि‍यो‍ फाटक तोड़ि‍ संग दइले तनतनाएल। मुदा जहि‍ना असि‍याक मन पति‍पर लटकल तहि‍ना आशोक। दुनूक मन दू-दि‍सि‍‍या भऽ गेल, एक दि‍स जहलक पति‍ तँ दोसर दि‍स बालपनक हराएल बहि‍ना।
मध्‍य वर्गीए परि‍वारमे दुनूक जनम भेल। बाल-बच्‍चाक पढ़ाएबकेँ नीक बूझि‍ माए-बाप बी.ए. तक पढ़ाइक बेवस्‍था केलखि‍न। ओही समए दुनू गोटे गंगामे पैसि‍ संकल्‍प केने जे जीवन भरि‍ सम्‍बन्‍ध बना कऽ राखब। ताधरि‍ दुनूक अपनो मन कहै जे शि‍क्षि‍का बनि‍ धरतीपर पएर रोपब। मुदा से भेल नै, एे दुआरे नै भेल जे बि‍आहक पछाति‍ जइ घर एली ओ परि‍वार महि‍ला नोकरीक वि‍रोधी, तँए गृहि‍णी बनि‍ गेली। गृहि‍णी तँ बनि‍ गेली मुदा परि‍वारक जाल तँ वि‍चारमे लागि‍ए गेलनि‍। परि‍वारक जाल ई जे कोनो परि‍वारक सम्‍बन्‍ध चाहे समाजक होउ आकि‍ आन समाजक सभ सम्‍बन्‍धक अपन-अपन नि‍अम छै, जे नि‍अम प्रति‍कूल भेने दुनूक सम्‍बन्‍ध छूटि‍ गेल। एकरा टुटब नै कहल जा सकै छै, टुटब ओ भेल जइमे वि‍चारक भि‍न्नता कारण होइ छै। खैर जे भेल, रहबो तँ नहि‍येँ कएल। ऐ दुआरे नै रहल जे अठारह बर्खक बाल-बोध जि‍नगीमे चारि‍ बरख संगे रहल, समैक संयोग एहेन भेल। संयोग ई जे दुनूक वि‍चारधारामे समरूपता रहने निर्णए भेल। मुदा पारि‍वारि‍क बन्‍धन तँ कि‍छु आरो होइ छै।
तीस बर्खक पछाति‍ आइ असि‍यो आ आशोक भेँट भेल, भेँटो नै भेल, एक-दोसरपर नजरि‍ पड़ल। जहलक मुलाकाती फाटकक मुँह छोट रहने एका-एकी समए भेटै। समैओ बान्‍हल नै, घंटा-घंटा भरि‍ एक-एक मुलाकाती समए लगबै। सि‍पाहीओ भीड़क दुआरे थरथराइत, तँए जोरसँ बजबो ने करए।
साँझ पड़ि‍ गेल। कि‍छु मुलाकाती चलि‍ओ गेल, मुदा जेते गेल तइसँ बेसी एबो कएल। आशाक मनमे उठल सोझाक रसि‍या परदेशी जकाँ बसि‍या भेल छथि‍। हो-हा करैत सभ मुलाकाती वि‍चारलक जे बि‍ना भेँट-घाँट केने जाएब अन्‍याय हएत। अन्‍याय ई हएत जे समांग जहलमे अछि‍ आ बाहरसँ हम तोषो-भरोष नै दि‍ऐ, ई केहेन भेल। ओना अपन-अपन मननुकूल वि‍चारो होइ छै। मुदा जे होउ, जहि‍ना असि‍या तहि‍ना अशा राति‍ बि‍तबैक निर्णए केलक। भरि‍ दि‍न मरद-औरत सभ मुलाकातीक रूपमे संगे छल से आब फुट-फुट भेल। गर पाबि‍ असि‍या-आशा एकाठाम भेल।
असि‍या-
बहि‍न, परि‍वारमे दोसराइत नै अछि‍ जे अपने एलौं?”
ओना मनमे ईहो ठहकै जे अपनो तँ सएह छी, एकठाम भेने कि‍छु लाड़-चाड़ तँ हेबे करत। सएह भेल। मुदा अशा असि‍यापर नजरि‍ रखि‍ बाजलि‍-
बहीन, दोसराइत तँ छथि‍ बुड़हा मुदा परि‍वारमे रहि‍तो परि‍वारसँ अलग छथि‍।
आशाक नव बात सुनि‍ असि‍या, पि‍आसल चि‍ड़ै जकाँ बाजलि‍-
से की, बहि‍न?”
आशा-
जखन बुड़हाकेँ कहलि‍यनि‍ जे जहलक गेटपर जा बेटाकेँ भेँटो कऽ अबथुन आ ओकीलसँ जमानतो बात पुछि‍ लि‍हथि‍न।
बि‍च्‍चेमे असि‍या-
बात तँ असलीए कहलि‍यनि‍।
आशा-
सबहक असली की सभले असलीए होइए? ठोहि‍ फाड़ि‍ कहलनि‍ जे आब ऐ दुनि‍याँमे मरबेटा बाँकी रहल अछि‍, तँए पाँच कौर अन्न आ पाँच हाथ वस्‍त्रे टाक जरूरत रहि‍ गेल अछि‍। परि‍वार अहाँक छी, दुनि‍याँ अहाँक छी, जेना करब से करू।
असि‍या-
बात तँ बड़ नीक भेल, मुदा जइ दि‍न सासुर एलौं, तइ दि‍न जँ ई छूट भेट गेल रहैत तँ की अपन मनक बात नै मेटाएल रहि‍तए। मुदा...।¦¦¦
३ अगस्‍त २०१४

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