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Sunday, August 10, 2014

चोरक चोरबती (बाल साहि‍त्‍य)

चोरक चोरबती



आने दि‍न जकाँ आत्‍मानन्‍द बाबा दि‍न लहसि‍ते अपन काज उसारि‍, दि‍शा-मैदानसँ आबि‍ दरबज्‍जाक आँगनमे सोंफ बीछा बैसि‍ते रहथि‍ आकि‍ सुगि‍या दादी चाह नेने आगूमे ठाढ़ भेली। गर लगा कऽ बैसि‍ते (गरक माने ई भेल आत्‍मानन्‍द बाबा बि‍छानक एक छोरपर बैसि‍ आगू दि‍स तकैत अगि‍ला छोर बच्‍चा सभले छोड़ि‍ देलखि‍न) हाथमे चाहक गि‍लास धड़बैत दादी ई सोचि‍ ठाढ़ भऽ गेली जे कि‍छु खगता हेतनि‍ तँ बजबे करता, तइ सुनैले। मुदा सभ काजक गर देखि‍ बाबा चुपे रहला। बतलग्‍गू रोग तँ धेने नै छन्‍हि‍ जे अनका जकाँ अनेरो कि‍छुसँ कि‍छु बजैत रहलौं। ि‍कछु समए अँटकला पछाति‍ दादी बूझि‍ गेली। आँगन दि‍स घूमि‍ गेली। तेतबेमे टोलक इस्‍कुलि‍या धि‍या-पुता एकाएकी आबए लगल। बाबाकेँ चाह पीबैत देखि‍ आगूमे, बाबा दि‍स घूमि‍-घूमि‍ बैसैत गेल। अँगनाक डेढ़ि‍यापर अबि‍ते सुगि‍या दादी पाछू उनटि‍ तकली‍ तँ चारि‍-पाँचटा बच्‍चा देखि‍ मन मुस्‍कीयेलनि‍‍। मुस्‍कीयेलनि‍ अपन नि‍अमि‍त काजपर। जँ कनीओं बि‍लम होइतए तँ अगि‍ला काजमे बुड़हाकेँ बाधा होइतनि‍ कि‍ने? जेकर भागी के बनैत? अपन पति‍व्रत नि‍अम मनमे जगलनि‍। जगि‍ते ठोर पटपटेलनि‍-
पति‍व्रत काजक रूपमे नै मात्र लोक शब्‍दक रूपमे बुझैए।
मुदा लगले जेना कि‍यो ठोंठ पकड़ि‍ कऽ दाबि‍ देलकनि‍, तहि‍ना ठोरक पटपटी बन्न भेलनि‍। आँगनक ओसारपर बैसि‍ चाह पीबए लगली।
चाह पीबि‍ते बाबाक मन खनहन भेलनि‍। खनहन मन खनखनेलनि‍-
संच-मंच भऽ बैइसै जाह। जेकरा जे बुझैक हुअ से बेराबेरी बजै जाह।
कहि‍ते आत्‍मानन्‍द बाबाक मनमे उठलनि‍ जे अखनि‍ बाल-बोधक बीच छी, अखुनके रोपल आकि‍ सीखल बात ने जि‍नगीक बेसी समए पकड़त। माने ई जे दुनि‍याँमे हजारो-लाखो कि‍ताब पढ़नि‍हारकेँ आदि‍ अक्षर अ-आ होइ छै, जे जहि‍यासँ जनम लइए तहि‍यासँ मरै बेर तक, मरैए बेर कि‍ए कहबै तेकर पछाति‍ओ तँ रहि‍ते अछि‍। तँए जेहेन बात अखनि‍ कहबै तेहने हेतै। जेकर फला-फलक भागी भेने नीक-अधला सुनए पड़त। जहि‍ना जगरनाथ बाबा आ बैजनाथ बाबाक डोरी लगि‍ते मन छटपटए लगैए जे कखनि‍ जा कऽ दर्शन करी, तहि‍ना बच्‍चा सबहक मनमे उठल। अगुआ कऽ दस बर्खक गोवि‍न्‍दा बाजल-
बाबा, चोरक चोरबती केहेन होइ छै?”
गोवि‍न्‍दाक प्रश्न सुनि‍ बाबाक मनमे उठलनि‍, ‘चन्‍दा जुनि‍ उगु आजुक राति‍।’ इजोतेसँ भकइजोतो आ अन्‍हारो जनमैए। गाेवि‍न्‍दक जेहेन प्रश्न अछि‍ ओकर उत्तर ओ सम्‍हारि‍ सकत? मन सकपकेलनि‍। सकपकेलनि‍ ई जे अपनो तँ मनक संकल्‍पक प्रश्न अछि‍। अपनो तँ अखनि‍ तक ई नै निर्णए कऽ पेलौंहेँ, जे बच्‍चाक केहेन प्रश्नक उत्तर तत्काल देल जाए आ केहेन प्रश्नक उत्तर, खेत जकाँ जोति‍, कोड़ि‍ बीआ छीटि‍ छोड़ि‍ दि‍ऐ। अपनो तँ अखनि‍ तक यएह ने करैत एलौं जे कोनो प्रश्नक उत्तर केकरो कहए लगलि‍ऐ। चूक भेल, ई बात सत् जे दस बर्खक बच्‍चा होइ आकि‍ बारह बर्खक, ओकर नमहर प्रश्नक उत्तर दसे-बारह बरख धरि‍ देब नीक कि‍ अधला? मन घोर-घोर हुअ लगलनि‍। मुदा जेना कि‍यो धक्का मारलकनि‍ तहि‍ना चकोना होइत चौंकैत देखलनि‍ तँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे अखनि‍ तँ बच्‍चा सबहक बीच छी। ओकरे मुँहक मूङकेँ ने मुङबा बना परसब। अपन जँ बँचल रहत तँ ओ पछाति‍ बाँटब। दही-चीनी भोजक पछाति‍ए बाँटब नीक होइ छै। जँ से नै होइ छै तँ अनेरे लोक कि‍ए पचताइए जे बेरक मारल बगूर तर। दुनू कँटाह। मुदा समए बलवान होइ छै, माछ-मासु छोड़ि‍ बबाजी भेलौं जे बि‍लाइ जकाँ गोरस चाटब, से ले बलैया ओहो लोहे महिंसक भऽ गेल। मुदा कि‍ करबै भाय, अपन हारल कनि‍याँक मारल जँ कि‍यो बजबे करत तँ ओकरा नीक के कहत। कनि‍याँक मारब तक अबैत-अबैत आत्‍मानन्‍द बाबाक मन पोखरि‍क पानि‍ जकाँ प्रज्ञ भेलनि‍। बजला-
बाउ गोवि‍न्‍द, तोहर प्रश्न बड़ हल्‍लुक आ बड़ झुझुआन बूझि‍ पड़ैए मुदा उत्तर भारी अछि‍, से...।
बाबाक प्रश्न सुनि‍ सभ बच्‍चाक कान ठाढ़ भेल। साँझू पहरमे जहि‍ना सभ नढ़ि‍या पण्‍डि‍त मि‍लि‍ एक्के बेर अन्‍हारक हल्‍ला करैए तहि‍ना सभ बच्‍चाक मनमे। मन पड़लनि‍ जे केराक गाछक खोंइचा माने डपोरक डोरी बनैए, जइसँ कोनो वस्‍तु बान्‍हल जाइए, तहि‍ना ने ओकर बि‍नु बूझल बातक डोरी बना बालो-बोधोकेँ बन्‍हैक जरूरत अछि‍। वि‍चारमे एकरूपता एलनि‍। लगले मन घूमि‍ डपोरक डोरी बनै केना छै, तइ दि‍स गेलनि‍। ऊपर जेते सूखल अछि‍ ओतैसँ चीरि‍‍ कऽ जीतहा चीरैत ने जड़ि‍मे तोड़लो जाइए आ छोड़ौलो जाइए। मुस्‍की दैत बजला-
बौआ सभ। आमक गाछीमे एकटा बगवार बती लऽ कऽ मचानपर सूतल रहै, अन्‍हार राति‍मे चोर सभ आबि‍, पहि‍ने ओकर बतीए चोरा लेलक आ पछाति‍ ओकरे बतीकेँ हड़पि‍ आमो बीछि‍ लेलक आ बतीओकेँ हड़पि‍ चोर बतीक मूड़न बि‍आह कऽ लेलक। तइ दि‍नसँ चोरक चोरबती गृहवासू भऽ गेल।
बाबाक खि‍स्‍सा सुनि‍ बच्‍चा सबहक बीच रंग-रंगक खेल पसरि‍ गेल। कि‍यो चोरक बुधि‍यारीक हि‍साब जोड़ए लगल जे केना भेल। तँ कि‍यो जोड़ैत जे गुण भेल जे चोरबतीए चोरौलक। ओहेन सूतलकेँ तँ जाने छोड़ि‍ देलक से गुण रहल। कि‍यो बाबाक नजरि‍पर नजरि‍ रखने जे‍ बाबा असली जगरनाथ बाबक दर्शन करौलनि‍ आकि‍ ऊपरमे राखल झपनाक? जेना-जेना बाबाक नजरि‍ आगू दि‍स खि‍ड़नि‍ तेना-तेना मनमे धि‍क्कार उठनि‍ जे आगू तकक बात कहि‍ देने अपन वि‍चारो आ रस्‍तो  बनौत। मुदा बाबाक मनक चटपटी देखि‍ गोवि‍न्‍द बूझि‍ गेल जे बाबा कि‍छु बाजए चाहै छथि‍, तइ बि‍च्‍चेमे अपन बात कि‍ए ने रखि‍ दि‍यनि‍। बाजल-
बाबा, नीक जकाँ नै बूझि‍ पेलौं जे अपने की कहलि‍ऐ?”
गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा बाबा अँकलनि‍। आँकि‍ कऽ गुलेतीक गोली जकाँ ठि‍कि‍आ कऽ बजला-
बौआ गोवि‍न्‍द, जेते दूर तक सुजोत चलैए, तेते दूर तक कुजोतो चलैए, केतौ-केतौ बेसीओ चलैए आ केतौ-केतौ कमो चलैए, मुदा से नै। वएह सुजोत कुजोतक बती बनि‍ चोरबती बनि‍ गृहवासू भऽ गेल।
बाबाक बात सुनि‍ अपन जि‍द्दपन धेने गोवि‍न्‍द बाजल-
बाबा, अखनि‍ सुनलाहा भेल, आँगन जा जखनि‍ ओकरा उचारब-वि‍चारब, तखनि‍ हँ-नि‍हँस काल्हि‍ कहब।
गोवि‍न्‍दक जि‍ज्ञासा देखि‍ आत्‍मानन्‍द बाबाक मनमे हौहटि‍-कलकलि‍ कुरि‍यबैत काल जकाँ सुआस पड़लनि‍। बजला-
बाउ गोवि‍न्‍द, काल्हि‍ले काल्हि‍ अछि‍। आइ ठीक छह कि‍ने?”
हँसैत गोवि‍न्‍द बाजल-
हँ बाबा।
¦¦¦


६ अगस्‍त २०१४

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