Pages

Saturday, August 23, 2014

सनेस (क. जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

सनेस



तुलसी बाबा जहि‍ना हलसि‍ कऽ रामायण गढ़ि‍ तूल देलनि‍ जे, “हरि‍ अनन्त हरि‍ कथा अनन्‍ता” तहि‍ना ने “मनु अनन्‍त मनुआँ अनन्‍ता” सेहो होइ छै। एहने अनन्‍तमे पण्‍डि‍त कक्काक जि‍नगी सेहो वौआ गेलनि‍। जेकर ओरे-छोर ने रहत तइमे लोक ने हेराएत तँ हेराएत कइमे। तहूमे जे हेराइबला रहैए ओ तँ हेराइते अछि‍। घरोमे लोक हेरा जाइए। मुदा बि‍नु ओर-छोरक जे अछि‍ तइमे लोक हेरेबो केना करत। हेराइते बेर ने हरण होइ छै। जँ सीते नै हेरैतथि‍ तँ हरण कि‍ए होइतनि‍। ओ जँ केतौ बौआइत रहत तँ ओही अनन्‍तमे कि‍ने। तखनि‍ ओ हेराएब केना भेल। हेराइ तँ लोक ओतए अछि‍ जेतए एकसँ दोसरमे चलि‍ गेल, रामक सङ्ग छोड़ि‍ सीता जेना रावणक सङ्ग गेली। मुदा एक छोड़ि‍ दोसर जेतए अछि‍ए नै तेतए लोक जाएत केतए। ओहीमे ने जहि‍ना सभ अछि‍ तहि‍ना ओहो अछि‍। पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो तहि‍ना भेलनि‍। बच्‍चेसँ चकि‍तगर रहथि‍, पढ़ै-लि‍खै दि‍स मन झूकलनि‍। पढ़ै-लि‍खैक एकछाहा भाषो आ वि‍षयो, तँए पण्‍डि‍त काका संस्‍कृते वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खौलनि‍। ओना पनरह आनासँ बेसीए पढ़ै-लि‍खैसँ दूर हटल अछि‍। धरतीसँ अँकुरि‍ भाषा-साहि‍त्‍यक गाछ बनल अछि‍। जइमे गमैआ वैद जकाँ, जे अमेरि‍का, इंगलैंडक दवाइसँ उपचार नै करि‍, बोन-झार, खेत-पथारक जड़ी-बुटी चुनि‍ औषध बना रोगक उपचार करै छथि‍, जे एक धारा बनि‍ धरतीकेँ सींचैए तहि‍ना संस्‍कृतो भाषा-धारा छी। तेतबे नै अदौक धार छी, जे अखनो बहैए। मुदा कोनो धारा ताबे तक अपन समुचि‍त गति‍ए प्रवाहि‍त होइत रहैए जाबे तक ओकरा अनुकूलता भेटैत रहै छै। जेना इति‍हासक मध्‍य कि‍छु राजो शासनक अछि‍। तँए ओइ कालखण्‍डमे भाषो-साहि‍त्‍य फुलाएल फड़ल। मुदा धरतीपर बहैत धारक धारा आ वि‍चारक दुनि‍याँमे बहैत धाराक बीच दूरी तँ कि‍‍छु भाइए जाइ छै, मुदा ओ दूरी पाटत के? पटाएत केना? जे से सि‍ञ्चि‍त भऽ रूप-सौन्‍दर्य पसारत। ‘लघु सि‍द्धान्‍त कौमदी’केँ पण्‍डि‍त काका तेना कऽ धुथुरक पीसल बीआ मि‍ला चटलनि‍ जे पढ़ैक नि‍शाँ लगि‍ गेलनि‍। आन काज की भेल आ की नै भेल तैपर ओते धि‍यान नै दऽ पढ़ैपर नजरि‍ गड़ल रहै छेलनि‍। तहूमे गीताकेँ तँ चाटि‍ए गेल छला। पण्‍डि‍त काका आ अपन बीच एतबे सम्‍बन्‍ध अछि‍ जे जखनि‍ नि‍चेन (काजसँ) रहै छी तखनि लगमे आबि‍ बइसै छि‍अनि‍ तँ रामायण, गीता, महाभारतक गप-सप्‍प कहै छथि‍। सुनैकाल सुनै छी। मुदा काज (जि‍नगीक उद्यम) तँ अपने जुति‍ए ने करै छी। अपना जुति‍ए कि‍ करै छी काजक जुति‍ए करै छी। काजेक जुति‍केँ कन्‍हेठ अपन जुति‍ लगबै छी। काजोक तँ अपन जुति‍ होइ छै। मुदा समाजक लोक पण्‍डि‍त काकाकेँ नि‍शाँएल थोड़े बुझै छन्‍हि‍, बुझै तँ छन्‍हि‍ भूतलगुए। नि‍शाँएल तँ ओतए ने भेल जेतए सार-असारमे बदलि‍ सारीलक स्‍वरूप धरैत। मुदा ओ तँ जि‍द्दक आड़ि‍एपर बैसल छथि‍। मानि‍ नेने छथि‍ जे जहि‍ना ओ (समाजक) सभ नै सुनत तहि‍ना की‍ अपन मुँह सीब लेब। जेकर जे काज रहतै, रस्‍तो चलैत रहब आ बजि‍तो रहब, सुनि‍ कऽ बुझलक तँ बड़बेस नै तँ हमहूँ बजलौं ओहो सुनलक। सुनै आ बुझैमे भेद छै। भेद ई छै जे कि‍छु करैक उदवेग बुझला पछाति‍ अबैत, मुदा सुनब सुनब भेल। सुनि‍ओं सकै छी अनसुनि‍ओं कऽ सकै छी।
ओना पण्‍डि‍त कक्काक जनम पाँच बीघाबला कि‍सान परि‍वारमे भेल छन्‍हि‍। शुरूहेसँ (बच्‍चेसँ) पण्‍डि‍त काका माता-पि‍ताकेँ जनमदते नै जि‍नगीक जनमदाताक गुरु सेहो मानै छथि‍। जनमदते ने जनमबैक बाट पकड़ा जनमदाता बनबै छथि‍, तँए गि‍रहस्‍तीक सभ लूरि‍ पि‍तासँ सीखि‍ अपन जीवन-जापन करै छथि‍। गीताक तेते अध्‍ययन केलनि‍ जे कि‍छु लि‍खैक वि‍चार उगना महादेव जकाँ उगलनि‍। पचपन बर्खक अवस्‍थामे कि‍ताब लि‍खि‍ छपबौलनि‍। गुण रहलनि‍ जे दुइए सए छपौलनि‍ नै तँ पाँच कट्ठाक बदला बीघा चलि‍ जइतनि‍। ने कि‍यो कि‍ताब कीनलकनि‍ आ ने अपने केतौ बेचए गेला।
जहि‍ना कोनो बेमारी परि‍वारमे भेने परि‍वारबलाक नजरि‍ ओइ दि‍स बढ़ै छै, बाढ़ि‍ एलापर बाढ़ि‍क दुश्‍मन दि‍स बढ़ै छै, रौदी भेलापर रौदीबाबाक सराध-वि‍टाइर केना हेतनि‍, तइ दि‍स बढ़ै छै, इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍, तहि‍ना कि‍ताबक छति‍ पण्‍डि‍त कक्काक मनकेँ पण्‍डि‍तौपन दि‍स रेड़लकनि‍। रेड़ पड़ि‍ते मन फुड़फुड़ेलनि‍ जे जे कि‍ताबमे समए लगौत ओ समए बेकार चलि‍ जाए तँ जरूर केतौ रस्‍तामे आँकर-पाथर ढेरियाएल अछि‍। प्रश्न उठि‍ते, जहि‍ना अस्‍पतालमे रोगीक पहि‍ल जाँच करैत डाक्‍टर वि‍भागीय वार्ड दि‍स पहुँचा दैत तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो भेलनि‍। मुदा लगले ऊपर-झपकी भेलनि‍ जे एहेन प्रश्नसँ एतेटा जि‍नगीमे भेँट कहाँ कहि‍यो भेल छल, फेर भेलनि‍ जे एहेन काजे दोसर कोन केने छेलौं जे भेँट होइत। तँ की काजे बुधि‍ जनमबैए आकि‍ काजकेँ बुधि‍ जनमबै छै। जेते पण्‍डि‍त कक्काक पण्‍डि‍ताउ बढ़ल जान्हि‍ तेते पसि‍ना देहसँ नि‍कलए लगलनि‍। पसि‍ने ने दुनि‍याँक पसन्‍द भेल। जेते पसि‍ना छुटत तेते सुख भेटत। मुदा लगले मन अपना दि‍स पाछू उनटलनि‍। उनटलनि‍ ई जे पचपन बर्खक मेहनति‍क फल उपयोगी नै भेल। जँ फले खट्टा भऽ गेल तँ जि‍नगी केना मीठ भेल। जँ जि‍नगी मीठ नै भेल तँ अनेरे कि‍ए एते समैकेँ शरबत बना पीब लेलौं। मुदा शरबतो तँ परखए पड़त जे सोझहे मधुरस छी आकि‍ भङ्गरस। अपनापर ग्‍लानि‍ जगलनि‍ जे अपनेमे अपने गड़ए लगला। पि‍ताक देल जत्‍था-जमीन बोहा पोथी लि‍खलौं आन बुझह आकि‍ नै बुझह मुदा अपने तँ बुझि‍ते छी जे सएओ टि‍प्‍पणीक सङ्ग गीता पढ़लौं। तेकरा नेबो जकाँ नि‍चोरि‍ ने पोथीक सृजन केने छेलौं। तखनि‍? पोथी मौलि‍क भेल की‍ समीक्षा। जँ समीक्षा भेल तँ सृजन केना भेल? जँ सृजन नै केलौं तँ सि‍रजलौं की जे लोक पुछैत। फेर जेना ग्‍लानि गरए लगलनि‍। ग्‍लानि‍सँ गड़ैत दुनि‍याँमे प्रवेश केलनि‍। जेते लि‍खि‍नि‍हार तेते रङ्गक वि‍चार। एना कि‍ए भेल? जे व्‍यासजी गीता लि‍खि‍ खुट्टा गाड़ि‍ देलनि‍। जे सर्वोत्तम जि‍नगी जीबाक सूत्र लि‍खि‍ सुतिआ लेलनि‍, मुदा एते वि‍चारक की कारण? प्रश्न मनकेँ रोकि‍ कहलकनि‍-
अनेरे जहि‍ना पचपन बरख बौएलौं तहि‍ना छपनमो बर्ख बौआइते ढहनाएब। हूबा करू। फेर पढ़ू फेर लि‍खू। मुदा हूबटुटु बनि‍ जि‍नगी नै जीबू। 
गीताक समीक्षा लि‍खि‍ वि‍षयकेँ अन्‍त करैत लि‍खलनि‍-
जँ पूजी जगदम्‍ब तँ आनक पुजन व्‍यर्थ। नै पूजी जगदम्‍ब तँ आनक पुजन व्‍यर्थ। सभ जि‍नगीक खेल छी, जेहेन जि‍नगी तेहेन वि‍चार, तखनि‍ अनेरे लोक ि‍कए मीठहा छोड़ि‍ खटहा फल खा खटही बनत।
मन मानि‍ गेलनि‍ जे दुसैएबला काज तँ करबे केलौं, कि‍ए ने कि‍यो दुसत जे कि‍ताब छपैक प्रेस एते सस्‍ता भऽ गेल तँ दुइए सए कि‍ताब छपबैमे एते कि‍ए खर्च भेल? मुदा भाय, जेते मोट-मोट कि‍ताब पढ़ि‍ नेने छेलौं तइसँ पातर केना लि‍खि‍तौं। गीता पढ़ि‍ गीते आकारक पोथी लीखि‍ पाँच कट्ठाक दाम सबा लाख गमेने छेलौं, मुदा तहि‍ना जँ अहाँ अपन गतातीक प्रेसक खर्च आ सए पृष्‍ठक कि‍ताब बुझैत होइएे, ई दीगर भेल। मुदा से नै तीन हजार पृष्‍ठक पोथी, तेकरा रैक्सि‍नक गत्तासँ गतानि‍ छपबौने छेलौं, अपन बोइन-बुत्ता छोड़ि‍ पनरह सए मुल्‍यो रखने छेलौं। मुदा सभटा पड़ले रहि‍ गेल। ओना अखनो बड़ दुख नहि‍येँ अछि‍, कि‍एक तँ कोनो की हमरेटा पड़ल रहल आकि‍ आनो-आनकेँ अहि‍ना पड़ल छन्‍हि‍। जखनि‍ आनो-आनकेँ भेल तखनि‍ तँ यएह ने नीक भेल जे जे भेल से सभ मि‍लि‍ एकेबेर छातीमे मुक्का मारि‍, कनैक लय बदलू। जहि‍ना पहाड़ी रस्‍ता टपला पछाति,‍ समतल जमीनक रस्‍ता आ गाछक छाहरि‍ भेटलापर जे मन हरखि‍त होइ छै तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ सेहो भेलनि‍। हरखि‍त मन होइते गर गड़ेलनि‍। गर गड़ाइते मन हनहनेलनि‍ जे जहि‍ना गमैआ वैद गामेक खेत-पथार, वाड़ी-झाड़ी, बोन-झार, गाछी-कलम आ बँसबाड़ि‍सँ जड़ी उखाड़ि‍ ओकरा जड़ि‍या औषध बना रोगक उपचार करै छथि‍ तहि‍ना करब। ठीके पि‍ताजी कहै छला जे मौसमक अनुकूल सभकेँ चलक चाहि‍एे। जेहेन समए तेहेन काज जेहेन काज तेहेन भोजन, तेहेन रहन-सहन बनेनहि‍‍ ने मौसमक सङ्ग चलि‍ पेबै। तँए बरहमसीआ खेतीक प्रयोजन पड़ै छै।
सोचि‍ते-वि‍चारि‍ते पण्‍डि‍त कक्काक मन मानि‍ गेलनि‍ जे नव सि‍रासँ (नव शीर्षकक नाओंसँ) कि‍ताब लि‍खब। मुदा लगले मनमे उठलनि‍ जे पहि‍लुक पोथी तीन हजार पृष्‍ठक छल, तँए काज तँ ओइसँ बेसी लि‍खने बढ़ि‍याँ भेल। जँ तीन हजार पृष्‍ठसँ आगू चारि‍ हजार पृष्‍ठक लि‍खब तखनि‍ ने तरका (तीन हजारक) दबाएत। जँ से नै हएत तँ अगि‍ला ओहि‍ना अलगले रहत कि‍ने। झोंकाएल मन पण्‍डि‍त कक्काक झोंकमे, पुर्बा झोंकमे पछि‍म आ पछि‍या झोंकमे पूब दि‍स जहि‍ना गाछो-बि‍रि‍छ झूकि‍ जाइत तहि‍ना भेलनि‍। मन पड़लनि‍ अपन ओ दि‍न जइ दि‍न गीताकेँ (महाभारत अंश गीता) जि‍नगीक मुँहक गीत गबैत सुनने रहथि‍। कानक सुनल, कोनो मुँहक बाजल, झूठ केना हएत। मन ठमकलनि‍, आगू बढ़ैसँ जाँघ थरथरेलनि‍। थरथरेलनि‍ ई जे एक तँ जि‍नगी भरि‍क पढ़लाहा हेरा रहल अछि‍, दोसर सि‍रा पकड़ि‍ लि‍खैक अछि‍, पचपन बर्खक उमेरक तँ कोनो मोजरे ने भेल आ जँ कहीं अगि‍लो सएह भेल, तखनि‍ तँ ओहन आमक गाछ आकि‍ कोनो आन फलक गाछ जकाँ जे छाँह तर पड़ि‍ कहि‍यो फुलेबे ने करैए जेकर आम जकाँ मोजर हएत। जखनि‍ मोजरे ने तखनि‍ फल केहेन फड़त। मुदा काजो तँ असान नहि‍येँ अछि‍। आगू-पाछू देखैत वि‍चारए लगला। आब की उपए? नव शि‍रासँ नव बात बि‍ना बुझने-गमने केना आगू बढ़त? ई तँ नै जे सभ पञ्च लबरे भऽ जाए। जँ आगू नै बढ़त, तँ कलमक धार केना फुटत?  जँ कलमेक धार नै फुटत तँ सादा कागतपर चारि‍ हजार पृष्‍ठ उतरत केना? मुदा केकरोसँ पुछबो केना करब? सभ तँ अपने बेथे बेथाएल अछि‍। दि‍न-राति‍ जे परि‍वार ले (बेटा-बेटी, पत्नी) दौड़ रहल अछि‍ ओकरा एते पलखति‍ कहाँ छै जे अपना परि‍वारमे बैसि‍ परि‍वारक तानी-भरनी ठीकसँ चलौत। जाबे सुतकेँ तानी-भरनीक बीच तानि‍ कऽ नै तनि‍याएल जाएत ताबे ओ अम्‍बर केना बनत? प्रश्न ई नै जे पुछबो केना करबै? प्रश्न ई जे केकरासँ पुछबै? की गीताक टीकाकारसँ आकि‍ व्‍यास रचनाकारसँ। नै चारि‍ हजार पृष्‍ठक कि‍ताब लि‍खैमे अदहा वि‍चार गीताक लेब, आ अदहा समाजक। जँ से नै करब तँ गीताक गुण तरेतर हृदैकेँ तेना सि‍हरा कऽ सड़नि‍ करए लगत जे देहे-हाथ कठुआ जाएत। काजे ने कएल हएत।
दू साल बीत गेल। सौन मासक हरि‍अर चास गाममे लहलहाइत। नि‍च्‍चे-ऊपरे खेती भऽ गेल। जे खेत जेना रोपल गेल से खेत तेना हरि‍अरि‍ओ बेसी पकड़ैत गेल, मुदा लगक रोपल (काल्हि‍-परसू) कोनो पतसुखू, तँ कोनो धड़सुखू तँ अछि‍ए। चैत-बैसाखक सुखाएल अधसुखाएल धारो-धुर आ डाबरो-पोखरि‍ फुला गेल। पतझड़ गाछ-बि‍रि‍छ सौनक सोहनगर समीर आ शीतल सलि‍ल पाबि‍ अपन वस्‍त्रे झूकि‍ गेल। काल्हि‍ साँझमे पण्‍डि‍त कक्काक पाँच हजार कि‍ताब गाड़ीसँ उतरलनि‍। पहि‍ल साँझ दीप नै बरल तँए झलअन्‍हारमे बण्‍डल खोलब नीक नै बूझि‍ सोझहे थकि‍आ कऽ कोठरीमे रखि‍ लेलनि‍।
खेला-पीला पछाति‍ जखनि‍ ओछाइनपर पण्‍डि‍त काका पड़ला आकि‍ पछि‍ला कि‍ताब (गीताक पोथी) मन पड़लनि‍। मन पड़ि‍ते कबुल लेलनि‍ जे पि‍ताक सम्‍पति‍ नष्‍ट केलि‍यनि‍। मुदा कननौं तँ नहि‍येँ हएत? जि‍नगी सदति‍ हार-जीतक बीच चलि‍ते अछि‍, कि‍यो अफसर नि‍चलाक ऊपर रोब झाड़ैए तँ ऊपरकाक रोब सहबो करैए। कि‍ताबकेँ खाली बेपारक सौदा नइ बना जि‍नगीक सौदा बना जि‍नगीक बीच रखि‍ परि‍चएओ-पात देब नीक हएत। जँ से नै परि‍चए-पात देबै तँ एहनो तँ भाइए सकैए जे ओइ दि‍स पढ़नि‍हारक नजरि‍ए ने जाए। दुनूकेँ (कि‍ताबक परि‍चयो आ बि‍करीओ) नजरि‍मे रखि‍ पण्‍डि‍त काका निर्णए केलनि‍ जे कि‍ताब लऽ कऽ दोसराक दरबज्‍जापर परि‍चए करा कऽ ढौआ लेब। मुदा तइसँ अलग दोसराइत के? अदहासँ बेसी लोक कि‍ताब पढ़ैबला नै छथि‍। तखनि‍? जँ पढ़नि‍हारो परि‍वार अछि‍ओ आ कोनो रूपक सम्‍बन्‍ध नै रहल अछि‍ तैठाम केना जाएब। आन कोनो दरबज्‍जापर जेबाक रस्‍ता होइ छै, जइ रस्‍ते लोक जाइए। मुदा लगले जेना भक्क टुटलनि‍। भक्क ई टुटलनि‍ (जेना भकमोड़क रस्‍ता केकरो देखल रहै छै) जे साहि‍त्‍य प्रेमी जे पाठक छथि‍, ओ तँ अङ्गीते भेला। सामाजि‍क अङ्गीतो तँ छथि‍ए तैसङ्ग परि‍वारि‍क अङ्गीत सेहो छथि‍ए, दस रङ्गक पोथी पाँच हजारक अछि‍, पँच-पँच सए भेल, जखनि‍ कि‍ लेबाल (कि‍ताब कीनि‍नि‍हार) पाँचो हजारसँ ऊपर छथि‍ तखनि‍ काज असाध केना भेल। लगले मन कि‍ताबक छपाइ-कढ़ाइ दि‍स बढ़लनि‍, हाथक लि‍खल लोहाक मशीनमे गेल आ लोहासँ नि‍कलि‍ हाथमे औत, अनेरे दुनूक बीच तीन बेर चढ़ा-ऊतरी भेल। छूट-छाट, भूल-चूक भेले हएत। तैबीच जँ दोहरा कऽ कि‍ताब पढ़ए लगब से सम्‍भव नै, कि‍ताबक थाक तौलाक भात थोड़े छी जे एकटा चाउर टोबने बूझि‍ जेबइ। एका-एकी छपाइ भेल, तँए एकक भूल-चूक दोसरोमे हएत आकि‍ दोसरो भूल-चूक अछि‍, बूझब कठि‍न अछि‍। तँए नीक ई जे सभकेँ एके नि‍वेदि‍त जे भूल-चूक भेल हुअए, से चेतौनी देब जइसँ आगू चेतल जेतइ।
पड़ले-पड़ल पण्‍डि‍त काका ऐठाम पहुँच गेला जे कि‍ताब लऽ घरसँ नि‍कलब। मुदा घरसँ नि‍कलैसँ पहि‍ने यात्राक दि‍शा तँ देखए पड़त। जँ से नै देखब तँ अनेर कुयात्रा हएत, जखने कुयात्रा भेल तखने गाड़ी जकाँ काजो दब-उनार भऽ जाएत। जखने दब-उनार भेल तखने गाड़ी उनटैक सम्‍भावना आबि‍ जाइए। जखने सम्‍भावना औत तखने अथाह दि‍स बढ़ब भेल। फेर मोड़पर अबि‍ते मन घुरलनि‍। अथाह तँ समुद्र होइए, पोखरि‍-झाँखरि‍ तँ थाहल होइए, तेकरो नपैले तँ लोक फैदम बनाइए नेने अछि‍ तखनि‍ सम्‍भावि‍त केना भेल? ई बात अछि‍ जे मौसमक (समैयक) गति‍-वि‍धि‍ (रौद-हवा इत्‍यादि)‍ रस्‍ताक बाधक बनैए तँ वि‍परीत दि‍शामे बढ़ने चलैमे सुभि‍ता होइत, मुदा जँ काज धारक सि‍रा जकाँ हुअए तखनि‍ छोड़ब नीक हएत आकि‍ बढ़ि‍ कऽ करब नीक हएत। दि‍न-बेरागनक वि‍चार काजक हि‍साबे नीक होइ छै। निर्णएक लग पहुँचैसँ पहि‍ने मनमे एलनि‍ जे दुनि‍याँमे दोसराइत हुअए आकि‍ नै मुदा सङ्गीक सङ्गि‍नी तँ लगेमे छथि‍, कि‍ए ने पहि‍ल वि‍चार हुनकेसँ लऽ ली। आखि‍र ओहो तँ ओहि‍ना ने सङ्कल्‍प केने छथि‍‍ जे जि‍नगी भरि‍ घरसँ बाहर धरि‍ वि‍चारक सङ्ग रहब जे जि‍न्‍दा दि‍ल, दि‍ल खोलि‍ सङ्कल्‍प जि‍नगी भरि‍क लइ छथि‍। पोखरि‍क पानि‍ जकाँ पण्‍डि‍त कक्काक मन थीर भेलनि‍। बजला-
सूतल छी?”
‘सूतल छी’ सुनि‍ रेशमा सगबगेबो ने केली। एक तँ ओहुना गमैआ चौकीदारकेँ तीन हाक देबाक अधि‍कार छै, तँए पहि‍ल हाकक जवाब देब जरूरीओ तँ नहि‍येँ अछि‍। फेर मनमे नाचि‍ उठलनि‍, हो-न-हो जँ कहीं एहेन वि‍चार मनमे आएल होन्‍हि‍ जे एक बेरसँ दोसर बेर साँपक मंत्र जकाँ, नै डाकनि‍ देल जाइ छै, तखनि‍ नै कि‍छु बाजब उचि‍त नै हएत। मुदा उत्तरक समैकेँ हुसैत देखि‍ रेशमा वि‍चारलनि‍ जे बोलसँ नै, खोंखी कऽ कऽ जगैक सूचना देबनि‍। अपनो मन कहतनि‍ जे भरि‍सक भकुआएलमे नै सुनलनि‍। मुदा लगले भेलनि‍ जे, लोक जगलो ओछाइनपर पड़ल रहैए, मन जागल रहै छै, देह पड़ल छै, ओकरो तँ सूतबे ने कहल जाइ छै। केना ओ (पति‍) बुझलनि‍ जे सूतले हेती। अखने छनेक पहि‍ने ओ खा कऽ ओछाइनपर एला, तेकर पछाति‍ अपने खेलौं, बासन-कुसन, थारी-लोटा अखारि‍, कुत्ता-बि‍लाइ दुआरे सहि‍आइर कऽ रखि‍ अखने ओछाइनपर एलौं आ जखनि‍ ओ पहि‍ने एला तखनि‍ जगले छथि‍ आ पछाति‍ कऽ हम एलौं तँ नीन पड़ि‍ गेलौं। जरूर केतौ सोचमे शङ्का भऽ रहल छन्‍हि‍। हमहूँ तँ सगीए छि‍यनि‍ कि‍ने, कि‍ए ने कनी आगरे करि‍ थारीमे परोसि‍ दि‍यनि‍। मधुबनक मधुआएल मधुमाछी जकाँ भनभनाइत स्‍वरमे रेशमा बजली-
सूतलोमे बौअनी नै छूटल जे नि‍सभेर राति‍मे बपहारि‍ कटै छी?”
पत्नीक बातसँ पण्‍डि‍त काकाकेँ मनमे दुख नै भेलनि‍, खुशीए भेलनि‍। खुशी ई भेलनि‍ जे भरि‍सक कोंचा-कोंची अखनि‍ धरि‍ बन्हनइ छथि‍, तँए एहेन टाँस बोल भेलनि‍। मधुरस पीनि‍हारकेँ जहि‍ना मधुमाछीक डङ्कक दर्द मनसँ मेटा गेल रहै छै तहि‍ना पण्‍डि‍तो काकाकेँ मेटा गेलनि‍। बजला-
एकटा बेगरता भऽ गेल?”
‘बेगरता’ सुनि‍ पण्‍डि‍ताइन काकी अकचकेली। अकचकेली ई जे अरामोक अवस्‍थामे जि‍नका कोनो बेगरता होइ छन्‍हि‍, तँ जरूर ओइ बेगरता वस्‍तुक काजमे मन लगल छन्‍हि‍। बजली-
केहेन बेगरता अछि‍?”
जहि‍ना कि‍यो केकरो बेगरता सम्‍हारि‍ दुखकेँ सुखमे बदलि‍ दइ छै तहि‍ना पण्‍डि‍तो काकाकेँ भेलनि‍। बजला-
कि‍ताब लऽ कऽ नि‍कलब, से कोन दि‍न नीक हएत?”
पण्‍डि‍ताइन काकी बजली-
देखू, पुरुखक जतराकेँ ठेकान नै छै, मुदा काजक बेगरता हि‍साबे महि‍ला अपन दि‍न-बेरागन बना नेने छथि‍। जँ से नै छथि‍ तँ कि‍ए लगनक भदबा माफ अछि‍।
जहि‍ना कोनो जन्‍तु दोसरकेँ धरऽ दौड़ैत तहि‍ना पण्‍डि‍त काकाकेँ पत्नीक बोल धेलकनि‍। मनमे ठानि‍ लेलनि‍ जे काल्हि‍ कि‍ताब लऽ कऽ घरसँ नि‍कलि‍ जाएब। मुदा जाएब केतए? मात्रि‍क अङ्गीतक जाल छी नि‍च्‍चाँ-ऊपर तेना ओझराएल अछि‍ जे जँ कि‍यो सुनि‍नि‍हारो तँ कि‍यो नहि‍योँ सुनि‍नि‍हार (जे उम्रक वा सम्‍बन्‍धक) तँ छथि‍ए, तहि‍ना सासुरो भेल। नीक हएत जे जैठाम कम सम्‍बन्‍ध अछि‍ ओतए जाएब। टोहि‍यबैत पण्‍डि‍त काका सढ़ूआरए चुनलनि‍। सारि‍क घर छी, कहि‍या केतए सँ गपो-सप्‍प बाँकी अछि‍। बेटो हाइ स्‍कूलमे पढ़ि‍ते छन्‍हि‍, साढ़ू अपने ने नै पढ़ल छथि‍।
दोसर दि‍न पचासटा कि‍ताबक मोटरी बान्‍हि‍ कन्‍हि‍या पण्‍डि‍त काका सढ़ूआरए पहुँचला। दरबज्जापर पहुँचि‍ते साढ़ू आगूसँ मोटरी उतारि‍ चौकीपर रखि‍ गोड़ लगलकनि‍। गोड़ लागि‍ आङ्गनसँ लोटामे पानि‍ आनि‍ पएर धुआ पुछलखि‍न‍-
बड़ भारी मोटरी अछि‍।
कि‍ताब सुनि‍ सिंहेश्वर बेटाकेँ सोर पाड़ि‍ बजला-
बौआ, जाबे साढ़ू दरबज्‍जापर रहथि‍, ताबे अहाँक भार भेल। कि‍ताबक मोटरी छि‍यनि‍ से देखैत-सुनैत रहब।
बि‍च्‍चेमे सारि‍ आबि‍ एक चुटकी अबीर पण्‍डि‍त कक्काक आगूमे उड़ि‍या गेली। शान्‍त जगह देखि‍ पण्‍डि‍त काका सरबेटाकेँ पुछलखि‍न-
बौआ, की नाओं छी?”
श्‍याम सुन्‍दर।
कोन कि‍लासमे पढ़ै छी?”
दसमामे।
सुनि‍ पण्‍डि‍त काका बजला-
बौआ, जि‍नगी भरि‍क काजक मोटरी छी। अहीं सन लोकक खगता अछि‍, काजो-एहेन अछि‍ जे अहूँकेँ नीक आ हमरो नीक हएत।
दुनूक नीक सुनि‍ चकोना होइत श्‍याम सुन्‍दर बाजल-
से की?”
‘से की’ सुनि‍ पण्‍डि‍त कक्काक हृदैमे हि‍लकोर उठि‍ गेलनि‍। बजला-
बौआ, जँ बच्‍चा बच्‍चेसँ काजक लूरि‍केँ कन्‍हि‍यबैत चलए तँ ओ माए-बापक भारक मोटा कम करैत अपना ऊपर ठाढ़ भऽ जाइए। श्रवण कुमारक कथा सुनने हएब। केना सीक-पटैपर माए-बापकेँ कन्‍हेठ, चारू-धाम करए वि‍दा भेला। तँए अहूँ कि‍ताबो बेचू आ पढ़बो करू। काजसँ लजाउ नै जखने काजसँ लजाएब तखने लजबि‍जी जकाँ लाज-बीज रहि‍तो अकाजक दुनि‍याँक खाधि‍मे खसब। जेकरा काँटक दुआरे ने माल-जाल खाइए आ ने हाड़-गोड़ दुआरे लोके पुछै छै।
पण्‍डि‍त कक्काक वि‍चार सुनि‍ श्‍याम सुन्‍दरक हृदए सि‍हरि‍ गेल। सि‍ससि‍राइत बाजल-
मौसा, अहाँक वि‍चारसँ जेना देहक मासु फनफना रहल अछि‍, अपनोसँ भेँट-घाँट करैत करब। अखनि‍ अपनेक वि‍चार शि‍रोधार अछि‍।
¦¦¦


१६ अगस्‍त २०१४

No comments:

Post a Comment