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Sunday, August 3, 2014

डाक्‍टर बेटा (क.नन्‍द वि‍लास राय)

डाक्‍टर बेटा
रामकुमार चटिया सभकेँ पढ़ा अँगना एला तँ पत्नीकेँ कनैत देखलनि। देखिते ओ अकबका गेला। पुछलखि‍न-
की भेल?”
पत्नी कनिते कहलकनि-
छि‍टहीसँ बाबूजी फोन केने रहथि‍न, माएकेँ लकबा मारि देलक। बजबो-भुकबो ने करै छै।
रामकुमार पुछलकनि-
कहि‍या लकबा मारलक?”
पत्नी कहलकनि-
परसू रातिमे। बाबूजी बजै छेलखि‍न जे बँचत कि नै तेकर कोनो ठीक नै। अपना सभकेँ परसू रातिएसँ फोन लगबै छेलखि‍न मुदा फोने ने लगलनि।
रामकुमार बाजल-
तखनि तँ आइए छि‍टही जाए पड़त। माएक उमेरो तँ अस्‍सीसँ कम नै हेतनि‍। काेन ठीक कखनि‍ चलि‍ जेती। चलू दस बजीआ बस पकड़ि‍ ली। ओना तँ गहुमक दौनी करब जरूरी अछि‍। रहि-रहि कऽ मेघ अबै छै। जँ बरखा भऽ जाएत तँ बुझू गहुमक खिजानैत भऽ जाएत। थ्रेसरबला शम्‍भु कल्हुका नाओं कहने रहथि‍। मुदा अपना नै रहने दौनी केना हएत। शंभुकेँ फोन लगा कहि दइ छि‍यनि‍ जे हम काल्हि‍ नै रहब अन्‍तए जा रहल छी। ओतएसँ एला पछाति‍ दौन कराएब। अच्‍छा जे हएत से हएत। माएक जि‍ज्ञासा करब तँ जरूरीए अछि‍। हुनका सभकेँ के छन्‍हि‍। एकटा बेटो छन्‍हि‍ जे पटनामे डाक्‍टरी करै छथि‍न, परि‍वार लऽ कऽ ओतइ रहै छथि‍न।
छि‍टहीवाली बजली-
एकटा काज करू, खेखनाकेँ बजा गहुमक बोझ कड़ीआ दि‍यौ आ ऊपरसँ ति‍रपाल ओढ़ा झाँपि‍ दियौ। बरखो हएत तँ नोकसान नै हएत। छि‍टहीसँ कहि‍या आएब तेकर कोन ठेकान।
रामकुमार कहलकनि‍-
ठीके कहै छि‍ऐ। ति‍रपाल तँ अछि‍ए कनी मेहनति‍ करए पड़त। दसबजीआ बस नै पकड़ि‍ बरहबजीआ पकड़ए पड़त। गहुम झाँपल रहने चि‍न्‍ता नै रहत।
सएह केलनि। गहुमकेँ सेरि‍आ झाँपि‍ देल गेल। गौरकेँ पड़ोसीआक जि‍म्‍मा लगा, घरमे ताला मारि‍ दुनू परानी बेटाकेँ लऽ छि‍टही वि‍दा भेला।
  रामकुमार एकटा छोट कि‍सान। मात्र दू बि‍घा खेतक मालिक। ओना तँ एम.ए. पास छथि‍। मुदा बेरोजगार। कतेको बेर सरकारी नौकरी लेल परि‍यासो केलनि‍ मुदा ऐ जुगमे भगवान भेटब असान अछि‍ मुदा सरकारी नौकरी कठि‍न। की करता, खेतीक अलाबा चटि‍या सभकेँ टि‍शन पढ़ा कोनो धरानी अपन गुजर करै छथि‍। परि‍वारमे मात्र तीनिए‍ गोटे। दू परानी अपना आ एकटा दस बर्खक बेटा कन्‍हैया। मालो जालक नाआंेपर एकटा मात्र गौर। पत्नीओ मध्‍यमा परीक्षा पास केने मुदा ऊहो बेरोजगारे। नौकरी हेबो केना करितनि‍। जखनि‍ बी.ए., एम.ए.बला सभ झख मारैए तखनि‍ मैट्रि‍क-मध्‍यमाक कोन गप।
  छि‍टहीवालीक पि‍ता रवि कान्‍त जमानाक मैट्रि‍क छथि‍। हुनका एकटा बेटा आ एकटा बेटी। बेटाक नाआें फूल कुमार आ बेटीक सुमि‍त्रा। रवि‍ कान्‍त रजि‍ष्‍ट्री आॅफि‍समे मुनसीक काज करै छला। पहि‍ने तँ हुनका पाँच बि‍घा खेत छेलनि‍ मुदा आब घराड़ीक अलाबे मात्र दस कट्ठा बँचल छन्‍हि‍। बेटा फूल कुमार पटना मेडि‍कल कौलेजमे डाक्‍टर। नौकरीक अलाबे खानगीओ क्लिनीक खोलने छथि‍। प्राय: पाँच हजारक आमदनी भरि‍ दि‍नक छन्‍हि‍। मुदा एक नम्‍बरक मक्‍खीचूस आ अबेवहारि‍क। बहि‍न-बहनोइसँ कोनो सरोकार नै। माए-बाबू फोन-पर-फोन करैत रहै छन्‍हि‍ मुदा हुनका लेल धैनसन। गाम एबो केना करता। कमतीमे चारि‍ दि‍न तँ लगतै जे बीस हजारक अामदनीपर पानि‍ फेड़त, कहबीओ छै बाप बड़ो ने मैया सभसँ पैघ रूपैआ।
  झलअन्‍हारीमे राम कुमार परि‍वारक संग सासुर पहुँचला। गामक बीचमे सुमि‍त्राक पि‍ताक घर। अँगनामे पच्‍छि‍मसँ पूब मुहेँ एकटा ओ दोसर घर पूबसँ पच्‍छि‍म मुहेँ। ईंटाक देबाल आ ऊपरसँ खपड़ा। अँगनाक उत्तर आ दछि‍नसँ देबाल दऽ घेरल। उत्तरवरि‍ये कातसँ अँगना एबा-जेबाक रस्‍ता। दछि‍नवरि‍या देबालपर एकचारी जइमे भानस-भात होइए। पछवरि‍या ओसारपर चौकी जइपर सुमि‍त्राक माए सूतल छेली। रवि‍ कान्‍त बुढ़ीक पाँजरमे बैसल छला। ओसारि‍क बत्तीमे लालटेन टाँगल छल।
  राम कुमार सुमि‍त्रा आ कन्‍हैया अँगना पहुँचला। सभ गोटे रवि‍ कान्‍तक पएर छूबि‍ गोर लगलकनि‍। सुमि‍त्रा बेटी, जमाए आ नाति‍केँ देखि‍ रवि‍ कान्‍तक छाती सूप सनक भऽ गेल। ओ कुरसी आनि‍ जमाएकेँ बैसैले देलखि‍न‍। सुमि‍त्रा माएक पाँजरमे जा बैसली। रवि‍ कान्‍त चाह बनबैले चुल्हि‍ पजारए लगला। राम कुमार कहलखि‍न-
बाबूजी, अखनि‍ चाह बनेनाइ छोड़ि‍ देथुन पहि‍ने एतए आबथु।
माएक पाँजरमे बैसल सुमि‍त्रा माएकेँ ि‍हलबैत बजली-
माए, माए। माए गै, माए।
मुदा बुढ़ीक शरीरमे कोनो हरकति‍ नै भेलनि‍। सुमि‍त्राक आँखि‍सँ दहो-बहो नोर जाए लगल। हुनकर बाबूजी कहलखि‍न-
गै बताहि‍। आब माए थोड़े बजतौ। दू-चारि‍ दि‍नक मेहमान छि‍यौ। परसू राति‍मे जे खसलौ से खसलै छौ। कखनो-कखनो आँखि खोलि‍ चारू दि‍स तकै छौ। ठोरो पटपटबै छौ मुदा मुँहसँ अवाज नै नि‍कनि‍ पबै छै।
पि‍ताक बात सुनि‍ सुमि‍त्रा बोम फाड़ि‍ कानए लगली। राम कुमार ससुरसँ पुछलखि‍न-
डाक्‍टर भैयाकेँ फोन नै केलखि‍न?”
रवि‍ कान्‍त जवाब देलकनि‍-
परसूए जखनि‍ अहाँक सासु गि‍रल तखने फूलबाबूकेँ फोन केलौं तँ ओ कहलक, अखनि‍ बड़ बि‍जी छी, घंटा भरि‍ पछाति‍ फोन करब। अहाँ सभकेँ लगेलौं तँ सुइच‍ आॅफ कहलक।
रामकुमार कहलखि‍न-
हँ परसू मोबाइलक बैटरी चार्ज नै रहए। की कहबनि‍, हमरा गाममे ने बि‍जलीए छै आ ने जेनरेटरे। नरहि‍या नै तँ ि‍नर्मली जा मोबाइल चार्ज करबै छी। काल्हि‍ ि‍नर्मली गेल रहि‍ऐ तँ ओतइ चार्ज करौलि‍ऐ। अच्‍छा तँ, राति‍मे डाक्‍टर साहैबसँ बात भेलनि‍?”
रवि‍ कान्‍त कहलखि‍न-
राति‍मे फोन लगौलि‍ऐ तँ सुइच‍ ऑफ कहलक। भि‍नसर भेने जखनि‍ फोन लगेलौं तँ कनि‍याँ उठबैत कहली जे अखनि‍ एकटा रोगीमे लगल छथि‍। बारह बजे करीब फोन करए कहली। बारह बजे फोन केलौं तँ फूलबाबूसँ गप भेल। कहलक, कोनो डाक्‍टर बजा माएकेँ देखा दि‍यनु आ डाक्‍टर जे कहता से हमरा फोनपर बताएब। जौं पाइ-कौड़ीक अभाव हुअ तँ ताबए इंजाम कऽ काज करब पछाति‍ हम पठा देब। चौकपर सोम आ शुक्र दि‍न एकटा डाक्‍टर अबै छथि‍न। ओना तँ हुनकर क्लिनीक सि‍मराही बजारमे छन्‍हि‍ मुदा हाटे-हाट रमण जीक दबाइ दोकानपर रोगी सभकेँ देखै छथि‍न। काल्‍हि‍ सोम रहने डाक्‍टर साहैब लग गेलौं तँ देखलि‍ऐ भाड़ी भीड़। रोगी सभकेँ देखैत-देखैत साँझ पड़ि‍ गेलनि‍। सि‍मराहीओ जेबाक रहनि‍। मुदा रमणजीकेँ कहलि‍यनि‍ तँ डाक्‍टर साहैबकेँ कहलखि‍न जे हि‍नको बेटा डाक्‍टर छथि‍न तखनि‍ अपना ऐठाम एला। आला लगा देखलखि‍न, ब्‍लडपेसर सेहो जँचलखि‍न आ कहला जे बढ़ल छन्‍हि‍ जइसँ लकबा मारि‍ देलकनि‍। दबाइ सभ लि‍खि‍ कहलखि‍न चलए दि‍यौ। काल्‍हिसँ आइ धरि‍ दस बोतल पानि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍ मुदा कोनो सुधार नै भेलनि‍। खाली कखनो-कखनो आँखि‍ खोलि‍ तकैत रहै छथि‍न जेना केकरो खोजैत हुअ।
ई कहैत कहैत रवि‍ कान्‍तकेँ बुकौर लगि‍ गेलनि‍। आँखि‍सँ टप-टप नोर झहरए लगलनि‍। पि‍ताकेँ कनैत देखि‍ सुमि‍त्रा सेहो कानए लगली। रामकुमार फेरो पुछलकनि‍-
डाक्‍टर भैयाकेँ फेर फोन केलि‍यनि‍ आकि‍ नै?”
रवि‍ कान्‍त कहलखि‍न-
राति‍एमे फोनपर सभ बात बतौलि‍ऐ। तैपर फूलबाबू कहलक, काल्हि‍ दू बजै सि‍मराही जा डाक्‍टर साहैबकेँ सभ बात कहि‍हक। मुदा अपनासँ फूलबाबू फोन कऽ माएक हालति‍ नै पुछलक। जेते बेर फोन केलौं हमहीं केलौं।
बि‍च्‍चेमे सुमि‍त्रा पि‍ताकेँ पुछलखि‍न-
भौजीओ ने फोन केलक?”
रवि‍ कान्‍त बजला-
गै बताहि‍, जौं अपन जनमल नै पुछलक तँ आनक कोन बात। तोरा तँ सभ गप बुझले छौ जे केते कठि‍नसँ ओकरा पढ़ैलौं।
सुमि‍त्रा बजली-
से कोनो हमरा नै देखल अछि‍। अहाँक कमाइसँ पूरा नै भेल तँ माएक सभटा गहना-जेबर बेचि‍ कऽ दऽ देलि‍यनि‍। तहूसँ नै भेल तँ जमीनो बेचि‍ दऽ देलि‍यनि‍। हँ तँ सि‍मराहीवला डाक्‍टर लग गेलि‍ऐ तँ ओ की कहलनि‍?”
रवि‍ कान्‍त बजला-
कहलनि‍ जे लकबा मारने छन्‍हि‍। उमेरो अस्‍सीसँ ऊपरे हेतनि‍ से आब उठब मोसकि‍ल छन्‍हि‍। अपना जानि‍ जे सेवा कऽ सकबनि‍ से करि‍यनु।
  राति‍मे सुमि‍त्रा सबहक खेनाइ बनौलक। खेनाइ खा रामकुमार कन्‍हैया आ रवि‍ कान्‍त सुतैले चलि‍ गेला। सुमित्रा माएक पाँजरमे बैसल छेली। राति‍म एगारह बजे बुढ़ीक शरीरमे हरकति‍ भेल। आँखि‍ ताकि‍ बजली-
बौआ नै आएल? डाकडर बौआ हौ डाकडर बौआ?”
सुमि‍त्रा टोकलकनि‍-
माए हम छि‍यौ, सुमि‍त्रा गोर लगै छि‍यौ।
के, बुच्‍ची? कखनि‍ एलँह? पाहुनो एलखुन हेन?”
हँ ऊहो आएल छथि‍न आ कन्‍हैयौ आएल अछि‍।
तखने रवि‍ कान्‍त एलखि‍न आ राम कुमार सेहो।
गोर लगै छि‍यनि‍ माए।
रामकुमार बुढ़ीक पएर छुबैत कहलखि‍न।
नीक्के रहथु। जुग-जुग जीबथु। डाकडर बौआ नै आएल। आब ओकर मुँह नै देखबै। पोताक देखैक सि‍हन्‍ता नेनहि‍ मरि‍ जाएब।
रामकुमार कहलखि‍न-
हि‍नका कि‍छु नै हेतनि‍। हम भि‍नसरे डाक्‍टर भैयाकेँ फोन कऽ गाम बजाएब।
बुढ़ी कहलखि‍न-
अच्‍छा!
अच्‍छा कहि‍ते बुढ़ीकेँ हि‍चकी उठलनि‍ आ गरदनि‍ सि‍रमापरसँ गि‍र पड़ल। सुमि‍त्रा माए-माए कहैत कानए लगली। रामकुमार बुढ़ीक नारी देखैत बजलखि‍न-
माए चलि‍ गेली!

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