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Sunday, August 3, 2014

ऐना (कथाकार श्री नन्‍द वि‍लास राय)

ऐना
सरबेटाक बि‍आहमे गेल छलौं। ओ रेलवेमे इंजीनियर छथि। अलीगढ़ मुस्‍लि‍म वि‍श्ववि‍द्यालसँ इंजीनि‍यरि‍ंग केने छथि, नाओं ललन छियनि। देखै-सुनैमे बड़ सुन्नर छथि। गोर वर्ण पाँच हाथक जवान, दोहरा कद-काठीक छथि‍। जेहने सुन्नर तेहने पढ़ैओ-लिखैमे चन्‍सगर रहल छथि।
  ललन जीक बिआह पाँच लाख टाकामे बेरमा गामक बुचन ठाकुरक बेटीसँ तँइ भेल छल। बुचन ठाकुर मध्‍य वि‍द्यालयमे शि‍क्षक छथि‍। बेटीओकेँ इण्‍टर करबौने छथि‍न। हमर सार महेशकेँ लड़िकी पसि‍न भऽ गेलनि‍। बुचन ठाकुर चारि‍ लाख टाका तँ दऽ देलकनि‍ मुदा एक लाख बाँकी रहि‍ गेलनि‍। बुचन ठाकुर कहलखि‍न-
जे टाका बाँकी अछि‍ बि‍आहक दू दि‍न पहि‍ने भेट जाएत।
मुदा बि‍आहक दि‍न बारह बजे धरि‍ जखनि‍ टाका नै पहुँचल तँ सार हमरा कहलनि‍-
पाहुन, टाका तँ बुचन बाबू अखनि‍ धरि‍ नै भेजलखिन‍, की कएल जाए?”
हम कहलि‍यनि‍-
आइ बि‍आह छी। आब की कएल जा सकैए। बि‍आह तँ हेबे करत। भऽ सकैए जे बुचन बाबूकेँ कोनो मजबूरी भऽ गेल हेतनि‍। चलू शुभ-शुभ कऽ बि‍आह करेबाक लेल।
हम सभ दुल्हा आ बरि‍याती लऽ कऽ साते बजे साँझमे बेरमा पहुँच गेलौं। बरि‍यातीकेँ सबेर-सकाल पहुँचने गामक समाज आ सर-कुटुम बड़ प्रसन्न भेला।
  बुचन बाबू हमरा आ सारकेँ एकांतमे लऽ गेला आ कहलनि‍-
हम समैपर टाका नै भेज सकलौं तइले अपने लग लज्‍जि‍त छी। मुदा वादा करै छी, बेटी बि‍दागरीसँ पहि‍ने अपनेक बकि‍यौता पेमेन्‍ट कऽ देब।
हमर सार कि‍छु ने बजला। हम कहलि‍यनि‍-
ठीक छै अहाँ अपना वादापर काइम रहब। बि‍दागरीसँ पहि‍ने टाका दऽ देबनि‍।
बुचन बाबू बजला-
अबस्‍स, अबस्‍स। आब कनी अँगना जाइ छी। ति‍लकक ओरि‍यान लेल। ताबत बरि‍याती सभकेँ चाह-जलपान हुअ दि‍यौ।
बरि‍यातीक सुआगत नीक जकाँ भेल। खान-पानमे कोनो कमी नै भेलै। शुभ-शुभ कऽ बि‍आहो समपन्न भेल। मुदा बुचन बाबू अपना वादाक मोताबि‍क बि‍दागरीसँ पहि‍ने बकि‍यौता नै दऽ सकला। हमरा सारकेँ ऐसँ बड़ दुख भऽ गेलनि‍। बजला तँ कि‍छु नै मुदा अबैकाल समधी मि‍लान नै केलनि‍। हमरा ई बेवहार कनि‍को पसीन नै भेल। हम समझेबो केलि‍यनि‍ मुदा ओ हमर गप नै मानि‍ एकटा फटफटि‍यापर बैसि‍ कऽ चलि‍ गेला।
  हम कनि‍याँक बि‍दागरी करा सासुर पहुँचलौं। हमरा सारपर बड़ तामस छल। दरबज्‍जापर जाइते सन्‍तुलन बि‍गड़ि‍ गेल। सारकेँ देखि‍ते बजलौं‍-
अहाँकेँ कनिक्को मानवता नै अछि‍? अहाँ अबेवहारि‍क लोक छी। एके लाख टाका लेल अपन परि‍चए दऽ देलि‍ऐ। की कहत बेरमा गामक लोक आ बुचन बाबूक सर-कुटुम सेहो सोचलि‍ऐ? जखनि‍ बि‍आह भऽ गेल तँ समधी मि‍लन नै केने कथी लाभ भेटल।
तैपर महेश बजला-
यौ पाहुन, सभ एक-दोसरेकेँ उपदेश दइ छै। अपन मुँह कनी ऐनामे तँ देखि‍यौ।
ई सुनि‍ हम नि‍रूत्तर भऽ गेलौं। हमरा सामने गणेशक बि‍आहक दृश्‍य चमकि‍ उठल। आ हमरा बि‍आहक सभ गप मोन पड़ि‍ गेल। हमर बेटा गणेश मैट्रि‍कमे दू बेर फेल केने छल। तेसर खेपमे पास केने छल। आगू पढ़ैले कहलि‍ऐ तँ दि‍ल्‍ली भागि‍ गेल। दि‍ल्‍लीसँ तीन बर्ख पछाति‍ गाम आएल। पता चलल जे दि‍ल्‍लीमे एकटा कपड़ा दोकानमे नोकरी करैए। तीन बर्खमे एकोटा रूपैआ हमरा आकि‍ अपना माएकेँ नै देलक। हमर पत्नी कहलनि‍-
केतौ नीक लड़ि‍की देखि‍ गणेशक बि‍आह कऽ दियौ। भऽ सकैए जे बि‍आहक पछाति‍ सुधरि‍ जाए।
हम कहलि‍यनि‍-
एहेन अबण्‍ड लड़ि‍कासँ के अपना बेटीक बि‍आह करत। करबो करत तँ कि‍छु नै देत।
तैपर हमर पत्नी बजली-
कि‍छु नै देत तँ की हेतै। हमरा कि‍छु नै चाही। हमरा सि‍रि‍फ पुतोहु आनि‍ दिअ।
गणेशक कथा लेल दू-चारि‍ गोटे लग चर्चा केलौं। हमर सार महेशक परि‍याससँ कैथि‍नि‍या गाममे टुनटुन बाबूक बेटीसँ तँइ भेल। दू लाख टाकाक बात रहए। टुनटुन बाबू साधारण कि‍सान छथि‍न। ओ एक लाख टाका बि‍आहक पनरह दि‍न पहि‍ने दऽ गेला आ एक लाख बि‍आहक तीन दि‍न पहि‍ने देबाक वादा केलनि‍। मुदा बि‍आहक तीन दि‍न पहि‍ने रूपैआ नै पठेलनि‍। हम फोनपर कहलि‍यनि‍ जे अगर काल्हि‍ बारह बजे धरि‍ हमरा टाका नै पहुँचत तँ बरि‍याती लऽ कऽ नै पहुँचब। भोरे टुनटुन बाबू आ हुनक एक मि‍त्र आबि‍ पचास हजार देलनि‍।
हम पुछलि‍यनि‍-
बाँकी टाका कखनि‍ देब?”
ओ कहलनि‍-
बड़ परि‍याससँ ई पचास हजारक इंजाम केलौं हेन। आब जे बाँकी रहल से दुरागमनमे देब।
तैपर हम स्‍पष्‍ट कहि‍ देलि‍यनि‍-
जौं बि‍आहसँ पहि‍ने हमरा टाका नै देब तँ बि‍आह नै हएत।
टुनटुन बाबू आ हुनक मि‍त्र लाख नि‍होरा करैत रहला मुदा हम नै मानलि‍यनि‍। अंतमे टुनटुन बाबूक मि‍त्र कहलनि‍-
ठीक छै अहाँक पचास हजार टाका काल्हि‍ भोरे पठा देब। अहाँ बि‍आहक तैयारी करू।
  एक बीघा खेत भरना रखि‍ पचास हजार टाका भेजलनि‍। तखनि‍ हम बरि‍याती लऽ कैथि‍नि‍या पहुँचलौं।
  आइ हमरा आँखि‍क सोझहा सभटा पुरनका दृश्‍य नाचि‍ रहल अछि‍ जइसँ काफी ग्‍लानि भऽ रहल अछि‍।

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