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Tuesday, July 15, 2014

अकाल

अकाल




कि‍रि‍ण फुटि‍ते सुगापटीवालीक माथपर दस-बारहटा छि‍ट्टा-पथि‍या गेँटल देखि‍ बौकी दीदी पुछलखि‍न-
आइ भोरे-भोर केमहर दि‍न उगल, हइ सुगापटीवाली?”
बौकी दीदीक बोल जेना सुगापटीवालीक मनकेँ हौंड़ि‍ देलक। ओना घंटा-घंटा भरि‍ बौकी दीदी लग बैस सुगापटीवाली अपनो आ अपन परि‍वारोक संग-संग देशो-दुि‍नयाँक गपो-सप्‍प करैत आ बाइस तेबाइस खेबो करैत। खासकऽ पावनि‍क ठकुआ आ भोज-काजक लड्डू तँ अड़बैघ कऽ बौकी दीदी पुतोहु सभसँ चोरा कऽ सुगापटीवाली लेल रखबे करैत। दसो-बारहोटा छि‍ट्टा-पथि‍याक गेँट माथपरसँ उतारि‍ सुगापटीवाली अँगनाक मुहथरि‍पर रखलक। भतपसौना छि‍ट्टासँ लऽ कऽ घसछीला, छौरफेका संग सगतोड़ा, सगधुआ पथि‍या धरि‍क गेँट। करीब महि‍ना दि‍नक पछाति‍ बौकी दीदीकेँ सुगापटीवालीसँ भेँट भेल छेलनि‍, तँए मास दि‍नक गपो-सप्‍प  बाँकीए रहनि‍, जे बात सुगोपटीवाली बुझैत आ दीदीओ। माथक छि‍ट्टा उतरि‍ते दीदीक नजरि‍ सुगापटीवालीक मुँहपर पड़लनि‍। मन्‍हुआएल मन मौलाएल फूल जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा बजली कि‍छु ने, नै बजैक कारण भेलनि‍ जे अपने मन कहलकनि‍ जे जरूर कोनो वेर-वि‍पति‍मे वेचारी पड़ल अछि‍। आन दि‍न केहेन लहटगरि‍ मुँह देखै छेलिऐ आ आइ कि‍ए धुमनाइन मौलाएल बूझि‍ पड़ैए। केना वेचारीकेँ बेथाक बात पूछि‍ आरो लटकबि‍ऐ। तइसँ नीक कि‍ए ने दोसरे-तेसरे बात पूछि‍ वि‍चारक धारमे भँसि‍या दि‍ऐ। अनेरे तँ अपने सभ, गुर घाव जकाँ, मुइलहा खून, पीजक संग खील नि‍कलि‍ जेतै। तहूमे एक मासक कथा-पुराण पछुआएले अछि‍। जखने पछि‍ला अंति‍म भेँटक गपक नांगरि‍ पकड़ा देबै आकि‍ अनेरे ने बड़बड़ए लगत। तइमे जे अपना बुझैक अछि‍ से परेखि‍ लेब। सैह सोचि‍ दीदी बजली-
कनि‍याँ, केतए हराएल छेलह जे एते दि‍नक पछाति‍ नजरि‍ पड़लह?”
बौकी दीदीक प्रश्नक उत्तर नै देब सुगापटीवाली उचि‍त नै बुझलक। उचि‍त ऐ दुआरे नै बुझलक जे प्रश्नक उत्तर बि‍नु पौने प्रश्नकर्तोक मनमे उठि‍ जाएत जे भरि‍सक कोनो बातक कचोट हमरेसँ ने तँ भेल छै तँए तामसे नै बजैए। मलि‍न मनक बात रखैत सुगापटीवाली बाजलि‍-
दीदी, हि‍नकासँ लाथ कोन? लोककेँ बेटा सोग सहल जाइ छै मुदा धनक सोग नै सहल जाइ छै। ऐबेर भगवान हमरा सभकेँ जचनामे दऽ देलनि‍!
कहि‍ सुगापटीवाली गाल दि‍स टघरल अबैत नोरकेँ आँचरसँ पोछए लागलि‍। मुँहपर आँचर पड़ि‍ते आगूक बोल झँपा गेलनि‍। मुदा बौकी दीदीक मन ओतै लटकल जे बेथाक कथा कखनि‍ औत। मुदा से काते-कात वेदीक लाबा जकाँ छि‍ड़ि‍या गेल।
शि‍कार फँसैत नै देखि‍ बौकी दीदी दोसर वाण छोड़लनि‍। बजली-
कनि‍याँ, आब तँ अदहा अखारो बीत गेल, आब कि‍ए भतपसौना छि‍ट्टा आ सगतोड़ा पथि‍या बीनै छह?”
भरि‍ मुँह बौकी दीदी ऐ दुआरे ने बजैत जे जखनि‍ हमरा बुते केकरो नीक नै कएल होइए तखनि‍ अनेरे कि‍ए केकरो जि‍नगीक सोग-पीड़ा जगा पीड़ि‍त करबै। मुदा बौकी दीदीक वाणि‍ सुवाणि‍ भेलनि‍।
जहि‍ना बि‍मारीमे पड़ल कि‍यो कष्‍टसँ भीतरे-भीतर कुहरैत अपन बेथा अपने मन मारि‍ सहैत रहैए, मुदा रोगक नि‍दानक- डाक्‍टर-केँ देखि‍ते मन भुभुआ जाइत तहि‍ना सुगापटीवालीक मुँह भुभुआएल-
दीदी, हि‍नका तँ अपन पेटक बात सभ दि‍न कहै छि‍यनि‍, तँए नै कहि‍यनि‍ सेहो नीक हएत? बड़का अकालमे पड़ि‍ गेने बुधि‍ए बौआ गेल अछि‍!
सुगापटीवालीक बात सुनि‍ बौकी दीदी सहमली, मुदा जे मनमे छन्‍हि‍ से अखनो नै बूझि‍ पड़नि‍। बजली-
अकालोक कि‍ जड़ि‍-पालो अछि‍!
बौकी दीदीक बात सुनि‍योँ कऽ सुगापटीवाली अनठौलक। ओना जानि‍ कऽ नै अनठौलक, भेल ई रहै जे जखने पथि‍याक चर्च दीदी केने रहथि‍न‍ तखनेसँ सुगापटीवालीक मन अपन बेथामे तेना बंशी लगल माछ जकाँ नथा गेल रहै जइसँ सुधि‍ए-बुधि‍ घुसुकि‍ गेल छेलै। मुदा दोसर प्रश्नक पछाति‍ वएह अपन हि‍स्‍सेदारी मंगैत आगू आबि‍ बाजल-
दीदी, महि‍ना दि‍न पहि‍ने, ई सभटा छि‍ट्टा-पथि‍या बनेने छेलौं, कि‍ए तँ महि‍ना दि‍नक रोजगार अमबेच्‍चा टोकरी बनबैमे लगै छल, नफगर काज रहए। चारि‍टा पेटी आ चारि‍टा कारामे टोकरी बनि‍ जाइए। दि‍न-राति‍ खटि‍ कऽ पाँच-दस हजार हाथो-मुट्ठीमे बँचा लइ छेलौं। तइमे ऐबेर अकाल पड़ि‍ गेल!
सुगापटीवालीक बात बौकी दीदीक मनमे धँसलनि‍। मनमे धँसि‍ते जेना फुन-फुनी धेलकनि‍। फुन-फुनी ई धेलकनि‍ जे अपनो रौदि‍याह समैमे केते दि‍न आ केते राति‍ अन्न बि‍नु कटल छेलनि‍। दि‍न तँ कटि‍ गेल छेलनि‍ मुदा ओकर तरि‍याएल जे सोग-पीड़ा अछि‍, से तँ कटबे ने केलनि‍। पावनि‍-ति‍हारकेँ के कहए जे अनदि‍नो वेचारीकेँ एक मुट्ठी खाइले दइते छि‍ऐ, पावनि‍मे पवनौट दइते छि‍ऐ। जँ कहीं राति‍मे भानस नै भेल होइ तँ केना आध मन-एक मन भारी पथि‍याक जाँक लऽ कऽ बेचए जाएत। तहूमे भतपसौनाबला बड़का छि‍ट्टा आब के लेत। लगनो तँ ओराइए गेल। भदवरि‍या श्राद्धक भोजो तँ लोक उठाइए कऽ लखि‍ लइए। मासे-मास सुइद[1] दैत सालक अंत होइत-होइत भोज नि‍बटा लइए। तेहने सगधुआ पथि‍या सेहो अछि‍। एक तँ फड़ाएल साग दोसर कफ-ठेँरक घर सेहो बनि‍येँ जाइए। बौकी दीदी बजली-
कनि‍याँ, गप-सड़क्का पाछुओ हेतै, पहि‍ने ई कहऽ जे रौतुका खेलहा छह कि‍ भूखल?”
बौकी दीदीक बात सुगापटीवालीकेँ अनसोहाँत जकाँ बूझि‍ पड़ल। अनसोहाँत ई जे अखनि‍ भोरे छै, रौतुका भूखल हुअ आकि‍ भरि‍ पेट खेलहा, आब ने लोक मुहोँ-हाथ धुअत आ भानसक ओरि‍यानो करत। अखनि‍ जे बाजि‍ए देब जे भूखल छी, तँ दीदीओ यएह ने कहती जे कनी बि‍लमि‍ जाह, रोटी कि‍ भुज्‍जा भुजबै छी, खा कऽ जइहऽ। मुदा लगले मन उनटि‍ गेलै जे तीन-तीन चारि‍-चारि‍ दि‍नक पावनि‍क ठकुआ आ भोज-काजक लड्डू तँ सेहो दीदी रखबे करै छथि‍। सामंजस्‍य करैत सुगापटीवाली बाजलि‍-
हि‍नका ऐठाम खाइ-पीबैमे कोनो कि‍ लाज-धाक होइए। जखनि‍ मन हएत मांगि‍ओ कऽ खा लेब।
सुगापटीवालीक बात सुनि‍ बौकी दीदीक मन थम्‍हलनि‍। मन थम्‍हि‍ते आगूक बेथा-कथा सुनैक इच्‍छा भेलनि‍। मुदा वाह रे मि‍थि‍लांगना! कठि‍न-सँ-कठि‍न दुख-पीड़ाक बोझ माथमे समेटि‍ रखने रहै छथि‍, मुदा पति‍ वा परि‍वारक बीच नहि‍येँ राखब नीक बुझै छथि‍। ओना नीको तँ अछि‍ए। पुरुख हुअए आकि‍ नारी, जँ अपन दुख-पीड़ाक नि‍राकरणक ओरि‍यान अपने करए तँ ओ घीओसँ चि‍क्कन बाट चलब भेल। मुदा जँ ने अपने करी आ ने परि‍वारक बीच राखी तँ ओ दुखद जरूर भेल। बौकी दीदी बजली-
कनि‍याँ, कीदैन‍ कहलहक जे बड़का अकाल?”
‘बड़का अकाल’ सुनि‍ सुगापटीवाली चौंक गेलि‍। चौंक ई गेलि‍ जे हवा-वि‍हाड़ि‍केँ लोक अबि‍तो देखैए आ जाइतो देखैए। मुदा भेल केतौ आ बजरि‍ गेल अपना ऊपर। हजारो-लाखो बीघाक गाछी-कलम नै फड़ल, कि‍सानक साल भरि‍क उपज मारल गेल। अपन तँ कि‍छु ने नोकसान भेल, मुदा तँए कि‍ जि‍नगी नै मारल गेल? अपने नै परि‍वारो समाजोक जि‍नगी तँ मारले गेल अछि‍। भोरे-भोरे सकाल-अकालक चर्च लाधब नीक नै। ई तँ दुकाल-ति‍कालक वि‍षय छी। मुदा बैकीओ दीदी रगड़ाह तँ छथि‍ए। रगड़ि‍ कऽ सुनबे करती। वि‍चि‍त्र स्‍थि‍ति‍ देखि‍ सुगापटीवाली बाजलि‍-
दीदी, दुख-बेथा कि‍ केतौ पड़ाएल जाइए, अभावी लोकक तँ भावीए छि‍ऐ कि‍ने। अखनि‍ भि‍नसुरका समए छी, जँ पथि‍या बि‍का जाएत तँ बालो-बच्‍चा आ अपनो सबहक मुँहमे जाबी नै लगत। बेचि‍ कऽ घुमैबेर खेबो करबनि‍ आ अकालोक कि‍रदानी सुना देबनि‍।
सुवापटीवालीक वि‍चार बौकी दीदीकेँ जँचलनि‍। मुदा तैयो मनमे तेहेन बि‍सबि‍सी धेने रहनि‍ जे पनचैती तँ मानै छी मुदा खुट्टा गाड़ब अहीठाम। फेर दोहरबैत बौकी दीदी पुछलखि‍न-
कनि‍याँ, छाहोँ-छुँह जे कहि‍ देने रहबऽ कि‍ने तँ अपनो वि‍चारब आ तोरोसँ सवि‍सतर पछाति‍ सुनि‍ लेब।
बौकी दीदीक रगड़ देखि‍ सुगापटीवाली बाजलि‍-
दीदी, ऐबेर आम नै फड़ने, महि‍ना दि‍नक आमो खेनाइपर आफत भऽ गेल आ रोजगारो चलि‍ गेल। चारि‍टा पेटी, चारि‍टा कारा आ चारि‍टा कैमचीसँ एकटा टोकरी बनि‍ जाइए। भरि‍ दि‍नमे चालि‍स-पचासटा बना लइ छेलौं। दि‍न-राति‍ काज पसरल रहै छल। राति‍के डि‍बि‍या लेसि‍ कऽ खाइबेर तक काज चलै छल। टोकरी दामक संग-संग कि‍सानो आ वेपारीओ तेते पाकल आम दइ छल जे सबतूर खेबो करै छेलौं। से ऐबेर नै भेल।
बौकी दीदीकेँ सेहो तीन बीघा गाछी-कलम। ओना परि‍वारक हि‍सावसँ बौकी दीदीकेँ बेसी गाछी-कलम छन्‍हि‍ मुदा कि‍सानी जि‍नगीमे सभ रंगक खेतीक अपन महत् छै। करताइत दुआरे बौकी दीदीकेँ बेसी-गाछी कलम छन्‍हि‍। सुगापटीवालीक सूर-मे-सूर मि‍लबैत बौकी दीदी बजली-
कनि‍याँ, बि‍नु रहनौं जेहने तोहर भाग तेहने अपनो भाग ने भऽ गेल! तहि‍ना रहने अपनो भाग आ तोरो एक रंग भेल कि‍ने। हमहींटा कि‍ए, जखनि हजारो-लाखो कि‍सान छातीमे मुक्का मारि‍ जीवि‍ते छथि‍, आ तोँ की मरि‍ जेबह। समए केतौ दूर चलि‍ गेल। फेर आम फड़त, तोहर टोकरीक धंधा चलबे करतह। भेल तँ बीचमे कि‍छु दि‍न, तइले अनेरे सोग-पीड़ा मनमे कि‍ए रखने छल। बि‍सरि‍ जाह।
बौकी दीदीक बात सुनि‍ सुगापटीवालीक करि‍छौंह मुँह ललि‍या गेल। पथि‍या माथपर उठा सुगापटीवाली गाम दि‍स डेग बढ़ौलक।

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२४ जुन २०१४



[1] छायाक भोज

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