Pages

Tuesday, July 15, 2014

कर्जखौक

कर्जखौक


आइ भोरे चाह पीला पछाति‍ करि‍याकाकाकेँ लालकाकीक संग तेहेन टक्कर भेलनि‍ जे भेला पछाति‍ दुनूक मन हरदा बाजि‍ निर्णएक सीमापर पहुँच गेलनि‍, भोरे-भोर एना टक्कर हएब नीक नै! भेल ई जे करि‍योकाका आ लालोकाकी दुनू गोटे चाह पीवि‍ते रहथि‍ तखनि‍ते तरकारीवाली पहुँचली। दुनू परानी मि‍लि‍ तरकारी कीनलनि‍। महगक समए तीनि‍ए कि‍लोक दाम अस्‍सी रूपैआ भऽ गेलनि‍। पाइ देबाकाल करि‍याकाका बजला-
सात तारीककेँ दरमाहा उठैए। आठ तारीककेँ तोरा पाइ भेट जेतह।
तरकारीवाली चुपे रहलि‍। नगद-उधार गाममे चलि‍ते अछि‍। वेपारो तँ वेपारे छी नगदो चलैए उधारो चलैए। मुदा पति‍क बात लालकाकीकेँ नीक नै लगलनि‍। नीक नै लगैक कारण भेल जे जे तरकारीवाली मन भरि‍ तरकारी माथपर नेने गाममे भोरेसँ बेचब शुरू करैए आ तेकर समान उधारी लगि‍ जाए तखनि‍ ओकर कारोबार केना चलत। तखनि‍ तँ यएह ने जे या तँ ओहो वेपारी वा गि‍रहतसँ उधार लि‍अए, वा तेना कऽ दाम लि‍अए जे सूदि‍खोर महाजनक सुइद चुकबए। ओना नफ्फा ओइठाम नै होइ छै जैठाम अछि‍। जैठाम नै अछि‍ तैठाम दोसरो वि‍चार सम्‍भव अछि‍। लोहछि‍ कऽ करि‍याकाकाकेँ लालकाकी कहलखि‍न-
सभ दि‍न अहाँ कर्जखौके रहि‍ गेलौं! आबो चलन पि‍यारा भेलौं, तैयो चालि‍ नै छुटल?”
दुनू परानीक बीच वि‍वाद बढ़ैत देखि‍ तरकारीवाली अपन छि‍ट्टा उठा वि‍दा भऽ गेलि‍। मनमे एलै‍ अनेरे कोन झमेलमे बरदाएल रहब। तहूमे दुनू बेक्‍तीक झमेल छी। आइ नै पाइ देलनि‍ तँ की हेतै, परसुए तँ सात तारीक छी चारि‍म दि‍न दइए देता। तरकारीवाली चलि‍ गेलि‍, मुदा जहि‍ना करि‍याकाकाकेँ तहि‍ना लालकाकीकेँ बघजर लगि‍ गेलनि‍। तरकारी बीचमे राखल दुनू दि‍स दुनू परानी एक-दोसरापर नजरिओ खि‍ड़बैत आ नजरि‍ नीचो करैत। दुनू अपन-अपन सीमामे घेराएल। लालकाकीक मनमे उठैत अनेरे तेहल्‍ला बीच नीच-ऊँच बात बजलौं। जँ कहबे छल तँ परोछमे कहि‍ति‍यनि‍। अपन परि‍वारक नीक-अधला काज अपने नै सम्‍हारब तँ आन केकरा के सम्‍हारल, सभकेँ तँ परि‍वारो छइहे आ कि‍छु ने कि‍छु बक-झक होइते अछि‍। मुदा लगले मन पाछू दि‍स घुसुकि‍ वि‍चारक दुनि‍याँ- भव मण्‍डलमे पहुँच गेलनि‍। पहुँच गेलनि‍ ओइठाम जैठाम अपनो आर्थिक स्‍थि‍ति‍ देखथि‍ आ तरकारीवालीक सेहो। जेकरा हजारोसँ कम पूजी छै, भरि‍ दि‍नक श्रमक मूल्‍य सेहो ओहीमे ने राखत, जँ दाम चढ़ा कऽ लेत तँ सौदोबला तँ बुझबे करत जे फल्लाँ तरकारीक दर ई छै। तही हि‍साबसँ ओहो दाम लेत। दुनू दि‍ससँ तरकारीवालीक गरदनि‍ फँसल। अपन ओहेन दब स्‍थि‍ति‍ नै अछि‍ जे खाइ पीबैक बौस उधार लेब। कि‍ए लेब? जि‍नगीमे लोक कमाइ-खटाइ कि‍ए अछि‍, कि‍ए कि‍यो केकरो कर्जखौक हएत। मुदा लगले लालकाकीक मन घूमि‍ गेलनि‍। घुमलनि‍ ई जे जेकरा हाथमे पाइ नै छै दि‍नका खेनाइक सवाल छै, तैठाम की‍ कएल जाए! कएल की जाए, यएह ने भेल सामाजि‍कता; जे सबहक दुख-सुख सभ बूझि‍ सभकेँ सभ संग दथि‍। मुदा हमर अपने कोन जोगदान समाजमे रहल? जँ कि‍छु देलि‍ऐ नै तँ लेबोक अधि‍कार तँ नहि‍येँ अछि‍! मन तरंगलनि‍। तरंगि‍ते पैछला जि‍नगी दि‍स बढ़लनि‍। पैंतीस सालक नोकरीमे दरमाहाक संग उलफीओ आमदनी छेलनि‍। तहूमे कि‍रानीक नोकरी। मुदा कहि‍यो एहेन नै रहल जे दूधवालीक उधार, तरकारीवालीक उधार, कि‍राना दोकानक उधार नै रहल! जखनि‍ कि‍ दरमहे ओते छेलनि‍ जे मासो भरि‍क खर्चसँ कि‍छु बेसीए भऽ जाइ छेलनि‍। मुदा जेकरासँ हम उधार लइ छी, जँ नगदे लेब, आकि‍ अगुरवारे ओकरे लग जमा रखि‍ ली जे मासो भरि‍ तरकारी चलत, तहि‍ना दूधोवालीक भऽ सकैए। तैबीच अपनाकेँ कर्जखौक बना जि‍नगी चलबैत रहलौं! हथ-उठाइ केकरा के दइ छै, बड़ दइ छै तँ एक कप चाह आ एक खि‍ल्‍ली पान खुआ दइ छै। जँ लेबालक अगुरवार पाइ वेपारी हाथ पहुँच जाए तँ ओकरा पूजीमे बढ़ोत्तरी हएत। जइसँ अहाँक अपन काज भेल आ दोसर परि‍वारकेँ जीवैक आशा भेटलै। समाजक माने दस टोलक लोक सोझे नै ने छी, ओ छी जि‍नगीक संगी, कारोबारक संगी, वि‍चारोक संगी। फेर लालकाकीक मन कड़कड़ेलनि‍। कड़कड़ेलनि‍ ई जे कहू केहेन भुच्‍चरपना चालि‍ जि‍नगी भरि‍ पकड़ने रहि‍ गेला जे सभ दि‍न अभावेमे रहि‍ गेला। कहि‍यो भाव बुझबे ने केलनि‍। नचनि‍याँ सभ ठीके गबै छै-
“दुख ही जनम लेल, दुख ही गमाैल सुख कहि‍यो ने भेल...।
हँ! समाजमे अखनो एहेन अछि‍ जे केतेकेँ भरि‍ पेट अहार नै भेटै छै, उचि‍त अहारक तँ चरचे नै। मुदा अपना तँ से नै अछि‍। जि‍नगीक पैंतीस बरख धरि‍ पति‍ सरकारी सेवामे रहला। तैपर सँ उलफीओ कमाइ भेलनि‍। जँ से नै भेलनि‍ तँ तीनू बेटीक बि‍आह, ओतेत धुमधामसँ केना भेल? दुनू बेटाकेँ पढ़ैमे जेते खर्च भेल, ओते गाममे केते गोरे कऽ पबै छथि‍? तैपर सँ नीक मकान, पानि‍क नीक बेवस्‍था, सभ कि‍छु केना भेल? जेते दरमाहामे कटौती भेलनि‍ तइसँ बेसी बैंकसँ सूइद अबि‍ते अछि‍। मन घुमलनि‍, जइ काजे आइ हम हि‍नका लोहछि‍ कऽ कहलि‍यनि‍ ओ चालि‍ तँ शुरूहोमे छोड़ौल जा सकै छल, मुदा अपनो नीक लागल। बि‍नु पाइओक कोनो चीजक अभाव कहि‍यो ने भेल। ओह! गल्‍ती अपनो भेल। पति‍-पत्नीक बीचक जे जे सम्‍बन्‍ध अछि‍ तइमे कमी जरूर भेल। मुदा जे ि‍दन पाछू ससरि‍ गेल तेकरा केना मोड़ि‍ सकब? जे आगू अछि‍ ओकरा तँ मोड़ल जा सकैए। मुदा कोनो धार जे धारा रूममे प्रवाहि‍त भऽ रहल अछि‍, ओइ धाराकेँ रोकैकाल तँ संघर्ष हेबे करत। लक्कड़-झक्कड़ हुअए आकि‍ रस्‍सा-कस्‍सी, कि‍छु-ने-कि‍छु तँ हेबे करत। मुदा एहनो तँ नीक नहि‍येँ हएत जे धारक मुहेँ भोथि‍आ जाए आ धारे मरना भऽ जाए। फेर मन घुमलनि‍, जे भेल से भेल, दि‍नक दोख छल, भेल। मुदा दि‍नोक दोख तँ एकरा नहि‍येँ कहल जाएत, भोरे-भोर भेल, तँए भोरुका दोख मानल जा सकैए। भोरुका माने बाल-बोधक, बाल-बोधक गल्‍ती गल्‍ती  थोड़े होइ छै, तहूमे बारह बर्खक नि‍च्‍चाँकेँ। मन पुलकलनि‍। पुलकि‍ते पति‍ दि‍स तकली। मुँह बीजकेने करि‍याकाका अपने छगुन्‍तामे पड़ल रहथि‍।
करि‍याकक्काक छगुन्‍ता ई रहनि‍, जे जहि‍यासँ मन अछि‍ तहि‍ओसँ, कहि‍या नै केकरोसँ उधार लेलौं। दरमाहा भेटै छल सबहक चुकती करै छेलौं, कि‍यो मुँहपर कहि‍ दि‍अए तँ जे एको पाइ बेइमानी केलि‍ऐ। आँफि‍सेमे जेकरासँ पाइ लेलि‍ऐ ओकर काज केकरो बाँकी रखलि‍ऐ। जे काज नै होइबला रहै छेलै, तेकरासँ थोड़े एकोटा पाइ लेलि‍ऐ। ओना परि‍वारे छी, शासनसँ सत्ता धरि‍ तँ चलि‍ते अछि‍। एक दि‍स परि‍वारक अनिवार्य काज, जइसँ परि‍वार आगू मुहेँ ससरत दोसर दि‍स परि‍वारक श्रम-शक्‍ति‍क संग बौसक खाँहिस। लगले मन आगू घुसकलनि‍। आगू घुसकि‍ते अपन सेवा नि‍वृति‍ दि‍स बढ़लनि‍। पाइक आमदनी तँ ठीके-ठाक अछि‍, मुदा हाथक काज छीना गेल, भरि‍सक अकाजक तँ ने पत्नी बूझि‍ रहली अछि‍? भऽ सकैए, अपन काज ने हाथसँ ससरि‍ गेल, मुदा हुनकर काज तँ ठामक-ठामे‍ छन्‍हि‍, भरि‍सक तँए ने ओ शासन करए चाहै छथि‍। ईहो तँ भऽ सकैए जे ओ नोकरीक अवस्‍थामे अपनाकेँ अक्षम बूझि‍ पौने हेती तँए नै रोकलनि‍। मुदा आब तँ ओ सोलहो आना घरक कर्ता-धर्ता भऽ गेली। जँ कहीं हमर आदति‍ हुनका नीक नै लगैत होन्‍हि‍, तखनि‍ जँ कहली तँ उचि‍ते कहली। मन ठमकलनि‍! ठमकि‍ते नजरि‍ अपन चालि‍पर पड़लनि‍, जखनि‍ महि‍नाक दरमाहा उठा दोकानदारसँ, दूधवाली, तरकारीवाली तककेँ चुकती काइए दइ छेलि‍ऐ, तखनि‍ जँ दरमाहाकेँ उनटा कऽ चलि‍तौं तँ ओही पाइसँ ओकरो बाल-बच्‍चाकेँ चहरा भेटि‍तै, से चुकती तँ भेबे कएल। मुदा उपए? उपए यएह ने जे तरकारीवालीक सोझहामे ओ उझट बात कहि‍ देलनि‍, मुदा तरकारीओवाली कि‍यो आन तँ नहि‍येँ अछि‍, जहि‍ना केतौ पत्नी गुरु बनती केतौ शि‍ष्‍या, तहि‍ना ने हमहूँ जखनि‍ ओ गुरु बनती तखनि‍ शि‍ष्‍य आ जखनि‍ शि‍ष्‍या बनती तखनि‍ गुरु बनैत हँसैत-खेलैत चलैत रहब। चलू, मामला फड़ि‍या गेल। घुड़छीक भत्ता खुजि‍ गेल। मुस्‍की दैत करि‍याकाका लालकाकीकेँ  कहलखि‍न-
कान पकड़ि‍ मानि‍ओ लेलौं आ कानेपर कन्‍हेट कऽ रखनौं रहब जे ओहन काज सदि‍खन करब जे केकरो कर्ज अपना ऊपर नै आबए?”
पति‍क सुमति‍ सुनि‍ लालकाकी बजली-
अहाँक चालि‍ शुरूहेसँ रहल जे जेबीमे पाइ रहि‍तो अनके खाइक ताकमे रहै छेलौं। मुदा मरैओ बेर जँ बुझलौं तँ अगि‍ला जि‍नगीक बात बुझलौं तँए खुशी अछि‍।      

¦¦¦


२ जुलाइ २०१४ 

No comments:

Post a Comment