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Monday, July 14, 2014

सरकारीए नोकरी कि‍ए?

सरकारीए नौकरी कि‍ए?


गामक मानल झगरौआ चौबटि‍या, केतेक रास इति‍हास ऐ चौबटि‍यासँ जुड़ल अछि‍, सौंसे गामक लोक नीक-बेजए अपन-अपन भरास ऐ चौबटियेपर आबि‍ नि‍कालैत अछि‍। ओना गाममे आरो बहुत रास चौराहा सभ अछि‍, मुदा ऐठाम आबि‍ अपन शान बघारब गामक लोककेँ बड्ड रास अबै छन्‍हि‍। गामक सभटा झगड़ा-झंझटि‍, पंचैती, गप-सर्ड़का, खास कऽ संझुका पहर पीला पछाति‍ अपन लठैती देखाएब ऐ चौबटि‍याक सोभाव बनि‍ गेल अछि‍। खैर!
संयोगसँ हमरो घर ऐ चौबटि‍याक नाकेपर अछि‍। नहि‍योँ चाहैत अँगनासँ नि‍कलि‍ते पहि‍ने चौबटि‍येक दर्शन होइत अछि‍।
कनी अबेरेसँ सुति‍ कऽ उठल रही। भि‍नसुरका क्रि‍यासँ नि‍पटि‍ अँगनासँ बहरैलौं आकि‍ सुन्‍दर काकापर नजरि‍ पड़ल। काका पड़ोसीए छथि‍। सभ दि‍न परदेशे खटलथि‍। केतेक दि‍नक बाद कक्काक दर्शन भेल। कहलि‍यनि‍-
गोड़ लगै छी सुन्‍दरकाका।
खूब नीक रहू बाबू, नीके ना छी ने सभ कि‍यो?”
कहलि‍यनि‍-
हँ, प्रभूक दया छन्‍हि‍, सभ कि‍यो नीके छी। मुदा अपने तँ ऐबेर बड़ दि‍नपर एलौं हेँ काका? काकी सेहो एलखि‍न हेन?”
हँ यौ, सभ कि‍यो एलौं अछि‍। बड़ दि‍न भऽ गेल छल गाम एला। होली पावनि‍ छले, तँ सोचलौं जे गाम भऽ आबी।
हम कहलि‍यनि‍-
तहन तँ बड़ नीक समैपर एलौंहेँ काका, भोज सेहो परि‍ लागि‍ जाएत।
कथीक भोज यौ, हमरा तँ गामक भोज कहि‍यो खेलौं से मनो ने अछि‍। जहि‍यासँ मद्रास पकड़लौं आ ट्रान्‍सपोर्टक नोकरी धेलौं तहि‍यासँ बुझू सभटा बि‍सरि‍ए गेलौं। अच्‍छा छोड़ू ई सभ बात। ई कहू जे भोज छी केतए?”
नै बुझलि‍ऐ काका, इन्‍दू भाइक परसू बि‍आह छि‍यनि‍। काल्हि‍ कुमरनक भोज हएत टोलमे आ परसू बरि‍याती जाएत। अहीठाम लगेमे इमादपट्टी।
ई इन्‍दू कि‍नकर लड़का छि‍ऐ। नबल भाइक छि‍यनि की?
हँ। नवल कक्काक चारि‍म लड़का छथि‍न। हमरासँ तीन सालक जेठे हेता। आब तँ हमरो तैंतीसम चलि‍ए रहल अछि‍ कि‍ने।
चनौरागंज एन.एच.क उत्तरमे बसल ई छोट-छि‍न गामक ऐ चर्चित चौबटि‍यापर एकटा ने एकटा लोक अबि‍ते-जाइत रहैए। चौबटि‍याक दछि‍नवरि‍या बाटसँ जेना मुसना सुनि‍ते आएल आ बि‍च्‍चेमे टपकि‍ गेल-
गोड़ लगै छी बाबा। सुन्‍दर काका दि‍स लपकैत पुन:-  
नै बुझलि‍ऐ, कएथक बि‍आह तँ अदहा उमेर बि‍तला पछाि‍तए ने होइ छै। देखि‍यौ इन्‍दू भाइकेँ, की चालि‍स बरखसँ कम होइत हेतनि‍। हमरासँ दू बर्खक जेठे हेता। ताबत हमर धि‍यो-पुतो जमान भऽ गेल।
सुन्‍दर काका गौरसँ चि‍न्‍हैत कहलखि‍न-
अँए रौ, एना लम्‍पट जकाँ कि‍ए बजै छेँ। महन्‍थु दुसाध तँ बड़ भलमानुस छेलौ। सभ कएथक की तीस बर्खक बादे बि‍आह होइ छै। हमरा तँ बाबू मैट्रि‍कमे पढ़ि‍ते रही तहि‍ए कथा ठीक कऽ लेलनि‍ आ परीक्षाक बाद बि‍आहो भऽ गेल।
मुसना बाजल-
नै बुझलि‍ऐ बाबा, आखि‍र बि‍आहो तँ उमेरेपर ने नीक होइ छै।
हँ-हँ ठीके कहलि‍ऐ मुसन भाय, जहि‍यासँ अहाँ वार्डमेम्‍बर बनलि‍ऐ हेन तहि‍यासँ खूब उपदेश दइ छि‍ऐ अपने।
हमर गप की नै नीक लागल प्रवीण भाय? लि‍अ माफ करब। जाइ छी, आइ इन्‍दि‍रा अवासबला कि‍छु पेमेन्‍ट सभ अछि‍।
कहि‍ मुसना पछि‍म दि‍शामे चलि‍ दैत अछि‍।
अच्‍छा तँ अपन कहू प्रवीण, काज-धंधा केहेन चलैए?”
सुन्‍दरकाका गपकेँ नव मोड़ देलनि‍।
नीके चलैए काका। इमानदारीसँ जे कमाइ छी तइमे नून-रोटी नीके जकाँ खाइ छी। दि‍ल्‍ली-बम्‍बई जा नोकरी करब तँ हमरा कहि‍यो नीक नै लगल। हँ एलआइसीक काजसँ एक-आध महि‍ना लेल मद्रास जाइ छी तँ बुझू जे मन औना जाइत अछि‍। जनि‍ते छी काका जे अहू लाइनमे भेड़ि‍या-धसाँन छै। पेटक खाति‍र बाहर जए पड़ैत अछि‍, मुदा सच्‍च कही काका गाम तँ गाम छी, बुझू स्‍वर्ग छी। शहरक धुआँ-धुकुरमे दम घूटि‍ कऽ रहि‍ जाइत अछि‍।
हँ से तँ सखे लोक बाहर जाइए, अपना ऐठाम रोजगारक अभाव अछि‍। बेरोजगारीक समस्‍या दि‍न-व-दि‍न बढ़ले जा रहल अछि‍।
ई आब पुरान गप भेल सुन्‍दरकाका। कृषि‍ कार्यक अलादो बहुत रास रोजगारक संभावना जगेलक अछि‍ सरकार, आब ऐ सुचना क्रान्‍ति‍क जुगमे बहुतो क्षेत्रमे रोजगारक सृजन सभ भऽ रहल अछि‍, हँ पहि‍ने ई समस्‍या सभ जरूर छल। कहि‍यो बाढ़ि‍ तँ कहि‍यो सुखार, सुतरल तँ भरि‍ कोठी धान नै तँ ठन-ठन गोपाल।
काका पलटी मारलनि‍। आखि‍र हुनको तँ सुख-दुखक बहुत रास अनुभव छन्‍हि‍। बजला- 
रोजगारक संभावना तँ सभ दि‍नसँ अछि‍ गामो-घरमे, जरूरति‍ अछि‍ सृजन करबाक। अपना ऐठामक माटि‍-पानि‍मे सुस्‍ती अछि‍। आन-आन शहर जा कऽ लोक खून-पसीना एक कऽ दैत अछि‍ मुदा अपना घरमे अलि‍साएल पड़ल रहैत अछि‍। कहबीओ छै, ‘भुखले रहब तँ सुतले रहब आ सुति‍ कऽ उठब तँ अँइठ कऽ चलब।’ खैर छोड़ू हम आनकेँ की कहबै, हम तँ अपने देशक छोड़पर जा कऽ गुजर-बसर करै छी।
दुनू गोटे गप-सप्‍प करि‍ते रही आकि‍ ताबत चन्‍द्रकान्‍त भैया सेहो आबि‍ गेला। चौबटि‍या तँ ओना मुख्‍य रूपसँ कएथटोलीक नाकेपर अछि‍, मुदा पासमान टोलक धमगीजरीए सभ दि‍न हाबी रहल की मजाल जे कोनो कएथ भाय कि‍छु बजता। गारि‍-गलौज सुनैत रहै छथि‍ आ नीके ना पचबैत रहै छथि‍। चन्‍द्रकान्‍त भैया बजला-
की यौ काका जेना बुझाइए जे भोजक चर्चा भऽ रहल अछि‍।
हम कहलि‍यनि‍-
हँ भैया, काकाकेँ बहुत दि‍नपर भोज परि‍ लगतनि‍ तँ कि‍ए ने सुआदक चर्च पहि‍नेसँ करी।
चन्‍द्रकान्‍तजी बड़ सुलझल एम.ए.पास बुधि‍जीवि‍ बेकती छथि‍। सौंसे गाममे हुनकेटा मे ईष्‍या आ भेदभावक कोनो चैन्‍ह नै छन्‍हि‍, बजला-
कि‍एक ने टोलमे भोज हुअए आ चर्च नै हुअए तँ फेर भोजक मजे की।
सुन्‍दर काका कोनो गंभीर सोचसँ फराक भऽ बजला-
मुदा चन्‍द्रकान्‍त, इन्‍दूजी एतेक उमेरपर बि‍आह कि‍ए केलनि‍?”
नै बुझलि‍ऐ काका, अपना सबहक ऐठाम जाबत लड़ि‍का पएरपर नै ठाढ़ भऽ जाइए ताबत बि‍आह केना करत। इन्‍दू सेहो अखनि‍ धरि‍ नीक सरकारी नोकरीक खोजमे पढ़ि‍ते रहि‍ गेला। अदहा उमेर बीति‍ गेलनि‍ तखनि‍ जा कऽ एकटा कि‍रानीक नोकरी भेलनि‍।
अँए हौ चन्‍द्रकान्‍त, तँए की जँ सरकारी नोकरी नै हुअए तँ लोक बि‍आह नै करत।
करत कि‍एक नै काका। मुदा जौं सरकारी नोकरी नै होइत तँ इन्‍दूकेँ दस लाख टाका केना भेटि‍तनि‍ दहेजमे। ई तँ भाग मनाउ जे एतेक मेहनति‍ आ तपस्‍याक बादो बेचारा कि‍रानीए भेला। जँ कोनो ओफि‍सर होइतथि‍ तँ तीस लाखसँ कम दहेज मांग नै करि‍तथि‍। खैर चलू, जे होइ छै से हुअ दि‍औ। माइओ-बाप तँ हुनके ने अन्न आ दबाइ बि‍ना तड़ैप-तड़ैप कऽ मरलनि‍।
अपना सबहक ऐठाम एकटा बड़ पैघ ओझरी अछि‍ काका, नइ कि‍ ई अपन जाति‍मे बल्‍की सौंसे बि‍हारक ई समस्‍या छि‍ऐ। ऐ राज्‍यक, खास कऽ मि‍थि‍लाक सभ कि‍यो सरकारीए नोकरी कि‍ए चाहैए। आखि‍र सरकारे केतेक लोककेँ नोकरी देत। मनुखक संख्‍या तँ मच्‍छरे जकाँ बढ़ल जा रहल अछि‍- अकासे फाटि‍ जाएत तँ दरजीक बापक दि‍न छी जे सीब लेत। सरकारो अपन संसाधने मोताबि‍क ने नोकरी देत। मुदा बि‍हारक लोक तँ सरकारी नोकरीकेँ अपन प्रति‍ष्‍ठे बना लैत अछि‍, तँए कि‍ अपन रोजगार करएबलाकेँ समाजमे कम प्रति‍ष्‍ठा छै।
हम कहलि‍यनि‍ तैपर काका बजला-
ठीके कहलि‍ऐ अहाँ। दोसर प्रदेशमे जा कऽ देखि‍यौ सरकारी नोकरीक पाछू कहाँ एतेक लोक भागैए, जेकरा जेतेक ज्ञान आ कुब्‍बत छै तइ अनुकूल लोक अपन जीवन-यापन करैए। तँए कि‍ कोनो राज्‍य बि‍हारसँ पाछू अछि‍?”
धाँइदनि‍ चन्‍द्रकान्‍त भैया बजला-
से तँ जुनि‍ पूछू काका, एकटा शि‍क्षामि‍त्रबला मास्‍टरी लेल तीन-तीन लाख घूस दऽ कऽ मास्‍टर बनल अछि‍। तँए कि‍ ओ तीन लाखसँ बेपार करि‍ अपन जीवन नै चला सकै छल?”
हम कहलि‍यनि‍-
की करबै भैया, लोकक नैति‍क पतन भऽ गेल अछि‍। अराम आ मंगनीक जीवन सभ जीबए चाहैए। कोनो तरहेँ एकबेर सरकारी नोकरी भऽ गेल तँ मानू गंगा नहा लेलौं, दरमाहा बँचले रहत आ काते-कातक आमदनीसँ गुजारा चलि‍ जाएत। एहने मानसि‍कताबला लोकक भरमार भऽ गेल अछि‍। जि‍नगीक दू ति‍हाइ उमेर तँ सरकारीए नोकरीक आशमे बि‍ता लैत अछि‍। पछाति‍ हारि‍-थाकि‍ कऽ दि‍ल्‍ली-कलकत्ताक रूखि‍ लैत अछि‍। केहेन दुरभाग अछि‍ ऐठामक लोकक।
सुन्‍दर काका विचलि‍त होइत बजला-
सएह देखि‍यौ, देश-दुनि‍याँ चान-तारापर पहुँच गेल मुदा बि‍हारक लोक आइओ पूर्ण नि‍ठल्‍ला भऽ सरकारीए नोकरीक आशमे जीवन बि‍ता दैत अछि‍। आखि‍र वि‍कासक मार्ग केना सुदृढ़ हएत। तँए कि‍ संसारमे रोजगारक कमी अछि‍। हजारो सार्वजीनि‍क क्षेत्रमे लाखो-कड़ोरो रोजगारक अवसरि‍ बाट जोहि‍ रहल अछि‍। पैसो नीक आ प्रति‍ष्‍ठो नीक, मुदा थप्‍पा लेल जे आतूर छथि‍ तेकर पूर्ति केना हएत।
काकाकेँ चि‍न्‍तनक सागरमे उगैत-डुमैत देखि‍ कहलि‍यनि‍-
चि‍न्‍ता जुनि‍ करू काका, परि‍वर्तन जरूर हएत। जे संसारक नि‍अम अछि‍। आशक वंधन जुि‍न तोड़ू, हमरे देखू पढ़बामे बड़ तेज तँ नै मुदा भुसकोलो तँ नहि‍येँ रही। स्‍कूलसँ लऽ कौलेज धरि‍ सभ दि‍न फस्‍टे केलौं, मुदा सरकारी नोकरी तँ नै भेल। जँ हमहूँ इन्‍दूए भाय जकाँ माए-बापक घोर गरीबीक दशाकेँ अनठाबैत बीस बरख धरि‍ सरकारीए नोकरीक तैयारी करि‍तौं तँ की नोकरी नै होइत। मुदा ताबत माए-बाप पुत्रक कमाइक आशमे दम तोड़ि‍ दैत।
बि‍च्‍चेमे चन्‍द्रकान्‍त बलजा-
तँए कि‍ इन्‍दू सन-सन नोकरि‍यासँ प्रवीणक मान-सम्‍मान समाजमे कम अछि‍। इन्‍दूकेँ तँ नीकसँ समाजमे कि‍यो चि‍न्‍हतो नै छन्‍हि‍। समाजक सुख-दुखमे तँ पहि‍ने हमहीं-अहाँ पहुँचब कि‍ने। आखि‍र एहेन सरकारी नोकरीसँ समाजक कोन भलाइ हएत।
काकाकेँ माथपर संतोखक रेखा उभरि‍ एलनि‍। माथक पसीना पोछैत बजला-
आखि‍र, सरकारीए नोकरी कि‍ए?”¦¦¦

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