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Tuesday, July 29, 2014

कटा-कटी

कटा-कटी




चैत मासक बेरुका समए। आने दि‍न आ आने जकाँ कामि‍नी काकी अँगना-घरक काज सम्‍हारि‍ घासक बेर होइत जाइत देखि‍ धड़फड़ाएल छथि‍। जाइक समए भेल जा रहल छन्‍हि‍। बेटी कबूतरी दि‍स तकलनि‍, तकलनि‍ ई जे आन दि‍न ओसाराक छाहरि‍ देखि‍ अपने रस्‍तापर पहुँच धूरा-गरदाकेँ चि‍क्कन बना, टोलक आनो-आन बच्‍चाक संग सभ दि‍न खेलाइए। आइ कि‍ए ने ससरि‍ रहल अछि‍, मुँह फुलौने बैसल अछि‍। लगमे पहुँच कामि‍नी काकी बजली-
कानि‍नी दायकेँ, आइ कि‍ए ने अँगनासँ आसन टुटै छन्‍हि‍। कखनि‍ आसन-बासनक ओरि‍यान करती।
धनि‍याँ-मि‍रचाय संग पीसल मसाला जहि‍ना चुल्हि‍क ताैपर लोहि‍यामे पड़ि‍ते आँखि‍मे कुट-कुटा कऽ लगैत तहि‍ना बाल-बोध कबूतरीकेँ माइक बात कुट-कुटा कऽ धेलक। बाजल-
खेलाइ ले नइ जाएब। कटा-कटी कऽ देलक।
‘कटा-कटी’ बजि‍ते जेना कबूतरीक वृन्‍दावन दहलि‍ उठल। ठुनकए लगल। जेना केते भारी राज-पाट कबूतरीक छीना गेल होइ तहि‍ना ठुनकी भरैत गेल। दुदि‍सि‍या माए कामि‍नी, आब की करती। बच्‍चा  जखनि‍ घरसँ नि‍कलि‍ खेलाइले चलि‍ जाइए आ टोलक बच्‍चाक संग साँझ धरि‍ कि‍शुन-कन्‍हैया जकाँ खेलाइत रहैए, तखने हमरो बाध-बोन जाइक समए भेटैए। बाध-बाेन नै जाएब से बनत, बाध-बोन जि‍नगी देने अछि‍ तेकरा केना छोड़ि‍ देब। मुदा जखनि‍ हँसैत बच्‍चा अँगनासँ नि‍कलि‍ रस्‍तापर खेलाइले जाइए तखनि‍ ई कहाँ बुझैए जे माए आँगनमे नै अछि‍। तँए बच्‍चाकेँ बि‍ना बौसने कामि‍नी काकी केना नि‍कलती। बजली-
दाइकेँ की भेलनि‍ जे एना फुफुआइ छथि‍न?”
माइक मुँहक बोल छीनि‍ फुफुआ कऽ कबूतरी बाजल-
हमरा कटा-कटी भऽ गेल। उ सब नइ खेलाय देत। हमर घर उजारि‍ कऽ फेक देलक। आब केतए घर बनाएब।
एके साँसमे कबूतरी अपन मनक सभ बेथा उगैल देलक। सुकुमारि‍ बेटी कबूतरीक बोल जेना कामि‍नी काकीक ब्रज मण्‍डलकेँ हि‍ला देलकनि‍। हि‍ला ई देलकनि‍ जे नान्‍हि‍टा बच्‍चा तहूमे अपन कोखि‍क तेकरा जँ नै कखि‍या राखब तँ घरक जात-ढेकी केना चलत। मुदा कबूतरीक प्रश्न तँ तकलीक एकटा सूत नै जे खुस दनि‍ टूटि‍ जाएत। ओ तँ मशीन लागल चरखाक सूत जकाँ अछि‍ जे एकेबेर महजाले तैयार कऽ लइए। टोलक सभ धि‍या-पुता घर उजारि‍ देलकै। तेहेन-तेहेन हरम-जि‍द्दी धि‍या-पुता सभ भऽ गेल अछि‍ जे केकर बात के सुनत। बात नै सूनत, कबूतरीकेँ खेलौ नै देतै, ओकर खेलाइक समए छि‍ऐ केना ओ खेलेनाइ बि‍सरि‍ जाएत। तखनि‍ तँ अपने खेलबि‍यौ, अपने जँ खेलै जोकर बच्‍चाकेँ खेलाएब तँ बाध-बोन केना चलत। नै बाध-बोन चलत तँ अन्नसँ लऽ कऽ जारनि‍ धरि‍ केतएसँ औत। कबूतरीक दोसर-तेसर बात तँ कामि‍नी काकीक मनमे पछुआएले रहनि‍ जे पहि‍लुके प्रश्न तेहेन ओझरी लगा देलकनि‍ जे सर्कसक बाघ जकाँ पि‍जरामे फँसि‍ गेली। ‘फँसि‍’ ई गेली जे अखनि‍ हमरेटा नै गामक सभकेँ बाध-बोन जाइक समए छी, बि‍ना अपन-माए-बापे कोनो बच्‍चा केकरो बात सुनत, जखनि‍ बाते नै सुनत तखनि‍ अपने बाध-बोन केना जा हएत। मुदा आन बच्‍चा हमरा बच्‍चाकेँ रस्‍तापर नै खेलए देत एकरा तँ कि‍यो उचि‍त नै कहि‍ सकैए। मुदा ईहो तँ अछि‍ए जे जँ सभ बच्‍चाक माए-बापकेँ संगोर करि‍ कऽ नि‍वारण करब तखनि‍ तँ एकक चलैत सबहक समए लूटा जाएत। वि‍चि‍त्र द्वन्‍दमे काि‍मनी काकी उलझि‍ गेली। हँ-नि‍हँस करैत कामि‍नी काकी पड़ोसि‍नीकेँ डेढ़ि‍यापर सँ सोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
ऐ पड़ोसि‍नी, अहाँ बेटी हमरा बेटीक घर-अँगना उजारि‍ कटा-कटी कऽ लेलक। बाध-बोनक समए भऽ गेल, अहूँ नै बरदाउ आ हमहूँ नै बरदाएब। अखनि‍ चलि‍ कऽ दुनू गोटे दुनूकेँ बहि‍ना लगा दि‍यौ जे एके अँगना-घरकेँ कनी नमहरसँ घेरि‍ दुनू खेलत।
कामि‍नी काकीक वि‍चारमे अपन वि‍चार सटबैत पड़ोसि‍नी बजली-
बाल-बोधक झगड़े की! तइले चेतनक समए नष्‍ट हुअए से नीक नै।  
ओना पड़ोसि‍नीक उत्तर पबैमे कामि‍नी काकीक मन ठहकलनि‍। ‘ठहकलनि‍’ ई जे कोन गाम आ कोन समाज एहेन नै अछि‍ जैठाम बाले-बोधक झगड़ामे सभ नै लागल रहैए। मुदा पड़ोसि‍नीक सुनटा बानि‍ देखि‍ कामि‍नी काकीक मन खुशि‍येलनि‍। दुनू पड़ोसि‍नी कामि‍नी काकी अपन-अपन बच्‍चाक बीच बहीना लगा एके स्‍वरे कहलखि‍न-
बुच्‍ची, अहाँ दुनू बहीना भेलौं, दुनू गोटेक सुख-दुख सझि‍या भऽ गेल तँए एक्के अँगना-घर बना दुनू गोरे खेलू।
दुनू माइक दुनू बच्‍चा मुँहक बोल छि‍नैत एके सुरे बाजल‍-
दुनू बहीना ओही अँगना-घरकेँ नहमर बना खेलाएब।
दुनू बच्‍चासँ दुनू माएकेँ अपन जान हल्‍लुक होइत देखि‍ खुशी भेलनि‍। खुशी होइत कामि‍नी काकी पड़ोसि‍नीकेँ कहलखि‍न-
कोन बाध दि‍स जाएब?”
कामि‍नी काकीक बोल सुनि‍ पड़ोसि‍नीक मनमे उठलनि‍ जहि‍ना दुनू बच्‍चा बहीना लगा एके अँगना-घर बना खेलत, तहि‍ना जँ चेतनो-सि‍यान जि‍नगीक खेल खेलए तँ केहेन वृन्‍दावनक रास लीला हएत।
बाल-बोधक झगड़ा सभ बच्‍चा बि‍सरि‍ गेल। बि‍सरबो वाजबीये ने भेल। आखि‍र बाल-बोधक मन ओते मलि‍न थोड़े अछि‍ जे पचास-साठि‍ बरख धरि‍ सि‍यान जकाँ रग्‍गड़ धेने रहत। ओ सभ धरबो केना नै करता, तेहेन बाँसक खुट्टामे खुटेसल छथि‍‍ जे हजारकेँ के कहए जे पाँचो हजारक उमेर जेना हाथेमे छन्‍हि‍ तहि‍ना। टोलक एगारहो बच्‍चा अपन-अपन हटवार जकाँ अपन-अपन अँगना पकड़ि‍ हाथेसँ गरदा बढ़बैत अपन-अपन अँगनाक टाट छहरदेबाली जकाँ लगबए लगल। अपने-अपने तेहेन-तेहेन राज-पाट छै जे सभ अपने-अपने अँगनामे घेरा गेल। कबूतरीक डीह खालीए रहल। कबूतरीकेँ काल्हि‍ये सभ मि‍लि‍ घर-आँगन उजारि‍ समाजसँ भगा देने रहै तँए ओइ समाजमे आब कबूतरी रहए नै चाहैए जे अपन पुरना-घर-घराड़ी काल्हि‍ छोड़ि‍ देने छल। मुदा दखलो केनि‍हार नहि‍येँ रहल। रहबो केना करैत जेते काज दि‍ल्‍ली सरकारकेँ छै तइसँ की कम काज एक-एक परि‍वारकेँ छै, तँए सभ अपने-घर अँगनामे ओझरा गेल, जइसँ दुनू बहीना कबूतरी मि‍लि‍ दुनू अँगनाकेँ जोड़ि‍ एक बना लेलक।
चारूकात सँ टाट लगबि‍ते एगारहो अपन-अपन जि‍नगीक गाड़ी ठाढ़ करए लगल। कि‍यो खेत-पथार, तँ कि‍यो चूल्हि‍-चौका, कि‍यो माल-जालक तँ कि‍यो आनो-आनमे गथा गेल। दू अँगनाकेँ एक भेने समाजमे जल्‍लाक जनम होइए। तेकरे उछाहीमे दुनू बहीना कबूतरी समाजकेँ आइ भोज खुऔत। जखनि‍ भोज खुऔत तखनि‍ सभसँ जरूरी काज समाजकेँ नौतब भेलै। जरूरी अइले भेलै जे आब भोजक कमी अछि‍ आब तँ खेनि‍हारक कमी भऽ गेल अछि‍। सभ अपने बेथे तेहेन बेथाएल अछि‍ जे कि‍यो कोनो रोग तँ कि‍यो कोनो, तेहेन-तेहेन सालतनी रोग पोसि‍ नेने अछि‍ जे लोक अपन जान बँचौत आकि‍ भोज खाएत। मुदा से बात कबूतरीक दुनू बहीनाक संग नै भेल। दुनू बहीना वि‍चारि‍ कऽ काज बाँटि‍ लेलक। सुगि‍या नौत दैत बजै-
घरवारी छी यौ, यौ घरवारी, औझुका नि‍मंत्रण अछि‍।
जँ कि‍यो पुछै जे ‘कथीक भोज?’ तँ अकासमे उड़ैत सुगि‍या बाजए-
बहीनदुति‍या भोज।
एक तँ ओहुना बेक्‍तीगतो बात आ समुहि‍को बातमे अन्‍तर होइ छै। बेक्‍तीगत मुद्दा तखनि‍ सामुहि‍क दि‍स बढ़ै छै, जखनि‍ सामुहि‍कताक सम्‍बन्‍ध रहल। मुदा ने फड़ि‍छौट भेल आ ने आरो-आरो बात सोझा आएल।
समए लहसल। भरि‍ दि‍नक मेहनति‍सँ दुनू बहीना कबूतरीओ आ सुगि‍यो समाजक भोजक ओरि‍यान केलक। पुरना नवका अँगनाक बीचक खरि‍हाँनमे पंच सबहक बैसैक ओरि‍यान भेल। भोजक सभ वि‍न्‍यास पंचेक अनुकूल, अनुकूलो कि‍ए ने जखनि‍ सभ सामग्री माटिएक।
पंचकेँ बैसि‍ते सुि‍गया बाजल-
हे पंच परमेसर, भोजनक सभ ओरि‍यान अछि‍ तँए धड़फड़ेबै नै।  
कहि‍ चुटकीसँ बालु उठा पहि‍ने पंचक आगू पवि‍त्र केलक। भातक चंगेरा नेने कबूतरी आँजुरसँ दैत बाजल-
भाय-बोन, भात की‍ आब कबीर दासक परसाद रहलनि‍ आकि‍ सोमनी दादीक बसि‍या भात, आब तँ ओ चाबल भऽ गेल तँए हम परसै छी अहाँ जे बुझि‍ऐ।
कबूतरीक बात सुनि‍ एकटा पंच टोनलक-
कहू भला एक कबूतर दोसर सुग्‍गा, तखनि‍ केतौ भोज अधला हुअए।
माटि‍एक भात-दालि‍-तरकारी हाथसँ उठा-उठा नीचका दाढ़ीमे भि‍रा-भि‍रा नि‍च्‍चेमे रखि‍ भोजक जश दैत सभ पंच एक मुहेँ बाजल-
घरबैयाकेँ धैनवाद।
दि‍न खसल। कामि‍नी काकी बाधसँ आबि‍ घूर पजारि‍ रहल छेली, तखने कबूतरी पहुँच बाजल-
माए, भोजमे खूब जश भेल।
कबूतरीक खुशि‍याएल मन देखि‍ कामि‍नी काकीक मन सेहो खुशि‍येलनि‍।
¦¦¦
३० जुलाई २०१४

कथाकार; श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल
'लजबि‍जी' लघुकथा संग्रहसँ साभार 

Sunday, July 27, 2014

पुरनी नानी (कथाकार- जगदीश प्रसाद मण्‍डल)

पुरनी नानी




तीन माससँ पुरनी नानी ओछाइन पकड़ने छथि‍। अपने तँ नै बूझि‍ पाबि‍ रहली अछि‍ जे आब ऐ दुनि‍याँ सँ ‘चलचलौ’ भेल जा रहल छी। मुदा गाममे सबहक बीच चर्च होइत जे ‘पुरनी नानी आब जे दि‍न छथि‍ से दि‍न छथि‍।’ अपने ऐ दुआरे नै बूझि‍ पाबि‍ रहल छथि‍ जे बुझि‍नि‍हार तँ ओ ने जि‍नका अपन जनम कुण्‍डली आकि‍ जनम दि‍नक कोनो लि‍खल सबूत होइ। से तँ पुरनी नानीकेँ छन्‍हि‍ नै। भऽ सकैए जनम पतरी होन्‍हि‍। ओना सबूतो सभटा पकि‍ये होइए सेहो बात नै छै। सबूतो कहि‍या होइए। कोनो केसक ‘कचि‍या नकल’ थानामे भेटैए। ओना थानोकेँ दोख लगाएब बेइमानी भेल, जेकरा पकि‍याक अधि‍कारे ने छै ओकर तँ कचि‍ये ने पकि‍या भेल। असल कचि‍या-पकि‍या तँ ओइठाम होइए जैठाम नोकरी दुआरे कि‍यो, बि‍आह करै दुआरे कि‍यो आकि‍ अपन अरुदा छि‍पबै दुआरे कि‍यो जनम कुण्‍डलीक ति‍थि‍ आ वि‍द्यालयक ति‍थि‍मे घटी-बढ़ी कऽ लइए। मुदा सहो नै, असलमे पुरनी नानीकेँ उमेरक ठेकाने ने रहलनि‍। रहबो केना करि‍तनि‍ बेवहारक इति‍हासक तारीक घटनाक हि‍साबे लि‍खल जाइए, मुदा वैदि‍क वि‍धि‍-बेवहारक तारीकक पता केना लागत। जहि‍ना अधला बढ़ैत-बढ़ैत ढेर लगि‍ जाइए तहि‍ना ने नीकोक छै। नीक तँ नीके भेल, तँए बेवहारो नीक बनैत जाइए। पुरनीओं नानीकेँ सएह भेलनि‍। तँए कि‍ ओ अपन जन्‍मक आड़ि‍-धूर नै देने छथि‍ सेहो बात नहि‍येँ कहल जा सकैए। केतौ नापि‍ कऽ कि‍लोमीटरक पाथर गाड़ल जाइए, केतौ ठेकानि‍ए कऽ बूझल जाइए, ठेकानोसँ तँ बुझले जाइए। पुरनी नानीक आड़ि‍-धूरक ठेकान ई छन्‍हि‍ जे पछि‍ला ‘भुमकम’ मन छन्‍हि‍ जइमे नअ बर्खक रहथि‍ जे माए कहने रहनि‍। कहने ऐ दुआरे रहनि‍ जे जखनि‍ भुमकममे घर खसि‍ अँगना वाड़ी सभ एकबट्ट भऽ गेल रहनि‍, आ माएकेँ सोगाएल बैसल देखि‍ पुरनी भुमकमक उथल-पुथल देखि‍ हँसैत आबि‍ बाजल-
माए, आब की हेतै?”
जेना माथपर मोटरी रहि‍तो, दोसर-तेसर-चारि‍म मोटरी चढ़ए लगैत आ उठौनि‍हारकेँ जे गति‍ होइत होउ, तही गति‍मे माए पड़ैत गेली। जेना-जेना ‘पड़ैत’ गेली तेना-तेना आँखि‍क सोझमे रौतुका तरेगन बेसि‍याइत गेलनि‍। बेसि‍येबो तँ उचि‍ते छेलनि‍, जँ तृतीया अन्‍हारसँ चौठक अन्‍हार बेसी नै हुअए तँ तृतीया चौठ केना हएत। माएक मन पुरनीक मुँहपर पड़लनि‍। पड़ि‍ते दुनू ठोर वि‍दैक गेलनि‍। जहि‍ना नचारी, वेवसीमे केकरो होइ छै। ‘वि‍दैक’ ई गेलनि‍ जे सभ कि‍छु प्रकृति‍ प्रदत्त चलैत रहत तखने पर्यावरण अनुकूल रहत, नै तँ जहि‍ना कहि‍यो भुमकम हएत, तँ कहि‍यो अकाल पड़त। जखनि‍ बच्‍चा जनम लइए तखनि‍ ओकर उचि‍त देख-भाल होउ, बच्‍चाक संग जच्‍चाकेँ होन्‍हि‍, तहि‍ना वि‍द्यालय जाइ जोकर जखनि‍ बच्‍चा भऽ जाए, तखनि‍ ओकरा वि‍द्यालयमे दाखि‍ल करौल जाए। इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍। भवलोकमे उमड़ैत-घुमड़ैत माइक मन पुरनीपर एलनि‍। पुरनी नअ बर्खक भऽ गेल, भुमकम सभ कुछ खसा-पड़ा, ढाहि‍-ढनमना देलक अछि‍। तीन मास पछाति‍ पुरनीकेँ दसम बरख चढ़तै। दसम बर्खक पछाति‍ बालामे सि‍यानापनक शक्‍ति‍क उदए होइ छै। केना पुरनीक बि‍आह करब पार लागत। भुमकममे जेते नोकसान भेल ओकरे पुड़बैमे केते दि‍न लागत, बि‍ना पुड़ेनौं जि‍नगीक गाड़ी आगू मुहेँ ससरत केना? तैबीच माइक दुनू ठोर वि‍दकैत मसैक‍ गेलनि‍। मसैकि‍ते मुँहक पट खुजलनि‍। पट खुजि‍ते अपन मनक मोटरी मोनेमे रखि‍ बजली-
दाइ पुरनि‍, तोहूँ आब नअ बर्खक भेलह।
माइक कहल वएह ‘भुमकमक दि‍नक नअ बरख’ जोड़ि‍ पुरनी नानी अपन औरुदाक ठेकान केने छथि‍। मनमे अस्‍सी बरख अबि‍तनि‍ तखनि‍ ने बूझि‍ पड़ि‍तनि‍ जे अस्‍सीक पछाति‍ खस्‍सीक जान जाइते छै, हमरो जाएत। मुदा से तँ खुदरा-खुदरी हि‍साब रहनि‍; १९३४ ईस्‍वीमे भुमकम भेल..., तइ दि‍नमे नअ बर्खक रही..., अखनि‍ २०१४ छी...। उमेरक थाहे ने रहनि‍, तँए रोग-सजि‍या नै बूझि‍ अरम-सजि‍याक समए बढ़बए लगली। ओना अरम-सजि‍या देहक संग-संग मनोकेँ अरमबैत रहनि‍। करनीक धरनी रहै वा नै रहै मुदा अरमान तँ असमान दि‍स बढ़बे करत। जहि‍ना सभ तहि‍ना पुरनीओं नानी ने छथि‍ तँए हुनको मनमे हुअ लगलनि‍। मुदा जेना-जेना बैसारी बढ़ैत गेलनि‍ तेना-तेना काजक दुनि‍याँ ‘घटबी’ होइत गेलनि‍। मुदा चि‍न्‍तो अनेरे कि‍ए करि‍तथि‍, आब कि‍ कोनो मनोरथ रहलनि‍ जेकरा सवारी बना चढ़ि‍तथि‍। आब तँ मात्र पाँच कौर ‘अन्न’ आ पाँच हाथ ‘वस्‍त्र’ भेट जाए, भऽ गेल जि‍नगी। मुदा जि‍नगीओ तँ धराह अछि‍ए। दुनू दि‍स बहैए। एक दि‍स ‘देवगण’ गनगनाइए तँ दोसर दि‍स ‘दानवगण’। बीचमे पड़ल मानव ‘दानव दल’मे नाओं लि‍खौत आकि‍ ‘देवन दल’मे। दल तँ दले छी कखनि‍ हवा-वि‍हाड़ि‍मे उधि‍या कऽ उनट-पुनट भऽ जाएत तेकरो ठेकान नहि‍येँ अछि‍। जेना-जेना पूर्णिमा पबैले पनरहो दि‍नक ति‍थि‍ नमैर‍-नमैर ठेंगी जकाँ  बढ़ैत रहैए तहि‍ना पुरनीओं नानीक मन अपन जि‍नगीक खि‍स्‍सा-पि‍हानी सुनबै दि‍स बढ़लनि‍। मुदा अमावसक अन्‍हार जकाँ नानीक ‘समए’ बदलए लगलनि‍। बदलए ई लगलनि‍ जे मनक जे ‘मनि‍याँ’ रहनि‍ ओ कमैत गेलनि‍। जहि‍ना सभ लीलाधारी अन्‍ति‍म समैमे ‘राम नाम’पर पहुँच जाइत तहि‍ना पुरनीओं नानीक मन मानि‍ गेलनि‍ जे अनेरे एतेटा जि‍नगीमे समुद्र उपछलौं, जखनि‍ कि‍यो ने कि‍छु लऽ कऽ आएल आ ने लऽ कऽ जाएत, तखनि‍ अनेरे ने ‘हाइ-हाइ’ केलौं।
दू मास ओछाइन धेला पछाति‍ जखनि‍ पुरनी नानीक गि‍रह-गाँठ जकड़ए लगलनि‍ तखनि‍ अपनो मन कनी-मनी मानए लगलनि‍ जे भरि‍सक ‘बूढ़’ भऽ गेलौं। बूढ़केँ तँ एकेटा काज बाँकी रहैए, ओ छी ‘मरब’। जखनि‍ सभ मानि‍ते अछि‍ तँ हमहूँ मानि‍ गेलौं, जे बूढ़ भऽ गेलौं, राजा दशरथकेँ कानक ऊपर, माथक पजरवाहि‍मे, एकटा केश पकि‍ते तुलसी बाबा बूढ़ घोषि‍त कऽ देलखि‍न आ हमर तँ सौंसे माथे पटुआक सोन जकाँ झलकैए। दरभंगा असपताल ताबे नै ने बनल रहै जे पाँच बर्खक धि‍या-पुताकेँ पाकल केश तुलसी बाबा देखि‍तथि‍। दू मास बीतैत-बीतैत पुरनी नानी अदहासँ बेसी जि‍नगीक खि‍स्‍सा-पि‍हानी बि‍सरि‍ गेली। ओना अहू दुनू मासमे, जहि‍एसँ पुरनी नानी ओछाइन दि‍स बढ़लथि‍, गाम-समाजक लोक अपन-अपन असीरवाद लि‍अ पहुँचए लगली। जइसँ जेते बात मनमे रहनि‍ ओइमे बँटैत-बँटैत घटबीओ भेलनि‍। होइते छै कि‍ने खुरपी-टेंगारी तँ ओतबे काल तक ने भेल जेते काल ओकरा धार रहै छै आ काजक रहैए। नै तँ कबारखानाक बौस भेल।
आइ पुरनी नानीक तेसर मासक उनतीसम दि‍न छि‍यनि‍‍। भोरेसँ जि‍ज्ञासा केनि‍हारि‍क भीड़ उमड़ए लगल। जे पहि‍ने जि‍ज्ञासा करैत घुमली, ओ भगवानक परसाद बँटि‍ते गेली, ‘पुरनी नानी आब जे क्षण छथि‍ से क्षण छथि‍।’
आरो जि‍ज्ञासुकेँ नौत पड़ैत गेल। पुरनी नानीक ओछाइनि‍क चारू भाग जि‍ज्ञासु बैसल। भाय! जि‍ज्ञासु तँ जि‍ज्ञासु छी अनके बातमे अपन बात घोड़ि‍ओ दइए आ छानि‍ कऽ नि‍कालि‍ओ लइए।
गामक बेटी सुलक्षणी, कौलेजमे पढ़ैत। गाम आएले छल‍। लोकक संग ओहो पुरनी नानी लग पहुँचल। ‘चुपा-चुप, धुपा-धुप’ देखि‍ सुलक्षणी पुरनी नानीक लगमे पहुँच बाजल-
नानी, नीनक की हालति‍ अछि‍?”
सुलक्षणीक अपन ढंगक प्रश्न। नीनो नि‍रोगक लक्षण छि‍ऐ। मुदा पुरनी नानी आब ओइ अवस्‍थामे नै, जे सुलक्षणीक प्रश्नक उत्तर दि‍तथि‍। कानो बन्न भऽ गेल छन्‍हि‍, सोझहे ठोर पटपटबैत सुलक्षणीकेँ देखलखि‍न, सुनलखि‍न कि‍छु ने। मुदा अपन मनक बात मनमे उबि‍याइते रहनि‍ बजली-
बुच्‍ची, जे नीक कि‍ बेजए केलौं से लि‍अ दुनि‍याँमे रहनि‍हार, मुदा अखनो एकटा बात नै बुइझ‍ पेलौं?”
ओना पुरनी नानी जि‍नगीक सभ बात बि‍सरि‍ गेल छेली। मुदा जेना मनक जड़ि‍मे, जनेरक खुट्टी जकाँ रहबे करनि‍। मरै बखतमे कि‍यो नीक ‘मि‍ठाइ’, तँ कि‍यो नीक ‘फल’, तँ कि‍यो कि‍छु तँ कि‍यो कि‍छु लऽ जि‍ज्ञासा करए जाइते अछि‍। जँ से नै तँ मरैसँ घंटा दू घंटा पहि‍ने एते दान-पुन कि‍ए होइए। पुरनी नानीक कानमे मुँह सटा सुलक्षणी पुछलकनि‍-
की नै अखनि‍ तक बूझि‍ पेलौं नानी?”
ओना कानमे मुँह सटा सुलक्षणी बाजल छल मुदा बहि‍राएल कान पुरनी नानीक, कि‍छु ने सुनि‍ पेली। मुदा अपन मनक मणि‍ फुटलनि‍-
बुच्‍ची, पैछलो भुमकम[1] मन अछि‍, आ कि‍छु दि‍न पहि‍ने[2] सेहो भेल। जँ एके रंग[3] भुमकम होइ, मुदा ओकर मास अलग-अलग होइ जेना अपना ऐठाम जाड़क समए माटि‍ नमी युक्‍त रहैए, बरसातमे गील रहैए, आ गरमीमे नमी वि‍हीन रहैए तखुनका, तँ एके रंग क्षति‍ करत।
एहनो तँ होइते अछि‍ ‘जे बात’ लोक नै बुझैए ओकरा गोपलखतामे दऽ दइए। तहि‍ना पुरनी नानीक बातकेँ जि‍ज्ञासा करैवाली गोपलखतामे फेक, बाजलि‍-
बुढ़ाड़ीमे अहि‍ना लोकक मन भऽ जाइ छै, जे अनेरो कि‍म्‍हरोसँ कि‍म्‍हरो मन छि‍ड़ि‍यए लगै छै। नानीक माया छूटि‍ रहल छन्‍हि‍। आब हि‍नकर बात असीरवाद बूझि‍ सि‍र चढ़ा लि‍अ।
मुदा नानीक नै बूझल बातकेँ प्रश्न बूझि‍ सुलक्षणी ‘बारहो मास’ दि‍स तकलक। तीन सए पैंसैठ दि‍नक बरख होइए मुदा तँए कि‍ ‘दूटा दि‍न’ एक रंग होइए आकि‍ दू रंग। तही बीच पछुआएल जि‍गेसा केनि‍हारि‍ सभ पहुँच गेली। बैसल जमात नानीक पएर छूबि‍-छूबि‍ वि‍दा भेली। मुदा सुलक्षणीक मन ठमकि‍ गेल। ठमकला पछाति‍ मन कबुला करा लेलक जे बि‍नु प्रण-पणक जि‍नगी, केरा, अनरनेबाक फल जे उच्‍च कोटि‍क फल तँ छी मुदा आमक गाछ सन छाती थोड़े हेतइ? तखने मनमे उचरलै गोबरे गोइठा बनि‍ आगि‍क रक्षा करैए! आकि‍ मुँहसँ हँसी फुटलै। मने-मन संकल्‍प केलक, ‘अगि‍ला पाठ कौलेजमे पढ़ब।’¦¦¦
२७ जुलाई २०१४


[1] १९३४ ई.क
[2] १९८८ ई.क
[3] रेक्‍टर पैमाना

Thursday, July 24, 2014

मरूभूमि‍

मरूभूमि



जहि‍ना मनुखक तीन अवस्‍था- सूतल, जागल आ सपनाएल- होइए, तहि‍ना भूमि‍क सेहो होइ छै। कौलेजक छात्रा गीता जेहने जागल तेहने रीता मरि‍याएल, मुदा दुनूक दि‍यादी परि‍वार तँए घनि‍ष्‍ठता बेसी। बेसी घनि‍ष्‍ठताक आरो-आरो कारण छै, एकठाम घर सेहो छै, बच्‍चेसँ, जहि‍येसँ स्‍कूल जाए-अबए लगल आ एक्के कि‍लासमे नाओं लि‍खा पढ़ए लगल, तहि‍येसँ दुनू स्‍कूलक संगी बनि‍ आरो घनि‍ष्‍ठताक घनत्‍वकेँ बढ़ौलक। ओना दि‍यादीक डाह सेहो होइ छै। माने कटा-कटी, मारा-मारी, गारा-गारी, मुदा से रीता-गीताक परि‍वारक बीच कहि‍यो ने रहल तँए दुनू बहि‍न रीता-गीताक बीच कि‍ए हएत। एक तँ ओहुना गामो-समाजमे बेटाक अपेक्षा बेटीक बीच घनि‍ष्‍ठता बेसी होइए, तहूमे दुनू पढ़बो-ि‍लखबो करि‍ते अछि‍। ओना एकरंगाह वेपारीओ आ गि‍रहस्‍तोक बीच जि‍नगीक दौड़मे मुँह फुल्‍ला-फुल्‍ली होइए जे से एक-दोसरसँ आगू बढ़ैले कि‍छु उचि‍त अनुचि‍त भाइए जाइ छै, मुदा तैयो आगूक दि‍लाशामे प्रति‍योगि‍क रूप पकड़ि‍ए लइ छै। से एके दि‍स नै, दुनू दि‍स पकड़ै छै। उचि‍तो दि‍स पकड़ै छै आ अनुचि‍तो दि‍स। दुनूक अपन-अपन लक्ष्‍य सेहो छै। तँए कि‍ सभ वेपारीओ आकि‍ सभ गि‍रहस्‍तोमे अहि‍ना रहै छै? नै! एना रहबो केना ने करत? सभ दि‍नसँ होइत आएल अछि‍ जे फनि‍गा[1]केँ चुट्टी बीछि‍-बीछि‍ खाइ छै, चुट्टीकेँ बीछि‍-बीछि‍ बेंग, बेंगकेँ बीछि‍-बीछि‍ साँप आ साँपकेँ‍ गरूड़, तँए ने पर्यावरण नि‍यंत्रणमे अछि‍। तहि‍ना जँ छोट वेपारीकेँ आकि‍ गि‍रहस्‍तेकेँ मझोलका नै बीछि‍-बीछि‍ खाए, मझोलकाकेँ पुरलाहा नै खाए, पुरलाहाकेँ परपुरलाहा नै तखनि‍ पर्यावरण नि‍यंत्रणमे रहत केना! बच्‍चेसँ दुनू दि‍यादी बहि‍नक बीच रहल जे जखनि‍ जे काज करै छी तखनि‍ तहीपर नजरि‍ गड़ा करब, जइसँ दीन दि‍न दि‍नो-दि‍न नीक बनैत जाएत। नीक आकि‍ अधला केतौ एकेबेर हड़-हड़ा कऽ थोड़े भऽ जाइए, ओ तँ होइत-होइत होइए। दुनू दुनूक बीच सम्‍बन्‍ध बच्‍चेमे एहेन बनि‍ गेल जे बि‍ना संग केने स्‍कूलो ने जाइत। भलहिं तैयार भेलो पछाति‍ कि‍ए ने एक-आध घंटा बि‍लमए पड़ै। मुदा से कोनो अधला नै। निरर्थक घोड़-दौड़मे समैक महते की रहैए, जे अनेरे कि‍यो समैक नांगरि‍ पकड़ि‍ दौड़ा-दौड़ीमे हकमैत रहत। घरसँ बहराइते दुनूक बीच एहेन बनि‍ गेल छै जे बाटमे जेकरे नजरि‍ कोनो नब वस्‍तुपर पड़तै तँ ओ ओकरे जि‍नगीक खेलौना बूझि‍ एक-दोसरकेँ पूछि‍, बक-झक करैत एक सीमापर अँटकि एक राय बना सीमान दऽ दइए।
जेना-जेना वि‍द्यालय घुसकैत गेल तहि‍ना-तहि‍ना रीता-गीताक जि‍नगी आ जि‍नगीक वि‍चार सेहो घुसकैत गेल। आब, दुनू कौलेजमे पढ़ैए। घरेक गोसाउनि‍क गीतटा नै भूगोल पढ़ि‍ दुनियोँक गप-सप्‍प करए लगल अछि‍।
जहि‍ना घरसँ स्‍कूलक रस्‍तामे नि‍कलि‍ते कोनो वस्‍तुकेँ ज्ञान बूझि‍ धि‍यानक करखानामे दुनू औंट-पौर दूधकेँ दही जनमबैत। ओना बच्‍चेक वि‍द्यालयसँ दुनू भूगोल पढ़ने, मरूभूमि‍क चर्च कि‍ताबोमे देखने आ कानोसँ सुनने। मुदा भूगोलमे दुनू ओही दि‍नसँ भरमि‍ गेल जइ दि‍न कि‍ताबमे पढ़लक जे दुनि‍याँ गोल छै, आँखि‍क सोझमे उतरे-दछि‍ने आकि‍ पूबे-पछि‍मे खूब नमती धरती छै। ऊपर अकास छै तँ ने ओकरे ठेकान छै जे केते ऊपरमे अछि‍ आ ने तरे दि‍स पताल छै तँ केते तरमे अछि‍। एक भग्‍गू नाप, मानि‍ दुनू एक राय बना नेने छल जे कि‍ताबक बात दोसर होइ छै आ आँखि‍क सोझक बात दोसर। तँए मरूभूमि‍केँ कि‍ताबक बात मानि‍ दुनू गोटे ओइ काैपीक पन्नामे लि‍खि‍ कऽ रखि‍ लेलक जे भूगोलक छल। दुनू आइ कौलेजक कि‍लासमे नब सि‍रासँ मरूभूमि‍ सुनलक। ओना कि‍लासक मरूभूमि‍क चर्च पहि‍ल दि‍न भेल तँए प्रोफेसर साहैब मरूभूमि‍क भूमि‍के बान्‍हि‍ वर्ग-वि‍सर्जन केलनि‍। सेहो भूमि‍का साहि‍त्‍यक भूमि‍का जकाँ नै, भूगोलक भूमि‍के की हएत। मुदा भूमि‍केमे रीतो आ गीतो मरूभूमि‍क अगि‍ले आखरमे चोन्‍हि‍या गेल, तँए नीक जकाँ दुनूमे सँ कि‍यो ने बुझलक। मुदा तैयो मनमे सबूर बन्‍हलक जे आइ भूमि‍के ने छल, असल तँ आगू औत तँ अनेरे मनहूस कि‍ए करब। अखनि‍ हूसबे केते कएल हेन। पहि‍ने प्रोफेसर साहैब भूमि‍के देलखि‍न, आगू आरो कहथि‍न जे बुझैमे नै औत से पूछि‍ लेबनि‍, पछाति‍ ने अंति‍म सीढ़ीपर पहुँचब। छुट्टी होइसँ पहि‍ने दुनू दुनूक ताक ताकि‍ आँखि‍-मि‍लौनी कऽ मनमे प्रश्न रोपि-गाड़ि‍‍ लेलक। एक्केक नाओं रोपब आ गाड़ब दुनू छी। एकटा भेल कोनो गाछकेँ माटि‍मे गाड़ब, आ वएह भेल रोपब। छुट्टीक घंटी बाजल। दुनू कि‍लाससँ नि‍कलल। वि‍द्यार्थीक जेरक बीचसँ जहि‍ना रीता एकबाहि‍ होइत गीता दि‍स बढ़ल तहि‍ना दोसर दि‍ससँ गीतो कनछि‍याइत रीता दि‍स भेल। एकठाम होइते दुनू एकांत बूझि‍ गप-सप्‍प करैक स्‍थान चुनलक। एकान्‍ते स्‍थलमे ने जोगीओ दुनि‍याँ देखैए आ भोगीओ। मुदा से नै रीता-गीता दुनू सांसारि‍क मनुख, तँए अपन जीवनक लेल सुनल प्रश्नक उत्तर तकै दि‍सक वि‍चार करैत रहए। प्रश्नक उत्तर तकैमे बाट-घाट सेहो ताकए पड़ै छै, जे कोनो चि‍कनो होइ छै आ कोनो उबरो-खाबड़बला। ओना, जहि‍ना रीता गीताक चेहरा देख-देख परखैत जे बात सुनै जोकर मन खनहन छै आकि‍ नै, तहि‍ना गीतो रीताकेँ परेखि‍ लेलक। दुनूक अपन-अपन बात मनमे उज-मारि‍ करै जे पहि‍ने हम आगू हएब तँ पहि‍ने हम। बात रहै जे रीताक मनमे ‘भूमि‍का’ शब्‍द ओझराएल आ गीताक मनमे ‘मरूभूमि‍’ शब्‍द। ओना प्रश्नोक दू सोभाव होइ छै, एक होइ छै जानैक खि‍यालसँ आ दोसर होइ छै जँचैक खि‍यालसँ। मुदा से जहि‍ना कोनो थलकमल गाछक डारि‍ एके दि‍न जनमि‍ संगे बढ़ैत संगे फुलाइए तहि‍ना दुनू गोटेक बि‍चक सम्‍बन्‍ध, तँए दोसर कोनो मलि‍नता नहि‍येँ। दुनू अपन-अपन बजैक सूर मि‍ला सुनि‍नि‍हार दि‍स देखि‍ आँखि‍ उठा-उठा एक-दोसरकेँ देखलक। तानी-भरनी मि‍लते रीता बाजल-
बहि‍न गीता, हम-तूँ तँ ओहि‍ना ने छी जेना रीतक संग गीत चलैए आ गीतक संग रीत।  
रीताक बातमे गीता हूँहकारी भरलक। कि‍एक तँ मन इशारा कऽ देलकै जे एके-हूँहकारीमे रीता गदगदा जाएत जइसँ अपन प्रश्न अगुआ लेब। गरो सुतरलै। हूँहकारीक खि‍ल-खि‍ली खतमो ने भेल छेलै तइ बि‍च्‍चेमे गीता बाजि‍ उठल‍-
मरूभूमि‍ की?”
अपन पछुआइत प्रश्नक समए देखि‍ रीता बाजल-
बहि‍न, जहि‍ना तोहर प्रश्न तहि‍ना हमरो मनमे एकटा उचड़ैए।
जखने प्रश्नपर-प्रश्न लधाएत तखने‍ कोन केहेन रहत आकि‍ सभटा बेदरंग भऽ जाएत तेकर कोन ठेकान छै। मुदा प्रश्नक उत्तर होइत जँ प्रश्न चलत तँ ओ चलन्‍त प्रश्न भेल जे उचि‍तो छै। अपन प्रश्नपर दोहरी जोर दैत गीता बाजल-
बहि‍न, समए केतौ पड़ाएल नै जाइ छै, अखनि‍ कौलेजसँ नि‍कलबे केलौं अछि‍, प्रश्ने केतेटा अछि‍ जे घर तक पहुँचैमे नै फड़ि‍छाएत।
रीताक मनमे होइ जे पहि‍ने भूमि‍काक चर्च जँ नै हएत तब तँ गड़बड़ाएत, मरूभूमि‍ तँ अगि‍ला भेल। पहि‍ने कोनो चीज जनमत तखनि‍ ने मरत। जँ मरले जनमत तँ मरले-जनम ने भेल। तँए अपन प्रश्नकेँ अगुआएब नीक बुझैत। गीताकेँ नै चाहि‍तो रीता अपन प्रश्न रखलक-
भूमि‍का की?”
प्रश्न सुनि‍ गीता समगम होइत बाजल-
बहि‍न, जेहने प्रश्न अहाँक तेहने हमरो। जहि‍ना अहाँ सुनलौं तहि‍ना हमहूँ सुनलौं। भरि‍ बाट अहँू औंटू आ हमहूँ औंटै छी। जेते औंट लागत तेते रस गढ़ाएत।
समुचि‍त बात सुनि‍ रीता वि‍चार मानि‍ बाजल-
बड़ बढ़ि‍याँ।
कहि‍ चुप होइत मरूभूमि‍ दि‍स नजरि‍ देलक। एक भेल जीवि‍त भूमि‍, दोसर भेल मरूभूमि‍। मुदा अपन प्रश्न अछि‍ भूमि‍का। पहि‍ने भूमि‍क चर्च हएत तखनि‍ ने ओकर मरन-जि‍अनक।
जहि‍ना रीता चुपी लाधि‍ देलक तहि‍ना गीतो लाधि‍ लेलक। धि‍या-पुताक खेल जकाँ चुप्‍पा-चुप, धुप्‍पा-धुप पसरि‍ गेल। मुदा मन औना गेलै। साँपक बीख झाड़नि‍हार मनतरि‍या घरसँ नि‍कलि‍ते अपन देहकेँ भूमि‍ मानि‍ बान्‍हि‍ बजैए, ‘जल बान्‍हो, थल बान्‍हो, बान्‍हो अपन काया...।’ आब ऐठाम की बूझब। दोसर दि‍स देखै छी जे भूमि‍के बान्‍हि‍ घटक सभ दि‍न-राति‍ गरदनिकट्टी करैए।
कौलेजसँ घर दुनू पहुँच गेल मुदा केकरो उत्तर भेटबे ने कएल। अँगनाक रस्‍ता जैठाम फुटै छै तैठाम आबि‍ गीता बाजल-
बहि‍न, उत्तर नै भेटल तँ नै भेटल, कौल्हुका समैओ तँ पछुआएले अछि‍। तइले वि‍द्यालयकेँ थोड़े अबलट जोड़ब जे केकर मुँह देखि‍ वि‍दा भेलौं जे जतरे खराप भऽ गेल। घरसँ वि‍द्यालय गेलौं वि‍द्यालयसँ घर एलौं, जँ अहि‍ना जि‍नगी चलैत रहए, तँ ऐसँ आगू की चाही।
गीताक वि‍चार सुनि‍ रीता हँूहकारी तँ भरि‍ देलक मुदा मन झुरझुराइते रहलै। मनो केना नै झुरझुरैतै? पहि‍ने जी आकि‍‍ पहि‍ने दाँत? देखलो पछाति‍ तँ लोक बजि‍ते अछि‍ जे जी-दाँत देखि‍ पसिन करू। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत रीता बाजल-
बहि‍न, खुरपी लेमे आकि‍ बेंट?”
रीता-
हमरा-तोरा काल्हि‍ कौलेजमे प्रोफेसर साहैबक सोझहामे, अपन-अपन प्रश्नक हएत भेँट।
मुस्‍कीआइत दुनू गोटे मुहथरि‍सँ आगू बढ़ल।
¦¦¦
२० जुलाइ २०१४



[1] छोट-छोटकेँ कि‍ड़ी-फतिंगी

Tuesday, July 15, 2014

रेहना चाची

रेहना चाची



दि‍न लहसैत कि‍शुन भाय लौफा हाटसँ घुमती बेर जखनि‍ दीप पहुँचला तँ बाटपर ठाढ़ रेहना चाचीपर नजरि‍ पड़लनि‍। कोराक बच्‍चा-प्रपौत्रकेँ रेहना चाची बाजि‍-बाजि‍ खेलबैत। रेहना चाचीक अवाज सुनि‍ते कि‍शुन भायकेँ सात-आठ बरख पहि‍लुका बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा सत्तरि‍ बर्खक झूर-झूर भेल शरीर, धँसल आँखि‍, आमक चोकर जकाँ मुँहक सुरखी देखि‍ शंको भेलनि‍। ओना सात-आठ बर्खसँ कि‍शुन भाय रेहना चाचीकेँ नै देखने रहथि‍ तँए हँ-नै दुनूमे मन फँसल रहनि‍। फँसबो उचि‍ते छेलनि‍। एक दि‍नमे तँ राज-पाट उनटि‍ जाइए, सात-आठ बरख तँ सहजे सात-आठ बरख भेल। मुदा तैयो मन तरसैत रहनि‍, तरंगी होइत रहनि‍ जे रेहना चाचीक अवाज छी। लग्‍गा भरि‍ हटि‍ बाटेपर साइकि‍ल दहि‍ना पएरक भरे ठाढ़ केने, रेहना चाचीपर आँखि‍ गड़ौने मने-मन वि‍चारि‍ते छला आकि‍ अनायास मुँह फुटलनि‍-
रेहना चाची।
‘रेहना चाची’ सुनि‍ चाची बच्‍चापर सँ नजरि‍ उठा चारू दि‍स खि‍रौलनि‍। दछि‍नवारि‍ भाग साइकि‍लपर ठाढ़ भेलपर नजरि‍ पड़लनि‍। चेहरासँ चि‍न्‍ह नै सकली। मुदा कानमे कि‍शुनक अवाज ठहकलनि‍। अवाज ठहकि‍ते बोल फुटलनि‍-
बौआ, कि‍शुन।
‘बौआ कि‍शुन’ सुनि‍ कि‍शुन भायकेँ जीहमे जान एलनि‍। जान अबि‍ते जीहपर राखल तीस बरख पहि‍लुका रेहना चाचीक रूप-रंग-बोल ठहकलनि‍। वएह रेहना चाची जि‍नकर जि‍नगीक दुनि‍याँ दछि‍न भाग लखनौर उत्तर बेरमा पूब कछुबी आ पछि‍म सुखेत भरि‍ छेलनि‍। यएह छेलनि‍ हुनकर कर्मभूमि‍ आ दीप छेलनि‍ पति‍भूमि‍। एक तँ अहुना दीप ओहन गाम अछि‍ जइमे छोट घराड़ीक परि‍वार बेसी अछि‍। जइसँ बरो-बाट घराड़ीए बनि‍ सुखसँ रहैए। पहि‍ने घराड़ीपर घर तखनि‍ ने जाइ अबैले आकि‍ चलै-फि‍ड़ैले बर-बाटक खगता होइए। बाटक काज तँ एक पेड़ीओ, खुरपेड़ीओ आ धुरपेड़ीओसँ चलि‍ सकैए मुदा घराड़ी बि‍ना घर बाँसक धूजा बनि‍ थोड़े फहराएत। घराड़ी भरि‍ जमीनमे बास करैवाली रेहना चाचीक जीवि‍काक बेवसाय छेलनि‍, भोरे अपन जवाबदेहीक अँगना-घरक काज सम्‍हारि‍, पथि‍यामे अपन सौदा-बारी सैंति‍, चारू दि‍सक गामक पारक हि‍साबसँ नि‍कलि‍ एक अनि‍या अलता, पैयाही डोरा, पैयाही सुइयाक संग आनो-आन बौस लऽ गामक सीमान टपि‍ आन सीमानमे भरि‍ दि‍न गमा साँझ पड़ैत फेर अपन सीमानमे पहुँच जाइ छेली। मि‍थि‍लाक जे गौरव-गाथा अछि‍ दुआरपर आएल बाट-बटोही, भुखल-दुखल जँ खाइबेर पहुँचैत वा जलखैए बेर पहुँचैत आकि‍ जखनि‍ जे समए रहल, पहि‍ने हुनकर आग्रह करि‍यनि‍। ओना खाधुरोक अपन राज-पाट छै। जँ से नै छै तँ ओइठामक भोजैतक कोटा हजार रसगुल्‍ला आ बीस कि‍लो माछक ओरि‍यानक पछाति‍ कि‍ए नतहारी ताकब छै। ओहन नतहारी जकाँ तँ नै मुदा हि‍स्‍सामे बखरा तँ लोक नि‍माहि‍ते अछि‍। काेनो गाम अबैसँ पहि‍ने रेहना चाची बि‍सरि‍ जाइ छेली जे भरि‍ दि‍न खाएब की आ रहब केतए। परि‍वार परि‍वारक बीच खाली कारेबारक सम्‍बन्‍ध नै। घंटा-घंटा बैस रेहना चाची अपनो जि‍नगी आ परि‍वारो-समाजोक जि‍नगीक खि‍स्‍सा-पि‍हानी सुनैत अपन कारोबार करैत आएल छेली।
साइकि‍लपर सँ उतरि‍ कि‍शुन भाय, स्‍टेण्‍डपर साइकि‍ल ठाढ़ करैत बजला-
चाची गोड़ लगै छी?”
कि‍शुन भायक गोड़ लागब रेहना चाची सुनबे ने केली जे असि‍रवाद दि‍तथि‍न, ले बलैया उनटा कऽ पुछि‍ देलखि‍न-
बौआ, माए नीके छह कि‍ने। जहि‍यासँ गाम छूटल, कारोबार गेल तहि‍यासँ चीन्‍हो-पहचीन गेल। के केतए जीबैए आ केतए मरि‍ गेल। मरि‍ गेल मनक सभ सखी-बहि‍नपा।
रेहना चाचीक बात सुनि‍ कि‍शुन भायक माथ चकरेलनि‍। जहि‍ना एक-जनि‍या, दू-जनि‍या, बहु-जनि‍या ओछाइनो-बि‍छाइन चकराइत जाइए तहि‍ना बुधि‍ओ-बुधि‍यारी आ चासो-बास तँ चकराइते अछि‍। तहि‍ना कि‍शुन भायक मन चकरा गेलनि‍, चकरा ई गेलनि‍ जे गाम छूटल! गाम कि‍ए छूटल? गुम-सुम भेल कि‍शुन भाय रेहना चाचीक झूर-झूर भेल चेहरा देखए लगला, जेना खेसारी-बदामक बीड़ि‍या झूर-झूर भेलो पछाति‍ गरदी तरकारीक रूप पकड़ि‍ भोज्‍य भोग पबैक सुख पबैत अपन जि‍नगी चैनसँ गमबए चाहैए, तहि‍ना चाचीक मन सेहो पुलकैत रहनि‍। मुदा बि‍नु बुझनौं तँ नहि‍ने लोक बुझैत। कोनो बात सुनब आ बुझब, दू भेल। बुझैक लेल बेसी सुनए पड़ै छै, सुनै तँ लोक एकहरफीओ अछि‍। भाय पुछलखि‍न-
चाची, गाम केना छूटल?”
कि‍शुन भायक प्रश्न सुनि‍ रेहना चाचीकेँ एको मि‍सि‍या बि‍सबि‍सी नै लगलनि‍, जेना नीक जि‍नगी पाबि‍ कि‍यो नीक सि‍रासँ अपन जि‍नगीक बाट पबि‍ते खुशी होइए तहि‍ना भगि‍न जमए पाबि‍ रेहना चाची खुशी छथि‍। मुदा पेटमे पेटेले झगड़ा उठि‍ गेलनि‍। झगड़ा ई उठलनि‍ जे बीतल जि‍नगीमे जे घटल सत बात अछि‍ ओ बाजल जा सकैए आकि‍ नै। ओना आब ओइ बातक खगतो नहि‍येँ जकाँ अछि‍ मुदा इति‍हास तँ काल-खण्‍ड वि‍हि‍न भाइए जाएत। मन बेकाबू भऽ गेलनि‍ मुदा बि‍सवास देलकनि‍। बि‍सवास ई देलकनि‍ जे अबैया दि‍न सुखैया तँ अछि‍ए तखनि‍ कि‍ए ने अपन जि‍नगीक बात भाइओ-भातीजकेँ कहि‍ दि‍ऐ। आब कि‍यो जि‍नगी लूटि‍ लेत। बजली-
बौआ, सात-आठ बर्खसँ गाम सभ छोड़लौं ओना खटनी छुटने देहो हर-हरा गेल, मुदा मन अखनो कहैए जे जानि‍ कऽ रोगा गेलौं। गामे-गामे तेना ने छीना-झपटी हुअ लगल जे आन गामक लोकक कारेबारेेटा नै चलैक रस्‍तो कटि‍-खोंटि‍ गेल।
एक संग कि‍शुन भायक मनमे रंग-बि‍रंगक अनेको प्रश्न उठि‍ गेलनि‍, मुदा जहि‍ना मुड़ी आ टाँग कटल लहासकेँ परखब कठि‍न भऽ जाइए तहि‍ना चाचीक बात सुनि‍ भेलनि‍। छीना-झपटी आकि‍ झपटी-झपटा, वएह ने जे जहि‍ना प्रखर वक्‍ता लोकनि‍ अपन मेहि‍का चाउरमे मोटका चाउर फेँटि‍ काज ससारि‍ लइ छथि‍ आकि‍ मोटके चाउरमे मेहि‍का फेँटि‍ दइ छथि‍न। मुदा अनेरे मन वौअबै छी। मनकेँ थीर करैत बजला-
चाची, जहि‍या जे भेल, से भेल, आब नीके छी कि‍ने?”
कि‍शुन भायक बात सुनि‍ रेहना चाची बि‍समि‍त भऽ गेली। बि‍समि‍त ई भऽ गेली जे यएह देह छी, अपन गाम लगा पाँच गामक लोकसँ हबो-गब करै छेलौं आ खेबो-पीबो करै छेलौं, कमाइओ-खटाइ लइ छेलौं, से तँ छि‍नाइए गेल कि‍ने। ओना आब अपन उमेरो ने रहल जे माथपर पथि‍या लऽ चारि‍ गाम घूमि‍ कारोबार करब। रेहना चाची बजली-
अपन बेटा-पोता अल्‍ला हेरि‍ लेलनि‍, मुदा फेर वएह ने देबो केलनि‍।
रेहना चाचीक उत्तर कि‍शुन भाय नीक जकाँ नै बूझि‍ सकला। तेकर कारण भेलनि‍ जे लगले सुनला‍ जे बेटा-पोता हेरि‍ लेलनि‍ आ लगले सुनला जे प्रपौत्र बच्‍चा छी आ भगि‍न-जमएक परि‍वारमे रहै छी। मनकेँ सोझरबैत कि‍शुन भाय बजला-
चाची, हमरा ओहि‍ना मन अछि‍, जखनि‍ माइओ आ अहूँ एकेठीन बैस खेबो करी आ नीक-अधला गपो करी।
कि‍शुन भायक बात सुनि‍ रेहना चाचीक अपन सत्तरि‍ बर्खक जि‍नगी बि‍जलोका जकाँ मनमे चमकलनि‍। करि‍याएल मेघ, बदरि‍याएल मौसम, सरदि‍याएल राति‍मे जखनि‍ बि‍जलोका चमकै छै तखनि‍ ओ अपन इजोतक संग अवाज करैत कहै छै जे हम लाली इजोत छी नै कि‍ पीड़ी। पीड़ी दूर-देशक होइ छै लाली लगक। प्रमाण असतक होइ छै आकि‍ सतक? सत तँ अपने सत भऽ सौंसे फल फड़ जकाँ अछि‍।
रेहना चाचीक आगूमे ठाढ़ कि‍शुन भायकेँ ने अक चलनि‍ आ ने बक। दि‍न सेहो लुक-झुका गेल। सुरूज तँ डूमि‍ गेल मुदा लाली ओहि‍ना पसरल। कि‍शुन भाय बजला-
चाची, अखनि‍ तँ दि‍न नि‍सचि‍त नै भेल मुदा अखने कहि‍ दइ छी जे अहाँकेँ लि‍औन करै छी।
कि‍शुन भायक लि‍यनु सुनि‍ रेहना चाचीक मन ठहकलनि‍। मन ठहकलनि‍ ई जे आब वएह जुग-जमाना रहल आकि‍ ओइसँ नीको-अधला भेल। नीक-अधलाक बीच रेहना चाची बोझक तर पड़ि‍ गेली। जइसँ बोथि‍या गेली। बोथि‍या ई गेली जे की सम्‍बन्‍ध छल! कोरा-काँख तर केते दि‍न कि‍शुन लालकेँ नेने छी, पावनि‍मे पवनौट खुएलौं आ अपने केतए खेलौं, तेकर कोन हि‍साब। जि‍नगीए ओही भरोसे बीतल कि‍ने। आइ ओइ कि‍शुन लालक बेटाक बि‍आह छी, की आब ओतए पहुँच पाइब सकै छी? केना पाबि‍ सकै छी? जैठाम लोक अधला काज करै छल तैठाम गंगाजलसँ सि‍क्‍त कऽ नीक बनौल जाइ छल, आ अखनो बनौल जाइए। मुदा ओहन तँ जगहे खि‍या गेल। मुदा जैठाम गंगेजल अधला बनि‍ जाएत, तैठाम की उपए। रेहना चाचीक मन ओझरा गेलनि‍। मुदा सौझुका तारा जकाँ जेना मनमे भुक दनि‍ उगलनि‍। उगलनि‍ ई जे जँ कहीं काजेक चर्च पाछू पड़ि‍ जाएत आ अनेरूए गप साँझ पड़ा देत तइसँ नीक जे काजक नागड़ि‍ पकड़ि‍ धार पार होइ, बजली-
बौआ, ढौओ-कौड़ी लेलहक हेन?”
ढौआ-कौड़ीक बात सुनि‍ कि‍शुन भायक मन पुलकलनि‍। बजला-
चाची, बि‍आहक अखनि‍ गपे-सप उठल हेन, ओ सभ गप पछुआएले अछि‍, जखनि‍ बि‍आहमे एबे करब तखनि‍ सभ गप बुझा देब।
कि‍शुन भायक झाँपल-तोपल बात सुनि‍ रेहनो चाचीक मनमे उठलनि‍, जेते अल्‍ला-मि‍याँ परि‍वार सभकेँ झाँपन-तोपन दैत रहथि‍न तेते नीक। भगवान सभकेँ नीक करथुन। बजली-
कि‍शुन बौआ, देखि‍ते छह जे अथबल भेलौं। चलै-फि‍ड़ै जोकर नै रहलौं, मुदा पोताक बि‍आह देखैक मन तँ होइते अछि‍, से...।
रेहना चाचीक बात सुनि‍ कि‍शुन भाय गुम भऽ गेला। गुम ई भऽ गेला जे की रेहना चाचीकेँ यज्ञ-काजमे लि‍यनु करा लऽ जा पएब? की समाज एकरा पसि‍न करत? जे दुरकाल समए बनल जा रहल अछि‍ ओ भरि‍याएल जरूर अछि‍। मुदा जात तर पड़ल ओंगरी जँ नि‍कालि‍ नै लेब, तँ जातक काजे केना चलत। कोनो एकेटा ने हएत या तँ पीसि‍या हएत वा ओंगरी पि‍साएत। मुदा भवि‍स...।

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९ जुलाइ २०१४ 


जगदीश प्रसाद मण्‍डल

शिक्षा : एम.. द्वय (हिन्‍दी आ राजनीति शास्‍त्र), जीवि‍कोपार्जन : कृषि‍
सम्‍मान : गामक जिनगी लघुकथा संग्रह लेल पहि‍ल “विदेह समानान्‍तर साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार” २०११क मूल पुरस्‍कार आ मैथि‍लीक पहि‍ल “टैगाेर साहित्‍य सम्‍मान” २०११; तथा समग्र योगदान लेल वैदेह सम्‍मान- २०१२; एवं बाल-प्रेरक विहनिकथा संग्रह ‘‘तरेगन’’ लेल पहि‍ल बाल साहित्‍य विदेह सम्‍मान२०१२ प्राप्‍त।
साहि‍त्‍यि‍क कृति :

उपन्‍यास : () मौलाइल गाछक फूल, () उत्‍थान-पतन, () जिनगीक जीत, () जीवन-मरण, () जीवन संघर्ष, () नै धाड़ैए, () बड़की बहिन प्रकाशित। () सधबा-विधवा () भादवक आठ अन्‍हार अप्रकाशि‍त। नाटक : (१०)  मिथिलाक बेटी, (११) कम्‍प्रोमाइज, (१२) झमेलिया बिआह, (१३) रत्नाकर डकैत, (१४) स्‍वयंवर प्रकाशित। लघु कथा संग्रह : (१५) गामक जिनगी, (१६) अर्द्धांगिनी, (१७) सतभैंया पोखरि, (१८) उलबा चाउर, (१९) भकमोड़ प्रकाशि‍त। तथा (२०) पतझार, (२१) अप्‍पन-बीरान, (२२) बाल गोपाल, (२३) रटनी खढ़, (२४) लजबि‍जी,  शि‍घ्र प्रकाश्‍य। विहनिकथा संग्रह : (२५) बजन्‍ताबुझन्‍ता, (२६) तरेगन प्रकाशित। एकांकी संग्रह : (२७) सतमाए, (२८) कल्‍याणी, (२९) समझौता, (३०) तामक तमघैल (३१) बीरांगना केर संग्रह “पंचवटी” नाओंसँ प्रकाशित। दीर्घ कथा संग्रह : (३२) शंभुदास प्रकाशित। कविता संग्रह : (३३) इंद्रधनुषी अकास, (३४) राति‍-दिन प्रकाशित। (३५)  सतबेध अप्रकाशि‍त। गीत संग्रह : (३६) गीतांजलि, (३७) तीन जेठ एगारहम माघ, (३८) सरिता, (३९) सुखाएल पोखरि‍क जाइठ प्रकाशित।m

कर्जखौक

कर्जखौक


आइ भोरे चाह पीला पछाति‍ करि‍याकाकाकेँ लालकाकीक संग तेहेन टक्कर भेलनि‍ जे भेला पछाति‍ दुनूक मन हरदा बाजि‍ निर्णएक सीमापर पहुँच गेलनि‍, भोरे-भोर एना टक्कर हएब नीक नै! भेल ई जे करि‍योकाका आ लालोकाकी दुनू गोटे चाह पीवि‍ते रहथि‍ तखनि‍ते तरकारीवाली पहुँचली। दुनू परानी मि‍लि‍ तरकारी कीनलनि‍। महगक समए तीनि‍ए कि‍लोक दाम अस्‍सी रूपैआ भऽ गेलनि‍। पाइ देबाकाल करि‍याकाका बजला-
सात तारीककेँ दरमाहा उठैए। आठ तारीककेँ तोरा पाइ भेट जेतह।
तरकारीवाली चुपे रहलि‍। नगद-उधार गाममे चलि‍ते अछि‍। वेपारो तँ वेपारे छी नगदो चलैए उधारो चलैए। मुदा पति‍क बात लालकाकीकेँ नीक नै लगलनि‍। नीक नै लगैक कारण भेल जे जे तरकारीवाली मन भरि‍ तरकारी माथपर नेने गाममे भोरेसँ बेचब शुरू करैए आ तेकर समान उधारी लगि‍ जाए तखनि‍ ओकर कारोबार केना चलत। तखनि‍ तँ यएह ने जे या तँ ओहो वेपारी वा गि‍रहतसँ उधार लि‍अए, वा तेना कऽ दाम लि‍अए जे सूदि‍खोर महाजनक सुइद चुकबए। ओना नफ्फा ओइठाम नै होइ छै जैठाम अछि‍। जैठाम नै अछि‍ तैठाम दोसरो वि‍चार सम्‍भव अछि‍। लोहछि‍ कऽ करि‍याकाकाकेँ लालकाकी कहलखि‍न-
सभ दि‍न अहाँ कर्जखौके रहि‍ गेलौं! आबो चलन पि‍यारा भेलौं, तैयो चालि‍ नै छुटल?”
दुनू परानीक बीच वि‍वाद बढ़ैत देखि‍ तरकारीवाली अपन छि‍ट्टा उठा वि‍दा भऽ गेलि‍। मनमे एलै‍ अनेरे कोन झमेलमे बरदाएल रहब। तहूमे दुनू बेक्‍तीक झमेल छी। आइ नै पाइ देलनि‍ तँ की हेतै, परसुए तँ सात तारीक छी चारि‍म दि‍न दइए देता। तरकारीवाली चलि‍ गेलि‍, मुदा जहि‍ना करि‍याकाकाकेँ तहि‍ना लालकाकीकेँ बघजर लगि‍ गेलनि‍। तरकारी बीचमे राखल दुनू दि‍स दुनू परानी एक-दोसरापर नजरिओ खि‍ड़बैत आ नजरि‍ नीचो करैत। दुनू अपन-अपन सीमामे घेराएल। लालकाकीक मनमे उठैत अनेरे तेहल्‍ला बीच नीच-ऊँच बात बजलौं। जँ कहबे छल तँ परोछमे कहि‍ति‍यनि‍। अपन परि‍वारक नीक-अधला काज अपने नै सम्‍हारब तँ आन केकरा के सम्‍हारल, सभकेँ तँ परि‍वारो छइहे आ कि‍छु ने कि‍छु बक-झक होइते अछि‍। मुदा लगले मन पाछू दि‍स घुसुकि‍ वि‍चारक दुनि‍याँ- भव मण्‍डलमे पहुँच गेलनि‍। पहुँच गेलनि‍ ओइठाम जैठाम अपनो आर्थिक स्‍थि‍ति‍ देखथि‍ आ तरकारीवालीक सेहो। जेकरा हजारोसँ कम पूजी छै, भरि‍ दि‍नक श्रमक मूल्‍य सेहो ओहीमे ने राखत, जँ दाम चढ़ा कऽ लेत तँ सौदोबला तँ बुझबे करत जे फल्लाँ तरकारीक दर ई छै। तही हि‍साबसँ ओहो दाम लेत। दुनू दि‍ससँ तरकारीवालीक गरदनि‍ फँसल। अपन ओहेन दब स्‍थि‍ति‍ नै अछि‍ जे खाइ पीबैक बौस उधार लेब। कि‍ए लेब? जि‍नगीमे लोक कमाइ-खटाइ कि‍ए अछि‍, कि‍ए कि‍यो केकरो कर्जखौक हएत। मुदा लगले लालकाकीक मन घूमि‍ गेलनि‍। घुमलनि‍ ई जे जेकरा हाथमे पाइ नै छै दि‍नका खेनाइक सवाल छै, तैठाम की‍ कएल जाए! कएल की जाए, यएह ने भेल सामाजि‍कता; जे सबहक दुख-सुख सभ बूझि‍ सभकेँ सभ संग दथि‍। मुदा हमर अपने कोन जोगदान समाजमे रहल? जँ कि‍छु देलि‍ऐ नै तँ लेबोक अधि‍कार तँ नहि‍येँ अछि‍! मन तरंगलनि‍। तरंगि‍ते पैछला जि‍नगी दि‍स बढ़लनि‍। पैंतीस सालक नोकरीमे दरमाहाक संग उलफीओ आमदनी छेलनि‍। तहूमे कि‍रानीक नोकरी। मुदा कहि‍यो एहेन नै रहल जे दूधवालीक उधार, तरकारीवालीक उधार, कि‍राना दोकानक उधार नै रहल! जखनि‍ कि‍ दरमहे ओते छेलनि‍ जे मासो भरि‍क खर्चसँ कि‍छु बेसीए भऽ जाइ छेलनि‍। मुदा जेकरासँ हम उधार लइ छी, जँ नगदे लेब, आकि‍ अगुरवारे ओकरे लग जमा रखि‍ ली जे मासो भरि‍ तरकारी चलत, तहि‍ना दूधोवालीक भऽ सकैए। तैबीच अपनाकेँ कर्जखौक बना जि‍नगी चलबैत रहलौं! हथ-उठाइ केकरा के दइ छै, बड़ दइ छै तँ एक कप चाह आ एक खि‍ल्‍ली पान खुआ दइ छै। जँ लेबालक अगुरवार पाइ वेपारी हाथ पहुँच जाए तँ ओकरा पूजीमे बढ़ोत्तरी हएत। जइसँ अहाँक अपन काज भेल आ दोसर परि‍वारकेँ जीवैक आशा भेटलै। समाजक माने दस टोलक लोक सोझे नै ने छी, ओ छी जि‍नगीक संगी, कारोबारक संगी, वि‍चारोक संगी। फेर लालकाकीक मन कड़कड़ेलनि‍। कड़कड़ेलनि‍ ई जे कहू केहेन भुच्‍चरपना चालि‍ जि‍नगी भरि‍ पकड़ने रहि‍ गेला जे सभ दि‍न अभावेमे रहि‍ गेला। कहि‍यो भाव बुझबे ने केलनि‍। नचनि‍याँ सभ ठीके गबै छै-
“दुख ही जनम लेल, दुख ही गमाैल सुख कहि‍यो ने भेल...।
हँ! समाजमे अखनो एहेन अछि‍ जे केतेकेँ भरि‍ पेट अहार नै भेटै छै, उचि‍त अहारक तँ चरचे नै। मुदा अपना तँ से नै अछि‍। जि‍नगीक पैंतीस बरख धरि‍ पति‍ सरकारी सेवामे रहला। तैपर सँ उलफीओ कमाइ भेलनि‍। जँ से नै भेलनि‍ तँ तीनू बेटीक बि‍आह, ओतेत धुमधामसँ केना भेल? दुनू बेटाकेँ पढ़ैमे जेते खर्च भेल, ओते गाममे केते गोरे कऽ पबै छथि‍? तैपर सँ नीक मकान, पानि‍क नीक बेवस्‍था, सभ कि‍छु केना भेल? जेते दरमाहामे कटौती भेलनि‍ तइसँ बेसी बैंकसँ सूइद अबि‍ते अछि‍। मन घुमलनि‍, जइ काजे आइ हम हि‍नका लोहछि‍ कऽ कहलि‍यनि‍ ओ चालि‍ तँ शुरूहोमे छोड़ौल जा सकै छल, मुदा अपनो नीक लागल। बि‍नु पाइओक कोनो चीजक अभाव कहि‍यो ने भेल। ओह! गल्‍ती अपनो भेल। पति‍-पत्नीक बीचक जे जे सम्‍बन्‍ध अछि‍ तइमे कमी जरूर भेल। मुदा जे ि‍दन पाछू ससरि‍ गेल तेकरा केना मोड़ि‍ सकब? जे आगू अछि‍ ओकरा तँ मोड़ल जा सकैए। मुदा कोनो धार जे धारा रूममे प्रवाहि‍त भऽ रहल अछि‍, ओइ धाराकेँ रोकैकाल तँ संघर्ष हेबे करत। लक्कड़-झक्कड़ हुअए आकि‍ रस्‍सा-कस्‍सी, कि‍छु-ने-कि‍छु तँ हेबे करत। मुदा एहनो तँ नीक नहि‍येँ हएत जे धारक मुहेँ भोथि‍आ जाए आ धारे मरना भऽ जाए। फेर मन घुमलनि‍, जे भेल से भेल, दि‍नक दोख छल, भेल। मुदा दि‍नोक दोख तँ एकरा नहि‍येँ कहल जाएत, भोरे-भोर भेल, तँए भोरुका दोख मानल जा सकैए। भोरुका माने बाल-बोधक, बाल-बोधक गल्‍ती गल्‍ती  थोड़े होइ छै, तहूमे बारह बर्खक नि‍च्‍चाँकेँ। मन पुलकलनि‍। पुलकि‍ते पति‍ दि‍स तकली। मुँह बीजकेने करि‍याकाका अपने छगुन्‍तामे पड़ल रहथि‍।
करि‍याकक्काक छगुन्‍ता ई रहनि‍, जे जहि‍यासँ मन अछि‍ तहि‍ओसँ, कहि‍या नै केकरोसँ उधार लेलौं। दरमाहा भेटै छल सबहक चुकती करै छेलौं, कि‍यो मुँहपर कहि‍ दि‍अए तँ जे एको पाइ बेइमानी केलि‍ऐ। आँफि‍सेमे जेकरासँ पाइ लेलि‍ऐ ओकर काज केकरो बाँकी रखलि‍ऐ। जे काज नै होइबला रहै छेलै, तेकरासँ थोड़े एकोटा पाइ लेलि‍ऐ। ओना परि‍वारे छी, शासनसँ सत्ता धरि‍ तँ चलि‍ते अछि‍। एक दि‍स परि‍वारक अनिवार्य काज, जइसँ परि‍वार आगू मुहेँ ससरत दोसर दि‍स परि‍वारक श्रम-शक्‍ति‍क संग बौसक खाँहिस। लगले मन आगू घुसकलनि‍। आगू घुसकि‍ते अपन सेवा नि‍वृति‍ दि‍स बढ़लनि‍। पाइक आमदनी तँ ठीके-ठाक अछि‍, मुदा हाथक काज छीना गेल, भरि‍सक अकाजक तँ ने पत्नी बूझि‍ रहली अछि‍? भऽ सकैए, अपन काज ने हाथसँ ससरि‍ गेल, मुदा हुनकर काज तँ ठामक-ठामे‍ छन्‍हि‍, भरि‍सक तँए ने ओ शासन करए चाहै छथि‍। ईहो तँ भऽ सकैए जे ओ नोकरीक अवस्‍थामे अपनाकेँ अक्षम बूझि‍ पौने हेती तँए नै रोकलनि‍। मुदा आब तँ ओ सोलहो आना घरक कर्ता-धर्ता भऽ गेली। जँ कहीं हमर आदति‍ हुनका नीक नै लगैत होन्‍हि‍, तखनि‍ जँ कहली तँ उचि‍ते कहली। मन ठमकलनि‍! ठमकि‍ते नजरि‍ अपन चालि‍पर पड़लनि‍, जखनि‍ महि‍नाक दरमाहा उठा दोकानदारसँ, दूधवाली, तरकारीवाली तककेँ चुकती काइए दइ छेलि‍ऐ, तखनि‍ जँ दरमाहाकेँ उनटा कऽ चलि‍तौं तँ ओही पाइसँ ओकरो बाल-बच्‍चाकेँ चहरा भेटि‍तै, से चुकती तँ भेबे कएल। मुदा उपए? उपए यएह ने जे तरकारीवालीक सोझहामे ओ उझट बात कहि‍ देलनि‍, मुदा तरकारीओवाली कि‍यो आन तँ नहि‍येँ अछि‍, जहि‍ना केतौ पत्नी गुरु बनती केतौ शि‍ष्‍या, तहि‍ना ने हमहूँ जखनि‍ ओ गुरु बनती तखनि‍ शि‍ष्‍य आ जखनि‍ शि‍ष्‍या बनती तखनि‍ गुरु बनैत हँसैत-खेलैत चलैत रहब। चलू, मामला फड़ि‍या गेल। घुड़छीक भत्ता खुजि‍ गेल। मुस्‍की दैत करि‍याकाका लालकाकीकेँ  कहलखि‍न-
कान पकड़ि‍ मानि‍ओ लेलौं आ कानेपर कन्‍हेट कऽ रखनौं रहब जे ओहन काज सदि‍खन करब जे केकरो कर्ज अपना ऊपर नै आबए?”
पति‍क सुमति‍ सुनि‍ लालकाकी बजली-
अहाँक चालि‍ शुरूहेसँ रहल जे जेबीमे पाइ रहि‍तो अनके खाइक ताकमे रहै छेलौं। मुदा मरैओ बेर जँ बुझलौं तँ अगि‍ला जि‍नगीक बात बुझलौं तँए खुशी अछि‍।      

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२ जुलाइ २०१४ 

उझट बात

उझट बात




चारि‍ बजि‍ कऽ पाँच मि‍नट भऽ गेल। राजमि‍स्‍त्रीक संग काज केनि‍हारि‍ आने संगी-साथी जकाँ बुधनीओ बहि‍न दरबज्‍जेक चापाकलपर देह-हाथ धो कऽ ओसारपर राखल झोरा लि‍अ एली। ओसारपर बैसल प्रोफेसर साहैब, मि‍स्‍त्रीकेँ कहलखि‍न-
सभ कि‍यो चाह-पीब लि‍अ तखनि‍ जाइ जाएब।
चाह पीबैक प्रति‍क्षामे दुनू मि‍स्‍त्री आ दुनू सहयोगी ओसारक आगूमे, जैठाम चबुतरा बनि‍ रहल अछि‍, बैस गप-सप्‍प जे आइ केते काज भेल आ काल्हि‍ की सभ करैक अछि‍, शुरू केलक। आठ बजे भि‍नसरसँ चारि‍ बजे बेर तक काज चलैए। पाँच गोटेक मेरि‍या अछि‍। ओना प्रोफेसर साहैबक नजरि‍ बुधनी बहि‍नपर आठे बजे, जखनि‍ काजपर आएले छेली, पड़लनि‍ मुदा बजला कि‍छु ने। बजबे की करि‍तथि‍, रंग-रंगक वि‍चार तँ मनमे छेलनि‍हेँ। बुधनीक उमेर जरूर पचास-पचपनक हएत, पचास-पचपनक उमेर जि‍नगी उतरैक समए भेल। परि‍वारोमे बेटा-पुतोहु हेबे करतै। मुदा हेबे करतै, तेकरो कोनो ठीक थोड़े अछि‍, नहि‍योँ भऽ सकै छै। मुदा हाथक चुड़ी आ माथक सेनुर तँ कि‍छु गवाही दइते अछि‍। मुदा ई गवाही तँ पति‍क भेल, बेटाक नै। जहि‍ना कोनो काजक अपन समए होइए तहि‍ना कि‍छु बजबोक तँ अपन समए होइते अछि‍। तँए मि‍स्‍त्रीकेँ गि‍ट्टी, ि‍समेंट, बालु इत्‍यादि‍ सभ समान सुमझा काज देखा अपना काजमे प्रोफेसर साहैब लगि‍ गेला। मुदा बुधनी बहि‍न प्रोफेसर साहैबक मनकेँ पकड़ि‍ लेलकनि‍। लाली गोराइ, गठल देह, काज करैक वएह चुमकी जे जुआनीमे रहैक। मुदा बि‍ना गप-सप्‍प केने बुझि‍ओ तँ नहि‍येँ सकै छी। सभ अपन-अपन जि‍नगीमे काजक चक्कीक संग चलि‍ रहल अछि‍ तैठाम अनका बाधि‍त कऽ गपो-सप्‍प करब नीक नहि‍येँ हएत। ठेकनबैत प्रोफेसर साहैब बेरुका चाह पीबैक समए गर अँटौलनि‍। गर अँटौलनि‍ जे दस बजेमे कौलेज जाएब, अबैक कोनो ठेकाने ने अछि‍, चारि‍ बजेक पछाति‍ओ आबि‍ सकै छी, आ लगलो आध घंटा पछाति‍ घूमि‍ कऽ आबि‍ सकै छी। अपनो परि‍यास करब जे चारि‍ बजेक चाह संगे पीब जइसँ चाहे पीबैकाल बुधनी बहि‍नकेँ लगेमे बैसा चाहो पीब आ गपो सभ करब। ट्यूसनि‍याँ वि‍द्यार्थी जकाँ प्रोफेसर साहैब अपन समैपर तैयार भऽ गेला। बुधनी बहि‍नकेँ अपनो संगी साथी आ रस्‍ताे-पेरामे चि‍न्‍हारए सभ संग-संग बजारक दोकानदारो सभ बुधनीए बहि‍न कहैत, मुदा प्रोफेसर साहैब गामक नाओं लऽ कऽ राधोपुरवाली कहै छथि‍न। झोरा लैतेकाल प्रोफेसर साहैब बुधनी बहि‍नकेँ कहलखि‍न-
ऐ राघोपुरवाली, अहाँसँ कि‍छु गपक काज अछि‍, तँए अहाँ एतै बैस कऽ चाह पीबू।
बुधनी बहि‍नक मनमे कोनो मेख-वृख नै। दुनू परानी प्रोफेसर साहैब जहि‍ना कुरसीपर बैसला तहि‍ना बुधनीओ बहि‍न चौकीपर बैसलि‍। प्रोफेसर साहैबक बेटी चाह बना पहि‍ने चारू मि‍स्‍त्री-हेल्‍परकेँ देलक। पछाति‍, दुनू परानी प्रोफेसर साहैब आ बुधनी बहि‍न लेल चाह अनलक। एक घोँट चाह पीब प्रोफेसर साहैब मि‍स्‍त्रीकेँ कहलखि‍न-
सिंहेसर, काजक पछाति‍ एकेठाम सभ हि‍साब दऽ देब, जइसँ कि‍छु आनो काज परि‍वारक भऽ जाएत।
सभ दि‍न काज करैबला श्रमि‍क अपन जि‍नगी अपन कमाइपर ठाढ़ केने चलैए। मुदा जि‍नगी चलैले तँ सहयोगीक सहयोग पड़ि‍ते अछि‍। तँए बजारक साइओ दोकानक बीच लोक अपन कारोबार कि‍छु सीमि‍त तँ काइए लैत अछि‍। जैबीच अपन काज चलबैए। नगद-उधारक बीच तँ जि‍नगी चलि‍ते अछि‍। तँए केकरो प्रोफेसर साहैबक वि‍चार अधला नै लगल। चाह पीब सभ-मि‍स्‍त्री-हेल्‍पर- चलि‍ गेल। बेटीक संग प्रोफेसर साहैब दुनू परानी आ बुधनी बहि‍नक बीच गप-सप्‍प शुरू भेल। प्रोफेसर साहैबक पत्नी- जूही- बुधनी बहि‍नकेँ पुछलखि‍न-
बेटा-पुतोहु नै अछि‍ जे अहाँ अहू उमेरमे एते भारी काज करै छी?”
पत्नीक बात प्रोफेसरो साहैबकेँ नीक लगलनि‍। नीक ई लगलनि‍ जे कतारबंदी गप तँ ओतए ने चलैए जेतए पहि‍नेसँ निर्धारि‍त रहैए। मुदा जैठाम से नै तैठाम तँ रोटीक मुड़ी बनबै पड़त।
जूहीक प्रश्न सुनि‍ बुधनी बहि‍नक मनमे जेना रीश उठलनि‍। मुदा परि‍वारक बात सभठाम बजलो तँ नहि‍येँ जाइ छै। तँए रीशकेँ दबैत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
बेटा-पुतोहु अछि‍ आ पति‍ओ छथि‍ए। मुदा...?”
‘मुदा’ सुनि‍ जूही चौंकैत पुछलखि‍न-
मुदा की?”
वि‍समि‍त होइत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
जहि‍ना अखनि‍ काज करैत देखै छी तहि‍ना सभ दि‍न करैत एलौं अछि‍। मुदा जइ दि‍न पुतोहु कहलक, सासु सन कोनो लछने नै छन्‍हि‍, तही दि‍नसँ बेटा-पुतोहुकेँ छोड़ि‍ अपन अपंग पति‍ओक भार उठा चलि‍ रहल छी।
बुधनी बहि‍नक उत्तर पाबि‍ जेना प्रोफेसर साहैबकेँ बजैक गर भेटलनि‍। गर भेटि‍ते बजला-
ओइ चारू गोरेकेँ रोज नै देलि‍ऐ, एकेबेर अंतमे फरि‍छा देबै। मुदा अखनि‍ तँ अहाँ असगरे रहि‍ गेलौं। जँ पाइक जरूरी हुअए तँ अहाँकेँ अझुका रोज सम्‍हारि‍ सकै छी।
प्रोफेसर साहैबक बात सुनि‍ बुधनी बहि‍नक मनमे उठल एक दि‍नक के कहए जे सालो भरि‍ नि‍रमलीक कोनो दोकानदारसँ उधार मांगब तँ एको बेर नै नहि‍येँ कहत। उधार लऽ लेब हि‍साब फड़ि‍छौट भेला पछाति‍ दऽ देबै। तँए मनमे मि‍सि‍ओ भरि‍ चि‍न्‍ता नै। मुदा जखनि‍ प्रोफेसर साहैब मुँह खोलि‍ बजला तखनि‍ अपन कमाइक बोइन लेब कोन अधला भेल। बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
भाय साहैब, अखनि‍ फुटा कऽ हमरा कहलौं मुदा जखनि‍ ओहो सभ छला तखनि‍ समए कि‍ए लऽ लेलि‍ऐ?”
नि‍भर, नि‍रभय होइत अपन बात रखैत प्रोफेसर साहैब उत्तर देलखि‍न-
आन प्रोफेसर जकाँ हम नै छी, जे अनेरो दूधबलाक तगेदा, तरकारीवालीक तगेदा आ हि‍त-अपेछि‍तक तगेदा सुनैत रहब। ओना तगेदो सभ अधले होइए सेहो बात नहि‍येँ अछि‍। जेना केकरो कोनो वि‍चार करैक समए बना लेलौं, मुदा काजक दवाबमे समैपर नै जा सकलौं, तैठाम जँ दोबारा-तेबारा तगेदो भेल तँ अधला नहि‍येँ भेल।
प्रोफेसर साहैबक वि‍चार बुधनी बहि‍न नीक जकाँ नै बूझि‍ सकल। दोहरी बात बूझि‍ पड़लै। एक दि‍स केकरो तगेदा नै दोसर काजक पछाति‍ हि‍साब देब। बाजलि‍-
भाय साहैब, हमरा रोज दइक बात कहै छी आ संगी सभकेँ काजक पछाति‍क बात कहलि‍यनि‍?”
जेना अपन हृदए खोलि‍ प्रोफेसर साहैब बजला-
अहाँसँ लाथ कोन राघोपुरवाली। पान सौ हजार बेर-बेगरता लेल हाथमे रखै छी, जँ अहाँकेँ दू सौ दाइए दइ छी तैयो तीन सौ बँचैए। मुदा पाँचो गोरेक नै पुरैत, तँए बजलौं।
प्रोफेसर साहैबक बात सुनि‍ते बुधनी बहि‍नक मन मानि‍ गेल जे हमरासँ कोनो कलछपन नै केलनि‍। बाजलि‍-
भाय साहैब, दोकानदार सभ हमरा ओहेन गहिंकी नै बुझै छथि‍ जे खाइओ लइए आ दसटा गारि‍ओ पढ़ि‍ दइए। जखने दोकानपर जाइ छी तखने आन गहिंकीकेँ छोड़ि‍ पहि‍ने समान दइ छथि‍।
बुधनी बहि‍नक बात सुनि‍ जूही टि‍पलनि‍-
ई उचि‍त भेल?”
जूहीक प्रश्न सुनि‍ मुस्‍की दैत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
यएह तँ चलाकी छी। दोकानमे पचासो गहिंकी अछि‍, रंग-रंगक जि‍नगीक बीच चलि‍ रहल अछि‍, जेकरा दोकानदार नै चि‍न्‍है-जनै छै, मुदा ओहेन चि‍न्‍हारकेँ तँ जनि‍ते अछि‍ जेकर बनहौटा जि‍नगी छै। अहाँ ऐठामसँ छूटब दोकानपर जाएब, राति‍सँ काल्हि‍ दि‍न धरि‍क खर्च होइबला चीज-बौस कीनब, दू कोस जाइओ पड़त, गामपर जाएब तखनि‍ मुरही-कचड़ी पति‍देवकेँ जलखै करए देबनि‍। अपने चुल्हि‍-चि‍नवारक काजमे जुटि‍ जाएब। जँ सबेर-सकाल खा-पी सूतब नै, तँ दि‍नका ठेही केना कमत।
एके साँसमे बुधनी बहि‍नक गप सुनि‍ प्रोफेसर साहैब सहमि‍ गेला। बजला-
केते दि‍नसँ ई काज करै छी?”
बुधनी बहि‍न-
आठ बर्खसँ।
प्रोफेसर साहैब-
तइसँ पहि‍ने?”
घर-अँगनाक काजो सम्‍हारै छेलौं आ खेत-पथारमे बोइनो-बुत्ता करै छेलौं।
पति‍ की करै छला?”
तइसँ पहि‍ने ओ बजारेमे रि‍क्‍शा चलबै छला। साँझू पहर दोकान-दौरीक काज केने घरपर पहुँचै छला। मुदा जइ दि‍न जीपक ठोकर रि‍क्‍शामे लगल आ जाँघ टुटलनि‍, तइ दि‍नसँ जीबै तँ छथि‍ मुदा चलै-फि‍ड़ैक तागति‍ नै छन्‍हि‍।
बाल-बच्‍चा कएटा अछि‍?”
तीन भाए-बहि‍न अछि‍। दुनू बहि‍न सासुर बसैए आ बेटा लगमे रहैए।
बेटा-पुतोहु भीन अछि‍?”
अपने भीन भऽ गेलौं।
कि‍ए?”
पुतोहुक ओ बात अखनो मन पड़ैए तँ ओहि‍ना रीश उठैए। पुतोहु बाजल जे सासुक लछने ने छन्‍हि‍। बाजल-तँ-बाजल। अपन बेटा-बेटी जकाँ थोड़े बाजल। मुदा बेटा ओकरा कि‍छु ने कहलकै, तेकर आनि‍-पीड़ा बरदास नै भेल। तही दि‍नसँ बजारक काज पकड़लौं।
अपना खेत-पथार नै अछि‍?”
नै।
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२६ जुन २०१४