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Monday, June 16, 2014

अप्‍पन-बीरान

जगदीश प्रसाद मण्‍डल
जनम : ५ जुलाइ १९४७ ई.मे
पिताक नाओं : स्व. ल्‍लू मण्‍डल
माताक नाओं : स्व. मकोबती देवी
पत्नी : श्रीमती रामसखी देवी।
मातृक : मनसारा, भाया- घनश्यामपुर, जिला- दरभंगा
मूलगाम : बेरमा, भाया- तमुरिया, जिला-मधुबनी, (बिहार) पि- ८४७४१०
मोबाइल : ०९९३१६५४७४२, ०९५७०९३८६११, ०९९३१७०६५३१
-पत्र : jpmandal.berma@gmail.com
शिक्षा : एम.. (हिन्‍दी आ राजनीति शास्‍त्र) मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर साहित्‍यमे मनुखक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
सम्‍मान : गामक जिनगी लघुकथा संग्रह लेल विदेह समानान्‍तर साहित्‍य अकादेमी पुरस्कार २०११क मूल पुरस्‍कार आ टैगाेर साहित्‍य सम्‍मान २०११; तथा समग्र योगदान लेल वैदेह सम्‍मान- २०१२; एवं बाल-प्रेरक विहनिकथा संग्रह ‘‘तरेगन’’ लेल बाल साहित्‍य विदेह सम्मान२०१२ (वैकल्‍पिक साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार रूपेँ प्रसिद्ध) प्राप्‍त।  
साहित्यिक कृति :  
उपन्‍यास : () मौलाइल गाछक फूल (२००९), () उत्‍थान-पतन (२००९), () जिनगीक जीत (२००९), () जीवन-मरण (पहि‍ल संस्‍करण २०१० आ दोसर २०१३), () जीवन संघर्ष (पहि‍ल संस्‍करण २०१० आ दोसर २०१३), () नै धाड़ैए (२०१३), () बड़की बहिन प्रकाशित। () सधबा-विधवा तथा () भादवक आठ अन्‍हार शीघ्र प्रकाश्‍य।
नाटक : () मिथिलाक बेटी (२००९), () कम्‍प्रोमाइज (२०१३), () झमेलिया बिआह (२०१३), () रत्नाकर डकैत (२०१३), () स्वयंवर (२०१३) प्रकाशित।
लघु कथा संग्रह : () गामक जिनगी (२००९), () अर्द्धांगिनी (२०१३), () सतभैंया पोखरि (२०१३), () उलबा चाउर (२०१३), () भकमोड़ (२०१३), () पतझार, () अप्‍पन-बीरान अप्रकाशि‍त।
विहनिकथा संग्रह : () बजन्‍ताबुझन्‍ता (२०१३), () तरेगन (बाल-प्रेरक विहनिकथा संग्रह) (२०१० पहि‍ल संस्‍करण, २०१३ दोसर संस्‍करण)
एकांकी संग्रह : () पंचवटी (२०१३)
दीर्घ कथा संग्रह : () शंभुदास (२०१३)
कविता संग्रह : () इंद्रधनुषी अकास (२०१३), () राति‍-दि (२०१३), (३) सतबेध अप्रकाशि‍त।
गीत संग्रह : () गीतांजलि (२०१३)‍, () तीन जेठ एगारहम माघ (२०१३), (३) सरिता (२०१३), (४) सुखाएल पोखरि‍क जाइठ (२०१३)

अप्‍पन-बीरान




आने गाम जकाँ हरि‍हरपुरो। स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन जहि‍ना सभ गाममे तहि‍ना हरि‍हरपुरोमे। ओना पाँच सए परि‍वारक गाम मुदा गामक जमीन, गाछी-कलम आ पोखरि‍क चौथाइओ हि‍स्‍सापर गौआँक अधि‍कार नै। बारह आनासँ ऊपरे सम्‍पति‍पर अनगौआँ जमीनदारक लड़ो-जड़ आ माशोक अधि‍कार तँ अछि‍ए। आजादी भेला पछाति‍ लगानक वसूली जमीन्‍दारक हाथसँ नि‍कलि‍ गेल मुदा जमीनपर अधि‍कार तँ रहबे कएल। गौआँक घर-घराड़ीक संग कि‍छु गोटेक हाथमे कि‍छु जमीनो वेलगानक चलैत घराड़ी आ मालगुजारी देने खेत। मुदा बारहसँ चौदह आना परि‍वारकेँ मात्र घराड़ीएटा। तँए कि‍ गामक जमीन गौआँक कहि‍यो नै रहल, से बात नै। मालगुजारीक चलैत साले-साल नीलाम होइत गेल आ गौआँक जमीन छि‍नाइत गेल। जइसँ गामक बारह आनासँ ऊपरे जमीन अनगौआँक हाथमे चलि‍ गेल! गौआँ खेति‍हर कि‍सान नै बटेदार कि‍सानो आ बटेदार बोनि‍हारो बनि‍ रहि‍ गेल, अधि‍कांश बोनि‍हार। मुदा जेना-तेना आ कमा-खटा कऽ गौआँ बहरबैयाक सभ जमीन हथि‍यौलक। जेना-तेना ई जे कि‍छु जमीनपर वकास्‍तक झंझटि‍ तँ कि‍छुपर सि‍कमी बटाइक, तँ कि‍छु जमीन कीनि‍ओ कऽ गौआँ अनगौआँकेँ गामसँ हटौलक। बहरबैयाकेँ हटि‍ते गौआँ नमहर साँस छोड़लक। गौआँक हाथसँ जमीन ससरैक अनेको कारण भेल। तइमे कि‍छु मालगुजारी आ कि‍छु समाजक जाल-फाँस मुख्‍य रहल। सामाजि‍क जालो-फाँस अनेक रंगक रहल मुदा मुख्‍य रहल मरला पछाति‍क काल्‍पनि‍क दुनि‍याँक बेवहार। काल्‍पनि‍क बेवहार ई जे मुइला पछाति‍क खर्चक जे वि‍धि‍-वि‍धान रहल ओ समाजक रीढ़केँ तोड़ि‍ देलक! समाजक एहेन दबाब रहल जे खेतो-पथार खुशीसँ बेचबैत छल। एक तँ गामक लोकक हाथमे गामक सम्‍पति‍ नै, तैपर प्राकृति‍क प्रकोप! ओना तीन रंगक समए मुख्‍य रूपसँ छल मुदा तीनूमे सेहो तीन-तीन-चरि‍-चरि‍ रंगक समए भेल। एक भेल जे अनुकूल मौसम, अनुकूल मौसमक अर्थ भेल जे गोटे साल एहेन होइत छल, अखनो होइए, जे बारहो मास अनुकूल समए बनैत छल। कोन समए केहेन हवा चलत, कोन समए केहेन गरमी पड़त आ बरसातक केहेन रूप-रंग रहतै। दोसर तरहक समए बनैए, रौदि‍याह। जइ साल प्रति‍कूल प्रकृति‍ रूप पकड़लक तइ साल सुसमए-कुसमए बनए लगैत छल, एक रौदी दोसर दाही। ने रौदि‍याहक ठेकान आ ने दाहीक कोनो ठेकान। गोटे साल शुरूहेसँ समए बगदल जे अन्‍त धरि‍, रौदीओ आ बरसातो लदने रहि‍ गेल! जइसँ मनुखसँ लऽ कऽ मालो-जाल आ गाछो-बि‍रि‍छकेँ तबाह कऽ दइए। जे मेहनती कि‍सानकेँ मन तोड़ि‍ दइए। दोसर समए भेल जे अगतामे बिगड़ि‍ कम-बेसी मध्‍यसँ सुधरि‍ जाइए। आ तेसर भेल जे शुरू-मध्‍य बि‍गड़ल रहल आ अन्‍तमे सुभि‍तगर भेल। प्रकृति‍क ई खेल सभ दि‍नसँ रहल, अखनो अछि‍।
ओना स्‍वतंत्रता आन्‍दोलनमे १९३५ इस्‍वीक पछाति‍ जे गामक लोकक मनसूबा जगल ओ धीरे-धीरे पश्‍त होइत गेल। पश्‍त ई जे स्‍वतंत्रता संग्रामक मंचपर अवाज उठल जे गामक जमीन गौआँकेँ हेतै, ओकराे खेती लेल साधनक ओरि‍यान हएत आ नीक जकाँ उपजौल जाएत। जहि‍ना मनुख लेल पानि‍क जरूरति‍ अछि‍ तहि‍ना मालो-जाल आ गाछो-बि‍रि‍छ लेल। ओना अपन इलाका पहाड़ी नदीसँ छारल अछि‍, जे कि‍छु एहेन अछि‍ जइमे बारहो मास पानि‍ चलैए, कि‍छु एहेन अछि‍ जे छहमसि‍या छी आ कि‍छु तीनमसि‍या छी। मुदा अबैत गेल बहैत गेल, अँटकबैक कोनो जाेगाड़ नै भेल! देशेक भीतर पंजाबो कृषि‍ प्रधान राज्‍य  छी। जेतेक इंच बरखा अपना सबहक हि‍स्‍सामे अछि‍ ओते पंजाबक हि‍स्‍सामे नै छै, मुदा खेतीक मूल साधन पानि‍केँ ओ कृत्रि‍म रूपे बनौलक। हम सभ ढोलके-हरि‍मुनि‍याँपर अपन सम्‍पन्नता गबैत रहलौं, अखनो गबै छी। जँ से नै रहल तँ दुनि‍याँक केहनो भू-मध्‍य सागरीय जलवायु कि‍ए ने हो मुदा जेते रंगक खेतीक उपज, चाहे अन्न हुअए आकि‍ तीमन-तरकारी, फल-फूल हुअए आकि‍ गाए-महिंस, उपजैक अपना इलाकामे शक्‍ति‍ छै, ओ दुनि‍याँमे केतौ ने अछि‍‍! तँए, मि‍थि‍लांचलक धरती शक्‍ति‍ स्‍वरूपि‍णी धरती अछि‍। जँ अपन बात अपने नै बूझब तँ ऐ दौड़ा-दौड़ी दुनि‍याँमे केकरा ओते पलखैत छै जे अहाँक बात बूझि‍ तलपट मि‍ला देत। लोक सि‍नेमा स्‍टारक पंजी, खेलवाड़ि‍क पंजी बनौता आकि‍ अपन-बाप दादा आकि‍ अपना गाम-घरक।
हरि‍हरपुरेक दू भाए-भैयारीक परि‍वारमे सुपतलाल आ कुपतलाल। ओना अखनि‍ ओ परि‍वार सभसँ नीक गाममे मानल जाइए मुदा छेहा बोनि‍हार परि‍वारमे दुनू भाँइक जनम भेल। बोनि‍हार परि‍वार रहि‍तो माए-बाप सुति‍हार, तँए आने गरीब परि‍वारक बच्‍चा जकाँ रहि‍तो, केना बच्‍चा  सि‍यान चेतन बनि‍ जि‍नगी बि‍तौत, यएह सुति‍हारी दुनू परानीक।
बच्‍चेसँ दुनू भाँइ मेहनती जे पि‍ताक देखा-देखीसँ सीखने। बहरबैयाक धि‍या-पुता जकाँ प्‍लाष्‍टि‍कक खेलौना नै जे खलि‍ये फटक्का फोड़त, घरक वस्‍तुक खेलौना! ओना बहरबैयाक हाथसँ गौआँक बीच आएल सम्‍पति‍सँ नमहर नि‍साँस छुटल मुदा तेकर (जमीनक) बादो रंग-रंगक बि‍हंगरा अछि‍ए। एक तँ अहुना घटबी होइत-हाेइत जमीन करमघट्टू बनि‍ गेल, तैपर घटबी रोकैक उपए नै भेने लोकक मनो घटए लगल! केना ने घटत? अहीं कहू जे धान रोपैक अछि‍, खादक पाइ नै अछि‍, रोपैक ताक सम्‍हारब आकि‍ खादक प्रति‍क्षामे...। कारण खाली वि‍चारे नै अर्थक अभाव सेहो सहयोगी बनल। खेतक संग मौसमी पानि‍ आ उर्वराशक्‍ति‍ बढ़बैले छाउर-गोबरक संग अपन पुरान पद्धति‍क बीज।
अदौसँ अपना ऐठामक गृहपति‍ जहि‍ना घरक सभ कलासँ सम्‍पन्न छला तहि‍ना दुनि‍याँक बीच अपन कलाकारी रखि‍तो छला। खेतीक पूर्णताक बोध छेलनि हेन। जे केना अन्न उपजबैत छला, आकि‍ तीमन-तरकारी, फल-फलहरी, सबहक बीजसँ फल धरि‍क बोध छेलनि‍। ओना एक रसाह लूरि‍केँ जँ समैनुकूल लोहाक ओजार जकाँ पनि‍औल नै जाएत तँ ओ भोति‍या लगत। भोति‍याइत-भोति‍याइत एते भोति‍या जाएत जे अपन चीने-पहचीन समापत कऽ लेत। मात्र घर-घराड़ीबला सुपतलाल पि‍ताक बतौल बाट पकड़ि‍ पोसि‍या गाए बच्‍चेसँ पोसब शुरू केलक। परि‍वारक खर्चक भार पि‍तापर। जहि‍ना वि‍द्याध्‍ययन लेल माता-पि‍ता बच्‍चाकेँ अपना लेल समए दइ छथि‍ तहि‍ना सुपतोलाल दुनू भाँइले पि‍ता देलखि‍न। जहि‍ना पाँच बरख चढ़ि‍ते गारजनोक नजरि‍ आ आरो अभि‍भावकक नजरि‍ वि‍द्यालय दि‍स बढ़ैत तहि‍ना सुपतोलालक पि‍ताक नजरि‍ गेलनि‍। आजुक समए जकाँ तँ नै जे आन-आन देशक बोली-चाली नै सीखब तँ कमा कऽ खाएब केतए! ओना दुनू भाँइमे उमेरे तीन बर्खक अन्‍तर, मुदा संगी लेल उमेर ओते महत नै रखैत जेते संगी बनि‍ काज संगौड़ि‍ कऽ चलैक लूरि‍ रखैए। पनरह बरख पुड़ैत-पुड़ैत सुपतलाल अपन पोसल गाइक सेवासँ पाँच कट्ठा जमीन कीनलक। सभ वस्‍तुक दाम कम तँए तीनि‍येँ रूपैए कट्ठा पाँचो कट्ठा जमीन कीनलक। जइ दि‍न पि‍ता पाँच कट्ठा जमीन बेटाकेँ देखलनि‍ तही दि‍न परि‍वारक मन भरैत देखि‍ भगवानकेँ प्रणाम केलनि‍। आजुक महगीक दौड़मे कोन वस्‍तुक मूल्‍य आगू मुहेँ दौग रहल अछि‍ आ कोन पाछू पड़ि‍ रहल अछि‍, ई तँ बुझए पड़त। ओना मोटा-मोटी सभ वस्‍तुक मूल्‍य -पाइक रूपमे- बढ़ि‍ रहल अछि‍। तँए अपन उपारजि‍त पूजीकेँ धरगर नै बनाएब तँ चि‍लहोरि‍या ऊपरेसँ झपटि‍ लेत। झपटि‍ कि‍ लेत जे अपनो दि‍ल खोलि‍ झपटबऽ चाहै छी। आन गाम जकाँ ने हरि‍हरपुर अट्ठारह गंडा पोखरि‍बला आ ने कोसी-कमलाक भरनि‍ कएल गाम जकाँ, जे एकोटा पोखरि‍ कुम्‍हरबैओले नै। तइ दुनूसँ हटि‍ हरि‍हरपुरमे तीन भागक पोखरि‍ कमलाक भरनि‍ भऽ गेल आ एक भाग तीनू पोखरि‍ बँचल अछि‍। ओना पहि‍ने हरि‍हरोपुरबलाक वि‍चार रहनि‍ जे गाम चपगर अछि‍ तँए जँ गामक चौथाइ पोखरि‍ खुना जाए तँ गामक मुँह-कान नीक भऽ जाएत। गामक मुँह-कान की? यएह ने जे वासभूमि‍मे पानि‍क जमाव नै हुअए, बरसाती मासक तरकारी लेल चौमास हुअए, फल-फलहरीक औसतन उपजैक जमीन होइ, तहि‍ना आरो-आर। मुदा गामक पंजी बनबैत-बनबैत एतए आबि‍ अँटकि‍ जाइ छेलनि‍ जे अठारह गंडा पोखरि‍ केते रकबाक गामक। तैसंग दोसर प्रश्न उठि‍ जान्‍हि‍ जे सौंसे गाममे जेते पानि‍क जरूरति‍ अछि‍ ओतेकेँ पहुँचाएब। मुदा गाममे बेसी मुँहगर-कन्‍हगर नै, तँए दसे-बारहटा पोखरि‍ खुनौलनि‍।
पनरह बरख पुरि‍ते सुपतलाल हरवाहि‍ सि‍खलक। हरवाहि‍ सीखैक वि‍द्यालय गामे-गाम, बाधे-बाध। जइ हरवाह लग जाउ, स्‍वेच्‍छासँ हरवाहि‍ सि‍खा देता। अपन गाइक बच्‍चासँ बड़द बनौने छल। खेतीक भार सुपतलाल अपना ऊपर लेलक आ कुपतलालकेँ गाइक भार सुमझा देलक। एकर माने ई नै जे काजमे कटा-कटी भेल। हर काजमे जि‍म्‍मेदारक खगता होइ छै, तइ हि‍साबे। ओना दुनू काज परि‍वारेक भेल तँए परि‍वारक सभ काजपर सभकेँ नजरि‍ रखए पड़त, नै तँ कमी अबैक संभावना बढ़ैक शंका अबैत।
हरवाहि‍ सि‍खते सुपतलालक परि‍वारमे आमदनीक तीनटा बाट खुजल। पहि‍ल हरवाहि‍सँ बाहरक आमदनी, बड़द आ खेति‍हरकेँ संगी बनने खेतीक संभावना बढ़ि‍ते अछि‍। तहूमे खेतक मालि‍क बहरबैया। ओ सभ कि‍ ओहेन भठियाह थोड़े छथि‍ जे एतबो ने बुझता जे बटाइ खेत ओकरे ने देब नीक जेकरा समांगक संग हरो-बड़द छै। ई तँ नै जे कन्‍याकुमारीसँ कश्‍मीर आ कश्‍मीरसँ अरूणाचल धरि‍ सड़क बनाएब मुदा माटि‍क काज छि‍ट्टा-पथि‍यासँ होइ! भाय, छि‍ट्टा-पथि‍याक काज तँ गामे-घरमे तेते अछि‍ जे पार नै लगि‍ रहल अछि‍ आ..., टि‍टही जकाँ मेघ टेकब! गाम-घरमे अखनो ओहेन आँगन-घरक कमी नै अछि‍, जे आँगनसँ दरबज्‍जा  आ दरबज्‍जासँ आँगन जाइ-अबैमे नाहक जरूरति‍ पड़ैए‍। कन्‍याकुमारीसँ कश्‍मीर-अरूणाचल सड़कक जरूरति‍ अछि‍, मुदा गाम-घरक बाघक खेतीक जमीन ओहेन अछि‍ जे दसो-बीस बीघा जमीन समतल नै अछि‍ जे भारी मशीनक उपयोग हएत।
गाममे दाही भेल। तेहेन दाही भेल जे गामक उपजावाड़ी तँ गेबे कएल जे बाधक घासो-पात सड़ि‍-गलि‍ गेल। अदहासँ बेसी गामक गाए-महिंस-बड़द मरि‍ गेल। ओना सुपतोलालक मरल मुदा खुटापर सातटा माल रहने पाँचटा बँचल। अगि‍लग्‍गीक पछाति‍, भुमकमक पछाति‍, रौदी-दाहीक पछाति‍ जहि‍ना पशुपति‍नाथक दर्शन आ अपन बेपार दुनू संगे होइत तहि‍ना बहरबैया खेतबला सभ एके-दुइए गाम पहुँचल। सुपतलालकेँ सुतरल। सुतरल ई जे ने स्‍थायी मनखप लेब आ ने उपजा देब। सालक मनखप लेलौं, समए खराप भऽ गेल, रौदी-दाही भेने अहाँक पूजी -खेत- तँ धोखरि‍‍ कऽ समुद्रमे नै चलि‍ गेल, मुदा हमर लगता तँ चलि‍ गेल। वि‍चारि‍ कऽ सुपतलाल पाँच बीघा जमीन एकटा माशसँ लेलक। अपन खेत, अपना जुति‍ए उपजाएब जे मन मानत सएह उपजाएब, उपजला पछाति‍ अनुमानि‍त कण निर्धारि‍त हएत, सबहक अपन-अपन नजरि‍ रहत। पाँचो बीघा गोरहा खेतमे कमो पानि‍ भेने गामक चारू भागक पानि‍ बोहि‍ कऽ चलि‍ अबैत, जइसँ बाधक जमीनसँ बेसी सुवि‍धा भऽ जाइत। सुपतलालक भाग जागल। मनखप बटाइसँ पहि‍ने सुपतलालकेँ अपन कीनल पाँचे कट्ठा जमीन मुदा ओ पाँचो कट्ठाकेँ बरहमसि‍या खेती जोगर बनौने। बरहमसि‍या ई जे तीनू मौसमक तीन फसल उपजैत। ओना हरि‍ अनंत हरि‍ कथा जकाँ तर्को-वि‍तर्कक अनन्‍त उत्तर छै। ईहो तँ भऽ सकैए जे बरहमसि‍या गाछीए लगौल जाए। मुदा प्रश्न तँ ईहो उठैए जे बरहमसि‍या ओकरा तँ नै कहबै जे सालमे एकबेर उपजा देत। मुदा तेकरा मानब उचि‍त हएत? उचि‍त तँ यएह ने जे बारहो मास ओइमे श्रम लगौल जाए आ बारहो मास उपज अबै। जँ से नै औत तँ खाली समैमे, जइ समए उत्‍पादन नै हएत, उपजौनि‍हार जीवि‍त केना रहत? तेकरो तँ उपयक जरूरति‍ अछि‍ए। खैर जे होउ, सुपतलाल अपन पाँचो कट्ठा जमीनकेँ धरोहर बूझि‍ उपजबए लगल। मध्‍यम कि‍सि‍मक जमीन। पाँचो कट्ठामे तरकारी उपजबए लगल। एतेक उपजा होइ जे अप्‍पन परि‍वारक भोजनक अदहाक संग नगदो-नारायण अबैत।
एक दि‍न दुनू भाँइ, सुपतलाल-कुपतलाल, घरक काज सम्‍हारि‍ गाम घुमैक वि‍चार केलक। रौदि‍याह समए दस बजेक पछाति‍ बाधमे लू चलए लगैत। ओ (लू) गामो-घर दि‍स एबे करैत। गाछ सबहक पत्ता झड़कि‍-झड़कि‍ अधसुखू बनि‍ गेल। सौंसे बाधमे केतौ हरि‍यरीक दरस नै। टोलसँ नि‍कलि‍ते दुनू भाँइ गामक बाध-बोन देखि‍ सि‍हरि‍ गेल। आगू बढ़ैक साहस नै भेल। कुपतलाल बाजल-
भैया, गाम बीरान भऽ गेल। जइ गामक माटि‍-पानि‍ मरि‍ जाएत, तइ गामक गाछ-बि‍रि‍छ आकि‍ जीवे-जन्‍तु केना ठाढ़ रहत?”
कुपतलालक प्रश्न सुनि‍ सुपतलाल बाँहि‍ पकड़ि‍ बाजल-
बौआ, से केना बुझै छहक?”
सुपतलालक प्रश्नक उत्तर दइले जेना कुपतलालक मन तर-ऊपर करए, तहि‍ना जेठ भायक पुछब सुनि‍ कुपतलाल बाजल-
भैया, जखनि‍ खेतमे अन्न आकि‍ आने उपजा नै हएत, तखनि‍ लोक केना जीवि‍त रहत? बि‍ना कोयला-पानीसँ तँ लोहा चलबे ने करैए आ मनुख तँ सहजे मनुख छी। लाखो रंगक परसाद पबैबला!
कुपतलालक ओजाएल जि‍ज्ञासा देखि‍ सुपतलाल बाजल-
बौआ, अपने दुनू भाँइ छी, आ दू दि‍यादि‍नी आँगनमे छथि‍। जहि‍ना चारू गोरेकेँ अपन-अपन जि‍नगी आ जि‍नगीक काज अछि‍। तहि‍ना ने सबहक छै। एककेँ नष्‍ट भेने पर्यावरण बि‍गड़ए लगै छै, जखनि‍ एक भागेक सभ नष्‍ट भऽ जाएत तखनि‍ की हेतै?”
हँ से तँ हेबे करैत।
अपना दुनू भाँइकेँ एतबे ने बुझैक काज छह। जँ अपन काजपर ठाढ़ हेबह तँ अदहा भक्‍त कमाल जकाँ हेबह, नै जँ बाँकि‍योहो अदहा पुरा लेबह तँ सोलहन्नी हेबह। जइसँ भेद-अभेद मेटा जाइ छै।
हँ, से तँ ठीके भैया!”
बौआ सुनह, जे बात हम बुझै छि‍ऐ ओ तोरा कहला पछाति‍ए ने तहूँ बुझबहक, तहि‍ना ने तोरो बात आ घरो लोकक बात सुनला पछाति‍ए ने अपनो बूझब?”
हँ से तँ ठीके!”
बौआ, आब तँ सहजे केते दि‍नसँ खेती करै छी, मुदा जहि‍या नहि‍योँ करैत रही तहि‍एसँ कोसी नहरि‍ सुनै छी जे गामे-गाम बनत, डैमसँ बि‍जली बनतै आ ऐठामक कि‍सानकेँ करखन्ना जकाँ चौबीसो घंटा खेतीक काज चलतै।
भैया, ई बहुत भेल। छोड़ह अगि‍ला गप। कान भरैत-भरैत तेना भरि‍ गेल जे काने बन्न भऽ गेल। दि‍न-राति‍ जे काजे करत आ खा-पी कऽ सुतत नै तँ भगवानसँ एकाकार केना हएत?”
धुर बुड़ि‍बक! अहि‍ना बुझै छीही, जहि‍ना कारखानामे चौबीसो घंटा काज छै तहि‍ना खेतीओमे अछि‍। खेतेक उपजासँ चौबीसो घंटा कारखाना चलैए। जँ पचपन खान चलबैए तँ पैंतालीस खेतो चलबैए।
कुपतलाल जेना अकछि‍ गेल। अकछबो केना ने करैत। ने ओते ओकरा समए छै आ ने समेटि‍ कऽ रखैक कोठी। बाजल-
भैया, जाबे अपन घड़ी-घंटा बजा अपना मंदि‍रमे पूजा नै करबह ताबे तक तेहेन-तेहेन घड़ी-घंटाक अवाज सुनैत रहबहक जे अनेरे कानमे तेते झड़ परतह जे काने झड़ा जेतह। काननी कामनी बनि‍ अनेरे औनाए लगतह।
कुपतलालकेँ अकछाइत देखि‍ सुपतलालक मन खुशी भेल। खुशी ई भेल जे भने समटल मन आ समटल बुधि‍ छै नै तँ अनेरे भरि‍ दि‍न तासपर बैस पाइकेँ कागत बना देत। जखने पाइ कागत भेल तखने अन्न-पानि‍, गाछ-बि‍रि‍छ, सोना-चानी सभटा पाइए बनि‍ जाएत। तखनि‍ कोन खगता छै जे खेतसँ धान उपजौल जाए? ओ तँ रस्‍तो-पेरा भऽ सकै छै।
गामक ओहेन परि‍वार सुपतलाल-कुपतलालक बनि‍ कऽ ठाढ़ भेल जे ओहेन स्‍थान जकाँ अद्भुत बनि‍ गेल, जैठाम हजारो मंदि‍रक बीच गोटे कोनो अद्भुत रहैए! छेहा कि‍सान परि‍वार। दुनू भाँइ सुपतलालो मानैत जे अनेरे गामक चक्कर-भक्करमे पड़ि‍ नीककेँ अधला कि‍ए बनाएब। ने दरबार धरब आ ने दरबारीलाल बनब। मुदा तँए कि‍ सुपतलाल गामकेँ छोड़ि‍ देलक। नै छोड़लक, गामक कि‍सान अखनो ठेकनगर कि‍सान बूझि‍ पूसा-ढोली, सबौरक कि‍सान-मेलामे गामक कि‍सानक संग जाइते अछि‍। सालो भरि‍क डायरी, खेती-वाड़ी करैक छोट- छोट  पुस्‍ति‍का, छोट-छोट खेतीक ओजार-पाती अनि‍ते अछि‍। ओना गौआँक संग सुपतलाल पुरि‍ते अछि‍ मुदा गाममे माटि‍, पोखरि‍, गामक जमीनक किस्‍म, जमीनक माटि‍ इत्‍यादि‍ नै भेने मन झुझुआइते रहै छै। गामक छक्कर-बक्करकेँ ओ धु-बन्‍हू छागर जकाँ बुझैत अछि‍‍। चाहे देवालयमे चढ़ाउ, चाहे भोजनालयमे! दुनू ठाम लेल तैयार। दुनि‍याँक वि‍परीत हवामे देखए पड़त जे कोनो देशक लोक चरि‍तवान अछि‍ तँ सरकारी महकमा चरि‍तहि‍न, आ केतौ सरकारी महकमा चरि‍तवान अछि‍ तँ लोक चरि‍तहि‍न। तँए कि‍ ओहेन नै अछि‍ जैठाम दुनू चरि‍तहीनो अछि‍ आ चरि‍तवानो? अछि‍! जैठाम अछि‍ तैठामक लोक जि‍नगीक ऊँचाइ छूबि‍ रहल अछि आ जैठाम नै छै‍, तैठाम धरतीक इर्द-गिर्द कोल्हूक बड़द जकाँ घूमि‍ रहल अछि‍! उपाध्‍याय आ आचार्यक भेद मेटा गेल अछि‍! देशक नदीकेँ जोड़ि‍ खेतीक पटौनीक सुवि‍धा बनौल जाए, बनौल जाए, मुदा लेबड़ाक सए रूपैआ जकाँ, कि‍छु ओइमे गेल, कि‍छु तइमे गेल, रूपैआ भेल गोल, एक्केबेर सभ कहि‍यौ ‘हरि‍बोल’। बि‍हारक समस्‍या कहि‍यो नै बुझल गेल जे खाली बि‍हारेक पनि‍चलाउ धारकेँ ढंगसँ पूबसँ पछि‍म धरि‍ जोड़ि‍ देल जाए आ समुचि‍त देख-रेख होइ तँ की‍ खेतीक समस्‍याक समाधानक एक कड़ी हएत की नै?
समए बीतल। अधउमेरेमे सुपतलाल बि‍मार पड़ल। एक तँ गाम-घरक जि‍नगी तैपर इलाजक नीक सुवि‍धा नै। आठे दि‍नक बि‍मारीक पछाति‍ सुपतलालक मन कनी-कनी धोखरए लगल। धोखरैत मनमे भेलै जे ऐ काँच माटि‍क देहक कोनो ठेकान अछि‍ जे कखनि‍ फूटि‍ जाएत। कुपतलालकेँ सोर पाड़ि‍ बाजल-
बौआ, हमर कोनो ठेकान नै छह, परि‍वारक सभ एकठाम बैसह, अपन हि‍साब तोरा सभकेँ दइए देबह। अनेरे मरैकाल माथपर एकटा बोझ चढ़ल रहत।
अखनि‍ धरि‍ कुपतलाल सुपतलालक ओहेन आज्ञापालक रहल जे, जे कि‍छु सुपतलाल कहतै ओतबे बुझैत आ ओतबे करैत रहए। जेना जेठ भायक प्रति‍ पूर्ण समर्पण। ओना फल अधला कुपतलालकेँ भेल। भेल ई जे कुपतलालकेँ कहि‍यो कोनो काजकेँ परखैक खगता नै भेल। जइसँ सभ काजक लूरि‍ रहि‍तो उजड़लहा-उपटलहा गामक इति‍हास नै बनि‍ सकल। केना बनैत? दुनि‍याँक इति‍हास गढ़नि‍हार व लि‍खनि‍हारक मने उचटि‍ गेलनि‍ जे हमरो गाम-घर अही दुनि‍याँमे अछि‍।
परि‍वारक सभ समांग एकठाम भेल। ओना जइ डरे सुपतलाल भीन भेल सएह हि‍स्‍सामे आबि‍ गेलै। मुदा परि‍वार तँ परि‍वार छी जाधरि‍ एक-दोसराक दुख-दर्द, नीक-अधला दोसर नै बूझि‍ अपन बनौत ताधरि‍ परि‍वारक गाड़ी केना ससरत। अबि‍ते पत्नी बजली-
सभ दि‍न ओछाइने पकड़ने रहब आकि‍ उठबो करब?”
पत्नीक बात सुनि‍ सुपतलाल कि‍छु ने बाजल। जहि‍ना रणभूमि‍ जाइसँ पहि‍ने सि‍पाही बाटेमे घेरा जाइए तहि‍ना मन घेरा गेल। जि‍नगीक संगी। जँ गाड़ीक एक पहि‍या टुटने वा जुता-चप्‍पलक एक संगी वि‍रहेने केतौ फेका जाइए, तहि‍ना सुपतलालक मन घेरा गेल। सुपतलालकेँ गुम-सुम देखि‍ कुपतलाल बाजल-
भैया, राजा-दैवक कोनो ठेकान नै छै, जेते दि‍न दुनू भाँइ संगे परि‍वारक गाड़ी जोतलह से जोतलह। जँ तूँ मरबह तँ हमरो मरले बुझि‍यहऽ। लूरि‍ ने हमरा देलह, बुधि‍ तँ तोहीं ने नेने जेबह तखनि‍ खाली टीन ढनढ़नौने कथी हएत?”
सुपतोलालक आ कुपतोलालक बेटा बी.ए.क वि‍द्यार्थी। तीन मास पछाति‍ परीछा हेतै, स्‍नातक भऽ जि‍नगी शुरू करत। अपन अभार व्‍यक्‍त  करैत सुपतलाल बेटो आ भाति‍जोक (सुगमलाल आ कुगमलाल) बीच बाजल-
बाउ, अखनि‍ धरि‍क परि‍वारक गाड़ी खिंचलौं। जँ बि‍मारीसँ छुट्टी भेटत तैयो नीक, जँ नै भेटत तैयो नीक। जे समए बीतल ओ अहाँ दुनूक बीच अनुकूलताक समए भेल। जे आगू अछि‍ ओ प्रति‍कूलताक भेल। अपनो मन कहैए जे स्‍नातक बना परि‍वारकेँ ठाढ़ करी, अपना जनैत करैत एलौं, एतेक तँ जरूर गारंटी देब जे जहि‍यासँ परि‍वारक गाड़ी कन्‍हापर उठा घीचलौं, मनुख बनि‍ जे आएल ओकरा मरए नै देलि‍ऐ। मुदा दुनू भाँइकेँ देखि‍ एते तँ मन खनहन अछि‍ए जे अगि‍ला गाड़ी खिंचनि‍हार परि‍वारमे भाइए गेल। केते परि‍वार गाममे अछि‍ जे अहाँ सभ जकाँ कौलेजमे पढ़लक। मुदा अपन वि‍चार, अपन काज अनकापर लादैक नै अछि‍, देखबैक अछि‍, कहैक अछि‍। बस एतबे कहब।
सुगमलाल बाजल-
बाबू, अहाँ वि‍चारे की होय?”
सुगमलालक प्रश्न सुनि‍ सुपतलाल जि‍ज्ञासाक नजरि‍सँ कुगमलाल दि‍स तकलक, ऊहो तँ कौलेजेमे पढ़ैए। कि‍छु तँ अपनो बात जोड़त मुदा अदौसँ अबैत परि‍वारक जेठ-छोटक वि‍चारक संग वि‍चार नै मि‍लेबाक चलनि‍ रहल। अपन अलग प्रश्नक रूप मानल गेल। मुदा से नै बापेक बेटा कुगमलालक मनमे उठलै, दुनू भाँइ वि‍चारि‍ कऽ करब। तँए कोनो वि‍कार मनमे नै। सुपतलाल बाजल-
बौआ, समैक संग चलैक अछि‍। बहुत आशासँ दुनू भाँइ तोरे सभले खेत कीनलौं। सम्‍पति‍ अरजलौं। जँ एकरा छोड़ि‍ चलि‍ जेबह तँ अनका आड़ि‍-धुरमे चलि‍ जेबह। बेसी अखनि‍ नै कहबह अखनि‍ तोरा अपन परीछाक तैयारी करैक छह। मुदा एते जरूर कहबह, जे तोरे सभ दुआरे अपन खेत बनेलौं, नै तँ ओही समैमे बँटैत अबि‍तौं तँ जम्‍मे ने होइत। मुदा जे भेल, खेती जे साधनक अभावमे केलौं, ओकरा पुरबैत, गाइक जे पुरना खाँढ़ अछि‍ ओकरा समायानुकूल बनबैत चलबह, तँ कि‍सानक खति‍यान बना कि‍सानक देश कहेब‍ह, नै तँ सरकारी खजाना जकाँ तमादी हेतह! सुनि‍ लैह, खेत ओहेन वि‍शाल गाछ पैदा करैक शक्‍ति‍ रखैए, जे जेते ओइमे खाद-पानि‍ देल जाएत ओ वि‍शालसँ वि‍शालतम बनैत जाएत। तँए लक्ष्‍मण रेखाक बीच रहि‍ जाधरि‍ चलैत रहबह ताधरि‍ लंकाक कोन बात जे लंकापति‍ओ बुते कि‍छु ने हएत।  
सुगमलाल-
तखनि‍?”
तखनि‍ यएह जे समाजेक लत्ती लतरैत अमरलत्ती जकाँ दुनि‍याँमे लतरि‍ जाइए, मुदा पहि‍ने ओकर जड़ि‍ बि‍टि‍या कऽ पकड़बऽ तखने ने?”¦¦¦


०१ मई २०१४ 

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