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Friday, June 13, 2014

सासुरक साइकि‍लक बेथा-कथा

सासुरक साइकि‍लक कथा-बेथा


बैशाख मासक साँझ नहु-नहु हवा बहि‍ रहल छेलै। दि‍न भरि‍क तपाएल वातावरण संग मन्‍द पवनक सि‍हकलासँ सुखद प्रतीत भेल छल। डेरासँ फराक जा मोन बहटारैले चलि‍ देने छेलौं। उष्‍म ऋृतुक साँझक सौन्‍दर्यक सन्‍दर्भ एक कवि‍क स्‍मरण भऽ आएल।
उषम-वि‍षम अब आयल सजनी गे,
सुखद भेल बन वात।
ककर ने मोन हरण कर सजनी गे, 
गृष्‍मक साँझ-परात।।  
वस्‍तुत: गृष्‍मक साँझ आ प्रात: काल अति‍ मनोहर होइत। ऐ लऽ कऽ हमहूँ सम्‍प्रति‍ आनन्‍दक अवलोकनोपरान्‍त डेरा घूमि‍ कऽ अाबि‍ गेलौं। तरकारी वाड़ीमे पानि‍ पटौल गेल कि‍ नै से देखि‍ रहल छेलौं। हठात् साइकि‍लक घंटीक टन-टन सुनबामे आएल। चौंकि‍ कऽ देखल तँ हमर मि‍त्र वएह छला जे वि‍द्यालयसँ महा वि‍द्यालय धरि‍ संग पूरने छला। धड़फराएल दलानक ओलतीमे साइकि‍ल लगा कऽ खाटपर धब्ब दऽ लेटि‍ गेला। हम लग आबि‍ यथोचि‍त अभि‍वादन केलि‍यनि‍। मि‍त्र महोदय गुम्म-सुम्म पड़ल रहला। हुनकासँ एहेन अवस्‍थामे कि‍छु पूछब उचि‍त नै छल। तँए आँगन दि‍स बढ़लौं। संकेत भेटल जे मि‍ताकेँ चाह दऽ दि‍यनु। गृहि‍णीक आग्रहकेँ हम हुनका तक पहुँचेबाक प्रयास कएल। आग्रहकेँ ओ दुराग्रह बूझि‍ अनठा देलनि‍, तथापि‍ हम बलजोरीए चाहक कप हाथमे धड़ा देलि‍यनि‍। शनै: शनै: चाहक चुस्‍की लैत गेला। तइ बीच पान सेहो खि‍ल्‍ली मोड़ल आबि‍ गेलनि‍। पानक खि‍ल्‍ली मुँहमे दाबि‍ कि‍छु स्‍वस्‍थ भेला तखनि‍ हम कुशल क्षेम पूछबाक साहस कएल। ओ उखरल-उखरल जवाब देथि‍ मुदा हम बि‍कछा कऽ पुछैत गेलि‍यनि‍। अन्‍तमे ओ अपन बेथा-कथा कहए लगला-
की पुछै छी! हमरा केहेन तरहक घटनाक शि‍कार होमए पड़ल अछि‍?”
उत्‍सुकता बढ़ि‍ गेल जे कोन एहेन घटनाक शि‍कार भेला जइ कारण वगए-वानि‍ वि‍कृत केने छथि‍। सरस लोकसँ एहेन चुप्‍पी सधने छला। खैर! हमर मुद्रा देखि‍ ओ नि‍:संकोच भऽ खि‍स्‍सा सुनबैत गेला आ हम सुनैत गेलौं।
हुनक बि‍आह वर्ष दि‍नक भीतरे भेल रहनि‍। सासुर मनोनुकूल भेल छेलनि‍। ससुर कलकत्ता महानगरीमे नीक पाइ कमाइत रहथि‍न। पहि‍ल जमाए यएह भेल छेलखि‍न तँए हि‍नक सम्‍मान सभ तरहेँ होइत रहनि‍। पत्नी अल्‍प शि‍क्षि‍त मुदा रूप गुण सम्‍पन्ना रहथि‍न। सासु पूर्ण मनोहरथी तँए ई हमर मि‍त्र वि‍वाहोपरान्‍त अधि‍कांश समए सासुरेमे बि‍तबैत रहथि‍। गोरलग्‍गीमे सासु सए-पचासक नोट दऽ हि‍नका मनोबलकेँ बढ़ा देने रहथि‍न। छात्रावासक जीवन-कालक मि‍त्र आब आशमान छुनि‍हार भऽ गेल छला। सदि‍खन सासुरेक प्रशंसा करैत हि‍नक समए बि‍तैत रहनि‍। भाग्‍यक भूत संग छेलनि‍। बी.ए. पास केला पछाति‍ कि‍रानीगि‍रीक नौकरी सेहो भऽ गेल रहनि‍ तँए गर्वोक्त्ती होएब सोभावि‍क रहनि‍। हमरा तँ ओ झूस बुझथि‍, कि‍एक तँ हम वि‍द्यार्थी बनले छेलौं। पंचम वर्षक छात्र संगहि‍ नि‍रस सासुर ओ धाेंछ ससुर-सासु तँए हि‍नक एे तरहक सुसंयोगसँ कखनो काल डाहो उत्पन्न होइत छल। खैर! अपन-अपन भाग्‍य तँए ऐ तरहक डाही भावनाक परित्‍याग तत्‍क्षणे कऽ दैत छेलौं।
आइ मि‍त्रक बेथा-कथा ओही मुँहसँ सूनब से आश्चर्य लगैत छल तथापि‍ श्रोता बनि‍ गेलौं। मि‍त्र महोदय कहलनि‍ जे
सासुक आकंक्षा रहनि‍ जे जमाए साइकि‍लपर चढ़ल घंटी टन-टनबैत जे अबै छै से बड़ नीक लगैत अछि‍। ओझहा ईहो साइकि‍लपर चढ़ल घंटी टनटनबैत आबथि‍, कि‍एक तँ हि‍नको नव रेले साइकि‍ल ससुर देथि‍न हम कहि‍ देने छि‍यनि‍...।
संयोगवश पाँचम दि‍न साइकि‍ल पार्सलसँ रेलबे द्वारा आबि‍ गेल। साइकि‍ल रेलबेसँ छोड़ा कऽ आनल आ जान-बेजान चलौनाइ सि‍खए लगलौं। ऐ तरहेँ शरीरक जे दुर्गति‍ भेल से की कहब? केतेक बेर खसलौं आ चोट जे लागल से तँ देहेमे भीजैत अछि‍। ठेहुनक घाव अखनो वि‍द्यमान अछि‍। कहुना चलबए आबि‍ गेल मुदा ब्रेकपर काबू पाएब आ डाँड़क स्‍थि‍रता नै आएल छल कि‍ सासुक समाद लऽ छोट सार आबि‍ गेला। ऐ तरहक समाद पाबि‍ सासुरक हेतु साइकि‍लसँ यात्र कएल। नवका जोश बेछोह पैडि‍ल दैत चललौं। सासुरसँ कोस भरि‍ पहि‍ले एकटा टोल पड़ैत अछि‍ जेकर नाओं बहुअरबा छि‍ऐ...।
हमरा हँसी लागि‍ गेल तथापि‍ मुँह दाबि‍ कऽ हुनक कथा सुनैत आगू पुछलि‍यनि‍-
हँ तखनि‍ की भेल?”
कहए लगला-
टोल परहक रस्‍ता संकीर्ण रहैक आ बगलमे खूब गहींर पोखरि‍ पड़ैत छल। हम साइकि‍ल बढ़ौने जाइत रही आकि‍ एकटा भीमकाय साँढ़ फूफू करैत बि‍च्‍चे बाटपर ठाढ़ छल। हैडि‍ल ति‍रछा केलौं ताकि‍ नि‍कलि‍ जाएब से ब्रेकक खि‍याल नै रहल परि‍णाम ई भेल जे साइकि‍ल समेत भरि‍ छाती पानि‍मे चल गेलौं। कहुना साइकि‍ल समेत ऊपर एलौं। तीतले वस्‍त्र पुनश्‍य आगू बढ़लौं। बादमे ई शंका हुअए जे कि‍यो चि‍न्‍हार लोक ने देखि‍ लि‍अए। गुणक भेल जे झल-अन्‍हारीमे कि‍यो चि‍न्‍ह नै सकल। सासुरक लगीचमे एकटा गाछी छै, जेतए ब्रीफकेशकेँ कैरि‍यरसँ उतारि‍ कपड़ा बदलबाक हेतु सोचल। ब्रीफकेश खोललापर रंगमे भंग पड़ि‍ गेल! कि‍एक तँ पानि‍ भीतर पहुँचि‍ गेल छल। लाल दंत मंजन पानि‍मे घोरा कऽ क्रीच कएल कपड़ाकेँ रंगि‍ देलक, संगे बि‍स्‍कुट पानि‍क संयोग पाबि‍ कपड़ाक तहमे दही जकां जमि‍ गेल छल। सासुरक सामग्री सभ एकदम धि‍नाैन भऽ गेल छल जे देखि‍ आन्‍तरि‍क बेथा उत्‍पन्न भऽ गेल। घूमि‍ जाएब सोचल, मुदा घुमि‍ओ ने सकै छेलौं। ई बात हास्‍यास्‍पद होइत तँए ककरा कहि‍ति‍ऐक, तँए गुरक मारि‍ धोकरा खाइक स्‍थि‍ति‍ भऽ गेल। आखि‍र साहस बटोरि‍ कऽ लथ-पथ कपड़ा नेने साइकि‍लक हैण्‍डि‍ल पकड़ने वि‍दा भेलौं। बाटमे ि‍कयो पूछए नै जे एना कि‍एक? चि‍न्‍हार लोककेँ तँ सत्‍यपर परदा दैत कहुना ससुरक दलान तक एलौं। घंटीक शब्‍द कएल। कि‍छु क्षणक पश्चात छोट सार आ सारि‍ सभ दौगल आएल। सासु खि‍रकी लगसँ देखि‍ रहल छलीह। हमर हतप्रभ अवस्‍था देखि‍ पि‍ति‍या ससुर बाजि‍ उठला- ‘ओझहा भीजल छथि‍ आ रूग्‍न देखाइत छथि‍ की कारण?’ हुनको संग फूसि‍ बाजि‍ तँ खेपलौं। भीतरे-भीतर कपड़ा बदलबाक व्‍याकुलता बढ़ल जाइत छल। आँगनमे पत्नीकेँ हमर अएबाक सूचना जखने देलकनि‍ आकि‍ ओ धड़फड़ा कऽ आँगन अबैत छली कि‍ एकाएक ओल्‍तीक टघारमे पएर पड़ि‍ गेलासँ मोंच पड़ि‍ गेलनि‍। हुनक चि‍त्‍कार सूनि‍ सासु, सरहोजि‍ प्रभृति‍ नारी गणक भीड़ लागि‍ गेल। आब‍ हमरापर के धि‍यान देत! सभ हुनके परि‍चरजामे लागि‍ गेल। हम तीतल वस्‍त्र  पहि‍रने बधलग्‍गू जकाँ मूक दर्शक भेल रही। कि‍छु कालक पछाति‍ आंगन जेबाक हेतु अनुमति‍ भेटल। पत्नीक कहरबाक शब्‍द हृदैकेँ वि‍दीर्ण केने जाइत रहए। सरहोजि‍ आ सारि‍क ऊपरसँ व्‍यंगवाणक प्रहार होइत रहए। आखि‍र कपड़ा बदलि‍ स्‍वस्‍थ भऽ बसि‍‍ गेलौं। जलपानक पश्चात यएह सुनबामे आएल जे कोन कुयात्रासँ चलल छेलौं जे अबि‍ते-अबि‍ते ललीक टाँगमे मोंच पड़ि‍ गेलै। आखि‍र हमर बेथाक थाह केकरा छेलै जे सुनितए? मोने-मोन पचबैत छेलौं...।
...रात्रि‍ वि‍श्राम शय्यापर जखनि‍ पड़ल रही तखनि‍ पत्नीक आक्रोशपूर्ण स्‍वर औरो बेचैन कऽ देलक। आखि‍र जखनि‍ हम अपन कथा-बेथा कहि‍ सुनौल तँ हुनको अश्रुपात् हुअए लगलनि‍, ऐ तरहेँ गेरूआक सम्‍पूर्ण भाग नोरक टघारसँ भीजि‍ गेल आ कखनि‍ नीन्न आएल से नै जानि‍। प्रात: कालक हुनक पएर फीलपाॅवक बि‍मारी जकाँ प्रतीत भेल। आखि‍र देहाती उपचारक संग कि‍छु दबाइ-महलहमक ओरि‍यौन करौल। तत्‍पश्चात् प्रस्‍थान करबाक नेआर केलौं। मुदा सरहोजि‍क प्रबल आग्रहपर रूकि‍ गेलौं। हुनका लोकनि‍क कठचौल होइत- ‘हँ! दाइक पएरक दर्द तँ अहींक ससारलासँ ठीक हेतनि‍ इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍।’ आखि‍र दि‍नक भोजन काल जेठ सरहोजि‍ कहलनि‍- ‘ओझहा जेठक पटुआ सागक अलौकि‍क सुआद होइ छै जँ आमक टि‍कुला देल हो तँ...। हम बड़ यत्नसँ बनौल अछि‍। जमाएकेँ सागक ति‍मन देब नि‍षेध होइत तथापि‍ हमर आग्रह जे कनी ईहो खा लीअ।’ कहलि‍यनि‍- ‘बेस लाउ।’ खा लेलौं। छोट सरहोजि‍ दही-चीनी देलोपरान्‍त पाकल केरा सोहि‍ कऽ चारि‍ गोट छि‍मरि‍ धऽ देलनि‍। अगत्‍या ऊहो आग्रह मानि‍ खा लेलौं। हम इसनोफि‍लि‍याक पेसेन्‍ट रहबे करी साइकि‍ल सवारी ई सभ‍ बि‍मारीक हेतु बनि‍ गेल आ डेरापर अबैत-अबैत दम फूलए लगल। तीन दि‍न धरि‍ रोगशय्याक सेवन केलौं। सूइया-दवाइक बलपर त्राण तँ भेल, मुदा शरीर अखनो अति‍ कमजोर बुझना जाइत रहए। वेतनमे कटौती हेबाक संभावना अछि‍ तँए अहाँ जँ सहयोग करी तँ मेडि‍कल सर्टिफि‍केट बना दि‍अ। अहाँकेँ डाक्‍टर सभसँ हेम-क्षेम नीक अछि‍। हम कहलि‍यनि‍- पाँच गोट टाका फीस देबनि‍ तँ कि‍एक ने बना देता। ओ तमकि‍ गेला आ कहए लगला- तखनि‍ अहाँक कोन प्रयोजन फीस देलासँ तँ डाक्‍टरसँ जे मोन हएत से लि‍खबा लेब। हमहूँ जीवनमे सीखलौं जे मोनक बात केकरो नै कहबै। जरलपर नोन नै छीटू। एक तँ साइकि‍लक बेथा आ तैपरसँ अहाँक कठ हँसीपूर्ण बात दुनू हमर हृदैकेँ वि‍दीर्ण करैत अछि‍। खैर, यात्राक फेर छल आ सासुक सि‍नेह-संकटक संकेत।

हुनक बात सुनि‍ अन्‍तमे मुफ्तमे काज करा देबाक आश्वासन देलि‍यनि‍। पुनश्‍च ओ अपन सासुरक पोटरी खोलए लगला, मुदा कार्यरत लोक की सुनत तँए संक्षेपणक सलाह दऽ हुनकासँ मुक्‍त भेलौं। मुदा आइयो सासुरक साइकि‍लक कथा-बेथा हास्‍यहास्‍पद रूपमे चर्चित अछि‍।¦¦¦

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