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Friday, June 13, 2014

अर्जुन रोग

अर्जुन रोग



जि‍नगीक अधडरेरपर पहुँचि‍ते सुचि‍त भायक मनमे ओहेन रोगक प्रवेश सहे-सह हुअ लगलनि‍ जेहेन घैलचीक घैल पानि‍क रस पीबैत-पीबैत रसा जाइ छै। ओना बीतल चालीस बर्खक जि‍नगीमे केते रंगक रोग-सोग, वर-वि‍याधि‍सँ गुजरि‍ चुकल छला, जे कहि‍यो दवाइक गोली तँ कहि‍यो इन्‍जेक्‍शन तँ कहि‍यो सीरपक उपयोगसँ नीक होइत आएल छला, मुदा ऐबेरक रोग छुटतनि‍ कि‍ नै छुटतनि‍ से मन कबूले ने कऽ रहल छन्‍हि‍। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत डाक्‍टर ऐठाम जेबाक वि‍चार केलनि‍।
ओना रोगीक भीड़ डाक्‍टर ऐठाम, मुदा सुचि‍त भायकेँ पहुँचि‍ते, एक नजरि‍ डाक्‍टर साहैब देखि‍ लेलनि‍। देखि‍ते मनमे हि‍लकोर उठलनि‍, कि‍यो पानि‍क रोग पनि‍दूदूरसँ सहजे ग्रसि‍त भऽ फुइल‍ जाइए, तँ कि‍यो पाण्‍डु  रोगसँ पीड़ि‍त भऽ पीड़ा जाइए, तँ कि‍यो लोहुक रोगसँ लोहि‍त भऽ जाइए, मुदा सुचि‍त भायमे तइ सबहक कोनो लक्षण डाक्‍टर नै देखलखि‍न।
रोगीक भीड़मे सुचि‍त भायक नम्‍बर नवम् रहनि‍। आठो रोगी नि‍कलला पछाति‍ सुचि‍त भाय आगूमे राखल स्‍टुलपर बैसला। ओजारक जाँच-पड़ताल करैसँ पहि‍ने डाक्‍टर साहैब रोगक प्रभावक जाँच शुरू करैत पुछलखि‍न-
की सभ होइए?”
‘की सभ होइए’ सुनि‍ सुचि‍त भाय थकमका गेला। थकमकेला ऐ दुआरे जे अखनि‍ जे होइए से कहबनि‍ आकि‍ पहि‍ने जे सभ रोग भेल छल सेहो कहैत, कहबनि‍। दुवि‍धामे पड़ल सुचि‍त भायक मुँह बन्ने छेलनि‍। चुप देखि‍ डाक्‍टर साहैब ससरैत समए देखि‍ झटकि‍ बजला-
कि‍ए मुँह बन्न केने छी। स्‍पष्‍ट बाजू। डाक्‍टरसँ रोगक बात छि‍पौला आ ओकीलसँ घटनाक बात छि‍पौलासँ नीक परि‍णामक आशा क्षीण भऽ जाइ छै। तँए जे होइए खोलि‍ कऽ बाजू।
डाक्‍टर साहैबक झटकार सुनि‍ सुचि‍त भाय बजला-
ओना अखनि‍ धरि‍ केते बेर बि‍मारी भेल, मुदा ओइ सभसँ फराक ऐबेर बूझि‍ पड़ैए।
डाक्‍टर-
जे बूझि‍ पड़ैए सएह ने पुछै छी?”
डाक्‍टर साहैबक बात सुनि‍ मनकेँ मोड़ि‍ सुचि‍त भाय बजला-
कोनो बात वि‍चारए लगै छी आकि‍ बि‍च्‍चेमे दोसर आबि‍ ओहि‍ना रस्‍ता काटि‍ दइए जहि‍ना चौमति‍पर लोको, मालो-जाल आ गाड़ीओ-सवारी एक दोसरक कटैए!
अखनि‍ धरि‍क आन रोगीसँ फराक सुचि‍त भायक जवाब सुनि‍ डाक्‍टर साहैब खरि‍यबैत बजला-
देखू, रोगीक भीड़ अछि‍, समए निर्धारि‍त अछि‍ तँए जे कि‍छु होइए, नि‍सचि‍त समैक भीतर बाजू। बहुत प्रक्रि‍या होइ छै, तइ सभमे सेहो समए लगत। जहि‍यासँ रोगक आक्रमण भेल, तहि‍यासँ बाजू।
डाक्‍टर साहैबक बात सुनि‍ सुचि‍त भाय पछि‍ला बातकेँ छोड़ैत बजला-
जइ दि‍नसँ परि‍वार सुचि‍त रस्‍ता छोड़ि‍ कुचि‍त रस्‍ता दि‍स बढ़ल आ अपना मनमे सुचि‍त वि‍चार कुचि‍त दि‍स बढ़ल तही दि‍नसँ रोगक आक्रमण भेल।
सुचि‍त भायक वि‍चार सुनि‍ डाक्‍टर साहैब थकमकेला। केना नै थकमकैतथि‍, जहि‍ना कोनो धानक खेत आकि‍ कोनो आन अन्नक खेतमे गोटे बागर भऽ धानसँ अपन लक्षण फराक देखबए लगैए तहि‍ना आन रोगीसँ फराक सुचि‍त भाय बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा, डाक्‍टर साहैब ने बि‍गड़ला आ ने अधीर भेला, असथि‍रसँ पुछलखि‍न-
परि‍वारमे की भेल आ अपने की भेल, दुनू फुटा-फुटा बाजू। पहि‍ने परि‍वारक बाजू।
पहि‍ने परि‍वारक पुछैक कारण भेलनि‍ जे परि‍वार बेक्‍तीक समूह छी आ परि‍वारेक समूह ने टोलो-गाम छी। तँए सोलहन्नी परि‍वारे भेल।
परि‍वार सुनि‍ सुचि‍त भाय थकमकेला। थकमकेला ई जे परि‍वारमे दू-दि‍शि‍या मुहोँ आ मुड़ीओ होइ छै। एकटा होइ छै ऊपरसँ बाबा-परबाबा, आ दोसर होइ छै पोता-परपोतासँ। केमहरसँ बाजी? एक दि‍स कलुसैत क्रममे चलि‍ रहल अछि‍ आ दोसर कलशैक क्रममे। मेड़ बनि‍ परि‍वार मेड़ि‍याएल अछि‍। परि‍वारक भीतर भाव-अभाव तँ अछि‍ए, तखनि‍? मुदा जहि‍ना पेटक आँत मोड़ाएल रहै छै, तहि‍ना मोड़ि‍ बजला-
परि‍वारमे भैयारीक बीच फटेदारी हि‍स्‍सा-बखराक रोग जोर पकड़ि‍ लेलक, जइसँ जेना चलैक जाँघे-घुट्टीक जोड़ जकड़ा गेल, तहि‍ना भऽ गेल अछि‍। केना आगू ससरत?”
सुचि‍त भायक बात सुनि‍ डाक्‍टर साहैब आनक ओझरी बूझि‍ पल्‍ला  झाड़ैत, अपनाकेँ छि‍पबैत --छि‍पबैक कारण भेलनि‍ डाक्‍टर तँ अपने छी, अपनो परि‍वारेमे रहै छी, केना परि‍वारक ओझरीकेँ आन लग बाजब जे नै बुझै छी आकि‍ नै बूझल अछि‍-- बजला-
देखू, हम देहक रोगक डाक्‍टर छी तँए देहक दर्द बाजू, देहीक नै।
डाक्‍टर साहैबक पल्‍ला झाड़ब सुचि‍त भाय नै बूझि‍ पेला, बातपर सोलहन्नी बि‍सवास करैत बजला-
डाक्‍टर साहैब, सदि‍काल मन चि‍ड़ै-टि‍कुली जकाँ उड़ैत रहैए!
डाक्‍टर साहैब-
मन तँ ओहि‍ना चंचल अछि‍। तहूमे जखनि‍ चुल्हि‍पर खापड़ि‍मे पड़ै छै, तखनि जँ तीसी जकाँ नै चनचनाए तहन‍ ओकर रसे की भेल। ऊहो तँ सि‍नेह[1]सँ सनाएले अछि‍।
डाक्‍टर साहैबकेँ भँसैत देखि‍ सुचि‍त भाय बजला-
दोसर बात कहए चाहै छी डाक्‍टर साहैब?”
सुचि‍त भायक बोनाएल बात सुनि‍ डाक्‍टर साहैब कहलखि‍न-
बाजू।
सह पाबि‍ सुचि‍त भाय बजला-
डाक्‍टर साहैब, बजैक ठेकान नै रहैए। कखनो कि‍छु बजै छी, कखनो कि‍छु बजा जाइए। एके बातकेँ भरि‍ दि‍नमे गि‍रगि‍ट जकाँ कहि‍औ आकि‍ पेरि‍सक सड़क जकाँ, क्षणे-क्षण छि‍नछि‍नाइत क्षणेमे छीन-अछीन भऽ जाइए!
बि‍नु भीड़-भाड़बला चौमति‍पर जहि‍ना गाड़ी-सवारीक ड्राइबर जल्‍दीवाजीमे नि‍कलए चाहैए तहि‍ना नि‍कलि‍ डाक्‍टर साहैब कहलखि‍न-
ठीक अछि‍, आगू बरहू।
डाक्‍टर साहैबक शतरंजक सह पबि‍ते सुचि‍त भाय बि‍नु देरी केने बजला-
क्षणे-क्षण जहि‍ना बोली बदलैए तहि‍ना क्षणे-क्षण तामसो दि‍न-राति‍क आँखि‍ मि‍चौनी जकाँ उठैत-बैसैत रहैए!
सुि‍चत भायक बातकेँ, जहि‍ना गड़ूरकेँ भुजंग छन्‍दशास्‍त्र भुजि‍यबए लगल आ गड़ूर आँखि‍ मुनि‍ अङेजए लगल तहि‍ना डाक्‍टर साहैब, अङेजैत बजला-
ठीक बात, ठीक बात, आगू बरहू।
मुस्‍की दैत सुचि‍त भाय आगू बजला-
डाक्‍टर साहैब की कहब मनक मैल, आ की कहब बोलीक बाइन, आ की कहब तमाएल प्रीत-रीत, सदि‍काल जी भरछैत रहैए। बुझि‍ए ने पबै छि‍ऐ जे खटगर दही सानल चूड़ामे आमक अँचारक केहेन रस अबै छै!
आमक अँचार सुनि‍ते डाक्‍टर साहैबकेँ रौतुका खेलहा अँचार मन पड़लनि‍। जीहसँ ठोर पोछैत बजला-
बर बेस, बर बेस। आगू बरहू।
डाक्‍टर साहैबक हाव-भाव देखि‍ सुचि‍त भायक मन आरो गदगदेलनि‍। गदगदाइत बजला-
डाक्‍टर साहैब, जहि‍यासँ रोगक उपैत भेल, तहि‍यासँ पेटमे खौंत फेकैत रहैए! 
‘खौंत’ शब्‍दकेँ अनठि‍या बूझि‍ डाक्‍टर साहैब बि‍च्‍चेमे टोकलखि‍न-
की खौंत?”
सुचि‍त भाय-
जेना बूझि‍ पड़ैए जे पेटमे लहास उठैए। सदि‍काल होइए जे जेना आगि‍ पजरले रहैए!
आगि‍ सुनि‍ डाक्‍टर साहैब पुछलखि‍न-
तइसँ की सभ होइए?”
डाक्‍टर साहैब यएह तँ असल रोग छी, आँखि‍ चोन्‍हि‍याइत रहैए, दुनि‍याँमे भाए-बहि‍न केतौ देखबे ने करै छी, सभठाम वेश्‍ये-भरूआ देखै छी। केना रोग बदलत?”
सुचि‍त भायक प्रश्न सुनि‍ डाक्‍टर साहैब अपन पाशा बदलैत बजला-
जखनि‍ हमहूँ कौलेजमे पढ़ैत रही तखनि‍ अहि‍ना भऽ गेल रहए।
केना छुटल?”
पहाड़पर पहाड़ी बाबा छथि‍, हुनके लग गेलौं ओ कहलनि‍ जे अर्जुन रोग भऽ गेल अछि‍। अखनि‍ महाभारत उनटबैक समए नै अछि‍। वएह कृष्‍णोषधि‍क एकटा जड़ी देलनि‍। सात दि‍न पीसि‍-पीसि‍ पीलौं। साते दि‍न महि‍ना, साल बूझि‍ पड़ल। नीक भऽ गेलौं। अहूँ ओत्तै चलि‍ जाउ। मधुसूदन धरमशालामे जनारदन रहै छथि‍। ओतए रहि‍ दवाइ पीब, साते दि‍नमे नीक भऽ कऽ घूमब।¦¦¦
७ मई २०१४



[1] तेल

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