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Saturday, June 7, 2014

बुधि‍

बुधि‍-


गामक बूढ़, पीपरावाली काकी, माथक केस सोन सन उज्‍जर धप-धप। आँखि‍ भुमकमक दराड़ि‍ जकाँ धँसल। बत्तीसीसँ हाँसील गोल। गि‍नती लेल दूगो दाँत देखार छल। मुदा चेतना पूर्णरूपेण। पेशाब-पैखानक ज्ञान पुरा-पुरी छन्‍हि‍। लाठी हाथे ति‍कोण भऽ चलै छथि‍। मुदा गप एक्कोटा ने लटपटाइ छन्‍हि‍। गाम-घरक आ टोला-पड़ोसाक लोक सभ पीपरावाली काकीकेँ नीक खि‍स्‍सकरि‍, गीतगायन आ वि‍धकरीक रूपमे जनै छन्‍हि‍। मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍सँ जूड़ल सभ वि‍ध-बेवहारसँ लऽ कऽ टोना-टापर आ अरि‍पन-पीढ़ी आदि‍ देबमे सि‍द्धस्‍त मानल जाइ छथि‍। पैरुख घटने पीपरावाली काकी माय-सँ-दाय भऽ गेली।
आनो-आनो समैमे धि‍या-पुता सभ पीपरावाली काकी लग खि‍स्‍सा  सुनैले घूर लगौने रहैए। गरमी-गुमारमे तँ अरबधि कऽ। एक दि‍नक गप छी। काकी अपना जौत-भुटबा जे वर्ग आठमे गामेक स्‍कूलमे पढ़ैए काकीकेँ खि‍स्‍सा सुनबैले जि‍द्द पकड़ि‍ लेलक-
काकी गइ, एकटा नीक खि‍स्‍सा सुना। काल्हि‍ जे स्‍कूल जेबै तँ मास्‍सैब सुनतै। काल्हि‍ शनि‍ छि‍ऐ। मास्‍सैब कहने छथि‍न जे भुटबा काल्हि‍ एकटा खि‍स्‍सा सुनबए पड़तौ। से काकी एकटा खि‍स्‍सा कही ने।
काकी कहलखि‍न-
केहेन खि‍स्‍सा सुनमेँ से तँ कह।
भुटबा बाजल-
काकी, नीक खि‍स्‍सा कही बुधि‍-ज्ञानबला जे स्‍कूलमे सुनाबए पड़तै। कोनो राजा-महराजाबला नै तँ सोनपड़ीबला कही।
काकी शुरू केलनि‍ खि‍स्‍सा-
एक नगरमे एकटा राजा रहै छला। राजाक राजमे कथुक कमी नै। सगतरि‍ सुख-शांति‍ बनल रहै छेलए। राज भरि‍मे ने केकरोसँ कोनो दुश्‍मनी आ ने बाड़ि‍। सभ एक-दोसराक सहयोगी। केकरो कोनो चीजक दुख-तकलीफ नै। सौंसे राजमे अमन-चैन छल...।
काकी कनी रूकैत आगू कहए लगलखि‍न-
एक दि‍नक गप छी। राजाक छोटकी बेटी असलान करैले राज-महलसँ बाहर ढयोढ़ीमे खुनाएल पोखरि‍ जेकर चारूकात फुलवाड़ी छल तइमे अपन नौरी-खबासीनीक संग गेल। असलान करैकाल अपन सभ कपड़ा उतारि‍ नि‍च्‍चाँ जमीनपर रखलक आ गरदनि‍क हि‍राक हार एकटा फूलक डारि‍पर लटका देलक। राजाक बेटी असलान-धि‍यान कऽ कपड़ा पहि‍रि‍ नौरी-खबासीनीक संग राज दरबारमे चलि‍ गेल। मुदा गरदनि‍क हीराक हार बि‍सरि‍ गेल। ओ हार ओही फूलक डारि‍पर लटकल रहि‍ गेल। दि‍न बीति‍ गेलै। लूकझूक साँझक बेरमे घोरसारक नोकरक नजरि‍ ओइ हारपर पड़ल। कि‍एक तँ दि‍न भरि‍क काज-उदमक बाद ओ नौकर हाथ-पएर घोइले ओही पोखरि‍मे गेल। नोकरबा ओ हार लऽ नुका कऽ रखि‍ लेलक। परात भने ओकर खोज-खबरि‍ शुरू भेल। मुदा कि‍यो गछबे ने करै जे हम लेलौं। राज भरि‍मे ढोलहो पड़ल। मुदा कोनो लाभ नै। राजक बेटी ओइ हार लेल सोगा गेल। दि‍न एक बि‍तल, दोसर बि‍तल। मुदा कोनो थाह-पता नै। एमहर राजाक बेटी सोगाएल बि‍छौन पकड़ने। राजा मंत्रीकेँ बजौलनि‍। सभा लागल। दबारक सभ सभासद् एकठाम बैसला। राजाकेँ कि‍छु ने फुड़नि‍। अंतमे मंत्रीजी बुधि‍ बतबैत कहलखि‍न जे राजा साहैब चि‍न्‍ता जुनि‍ करू। राजकुमारीक हार चौबीस घंटाक पेसतर भेट जाएत। काल्हि‍ पुन: दरबारक सभ कर्मचारीक संग प्रजाकेँ सेहो बजौल जाए। सएह भेल। राजाक आदेशानुसार राज दरबारक सभ कर्मचारी आ प्रजागण उपस्‍थि‍त भेल। राजा फेर एकबेर सभकेँ पुछलखि‍न। मुदा हारक चोरि‍क वि‍षएमे कि‍यो ने बाजल...।
भुटबा बि‍च्‍चेमे पुछलक-
तब की भेलै?”
काकी आगू कहए लगलखि‍न-
पश्चात मंत्रीजी बजला जे ठीक छै कोनो बात नै राजा साहैब। से नै तँ उपस्‍थि‍त कर्मचारी-दरबारीक संग प्रजागण अपने सभ ऐ ढेरीमे सँ एक-हकटा लाठी लि‍अ। आ धि‍यान राखब जे जे कि‍यो राजकुमारीक हार लेलि‍ऐ बा चोरौलि‍ऐ तेकर लाठी राति‍मे एकहाथ नमहर भऽ जाएत। सभ कि‍यो एक-हकटा लाठी लेलक। घोरसारक नोकर सेहो एकटा लेलक। हार तँ ओ घोरसारक नोकरबे लेने रहए। से नै तँ ओकरा भेलै जे हम तँ काल्हि‍ चोरीमे पकड़ाइए जाएब। तइ खातीर ओ अपन लाठीकेँ ऊपरसँ एक हाथ नापि‍ कऽ काटि‍ देलक। परात भेने पुन: दरबार लगल। सभ अपन-अपन लाठी लऽ दरबारमे पहुँचल। सबहक लाठी भजारल गेल। घोरसारक नोकरक लाठी आन सभ लाठीसँ एक हाथ छोट छल। ऐ तरहेँ ओकर चाेरि‍ पकड़ा गेलै। राजा ओकरा आर्थिक जुरबानाक संग छह मासक जहलक सजा दऽ देलखि‍न। एे तरहेँ राजकुमारीक हार भेट गेलै। राजा आ प्रजा सभ खुश। राजा खुश भऽ कऽ मंत्रीकेँ इनाम देलखि‍न। राजाक संग रानी आ राजकुमारी खुश। संगे सभ सभासद् सेहो। से बुझि‍लीही रौ भुटबा जे कोन तरहेँ मंत्री चोरकेँ पकड़लक? एकरे कहै छै बुधि‍!

भुटबा छल चूप। कि‍एक तँ ओ खि‍स्‍सा सुनैत-सुनैत ओङहा गेल छल।¦¦¦

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