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Saturday, June 28, 2014

कि‍रदानी

कि‍रदानी




रामरूप प्रसाद, जे छह मास पहि‍ने लेबर कमि‍श्‍नर पदसँ सेवा-नि‍वृत भेल छला, गाम एला। नव लोकक आगमनसँ गाममे चलह-पहल शुरू भेल। जेते मुँह तेते बोल, कि‍यो बौआ भाय तँ कि‍यो बौआ काका तँ कि‍यो लाल बौआ कहि‍-कहि‍ रामरूप प्रसादकेँ सम्‍बोधि‍त करैत। धि‍या-पुताकेँ मतलबे कोन जे, के आएल के गेल। जुआन-जहानसँ लऽ कऽ चेतन-अधवेशू धरि‍ अपन-अपन हाजरी दर्ज करबए पहुँच रहल छला। केना नै पहुँचि‍तथि‍, गामक पहि‍ल बेकती जे एते नमहर हाकि‍म छथि‍। कि‍ए बूझत जे हाकि‍मपना चलि‍ गेलनि‍, खलि‍ये रामरूप छथि‍। बेठेकानो आमक गाछपर गोला फेकि‍ पाकल आम तोड़ने तँ अनठेकानो ने ठेकाने बनि‍ जाइए, तहि‍ना अपन गामक पूबपीठि‍या देखि‍ जँ गौआँ रामरूप बाबूकेँ भेँट करए अबै छथि‍ तँ अपन समाजि‍कताे ने नि‍माहि‍ लइ छथि‍। जाबे धरि‍ कमि‍श्‍नर साहैब काज करै जोकर छला ताबे धरि‍ गाम दि‍स तकबे ने केलनि‍ आ जखनि‍ अथबल, श्रमहीन भऽ गेला तखनि‍ गाम मन पड़लनि‍। गाम कि‍ मन पड़ि‍तनि‍ मन पड़लनि‍ पि‍ताक पुश्‍तैनी भूमि‍। पुश्‍तैनी भूमि‍ तँ हजारो लाखो अछि‍ मुदा से नै, केते खेत आ ओकर केते मूल्‍य भेल। खैर, कि‍छु हुअए मुदा स्‍वतंत्र देशक नागरि‍क होइक नाते एते तँ अधि‍कार सभकेँ अछि‍ए जे जे मन फुड़ै, जेना मन फुड़ै तेना अपन सम्‍पति‍क उपयोग करए। चाहे बेल रोपए आकि‍ बगूर। मुदा एहनो की नै होइए जे अनकर गोरहा, चौमासकेँ बाँस-गाछ रोपि‍ अछाह कऽ नष्‍ट करि‍ देल जाइए?
चाह-पर-चाह, पान-पर-पान रामरूप बाबू दि‍ससँ चलि‍ रहल अछि‍, लोकक आवाजाही अछि‍ए। लोको लाज तँ ओहने ने लाज भेल जेहेन वैदि‍क लाज होइए। ओना कि‍छु गोटे जे भरि‍ दि‍न रौद-वसातमे रहैए ओकर दुनियोँ तँ अँगने भरि‍क अछि‍, ओकरा आनसँ मतलबे कोन? जेतबे अँगना रहत तेतबे पथार पसारब। मुदा फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ भेँट करए एला। फुसन काका गामक ओहेन लोक जि‍नका अदहा गामक लोक फुसि‍याह झुट्ठा कहै छन्‍हि‍ तँ अदहा गामक लोक उचि‍तवक्‍तो आ ठाँहि‍-पठाँहि‍ बजनि‍हार सेहो तँ कहि‍ते छन्‍हि‍। ई तँ  अद्भुत खेल अछि‍ जे एके गोटे दुनू केना? साल-दू-साल फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ जेठे रहथि‍, मुदा जेठ-छोट उमेरेटासँ नै मानल जाइए दोसरो-तेसरो कारण छै, खैर जे छै। फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबक बगलेमे बैस पहि‍ने तँ दोसर-तेसरक बात सुनलनि‍ मुदा चाह पीला, पान खेला पछाति‍ अपनो मुँह खोललनि‍। बजला-
जुगो पछाति‍ दुनू गोटे एकठाम भेलौं, सभ हरेलहा समए हेरा गेल। कि‍म्‍हर-कि‍म्‍हर उदए भेलै?”
कानून-कायदाक लोक रामरूप बाबू तँए शास्‍त्रीय भाषाक बोध नै। मुदा तैयो अपन बात रखैत बजला-
अपन जे पाँचो बीघा चौमास अछि‍ तइमे सागवानक खेती करब।
कमि‍श्‍नर साहैबक बात सुनि‍ फुसन कक्काक मन कड़कलनि‍। कड़कलनि‍ ई जे दसे बीघा नकोर[1] जमीन गाममे अछि‍, तेहेन चौरि‍‍याह[2] गाम अछि‍ जे केकरो घर छै तँ अगवास नै आ अगवास छै तँ गाछी-कलम नै, तैठामक खेतमे सागवानक खेती गाममे हएत! वन वि‍भागकेँ बोनक जंगलेटा सुझै छै मंगल नै सुझै छै। दुनि‍याँक कोन एहेन उपजा अछि‍ जेकरा मि‍थि‍लांचलक भूमि‍ अंगीकार करैक शक्‍ति‍ नै रखैए, मुदा ई तँ वि‍चारणीय भेल। बर्खाक कटाउ होउ आकि बाढ़ि‍क आकि‍ वायु प्रदूशन, गाछ-बि‍रि‍छ तँ जरूरी अछि‍ए। मुदा जैठामक गाछ फलो दइए, लकड़ीओ दइए, नीक आैक्‍सि‍जनो दइए तेकरा छोड़ि‍ जे एकमुश्‍त पनरह बरख सम्‍पति‍केँ घेरावंदी कऽ लेब! तहूमे जेकर उपयोग अपना जि‍नगीमे नै!! मुदा बजला कि‍छु ने। हड़ताली कर्मचारी जकाँ मुँहमे ताला झुलौने रहला, तरे-तर हूँहकारी भरैत रहला! चारूकात घुमा-घुमा मुड़ी डोलबैत रहला! मन कि‍म्‍हरो, शक्‍ल-सूरत कि‍म्‍हरो घूमि‍ रहल छन्‍हि‍! समाज दि‍स नजरि‍ पड़ि‍ते मन हुमड़लनि‍। हुमड़लनि‍ ई जे समाजोकेँ की डोराडोरि‍ छै जे डाँड़ सक्कत रहतै? बि‍नु डोराडोरि‍क समाज केम्‍हर कखनि‍ ससरि‍ जाएत तेकर कोनो ठेकान छै। नीक करू आकि‍ अधला, कि‍छु गोटे तँ संग पुरनि‍हार हेबे करता, जखनि‍ समूह संग पुरनि‍हार तखनि‍ समाजक जँ वि‍रोधो अछि‍ तँ समर्थनो तँ अछि‍ए। समाजे पाबि‍ ने कि‍यो शक्‍ति‍शाली बनैए। भलहिं समाज जेहेन होइ। नमहर भेने नमहर आ छोट भेने छोट। तहि‍ना नीकक बनने नीक आ अधलाक बनने अधला। मुदा लगले फुसन कक्काक मनमे उठलनि‍, एक तँ ओहि‍ना पाइ-कौड़ीबला लोक रामरूप बाबू छथि‍, तैपर सरकारक बीच अपन हश्‍ती! बढ़ा-चढ़ा कऽ बजबे करता, अनेरे दसटा फलतुआ लोक संग देबे करतनि‍। गपे-सप्‍पमे वि‍चार भेद भेने ने गारि‍-मारि‍ अबैए, कि‍ए ने औत? फुसन कक्काक गुमी देखि‍ रामरूप बुझलनि‍ जे भरि‍सक वि‍चार नीक लगलै। अपन वि‍चारकेँ आरो मजगूती दैत बजला-
एकटा बात बूझल अछि‍ कि‍ने?”
‘एकटा बात’ सुनि‍ फुसन काका चौंकला। चौंकैक कारण भेलनि‍ जे गामक बात आकि‍ बाहरक। मन गवाही देलकनि‍ जे बाहरसँ मतलबे की आ गाममे रहै छी हम आ हमरे नै बूझल रहत। अह्लादि‍त अति‍थि‍ जकाँ आँखि‍, भौ, मुँह बि‍हुसबैत पुछलखि‍न-
से की?”
मुँह बाउल बच्‍चा जकाँ फुसन काकाकेँ बूझि‍ चहरा दैत रामरूप बाबू कहलखि‍न-
खाली अपने खेतीक टाक बात नै अछि‍, गामक जे कि‍यो सागवानक खेती करए चाहता सभकेँ सरकारी अनुदान दि‍आ देबनि‍। हमहूँ ओही वि‍भागसँ ने जुड़ल छी।
जहि‍ना तामस उठला पछाति‍ बुधि‍यार, गि‍लास भरि‍ पानि‍ पीब तामसकेँ दबैत अछि‍ तहि‍ना फुसन काका पानक खि‍ल्‍ली बदलैत, रि‍सकेँ कम केलनि‍। मुदा पेटक वायु डि‍रि‍यए लगलनि‍। डि‍रि‍यए ई लगलनि‍ जे जो रे अन्‍हरा लोक, अन्‍हरा गाम आ अन्‍हराएल अन्‍हरा...। कहू! जे मि‍थि‍लांचलक भूमि‍ ओहन सक्कत-सक्कत गाछ-बि‍रि‍छकेँ पेटमे समेटने अछि‍ जेकर तख्‍तामे बन्‍दूकक गोली नै छेद सकैए, ओहेन गाछ जे प्रकृति‍क रंगक संग ओहन फल दइए जेकर तुलना कोनो आन भूमि‍ नै कऽ सकैए, तैठाम जँ लोकक एहेन धारणा बनि‍ जाए जे पनरह-बीस सालक खेती एक बेर पूजी लगौलासँ भऽ जाएत, बाँकी साल नि‍गरानी भरि‍, तखनि‍ खेतबलाक हाथमे पनरह-बीस बरख काज की रहल?
रामरूप बाबूक वि‍चार सुनि‍ फुसन काका जेना मनक लोकसँ आगू बढ़ि‍ संकल्‍पि‍त लोक पहुँच गेला। समाजकेँ अपन गाम-समाजक वि‍चार अपना ढंगसँ करए पड़तै। मुदा से ओहि‍ना करतै आकि‍ समाजक नीक-अधलाक वि‍चार करैत करत। कोन गाम एहेन अछि‍ जइमे शि‍क्षाक मदमे गैर सरकारीसँ लऽ कऽ सरकारी धरि‍ करोड़ोमे नै चलि‍ रहल अछि‍, मुदा शि‍क्षाक स्‍तर की अछि‍...। अकछैत मन फुसन काकाकेँ वि‍चार देलकनि‍-
कि‍यो कीमती हरि‍अर-सुखाएल तरकारी बूझि‍ अपना खेतमे सांगरीए लगा लेत तँ लगा लि‍अ! मुदा अपन की हएत से वि‍चार करैत करह!
उठैत-उठैत फुसन काका बजला-
अखनि‍ रहब कि‍ने?”
फुसन कक्काक मोनक बात जे होउ, मुदा रामरूप बाबू बजला-
जेना अहाँ सभ रहए देब, तहि‍ना ने रहब?”
सभ बातक जवाब टटके नीक नै होइ छै। चुपे-चाप फुसन काका वि‍दा भेला। मुदा मन कहलकनि‍-
एहेन कि‍रदानी आकि‍ कि‍रदानी केनि‍हारक बास समाजमे उचि‍त नै...!
गामक ओहेन परि‍वारमे रामरूप प्रसादक जनम भेल छेलनि‍ जेकरा समाजमे सुभ्‍यस्‍त मानल जाइ छेलै। पनरह बीघासँ ऊपर जमीन, पि‍ता मेहनती कि‍सान, कहि‍यो परि‍वार चलबैमे खाँच नै भेलनि‍। तैसंग समाजमे पैंचो-पालट करि‍ते छला। गाममे स्‍कूल नै रहने रामरूप ममहरेमे रहि‍ मि‍ड्ल पास केलक। मि‍ड्ल पास केला पछाति‍ होस्‍टलक खर्च पि‍ता दि‍अ लगलखि‍न। आन वि‍द्यार्थी जकाँ रामरूपकेँ कहि‍यो ने भेलनि‍ जे कोर्सक कि‍ताव नै अछि‍ आकि‍ फीसक दुआरे परीछे छूटि‍ गेल। मैट्रि‍क पास केला पछाति‍ पि‍ताकेँ अपन हाथक मेहनति‍ कएल पाइक मोल लालमे देखलनि‍। एते तँ बात अछि‍ए जे पि‍तोकेँ कहि‍यो हाँट-दबार करैक मौका रामरूपक प्रति‍ नै भेटलनि‍। कहियो कानमे भनक नै लगलनि‍ जे आन-आन जकाँ ताड़ी-दारू करैए। तैसंग साले-साल पासक फल सुनि‍ मनमे गदगदी चढ़ि‍ते गेलनि‍। काैलेजमे नाओं लि‍खबैक प्रश्न जखनि‍ रामरूपकेँ उठलनि‍ तखनि‍ पि‍ता स्‍पष्‍ट कहि‍ देलखि‍न-
ऐ धनकेँ जेते चला-बना पुरा सकब तेते तँ पुरेबे करब मुदा जखनि‍ नै पूरत तखनि‍ खेतो-पथार तँ अछि‍ए, मुदा जँ तोहर ि‍वचार आगू बढ़ैक छह तइमे नै रोकबह। अखने तोरा समए छह, पछाति‍ जखनि‍ घर-परि‍वारमे ओझरेबऽ तखनि‍ एहेन समए थोड़े भेटतऽ से नै तँ अनुकूल समए छह हमर खर्च तोहर पढ़ाइ।
बी.ए. पास केला पछाति‍ देश स्‍तरक तँ नै मुदा राज स्‍तरक प्रति‍योगि‍ता परीछा रामरूप जरूर पास केलनि‍। जइसँ समैक अनुकूलता पबैत कमि‍श्‍नर भऽ रि‍टायर केलनि‍। जाबे तक नोकरी केलनि‍ ताबे तक गाम बि‍सरि‍ गेल छला मुदा काजसँ पलखति‍ भेने, सेवा नि‍वृति‍ भेने आब गाम मन पड़लनि‍! मन पड़लनि‍ पि‍ताक चास-बास। ओना समाजो, परि‍वारो आ पि‍तोक देल जि‍नगीक साइयो-हजारो धरोहर सम्‍पति‍ अछि‍ मुदा ऐठाम से नै। पि‍तोकेँ पूर्वजक देल आ अपन अरजल खेते-पथार भरि‍ अछि‍। समए कि‍छु होउ, मुदा एहनो परि‍वारक कमी मि‍थि‍लाक पेटमे नै अछि, आ ओकरा नकारलो नहि‍येँ जा सकैए, जे पुर्खाक देल सम्‍पति‍केँ, खेत-पथारकेँ लाड़ि‍-चारि‍ अपन जि‍नगी नि‍माहैत ओइ सम्‍पति‍केँ अमानत रखि‍ अगि‍ला पीढ़ीकेँ बि‍नु कहनौं-सुननौं सुमझबैत आएल अछि‍। तहि‍ना रामरूपो बाबूकेँ अपन पि‍ताक चास-बासपर नजरि‍ पड़लनि‍।
जेठ मासक सौझुका झकासक पछाति‍ पूर्बाक लहकीमे ओसारपर बैस पटनेसँ गामक आनन्‍द रामरूप बाबू लइ छला। तही बीच चाहक कप नेने पत्नी-कादम्‍बरी पहुँचलनि‍। ओना आँखि‍क टकटकी रहनि‍ मुदा ज्‍योति‍ वि‍हीन। पत्नीकेँ नै देखि‍ पौलनि‍। मुदा कादम्‍बरी बुझैत जे ि‍कम्‍हरो मन भँसि‍ गेल छन्‍हि‍। कप बढ़बैत बजली-
चाह पीब लि‍अ, भक टूटि‍ जाएत।
कहि‍ बगलेक कुरसीपर बैस अपनो चाह पीबए लगली। चाहक चुस्‍की लैत रामरूप बाबू बजला-
गाममे बहुत सम्‍पति‍ अछि‍ ओकर उपयोग केना करी तैबीच नजरि‍ घूसि‍ए ने रहल अछि‍।
बहुतो एहेन तँ छथि‍ए जि‍नका ठोरेपर बरी पकै छन्‍हि‍। प्रश्न पूरल आकि‍ नै पूरल, उत्तर पहि‍ने दऽ देता। भलहिं उत्तर नूनगर भेल आकि‍ कड़ू आकि‍ मीठनोन! तेकर चि‍न्‍ता नै। तहि‍ना कादम्‍बरीओ छथि‍। केना नै रहती? अर्थशास्त्री पि‍ताक बेटीक संग अपनो- कादम्‍बरी- आनर्सक संग एम.ए. अर्थशास्‍त्रेसँ केने छथि‍! बजली-
आइक पूजीमे करोड़ोक सम्‍पति‍ अछि‍, बेचि‍ कऽ बैंकमे जमा कऽ लि‍अ, लाखोमे आमदनी बढ़ि‍ जाएत।
गरूड़ जहि‍ना कागभुसुण्‍डीक बात धि‍यानसँ सुनैत तहि‍ना रामरूप बाबू पत्नीक बात सुनला। मुँहमे तँ ताला लगौने रहला मुदा भीतरे-भीतर मन हौंड़ए लगलनि‍। अपन नोकरीक जि‍नगी मन पड़लनि‍, जि‍नगी भरि‍ पाइए हँसोंथलौं, जइसँ पटना सन शहरमे दस कट्ठाक घराड़ीमे तीन मंजि‍ला मकान बनेलौं, पेन्‍शन भेटैए, बैंकोमे अछि‍ए! तखनि‍ जँ बाप-दादाक देल जमीन बेचि‍ समाजसँ नाक कटाएब, ई हमरा सन लोक लेल केते उचि‍त हएत? बच्‍चाक महि‍रम जेना माए-बाप बुझैए तहि‍ना ने खेतो अरजनि‍हार खेतक बुझै छै। की केकरो दस कट्ठाक चौमास पूर्वज अहीले देलनि‍ जे बेटा, बेचि‍ कऽ बैंकमे रखि‍ लि‍हऽ जे खूब सुइद हेतह। आकि‍ ओ बारहो मासक कामधेनु बूझि‍ देलनि‍? मुदा आइक बहरबैयाक जे रूप-रंग कहि‍औ आकि‍ नव कृषक संस्‍कृति‍ पकड़ि‍ लेलक अछि‍ आेइसँ उपजा-वाड़ीक रूप की वएह रहत? ने राधाकेँ नअ मन घी हेतनि‍ आ ने राधा नचती। ने गाछमे डारि‍ हएत आ ने कि‍यो मचकी झूलता। मन हुमड़लनि‍, पत्नीक पैत्रि‍क सम्‍पति‍ नै छि‍यनि‍- पैत्रि‍क सम्‍पति‍क माने पारि‍वारि‍क वि‍चारधारा- ओ अपन छी ओकर रक्‍छा के करत? नै! पत्नीक वि‍चार नै सुनबनि‍। कोनो परि‍स्‍थि‍ति‍मे खेत नै बेचब। वि‍चारक दृढ़ता मुँह फोड़ि‍ नि‍कललनि‍-
बाप दादाक मान-सम्‍मानसँ जुड़ल जमीन अछि‍, ओकर उपयोग केना हएत, ई वि‍चारणीय भेल।
अखनि‍ धरि‍क जि‍नगीमे रामरूप बाबू पत्नीक वि‍चारकेँ अङेज नेने छला। सेहो ओहि‍ना नै, हुकुमदारी करैत-करैत एहेन मोड़ बनल जाइमे दुनू बेकती निर्णए केलनि‍ जे दरमाहा पत्नीक हाथ जेतनि‍ आ ओ घर चलौती। जइसँ जेना पुरुखक कलंक उठैए जे फल्‍लाँ फल्लाँ ठाम, से तँ झूठ भाइए जाएत। अँगने नै तँ राधा नचती केतए? मुदा ऊपरफटकी आमदनी तँ बि‍नु आड़ि‍-मेड़क होइए, ओ केना हि‍साबमे औत? ओना, अइले घोंघौज दुनूक बीच भेलनि‍, मुदा ओ परि‍वारक हि‍साबसँ बाहर रहल। मुदा ओकरा केना कामयावी बनाबी यएह ने भेल बुधि‍यारी। जहि‍ना कादम्‍बरीक मन छेलनि‍ जे पति‍क सोलहन्नी कमाइ हाथ आबए, सएह भेबो केलनि‍। जे निर्णयक पछाति‍ रामरूप बाबू मासे-मासे चेक पत्नीक हाथ दैत रहलखि‍न। तइसँ एते तँ भेबे केलनि‍ जे मछट्टा जाइक जरूरति‍ नै पड़लनि‍। नून-सँ-हरदी तकक भार कादम्‍बरीएपर रहलनि‍। जइसँ कादम्‍बरीओ अपनाकेँ बेरोजगार नहि‍येँ मानैत। ओना कादम्‍बरी पति‍क आदमनीकेँ ओइ थर्मामीटरसँ नपैत जइसँ छह बजे साँझसँ बारह-एक बजे राति‍मे थाकल-मारल अबैक कारण की? नोकरीक डि‍यूटी दि‍नका छन्‍हि‍, तखनि‍? मुदा लगले मन मुड़ि‍ जान्‍हि‍। मुड़ि‍ ई जान्‍हि‍ जे अपनो देह भरि‍क स्‍वंत्रताक अधि‍कार जँ पुरुखकेँ नै भेटए, तँ पुरुखपना केतए औत? मुदा तैयो एते तँ इमानदारी रामरूप रखि‍ते छथि‍ कि‍ने जे आमदनीकेँ छि‍ड़ि‍अबै नै छथि‍, कि‍छु-ने-कि‍छु मोटगर काज तँ सम्‍हारिए लइ छथि‍। पटना सन शहरमे दस कट्ठा घराड़ीक बीच तीन मंजि‍ला मकान तँ हुनके कमाइक छि‍यनि‍ आकि‍ कि‍यो दोसर देलकनि‍। अनेरे झूठ-फूसक गपक नाङरि‍ पकड़ैले बौआएब। ओना दुनू परानीक बीच खौटका बनि‍येँ गेल। रामरूप बाबूक वि‍चार जैठाम छन्‍हि‍ तइसँ कादम्‍बरीक वि‍चार हटल रहबे कएल। जमीनक नीक उपयोग भेने ने सम्‍पति‍क नीक सुख भेटै छै। जँ ओकर उपयोगे ने हएत तँ माटि‍क धरती माटि‍ छोड़ि‍ सोनाक थोड़े भऽ जाएत। हँ, उपयोग केला पछाति‍ माटि‍ओ सोना बनै छै। तैठाम कादम्‍बरीक हटल वि‍चार ई जे खेत बेचि‍ बैंकमे रखने नि‍श्चि‍त आमदनीपर पहुँच जाएब तइ हि‍साबसँ परि‍वार चलत। ने हाथ मैल आ ने पएर मैल हएत। धारक महार टुटि‍ते दू तरहक धारा नि‍रमि‍त भाइए जाइए। एक जे मुख्‍यधारा ओकर जगह बना पेटमे समटैए तँ दोसरो एहेन अछि‍ए जे अपना धारामे आरो धफार पैदा कऽ दाेसर दि‍स रेड़ैए। ओना अखनि‍ धरि‍ दुनू परानी- पति‍-पत्नी-क बीच केतेको दि‍न एहेन प्रश्नपर मतभेद होइत रहलनि‍। समझौतौ होइत रहलनि‍, मुदा कादम्‍बरीक आइक प्रश्न रामरूप बाबूकेँ कि‍छु दोसर दि‍शामे मोड़ि‍ देलकनि‍। रंग-बि‍रंगक प्रश्न मनमे उचड़ए लगलनि‍। की अपन समाज टूटि‍ गेल? आ की अपन जि‍नगी टूटि‍ गेल? एकरा की मानल जाए? माए-बापक सेवा इति‍हास-शास्‍त्र पुराणक पन्ना पाछू पड़ि‍ गेल? ऐ उमेरमे केकर आशा...? वि‍चारमे मोड़ एलनि‍। एक तँ ओहि‍ना दुनि‍यासँ हटल छी तैपर जँ दुनू बेक्‍तीओ हटि‍-हटि‍ रहब सेहो नीक नै। वि‍हुँसैत रामरूप बाबू पत्नीकेँ बौसैत बजला-
अनेरे छोट-छीन बातक पाछू बेसी पड़ब नीक नै।
पति‍क सह पबि‍ते कादम्‍बरी छि‍ड़ि‍आइत बजली-
ओही दि‍नसँ अहाँकेँ जनै छी जइ दि‍न बात काटि‍ देलौं!
जहि‍ना छि‍ड़ि‍याइत बातकेँ समेटल जाइत तहि‍ना पत्नीकेँ समटैत रामरूप बाबू बजला-
सभ दि‍न तँ महल्‍लाक सभ सेवा नि‍वृति‍ भेल लोक एक घंटा-दू घंटा एकठाम बैसि‍ते छी, तही बीचमे कि‍ए ने वि‍चारि‍ लेब। अनेरे कि‍ए हम बधुआएब आकि‍ अहीं बधुआएब।
पति‍क वि‍चार कादम्‍बरीकेँ नीक लगलनि‍। नीकक कारण जे कादम्‍बरीक लड़-जड़क बाहुल्‍य, तँए अपन पक्ष मजगूत होइत देखलनि‍ तेतबे नै देखलनि‍ तैसंग ईहो देखलनि‍ जे पति‍-पत्नी माने पुरुष-नारीक बीच अदौसँ कि‍छु-ने-कि‍छु वैचारि‍क मन-भेद होइत आबि‍ रहल आ होइत रहत, मुदा फेर केना सम्‍बन्‍ध बनल रहल? हारल-थाकल-मारल बटोही जकाँ पति‍क बगे-वाणि‍ कादम्‍बरीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। जीतल पति‍-पत्नी तँ ओ ने जे अपन आ अपन परि‍वारक कोनो समस्‍या दोसराक बीच नै रखि‍ दुनू मि‍लि‍ समाधान करैत दौड़ैत जि‍नगी बि‍तबैत मृत्‍युक धाराकेँ कूदि‍ कऽ टपि‍ जाएत? मुदा से तँ नै भेल! ओझराइत बाटक बात देखि‍ कादम्‍बरी बजली-
सभसँ बड़ौ समाज। भने अपन बात वि‍चारैले रखि‍ हुनको सबहक वि‍चार देखबनि‍, नीको बूझि‍ पड़त आ अधलो, जे नीक हएत ओकरा पकड़ि‍ लेब, जे अधला बूझि‍ पड़त ओकरा छोड़ि‍ देबै। सएह ने? तइले जँ दुनू संगीओ-साथीमे मुँह फुलौने रहब, सेहो नीक नै। दुनि‍याँक इति‍हास गबाही अछि‍ जे वि‍षम परि‍स्‍थि‍ति‍मे पुरुखो आ महि‍लो एक दाेसराक संग छोड़ने अछि‍। मुदा एहेन पौराणि‍क गल्‍ती अपना जि‍नगीमे नै उतरए देब। लगभग चालीस बरख पूर्ब जहि‍ना हाथ पकड़ा-पकड़ी केने एलौं, तहि‍ना पकड़ने चलब।
पत्नीक वि‍चार रामरूप बाबूक घोर-मट्ठा भेल मनकेँ जेना फरि‍छाएल पीबै जोकर पानि‍ बना देलकनि‍। बजला कि‍छु ने। मुदा आँखि‍ जरूर अँखि‍आ लेलकनि‍। अँखि‍आ ई लेलकनि‍ जे नीक भवि‍स दि‍स अपनाकेँ बढ़बए चाहि‍ रहली अछि‍। रामरूप बाबूक आँखि‍-मे-आँखि‍ मीलि‍ते जेना कादम्‍बरीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे भरि‍सक पति‍ अगि‍ला काज दि‍स बढ़ैले कहि‍ रहला अछि‍। काजे ने बोलीकेँ बि‍लमबै छै। जँ से नै हएत तँ काजे बि‍गड़ि‍ जाएत! आ जखने काज बि‍गड़त आकि‍ अनधुन गरि‍औनाइ शुरू करत! तइसँ नीक जे रौतुका भोजनक ओरि‍यानमे कि‍ए ने लगि‍ जाइ। पति‍ लगसँ उठि‍ कादम्‍बरी भनसाघर तँ वि‍दा भऽ गेली मुदा मनक दोसर खरी उचरि‍ गेलनि‍। उचरि‍ ई गेलनि‍ जे अखनि‍ तक कहि‍यो ओहेन भोजन नै केलौं जेहेन मनुखक हेबा चाही। पढ़ल-लि‍खल परि‍वार रहि‍तो कहाँ कहि‍यो ऐपर वि‍चार केलौं! एक भोजन श्रमक पूर्ब होइए दोसर अंतक पछाति‍, जखनि‍ लोक अराम करए जाइ छथि‍। गरि‍ष्‍ठ पाक जेते अरामक अवस्‍थामे हेतै ओते काजक अवस्‍थामे थोड़े हेतै? मुदा ईहो केना मानल जाए जे सबहक दि‍न आकि‍ सबहक राति‍ एके रंग होइ छै। चौकाक बटलोहीक एक डेग पाछूए हटल कादम्‍बरी ठाढ़, मुदा वि‍चारतंत्र तेते सक्रि‍य जे सभ अंग शि‍थि‍ल पड़ि‍ गेलनि‍। नजरि‍ टकटकी जकाँ बनि‍ गेलनि‍।
दुनू परानीक बीच तीन दि‍न पछाति‍क समए बनल जे सभकेँ पूर्ब जानकारी देला पछाति‍ वि‍चारि‍ लेब। तैबीच हुनको सभकेँ समए भेटतनि‍ आ ऐबोक जानकारी रहबे करतनि‍। अपनो ओइ हि‍साबसँ तैयारी करब।
दाेसर दि‍न जेना कादम्‍बरीकेँ पानि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍। मलेटरी जकाँ समैपर नीन तोड़लनि‍। केना ने तोड़ि‍तथि‍? भोरुका बसंती-वयार केकरा नै बजारि‍ छातीपर बैसए चाहैए। मुदा एहनो तँ लोक छथि‍ए जे नीनकेँ तोड़ै छथि‍। जँ नीन अपने नै टुटए चाहैत तँ ओकरा तोड़लो जाइए। कादम्‍बरीओ नीनकेँ तोड़लनि‍।
समैपर उठि‍ अपन सभ जवाबदेहीक काज सम्‍हारि‍ बैसारक बीचक योजना बनबए लगली। चारि‍ बजे सौझुका समए अछि‍। चौबीसो घंटामे सभसँ नीक समए, नीकक माने वि‍चारक अनुकूल मौसम। भोजनो तँ वएह ने नीक जे मौसमक अनुकूल हुअए। जँ से नै आ चैत-बैशाखमे नवका दालि‍ खाएब तँ पेट हरहरेबे, गरगरेबे, पड़पड़ेबे, झड़झड़ेबे करत! मुदा जँ अपनो भोजनक वि‍चार मनुख नै करत तँ नै करह। कोइ काहू मगन कोइ काहू! अपन करनी अपन धरनी अपन मरनी हेतै आकि‍ अनकर? नीक हएत जे ओहेन भोजनक तैयारी करी जे सभकेँ सुपाच्‍य  होन्‍हि‍। कादम्‍बरीक मन मानि‍ गेलनि‍ जे नीक वि‍चार बुधि‍ देलक। मुदा लगले दोसर जोरसँ धक्का दैत कहलकनि‍-
सुपाच्‍च तँ वएह ने जे शरीर पचबए? आकि‍ सुपाच्‍च बौस? जँ सुपाच्‍च पदार्थ सुपाच्‍च तँ केकरो काँच दूध पचै छै आ केकरो नै पचै छै! केकरो गर्म दूध पचै छै आ केकरो नै पचै छै! तखनि‍?”
कादम्‍बरीक मन फेर दोसर घुरछीमे ओझरा गेलनि‍। एक तँ अदहे मुट्ठी टीक लोक रखैए, तहूमे जँ दसटा चि‍ड़चि‍ड़ी घोंसिआ जाउ तँ टीक खोलि‍ते-खोलि‍ते नोंचा जाएत आकि‍ एकेबेर जड़ि‍एसँ कटा कातमे भ‍ऽ जाएत? तैपर सँ पुछबै जे तोरा अपसि‍याँत भेने हमरा की? से जेहेन हएत तहि‍ना कादम्‍बरीक मनमे पनपल। पनपल ई जे जि‍नका जे सुपाच्‍य  होइ छन्‍हि‍, माने सभ दि‍न खाइ छथि‍, हुनका लेल वएह पाक नीक हएत। एकमुँहरी वि‍चार होइते फेर मन घुड़ि‍येलनि‍। घुड़ि‍येलनि‍ जे जँ कोनो नीक बौस बनि‍ जाए जे कि‍नको नहि‍योँ नीक भेने मन घूमि‍ जान्‍हि‍ तखनि‍ की कहबनि‍ जे अहाँले नै तैयार छी? मन ठमकलनि‍। ठमकि‍ते नि‍यारली जे बेकता-बेकतीक वि‍चारानुकूल पाकक ओरि‍यान कऽ लेब। पेट तँ जंजाल छीहे ने! जँ से नै तँ हजार रसगुल्‍ला आ बीस कि‍लोक रेहुक पेट जे बनौता हुनका लेल कि‍ए ने जंजाल छी। भोजनक सूची तैयार होइते कादम्‍बरी खोज-भाँज लगबए नि‍कलबे करती जे कि‍नका लेल की नीक। तहूमे समए लगबे करत। गप्‍पोकेँ कि‍ नाङरि‍ होइ छै, ओकरा कि‍ लोकक देह जकाँ आँखि‍क नि‍च्‍चाँ मुँह आकि‍ दुबगली कान आकि‍ मुँहक नि‍च्‍चाँ पेट जोड़ैक काज छै आकि‍ कैलाशसँ मानसरोवर आकि‍ मानसरोवरसँ गंगोत्री.., ओकरा तँ सौंसे दुनि‍याँ देखैक वि‍चार होइ छै। जँ से नै तँ ऐ प्रश्नक उत्तर कथी जे ‘अहाँक दुनि‍याँ केहेन? तँ अपना सन।’
रामरूप बाबूकेँ खाइ-पीऐक धनि‍येँ-फि‍कि‍र नै। तेकर कारण अछि‍ जे शुरूहेसँ अपन दरमाहा पत्नीकेँ सुमझा पाक-साफ भऽ गेल छला। से नीके छेलनि‍। नीक ई छेलनि‍ जे पत्नी जेते अपन भाएकेँ प्रेमसँ भोजन करबै छथि‍ तेते पति‍क भाइओक संग। तइसँ नीक जे ऐ बरहबर्खा रोगसँ छुट्टीए लऽ लेब नीक। तँए मन खुशी, कि‍ए कि‍यो कहता फल्‍लाँ बाबू भरि‍ पेट खाइओले ने देलनि‍ आकि‍ अमुख वस्‍तु बनबैक लूरि‍ए ने छेलनि!‍ कि‍एक तँ मनुखेक मुँह छि‍ऐ। बेटा बेरमे राजा छी आ बेटी बेर भीखमंगा!
समैसँ पूर्ब कादम्‍बरी अपन वि‍चार तीन बेर सभकेँ डेरे-डेरे पहुँच सुना चुकल छेली। मुदा रामरूप बाबू चुपे रहला। चुपे ऐ दुआरे रहला जे नव प्रश्न उठत, नव दि‍शा वि‍चारैक प्रश्न हएत ओ तँ अपन अनुभवक संग समैसँ रस्‍ता मि‍लबैत आगू बढ़त। जँ से नै तँ समचीन[3] केना हएत। अोना अपनो मन ओतए ठाढ़ भऽ अगि‍ला जि‍नगीक बाटक दि‍शा ताकि‍ रहल छेलनि‍, जँ से नै तकता तँ आनक जि‍नगीकेँ जहि‍ना अपने बुझै छथि‍ तहि‍ना ने आनो बुझतनि‍। सभ अपन मनक मालि‍क छी। सबहक अपन मन ओतए चढ़ि‍ कुचड़ैए जे, भाय, दुनि‍याँमे सभसँ बेसी बुधि‍यार, सभसँ बेसी इज्‍जतदार छि‍यौ, टि‍टही जकाँ हमरेपर अकास टि‍कल अछि‍...। तहि‍ना कि‍ दोसराक मन पाँखि‍ लगा उड़ि‍ नै कुचड़त जे हमहँू छी। तखनि‍ ओइ कुचड़ा-कुचड़ीमे अनघोल हएत की नै? तइसँ नीक ने जे मुँहमे ताला लगा रहब। अनेरे मन बौअबै छी। भाय, जेकर माए-बाप मरत ओकरा जँ नीन पकड़ि‍ लइ वा ओङहए लगए तखनि‍ दाेसराक गति‍ की हेतै। मुइला पछाति‍ होउ आकि‍ जनमला पछाति‍, ओकर जे अगि‍ला प्रक्रि‍या छै ओ तँ अपने करए पड़ै छै।
चारि‍ बजि‍ते सभ आमंत्रि‍तजन पहुँचला। मुदा बैसैमे फेड़-फाड़ भेल। फेड़-फाड़ ई जे आन दि‍न जेना अबैत गेला बैसैत गेला से नै भेल। अपन-अपन गर अँटकारि‍-अँटकारि‍ जोड़ लगि‍-लगि‍ बैसला। मैनेजर साहैब जे बैंकसँ सेवा नि‍वृति‍ भेल छथि‍, ति‍नका आ डाक्‍टर साहैबकेँ खूब पटै छन्‍हि‍, जँ दुनूकेँ समए भेटनि‍ तँ भरि‍-भरि‍ राति‍ सौन जकाँ वि‍द-वि‍दाइते रहि‍ जेता। मुदा जैठाम सभ दौग कऽ आगाँ बढ़ए चाहैए तैठाम मैनेजर साहैब आकि‍ डाक्‍टर साहैब छूटि‍ जाथि‍ सेहो तँ नीक नहि‍येँ। जहि‍ना डाक्‍टर साहैब मैनेजर साहैब लग बैसला तहि‍ना सेवा नि‍वृति‍ इंजीनि‍यर साहैब डायरेक्‍टर साहैब लग बैसला। फैक्‍ट्रीक डायरेक्‍टर साहैब सेहो सेवा निवृति‍ छथि‍। दुनूक वि‍चारक वि‍नि‍यम अपन रहनि‍, तँए बेसी हेम-छेम छन्‍हि‍। चाह उसरैत-उसरैत पान चलए लगल, मुदा पानक पछाति‍ जे परसल जाइए ओ अनका मुहेँ परसल जाएत आकि‍ अपना मुहेँ। जे‍म्‍हर पान परसा गेल ओम्‍हरसँ प्रश्न उठल-
की बात छि‍ऐ यौ रामरूप बाबू?”
प्रश्न उठौलनि‍ डाक्‍टर साहैब। ओना डाक्‍टर साहैब बजैमे फड़कोर छथि‍ए, नजरि‍ए तेहेन छन्‍हि‍ जे लगले कोनो बातकेँ पकड़ि‍, सामाजि‍क-पारि‍वारि‍क कोनो समस्‍याकेँ शरीरक रोगे जकाँ एक्स-रे करा मेडीसीन आकि‍ सर्जरीक दुनू वि‍चार ठाँहि‍-पठाँहि‍ दऽ दइ छथि‍न। ओना सभ दि‍न लोकक बीच रहै छथि‍, अखनो अपनाकेँ अथबल नै बूझि‍ रहला अछि‍, भलहिं नव तकनीकक मारि‍क चोट कि‍ए ने जि‍नगीकेँ धकि‍यबैत होन्‍हि‍। खैर, जे छन्‍हि‍ ओ तँ हुनकर बेक्‍तीगत छि‍यनि‍। ओना काने-कान बीआ-बान कादम्‍बरी काइए चुकल छेली, मुदा अपन जि‍म्‍माक आ गरि‍माक मेनटेन करब छन्‍हि‍हेँ।
चौमास जकाँ चौकि‍याएल वि‍चार रामरूप बाबूक रहबे करनि‍, बजला-
गाममे पि‍ता जीक अमलदारीमे पनरह बीघा जमीन छल, हुनका जीवि‍ते नोकरी भेल। हम नोकरी दि‍स बढ़ि‍ गेलौं। बाबू खेतीएपर अँटैक गेला। दुनू परि‍वार दू दि‍स भऽ गेल। चारि‍ पाँच बर्खक पछाति‍, आगू-ए-पाछू दुनूक मृत्‍यु भऽ गेलनि‍, कि‍रि‍या-कर्म भेला पछाति‍ जे गाम छोड़लौं, से छोड़नै छी।
रामरूप बाबूक नमहर प्रश्न। दू जि‍नगीक प्रश्न, एक कि‍सानीक दोसर नोकरि‍हाराक। तहूमे दुनू लग लगाउ नै, सोलहन्नी नवक शुरूआत। सबहक मन ठमकलनि‍। अपन जि‍नगीमे भेल घटना आ बि‍नु भेल घटनाक दू थर्मामीटर होइ छै। जि‍नगीक प्रश्न छी, तँए सभ सबहक मुहोँ देखैत आ आगू सुनैक प्रति‍क्षो करैत। ओना कादम्‍बरीक मन प्रश्नक उत्तर दइले चटपटाइत रहनि‍। कारणो छल दुनू परानीक बीच उठल दू दि‍शाक बाट। मुदा पनचैतीओ तँ पनचैती छि‍ऐ, ओहि‍ना पनचैती आ पर-पनचैतीक चलनि‍ समाज पकड़लक आकि‍ खूब नीक जकाँ जोति‍-कोरि‍, गोला फोड़ि‍ चि‍क्कन बनबैले पकड़लक। पनचैती आकि‍ पर-पनचैती ओहि‍ना थोड़े उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। ओहि‍ना कोनो चीज सोझहे ठाढ़ होइए आकि‍ ओकरा  ठाढ़ रहैक गर बनौला पछाति‍ होइए। तँए पनचैतीओक ठाढ़ होइक अपन गर छै। पहि‍ने पहि‍ल पक्ष अपन वि‍चार रखता, ओइ वि‍चारकेँ पंचवेदीमे वेदसँ नहाएल-धोअल जाएत तेकरा पछाति‍ ने दोसर पक्षक वि‍चार, वि‍चारमे औत? जँ से नै आनब आ पनचैतीकेँ निर्णए तक नै पहुँचऽ देबै तखनि‍ वि‍चारक उलंघनक दोषी के हएत। तहूमे परि‍वारक दुनू परानीक बीचक छी, पति‍क प्रति‍ अपन अशि‍ष्‍टता सोझहाँ आबि‍ जाएत। तइसँ नीक जे डाक्‍टर कि‍सुन भायकेँ कहि‍ए देने छि‍यनि‍ तँए हुनके इशारा कऽ दि‍यनि‍। कादम्‍बरी सएह केलक। मुदा डाक्‍टर साहैब अपन वि‍चारमे डुमल रहथि‍। चारि‍ भाँइक पि‍ताक भैयारीमे वि‍चारक भि‍न्नता परि‍वारकेँ मटि‍या-मेट कऽ चौकि‍या देलक। तँए कोनो परि‍वारक प्रश्न छी, बि‍नु बजने दोखीओ तँ नहि‍येँ हएब। बेर-बेर कादम्‍बरीक इशारा डाक्‍टर साहैब देख-देख अनठबैत रहला। डाक्‍टरो साहैब छह-पाँचक कमाइ नै केलनि‍। कि‍यो कम्‍पनी उपहार देलकनि‍, तेतबे धरि‍। तँए सोझ वि‍चार जे, भाय जे नै बुझि‍ऐ तेकरा लगले कि‍ए ने मानि‍ लि‍औ। जे कोट-कचहरीक केस जकाँ पचास-पचास बरख रगड़ैत रहि‍औ। तइसँ केकर नीक हएत। लोको रगड़ाएत सरकारो घँसाएत। चुपा-चुपी देखि‍ इंजीनि‍यर साहैब बजला-
सबसँ पहि‍ने दि‍याद-वादक भाँज लगबए पड़त, गाममे रहनि‍हार भलहिं मारि‍-दंगा कऽ बलजोरीओ कऽ सकैए मुदा जे बाहरसँ गौआँ बीच जेता हुनका तँ नापि‍-जोखि‍ कऽ जाएब नीक हेतनि‍। अपन सुपत केते जमीन बँचल छन्‍हि‍, ओ बि‍ना बुझने केना कि‍छु करता।
इंजीनि‍यर साहैब अपने गामक भगौआ भेल छला। मुदा से अपने गल्‍तीसँ। जखनि‍ घर बनबैक झोंक चढ़लनि‍, तखनि‍ अपन पैत्रि‍क घराड़ी दि‍याद-वादक हाथे बेचि‍ लेलनि‍। ओना देलखि‍न परि‍वारेकेँ, इज्‍जत तँ रखलनि‍, मुदा जखनि‍ अपन रहैक मि‍थि‍लांचलक बास बेचि‍ लेलनि‍, जेकरा कखनो नीक नै कहल जा सकैए आ जखनि‍ पाइ-कौड़ी जोर मारलकनि‍ तखनि‍ गाम मन पड़लनि‍। मनसूबा यहए जे बेसीए कऽ कीनि‍ लेब मुदा जि‍नगी भरि‍क समीक्षा केला पछाति‍ जे इंजीनि‍यर साहैबक कि‍रदानीक समीक्षा समाज आकि‍ दि‍यान-वाद केलनि‍ तँ ऐठाम आबि‍ अँटैक गेला जे इंजीनि‍यर साहैबसँ केकरा की लाभ भेल? तँ कि‍छु ने! तखनि‍ पढ़ल-लि‍खल आ बि‍नु पढ़ल-लि‍खलमे की अन्‍तर भेल, मुरुखोसँ मुरुखपने केलनि‍। एकमुट्ठी भोजन करा कि‍यो भूखलकेँ तृप्‍त बुझैत मुदा जि‍नगीक भूखक तृप्‍ति‍ता बि‍ना जि‍नगी ठाढ़ भेने नै होइ छै। जीवन बनबैक लूरि‍ इंजीनि‍यर साहैबकेँ, मुदा कहाँ एको परि‍वार गढ़ि‍ सकला! ई बात दि‍याद-वादक मन मानि‍ नेने छेलनि‍। केतबो नाङरि‍ पट-पटा कऽ रहि‍ गेला दि‍याद-वाद ओइ घराड़ीपर नहि‍येँ आबए देलकनि‍।
कि‍यो अपने बेथे बेथाएल तँ कि‍यो जमीनकेँ जंजाल बूझि‍ ओकरा भीर जेबो ने करै छथि‍। चुप-चुपी देखि‍ कादम्‍बरीक मन भीतरे-भीतर खौंझाइत रहनि‍ जे नीमकहराम सभ भऽ गेल। केहेन कऽ बुझा-सुझा कहबो केलि‍यनि‍ आ खुएबो-पीएबो केलि‍यनि‍। मुदा कि‍यो पीठपोहू हुअ नै चाहैए। पाशा बदलैत बजली-
एके काज लेल बेर-बेर बैसार करब नीक नै हएत। तँए...?”
कादम्‍बरीक प्रश्नमे पुछड़ी जोड़ि‍ मैनेजर साहैब बजला-
मानि‍ गेलौं जे पनरह बीघा छेलनि‍, तइमे नै सोलहन्नी तँ अठन्नीओ मानि‍ लि‍अ। अदहो तँ साढ़े सात बीघा बँचबे कएल हेतनि‍। मुदा साफे नै बँचलनि‍ सेहो तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। 
मैनेजर साहैबक मन बैंकक सुइद दि‍स भगैत जे छबे मासमे जखनि‍ सुइद मुइर भऽ चलए लगै छै, तखनि‍ लाखक पूजी पानि‍मे दहलाइए।
मैनेजर साहैबक बोल इंजीनि‍यर साहैबकेँ नीक नै लगलनि‍। नीको केना लगि‍तनि‍, मन गवाही दैत रहनि‍ जे जहि‍ना छोटका-बड़का साइओ पार्ट मि‍ला मशीन गढ़ल जाइए तहि‍ना तँ परि‍वारो छी। तँए, अपन प्रश्नपर अड़ान दैते बूझि‍ पड़लनि‍ जे साइकि‍लक भौलटू जकाँ गरदनि‍येँ लगसँ परि‍वार कटि‍ गेल अछि‍। कहू जे केहेन लीला छी जे एक माए-बापक सन्‍तान, बेटा-बेटी भेने केना सम्‍पति‍क अधि‍कारी आ नै अधि‍कारीक अधि‍कार अछि‍। तेतबे कि‍ए, जँ पाँच या सात भाँइक भैयारी छी तँ जेठौंस बँटैत-बँटैत छोटका सोलहन्नी बँटा जाइए आकि‍ रहबो करै छै।
गप-सप्‍पकेँ टेढ़-टूढ़ होइत देखि‍ रामरूप बाबू बजला-
मानि‍ गेलौं जे पनरह बीघामे साढ़े साते बीघा बँचल, तेकरा केना उपयोग करी, से तँ वि‍चारल जा सकैए।
टूटल दाँतक मुँहमे पान गलगलबैत डायरेक्‍टर साहैब बजला-
अपन कएल काज कहै छी। अपनो गाममे पाँच बीघा जमीन अछि‍, मन भेल जे पूजन देल सम्‍पति‍ छी पछि‍म लेल छोड़ि‍ दि‍ऐ। तखनि‍ तँ भेल ओइकेँ उपजाउ बना दि‍यै आकि‍ परती बना दि‍यै? उत्‍पादि‍त राखल जाए आकि‍ परती जकाँ? कोनो कि‍ पावनि‍-ति‍हार छी जे अनको आन सम्‍हारि‍ देतै आ एक-आधटा एकादशीक जरूरति‍ हेतै तँ दैयो देतै। जँ उर्वर-उपजाउ बनल रहत तँ सुगमतासँ आगूक काज बढ़ौल जाएत आ नै जँ परती बना राखल जाएत तँ मुरदा-साड़ा लग बैस कऽ कानब हएत। भाय, संस्‍कृति‍ आ मातृभूमि‍क सेवा कथी छि‍ऐ तेकरा ने नीक जकाँ बुझए पड़त। जैठाम कण-कणमे भगवान आ कण-कण शक्‍ति‍ सम्‍पन्न अछि‍ तैठाम केना कि‍ कएल जाए, एना जँ धि‍या-पुताक गर्दाक घर-अँगना बना खेलब, तँ बेर झुकैत उजरि‍-पुजरि‍ जाए पड़त।
डायरेक्‍टर साहैबक बातमे डाक्‍टर साहैबकेँ रस भेटलनि‍। टि‍टकारी दैत बजला-
भाय साहैब, अपने तँ टटके खेतपर पहुँचल छी, तँए समयानुकूल वि‍चार अपनै दऽ सकै छि‍ऐ?”
डाक्‍टर साहैबक टि‍टकारी डायरेक्‍टर साहैब नै परेखि‍ सकला। अपन पूछ खि‍खि‍र जकाँ मोटगर बूझि‍ पड़लनि‍। अठनि‍याँ मुस्‍कान भरैत बजला-
देखू अपन सोलहन्नी वि‍चार नै छी, मुदा जखनि‍ एक महान अर्थशास्‍त्री कानमे घोरि कऽ पीआ देलनि‍ जे देखि‍औ, अपना ऐठामक माने मि‍थि‍लांचलक कि‍सानी जि‍नगी बेठेकान छै। तहूमे बहरबैयाक लेल। गाममे रहनि‍हार तँ ओ भेला जे धार फुलाइते गाँज-डेली लऽ घारक कात जा हि‍यासऽ लगैत जे अमार केमहरसँ आबि‍ रहल अछि‍। से तँ बहरबैयाक बुत्तासँ बाहर अछि‍। तँए नीक हएत जे एकेबेर पूजी लगा बीस सालक खेती करि‍ लि‍अ।
ओना डायरेक्‍टर साहैब कुशि‍यारक गुल्‍ली बना-बना अपन बात राखए चाहै छथि‍, जे जखने तरो मीठ, ऊपरो मीठ आ मनो मीठ तखनि‍ तँ मि‍ठाइ बनबे करत। बड़ हएत तँ भुसबाक बदला लडडू बनि‍ जाए। नाङरि‍ पकड़ि‍ ऐँठि‍ डाक्‍टर साहैब बजला-
एहेन नफगर जँ खेती हुअए तँ तेलोसँ चि‍क्कन। तहूमे अपन इलाका, सत-सत बेर लोक एक-एकटा खेतमे धान रोपैए आ तैयो दहा जाइ छै। मुदा धन-धरतीक धैर्य तेते धीरजवान छै जे आँखि‍ खोलि‍ओ आ आँखि‍ बन्न काइओ कऽ सदि‍काल यएह कहैत जे धरती अहीं हमरा अन्न दइ छी, हृदैमे जमा कएल पानि‍ दइ छी, अपन सि‍नेह-सि‍क्‍त कएल पुरबा-पछि‍याक रूपमे हवा दइ छी, जि‍नगी लेल की ने दइ छी मुदा सभ कि‍छु दैतो हे धरती छाती हटौने छी।
डाक्‍टर साहैबकेँ भँसि‍आइत देखि‍ रामरूप बाबू बातकेँ समटैत बजला-
बड़ सुन्नर प्रश्नक उत्तर आबि‍ रहल अछि‍, एकबेर खेती करैमे ओकरा लगबैमे, जँ बीस बरख दोहरा कऽ ओइमे पूजी नै लागए आ बीस बर्खक पछाति‍ बीसो सालक उपजासँ बेसीक हि‍साब आबि‍ जाए तँ कि‍ए ने कएल जा सकैए।
रामरूप बाबूक वि‍चार सुनि‍ डायरेक्‍टर साहैबकेँ आरो मनसूबा जगलनि‍। बमछैत बजला-
सेवा-नि‍वृति‍ भऽ गेलौं तँए कि‍ ऐ देहमे दम नै अछि‍? रामरूप बाबू, अपनेसँ गाम जा देखि‍-सुनि‍ आउ। सागवान-गाछक खर्च सरकारी अनुदानपर आ लगबैओमे जे खर्च औत सेहो सभ सरकारीए अनुदानपर हएत।
डायरेक्‍टर साहैबक बमछी देखि‍ डाक्‍टरो साहैबकेँ मन बमछैत रहनि‍‍। मुदा अपन जखनि‍ सीमा अँकथि‍ तँ देखथि‍ जे जहि‍ना बजौल हम छी तहि‍ना तँ डायरेक्‍टरो साहैब छथि‍, अनका ऐठाम एहेन कि‍छु नै हेबा चाही जे घरबैयाक प्रति‍ष्‍ठापर कोनो कचोट होइ। तँए गुम्‍म। मुदा तरे-तर डाक्‍टर साहैबक मन ई बमछनि‍ जे कहू केहेन भोतलोह सन वि‍चार दऽ रहला अछि‍। बीस बर्खक खेतक काज हाथसँ छीना जाए तँ खेतपर रहनि‍हार लेल ओ हाथ की करत? तहूमे जे धरती दुनि‍याँक सभसँ नीक अछि‍ ओ फल-फूल वि‍हि‍न खेतीमे फँसि‍ जाए! तखनि‍ केहेन रमणगर जनकक फुलवाड़ी हएत? एक तँ जन-जनक फुलवाड़ी तैपर वि‍श्वामि‍त्र सन ऋृषि‍क आगमनक संग सखी-सहेलीक संग सीता आ लक्ष्‍मणक संग रामक मुस्‍कान। 
जहि‍ना समए उसरनपर आएल तहि‍ना वि‍चारोकेँ उसारि‍ए देब सभ नीक बुझलनि‍। डाक्‍टर साहैब बजला-
रामरूप बाबू, गाम जा खेत ठेकना लि‍अ, डायरेक्‍टर साहैब खेतीक भार उठाइए लेलनि‍, तखनि‍ शुभ काजमे अनेरे बि‍लम करब नीक नै।
बैसार समाप्‍त भेल। मुदा जहि‍ना नवम् मासक बेथा माइयेटा बुझै छथि‍ तहि‍ना नवम् जि‍नगीक बेथा रामरूप बाबूक मनमे कचकलनि‍।
बैसारक तेसर दि‍न, दू दि‍न बीचक समए ऐमे चलि‍ गेलनि‍ जे की करब, केना करब, के संग देत आकि‍ नै देत। एहनो संगी तँ होइते अछि‍ जे सदि‍काल तूम्‍मे फेड़फाड़ करैए। एहनामे केतए बि‍सवास कएल जा सकैए? कुरसीपर बैसल रामरूप बाबू असकरे वि‍चारि‍ रहल छला। सरकारी सर्टिफि‍केट अछि‍ जे आब अहाँ काज करै जोकर नै छी, तैपर बलउमकी करै छी। कोन जरूरति‍ पूर्वजक सम्‍पति‍क अछि‍, जे गाममे अछि‍। गौआँ जोति‍-कोरि‍ कऽ खाए आकि‍ परती बना कऽ गाए चरबए, गामक सम्‍पति‍क हक तँ ओकरे ने भेल। जि‍नगीमे दुनि‍याँ छोड़ि‍ पेट पकड़लौं, तैयो मन बौआइते अछि‍। मुदा दस गोटेक बीच जुआन हारि‍ गेल छी, जँ पाछू हटब तँ अनेरे वएह सभ मुहेँपर थुकता जे रमरूपबाक कोन ठेकान, कोनो कि‍ मनुख छी, धन जमा केने कथी‍ हेतै, जखनि‍ जुआने नै तखनि‍ ओहेन मनुखक मोजरे केते। मुदा वि‍चार जेना वि‍चार भूमि‍केँ खोदि‍ देलकनि‍। खोदि‍ ई देलकनि‍ जे जखनि‍ दुनू परानी दस गोटेक बीच अपन वि‍चार स्‍थापि‍त करैले गेलौं, तखनि‍ जे निर्णए भेल ओ दुनू गोटेक ने भेल। कोनो काज लेल आ केतौ जाइ लेल संगी संग गप-सप्‍प करैत रस्‍ता कटि‍ जाइए। तही बीच कादम्‍बरी चाह नेने पहुँचली। पति‍क सोगाएल सुरति‍ देखि‍ कादम्‍बरी व्‍यंग्‍यवाण छोड़ली-
मन बड़ खनहन जकाँ बूझि‍ पड़ैए?”
कादम्‍बरीक वाण रामरूप बाबूक छातीमे बेधि‍ देलकनि‍। बजला-
मन कि‍ खनहन रहत, मुदा खरहर तँ अछि‍ए। वएह सोचि‍ रहल छी, अनेरे बेसी देरी कि‍ए करब। काल्हि‍ए-परसूसँ कि‍ए ने काजमे हाथ लगा दि‍ऐ।
‘हाथ लगाएब’ सुनि‍ कादम्‍बरी सहमली। सहमली ई जे वि‍चार देब आ वि‍चारकेँ हाथक काजसँ मि‍लबैत चलब तँ भीन बात भेल! तखनि‍? तखनि‍ तँ यएह ने जे ओ पति‍ छथि‍ जेना संग दइले कहता तेना देबनि‍। ई बात अछि‍ए जे दुनू परानी बूढ़ भेलौं, मुदा ईहो तँ आशा अछि‍ए कि‍ने जे जँ रस्‍ता-पेरा मन झूकत तँ दोसरक आशासँ ठाढ़ हेबे करब कि‍ने। धनक लोभ छी, मुइलो अछि‍यापर सँ उठि‍ कऽ अबि‍ लोक लाठी भाँजैए। छोड़बो नीक नहि‍येँ हएत। बजली-
हम तँ जीवनसंगि‍नी भेलौं, कर्ता-धर्ता तँ अहीं भेलौं, तखनि‍ जे जेना सामर्थ्‍य रहत से तेना भाँज पुड़ैत रहब।
कादम्‍बरीक आस भरल आसक वि‍परीत दि‍शामे रामरूप बाबूकेँ आस लगि‍ते मन बढ़लनि‍। मन बढ़लनि‍ ओइ दि‍शामे जैठाम अपनाकेँ समाजक ओहेन लोक जे सभसँ बढ़ल-चढ़ल अपनो बुझै छथि‍ आ समाजो मानै छन्‍हि‍, जे दोसराक लेल की केलखि‍न? कोन मुँह लऽ कऽ समाजक बीच जाएब। मुदा सोझहामे कादम्‍बरी, तँए बात बदलि‍ बजला-
गामक लोक बड़ टेढ़ होइए, अनेरे कहत जे अहाँ बाबरी कटबै दुआरे केशकट्टा दि‍याद छोड़लौं आ आइ मरै बेरमे समाजक आगि‍ए संस्‍कार चाहै छी। तखनि‍ की कहबै?”
रामरूप बाबूक वि‍चार कादम्‍बरी नै परेखि‍ पौली। बजली-
केकरो अनकर सम्‍पति‍पर जाएब जे कि‍यो मुँह दुसत? अपन सम्‍पति‍ छी। चाहे मन्‍दि‍र बनाँउ, आकि‍ असमसान, अपना वि‍चारे कि‍यो करैए। तैठाम गौआँ कि‍ए बाजत?”
कादम्‍बरीक बोल जेना रामरूप बाबूक मनमे बलबोल जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा बजला कि‍छु ने। जि‍नगीक रक्‍छा केना कएल जाए, तेकरा खेल बुझै छथि‍। हँ एहेन गाम-समाज अखनो अछि‍ जे अति‍थि‍ सत्‍कारक वि‍धि‍-बेवहार बँचा कऽ रखने अछि‍। रामरूप बाबू समाजक बेटा नै बनि‍ पेला, ई दोख अखनो केकर कलंक भेल। काल्हुक लेल कोन अंक निर्धारि‍त हएत। मुदा कादम्‍बरी तँ गामक पुतोहु भेलखि‍न। जखने गाम पएर देथि‍न तखने समाजक बाल-अबाल सभ अड़ि‍याइत कऽ अँगने लऽ जेतनि‍। ओइ संग अपनो रहैक ठौर-ठेकान बना नै चलब तँ समाजक कोनो ठेकान छै। एकटा मारि‍-पीटि‍ भेने सौंसे गामक लोक जहि‍ना नि‍पत्ता  भऽ जाइए तहि‍ना मारि‍-पीटि‍ करैकाल सेहो तँ गोलि‍याइते अछि‍। निर्णए केलनि‍ जे समाजक नीक-अधला समाजक भेल, अपने केना ओइमे प्रवेश करब, ई अपन काज भेल। बजला-
तीन दि‍न मािन कऽ चलू। तीन दि‍न रहैक खेनाइ-पीनाइक फास्‍ट-फुड ओरि‍यानक संग रहैक घरक जोगार सेहो केने चलब।
हँ मोटा-मोटी दू गोटेक बोझहा भेल। मुदा आब तँ गामे-गाम सवारीओ जाइते अछि‍। काल्हि‍ए भोरक प्रोग्राम रखू।¦¦¦

१४ जुन २०१४




[1] सभसँ उत्तम कि‍सि‍मक
[2] नीच जमीनक
[3] समए चि‍न्‍ह

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