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Tuesday, June 10, 2014

बाल विहनि आ लघु कथा पर केन्द्रित "कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा" -८२म सगर राति दीप जरय- गोष्ठीमे पठि‍त

बाल विहनि आ लघु कथा पर केन्द्रित "कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा" -८२म सगर राति दीप जरय- गोष्ठीमे पठि‍त
जगदीश प्रसाद मण्‍डलक कथा- 

पल भरि



ति‍रसैठि‍म बर्ख गमौला पछाति‍ शि‍वजी बाबूक मन गरानि‍सँ गरि‍ रहल छन्‍हि‍। जि‍नगीक सङ दुनि‍योँ अन्‍हार जकाँ लगि‍ रहल छन्‍हि‍। केकरा कहथि‍न आ कहलो पछाति‍ के बि‍सवास करतनि‍ जे उवाह-उवाहमे जि‍नगीक ति‍रसैठ‍ बरख बोहि‍ गेल। समाजक केते लोक ऐ बातकेँ बूझि‍ रहल छथि‍ जे जइ आशामे अखनि‍ धरि‍ आस लगौने छेलौं ओ सोलहन्नी नि‍आस बनि‍ नि‍कलि‍ गेल! ओना बेसी लोक तँ यएह ने बूझि‍ रहल छथि‍ जे कौलेजक प्रोफेसर छथि‍, नीक दरमाहाक नोकरी करै छथि‍, आ नोकरी छुटलो पछाति‍ तेते पेन्‍शन भेटतनि‍ जे जि‍नगीमे कहि‍यो कोनो अभाव नै हेतनि‍, मुदा भेल की? असकरे अपन कोठरीमे बैस पोथीक अलमारीपर आँखि‍ गरौने मने-मन अपन हूसल जि‍नगीपर नजरि‍ दौगा रहल छथि‍। जेते नजरि‍ दौग रहल छन्‍हि‍ तेते मन वि‍षादसँ बि‍सबि‍‍सा रहल छन्‍हि‍। बि‍सबि‍सेबो केना नै करतनि‍, नीक नोकरी नीक दरमाहा केतए गेल? सौनक घट जकाँ दुनू आँखि‍ नोरसँ बोझि‍ल भऽ जि‍नगीक बि‍तल दि‍न देखि‍ रहल छन्‍हि‍। अनायास बकार फुटलनि‍-
धारक पानि‍ जहि‍ना धारे-धार बहैत समुद्रमे समा जाइए, तहि‍ना ने अपनो जि‍नगीक धारक भेल!
असकर कोठरीमे रहने िकयो दोसर तँ नै सुनि‍ पौलक मुदा अपन मनक सोग जे मुँह होइत नि‍कलल, ओ दुनू कान तँ सुनबे केलक‍नि‍। फेर मन घुमलनि‍। भने कि‍यो आन नै सुनलक। जँ सुनबो करैत तँ लाभे कथी होइतै। यएह ने जे जहि‍ना अपन जि‍नगी फुर्र-फाँइमे गेल तहि‍ना ओकरो जैतै।
तैतालि‍स बरख पहि‍ने शि‍वजी सी.एम. कौलेजसँ एम.ए. पास केलनि‍। औनर्सोमे नीक अंक आ एम.ए.मे सेहो नीक अंक भेटल छेलनि‍। शुरूहेसँ माने हाइए स्‍कूलसँ मनमे बैस गेल छेलनि‍ जे एम.ए. केला पछाति‍ प्रोफेसर बनब। परि‍वारक स्‍तर- शि‍क्षा सङ अर्थ- केँ उठाएब। मुदा भेल की?
गामक सम्‍पन्न परि‍वारमे शि‍वजीक जनम भेल। पि‍ता- राधा गोवि‍न्‍द- नीक खेति‍हर, पनरह बीघा खेतो छेलनि‍। पढ़ल-लि‍खल तँ बेसी नहि‍येँ छला मुदा खेतीक सभ लूरि‍सँ सम्‍पन्न छलाहे। समटल परि‍वार तँए बेटाक वि‍चारक वि‍परीत वि‍चार कहि‍यो बेटाक सोझ नै रखलनि‍। मनक धरणो छेलनि‍ जे बच्‍चाकेँ माने बेटा-बेटीकेँ जेते स्‍वतंत्र रूपे जि‍नगी ठाढ़ करैक समए देल जाएत ओ ओते नीक बनत। तहूमे कहि‍यो बेटाकेँ ने स्‍कूल-कौलेजमे फेल होइत देखलनि‍ आ ने कहि‍यो ताड़ी-दारू पीबैत देखलनि‍ आकि‍ सुनलनि‍। जइसँ मनमे आरो बेसी बि‍सवास बनले रहलनि‍।
एम.ए. केलाक साले भरि‍ पछाति‍ गामक बगले गाम सोनपुरमे कौलेज खुजल। कौलेज बनौलनि‍ सोनपुरक एकटा सुभ्‍यस्‍त परि‍वारक वि‍ष्‍णुदेव। तीन भाँइक भैयारीमे वि‍ष्‍णुदेव सभसँ जेठ छथि‍। अस्‍सी बीघा जमीन छन्‍हि‍। दोसर भाए छेलखि‍न, जे नि:सन्‍ताने मरि‍ गेला। तेसर भाए कृष्‍णदेव छन्‍हि‍। मुदा दोसर भाएक नि‍:सन्‍तान वि‍धवा सेहो जीवि‍ते छथि‍न। हुनके मन बुझबैले रामदेवक नाओंसँ कौलेज बनौलनि‍।
कौलेजक शुरूक समैमे, बि‍नु दरमेहेक बाहरक प्रोफेसर केना रहि‍ सकि‍तथि‍ तँए गामोक आ अगल-बगलक गामक सेहो शि‍क्षक सबहक बहाली भेल। अगि‍ला आशापर सभ- चपरासी, कि‍रानीक सङ प्रोफेसर- ऑफि‍सक काजसँ पढ़ै-लि‍खै धरि‍क काज सम्‍हारए लगला। ओना गाम-घरमे कम पढ़ैबला तँए वि‍द्यार्थीक संख्‍या ओते नै जइसँ कौलेजक काज नीक जकाँ चलैत। नीक जकाँक अर्थ ई जे प्राइवेटो कौलेज नीक वि‍द्यार्थी- संख्‍याक हि‍साबसँ- रहने नीक जकाँ चलि‍ते अछि‍ मुदा से ऐ कौलेजक नै। कम वि‍द्यार्थी रहने, आमदनी कम, जइसँ दरमाहोक तँ काटौती भेल मुदा आॅफि‍सक काज चलैत रहल।
बीस बर्खक पछाति‍ कौलेजक भाग जगल। भाग ई जगल जे वि‍द्यार्थीक संख्‍या बढ़ने आ नीक रि‍जल्‍ट भेने सरकारी हेबाक संभावना बढ़ल। जइसँ चपरासी, कि‍रानीक सङ शि‍क्षकोक बीच सुखद भवि‍सक आशा जगल। मुदा तइसँ पहि‍ने ति‍करम शुरू भेल। सचीवक परि‍वार आ जाति‍-कुटुमक तँ कौलेजमे रहल मुदा शि‍वजीक सङ तीन गोटेकेँ हटा देल गेलनि‍।
कौजेलसँ हटला पछाति‍ शि‍वजी अनुभवी शि‍क्षकक रूपमे रहि‍तो नोकरीसँ वि‍मुक्‍त रहला। मुदा साले भरि‍ पछाति‍ दोसर कौलेज शि‍वजीक घरसँ पाँच कोस हटि‍ खुजल, ओ खुजल जन-सहयोगसँ। मुदा कौलेजक अदीनता रहल जे संचालन समि‍ति‍क सदस्‍यक बीच वैचारि‍क भेद- मन-भेद- सभ दि‍न चलि‍ते रहल, जइसँ कौलेजक बेवस्‍था आगू नै ससरि‍ पाछूए हड़कैत रहल। मुदा तैयो ठाढ़ तँ रहबे कएल। ओही कौलेजमे समए बि‍तबैत शि‍वजीक ति‍रसैठि‍म बर्ख बीत गेलनि‍।
सोनपुर कौलेजमे जखनि‍ तीन साल शि‍वजीकेँ भेलनि‍ तखनि‍ पि‍ता मरि‍ गेलखि‍न। परि‍वारमे दोसर करताइत नै, मुदा तैयो शि‍वजी जन-बोनि‍हारक हाथे खेती सम्‍हारैत रहला। ओना पि‍ता- राधा गोवि‍न्‍द- अपने हाथे तेते काज करै छला जे ओते काज करबैमे तीनटा जन लगैत। मतलब ई जे तीन जनक काज असकरे राधा गोवि‍न्‍द करै छला। राधा गोवि‍न्‍दकेँ मुइने परि‍वारक काजो घटल, मुदा तैयो परि‍वार तँ चलि‍ते रहल।
शि‍वजीकेँ तीन सन्‍तान, दूटा बेटा एकटा बेटी। तीनू छँटगर भऽ गेल। जेठ बेटा- कुशेसर- खेलौड़ि‍या बेसी, तँए हाइ स्‍कूलक पढ़ाइसँ आगू नै बढ़ि‍ सकल। नै बढ़ैक पाछू पि‍तोक ओते तनदेही नै रहलनि‍ जेतेसँ बेटा-बेटी सुधरैए। सोलह बर्खक अवस्‍थामे कुशेसर दि‍ल्‍ली चलि‍ गेल। गरो नीक बैसि‍लै, एकटा फैक्‍ट्रीक आॅफि‍समे नोकरी भेट गेलै। दरमाहासँ बेसी बाइली हुअ लगलै। जे अपन खर्च चलबैत बैंकमे नि‍अमि‍त रखबो करैत आ पाँच हजार रूपैआ शि‍वजीओकेँ माने पि‍तोकेँ मासे-मास पठबैत रहल। बहि‍नक बि‍आह सेहो नीक जकाँ केलक। छोटका भाएकेँ बंगलोर पठा डाक्‍टरी पढ़बैए।
समए आगू बढ़ल। शि‍वजी जि‍नगीक अंति‍म अवस्‍थामे पहुँच गेला। परि‍वारक सङ कुशेसर परसू गाम आएल। चारू धि‍या-पुता प्राइवेट कोचिंगमे पढ़ै छै। कोठरीमे दुनू परानी शि‍वजी बैसल अपनो जि‍नगीकेँ आ बेटो- कुशेसरो-क जि‍नगीकेँ भजारि‍ रहल छथि‍।
अपन पढ़ल-लि‍खल जि‍नगी देखि‍ शि‍वजी बजला-
ओना ईश्वरक दयासँ परि‍वारक पछि‍लो आ अगि‍लो गति‍ नीक अछि‍ मुदा...?”
‘मुदा’पर शि‍वजीकेँ रूकि‍ते पत्नी टोकि‍ देलखि‍न-
मुदा की?”
ओना अखनि‍ धरि‍ पत्नीओ नीक जकाँ शि‍वजीक जि‍नगीकेँ नै जनैत, मुदा शि‍वजी तँ स्‍वयं कर्ता-धर्ता छथि‍ए। संयोग नीक रहल जे पत्नीकेँ उत्तर दइसँ पहि‍ने पोता- कुशेसरक जेठ बेटा- जे हाइ स्‍कूलमे पढ़ैए, कोठरी पहुँच गेल।
पोताक रूप-रङ देखि‍ शि‍वजी सहमि‍ गेला। सहमि‍ ई गेला जे अपना आगू कुशेसर केते पढ़ने अछि‍। मुदा कमेबा आ जि‍नगी जीबाक जे लूरि‍ ओकरा छै ओ अपना कहाँ भेल! खाली-खाली जि‍नगी खलि‍याइत सोलहन्नी खलि‍आ गेल! कोन मुहेँ केतौ बाजब जे जि‍नगीक ई लीला अपन छी!
कोठरी अबि‍ते पोता- नन्‍दन- पुछलकनि‍-
दादाजी, अपन जि‍नगीक अनुभवक कि‍छु बात हमरो सुना दि‍अ।
पोताक प्रश्न सुनि‍ शि‍वजी ठकुआ गेला। ठकुआ ई गेला जे सत्-सत् कहि‍ देबै तँ हो-ने-हो ओकरो मन पढ़ै दि‍ससँ हटकि‍ जाइ, ओना कोन रूपे दि‍ल्‍लीमे रहैए, हमरा बातक केते असरि‍ हेतै, ई परि‍खब तँ कठि‍न अछि‍। मुदा झाँपि‍-तोपि‍ अपन कहि‍ देने तँ उत्तर भाइए जेतै। मुदा अधखि‍जू कहने थोड़े नीक नहाँति‍ बूझि‍ पौत। सभ रोग-वि‍याधि‍, सोग-संतापकेँ मनमे तहि‍यबैत शि‍वजी कहलखि‍न-
बाउ, समए सभसँ बलवान होइ छै, श्रमवाने ओकरा पकड़ि‍ संगे चलि‍ सकैए, तँए...?”
‘तँए’ सुनि‍ नन्‍दन पुन: पुछलकनि‍-
की बलवान?”
पोताक दोहरबैत प्रश्न सुनि‍ शि‍वजी बजला-
बाउ, जे मनुख पल-पल जि‍नगीक महत बूझि‍ पग-पग बढ़ैत ओकर जि‍नगी आ पल-पलकेँ पलपलाएल रस पीब बढ़ैत तेकर जि‍नगीमे अकास-पतालक अंतर होइ छै। कि‍एक तँ नीको आ अधलोमे पलपली होइते छै।
नन्‍दन-
अकास-पतालक ई अन्‍तर मेटाएत केना?”
शि‍वजी-
प्रकृति‍केँ अनेको रूप छै मुदा अखनि‍ दुइए रूप देखहक। धरती-अकास तँ देखै छहक, पताल नुकाएल अछि‍। मुदा मनुखोक प्रकृति‍ होइ छै, जे मनराजमे बास करै छै। वएह रूपान्‍तरण एक रूपता आनि‍ एकबट करैत बाट पकड़ैए।
बाबा- शि‍वजी-क वि‍चार सुनि‍ नन्‍दनो आ पत्नीओ उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। दुनूकेँ ठाढ़ होइत देखि‍ नमहर साँस छोड़ैत शि‍वजी अपन मनकेँ बुझबैत घुनघुनेला-
दि‍नक हेराएल जँ साँझमे घूमि‍ आबए तँ ओ हेराएब नै भेल। मुदा जे हेराएल से हेराएल जे बाँकी अछि‍ ओकरा पलो भरि‍ हाथसँ छोड़ब जि‍नगीकेँ धोखाड़ब हएत।¦¦¦


२४ मई २०१४ 

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