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Saturday, June 28, 2014

लगन

लगन


गोनर बेदरेसँ संगीतक प्रेमी अछि। दिवाली, दशहारा, सरोसती पूजा आ आनो-आन अवसरि‍पर गाममे नाटक होइक परचलन अछि‍। मुदा गोनरकेँ ओइ सभमे मौका कमे मिलैए। मौका ओकरे पहिल बेर मिलैए जे ओइमे चन्दा दइए। गोनरक पिता साधारण किसान छथि‍। गोनरक पिताक दोस्त देबन पंडित गाममे कीर्तनियाँमण्डली चलबै छथि‍, तँए लोकसभ गबैया कहै छन्‍हि‍। गोनरकेँ संगीतसँ लगाउ देखि पिताजी केतेक बेर कहै छन्‍हि‍-
गोनर, दोसक ऐठाम जा कऽ घड़ी-घंटा हैरमुनियाँ किए ने सीख अबै छँह?”  
आइ स्कूलमे शनिचराक पछाति सरजी गोनरसँ गीत गबौलनि‍ आ खुश भऽ खुब प्रसंशो केलनि। स्कूलसँ अबैतकाल बाट भरि‍ गोनर सोचैत आएल जे आइ देबन काकाक घर जा हैरमुनियाँ सीखनाइ शुरू करब।
दुपहरियाक टहटहाइत रौदमे, सभ लोक घरे-घर सूतल-पड़ल, अराम करैत रहए मुदा गोनर, देबन पंडितक घर बि‍दा भेल। देबन सभ दिन बेरूपहरमे अप्पन एकलौता पुत्र हरियाकेँ संग कऽ साज-बाजक संग रियाज करैत रहथि‍। आब गोनरो संग दिअ लगलनि‍। 
सप्ताहे दिनमे गोनर हरि‍मुनियाँक रीढ़ आ पटरीकेँ नीक जकाँ परखि‍ लेलक आ सा रे गा मा पा पहिलुक धुन बजबए लगल। ई आकस्मिक आ तेज शुरूआत देखि देबन सोचमे पड़ि‍ गेल, ‘हमर हरिया बेदरेसँ साज-बाजक संग खेलैत आएल तैयो अखनि‍ धरि एतेक नै सीख सकल!
देबनके डाहक संग पक्षपातक भावना सक्कत भऽ आ अगिले दिनसँ गोनरकेँ दुआरि पहुँचि‍ते, साज-बाज समेटि रखि दैत रहए। एक-दू दिन गोनर जाइते रहल मुदा ओहिना घुमि कऽ आबि‍ जाइत रहए। गोनर उदास तँ होइते रहए मुदा हताष आ निरास नै भेल, तँए संगीत सि‍खैक जीद्द मनसँ नै गेल।    
साँझ पड़ैत सभ दिन, देबन चाह-पान करैले बजार जाइ छल। ई बात गोनर जनैत रहए, तँए साँझ होइते देबनक घर पहँुच कऽ, हरियाकेँ फुसला कऽ साज-बाज पसारि सीखए लगल। मुदा ईहो सीखनाइ तीने-चारि दिनक पछाति स्थाइ रूपे बन्न भऽ गेल। जइ दि‍न देबन पण्डित दुनू छौड़ाकेँ साज-बाज निकालि सिखैत देखि‍ गेला। कड़गर फटकारो दुनूटाकेँ लगेलखि‍न आ सभटा साज-बाज समेटि‍ कऽ संदूकमे बन्न कऽ देलखि‍न।
कहल जाइए जे समए आ लहरि‍ केकरो इंतजार नै करैए। ई बात साँच भेल। गोनर ऐ दसे दिनमे जे किछु सिखने रहए वएह रामवाण भऽ गेल आ सक्कत अधार बनि‍, तारक गाछ सन बढ़ए लगल। कहल जाइए जे कोनो तरहक बुधि आ हूनर सिखैले निर्धारित समए नै होइए। जेतै-तेतै, चलैत-फिरैत गोनर सुर आ तानकेँ साधैत, गुनगुनाइत धूनमे रमल रहै छल। मुदा साँझ-भोर संगीतक अभ्यास केनाइ अप्पन दिनचर्या सेहो बना लेलक। टोल-टपड़ा आ गाममे जखनि‍ केतौ भजन-कीर्तन आकि‍ नाच-गानक आयोजन होइत रहए तइमे गोनर बड़ी तत्परतासँ भाग लैत रहए। तइसँ गाम भरिमे लोकसभ गोनरकेँ गबैया कहए लगल।   
गामक सटले शहर अछि। शहर छोटे सन अछि सुखी सम्पन्न लोक आ पैग-पैग बेपारीसँ लक हाकिमो-अफसर सभ एतए रहै छथि‍। गोनरकेँ शहरमे केकरोसँ जान-पहिचान नै अछि। एकटा डाक्‍टर सुरेन्द्र नारायण नामक गण्‍यमान बेकती छथिन जे महिला काैलेजमे हिन्दीक सरकारी प्रोफेसर आ संगै-संग महिला कल्याण संस्थानक अध्यक्ष सेहो छथिन। संगीतक प्रेमी रहैक कारण साले-साल सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन करबैत रहै छथि‍। प्रोफेसर साहैबक एगो बेदरूकिया संगी जे दिल्लीमे नाट्य आ कला विभागक प्रोफेसर छथि ओ रिटायर भऽ अपन पैतृक शहर पहिल बेर एला, तइसँ ऐबेरक आयोजन बड़ जोर सोरसँ भऽ रहल अछि। शहरक गण्‍यमान लोकसभ जे ऊँच-ऊँ पदपर कार्यरत छथि‍, सभकेँ कार्यक्रममे शामील होइक बास्ते न्योँत पठाएल गेल। तइमे ऐबेर टी.वी सीरियलक जानल-मानल कलाकार जीतुराज जोहर सेहो हिस्सा लऽ रहल छथिन।
कार्यक्रमक दिन लगि‍चाइत गेल। शहरमे जगह-जगह बैनर-पोस्टर लगाएल गेल जे अमुख तिथिकेँ सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन जानल-मानल संगीत प्रेमी सबहक सहयोगसँ भऽ रहल अछि‍। मुदा गोनरकेँ ऐ बातक कोनो खबरि‍ नै भेल छेलै।
शहरमे स्टेशन चौकपर बबाजी पानबला अछि। हिनका दोकानपर गामक बेसी लोक पान खाइले साँझ-बिहान जाइत-अबैत रहैए। बबाजीकेँ बूझल छन्‍हि‍ जे गाम भरिमे गोनर सेहो नीक गबैया छी। मात्र दू दिन बँचल रहए, जब गोनर अनायास बबाजीक पानक दोकानपर गेल, बबाजीकेँ मनमे ठहकलनि‍ आ जनैक जि‍ज्ञासा भेलनि‍ जे गोनर ऐ कार्यक्रममे भाग लेने अछि की नै। पुछलखि‍न-
की रौ तूँ ऐ कार्यक्रममे हिस्सा लेने छेँ किने?”
गोनर जिज्ञासु भऽ विनम्रतासँ पुछलक-
भैया हौ, के ई कार्यक्रम करबै छै हौ?”   
बबाजी बूझि गेला जे गोनर भाग नै लेने अछि तैयो आस्वासन दैत बजला-
अच्‍छा रूक, हम परोफेसर साहैबसँ बात करै छी।
बबाजी मोबाइल लऽ कऽ नम्‍बर मिलौलनि‍ आ बात करए लगला-
हेल्‍लो सरजी, परनाम! हम बबाजी पानबला बजै छी।
ओमहरसँ जे जबाव पुछने होन्‍हि‍, मुदा बबाजी फेर बजला-
एकटा नवजुबक बड़ नीक गबैया छथि‍।
कनीए कालक पछाति फेरि बजला-
लड़का तँ लोकले छथि‍ मुदा एक नम्मर गबैया छथि‍!
कनीए काल रूकि कऽ फेर आग्रहक स्वरमे बबाजी बजला-
सर! देखियौ कनीए, मौका देल जेबक चाही।
कनीकाल पछाति फोन डिसकनेक्ट भेल। गोनरकेँ बबाजी कहलखि‍न-
संस्थापर चलि‍ जो, ओतए बजेलकौ हेँ। पहिने गीत गबबेतौ तब चुनाव हेतौ। अखने चलि‍ जो।  
गोनरकेँ बसंती साइकिल रहबे करए, मुदा बूझल नै छल जे संस्थान छै केतए! तैयो पुछैत-पुछैत बिदा भेल। शहरक दच्छिन, बान्हक कछेरमे उजरा रंगक मकान, अगुआरे-पछुआरे नाना परकारक रंग-बिरंगक फूलक गाछसँ सजल-धजल फुलबाड़ी अछि। सड़कक कातमे साइनबोडपर लिखल अछि महिला कल्याण संस्थान। गोनर साइकिल नीचाँ धँसा संस्थानक प्राङगनमे पहुँचल, जैठाम दुचक्किया आ चरिचक्किया गाड़ीक पार्किंग लगल छल। बुझना गेल, एते सभकेँ-सभ भी.आई.पी. पहुँचल अछि। कातमे साइकिल लगा, एकटा हॉलमे लोक सबहक सुनगाम देखि भीतर घूसल। प्रोफेसर साहैबक नाओं पूछि गोनर लग गेल आ परिचए देलकनि। परि‍चए दइते बैसैक आदेश भेटलै। गीत गोनहार, नाच केनहार आ आनो आन कलाक प्रदर्शन केनहार सभ रहए आ रिहलसल होइत रहए। कनीए कालक पछाति गोनरसँ गीत गबबौल गेल, गोनरक सेलेक्सन नै हेबाक तँ कोनो सवाले नै रहए, आश्‍वासन भेट गेलै जे एकटा गीत गोनरो गाैत।
गीतक आयोजन शुरू भेल। एक-सँ-एक भी.आइ.पी. सभ पहँुचल छला। विशि‍ष्‍ठ अतिथि सभकेँ बैसैक बेवस्था मंचपर आ मंचक अगल-बगलमे कएल गेल रहए। ई आयोजन सार्वजनिक चंदा चिठ्ठासँ होइत रहए जइमे बड़का-सँ-बड़का पुजीबला लोकक धिया-पुता सभ भाग लेने रहए। सिवनाथ सहाय, जीतुराज जौहर आ स्थानीय सिविल अधिकारी सभ मुख अतिथिक रूपमे मंचपर आसीन भेल रहथि‍।
गायन, वादन आ नृत्य ई तीनु संगीत छी एकर प्रस्तुति रसे-रसे हुअ लगल। हर-एक आदमी जे बाजि‍ सकैए ओ गाइबो सकैए किएक तँ गायन बोलीएक एकटा उन्नत रूप छी। मुदा नव-सिखुआ गाबैया लेल समान रूपसँ निर्देशन आ निअमित रूपसँ अभ्यास जरूरी होइत अछि, जे बेसी-सँ-बेसी बच्चा सभमे ओतेक नै छन्‍हि‍। गायन एकटा एहेन काज छी जइमे स्वरक सहायतासँ संगीतमय ध्वनि‍ निकालल जाइत अछि। सुवेवस्थित ध्वनि‍ जे रस दैत अछि आ रसक अनुभूति करबैत अछि वएह संगीत कहबैत अछि‍। ऐ कलाक प्रदर्शन युद्ध, उत्सव, प्रार्थना आ भजनक समए मनुखक द्वारा गावन आ बजावनक माध्यमसँ कएल जाइत अछि। जे गाबैए ओकरा गबैया, जे नाचै ओकरा नचनियाँ आ जे बजबैए ओकरा बजनियाँ कहल जाइए।
प्रोग्राम होइत-होइत अदहा राति बीति‍ गेल मुदा अखनि‍ धरि गोनरकेँ मौका नै भेटल। बखत केर पहिया बढ़ैत गेल आ राति दू बाजि‍ गेल। विशि‍ष्‍ठ अतिथि सभ घर दि‍स बिदा भेला, दर्शको सभ रसे-रसे जाए लगल, तब जा कऽ गोनरक नाओं एलोन्स कएल गेल। गोनर स्टेजपर आएल। गोनरक मुँहसँ राग लयात्मक रूपसँ बेवस्थित भऽ संगीतरूपी लहरि‍ समुद्रक ज्‍वारि‍ जकाँ पसरए लगल। जइ प्रस्तुतिमे कलाक प्रदर्शन हुअए आ जइ कलाकेँ संगीत या मनोरंजन कहल जाए, गोनरके कंठसँ वएह सुरीली कंठाध्वनि‍, ओहिना उत्पन्न हुट लगल जेना वाद्ययंत्रसँ सुसज्जित घ्वनि‍ निकलैए। 
जे सभ प्रोग्राम छोड़ि‍,़ घर दिस बिदा भेल रहए, ऊहो ओतै ठमकि‍ गेल, डेग पाछू खींचए लगलै, सभ आपस आबए लगल आ जेकरा घरपर अबाज जाइत रहए, ओकराे जिज्ञासा हुअ लगल जे के एहेन गवैया छी आ केतक छी? किछु वि‍शि‍ष्‍ठ मेहमान सभ सेहो घूमि आएल छला। गोनरक गाैला पछाति सभ हिनका लग बजा परिचए-पात पुछए लगल आ प्रसंशा सेहो करए लगल। गोनरकेँ आशा जगल जे कियो हिनका मदति‍ करथि।  
जौं शुद्ध मनसँ भगवानकेँ यादि‍ कएल जाए तँ भगवानो कोनो रूपमे दर्शन देबे करै छथि‍न। वएह भेल, जीतुराज जौहर टी.वी कलाकार, गोनरकेँ आश्‍वासन देलकनि-
दू महिना बाद अहाँ दिल्ली आउ, ओतए संगीतक ऑडिसन छै।
गोनर हर्षित भऽ गेल आ जोर-सोरसँ ऑडिसनक तैयारीमे लगि‍ गेल।

 
लेखक- ललन कुमार कामत
सम्‍पर्क-
गोल इंग्‍लि‍श गार्डेन सह ललन आर्ट

निर्मली (सुपौल)

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