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Wednesday, June 4, 2014

82म संगर राति‍ दीप जरए- मेंहथमे पठि‍त कथा- स्‍कूलक फीस

स्‍कूलक फीस-


मानस तीन सालक छल तहि‍ये माएक देहावसान भऽ गेलनि‍। पि‍ताजी गामक मुखि‍या छथि‍न। समाजक कहलापर दोसर बि‍आह केलनि‍। लबकी कनि‍याँ थोड़-बहुत पढ़ल-लि‍खल, सोभावशील, वि‍चारू आ सुन्‍दर भेलनि‍। तीन सालमे मुखि‍या जीकेँ दूटा सन्‍तान और भेलनि‍। चन्‍दन आ नन्‍दन। नन्‍दनक जन्‍मक छह मासक पछाति‍ मुखि‍याजी स्‍वयं भगवानक प्रि‍य भ‍ऽ गेला। एकबेर फेर परि‍वारसँ लऽ कऽ गाम भरि‍मे शोकक लहरि‍ पसरि‍ गेल।
मुदा मुखि‍यानि‍ शोकक सागरसँ बाहर आबि‍ तीनू बच्‍चाकेँ लालन-पालनक लेल फेरसँ अपन दि‍न-दुनि‍याँमे लीन भऽ गेली। अपना सुइध-बुइधसँ बच्‍चा सबहक बरबरि‍ लार-प्‍यारसँ पोसैमे कोनो कसरि‍ नै छोड़ै छथि‍न।
मानस आब दस सालक भऽ गेल। प्राइवेट स्‍कूलक चारि‍म कक्षामे पढ़ैए। महि‍नाक पाँच तारीख तक सभ बच्‍चा अपन-अपन फीस जमा करैए। लेट-सेट छह तारीख धरि‍ वि‍लम शुल्‍कक संग जमा करब आवश्‍यक अछि‍। नै देने नाओं काटि‍ देल जाइ छै। मानस प्रत्‍येक महि‍ना अति‍रि‍क्‍त शुल्‍कक संग जमा करैत छल। मुदा ऐ मास सेहो नै भेलै। पीठपर पोथीक बैग टाँगि‍, अनजान चालि‍मे डेल उठबैत, एमहर-ओम्‍हर तकैत स्‍कूल दि‍स वि‍दा भेल। घरसँ लगभग एक कि‍लो मीटर भरि पूब स्‍कूल छै। बाटेमे मानसक मन फीपर गेलै। आइ तँ छह तारीख छी। मुदा फीस तँ अछि‍ नै। सरजी की कहता की नै।
असमंजसमे पड़ल मानस स्‍कूलक हाता धरि‍ पहुँच गेल। हातासँ आगू नै बढ़ि‍ बाहरेमे ठाढ़ रहल। कि‍छु काल पछाति‍ आपस घूमि‍ गेल। अगल-बगलमे डबरा-डुबरीमे पहि‍ल मानसुनक बर्खासँ पानि‍क जमाव सभकेँ देखैत, बेंगक टरटरेनाइ आदि‍केँ देखैत-सुनैत लीन भऽ गेल।
ओमहर स्‍कूलमे सरजी हाजली मि‍लौला पछाति‍ मानसक अनुपस्‍थि‍ति‍पर बजला-
मानस आइ नै एलौं?”
एकटा बालक कहलकनि‍-
आएल तँ छल मानस, साइत बाहरमे हएत।
सरजी-
आइ फेर फीस नै अनने होएत।
फेर वएह बालक बाजल-
सरजी, अहाँ कहब तँ हम मानसकेँ बजा आनब।
सरजीक धि‍यान मुद्रापर गेल। बजला-
जो, आ कहि‍ दि‍हनि‍ जे आइ जँ फीस नै लऽ कऽ आएत तँ दोबर फीस लगतै।
बालकक नाओं सौरभ अछि‍। सौरभ स्‍थानीय बेवारीक बेटा छी। सौरभ केर घर स्‍कूलक बगलेमे छै। मानससँ मि‍त्रता छै। मानस केर प्रति‍ सहायताक भाव सेहो रहै छै। सौरभ वि‍दा भेल मानसकेँ तकैले। बाहर जा एमहर-ओम्‍हर नजरि‍ दौड़ौलक। मानसपर केतौ नजरि‍ नै पड़लै। कनी और आगू बढ़ल। देखलक एकटा गाछक छाँहमे ठाढ़ कि‍छु देखि‍ रहल अछि‍। देखि‍ते चि‍करि‍ कऽ सोर पाड़लक-
मानस, की करै छी। एमहर आ।
मानस अवाज सुनि‍-ताकि‍ लग आबि‍ बाजल-
आइ हम स्‍कूल नै जेबौ। सरजीकेँ नै कहि‍हनि‍ जे मानस गाछ तर अछि‍।
सौरभ-
जौं तूँ स्‍कूल नै जेमेँ तँ एतए की करै छीही। घरेपर रहि‍तेँ।
मानस-
तूँ नै बुझै छीही। घरपर जँ रहब तँ माइक सैकड़ो प्रश्नक उत्तर दि‍अ पड़त। घरमे पाइ-कौड़ी नै छै। माए कहलक जे दू-चारि‍ दि‍नमे पाइ देबौ।
सौरभ स्‍कूलक नि‍अमसँ अवगत अछि‍। जौं छह तारीख तक फीस जमा नै हेतै तँ स्‍कूलसँ नि‍कालि‍ देल जाइ छै। ई सभ सोचि‍ मानसकेँ कहलकै-
स्‍कूलक नि‍अम नै बूझल छौ जे केते कड़ा छै। माएकेँ नै कहने छीही?”
मानस कि‍छु बाजल नै, आ ने कि‍छु फुरेलै। चुप रहल। सौरभ घूमि‍ कऽ स्‍कूल चलि‍ गेल।।¦¦¦



सम्‍पर्क- ललमनि‍याँ, सुपौल।  

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