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Monday, June 2, 2014

82म सगर राति‍ दीप जरए- कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा'' मेंहथमे पठि‍त लछमी दासक कथा-

दुष्‍टपना


एते उमेर बि‍तलो पछाति‍ दुश्‍मनीसँ आगू नै बुझै छेलि‍ऐ जे ऐबेर बुझलि‍ऐ। बुझलि‍ऐ ई जे दुश्‍मनीसँ आगू दुष्‍टपना होइ छै। पौन दर्जन धि‍या-पुता रहि‍तो, कम आँट-पेटक कि‍सान रहि‍तो, गामेमे रहै छी तँए, मि‍थि‍वासी कि‍यो अछि‍ तँ हमहूँ छी। मि‍थि‍वासी होइक नाते अपनापर गर्व अछि‍।
तीन कट्ठा बैशाखा सजमनि‍क खेती केने छेलौं, शुरूक तीन हाटमे सोलह सए रूपैआक बि‍काएल छल। ओना आइ धरि‍क जि‍नगीमे सभसँ नीक सम्‍हरल खेती छल। बीस बर्खसँ ऊपरेसँ तरकारी खेती करै छी। गामक कि‍छु नवतुरि‍या सौंसे खेतक लत्तीओ काटि‍ देलक आ फड़ सभकेँ जेना देवालयमे कुमहरक बलि‍ पड़ै छै तहि‍ना सौंसे खेतक फड़केँ हँसुआसँ काटि‍-काटि‍ ओंघरा देने छल।
आने दि‍न जकाँ भोरे जखनि‍ खेत पहुँचलौं तँ जजाति‍क दशा देखि‍ ठढ़भस लगि‍ गेल। ने आगू डेग उठए आ ने पाछू, बोल हेरा गेल वकार बन्न भऽ गेल। मुदा सौनक बून जकाँ आँखि‍सँ नोर ठोपे-ठोप खसैत रहए। दुनू हाथे छातीकेँ दाबि‍ करेजकेँ थीर करैत सौंसे खेत घुमलौं। देखला पछाति‍ मन मानि‍ गेल जे दुष्‍ट सभ बाल-बच्‍चाक मुँहमे जाबी लगौलक। आने-आन जकाँ हमरो श्रमबल चोरि‍ कऽ नष्‍ट केलक।
मोबाइलसँ जेठका बेटा- जे शि‍क्षक अछि‍,केँ फोन करैत कहलि‍ऐ-
बौआ, सजमनि‍क खेती चलि‍ गेलह!
ओकर माए सेहो सुनैत। सभ बात तँ वेचारी नै सुनि‍ पेली मुदा ‘सजमनि’‍ जरूर सुनलनि‍। धड़फड़ाइते साइकि‍ल पकड़ि‍ बेटा वि‍दा भेल। बेटाक धड़फड़ी देखि‍ चौथाइ दर्जन धि‍या-पुता संग पत्नीओ पएरे वि‍दा भेली।
खेत देखि‍ बेटा पुछलक-
बाबू, केकरोसँ दुसमनी नै अछि‍। तखनि‍ एना कि‍ए केलक?”
हमरा लग कोनो जबाब नै छल जे बेटाकेँ दैति‍ऐ, चुपे रहलौं। तही बीच पत्नीओ खेत पहुँच गेली, देखि‍ते छाती पीट-पीट घैना करए लगली-
हौ डकूबा भगवान, सभ कुछ राति‍मे हेर लेलह!
बोल-भरोस दैत परि‍वारक सभकेँ कहलि‍ऐ-
अपन हाथ-पएरक आशा रखै जाह। चोर चोरे रहतै, साउध साउधे रहतै। जँ लौका चोरौने साधुओ चोर भऽ जइतै तँ साधुक बीआ उपटि‍ गेल रहि‍तै।
गाममे चौक अछि‍। दस रंगक दोकानो छै, जइसँ दसटा दस रंगक लोको रहि‍ते अछि‍। चौकपर अबैसँ पहि‍ने अगुरबारे समाचार पहुँच गेल। कि‍छु गोटे खेतो जा-जा देखलक। मुदा चौकक मुँह चौबगली बूझि‍‍ पड़ल। थाहे ने लागल जे चौकक असल मुँह केमहर छै। कि‍यो बजैत-
सजमनि‍ तोड़ि‍ लैत तँ तोड़ि‍ लैत, लत्ती कि‍ए कटलकै?”
कि‍यो बजैत-
फड़ कटलकै तँ कटलकै, कुमहर जकाँ टुकड़ी-टुकड़ी कि‍ए केलकै?”
सुनि‍-सुनि‍ छगुन्‍ता लागए जे जे चोरि‍क संग गरदनि‍कट्टी सेहो केलक। ओ सोलहन्नी चोर नै भेल।
फेर दोसर दि‍ससँ हवा झोंकलक-
दुसमनीसँ केने हएत।
मुदा टटका दुश्‍मनी केकरो संग नै भेल अछि‍। तखनि‍ एहेन कि‍ए केलक। की सतयुगे त्रेतामे दुष्‍टो फड़ै छेलै आ दुष्‍टपनो होइ छेलै। आ कलयुगमे ओकर बीए सूखि‍ गेलै। मुदा भाँजपर चोर चढ़बे ने कएल नै तँ आचार संहि‍ताक शक्‍ति‍ देखा दैति‍ऐ।

-लक्ष्‍मी दास
सम्‍पर्क-
गाम-बेरमा
भाया- तमुरि‍या

जि‍ला- मधुबनी। 

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