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Thursday, June 12, 2014

82म सगर राति‍ दीप जरए कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा गोष्‍ठी मेंहथ (झंझारपुर)मे पठि‍त कथा ''बाल-बोध''

बाल-बोध


दुखीलालकेँ दुखक पहाड़ माथसँ कहि‍यो नि‍च्‍चाँ नै भेल। बूढ़ माए-बापक सेवा टहल, तैपर सँ दूटा भलढ़ेरबा बेटी, छोट-छोट दूटा बेटा, पत्नी आ अपने कुल आठ बेक्‍तीक परि‍वार। पत्नी- फुलि‍या- परि‍वारक काजमे पि‍साइत छेली। सासु-ससुरक टहल-टि‍कोरा आ सेवासँ पलखति‍ए नै। ऊपरसँ एकटा पोसि‍या गाए, एकटा भजैति‍या बरद। मुदा दुनू बेटी चठेलगरि‍ आ हुनरगरि‍ छन्‍हि‍। घरक कमौआ दुखीलाल असकरे दि‍न-राति‍ फि‍रि‍शान रहैए। घरक खर्चा पुग्‍बे ने करैए जे पलखति‍ मारत। खेतीओ-पथारी कम्मे भेने जने-बुत्तापर घरक खर्चा चलैत अछि‍। जखनि‍ खेनाइओ-पीनाइओमे ढनसने तखनि‍ बेटा-बेटी पढ़त केना? बर्खक पेसतरे दुखीक माए लकबा रोगसँ मरि‍ गेली। पछाति‍ बूढ़ बाप सेहो रोगसँ रोगा-सोगा दम तोड़ि‍ देलकनि‍। श्राध-कर्म आ भोज-भात कर्जे हाथे भेल।
दुखीलालकेँ एक-सबा कट्ठा डीह, तीन कट्ठा चौमास आ छह-सात कट्ठा तीन-फसि‍ला खेत छन्‍हि‍। जइसँ छह मास परि‍वारक गुजर चलै छन्‍हि‍। जन-मजदूरी कऽ शेष छह मास बि‍तबैत अछि‍। मुदा अखनि‍ तँ चौमास आ तीन-फसि‍ला खेत दस हजारमे डेढ़ा सूदि‍पर भरना लगि‍ गेल अछि‍। तैपर सँ दूटा बेटीक बि‍आहक अलगे। दुनू बेटा अखनि‍ बाल-बोध! समस्‍या-पर-समस्‍या लदल जा रहल अछि‍। जँ चारि‍-पाँच साल खेत-भरना रूपैआक सूदि‍ नै भरब तँ खेतो सूदि‍ए तरे चलि‍ जाएत। गाए बि‍कल चरबाहि‍येमे कहबी सन हएत।
एक दि‍न दुखीलाल बैसारीए छल। कि‍छु सोचैत छल आकि‍ मनमे उपकलै खेतक भरना। जइ खेतसँ हमर बाप-दादा परि‍वार चलबै छला वएह खेत हमरो जीवि‍का अछि‍। मुदा आब बूझि‍ पड़ैए ओ खेत बि‍लटि‍ जाएत। ऐ क्रममे सोचैत दुखीलाल टहलि‍ मालि‍क प्रभूनाथ जीक दरबज्जापर पहुँचल। प्रभूनाथजी दुखीकेँ देखि‍ते कहलखि‍न-
आबह दुखी, एमकी बहू दि‍नपर भेँट करए एलह।
दुखीलाल-
मालि‍क, अहाँसँ कथी छुपल अछि‍। एतेक दि‍नसँ माए-बापक कहुना रीन उतारलौं मुदा अपनेक रीन केना चुकाएब से फुड़ेबे ने करैए।
प्रभूनाथजी-
केना चुकेबऽ से तँ तोहर काज छि‍अ। तइले हम कि‍ए मगजमारी करब। साले-साले हमरा रूपैआक डौरहा सूदि‍ बढ़ैत जेतह। पाँच सालक कराड़ी छह, नै चुकेबहक तँ खेत छोड़ह पड़तऽ।
दुखीलाल-
माि‍लक, एना नै ने बाजू। खेतक नाओं सुनि‍ हमर करेजा फाटि‍ जाइए। ई खेत हमर खनदानक पूजी आ इज्जति‍ छी। अपना जीबैत हम केना बि‍लटए देब।
प्रभूनाथजी-
से तँ तूँ ठीके कहै छह। रूपैआक सूदि‍ जोड़ि‍ चुकता कऽ दहक आ अपन खेत छोड़ा लैह।
दुखीलाल-
मालि‍क, अहींक दरबारमे जन-मजुरी कऽ जीब लेब। रहल अहाँक रूपैआक सूदि‍, तइ एबजमे हम अपन दुनू बेटाकेँ अहीं ऐठाम नोकरी राखि‍ दइ छी। बँचलोहो बासि‍-बेरहट खा जीब लेत आ अहूँक काज चलत। जाधरि‍ अहाँक रूपैआक सूद-मूर‍ नै सधत ताधरि‍ अहींक दरबारमे नोकर बनि‍ खटि‍ देत। रूपैओक चुकता भऽ जाएत आ हमरो खेत छुटि‍ जाएत।
प्रभूनाथजी-
कहलह तँ बड़ नीक। युक्‍ति‍ओ तोहर नीमन छह मुदा...।
दुखीलाल-
माि‍लक ‘मुदा’ कि‍ए कहलौं?”
प्रभूनाथजी-
मुदा ऐ दुआरे बजलौं कि‍ तोहर बेटा दुनूकेँ तँ देखने नै छी। अबोध अछि‍ आकि‍ बाल-बोध
दुखीलाल-
बल-बोध अछि‍। ठेकनगरि‍, एकबेर सेरि‍या कऽ बता देबै तँ दोसर बेर अढ़बए नै पड़त। देखि‍ते-देखि‍ते फुर्र-फुर्र काज कऽ देत। एक्को मि‍सि‍या असकति‍या नै अछि‍।
प्रभूनाथजी-
बेस काल्हि‍ए दुनूकेँ बजौने आबह। नैनसँ देखि‍यो लेब आ काज करै जोकर अछि‍ कि‍ नै सेहो ठेकानि‍ लेब।
दुखीलाल-
बेस मालि‍क, जाइ छी काल्हि‍ए दुनूकेँ संगे नेने अबै छी।
दुखीलाल अपन कर्तव्‍यकेँ हीन बूझि‍ चि‍न्‍तामे डूमि‍ गेल। हम केहेन बाप छी जे बाल-बोध बेटाकेँ भोजन-बस्‍त्र-शि‍क्षा इत्‍यादि‍ पूर नै कऽ अपने बेगरते नोकरी लगबै छी। बेटा-बेटी राजाक हुअए आकि‍ गरीबक सभकेँ अपन सन्‍तान दुलरूआ होइ छै। जखनि‍ नमहर-बुधि‍गर-ठकनगर हएत तँ की कहत! हमर बाप केहेन नि‍ष्‍ठुर छथि‍ जे हमरा संगे एहेन अन्‍याय केलनि‍। मुदा हमरा लग रस्‍ते कोन अछि‍। दोसर कोन उपए लगा सकब। मोनक बात मोनमे रखैत हृदैकेँ सक्कत कऽ बि‍हाने भने पनि‍पि‍आइ करा संगे नेने प्रभूनाथ जीक दरबार पहुँचल। दुनू बाल-बोध भाए गांगी-जमुनी, देखैओमे बड़ नुनुआगर, उमेरो आठ-दस बर्खक। प्रभूनाथ जीकेँ मनमे भेलनि‍ बड़ नीमन टहलू हएत। मुदा अनठबैत बजला-
दुखी दुनू बौआ तँ अखनि‍ लेधुरि‍ए अछि‍। हमरा ऐठाम कोन काज करत। ऐठाम तँ भीड़गर काज अछि‍।
दुखीलाल बूझि‍ गेल जे मालि‍क हमरा टाड़ि‍ रहल अछि‍। बाजल-
मालि‍क, छोट देखि झुझुआउ नै। घरक छोट-छोट सभ काज करत। गाए-बरदक कुट्टी-सानी, दरबज्जा, माल-जालक बथान आ गोहाल घरक झार-बहार करत। गोबर-करसी ढुल-ढालकेँ हटाएत। अहूँकेँ कि‍यो टहल-टि‍कोरा करैबला नै अछि‍ सेहो अपन समझि‍ करत। अहूँ अपने पोता सन बेवहार करबै। घरे ने बदलि‍ जेतै मुदा रहतै तँ गामेमे। अहाँ लग रहत तँ हम नि‍फि‍कि‍र रहब। ओना हमहूँ तँ अबि‍ते-जाइते रहब।
प्रभूनाथजी-
दुखी, तँू ने गाम-घरक बात करै छह। लोक तँ शहर जाइले गाम गमौने अछि‍।
दुखीलाल-
मालि‍क की कहब, लोक तँ चि‍ड़ै भऽ गेल अछि‍। जेतै पेट भरै छै ओतै खोंता बना रहैत अछि‍।
प्रभूनाथजी-
से ठीके। हमरे बेटाकेँ नै देखै छहक। गाम-समाज छोड़ि‍ हैदराबादमे रहैए। पावनि‍-ति‍हार तँ हम जाबै जीबै छी ताबे कहुना कऽ दइ छि‍ऐ, नै तँ घरक देवताकेँ एक चुरुक पानि‍ओ के देत।
दुखीलाल-
माि‍लक, छोड़ू दुनि‍याँ-दारीक गप-सप्‍प। हमरो काजपर जाइक अछि‍। और गप-सप्‍प दोसरो दि‍न हेतै। दुनू बाल-बोधकेँ सम्‍हारू।
प्रभूनाथजी-
दुखी, कनी आर बैसह। ई दुनू बौआ अनचि‍न्‍हार अछि‍। कनी बति‍या लइ छी। नाओं बूझल रहत तँ समैपर समझा-बुझा देबै। नै तँ पोसो नै मानत। तँू तँ बुझबे करै छहक जे हमरासँ दुनू बौआकेँ खटपट तँ नै हएत मुदा हमर बुढ़ि‍याक सोभाव आ बेवहारकेँ तँ तूँ नीकसँ जनै छह, ओ मक्कै लाबा जकाँ दि‍न भरि‍ फटफटाइते रहै छथि‍। तेहेन झनकाहि‍ अछि‍ जे केकरोसँ पटरीए ने खाइ छै। दि‍न-भरि‍ पूजे-पाठमे लगल रहैए, दि‍नक भोजन राति‍ आ रतुका भोरमे पाड़न करैए। जँ कि‍यो लागि‍ओ-भीड़ीओ देतै तँ कहत जे हमर सभ कि‍छु छुबा गेल। एकबेर के कहए जे तीन-तीन बेर नहाएत आ गंगाजलसँ शुद्ध करत। बेटो-पुतोहु आ पोता-पोती जखनि‍ अबैए तँ देखि‍ते बनरनी जकाँ लड़ि‍ते रहैए। तखनि‍ हमर जि‍नगी केहेन अछि‍ से बि‍नु कहने बूझि‍ गेल हेबह।
दुखीलाल-
मालि‍क, ई तँ घरक बात छी। ओइमे हम कि‍ए दखल देब। मनुखो कोनो एक्के रंगक होइए। लोक अपन सुख-दुखक सृजन अपने करैए। अपजश दोसरकेँ लगबैए।
बात समटैत दुखी दुनू बाल-बोधक दि‍स इशारा केलक।
प्रभूनाथजी पुछलखि‍न-
बौआ, नाओं की छि‍अ?”
दुनू भाँइ एक्के स्‍वरमे अपन-अपन नाओं बाजल-
बुधन-बेचन।
प्रभूनाथ-
मुँह सूखल छह। कि‍छु खेबह?”
दुनू भाँइ बाजल-
नै, पनि‍पि‍आइ कऽ लेने छी।
प्रभूनाथजी-
तोहर बापक कहब अछि‍ जे दुनू भाँइ अहीठाम काज करत से करबहक ने?”
बुधन-
हँ।
प्रभूनाथजी-
अपन काज कहुना सभ करैए मुदा बीरानक काज कि‍यो करैए आ कि‍यो नै करए चाहैए।
बुधन-
हम अपन आ बीरानमे नै बुझै छी। काज करब।
दुखीलाल बूझि‍ गेल जे बात बढ़ि‍ जाएत। बातकेँ सम्‍हारैत बाजल-
मालि‍क गरीबक बेटाकेँ कथी परीक्षा लइ छि‍ऐ। जे कहबै से करत।अबेर भऽ गेल काजपर जाइ छी।
प्रभूनाथजी-
कनी दरमाहा फरि‍आ लैह जे पछाति‍ कोनो मुहाँ-ठुठी ने हुअए।
दुखीलाल-
मालि‍क, दरमाहा की हेतै। अहाँसँ रूपैआ दस हजार नेने छी। सालमे पनरह हजार हएत। पँच-पँच सए रूपैआ महि‍नाक हि‍साबसँ दुनू भाँइक एक हजार भेल। पनरह महि‍नामे अहाँक रूपैआ फरि‍या जाएत, नै मानब तँ एक मास बेसीए खटि‍ देत। हमरो खेत छूटि‍ जाएत। ने अहाँकेँ दि‍अ पड़त आ ने हमरा। दुनू भाँइ अहींक दरबारमे खाएत-पीअत काज अहाँक अनुकूल करत।
प्रभूनाथजी-

ठीक छै मानि‍ लेलि‍अ। तँू तँ हमरोसँ तेज नि‍कललह। हम तँ बाल-बोधक फेरमे अबोध बनि‍ गेलौं।¦¦¦

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