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Saturday, June 28, 2014

कि‍रदानी

कि‍रदानी




रामरूप प्रसाद, जे छह मास पहि‍ने लेबर कमि‍श्‍नर पदसँ सेवा-नि‍वृत भेल छला, गाम एला। नव लोकक आगमनसँ गाममे चलह-पहल शुरू भेल। जेते मुँह तेते बोल, कि‍यो बौआ भाय तँ कि‍यो बौआ काका तँ कि‍यो लाल बौआ कहि‍-कहि‍ रामरूप प्रसादकेँ सम्‍बोधि‍त करैत। धि‍या-पुताकेँ मतलबे कोन जे, के आएल के गेल। जुआन-जहानसँ लऽ कऽ चेतन-अधवेशू धरि‍ अपन-अपन हाजरी दर्ज करबए पहुँच रहल छला। केना नै पहुँचि‍तथि‍, गामक पहि‍ल बेकती जे एते नमहर हाकि‍म छथि‍। कि‍ए बूझत जे हाकि‍मपना चलि‍ गेलनि‍, खलि‍ये रामरूप छथि‍। बेठेकानो आमक गाछपर गोला फेकि‍ पाकल आम तोड़ने तँ अनठेकानो ने ठेकाने बनि‍ जाइए, तहि‍ना अपन गामक पूबपीठि‍या देखि‍ जँ गौआँ रामरूप बाबूकेँ भेँट करए अबै छथि‍ तँ अपन समाजि‍कताे ने नि‍माहि‍ लइ छथि‍। जाबे धरि‍ कमि‍श्‍नर साहैब काज करै जोकर छला ताबे धरि‍ गाम दि‍स तकबे ने केलनि‍ आ जखनि‍ अथबल, श्रमहीन भऽ गेला तखनि‍ गाम मन पड़लनि‍। गाम कि‍ मन पड़ि‍तनि‍ मन पड़लनि‍ पि‍ताक पुश्‍तैनी भूमि‍। पुश्‍तैनी भूमि‍ तँ हजारो लाखो अछि‍ मुदा से नै, केते खेत आ ओकर केते मूल्‍य भेल। खैर, कि‍छु हुअए मुदा स्‍वतंत्र देशक नागरि‍क होइक नाते एते तँ अधि‍कार सभकेँ अछि‍ए जे जे मन फुड़ै, जेना मन फुड़ै तेना अपन सम्‍पति‍क उपयोग करए। चाहे बेल रोपए आकि‍ बगूर। मुदा एहनो की नै होइए जे अनकर गोरहा, चौमासकेँ बाँस-गाछ रोपि‍ अछाह कऽ नष्‍ट करि‍ देल जाइए?
चाह-पर-चाह, पान-पर-पान रामरूप बाबू दि‍ससँ चलि‍ रहल अछि‍, लोकक आवाजाही अछि‍ए। लोको लाज तँ ओहने ने लाज भेल जेहेन वैदि‍क लाज होइए। ओना कि‍छु गोटे जे भरि‍ दि‍न रौद-वसातमे रहैए ओकर दुनियोँ तँ अँगने भरि‍क अछि‍, ओकरा आनसँ मतलबे कोन? जेतबे अँगना रहत तेतबे पथार पसारब। मुदा फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ भेँट करए एला। फुसन काका गामक ओहेन लोक जि‍नका अदहा गामक लोक फुसि‍याह झुट्ठा कहै छन्‍हि‍ तँ अदहा गामक लोक उचि‍तवक्‍तो आ ठाँहि‍-पठाँहि‍ बजनि‍हार सेहो तँ कहि‍ते छन्‍हि‍। ई तँ  अद्भुत खेल अछि‍ जे एके गोटे दुनू केना? साल-दू-साल फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबसँ जेठे रहथि‍, मुदा जेठ-छोट उमेरेटासँ नै मानल जाइए दोसरो-तेसरो कारण छै, खैर जे छै। फुसन काका कमि‍श्‍नर साहैबक बगलेमे बैस पहि‍ने तँ दोसर-तेसरक बात सुनलनि‍ मुदा चाह पीला, पान खेला पछाति‍ अपनो मुँह खोललनि‍। बजला-
जुगो पछाति‍ दुनू गोटे एकठाम भेलौं, सभ हरेलहा समए हेरा गेल। कि‍म्‍हर-कि‍म्‍हर उदए भेलै?”
कानून-कायदाक लोक रामरूप बाबू तँए शास्‍त्रीय भाषाक बोध नै। मुदा तैयो अपन बात रखैत बजला-
अपन जे पाँचो बीघा चौमास अछि‍ तइमे सागवानक खेती करब।
कमि‍श्‍नर साहैबक बात सुनि‍ फुसन कक्काक मन कड़कलनि‍। कड़कलनि‍ ई जे दसे बीघा नकोर[1] जमीन गाममे अछि‍, तेहेन चौरि‍‍याह[2] गाम अछि‍ जे केकरो घर छै तँ अगवास नै आ अगवास छै तँ गाछी-कलम नै, तैठामक खेतमे सागवानक खेती गाममे हएत! वन वि‍भागकेँ बोनक जंगलेटा सुझै छै मंगल नै सुझै छै। दुनि‍याँक कोन एहेन उपजा अछि‍ जेकरा मि‍थि‍लांचलक भूमि‍ अंगीकार करैक शक्‍ति‍ नै रखैए, मुदा ई तँ वि‍चारणीय भेल। बर्खाक कटाउ होउ आकि बाढ़ि‍क आकि‍ वायु प्रदूशन, गाछ-बि‍रि‍छ तँ जरूरी अछि‍ए। मुदा जैठामक गाछ फलो दइए, लकड़ीओ दइए, नीक आैक्‍सि‍जनो दइए तेकरा छोड़ि‍ जे एकमुश्‍त पनरह बरख सम्‍पति‍केँ घेरावंदी कऽ लेब! तहूमे जेकर उपयोग अपना जि‍नगीमे नै!! मुदा बजला कि‍छु ने। हड़ताली कर्मचारी जकाँ मुँहमे ताला झुलौने रहला, तरे-तर हूँहकारी भरैत रहला! चारूकात घुमा-घुमा मुड़ी डोलबैत रहला! मन कि‍म्‍हरो, शक्‍ल-सूरत कि‍म्‍हरो घूमि‍ रहल छन्‍हि‍! समाज दि‍स नजरि‍ पड़ि‍ते मन हुमड़लनि‍। हुमड़लनि‍ ई जे समाजोकेँ की डोराडोरि‍ छै जे डाँड़ सक्कत रहतै? बि‍नु डोराडोरि‍क समाज केम्‍हर कखनि‍ ससरि‍ जाएत तेकर कोनो ठेकान छै। नीक करू आकि‍ अधला, कि‍छु गोटे तँ संग पुरनि‍हार हेबे करता, जखनि‍ समूह संग पुरनि‍हार तखनि‍ समाजक जँ वि‍रोधो अछि‍ तँ समर्थनो तँ अछि‍ए। समाजे पाबि‍ ने कि‍यो शक्‍ति‍शाली बनैए। भलहिं समाज जेहेन होइ। नमहर भेने नमहर आ छोट भेने छोट। तहि‍ना नीकक बनने नीक आ अधलाक बनने अधला। मुदा लगले फुसन कक्काक मनमे उठलनि‍, एक तँ ओहि‍ना पाइ-कौड़ीबला लोक रामरूप बाबू छथि‍, तैपर सरकारक बीच अपन हश्‍ती! बढ़ा-चढ़ा कऽ बजबे करता, अनेरे दसटा फलतुआ लोक संग देबे करतनि‍। गपे-सप्‍पमे वि‍चार भेद भेने ने गारि‍-मारि‍ अबैए, कि‍ए ने औत? फुसन कक्काक गुमी देखि‍ रामरूप बुझलनि‍ जे भरि‍सक वि‍चार नीक लगलै। अपन वि‍चारकेँ आरो मजगूती दैत बजला-
एकटा बात बूझल अछि‍ कि‍ने?”
‘एकटा बात’ सुनि‍ फुसन काका चौंकला। चौंकैक कारण भेलनि‍ जे गामक बात आकि‍ बाहरक। मन गवाही देलकनि‍ जे बाहरसँ मतलबे की आ गाममे रहै छी हम आ हमरे नै बूझल रहत। अह्लादि‍त अति‍थि‍ जकाँ आँखि‍, भौ, मुँह बि‍हुसबैत पुछलखि‍न-
से की?”
मुँह बाउल बच्‍चा जकाँ फुसन काकाकेँ बूझि‍ चहरा दैत रामरूप बाबू कहलखि‍न-
खाली अपने खेतीक टाक बात नै अछि‍, गामक जे कि‍यो सागवानक खेती करए चाहता सभकेँ सरकारी अनुदान दि‍आ देबनि‍। हमहूँ ओही वि‍भागसँ ने जुड़ल छी।
जहि‍ना तामस उठला पछाति‍ बुधि‍यार, गि‍लास भरि‍ पानि‍ पीब तामसकेँ दबैत अछि‍ तहि‍ना फुसन काका पानक खि‍ल्‍ली बदलैत, रि‍सकेँ कम केलनि‍। मुदा पेटक वायु डि‍रि‍यए लगलनि‍। डि‍रि‍यए ई लगलनि‍ जे जो रे अन्‍हरा लोक, अन्‍हरा गाम आ अन्‍हराएल अन्‍हरा...। कहू! जे मि‍थि‍लांचलक भूमि‍ ओहन सक्कत-सक्कत गाछ-बि‍रि‍छकेँ पेटमे समेटने अछि‍ जेकर तख्‍तामे बन्‍दूकक गोली नै छेद सकैए, ओहेन गाछ जे प्रकृति‍क रंगक संग ओहन फल दइए जेकर तुलना कोनो आन भूमि‍ नै कऽ सकैए, तैठाम जँ लोकक एहेन धारणा बनि‍ जाए जे पनरह-बीस सालक खेती एक बेर पूजी लगौलासँ भऽ जाएत, बाँकी साल नि‍गरानी भरि‍, तखनि‍ खेतबलाक हाथमे पनरह-बीस बरख काज की रहल?
रामरूप बाबूक वि‍चार सुनि‍ फुसन काका जेना मनक लोकसँ आगू बढ़ि‍ संकल्‍पि‍त लोक पहुँच गेला। समाजकेँ अपन गाम-समाजक वि‍चार अपना ढंगसँ करए पड़तै। मुदा से ओहि‍ना करतै आकि‍ समाजक नीक-अधलाक वि‍चार करैत करत। कोन गाम एहेन अछि‍ जइमे शि‍क्षाक मदमे गैर सरकारीसँ लऽ कऽ सरकारी धरि‍ करोड़ोमे नै चलि‍ रहल अछि‍, मुदा शि‍क्षाक स्‍तर की अछि‍...। अकछैत मन फुसन काकाकेँ वि‍चार देलकनि‍-
कि‍यो कीमती हरि‍अर-सुखाएल तरकारी बूझि‍ अपना खेतमे सांगरीए लगा लेत तँ लगा लि‍अ! मुदा अपन की हएत से वि‍चार करैत करह!
उठैत-उठैत फुसन काका बजला-
अखनि‍ रहब कि‍ने?”
फुसन कक्काक मोनक बात जे होउ, मुदा रामरूप बाबू बजला-
जेना अहाँ सभ रहए देब, तहि‍ना ने रहब?”
सभ बातक जवाब टटके नीक नै होइ छै। चुपे-चाप फुसन काका वि‍दा भेला। मुदा मन कहलकनि‍-
एहेन कि‍रदानी आकि‍ कि‍रदानी केनि‍हारक बास समाजमे उचि‍त नै...!
गामक ओहेन परि‍वारमे रामरूप प्रसादक जनम भेल छेलनि‍ जेकरा समाजमे सुभ्‍यस्‍त मानल जाइ छेलै। पनरह बीघासँ ऊपर जमीन, पि‍ता मेहनती कि‍सान, कहि‍यो परि‍वार चलबैमे खाँच नै भेलनि‍। तैसंग समाजमे पैंचो-पालट करि‍ते छला। गाममे स्‍कूल नै रहने रामरूप ममहरेमे रहि‍ मि‍ड्ल पास केलक। मि‍ड्ल पास केला पछाति‍ होस्‍टलक खर्च पि‍ता दि‍अ लगलखि‍न। आन वि‍द्यार्थी जकाँ रामरूपकेँ कहि‍यो ने भेलनि‍ जे कोर्सक कि‍ताव नै अछि‍ आकि‍ फीसक दुआरे परीछे छूटि‍ गेल। मैट्रि‍क पास केला पछाति‍ पि‍ताकेँ अपन हाथक मेहनति‍ कएल पाइक मोल लालमे देखलनि‍। एते तँ बात अछि‍ए जे पि‍तोकेँ कहि‍यो हाँट-दबार करैक मौका रामरूपक प्रति‍ नै भेटलनि‍। कहियो कानमे भनक नै लगलनि‍ जे आन-आन जकाँ ताड़ी-दारू करैए। तैसंग साले-साल पासक फल सुनि‍ मनमे गदगदी चढ़ि‍ते गेलनि‍। काैलेजमे नाओं लि‍खबैक प्रश्न जखनि‍ रामरूपकेँ उठलनि‍ तखनि‍ पि‍ता स्‍पष्‍ट कहि‍ देलखि‍न-
ऐ धनकेँ जेते चला-बना पुरा सकब तेते तँ पुरेबे करब मुदा जखनि‍ नै पूरत तखनि‍ खेतो-पथार तँ अछि‍ए, मुदा जँ तोहर ि‍वचार आगू बढ़ैक छह तइमे नै रोकबह। अखने तोरा समए छह, पछाति‍ जखनि‍ घर-परि‍वारमे ओझरेबऽ तखनि‍ एहेन समए थोड़े भेटतऽ से नै तँ अनुकूल समए छह हमर खर्च तोहर पढ़ाइ।
बी.ए. पास केला पछाति‍ देश स्‍तरक तँ नै मुदा राज स्‍तरक प्रति‍योगि‍ता परीछा रामरूप जरूर पास केलनि‍। जइसँ समैक अनुकूलता पबैत कमि‍श्‍नर भऽ रि‍टायर केलनि‍। जाबे तक नोकरी केलनि‍ ताबे तक गाम बि‍सरि‍ गेल छला मुदा काजसँ पलखति‍ भेने, सेवा नि‍वृति‍ भेने आब गाम मन पड़लनि‍! मन पड़लनि‍ पि‍ताक चास-बास। ओना समाजो, परि‍वारो आ पि‍तोक देल जि‍नगीक साइयो-हजारो धरोहर सम्‍पति‍ अछि‍ मुदा ऐठाम से नै। पि‍तोकेँ पूर्वजक देल आ अपन अरजल खेते-पथार भरि‍ अछि‍। समए कि‍छु होउ, मुदा एहनो परि‍वारक कमी मि‍थि‍लाक पेटमे नै अछि, आ ओकरा नकारलो नहि‍येँ जा सकैए, जे पुर्खाक देल सम्‍पति‍केँ, खेत-पथारकेँ लाड़ि‍-चारि‍ अपन जि‍नगी नि‍माहैत ओइ सम्‍पति‍केँ अमानत रखि‍ अगि‍ला पीढ़ीकेँ बि‍नु कहनौं-सुननौं सुमझबैत आएल अछि‍। तहि‍ना रामरूपो बाबूकेँ अपन पि‍ताक चास-बासपर नजरि‍ पड़लनि‍।
जेठ मासक सौझुका झकासक पछाति‍ पूर्बाक लहकीमे ओसारपर बैस पटनेसँ गामक आनन्‍द रामरूप बाबू लइ छला। तही बीच चाहक कप नेने पत्नी-कादम्‍बरी पहुँचलनि‍। ओना आँखि‍क टकटकी रहनि‍ मुदा ज्‍योति‍ वि‍हीन। पत्नीकेँ नै देखि‍ पौलनि‍। मुदा कादम्‍बरी बुझैत जे ि‍कम्‍हरो मन भँसि‍ गेल छन्‍हि‍। कप बढ़बैत बजली-
चाह पीब लि‍अ, भक टूटि‍ जाएत।
कहि‍ बगलेक कुरसीपर बैस अपनो चाह पीबए लगली। चाहक चुस्‍की लैत रामरूप बाबू बजला-
गाममे बहुत सम्‍पति‍ अछि‍ ओकर उपयोग केना करी तैबीच नजरि‍ घूसि‍ए ने रहल अछि‍।
बहुतो एहेन तँ छथि‍ए जि‍नका ठोरेपर बरी पकै छन्‍हि‍। प्रश्न पूरल आकि‍ नै पूरल, उत्तर पहि‍ने दऽ देता। भलहिं उत्तर नूनगर भेल आकि‍ कड़ू आकि‍ मीठनोन! तेकर चि‍न्‍ता नै। तहि‍ना कादम्‍बरीओ छथि‍। केना नै रहती? अर्थशास्त्री पि‍ताक बेटीक संग अपनो- कादम्‍बरी- आनर्सक संग एम.ए. अर्थशास्‍त्रेसँ केने छथि‍! बजली-
आइक पूजीमे करोड़ोक सम्‍पति‍ अछि‍, बेचि‍ कऽ बैंकमे जमा कऽ लि‍अ, लाखोमे आमदनी बढ़ि‍ जाएत।
गरूड़ जहि‍ना कागभुसुण्‍डीक बात धि‍यानसँ सुनैत तहि‍ना रामरूप बाबू पत्नीक बात सुनला। मुँहमे तँ ताला लगौने रहला मुदा भीतरे-भीतर मन हौंड़ए लगलनि‍। अपन नोकरीक जि‍नगी मन पड़लनि‍, जि‍नगी भरि‍ पाइए हँसोंथलौं, जइसँ पटना सन शहरमे दस कट्ठाक घराड़ीमे तीन मंजि‍ला मकान बनेलौं, पेन्‍शन भेटैए, बैंकोमे अछि‍ए! तखनि‍ जँ बाप-दादाक देल जमीन बेचि‍ समाजसँ नाक कटाएब, ई हमरा सन लोक लेल केते उचि‍त हएत? बच्‍चाक महि‍रम जेना माए-बाप बुझैए तहि‍ना ने खेतो अरजनि‍हार खेतक बुझै छै। की केकरो दस कट्ठाक चौमास पूर्वज अहीले देलनि‍ जे बेटा, बेचि‍ कऽ बैंकमे रखि‍ लि‍हऽ जे खूब सुइद हेतह। आकि‍ ओ बारहो मासक कामधेनु बूझि‍ देलनि‍? मुदा आइक बहरबैयाक जे रूप-रंग कहि‍औ आकि‍ नव कृषक संस्‍कृति‍ पकड़ि‍ लेलक अछि‍ आेइसँ उपजा-वाड़ीक रूप की वएह रहत? ने राधाकेँ नअ मन घी हेतनि‍ आ ने राधा नचती। ने गाछमे डारि‍ हएत आ ने कि‍यो मचकी झूलता। मन हुमड़लनि‍, पत्नीक पैत्रि‍क सम्‍पति‍ नै छि‍यनि‍- पैत्रि‍क सम्‍पति‍क माने पारि‍वारि‍क वि‍चारधारा- ओ अपन छी ओकर रक्‍छा के करत? नै! पत्नीक वि‍चार नै सुनबनि‍। कोनो परि‍स्‍थि‍ति‍मे खेत नै बेचब। वि‍चारक दृढ़ता मुँह फोड़ि‍ नि‍कललनि‍-
बाप दादाक मान-सम्‍मानसँ जुड़ल जमीन अछि‍, ओकर उपयोग केना हएत, ई वि‍चारणीय भेल।
अखनि‍ धरि‍क जि‍नगीमे रामरूप बाबू पत्नीक वि‍चारकेँ अङेज नेने छला। सेहो ओहि‍ना नै, हुकुमदारी करैत-करैत एहेन मोड़ बनल जाइमे दुनू बेकती निर्णए केलनि‍ जे दरमाहा पत्नीक हाथ जेतनि‍ आ ओ घर चलौती। जइसँ जेना पुरुखक कलंक उठैए जे फल्‍लाँ फल्लाँ ठाम, से तँ झूठ भाइए जाएत। अँगने नै तँ राधा नचती केतए? मुदा ऊपरफटकी आमदनी तँ बि‍नु आड़ि‍-मेड़क होइए, ओ केना हि‍साबमे औत? ओना, अइले घोंघौज दुनूक बीच भेलनि‍, मुदा ओ परि‍वारक हि‍साबसँ बाहर रहल। मुदा ओकरा केना कामयावी बनाबी यएह ने भेल बुधि‍यारी। जहि‍ना कादम्‍बरीक मन छेलनि‍ जे पति‍क सोलहन्नी कमाइ हाथ आबए, सएह भेबो केलनि‍। जे निर्णयक पछाति‍ रामरूप बाबू मासे-मासे चेक पत्नीक हाथ दैत रहलखि‍न। तइसँ एते तँ भेबे केलनि‍ जे मछट्टा जाइक जरूरति‍ नै पड़लनि‍। नून-सँ-हरदी तकक भार कादम्‍बरीएपर रहलनि‍। जइसँ कादम्‍बरीओ अपनाकेँ बेरोजगार नहि‍येँ मानैत। ओना कादम्‍बरी पति‍क आदमनीकेँ ओइ थर्मामीटरसँ नपैत जइसँ छह बजे साँझसँ बारह-एक बजे राति‍मे थाकल-मारल अबैक कारण की? नोकरीक डि‍यूटी दि‍नका छन्‍हि‍, तखनि‍? मुदा लगले मन मुड़ि‍ जान्‍हि‍। मुड़ि‍ ई जान्‍हि‍ जे अपनो देह भरि‍क स्‍वंत्रताक अधि‍कार जँ पुरुखकेँ नै भेटए, तँ पुरुखपना केतए औत? मुदा तैयो एते तँ इमानदारी रामरूप रखि‍ते छथि‍ कि‍ने जे आमदनीकेँ छि‍ड़ि‍अबै नै छथि‍, कि‍छु-ने-कि‍छु मोटगर काज तँ सम्‍हारिए लइ छथि‍। पटना सन शहरमे दस कट्ठा घराड़ीक बीच तीन मंजि‍ला मकान तँ हुनके कमाइक छि‍यनि‍ आकि‍ कि‍यो दोसर देलकनि‍। अनेरे झूठ-फूसक गपक नाङरि‍ पकड़ैले बौआएब। ओना दुनू परानीक बीच खौटका बनि‍येँ गेल। रामरूप बाबूक वि‍चार जैठाम छन्‍हि‍ तइसँ कादम्‍बरीक वि‍चार हटल रहबे कएल। जमीनक नीक उपयोग भेने ने सम्‍पति‍क नीक सुख भेटै छै। जँ ओकर उपयोगे ने हएत तँ माटि‍क धरती माटि‍ छोड़ि‍ सोनाक थोड़े भऽ जाएत। हँ, उपयोग केला पछाति‍ माटि‍ओ सोना बनै छै। तैठाम कादम्‍बरीक हटल वि‍चार ई जे खेत बेचि‍ बैंकमे रखने नि‍श्चि‍त आमदनीपर पहुँच जाएब तइ हि‍साबसँ परि‍वार चलत। ने हाथ मैल आ ने पएर मैल हएत। धारक महार टुटि‍ते दू तरहक धारा नि‍रमि‍त भाइए जाइए। एक जे मुख्‍यधारा ओकर जगह बना पेटमे समटैए तँ दोसरो एहेन अछि‍ए जे अपना धारामे आरो धफार पैदा कऽ दाेसर दि‍स रेड़ैए। ओना अखनि‍ धरि‍ दुनू परानी- पति‍-पत्नी-क बीच केतेको दि‍न एहेन प्रश्नपर मतभेद होइत रहलनि‍। समझौतौ होइत रहलनि‍, मुदा कादम्‍बरीक आइक प्रश्न रामरूप बाबूकेँ कि‍छु दोसर दि‍शामे मोड़ि‍ देलकनि‍। रंग-बि‍रंगक प्रश्न मनमे उचड़ए लगलनि‍। की अपन समाज टूटि‍ गेल? आ की अपन जि‍नगी टूटि‍ गेल? एकरा की मानल जाए? माए-बापक सेवा इति‍हास-शास्‍त्र पुराणक पन्ना पाछू पड़ि‍ गेल? ऐ उमेरमे केकर आशा...? वि‍चारमे मोड़ एलनि‍। एक तँ ओहि‍ना दुनि‍यासँ हटल छी तैपर जँ दुनू बेक्‍तीओ हटि‍-हटि‍ रहब सेहो नीक नै। वि‍हुँसैत रामरूप बाबू पत्नीकेँ बौसैत बजला-
अनेरे छोट-छीन बातक पाछू बेसी पड़ब नीक नै।
पति‍क सह पबि‍ते कादम्‍बरी छि‍ड़ि‍आइत बजली-
ओही दि‍नसँ अहाँकेँ जनै छी जइ दि‍न बात काटि‍ देलौं!
जहि‍ना छि‍ड़ि‍याइत बातकेँ समेटल जाइत तहि‍ना पत्नीकेँ समटैत रामरूप बाबू बजला-
सभ दि‍न तँ महल्‍लाक सभ सेवा नि‍वृति‍ भेल लोक एक घंटा-दू घंटा एकठाम बैसि‍ते छी, तही बीचमे कि‍ए ने वि‍चारि‍ लेब। अनेरे कि‍ए हम बधुआएब आकि‍ अहीं बधुआएब।
पति‍क वि‍चार कादम्‍बरीकेँ नीक लगलनि‍। नीकक कारण जे कादम्‍बरीक लड़-जड़क बाहुल्‍य, तँए अपन पक्ष मजगूत होइत देखलनि‍ तेतबे नै देखलनि‍ तैसंग ईहो देखलनि‍ जे पति‍-पत्नी माने पुरुष-नारीक बीच अदौसँ कि‍छु-ने-कि‍छु वैचारि‍क मन-भेद होइत आबि‍ रहल आ होइत रहत, मुदा फेर केना सम्‍बन्‍ध बनल रहल? हारल-थाकल-मारल बटोही जकाँ पति‍क बगे-वाणि‍ कादम्‍बरीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। जीतल पति‍-पत्नी तँ ओ ने जे अपन आ अपन परि‍वारक कोनो समस्‍या दोसराक बीच नै रखि‍ दुनू मि‍लि‍ समाधान करैत दौड़ैत जि‍नगी बि‍तबैत मृत्‍युक धाराकेँ कूदि‍ कऽ टपि‍ जाएत? मुदा से तँ नै भेल! ओझराइत बाटक बात देखि‍ कादम्‍बरी बजली-
सभसँ बड़ौ समाज। भने अपन बात वि‍चारैले रखि‍ हुनको सबहक वि‍चार देखबनि‍, नीको बूझि‍ पड़त आ अधलो, जे नीक हएत ओकरा पकड़ि‍ लेब, जे अधला बूझि‍ पड़त ओकरा छोड़ि‍ देबै। सएह ने? तइले जँ दुनू संगीओ-साथीमे मुँह फुलौने रहब, सेहो नीक नै। दुनि‍याँक इति‍हास गबाही अछि‍ जे वि‍षम परि‍स्‍थि‍ति‍मे पुरुखो आ महि‍लो एक दाेसराक संग छोड़ने अछि‍। मुदा एहेन पौराणि‍क गल्‍ती अपना जि‍नगीमे नै उतरए देब। लगभग चालीस बरख पूर्ब जहि‍ना हाथ पकड़ा-पकड़ी केने एलौं, तहि‍ना पकड़ने चलब।
पत्नीक वि‍चार रामरूप बाबूक घोर-मट्ठा भेल मनकेँ जेना फरि‍छाएल पीबै जोकर पानि‍ बना देलकनि‍। बजला कि‍छु ने। मुदा आँखि‍ जरूर अँखि‍आ लेलकनि‍। अँखि‍आ ई लेलकनि‍ जे नीक भवि‍स दि‍स अपनाकेँ बढ़बए चाहि‍ रहली अछि‍। रामरूप बाबूक आँखि‍-मे-आँखि‍ मीलि‍ते जेना कादम्‍बरीकेँ बूझि‍ पड़लनि‍ जे भरि‍सक पति‍ अगि‍ला काज दि‍स बढ़ैले कहि‍ रहला अछि‍। काजे ने बोलीकेँ बि‍लमबै छै। जँ से नै हएत तँ काजे बि‍गड़ि‍ जाएत! आ जखने काज बि‍गड़त आकि‍ अनधुन गरि‍औनाइ शुरू करत! तइसँ नीक जे रौतुका भोजनक ओरि‍यानमे कि‍ए ने लगि‍ जाइ। पति‍ लगसँ उठि‍ कादम्‍बरी भनसाघर तँ वि‍दा भऽ गेली मुदा मनक दोसर खरी उचरि‍ गेलनि‍। उचरि‍ ई गेलनि‍ जे अखनि‍ तक कहि‍यो ओहेन भोजन नै केलौं जेहेन मनुखक हेबा चाही। पढ़ल-लि‍खल परि‍वार रहि‍तो कहाँ कहि‍यो ऐपर वि‍चार केलौं! एक भोजन श्रमक पूर्ब होइए दोसर अंतक पछाति‍, जखनि‍ लोक अराम करए जाइ छथि‍। गरि‍ष्‍ठ पाक जेते अरामक अवस्‍थामे हेतै ओते काजक अवस्‍थामे थोड़े हेतै? मुदा ईहो केना मानल जाए जे सबहक दि‍न आकि‍ सबहक राति‍ एके रंग होइ छै। चौकाक बटलोहीक एक डेग पाछूए हटल कादम्‍बरी ठाढ़, मुदा वि‍चारतंत्र तेते सक्रि‍य जे सभ अंग शि‍थि‍ल पड़ि‍ गेलनि‍। नजरि‍ टकटकी जकाँ बनि‍ गेलनि‍।
दुनू परानीक बीच तीन दि‍न पछाति‍क समए बनल जे सभकेँ पूर्ब जानकारी देला पछाति‍ वि‍चारि‍ लेब। तैबीच हुनको सभकेँ समए भेटतनि‍ आ ऐबोक जानकारी रहबे करतनि‍। अपनो ओइ हि‍साबसँ तैयारी करब।
दाेसर दि‍न जेना कादम्‍बरीकेँ पानि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍। मलेटरी जकाँ समैपर नीन तोड़लनि‍। केना ने तोड़ि‍तथि‍? भोरुका बसंती-वयार केकरा नै बजारि‍ छातीपर बैसए चाहैए। मुदा एहनो तँ लोक छथि‍ए जे नीनकेँ तोड़ै छथि‍। जँ नीन अपने नै टुटए चाहैत तँ ओकरा तोड़लो जाइए। कादम्‍बरीओ नीनकेँ तोड़लनि‍।
समैपर उठि‍ अपन सभ जवाबदेहीक काज सम्‍हारि‍ बैसारक बीचक योजना बनबए लगली। चारि‍ बजे सौझुका समए अछि‍। चौबीसो घंटामे सभसँ नीक समए, नीकक माने वि‍चारक अनुकूल मौसम। भोजनो तँ वएह ने नीक जे मौसमक अनुकूल हुअए। जँ से नै आ चैत-बैशाखमे नवका दालि‍ खाएब तँ पेट हरहरेबे, गरगरेबे, पड़पड़ेबे, झड़झड़ेबे करत! मुदा जँ अपनो भोजनक वि‍चार मनुख नै करत तँ नै करह। कोइ काहू मगन कोइ काहू! अपन करनी अपन धरनी अपन मरनी हेतै आकि‍ अनकर? नीक हएत जे ओहेन भोजनक तैयारी करी जे सभकेँ सुपाच्‍य  होन्‍हि‍। कादम्‍बरीक मन मानि‍ गेलनि‍ जे नीक वि‍चार बुधि‍ देलक। मुदा लगले दोसर जोरसँ धक्का दैत कहलकनि‍-
सुपाच्‍च तँ वएह ने जे शरीर पचबए? आकि‍ सुपाच्‍च बौस? जँ सुपाच्‍च पदार्थ सुपाच्‍च तँ केकरो काँच दूध पचै छै आ केकरो नै पचै छै! केकरो गर्म दूध पचै छै आ केकरो नै पचै छै! तखनि‍?”
कादम्‍बरीक मन फेर दोसर घुरछीमे ओझरा गेलनि‍। एक तँ अदहे मुट्ठी टीक लोक रखैए, तहूमे जँ दसटा चि‍ड़चि‍ड़ी घोंसिआ जाउ तँ टीक खोलि‍ते-खोलि‍ते नोंचा जाएत आकि‍ एकेबेर जड़ि‍एसँ कटा कातमे भ‍ऽ जाएत? तैपर सँ पुछबै जे तोरा अपसि‍याँत भेने हमरा की? से जेहेन हएत तहि‍ना कादम्‍बरीक मनमे पनपल। पनपल ई जे जि‍नका जे सुपाच्‍य  होइ छन्‍हि‍, माने सभ दि‍न खाइ छथि‍, हुनका लेल वएह पाक नीक हएत। एकमुँहरी वि‍चार होइते फेर मन घुड़ि‍येलनि‍। घुड़ि‍येलनि‍ जे जँ कोनो नीक बौस बनि‍ जाए जे कि‍नको नहि‍योँ नीक भेने मन घूमि‍ जान्‍हि‍ तखनि‍ की कहबनि‍ जे अहाँले नै तैयार छी? मन ठमकलनि‍। ठमकि‍ते नि‍यारली जे बेकता-बेकतीक वि‍चारानुकूल पाकक ओरि‍यान कऽ लेब। पेट तँ जंजाल छीहे ने! जँ से नै तँ हजार रसगुल्‍ला आ बीस कि‍लोक रेहुक पेट जे बनौता हुनका लेल कि‍ए ने जंजाल छी। भोजनक सूची तैयार होइते कादम्‍बरी खोज-भाँज लगबए नि‍कलबे करती जे कि‍नका लेल की नीक। तहूमे समए लगबे करत। गप्‍पोकेँ कि‍ नाङरि‍ होइ छै, ओकरा कि‍ लोकक देह जकाँ आँखि‍क नि‍च्‍चाँ मुँह आकि‍ दुबगली कान आकि‍ मुँहक नि‍च्‍चाँ पेट जोड़ैक काज छै आकि‍ कैलाशसँ मानसरोवर आकि‍ मानसरोवरसँ गंगोत्री.., ओकरा तँ सौंसे दुनि‍याँ देखैक वि‍चार होइ छै। जँ से नै तँ ऐ प्रश्नक उत्तर कथी जे ‘अहाँक दुनि‍याँ केहेन? तँ अपना सन।’
रामरूप बाबूकेँ खाइ-पीऐक धनि‍येँ-फि‍कि‍र नै। तेकर कारण अछि‍ जे शुरूहेसँ अपन दरमाहा पत्नीकेँ सुमझा पाक-साफ भऽ गेल छला। से नीके छेलनि‍। नीक ई छेलनि‍ जे पत्नी जेते अपन भाएकेँ प्रेमसँ भोजन करबै छथि‍ तेते पति‍क भाइओक संग। तइसँ नीक जे ऐ बरहबर्खा रोगसँ छुट्टीए लऽ लेब नीक। तँए मन खुशी, कि‍ए कि‍यो कहता फल्‍लाँ बाबू भरि‍ पेट खाइओले ने देलनि‍ आकि‍ अमुख वस्‍तु बनबैक लूरि‍ए ने छेलनि!‍ कि‍एक तँ मनुखेक मुँह छि‍ऐ। बेटा बेरमे राजा छी आ बेटी बेर भीखमंगा!
समैसँ पूर्ब कादम्‍बरी अपन वि‍चार तीन बेर सभकेँ डेरे-डेरे पहुँच सुना चुकल छेली। मुदा रामरूप बाबू चुपे रहला। चुपे ऐ दुआरे रहला जे नव प्रश्न उठत, नव दि‍शा वि‍चारैक प्रश्न हएत ओ तँ अपन अनुभवक संग समैसँ रस्‍ता मि‍लबैत आगू बढ़त। जँ से नै तँ समचीन[3] केना हएत। अोना अपनो मन ओतए ठाढ़ भऽ अगि‍ला जि‍नगीक बाटक दि‍शा ताकि‍ रहल छेलनि‍, जँ से नै तकता तँ आनक जि‍नगीकेँ जहि‍ना अपने बुझै छथि‍ तहि‍ना ने आनो बुझतनि‍। सभ अपन मनक मालि‍क छी। सबहक अपन मन ओतए चढ़ि‍ कुचड़ैए जे, भाय, दुनि‍याँमे सभसँ बेसी बुधि‍यार, सभसँ बेसी इज्‍जतदार छि‍यौ, टि‍टही जकाँ हमरेपर अकास टि‍कल अछि‍...। तहि‍ना कि‍ दोसराक मन पाँखि‍ लगा उड़ि‍ नै कुचड़त जे हमहँू छी। तखनि‍ ओइ कुचड़ा-कुचड़ीमे अनघोल हएत की नै? तइसँ नीक ने जे मुँहमे ताला लगा रहब। अनेरे मन बौअबै छी। भाय, जेकर माए-बाप मरत ओकरा जँ नीन पकड़ि‍ लइ वा ओङहए लगए तखनि‍ दाेसराक गति‍ की हेतै। मुइला पछाति‍ होउ आकि‍ जनमला पछाति‍, ओकर जे अगि‍ला प्रक्रि‍या छै ओ तँ अपने करए पड़ै छै।
चारि‍ बजि‍ते सभ आमंत्रि‍तजन पहुँचला। मुदा बैसैमे फेड़-फाड़ भेल। फेड़-फाड़ ई जे आन दि‍न जेना अबैत गेला बैसैत गेला से नै भेल। अपन-अपन गर अँटकारि‍-अँटकारि‍ जोड़ लगि‍-लगि‍ बैसला। मैनेजर साहैब जे बैंकसँ सेवा नि‍वृति‍ भेल छथि‍, ति‍नका आ डाक्‍टर साहैबकेँ खूब पटै छन्‍हि‍, जँ दुनूकेँ समए भेटनि‍ तँ भरि‍-भरि‍ राति‍ सौन जकाँ वि‍द-वि‍दाइते रहि‍ जेता। मुदा जैठाम सभ दौग कऽ आगाँ बढ़ए चाहैए तैठाम मैनेजर साहैब आकि‍ डाक्‍टर साहैब छूटि‍ जाथि‍ सेहो तँ नीक नहि‍येँ। जहि‍ना डाक्‍टर साहैब मैनेजर साहैब लग बैसला तहि‍ना सेवा नि‍वृति‍ इंजीनि‍यर साहैब डायरेक्‍टर साहैब लग बैसला। फैक्‍ट्रीक डायरेक्‍टर साहैब सेहो सेवा निवृति‍ छथि‍। दुनूक वि‍चारक वि‍नि‍यम अपन रहनि‍, तँए बेसी हेम-छेम छन्‍हि‍। चाह उसरैत-उसरैत पान चलए लगल, मुदा पानक पछाति‍ जे परसल जाइए ओ अनका मुहेँ परसल जाएत आकि‍ अपना मुहेँ। जे‍म्‍हर पान परसा गेल ओम्‍हरसँ प्रश्न उठल-
की बात छि‍ऐ यौ रामरूप बाबू?”
प्रश्न उठौलनि‍ डाक्‍टर साहैब। ओना डाक्‍टर साहैब बजैमे फड़कोर छथि‍ए, नजरि‍ए तेहेन छन्‍हि‍ जे लगले कोनो बातकेँ पकड़ि‍, सामाजि‍क-पारि‍वारि‍क कोनो समस्‍याकेँ शरीरक रोगे जकाँ एक्स-रे करा मेडीसीन आकि‍ सर्जरीक दुनू वि‍चार ठाँहि‍-पठाँहि‍ दऽ दइ छथि‍न। ओना सभ दि‍न लोकक बीच रहै छथि‍, अखनो अपनाकेँ अथबल नै बूझि‍ रहला अछि‍, भलहिं नव तकनीकक मारि‍क चोट कि‍ए ने जि‍नगीकेँ धकि‍यबैत होन्‍हि‍। खैर, जे छन्‍हि‍ ओ तँ हुनकर बेक्‍तीगत छि‍यनि‍। ओना काने-कान बीआ-बान कादम्‍बरी काइए चुकल छेली, मुदा अपन जि‍म्‍माक आ गरि‍माक मेनटेन करब छन्‍हि‍हेँ।
चौमास जकाँ चौकि‍याएल वि‍चार रामरूप बाबूक रहबे करनि‍, बजला-
गाममे पि‍ता जीक अमलदारीमे पनरह बीघा जमीन छल, हुनका जीवि‍ते नोकरी भेल। हम नोकरी दि‍स बढ़ि‍ गेलौं। बाबू खेतीएपर अँटैक गेला। दुनू परि‍वार दू दि‍स भऽ गेल। चारि‍ पाँच बर्खक पछाति‍, आगू-ए-पाछू दुनूक मृत्‍यु भऽ गेलनि‍, कि‍रि‍या-कर्म भेला पछाति‍ जे गाम छोड़लौं, से छोड़नै छी।
रामरूप बाबूक नमहर प्रश्न। दू जि‍नगीक प्रश्न, एक कि‍सानीक दोसर नोकरि‍हाराक। तहूमे दुनू लग लगाउ नै, सोलहन्नी नवक शुरूआत। सबहक मन ठमकलनि‍। अपन जि‍नगीमे भेल घटना आ बि‍नु भेल घटनाक दू थर्मामीटर होइ छै। जि‍नगीक प्रश्न छी, तँए सभ सबहक मुहोँ देखैत आ आगू सुनैक प्रति‍क्षो करैत। ओना कादम्‍बरीक मन प्रश्नक उत्तर दइले चटपटाइत रहनि‍। कारणो छल दुनू परानीक बीच उठल दू दि‍शाक बाट। मुदा पनचैतीओ तँ पनचैती छि‍ऐ, ओहि‍ना पनचैती आ पर-पनचैतीक चलनि‍ समाज पकड़लक आकि‍ खूब नीक जकाँ जोति‍-कोरि‍, गोला फोड़ि‍ चि‍क्कन बनबैले पकड़लक। पनचैती आकि‍ पर-पनचैती ओहि‍ना थोड़े उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। ओहि‍ना कोनो चीज सोझहे ठाढ़ होइए आकि‍ ओकरा  ठाढ़ रहैक गर बनौला पछाति‍ होइए। तँए पनचैतीओक ठाढ़ होइक अपन गर छै। पहि‍ने पहि‍ल पक्ष अपन वि‍चार रखता, ओइ वि‍चारकेँ पंचवेदीमे वेदसँ नहाएल-धोअल जाएत तेकरा पछाति‍ ने दोसर पक्षक वि‍चार, वि‍चारमे औत? जँ से नै आनब आ पनचैतीकेँ निर्णए तक नै पहुँचऽ देबै तखनि‍ वि‍चारक उलंघनक दोषी के हएत। तहूमे परि‍वारक दुनू परानीक बीचक छी, पति‍क प्रति‍ अपन अशि‍ष्‍टता सोझहाँ आबि‍ जाएत। तइसँ नीक जे डाक्‍टर कि‍सुन भायकेँ कहि‍ए देने छि‍यनि‍ तँए हुनके इशारा कऽ दि‍यनि‍। कादम्‍बरी सएह केलक। मुदा डाक्‍टर साहैब अपन वि‍चारमे डुमल रहथि‍। चारि‍ भाँइक पि‍ताक भैयारीमे वि‍चारक भि‍न्नता परि‍वारकेँ मटि‍या-मेट कऽ चौकि‍या देलक। तँए कोनो परि‍वारक प्रश्न छी, बि‍नु बजने दोखीओ तँ नहि‍येँ हएब। बेर-बेर कादम्‍बरीक इशारा डाक्‍टर साहैब देख-देख अनठबैत रहला। डाक्‍टरो साहैब छह-पाँचक कमाइ नै केलनि‍। कि‍यो कम्‍पनी उपहार देलकनि‍, तेतबे धरि‍। तँए सोझ वि‍चार जे, भाय जे नै बुझि‍ऐ तेकरा लगले कि‍ए ने मानि‍ लि‍औ। जे कोट-कचहरीक केस जकाँ पचास-पचास बरख रगड़ैत रहि‍औ। तइसँ केकर नीक हएत। लोको रगड़ाएत सरकारो घँसाएत। चुपा-चुपी देखि‍ इंजीनि‍यर साहैब बजला-
सबसँ पहि‍ने दि‍याद-वादक भाँज लगबए पड़त, गाममे रहनि‍हार भलहिं मारि‍-दंगा कऽ बलजोरीओ कऽ सकैए मुदा जे बाहरसँ गौआँ बीच जेता हुनका तँ नापि‍-जोखि‍ कऽ जाएब नीक हेतनि‍। अपन सुपत केते जमीन बँचल छन्‍हि‍, ओ बि‍ना बुझने केना कि‍छु करता।
इंजीनि‍यर साहैब अपने गामक भगौआ भेल छला। मुदा से अपने गल्‍तीसँ। जखनि‍ घर बनबैक झोंक चढ़लनि‍, तखनि‍ अपन पैत्रि‍क घराड़ी दि‍याद-वादक हाथे बेचि‍ लेलनि‍। ओना देलखि‍न परि‍वारेकेँ, इज्‍जत तँ रखलनि‍, मुदा जखनि‍ अपन रहैक मि‍थि‍लांचलक बास बेचि‍ लेलनि‍, जेकरा कखनो नीक नै कहल जा सकैए आ जखनि‍ पाइ-कौड़ी जोर मारलकनि‍ तखनि‍ गाम मन पड़लनि‍। मनसूबा यहए जे बेसीए कऽ कीनि‍ लेब मुदा जि‍नगी भरि‍क समीक्षा केला पछाति‍ जे इंजीनि‍यर साहैबक कि‍रदानीक समीक्षा समाज आकि‍ दि‍यान-वाद केलनि‍ तँ ऐठाम आबि‍ अँटैक गेला जे इंजीनि‍यर साहैबसँ केकरा की लाभ भेल? तँ कि‍छु ने! तखनि‍ पढ़ल-लि‍खल आ बि‍नु पढ़ल-लि‍खलमे की अन्‍तर भेल, मुरुखोसँ मुरुखपने केलनि‍। एकमुट्ठी भोजन करा कि‍यो भूखलकेँ तृप्‍त बुझैत मुदा जि‍नगीक भूखक तृप्‍ति‍ता बि‍ना जि‍नगी ठाढ़ भेने नै होइ छै। जीवन बनबैक लूरि‍ इंजीनि‍यर साहैबकेँ, मुदा कहाँ एको परि‍वार गढ़ि‍ सकला! ई बात दि‍याद-वादक मन मानि‍ नेने छेलनि‍। केतबो नाङरि‍ पट-पटा कऽ रहि‍ गेला दि‍याद-वाद ओइ घराड़ीपर नहि‍येँ आबए देलकनि‍।
कि‍यो अपने बेथे बेथाएल तँ कि‍यो जमीनकेँ जंजाल बूझि‍ ओकरा भीर जेबो ने करै छथि‍। चुप-चुपी देखि‍ कादम्‍बरीक मन भीतरे-भीतर खौंझाइत रहनि‍ जे नीमकहराम सभ भऽ गेल। केहेन कऽ बुझा-सुझा कहबो केलि‍यनि‍ आ खुएबो-पीएबो केलि‍यनि‍। मुदा कि‍यो पीठपोहू हुअ नै चाहैए। पाशा बदलैत बजली-
एके काज लेल बेर-बेर बैसार करब नीक नै हएत। तँए...?”
कादम्‍बरीक प्रश्नमे पुछड़ी जोड़ि‍ मैनेजर साहैब बजला-
मानि‍ गेलौं जे पनरह बीघा छेलनि‍, तइमे नै सोलहन्नी तँ अठन्नीओ मानि‍ लि‍अ। अदहो तँ साढ़े सात बीघा बँचबे कएल हेतनि‍। मुदा साफे नै बँचलनि‍ सेहो तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। 
मैनेजर साहैबक मन बैंकक सुइद दि‍स भगैत जे छबे मासमे जखनि‍ सुइद मुइर भऽ चलए लगै छै, तखनि‍ लाखक पूजी पानि‍मे दहलाइए।
मैनेजर साहैबक बोल इंजीनि‍यर साहैबकेँ नीक नै लगलनि‍। नीको केना लगि‍तनि‍, मन गवाही दैत रहनि‍ जे जहि‍ना छोटका-बड़का साइओ पार्ट मि‍ला मशीन गढ़ल जाइए तहि‍ना तँ परि‍वारो छी। तँए, अपन प्रश्नपर अड़ान दैते बूझि‍ पड़लनि‍ जे साइकि‍लक भौलटू जकाँ गरदनि‍येँ लगसँ परि‍वार कटि‍ गेल अछि‍। कहू जे केहेन लीला छी जे एक माए-बापक सन्‍तान, बेटा-बेटी भेने केना सम्‍पति‍क अधि‍कारी आ नै अधि‍कारीक अधि‍कार अछि‍। तेतबे कि‍ए, जँ पाँच या सात भाँइक भैयारी छी तँ जेठौंस बँटैत-बँटैत छोटका सोलहन्नी बँटा जाइए आकि‍ रहबो करै छै।
गप-सप्‍पकेँ टेढ़-टूढ़ होइत देखि‍ रामरूप बाबू बजला-
मानि‍ गेलौं जे पनरह बीघामे साढ़े साते बीघा बँचल, तेकरा केना उपयोग करी, से तँ वि‍चारल जा सकैए।
टूटल दाँतक मुँहमे पान गलगलबैत डायरेक्‍टर साहैब बजला-
अपन कएल काज कहै छी। अपनो गाममे पाँच बीघा जमीन अछि‍, मन भेल जे पूजन देल सम्‍पति‍ छी पछि‍म लेल छोड़ि‍ दि‍ऐ। तखनि‍ तँ भेल ओइकेँ उपजाउ बना दि‍यै आकि‍ परती बना दि‍यै? उत्‍पादि‍त राखल जाए आकि‍ परती जकाँ? कोनो कि‍ पावनि‍-ति‍हार छी जे अनको आन सम्‍हारि‍ देतै आ एक-आधटा एकादशीक जरूरति‍ हेतै तँ दैयो देतै। जँ उर्वर-उपजाउ बनल रहत तँ सुगमतासँ आगूक काज बढ़ौल जाएत आ नै जँ परती बना राखल जाएत तँ मुरदा-साड़ा लग बैस कऽ कानब हएत। भाय, संस्‍कृति‍ आ मातृभूमि‍क सेवा कथी छि‍ऐ तेकरा ने नीक जकाँ बुझए पड़त। जैठाम कण-कणमे भगवान आ कण-कण शक्‍ति‍ सम्‍पन्न अछि‍ तैठाम केना कि‍ कएल जाए, एना जँ धि‍या-पुताक गर्दाक घर-अँगना बना खेलब, तँ बेर झुकैत उजरि‍-पुजरि‍ जाए पड़त।
डायरेक्‍टर साहैबक बातमे डाक्‍टर साहैबकेँ रस भेटलनि‍। टि‍टकारी दैत बजला-
भाय साहैब, अपने तँ टटके खेतपर पहुँचल छी, तँए समयानुकूल वि‍चार अपनै दऽ सकै छि‍ऐ?”
डाक्‍टर साहैबक टि‍टकारी डायरेक्‍टर साहैब नै परेखि‍ सकला। अपन पूछ खि‍खि‍र जकाँ मोटगर बूझि‍ पड़लनि‍। अठनि‍याँ मुस्‍कान भरैत बजला-
देखू अपन सोलहन्नी वि‍चार नै छी, मुदा जखनि‍ एक महान अर्थशास्‍त्री कानमे घोरि कऽ पीआ देलनि‍ जे देखि‍औ, अपना ऐठामक माने मि‍थि‍लांचलक कि‍सानी जि‍नगी बेठेकान छै। तहूमे बहरबैयाक लेल। गाममे रहनि‍हार तँ ओ भेला जे धार फुलाइते गाँज-डेली लऽ घारक कात जा हि‍यासऽ लगैत जे अमार केमहरसँ आबि‍ रहल अछि‍। से तँ बहरबैयाक बुत्तासँ बाहर अछि‍। तँए नीक हएत जे एकेबेर पूजी लगा बीस सालक खेती करि‍ लि‍अ।
ओना डायरेक्‍टर साहैब कुशि‍यारक गुल्‍ली बना-बना अपन बात राखए चाहै छथि‍, जे जखने तरो मीठ, ऊपरो मीठ आ मनो मीठ तखनि‍ तँ मि‍ठाइ बनबे करत। बड़ हएत तँ भुसबाक बदला लडडू बनि‍ जाए। नाङरि‍ पकड़ि‍ ऐँठि‍ डाक्‍टर साहैब बजला-
एहेन नफगर जँ खेती हुअए तँ तेलोसँ चि‍क्कन। तहूमे अपन इलाका, सत-सत बेर लोक एक-एकटा खेतमे धान रोपैए आ तैयो दहा जाइ छै। मुदा धन-धरतीक धैर्य तेते धीरजवान छै जे आँखि‍ खोलि‍ओ आ आँखि‍ बन्न काइओ कऽ सदि‍काल यएह कहैत जे धरती अहीं हमरा अन्न दइ छी, हृदैमे जमा कएल पानि‍ दइ छी, अपन सि‍नेह-सि‍क्‍त कएल पुरबा-पछि‍याक रूपमे हवा दइ छी, जि‍नगी लेल की ने दइ छी मुदा सभ कि‍छु दैतो हे धरती छाती हटौने छी।
डाक्‍टर साहैबकेँ भँसि‍आइत देखि‍ रामरूप बाबू बातकेँ समटैत बजला-
बड़ सुन्नर प्रश्नक उत्तर आबि‍ रहल अछि‍, एकबेर खेती करैमे ओकरा लगबैमे, जँ बीस बरख दोहरा कऽ ओइमे पूजी नै लागए आ बीस बर्खक पछाति‍ बीसो सालक उपजासँ बेसीक हि‍साब आबि‍ जाए तँ कि‍ए ने कएल जा सकैए।
रामरूप बाबूक वि‍चार सुनि‍ डायरेक्‍टर साहैबकेँ आरो मनसूबा जगलनि‍। बमछैत बजला-
सेवा-नि‍वृति‍ भऽ गेलौं तँए कि‍ ऐ देहमे दम नै अछि‍? रामरूप बाबू, अपनेसँ गाम जा देखि‍-सुनि‍ आउ। सागवान-गाछक खर्च सरकारी अनुदानपर आ लगबैओमे जे खर्च औत सेहो सभ सरकारीए अनुदानपर हएत।
डायरेक्‍टर साहैबक बमछी देखि‍ डाक्‍टरो साहैबकेँ मन बमछैत रहनि‍‍। मुदा अपन जखनि‍ सीमा अँकथि‍ तँ देखथि‍ जे जहि‍ना बजौल हम छी तहि‍ना तँ डायरेक्‍टरो साहैब छथि‍, अनका ऐठाम एहेन कि‍छु नै हेबा चाही जे घरबैयाक प्रति‍ष्‍ठापर कोनो कचोट होइ। तँए गुम्‍म। मुदा तरे-तर डाक्‍टर साहैबक मन ई बमछनि‍ जे कहू केहेन भोतलोह सन वि‍चार दऽ रहला अछि‍। बीस बर्खक खेतक काज हाथसँ छीना जाए तँ खेतपर रहनि‍हार लेल ओ हाथ की करत? तहूमे जे धरती दुनि‍याँक सभसँ नीक अछि‍ ओ फल-फूल वि‍हि‍न खेतीमे फँसि‍ जाए! तखनि‍ केहेन रमणगर जनकक फुलवाड़ी हएत? एक तँ जन-जनक फुलवाड़ी तैपर वि‍श्वामि‍त्र सन ऋृषि‍क आगमनक संग सखी-सहेलीक संग सीता आ लक्ष्‍मणक संग रामक मुस्‍कान। 
जहि‍ना समए उसरनपर आएल तहि‍ना वि‍चारोकेँ उसारि‍ए देब सभ नीक बुझलनि‍। डाक्‍टर साहैब बजला-
रामरूप बाबू, गाम जा खेत ठेकना लि‍अ, डायरेक्‍टर साहैब खेतीक भार उठाइए लेलनि‍, तखनि‍ शुभ काजमे अनेरे बि‍लम करब नीक नै।
बैसार समाप्‍त भेल। मुदा जहि‍ना नवम् मासक बेथा माइयेटा बुझै छथि‍ तहि‍ना नवम् जि‍नगीक बेथा रामरूप बाबूक मनमे कचकलनि‍।
बैसारक तेसर दि‍न, दू दि‍न बीचक समए ऐमे चलि‍ गेलनि‍ जे की करब, केना करब, के संग देत आकि‍ नै देत। एहनो संगी तँ होइते अछि‍ जे सदि‍काल तूम्‍मे फेड़फाड़ करैए। एहनामे केतए बि‍सवास कएल जा सकैए? कुरसीपर बैसल रामरूप बाबू असकरे वि‍चारि‍ रहल छला। सरकारी सर्टिफि‍केट अछि‍ जे आब अहाँ काज करै जोकर नै छी, तैपर बलउमकी करै छी। कोन जरूरति‍ पूर्वजक सम्‍पति‍क अछि‍, जे गाममे अछि‍। गौआँ जोति‍-कोरि‍ कऽ खाए आकि‍ परती बना कऽ गाए चरबए, गामक सम्‍पति‍क हक तँ ओकरे ने भेल। जि‍नगीमे दुनि‍याँ छोड़ि‍ पेट पकड़लौं, तैयो मन बौआइते अछि‍। मुदा दस गोटेक बीच जुआन हारि‍ गेल छी, जँ पाछू हटब तँ अनेरे वएह सभ मुहेँपर थुकता जे रमरूपबाक कोन ठेकान, कोनो कि‍ मनुख छी, धन जमा केने कथी‍ हेतै, जखनि‍ जुआने नै तखनि‍ ओहेन मनुखक मोजरे केते। मुदा वि‍चार जेना वि‍चार भूमि‍केँ खोदि‍ देलकनि‍। खोदि‍ ई देलकनि‍ जे जखनि‍ दुनू परानी दस गोटेक बीच अपन वि‍चार स्‍थापि‍त करैले गेलौं, तखनि‍ जे निर्णए भेल ओ दुनू गोटेक ने भेल। कोनो काज लेल आ केतौ जाइ लेल संगी संग गप-सप्‍प करैत रस्‍ता कटि‍ जाइए। तही बीच कादम्‍बरी चाह नेने पहुँचली। पति‍क सोगाएल सुरति‍ देखि‍ कादम्‍बरी व्‍यंग्‍यवाण छोड़ली-
मन बड़ खनहन जकाँ बूझि‍ पड़ैए?”
कादम्‍बरीक वाण रामरूप बाबूक छातीमे बेधि‍ देलकनि‍। बजला-
मन कि‍ खनहन रहत, मुदा खरहर तँ अछि‍ए। वएह सोचि‍ रहल छी, अनेरे बेसी देरी कि‍ए करब। काल्हि‍ए-परसूसँ कि‍ए ने काजमे हाथ लगा दि‍ऐ।
‘हाथ लगाएब’ सुनि‍ कादम्‍बरी सहमली। सहमली ई जे वि‍चार देब आ वि‍चारकेँ हाथक काजसँ मि‍लबैत चलब तँ भीन बात भेल! तखनि‍? तखनि‍ तँ यएह ने जे ओ पति‍ छथि‍ जेना संग दइले कहता तेना देबनि‍। ई बात अछि‍ए जे दुनू परानी बूढ़ भेलौं, मुदा ईहो तँ आशा अछि‍ए कि‍ने जे जँ रस्‍ता-पेरा मन झूकत तँ दोसरक आशासँ ठाढ़ हेबे करब कि‍ने। धनक लोभ छी, मुइलो अछि‍यापर सँ उठि‍ कऽ अबि‍ लोक लाठी भाँजैए। छोड़बो नीक नहि‍येँ हएत। बजली-
हम तँ जीवनसंगि‍नी भेलौं, कर्ता-धर्ता तँ अहीं भेलौं, तखनि‍ जे जेना सामर्थ्‍य रहत से तेना भाँज पुड़ैत रहब।
कादम्‍बरीक आस भरल आसक वि‍परीत दि‍शामे रामरूप बाबूकेँ आस लगि‍ते मन बढ़लनि‍। मन बढ़लनि‍ ओइ दि‍शामे जैठाम अपनाकेँ समाजक ओहेन लोक जे सभसँ बढ़ल-चढ़ल अपनो बुझै छथि‍ आ समाजो मानै छन्‍हि‍, जे दोसराक लेल की केलखि‍न? कोन मुँह लऽ कऽ समाजक बीच जाएब। मुदा सोझहामे कादम्‍बरी, तँए बात बदलि‍ बजला-
गामक लोक बड़ टेढ़ होइए, अनेरे कहत जे अहाँ बाबरी कटबै दुआरे केशकट्टा दि‍याद छोड़लौं आ आइ मरै बेरमे समाजक आगि‍ए संस्‍कार चाहै छी। तखनि‍ की कहबै?”
रामरूप बाबूक वि‍चार कादम्‍बरी नै परेखि‍ पौली। बजली-
केकरो अनकर सम्‍पति‍पर जाएब जे कि‍यो मुँह दुसत? अपन सम्‍पति‍ छी। चाहे मन्‍दि‍र बनाँउ, आकि‍ असमसान, अपना वि‍चारे कि‍यो करैए। तैठाम गौआँ कि‍ए बाजत?”
कादम्‍बरीक बोल जेना रामरूप बाबूक मनमे बलबोल जकाँ बूझि‍ पड़लनि‍। मुदा बजला कि‍छु ने। जि‍नगीक रक्‍छा केना कएल जाए, तेकरा खेल बुझै छथि‍। हँ एहेन गाम-समाज अखनो अछि‍ जे अति‍थि‍ सत्‍कारक वि‍धि‍-बेवहार बँचा कऽ रखने अछि‍। रामरूप बाबू समाजक बेटा नै बनि‍ पेला, ई दोख अखनो केकर कलंक भेल। काल्हुक लेल कोन अंक निर्धारि‍त हएत। मुदा कादम्‍बरी तँ गामक पुतोहु भेलखि‍न। जखने गाम पएर देथि‍न तखने समाजक बाल-अबाल सभ अड़ि‍याइत कऽ अँगने लऽ जेतनि‍। ओइ संग अपनो रहैक ठौर-ठेकान बना नै चलब तँ समाजक कोनो ठेकान छै। एकटा मारि‍-पीटि‍ भेने सौंसे गामक लोक जहि‍ना नि‍पत्ता  भऽ जाइए तहि‍ना मारि‍-पीटि‍ करैकाल सेहो तँ गोलि‍याइते अछि‍। निर्णए केलनि‍ जे समाजक नीक-अधला समाजक भेल, अपने केना ओइमे प्रवेश करब, ई अपन काज भेल। बजला-
तीन दि‍न मािन कऽ चलू। तीन दि‍न रहैक खेनाइ-पीनाइक फास्‍ट-फुड ओरि‍यानक संग रहैक घरक जोगार सेहो केने चलब।
हँ मोटा-मोटी दू गोटेक बोझहा भेल। मुदा आब तँ गामे-गाम सवारीओ जाइते अछि‍। काल्हि‍ए भोरक प्रोग्राम रखू।¦¦¦

१४ जुन २०१४




[1] सभसँ उत्तम कि‍सि‍मक
[2] नीच जमीनक
[3] समए चि‍न्‍ह

लगन

लगन


गोनर बेदरेसँ संगीतक प्रेमी अछि। दिवाली, दशहारा, सरोसती पूजा आ आनो-आन अवसरि‍पर गाममे नाटक होइक परचलन अछि‍। मुदा गोनरकेँ ओइ सभमे मौका कमे मिलैए। मौका ओकरे पहिल बेर मिलैए जे ओइमे चन्दा दइए। गोनरक पिता साधारण किसान छथि‍। गोनरक पिताक दोस्त देबन पंडित गाममे कीर्तनियाँमण्डली चलबै छथि‍, तँए लोकसभ गबैया कहै छन्‍हि‍। गोनरकेँ संगीतसँ लगाउ देखि पिताजी केतेक बेर कहै छन्‍हि‍-
गोनर, दोसक ऐठाम जा कऽ घड़ी-घंटा हैरमुनियाँ किए ने सीख अबै छँह?”  
आइ स्कूलमे शनिचराक पछाति सरजी गोनरसँ गीत गबौलनि‍ आ खुश भऽ खुब प्रसंशो केलनि। स्कूलसँ अबैतकाल बाट भरि‍ गोनर सोचैत आएल जे आइ देबन काकाक घर जा हैरमुनियाँ सीखनाइ शुरू करब।
दुपहरियाक टहटहाइत रौदमे, सभ लोक घरे-घर सूतल-पड़ल, अराम करैत रहए मुदा गोनर, देबन पंडितक घर बि‍दा भेल। देबन सभ दिन बेरूपहरमे अप्पन एकलौता पुत्र हरियाकेँ संग कऽ साज-बाजक संग रियाज करैत रहथि‍। आब गोनरो संग दिअ लगलनि‍। 
सप्ताहे दिनमे गोनर हरि‍मुनियाँक रीढ़ आ पटरीकेँ नीक जकाँ परखि‍ लेलक आ सा रे गा मा पा पहिलुक धुन बजबए लगल। ई आकस्मिक आ तेज शुरूआत देखि देबन सोचमे पड़ि‍ गेल, ‘हमर हरिया बेदरेसँ साज-बाजक संग खेलैत आएल तैयो अखनि‍ धरि एतेक नै सीख सकल!
देबनके डाहक संग पक्षपातक भावना सक्कत भऽ आ अगिले दिनसँ गोनरकेँ दुआरि पहुँचि‍ते, साज-बाज समेटि रखि दैत रहए। एक-दू दिन गोनर जाइते रहल मुदा ओहिना घुमि कऽ आबि‍ जाइत रहए। गोनर उदास तँ होइते रहए मुदा हताष आ निरास नै भेल, तँए संगीत सि‍खैक जीद्द मनसँ नै गेल।    
साँझ पड़ैत सभ दिन, देबन चाह-पान करैले बजार जाइ छल। ई बात गोनर जनैत रहए, तँए साँझ होइते देबनक घर पहँुच कऽ, हरियाकेँ फुसला कऽ साज-बाज पसारि सीखए लगल। मुदा ईहो सीखनाइ तीने-चारि दिनक पछाति स्थाइ रूपे बन्न भऽ गेल। जइ दि‍न देबन पण्डित दुनू छौड़ाकेँ साज-बाज निकालि सिखैत देखि‍ गेला। कड़गर फटकारो दुनूटाकेँ लगेलखि‍न आ सभटा साज-बाज समेटि‍ कऽ संदूकमे बन्न कऽ देलखि‍न।
कहल जाइए जे समए आ लहरि‍ केकरो इंतजार नै करैए। ई बात साँच भेल। गोनर ऐ दसे दिनमे जे किछु सिखने रहए वएह रामवाण भऽ गेल आ सक्कत अधार बनि‍, तारक गाछ सन बढ़ए लगल। कहल जाइए जे कोनो तरहक बुधि आ हूनर सिखैले निर्धारित समए नै होइए। जेतै-तेतै, चलैत-फिरैत गोनर सुर आ तानकेँ साधैत, गुनगुनाइत धूनमे रमल रहै छल। मुदा साँझ-भोर संगीतक अभ्यास केनाइ अप्पन दिनचर्या सेहो बना लेलक। टोल-टपड़ा आ गाममे जखनि‍ केतौ भजन-कीर्तन आकि‍ नाच-गानक आयोजन होइत रहए तइमे गोनर बड़ी तत्परतासँ भाग लैत रहए। तइसँ गाम भरिमे लोकसभ गोनरकेँ गबैया कहए लगल।   
गामक सटले शहर अछि। शहर छोटे सन अछि सुखी सम्पन्न लोक आ पैग-पैग बेपारीसँ लक हाकिमो-अफसर सभ एतए रहै छथि‍। गोनरकेँ शहरमे केकरोसँ जान-पहिचान नै अछि। एकटा डाक्‍टर सुरेन्द्र नारायण नामक गण्‍यमान बेकती छथिन जे महिला काैलेजमे हिन्दीक सरकारी प्रोफेसर आ संगै-संग महिला कल्याण संस्थानक अध्यक्ष सेहो छथिन। संगीतक प्रेमी रहैक कारण साले-साल सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन करबैत रहै छथि‍। प्रोफेसर साहैबक एगो बेदरूकिया संगी जे दिल्लीमे नाट्य आ कला विभागक प्रोफेसर छथि ओ रिटायर भऽ अपन पैतृक शहर पहिल बेर एला, तइसँ ऐबेरक आयोजन बड़ जोर सोरसँ भऽ रहल अछि। शहरक गण्‍यमान लोकसभ जे ऊँच-ऊँ पदपर कार्यरत छथि‍, सभकेँ कार्यक्रममे शामील होइक बास्ते न्योँत पठाएल गेल। तइमे ऐबेर टी.वी सीरियलक जानल-मानल कलाकार जीतुराज जोहर सेहो हिस्सा लऽ रहल छथिन।
कार्यक्रमक दिन लगि‍चाइत गेल। शहरमे जगह-जगह बैनर-पोस्टर लगाएल गेल जे अमुख तिथिकेँ सांस्कृतिक कार्यक्रमक आयोजन जानल-मानल संगीत प्रेमी सबहक सहयोगसँ भऽ रहल अछि‍। मुदा गोनरकेँ ऐ बातक कोनो खबरि‍ नै भेल छेलै।
शहरमे स्टेशन चौकपर बबाजी पानबला अछि। हिनका दोकानपर गामक बेसी लोक पान खाइले साँझ-बिहान जाइत-अबैत रहैए। बबाजीकेँ बूझल छन्‍हि‍ जे गाम भरिमे गोनर सेहो नीक गबैया छी। मात्र दू दिन बँचल रहए, जब गोनर अनायास बबाजीक पानक दोकानपर गेल, बबाजीकेँ मनमे ठहकलनि‍ आ जनैक जि‍ज्ञासा भेलनि‍ जे गोनर ऐ कार्यक्रममे भाग लेने अछि की नै। पुछलखि‍न-
की रौ तूँ ऐ कार्यक्रममे हिस्सा लेने छेँ किने?”
गोनर जिज्ञासु भऽ विनम्रतासँ पुछलक-
भैया हौ, के ई कार्यक्रम करबै छै हौ?”   
बबाजी बूझि गेला जे गोनर भाग नै लेने अछि तैयो आस्वासन दैत बजला-
अच्‍छा रूक, हम परोफेसर साहैबसँ बात करै छी।
बबाजी मोबाइल लऽ कऽ नम्‍बर मिलौलनि‍ आ बात करए लगला-
हेल्‍लो सरजी, परनाम! हम बबाजी पानबला बजै छी।
ओमहरसँ जे जबाव पुछने होन्‍हि‍, मुदा बबाजी फेर बजला-
एकटा नवजुबक बड़ नीक गबैया छथि‍।
कनीए कालक पछाति फेरि बजला-
लड़का तँ लोकले छथि‍ मुदा एक नम्मर गबैया छथि‍!
कनीए काल रूकि कऽ फेर आग्रहक स्वरमे बबाजी बजला-
सर! देखियौ कनीए, मौका देल जेबक चाही।
कनीकाल पछाति फोन डिसकनेक्ट भेल। गोनरकेँ बबाजी कहलखि‍न-
संस्थापर चलि‍ जो, ओतए बजेलकौ हेँ। पहिने गीत गबबेतौ तब चुनाव हेतौ। अखने चलि‍ जो।  
गोनरकेँ बसंती साइकिल रहबे करए, मुदा बूझल नै छल जे संस्थान छै केतए! तैयो पुछैत-पुछैत बिदा भेल। शहरक दच्छिन, बान्हक कछेरमे उजरा रंगक मकान, अगुआरे-पछुआरे नाना परकारक रंग-बिरंगक फूलक गाछसँ सजल-धजल फुलबाड़ी अछि। सड़कक कातमे साइनबोडपर लिखल अछि महिला कल्याण संस्थान। गोनर साइकिल नीचाँ धँसा संस्थानक प्राङगनमे पहुँचल, जैठाम दुचक्किया आ चरिचक्किया गाड़ीक पार्किंग लगल छल। बुझना गेल, एते सभकेँ-सभ भी.आई.पी. पहुँचल अछि। कातमे साइकिल लगा, एकटा हॉलमे लोक सबहक सुनगाम देखि भीतर घूसल। प्रोफेसर साहैबक नाओं पूछि गोनर लग गेल आ परिचए देलकनि। परि‍चए दइते बैसैक आदेश भेटलै। गीत गोनहार, नाच केनहार आ आनो आन कलाक प्रदर्शन केनहार सभ रहए आ रिहलसल होइत रहए। कनीए कालक पछाति गोनरसँ गीत गबबौल गेल, गोनरक सेलेक्सन नै हेबाक तँ कोनो सवाले नै रहए, आश्‍वासन भेट गेलै जे एकटा गीत गोनरो गाैत।
गीतक आयोजन शुरू भेल। एक-सँ-एक भी.आइ.पी. सभ पहँुचल छला। विशि‍ष्‍ठ अतिथि सभकेँ बैसैक बेवस्था मंचपर आ मंचक अगल-बगलमे कएल गेल रहए। ई आयोजन सार्वजनिक चंदा चिठ्ठासँ होइत रहए जइमे बड़का-सँ-बड़का पुजीबला लोकक धिया-पुता सभ भाग लेने रहए। सिवनाथ सहाय, जीतुराज जौहर आ स्थानीय सिविल अधिकारी सभ मुख अतिथिक रूपमे मंचपर आसीन भेल रहथि‍।
गायन, वादन आ नृत्य ई तीनु संगीत छी एकर प्रस्तुति रसे-रसे हुअ लगल। हर-एक आदमी जे बाजि‍ सकैए ओ गाइबो सकैए किएक तँ गायन बोलीएक एकटा उन्नत रूप छी। मुदा नव-सिखुआ गाबैया लेल समान रूपसँ निर्देशन आ निअमित रूपसँ अभ्यास जरूरी होइत अछि, जे बेसी-सँ-बेसी बच्चा सभमे ओतेक नै छन्‍हि‍। गायन एकटा एहेन काज छी जइमे स्वरक सहायतासँ संगीतमय ध्वनि‍ निकालल जाइत अछि। सुवेवस्थित ध्वनि‍ जे रस दैत अछि आ रसक अनुभूति करबैत अछि वएह संगीत कहबैत अछि‍। ऐ कलाक प्रदर्शन युद्ध, उत्सव, प्रार्थना आ भजनक समए मनुखक द्वारा गावन आ बजावनक माध्यमसँ कएल जाइत अछि। जे गाबैए ओकरा गबैया, जे नाचै ओकरा नचनियाँ आ जे बजबैए ओकरा बजनियाँ कहल जाइए।
प्रोग्राम होइत-होइत अदहा राति बीति‍ गेल मुदा अखनि‍ धरि गोनरकेँ मौका नै भेटल। बखत केर पहिया बढ़ैत गेल आ राति दू बाजि‍ गेल। विशि‍ष्‍ठ अतिथि सभ घर दि‍स बिदा भेला, दर्शको सभ रसे-रसे जाए लगल, तब जा कऽ गोनरक नाओं एलोन्स कएल गेल। गोनर स्टेजपर आएल। गोनरक मुँहसँ राग लयात्मक रूपसँ बेवस्थित भऽ संगीतरूपी लहरि‍ समुद्रक ज्‍वारि‍ जकाँ पसरए लगल। जइ प्रस्तुतिमे कलाक प्रदर्शन हुअए आ जइ कलाकेँ संगीत या मनोरंजन कहल जाए, गोनरके कंठसँ वएह सुरीली कंठाध्वनि‍, ओहिना उत्पन्न हुट लगल जेना वाद्ययंत्रसँ सुसज्जित घ्वनि‍ निकलैए। 
जे सभ प्रोग्राम छोड़ि‍,़ घर दिस बिदा भेल रहए, ऊहो ओतै ठमकि‍ गेल, डेग पाछू खींचए लगलै, सभ आपस आबए लगल आ जेकरा घरपर अबाज जाइत रहए, ओकराे जिज्ञासा हुअ लगल जे के एहेन गवैया छी आ केतक छी? किछु वि‍शि‍ष्‍ठ मेहमान सभ सेहो घूमि आएल छला। गोनरक गाैला पछाति सभ हिनका लग बजा परिचए-पात पुछए लगल आ प्रसंशा सेहो करए लगल। गोनरकेँ आशा जगल जे कियो हिनका मदति‍ करथि।  
जौं शुद्ध मनसँ भगवानकेँ यादि‍ कएल जाए तँ भगवानो कोनो रूपमे दर्शन देबे करै छथि‍न। वएह भेल, जीतुराज जौहर टी.वी कलाकार, गोनरकेँ आश्‍वासन देलकनि-
दू महिना बाद अहाँ दिल्ली आउ, ओतए संगीतक ऑडिसन छै।
गोनर हर्षित भऽ गेल आ जोर-सोरसँ ऑडिसनक तैयारीमे लगि‍ गेल।

 
लेखक- ललन कुमार कामत
सम्‍पर्क-
गोल इंग्‍लि‍श गार्डेन सह ललन आर्ट

निर्मली (सुपौल)

Monday, June 16, 2014

अप्‍पन-बीरान

जगदीश प्रसाद मण्‍डल
जनम : ५ जुलाइ १९४७ ई.मे
पिताक नाओं : स्व. ल्‍लू मण्‍डल
माताक नाओं : स्व. मकोबती देवी
पत्नी : श्रीमती रामसखी देवी।
मातृक : मनसारा, भाया- घनश्यामपुर, जिला- दरभंगा
मूलगाम : बेरमा, भाया- तमुरिया, जिला-मधुबनी, (बिहार) पि- ८४७४१०
मोबाइल : ०९९३१६५४७४२, ०९५७०९३८६११, ०९९३१७०६५३१
-पत्र : jpmandal.berma@gmail.com
शिक्षा : एम.. (हिन्‍दी आ राजनीति शास्‍त्र) मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर साहित्‍यमे मनुखक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि।
सम्‍मान : गामक जिनगी लघुकथा संग्रह लेल विदेह समानान्‍तर साहित्‍य अकादेमी पुरस्कार २०११क मूल पुरस्‍कार आ टैगाेर साहित्‍य सम्‍मान २०११; तथा समग्र योगदान लेल वैदेह सम्‍मान- २०१२; एवं बाल-प्रेरक विहनिकथा संग्रह ‘‘तरेगन’’ लेल बाल साहित्‍य विदेह सम्मान२०१२ (वैकल्‍पिक साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार रूपेँ प्रसिद्ध) प्राप्‍त।  
साहित्यिक कृति :  
उपन्‍यास : () मौलाइल गाछक फूल (२००९), () उत्‍थान-पतन (२००९), () जिनगीक जीत (२००९), () जीवन-मरण (पहि‍ल संस्‍करण २०१० आ दोसर २०१३), () जीवन संघर्ष (पहि‍ल संस्‍करण २०१० आ दोसर २०१३), () नै धाड़ैए (२०१३), () बड़की बहिन प्रकाशित। () सधबा-विधवा तथा () भादवक आठ अन्‍हार शीघ्र प्रकाश्‍य।
नाटक : () मिथिलाक बेटी (२००९), () कम्‍प्रोमाइज (२०१३), () झमेलिया बिआह (२०१३), () रत्नाकर डकैत (२०१३), () स्वयंवर (२०१३) प्रकाशित।
लघु कथा संग्रह : () गामक जिनगी (२००९), () अर्द्धांगिनी (२०१३), () सतभैंया पोखरि (२०१३), () उलबा चाउर (२०१३), () भकमोड़ (२०१३), () पतझार, () अप्‍पन-बीरान अप्रकाशि‍त।
विहनिकथा संग्रह : () बजन्‍ताबुझन्‍ता (२०१३), () तरेगन (बाल-प्रेरक विहनिकथा संग्रह) (२०१० पहि‍ल संस्‍करण, २०१३ दोसर संस्‍करण)
एकांकी संग्रह : () पंचवटी (२०१३)
दीर्घ कथा संग्रह : () शंभुदास (२०१३)
कविता संग्रह : () इंद्रधनुषी अकास (२०१३), () राति‍-दि (२०१३), (३) सतबेध अप्रकाशि‍त।
गीत संग्रह : () गीतांजलि (२०१३)‍, () तीन जेठ एगारहम माघ (२०१३), (३) सरिता (२०१३), (४) सुखाएल पोखरि‍क जाइठ (२०१३)

अप्‍पन-बीरान




आने गाम जकाँ हरि‍हरपुरो। स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन जहि‍ना सभ गाममे तहि‍ना हरि‍हरपुरोमे। ओना पाँच सए परि‍वारक गाम मुदा गामक जमीन, गाछी-कलम आ पोखरि‍क चौथाइओ हि‍स्‍सापर गौआँक अधि‍कार नै। बारह आनासँ ऊपरे सम्‍पति‍पर अनगौआँ जमीनदारक लड़ो-जड़ आ माशोक अधि‍कार तँ अछि‍ए। आजादी भेला पछाति‍ लगानक वसूली जमीन्‍दारक हाथसँ नि‍कलि‍ गेल मुदा जमीनपर अधि‍कार तँ रहबे कएल। गौआँक घर-घराड़ीक संग कि‍छु गोटेक हाथमे कि‍छु जमीनो वेलगानक चलैत घराड़ी आ मालगुजारी देने खेत। मुदा बारहसँ चौदह आना परि‍वारकेँ मात्र घराड़ीएटा। तँए कि‍ गामक जमीन गौआँक कहि‍यो नै रहल, से बात नै। मालगुजारीक चलैत साले-साल नीलाम होइत गेल आ गौआँक जमीन छि‍नाइत गेल। जइसँ गामक बारह आनासँ ऊपरे जमीन अनगौआँक हाथमे चलि‍ गेल! गौआँ खेति‍हर कि‍सान नै बटेदार कि‍सानो आ बटेदार बोनि‍हारो बनि‍ रहि‍ गेल, अधि‍कांश बोनि‍हार। मुदा जेना-तेना आ कमा-खटा कऽ गौआँ बहरबैयाक सभ जमीन हथि‍यौलक। जेना-तेना ई जे कि‍छु जमीनपर वकास्‍तक झंझटि‍ तँ कि‍छुपर सि‍कमी बटाइक, तँ कि‍छु जमीन कीनि‍ओ कऽ गौआँ अनगौआँकेँ गामसँ हटौलक। बहरबैयाकेँ हटि‍ते गौआँ नमहर साँस छोड़लक। गौआँक हाथसँ जमीन ससरैक अनेको कारण भेल। तइमे कि‍छु मालगुजारी आ कि‍छु समाजक जाल-फाँस मुख्‍य रहल। सामाजि‍क जालो-फाँस अनेक रंगक रहल मुदा मुख्‍य रहल मरला पछाति‍क काल्‍पनि‍क दुनि‍याँक बेवहार। काल्‍पनि‍क बेवहार ई जे मुइला पछाति‍क खर्चक जे वि‍धि‍-वि‍धान रहल ओ समाजक रीढ़केँ तोड़ि‍ देलक! समाजक एहेन दबाब रहल जे खेतो-पथार खुशीसँ बेचबैत छल। एक तँ गामक लोकक हाथमे गामक सम्‍पति‍ नै, तैपर प्राकृति‍क प्रकोप! ओना तीन रंगक समए मुख्‍य रूपसँ छल मुदा तीनूमे सेहो तीन-तीन-चरि‍-चरि‍ रंगक समए भेल। एक भेल जे अनुकूल मौसम, अनुकूल मौसमक अर्थ भेल जे गोटे साल एहेन होइत छल, अखनो होइए, जे बारहो मास अनुकूल समए बनैत छल। कोन समए केहेन हवा चलत, कोन समए केहेन गरमी पड़त आ बरसातक केहेन रूप-रंग रहतै। दोसर तरहक समए बनैए, रौदि‍याह। जइ साल प्रति‍कूल प्रकृति‍ रूप पकड़लक तइ साल सुसमए-कुसमए बनए लगैत छल, एक रौदी दोसर दाही। ने रौदि‍याहक ठेकान आ ने दाहीक कोनो ठेकान। गोटे साल शुरूहेसँ समए बगदल जे अन्‍त धरि‍, रौदीओ आ बरसातो लदने रहि‍ गेल! जइसँ मनुखसँ लऽ कऽ मालो-जाल आ गाछो-बि‍रि‍छकेँ तबाह कऽ दइए। जे मेहनती कि‍सानकेँ मन तोड़ि‍ दइए। दोसर समए भेल जे अगतामे बिगड़ि‍ कम-बेसी मध्‍यसँ सुधरि‍ जाइए। आ तेसर भेल जे शुरू-मध्‍य बि‍गड़ल रहल आ अन्‍तमे सुभि‍तगर भेल। प्रकृति‍क ई खेल सभ दि‍नसँ रहल, अखनो अछि‍।
ओना स्‍वतंत्रता आन्‍दोलनमे १९३५ इस्‍वीक पछाति‍ जे गामक लोकक मनसूबा जगल ओ धीरे-धीरे पश्‍त होइत गेल। पश्‍त ई जे स्‍वतंत्रता संग्रामक मंचपर अवाज उठल जे गामक जमीन गौआँकेँ हेतै, ओकराे खेती लेल साधनक ओरि‍यान हएत आ नीक जकाँ उपजौल जाएत। जहि‍ना मनुख लेल पानि‍क जरूरति‍ अछि‍ तहि‍ना मालो-जाल आ गाछो-बि‍रि‍छ लेल। ओना अपन इलाका पहाड़ी नदीसँ छारल अछि‍, जे कि‍छु एहेन अछि‍ जइमे बारहो मास पानि‍ चलैए, कि‍छु एहेन अछि‍ जे छहमसि‍या छी आ कि‍छु तीनमसि‍या छी। मुदा अबैत गेल बहैत गेल, अँटकबैक कोनो जाेगाड़ नै भेल! देशेक भीतर पंजाबो कृषि‍ प्रधान राज्‍य  छी। जेतेक इंच बरखा अपना सबहक हि‍स्‍सामे अछि‍ ओते पंजाबक हि‍स्‍सामे नै छै, मुदा खेतीक मूल साधन पानि‍केँ ओ कृत्रि‍म रूपे बनौलक। हम सभ ढोलके-हरि‍मुनि‍याँपर अपन सम्‍पन्नता गबैत रहलौं, अखनो गबै छी। जँ से नै रहल तँ दुनि‍याँक केहनो भू-मध्‍य सागरीय जलवायु कि‍ए ने हो मुदा जेते रंगक खेतीक उपज, चाहे अन्न हुअए आकि‍ तीमन-तरकारी, फल-फूल हुअए आकि‍ गाए-महिंस, उपजैक अपना इलाकामे शक्‍ति‍ छै, ओ दुनि‍याँमे केतौ ने अछि‍‍! तँए, मि‍थि‍लांचलक धरती शक्‍ति‍ स्‍वरूपि‍णी धरती अछि‍। जँ अपन बात अपने नै बूझब तँ ऐ दौड़ा-दौड़ी दुनि‍याँमे केकरा ओते पलखैत छै जे अहाँक बात बूझि‍ तलपट मि‍ला देत। लोक सि‍नेमा स्‍टारक पंजी, खेलवाड़ि‍क पंजी बनौता आकि‍ अपन-बाप दादा आकि‍ अपना गाम-घरक।
हरि‍हरपुरेक दू भाए-भैयारीक परि‍वारमे सुपतलाल आ कुपतलाल। ओना अखनि‍ ओ परि‍वार सभसँ नीक गाममे मानल जाइए मुदा छेहा बोनि‍हार परि‍वारमे दुनू भाँइक जनम भेल। बोनि‍हार परि‍वार रहि‍तो माए-बाप सुति‍हार, तँए आने गरीब परि‍वारक बच्‍चा जकाँ रहि‍तो, केना बच्‍चा  सि‍यान चेतन बनि‍ जि‍नगी बि‍तौत, यएह सुति‍हारी दुनू परानीक।
बच्‍चेसँ दुनू भाँइ मेहनती जे पि‍ताक देखा-देखीसँ सीखने। बहरबैयाक धि‍या-पुता जकाँ प्‍लाष्‍टि‍कक खेलौना नै जे खलि‍ये फटक्का फोड़त, घरक वस्‍तुक खेलौना! ओना बहरबैयाक हाथसँ गौआँक बीच आएल सम्‍पति‍सँ नमहर नि‍साँस छुटल मुदा तेकर (जमीनक) बादो रंग-रंगक बि‍हंगरा अछि‍ए। एक तँ अहुना घटबी होइत-हाेइत जमीन करमघट्टू बनि‍ गेल, तैपर घटबी रोकैक उपए नै भेने लोकक मनो घटए लगल! केना ने घटत? अहीं कहू जे धान रोपैक अछि‍, खादक पाइ नै अछि‍, रोपैक ताक सम्‍हारब आकि‍ खादक प्रति‍क्षामे...। कारण खाली वि‍चारे नै अर्थक अभाव सेहो सहयोगी बनल। खेतक संग मौसमी पानि‍ आ उर्वराशक्‍ति‍ बढ़बैले छाउर-गोबरक संग अपन पुरान पद्धति‍क बीज।
अदौसँ अपना ऐठामक गृहपति‍ जहि‍ना घरक सभ कलासँ सम्‍पन्न छला तहि‍ना दुनि‍याँक बीच अपन कलाकारी रखि‍तो छला। खेतीक पूर्णताक बोध छेलनि हेन। जे केना अन्न उपजबैत छला, आकि‍ तीमन-तरकारी, फल-फलहरी, सबहक बीजसँ फल धरि‍क बोध छेलनि‍। ओना एक रसाह लूरि‍केँ जँ समैनुकूल लोहाक ओजार जकाँ पनि‍औल नै जाएत तँ ओ भोति‍या लगत। भोति‍याइत-भोति‍याइत एते भोति‍या जाएत जे अपन चीने-पहचीन समापत कऽ लेत। मात्र घर-घराड़ीबला सुपतलाल पि‍ताक बतौल बाट पकड़ि‍ पोसि‍या गाए बच्‍चेसँ पोसब शुरू केलक। परि‍वारक खर्चक भार पि‍तापर। जहि‍ना वि‍द्याध्‍ययन लेल माता-पि‍ता बच्‍चाकेँ अपना लेल समए दइ छथि‍ तहि‍ना सुपतोलाल दुनू भाँइले पि‍ता देलखि‍न। जहि‍ना पाँच बरख चढ़ि‍ते गारजनोक नजरि‍ आ आरो अभि‍भावकक नजरि‍ वि‍द्यालय दि‍स बढ़ैत तहि‍ना सुपतोलालक पि‍ताक नजरि‍ गेलनि‍। आजुक समए जकाँ तँ नै जे आन-आन देशक बोली-चाली नै सीखब तँ कमा कऽ खाएब केतए! ओना दुनू भाँइमे उमेरे तीन बर्खक अन्‍तर, मुदा संगी लेल उमेर ओते महत नै रखैत जेते संगी बनि‍ काज संगौड़ि‍ कऽ चलैक लूरि‍ रखैए। पनरह बरख पुड़ैत-पुड़ैत सुपतलाल अपन पोसल गाइक सेवासँ पाँच कट्ठा जमीन कीनलक। सभ वस्‍तुक दाम कम तँए तीनि‍येँ रूपैए कट्ठा पाँचो कट्ठा जमीन कीनलक। जइ दि‍न पि‍ता पाँच कट्ठा जमीन बेटाकेँ देखलनि‍ तही दि‍न परि‍वारक मन भरैत देखि‍ भगवानकेँ प्रणाम केलनि‍। आजुक महगीक दौड़मे कोन वस्‍तुक मूल्‍य आगू मुहेँ दौग रहल अछि‍ आ कोन पाछू पड़ि‍ रहल अछि‍, ई तँ बुझए पड़त। ओना मोटा-मोटी सभ वस्‍तुक मूल्‍य -पाइक रूपमे- बढ़ि‍ रहल अछि‍। तँए अपन उपारजि‍त पूजीकेँ धरगर नै बनाएब तँ चि‍लहोरि‍या ऊपरेसँ झपटि‍ लेत। झपटि‍ कि‍ लेत जे अपनो दि‍ल खोलि‍ झपटबऽ चाहै छी। आन गाम जकाँ ने हरि‍हरपुर अट्ठारह गंडा पोखरि‍बला आ ने कोसी-कमलाक भरनि‍ कएल गाम जकाँ, जे एकोटा पोखरि‍ कुम्‍हरबैओले नै। तइ दुनूसँ हटि‍ हरि‍हरपुरमे तीन भागक पोखरि‍ कमलाक भरनि‍ भऽ गेल आ एक भाग तीनू पोखरि‍ बँचल अछि‍। ओना पहि‍ने हरि‍हरोपुरबलाक वि‍चार रहनि‍ जे गाम चपगर अछि‍ तँए जँ गामक चौथाइ पोखरि‍ खुना जाए तँ गामक मुँह-कान नीक भऽ जाएत। गामक मुँह-कान की? यएह ने जे वासभूमि‍मे पानि‍क जमाव नै हुअए, बरसाती मासक तरकारी लेल चौमास हुअए, फल-फलहरीक औसतन उपजैक जमीन होइ, तहि‍ना आरो-आर। मुदा गामक पंजी बनबैत-बनबैत एतए आबि‍ अँटकि‍ जाइ छेलनि‍ जे अठारह गंडा पोखरि‍ केते रकबाक गामक। तैसंग दोसर प्रश्न उठि‍ जान्‍हि‍ जे सौंसे गाममे जेते पानि‍क जरूरति‍ अछि‍ ओतेकेँ पहुँचाएब। मुदा गाममे बेसी मुँहगर-कन्‍हगर नै, तँए दसे-बारहटा पोखरि‍ खुनौलनि‍।
पनरह बरख पुरि‍ते सुपतलाल हरवाहि‍ सि‍खलक। हरवाहि‍ सीखैक वि‍द्यालय गामे-गाम, बाधे-बाध। जइ हरवाह लग जाउ, स्‍वेच्‍छासँ हरवाहि‍ सि‍खा देता। अपन गाइक बच्‍चासँ बड़द बनौने छल। खेतीक भार सुपतलाल अपना ऊपर लेलक आ कुपतलालकेँ गाइक भार सुमझा देलक। एकर माने ई नै जे काजमे कटा-कटी भेल। हर काजमे जि‍म्‍मेदारक खगता होइ छै, तइ हि‍साबे। ओना दुनू काज परि‍वारेक भेल तँए परि‍वारक सभ काजपर सभकेँ नजरि‍ रखए पड़त, नै तँ कमी अबैक संभावना बढ़ैक शंका अबैत।
हरवाहि‍ सि‍खते सुपतलालक परि‍वारमे आमदनीक तीनटा बाट खुजल। पहि‍ल हरवाहि‍सँ बाहरक आमदनी, बड़द आ खेति‍हरकेँ संगी बनने खेतीक संभावना बढ़ि‍ते अछि‍। तहूमे खेतक मालि‍क बहरबैया। ओ सभ कि‍ ओहेन भठियाह थोड़े छथि‍ जे एतबो ने बुझता जे बटाइ खेत ओकरे ने देब नीक जेकरा समांगक संग हरो-बड़द छै। ई तँ नै जे कन्‍याकुमारीसँ कश्‍मीर आ कश्‍मीरसँ अरूणाचल धरि‍ सड़क बनाएब मुदा माटि‍क काज छि‍ट्टा-पथि‍यासँ होइ! भाय, छि‍ट्टा-पथि‍याक काज तँ गामे-घरमे तेते अछि‍ जे पार नै लगि‍ रहल अछि‍ आ..., टि‍टही जकाँ मेघ टेकब! गाम-घरमे अखनो ओहेन आँगन-घरक कमी नै अछि‍, जे आँगनसँ दरबज्‍जा  आ दरबज्‍जासँ आँगन जाइ-अबैमे नाहक जरूरति‍ पड़ैए‍। कन्‍याकुमारीसँ कश्‍मीर-अरूणाचल सड़कक जरूरति‍ अछि‍, मुदा गाम-घरक बाघक खेतीक जमीन ओहेन अछि‍ जे दसो-बीस बीघा जमीन समतल नै अछि‍ जे भारी मशीनक उपयोग हएत।
गाममे दाही भेल। तेहेन दाही भेल जे गामक उपजावाड़ी तँ गेबे कएल जे बाधक घासो-पात सड़ि‍-गलि‍ गेल। अदहासँ बेसी गामक गाए-महिंस-बड़द मरि‍ गेल। ओना सुपतोलालक मरल मुदा खुटापर सातटा माल रहने पाँचटा बँचल। अगि‍लग्‍गीक पछाति‍, भुमकमक पछाति‍, रौदी-दाहीक पछाति‍ जहि‍ना पशुपति‍नाथक दर्शन आ अपन बेपार दुनू संगे होइत तहि‍ना बहरबैया खेतबला सभ एके-दुइए गाम पहुँचल। सुपतलालकेँ सुतरल। सुतरल ई जे ने स्‍थायी मनखप लेब आ ने उपजा देब। सालक मनखप लेलौं, समए खराप भऽ गेल, रौदी-दाही भेने अहाँक पूजी -खेत- तँ धोखरि‍‍ कऽ समुद्रमे नै चलि‍ गेल, मुदा हमर लगता तँ चलि‍ गेल। वि‍चारि‍ कऽ सुपतलाल पाँच बीघा जमीन एकटा माशसँ लेलक। अपन खेत, अपना जुति‍ए उपजाएब जे मन मानत सएह उपजाएब, उपजला पछाति‍ अनुमानि‍त कण निर्धारि‍त हएत, सबहक अपन-अपन नजरि‍ रहत। पाँचो बीघा गोरहा खेतमे कमो पानि‍ भेने गामक चारू भागक पानि‍ बोहि‍ कऽ चलि‍ अबैत, जइसँ बाधक जमीनसँ बेसी सुवि‍धा भऽ जाइत। सुपतलालक भाग जागल। मनखप बटाइसँ पहि‍ने सुपतलालकेँ अपन कीनल पाँचे कट्ठा जमीन मुदा ओ पाँचो कट्ठाकेँ बरहमसि‍या खेती जोगर बनौने। बरहमसि‍या ई जे तीनू मौसमक तीन फसल उपजैत। ओना हरि‍ अनंत हरि‍ कथा जकाँ तर्को-वि‍तर्कक अनन्‍त उत्तर छै। ईहो तँ भऽ सकैए जे बरहमसि‍या गाछीए लगौल जाए। मुदा प्रश्न तँ ईहो उठैए जे बरहमसि‍या ओकरा तँ नै कहबै जे सालमे एकबेर उपजा देत। मुदा तेकरा मानब उचि‍त हएत? उचि‍त तँ यएह ने जे बारहो मास ओइमे श्रम लगौल जाए आ बारहो मास उपज अबै। जँ से नै औत तँ खाली समैमे, जइ समए उत्‍पादन नै हएत, उपजौनि‍हार जीवि‍त केना रहत? तेकरो तँ उपयक जरूरति‍ अछि‍ए। खैर जे होउ, सुपतलाल अपन पाँचो कट्ठा जमीनकेँ धरोहर बूझि‍ उपजबए लगल। मध्‍यम कि‍सि‍मक जमीन। पाँचो कट्ठामे तरकारी उपजबए लगल। एतेक उपजा होइ जे अप्‍पन परि‍वारक भोजनक अदहाक संग नगदो-नारायण अबैत।
एक दि‍न दुनू भाँइ, सुपतलाल-कुपतलाल, घरक काज सम्‍हारि‍ गाम घुमैक वि‍चार केलक। रौदि‍याह समए दस बजेक पछाति‍ बाधमे लू चलए लगैत। ओ (लू) गामो-घर दि‍स एबे करैत। गाछ सबहक पत्ता झड़कि‍-झड़कि‍ अधसुखू बनि‍ गेल। सौंसे बाधमे केतौ हरि‍यरीक दरस नै। टोलसँ नि‍कलि‍ते दुनू भाँइ गामक बाध-बोन देखि‍ सि‍हरि‍ गेल। आगू बढ़ैक साहस नै भेल। कुपतलाल बाजल-
भैया, गाम बीरान भऽ गेल। जइ गामक माटि‍-पानि‍ मरि‍ जाएत, तइ गामक गाछ-बि‍रि‍छ आकि‍ जीवे-जन्‍तु केना ठाढ़ रहत?”
कुपतलालक प्रश्न सुनि‍ सुपतलाल बाँहि‍ पकड़ि‍ बाजल-
बौआ, से केना बुझै छहक?”
सुपतलालक प्रश्नक उत्तर दइले जेना कुपतलालक मन तर-ऊपर करए, तहि‍ना जेठ भायक पुछब सुनि‍ कुपतलाल बाजल-
भैया, जखनि‍ खेतमे अन्न आकि‍ आने उपजा नै हएत, तखनि‍ लोक केना जीवि‍त रहत? बि‍ना कोयला-पानीसँ तँ लोहा चलबे ने करैए आ मनुख तँ सहजे मनुख छी। लाखो रंगक परसाद पबैबला!
कुपतलालक ओजाएल जि‍ज्ञासा देखि‍ सुपतलाल बाजल-
बौआ, अपने दुनू भाँइ छी, आ दू दि‍यादि‍नी आँगनमे छथि‍। जहि‍ना चारू गोरेकेँ अपन-अपन जि‍नगी आ जि‍नगीक काज अछि‍। तहि‍ना ने सबहक छै। एककेँ नष्‍ट भेने पर्यावरण बि‍गड़ए लगै छै, जखनि‍ एक भागेक सभ नष्‍ट भऽ जाएत तखनि‍ की हेतै?”
हँ से तँ हेबे करैत।
अपना दुनू भाँइकेँ एतबे ने बुझैक काज छह। जँ अपन काजपर ठाढ़ हेबह तँ अदहा भक्‍त कमाल जकाँ हेबह, नै जँ बाँकि‍योहो अदहा पुरा लेबह तँ सोलहन्नी हेबह। जइसँ भेद-अभेद मेटा जाइ छै।
हँ, से तँ ठीके भैया!”
बौआ सुनह, जे बात हम बुझै छि‍ऐ ओ तोरा कहला पछाति‍ए ने तहूँ बुझबहक, तहि‍ना ने तोरो बात आ घरो लोकक बात सुनला पछाति‍ए ने अपनो बूझब?”
हँ से तँ ठीके!”
बौआ, आब तँ सहजे केते दि‍नसँ खेती करै छी, मुदा जहि‍या नहि‍योँ करैत रही तहि‍एसँ कोसी नहरि‍ सुनै छी जे गामे-गाम बनत, डैमसँ बि‍जली बनतै आ ऐठामक कि‍सानकेँ करखन्ना जकाँ चौबीसो घंटा खेतीक काज चलतै।
भैया, ई बहुत भेल। छोड़ह अगि‍ला गप। कान भरैत-भरैत तेना भरि‍ गेल जे काने बन्न भऽ गेल। दि‍न-राति‍ जे काजे करत आ खा-पी कऽ सुतत नै तँ भगवानसँ एकाकार केना हएत?”
धुर बुड़ि‍बक! अहि‍ना बुझै छीही, जहि‍ना कारखानामे चौबीसो घंटा काज छै तहि‍ना खेतीओमे अछि‍। खेतेक उपजासँ चौबीसो घंटा कारखाना चलैए। जँ पचपन खान चलबैए तँ पैंतालीस खेतो चलबैए।
कुपतलाल जेना अकछि‍ गेल। अकछबो केना ने करैत। ने ओते ओकरा समए छै आ ने समेटि‍ कऽ रखैक कोठी। बाजल-
भैया, जाबे अपन घड़ी-घंटा बजा अपना मंदि‍रमे पूजा नै करबह ताबे तक तेहेन-तेहेन घड़ी-घंटाक अवाज सुनैत रहबहक जे अनेरे कानमे तेते झड़ परतह जे काने झड़ा जेतह। काननी कामनी बनि‍ अनेरे औनाए लगतह।
कुपतलालकेँ अकछाइत देखि‍ सुपतलालक मन खुशी भेल। खुशी ई भेल जे भने समटल मन आ समटल बुधि‍ छै नै तँ अनेरे भरि‍ दि‍न तासपर बैस पाइकेँ कागत बना देत। जखने पाइ कागत भेल तखने अन्न-पानि‍, गाछ-बि‍रि‍छ, सोना-चानी सभटा पाइए बनि‍ जाएत। तखनि‍ कोन खगता छै जे खेतसँ धान उपजौल जाए? ओ तँ रस्‍तो-पेरा भऽ सकै छै।
गामक ओहेन परि‍वार सुपतलाल-कुपतलालक बनि‍ कऽ ठाढ़ भेल जे ओहेन स्‍थान जकाँ अद्भुत बनि‍ गेल, जैठाम हजारो मंदि‍रक बीच गोटे कोनो अद्भुत रहैए! छेहा कि‍सान परि‍वार। दुनू भाँइ सुपतलालो मानैत जे अनेरे गामक चक्कर-भक्करमे पड़ि‍ नीककेँ अधला कि‍ए बनाएब। ने दरबार धरब आ ने दरबारीलाल बनब। मुदा तँए कि‍ सुपतलाल गामकेँ छोड़ि‍ देलक। नै छोड़लक, गामक कि‍सान अखनो ठेकनगर कि‍सान बूझि‍ पूसा-ढोली, सबौरक कि‍सान-मेलामे गामक कि‍सानक संग जाइते अछि‍। सालो भरि‍क डायरी, खेती-वाड़ी करैक छोट- छोट  पुस्‍ति‍का, छोट-छोट खेतीक ओजार-पाती अनि‍ते अछि‍। ओना गौआँक संग सुपतलाल पुरि‍ते अछि‍ मुदा गाममे माटि‍, पोखरि‍, गामक जमीनक किस्‍म, जमीनक माटि‍ इत्‍यादि‍ नै भेने मन झुझुआइते रहै छै। गामक छक्कर-बक्करकेँ ओ धु-बन्‍हू छागर जकाँ बुझैत अछि‍‍। चाहे देवालयमे चढ़ाउ, चाहे भोजनालयमे! दुनू ठाम लेल तैयार। दुनि‍याँक वि‍परीत हवामे देखए पड़त जे कोनो देशक लोक चरि‍तवान अछि‍ तँ सरकारी महकमा चरि‍तहि‍न, आ केतौ सरकारी महकमा चरि‍तवान अछि‍ तँ लोक चरि‍तहि‍न। तँए कि‍ ओहेन नै अछि‍ जैठाम दुनू चरि‍तहीनो अछि‍ आ चरि‍तवानो? अछि‍! जैठाम अछि‍ तैठामक लोक जि‍नगीक ऊँचाइ छूबि‍ रहल अछि आ जैठाम नै छै‍, तैठाम धरतीक इर्द-गिर्द कोल्हूक बड़द जकाँ घूमि‍ रहल अछि‍! उपाध्‍याय आ आचार्यक भेद मेटा गेल अछि‍! देशक नदीकेँ जोड़ि‍ खेतीक पटौनीक सुवि‍धा बनौल जाए, बनौल जाए, मुदा लेबड़ाक सए रूपैआ जकाँ, कि‍छु ओइमे गेल, कि‍छु तइमे गेल, रूपैआ भेल गोल, एक्केबेर सभ कहि‍यौ ‘हरि‍बोल’। बि‍हारक समस्‍या कहि‍यो नै बुझल गेल जे खाली बि‍हारेक पनि‍चलाउ धारकेँ ढंगसँ पूबसँ पछि‍म धरि‍ जोड़ि‍ देल जाए आ समुचि‍त देख-रेख होइ तँ की‍ खेतीक समस्‍याक समाधानक एक कड़ी हएत की नै?
समए बीतल। अधउमेरेमे सुपतलाल बि‍मार पड़ल। एक तँ गाम-घरक जि‍नगी तैपर इलाजक नीक सुवि‍धा नै। आठे दि‍नक बि‍मारीक पछाति‍ सुपतलालक मन कनी-कनी धोखरए लगल। धोखरैत मनमे भेलै जे ऐ काँच माटि‍क देहक कोनो ठेकान अछि‍ जे कखनि‍ फूटि‍ जाएत। कुपतलालकेँ सोर पाड़ि‍ बाजल-
बौआ, हमर कोनो ठेकान नै छह, परि‍वारक सभ एकठाम बैसह, अपन हि‍साब तोरा सभकेँ दइए देबह। अनेरे मरैकाल माथपर एकटा बोझ चढ़ल रहत।
अखनि‍ धरि‍ कुपतलाल सुपतलालक ओहेन आज्ञापालक रहल जे, जे कि‍छु सुपतलाल कहतै ओतबे बुझैत आ ओतबे करैत रहए। जेना जेठ भायक प्रति‍ पूर्ण समर्पण। ओना फल अधला कुपतलालकेँ भेल। भेल ई जे कुपतलालकेँ कहि‍यो कोनो काजकेँ परखैक खगता नै भेल। जइसँ सभ काजक लूरि‍ रहि‍तो उजड़लहा-उपटलहा गामक इति‍हास नै बनि‍ सकल। केना बनैत? दुनि‍याँक इति‍हास गढ़नि‍हार व लि‍खनि‍हारक मने उचटि‍ गेलनि‍ जे हमरो गाम-घर अही दुनि‍याँमे अछि‍।
परि‍वारक सभ समांग एकठाम भेल। ओना जइ डरे सुपतलाल भीन भेल सएह हि‍स्‍सामे आबि‍ गेलै। मुदा परि‍वार तँ परि‍वार छी जाधरि‍ एक-दोसराक दुख-दर्द, नीक-अधला दोसर नै बूझि‍ अपन बनौत ताधरि‍ परि‍वारक गाड़ी केना ससरत। अबि‍ते पत्नी बजली-
सभ दि‍न ओछाइने पकड़ने रहब आकि‍ उठबो करब?”
पत्नीक बात सुनि‍ सुपतलाल कि‍छु ने बाजल। जहि‍ना रणभूमि‍ जाइसँ पहि‍ने सि‍पाही बाटेमे घेरा जाइए तहि‍ना मन घेरा गेल। जि‍नगीक संगी। जँ गाड़ीक एक पहि‍या टुटने वा जुता-चप्‍पलक एक संगी वि‍रहेने केतौ फेका जाइए, तहि‍ना सुपतलालक मन घेरा गेल। सुपतलालकेँ गुम-सुम देखि‍ कुपतलाल बाजल-
भैया, राजा-दैवक कोनो ठेकान नै छै, जेते दि‍न दुनू भाँइ संगे परि‍वारक गाड़ी जोतलह से जोतलह। जँ तूँ मरबह तँ हमरो मरले बुझि‍यहऽ। लूरि‍ ने हमरा देलह, बुधि‍ तँ तोहीं ने नेने जेबह तखनि‍ खाली टीन ढनढ़नौने कथी हएत?”
सुपतोलालक आ कुपतोलालक बेटा बी.ए.क वि‍द्यार्थी। तीन मास पछाति‍ परीछा हेतै, स्‍नातक भऽ जि‍नगी शुरू करत। अपन अभार व्‍यक्‍त  करैत सुपतलाल बेटो आ भाति‍जोक (सुगमलाल आ कुगमलाल) बीच बाजल-
बाउ, अखनि‍ धरि‍क परि‍वारक गाड़ी खिंचलौं। जँ बि‍मारीसँ छुट्टी भेटत तैयो नीक, जँ नै भेटत तैयो नीक। जे समए बीतल ओ अहाँ दुनूक बीच अनुकूलताक समए भेल। जे आगू अछि‍ ओ प्रति‍कूलताक भेल। अपनो मन कहैए जे स्‍नातक बना परि‍वारकेँ ठाढ़ करी, अपना जनैत करैत एलौं, एतेक तँ जरूर गारंटी देब जे जहि‍यासँ परि‍वारक गाड़ी कन्‍हापर उठा घीचलौं, मनुख बनि‍ जे आएल ओकरा मरए नै देलि‍ऐ। मुदा दुनू भाँइकेँ देखि‍ एते तँ मन खनहन अछि‍ए जे अगि‍ला गाड़ी खिंचनि‍हार परि‍वारमे भाइए गेल। केते परि‍वार गाममे अछि‍ जे अहाँ सभ जकाँ कौलेजमे पढ़लक। मुदा अपन वि‍चार, अपन काज अनकापर लादैक नै अछि‍, देखबैक अछि‍, कहैक अछि‍। बस एतबे कहब।
सुगमलाल बाजल-
बाबू, अहाँ वि‍चारे की होय?”
सुगमलालक प्रश्न सुनि‍ सुपतलाल जि‍ज्ञासाक नजरि‍सँ कुगमलाल दि‍स तकलक, ऊहो तँ कौलेजेमे पढ़ैए। कि‍छु तँ अपनो बात जोड़त मुदा अदौसँ अबैत परि‍वारक जेठ-छोटक वि‍चारक संग वि‍चार नै मि‍लेबाक चलनि‍ रहल। अपन अलग प्रश्नक रूप मानल गेल। मुदा से नै बापेक बेटा कुगमलालक मनमे उठलै, दुनू भाँइ वि‍चारि‍ कऽ करब। तँए कोनो वि‍कार मनमे नै। सुपतलाल बाजल-
बौआ, समैक संग चलैक अछि‍। बहुत आशासँ दुनू भाँइ तोरे सभले खेत कीनलौं। सम्‍पति‍ अरजलौं। जँ एकरा छोड़ि‍ चलि‍ जेबह तँ अनका आड़ि‍-धुरमे चलि‍ जेबह। बेसी अखनि‍ नै कहबह अखनि‍ तोरा अपन परीछाक तैयारी करैक छह। मुदा एते जरूर कहबह, जे तोरे सभ दुआरे अपन खेत बनेलौं, नै तँ ओही समैमे बँटैत अबि‍तौं तँ जम्‍मे ने होइत। मुदा जे भेल, खेती जे साधनक अभावमे केलौं, ओकरा पुरबैत, गाइक जे पुरना खाँढ़ अछि‍ ओकरा समायानुकूल बनबैत चलबह, तँ कि‍सानक खति‍यान बना कि‍सानक देश कहेब‍ह, नै तँ सरकारी खजाना जकाँ तमादी हेतह! सुनि‍ लैह, खेत ओहेन वि‍शाल गाछ पैदा करैक शक्‍ति‍ रखैए, जे जेते ओइमे खाद-पानि‍ देल जाएत ओ वि‍शालसँ वि‍शालतम बनैत जाएत। तँए लक्ष्‍मण रेखाक बीच रहि‍ जाधरि‍ चलैत रहबह ताधरि‍ लंकाक कोन बात जे लंकापति‍ओ बुते कि‍छु ने हएत।  
सुगमलाल-
तखनि‍?”
तखनि‍ यएह जे समाजेक लत्ती लतरैत अमरलत्ती जकाँ दुनि‍याँमे लतरि‍ जाइए, मुदा पहि‍ने ओकर जड़ि‍ बि‍टि‍या कऽ पकड़बऽ तखने ने?”¦¦¦


०१ मई २०१४