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Saturday, April 5, 2014

बाल साहि‍त्‍य लघुकथा- भोँटक गहमी

बाल साहि‍त्‍य

लघुकथा- 

भोँटक गहमी



पाँच बर्ख पहि‍लुका भोँटक बात कि‍छु गोटेकेँ मनो रहल आ अधि‍क गोटे बि‍सरि‍ए गेला। मनो रहैक कारण छेलै आ बि‍सरबोक कारण अपन-अपन छेलै। कि‍ए लोक बि‍सरि‍ जाएत जे हमरे भोँटपर सरकार नै बनल। नै बनैत तँ करोड़क लाभ केना भेटल, मुदा अधि‍क लोक ओहने जेकरा भोँटक अधि‍कार तँ छै, चीन-पहचीन नै छै। दू देशक सीमान परहक पगलखन्ना जकाँ, केकरो नै दुनूक। भलहिं पगलपनी दुआरे दुनूमे सँ केकरो मोजरे कि‍ए ने नै दइत होइ।
रंग-रंगक मुखौटा, रंग-रंगक रूप बना एबे करत। मुखौटा ई जे कि‍यो सम्‍प्रदायकेँ अगुऔत कि‍यो पछुऔत मुदा रहत दुनू काते-कात। जँ से नै तँ पंथ नि‍रपेक्ष जीवन शैली छि‍ऐ आकि‍ भाषण? जँ जि‍नगी भाषण बनि‍ जाए आ लोक नै भँसियाए तँ भाषणे की भेल। कि‍यो जाइति‍क ढोल पीटि‍ सम्‍प्रदाय छि‍पबैत तँ कि‍यो ओकरे उजागर करैत, मुदा रहैत दुनू अगले-बगले। खैर जे होउ, मुदा छी तँ ओहन पावनि‍ नि‍सचि‍ते, जेकरा कि‍यो नि‍ष्‍ठा बूझि‍ करत कि‍यो पावती[1] बूझि‍ करत। तँ कि‍यो खेल बूझि‍ खेलाएत। खेल बूझब ई भेल जे देशक चक्की कोन दि‍स घुमए चाहैए। बामी आकि‍ दहि‍नी।
रंग-रंगक हवा-वि‍हाड़ि‍क बात सुनि‍ मोहन, दसम कि‍लासक वि‍द्यार्थी ठाढ़ भऽ कि‍लासमे बाजल-
मास्‍सैव, ओना पछि‍ला भोँट नीक जकाँ मनो ने अछि‍, मुदा ऐबेर तँ बहुत गहमा-गहमी देखै छि‍ऐ, से की?”
कुरसीपर बैसल शि‍क्षक-श्‍यामचरण मोहनक प्रश्न सुनि‍ मने-मन वि‍चार करए लगला। प्रश्नकेँ छोट मानल जाए आकि‍ नमहर। प्रश्न तँ बि‍नु ओर-छोरक अछि‍। देशक सरकार बनत। जे जन-जनसँ दुनि‍याँ धरि‍क सम्‍बन्‍ध बनबैक कड़ी हएत, तैठाम दसमा कि‍लासक अबोध बच्‍चाकेँ केना बुझौल जाए। मुदा जँ शि‍क्षकक आगू बच्‍चाक प्रश्नकेँ अनदेखी कएल जाए, तँ एकरा के उचि‍त कहत। लगले मन बदललनि‍, नीक हएत जे ओकरे (मोहने) टा सँ नै, आनो-आन बच्‍चा सभसँ आरो-आरो प्रश्न उठबाएब नीक हएत, जँ अपने उत्तर देब शुरू करब आ प्रश्नकर्ताक नजरि‍मे जे हएत, भऽ सकैए जे नजरि‍ नै जाए, तखनि‍ दुधमुहाँ बच्‍चाक मुँह घीमुख केना भेटत? आ जँ नै भेटत तँ अनेरे शि‍क्षक बनि‍ बाल-बोधकेँ ठकै कि‍ए छि‍ऐ। आँखि‍ खि‍ड़बए लगला। जेना आँखि‍क जोतसँ तीर छि‍टकैत होन्‍हि‍, तहि‍ना रंग-रंगक उलटा तीर आबए लगल। सोहन उठि‍ कऽ बाजल-
मास्‍सैव, अपन देश जनतंत्र छि‍ऐ, तखनि‍ कि‍ए प्रधानमंत्री के बनत से पहि‍ने लोक गर्द करै लगैए?”
कुरसीपर बैसल श्‍यामचरण सोहनक प्रश्न नोट करैत बजला-
बौआ, अखनि‍ सवाल अबैक समए अछि‍, तँए तोहर सवाल कागतपर लि‍खि‍ कऽ रखि‍ लेलि‍अ। पछाति‍ बुझा देबह।
सोहनक प्रश्नक दर्ज सुनि‍ भागेसर उठि‍ बाजल-
मास्‍सैव, लाउडस्‍पीकरपर प्रति‍बंध लगि‍ गेल अछि‍, मुदा गाड़ीक-गाड़ी बाजा बाजि‍ रहल अछि‍ से एना कि‍ए अछि‍?”
मुस्‍की दैत श्‍यामचरण बजला-
कि‍ए अछि‍ कि‍ए नै रहत, ई वि‍चारणीय प्रश्न छी। हमर संसद तँ यएह भेल, तोहीं सभ ने काल्हि‍ पटना-दि‍ल्‍ली संसदोमे बैसबहक, कानूनो बनेबहक। आ कानून बना लागुओ करबहक।
श्‍यामचरणक वि‍चार सुनि‍ सौंसे कि‍लासक वि‍द्यार्थी थोपड़ी बजबए लगल। जेना देव मंदि‍रमे भजनमे लीन भक्‍त थोपड़ी बजबैत बि‍सरि‍ जाइए जे भजनक कड़ी कखनि‍ खतम भेल। कि‍छु गोटे थोपड़ी बनो केलक आ कि‍छु गोटे बजबि‍ते रहल। थोपड़ीक स्‍वागत पाबि‍ दुनू हाथसँ बच्‍चाक थोपड़ी बन्न करबैत बजला-
आइ भरि‍ प्रश्न रखैक छह, काल्हि‍ सबहक बीच वाद-वि‍वाद करेबह, जँ समए बँचत तँ काल्हि‍ये नै तँ परसू, छुटल-बढ़ल सभ सवालक रस्‍ता बुझा देबह। अखनि‍ एतबे बूझि‍ लैह जे साम्राज्‍यवादी जालमे फँसल जा रहल छी।¦¦¦
२४ मार्च २०१४


[1] पौनाइ

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