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Sunday, April 6, 2014

लघुकथा- ''सि‍रमा''

सि‍रमा




बंगालक शान्‍ति‍ नि‍केतनसँ तीन दि‍न एला पछाति‍ बारह बर्खक मुरारी बाबा जगदम्‍बक संग तेना घूलि‍-मि‍लि‍ गेल जेना बाँसक पोर मि‍लल रहै छै। ओना गाममे बाबा छोड़ि‍ दोसर कि‍यो नै, कारण रहै बंगालमे रहने जहि‍ना घेरामे पड़ल गाछ ओतबे दूर कुदै-फनैए, तहि‍ना अनभुआर समाजक बीच सेहो गामे अनभुआर भऽ गेल रहै। सात बर्खक पछाति‍ मुरारी माए-बापक संग गाम आएल। बाबा लेल देहक वस्‍त्रक संग ओछाइन-बि‍छाइन सेहो अनलक अछि‍। सि‍रमाक संग चद्दरि‍, जाजीमक मोटरी नेने मुरारी जगदम्‍ब लग पहुँच बाजल-
बाबा, पुरनाकेँ बदलि‍ दि‍यौ, सभ कि‍छु नवका अनलौं अछि‍।
पुरनाकेँ बदलू नवका अनलौं सुनि‍ जगदम्‍बक मन ठमकलनि‍। की नवका अनलौं? रूइयाक मोटका सूत बदलि‍ मेही, चि‍क्कन सूतक वस्‍त्र आकि‍ पेट्रोलि‍यमक। मुदा एक तँ गामक अपरि‍चि‍त बच्‍चा, दोसर दायि‍त्‍वो तँ बनि‍ते अछि‍ जे जे नै बुझै छै ओ बुझा दि‍ऐ। मुदा बुझबैयोक तँ दू रस्‍ता छै, एकटा छै जे मुँह-मुँह मुख बनबैत मुखधारा जकाँ बहि‍ जाइ छै, आ दोसर अपन इति‍हास तँ सभ अपना पेटमे रखने अछि‍। तहूमे सि‍र तरक सि‍रमा। जगदम्‍ब बजला-
बाउ मुरारि‍, अपना जनैत तँ नीके जानि‍ अनने छह, तँए बदलबे करब। मुदा...?”
कहि‍ माथ तरक सि‍रमा उठा भंुडी छि‍टका देलखि‍न। पाँच तह झोराक खोलमे एक-एकटा फाटल चद्दरि‍, धोती, लँूगी, गमछा। पुरान लूँगीक झोरा। शान्‍ति‍ नि‍केतनक वि‍द्यार्थी मुरारी। धोती, चद्दरि‍, लूँगीकेँ तँ परेखि‍ गेल मुदा गमछा बेर भोति‍या गेल। भोति‍या ई गेल जे बंगलि‍या ढाठी छी आकि‍ छपरि‍या। तैबीच मुरारीक मनमे उठि‍ गेलै जे कनी गल्‍ती भेल। पहि‍ने पुछि‍ नै लेलि‍यनि‍। खैर जे भेल मुदा सि‍रमा बदलि‍ सि‍रमा लि‍तथि‍ आकि‍ खोलि‍ कऽ आगूमे पसारि‍ देलनि‍। जखनि‍ पसारि‍ देलनि‍ तँ बाल-बोधकेँ बोधबो ने करता। तँए चुप। पाँचो तह लूँगीक खोल खोलैत जगदम्‍ब बजला-
बौआ, जे लूँगी फटि‍ जाइए ओकर सि‍रमो खोल बना लइ छी आ रूमालो बना लइ छी, तँए पाँच तह अछि‍। सालमे एकबेर जुड़शीतल दि‍न खीचि‍ कऽ खोलो सुखा लइ छी आ पेटमे जे देने छी तेकरो रौद लगा लइ छी।
कोनो नव जगहपर सभ एके रंग नव थोड़े रहैए, जे पहि‍नेसँ जड़ि‍ खोदि‍या नेने रहल ओ गुलि‍याएल नव भेल आ जे नै खोदने रहल ओ छेहा नव भेल। तीन दि‍नक बीच मुरारी जगदम्‍बक बीच केते रंगक सवाल-जवाब भऽ गेल छल, सि‍रमा खोलकेँ एकठाम सैंति‍ चद्दरि‍ उठबैत जगदम्‍ब बजला-
बौआ, जइ दि‍न ई चद्दरि‍ कीनलौं, ओही दि‍न एकटा केसमे सजा भऽ गेल, दुनूक (अपनो आ चद्दरि‍ओक) बीच पहि‍ल भेँट जहलेमे भेल। अखनो मन अछि‍ जे नि‍रदोस चद्दरि‍ संगे जहल कटलक, केना बि‍सरि‍ जेबै?”
सि‍नेह भरल जगदम्‍बक ममत्‍व, प्रेम देखि‍ मुरारी चौंकन हुअ लगल। हुअ ऐ दुआरे लगल जे फाटल-पुरानक संग जखनि‍ एहेन प्रेम छन्‍हि‍, तँ कि‍ए ने पुछि‍ए लि‍यनि‍। बाजल-
बाबा, प्रेम कहलि‍ऐ?”
उत्‍साहि‍त होइत बाबा कहलखि‍न-
हँ-हँ, जे सालमे गाहीक गाही कपड़ा कीनत ओ केकरासँ प्रेम करत, प्रेम तँ ओ भेल जे जि‍नगी भरि‍ प्रेमसँ संगे रहल। जीवैतमे जे रहल से तँ रहबे कएल, जे मुइला पछाति‍ओ सि‍रमेमे रखने छी।
मुरारीक पि‍ता वि‍श्वभारतीमे चपरासीक काज करै छथि‍ जइसँ मुरारीकेँ शि‍क्षा भेटि‍ रहल छै। आन ठाम जकाँ नै जे शि‍क्षकक बेटा आ कि‍रानी-चपरासीक बेटाक संस्‍कारपर चोट पड़ैत, कि‍छु छी तँ आखि‍र वि‍श्वभारती छी। दोसमुक्‍त संस्‍कार मुरारीक। बाजल-
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍क इति‍हास-बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ बँकि‍योहोकेँ कहि‍ए दि‍यौ?”
मुरारीक सि‍नेह भरल शब्‍द सुनि‍ जगदम्‍बक मन मोम जकाँ पि‍घलए लगलनि‍। हाथसँ धोती उठा पहि‍ने फाट सबहक सि‍अनि‍ गनलनि‍। सि‍अनि‍ गनि‍ बजला-
बौआ, जहि‍एसँ धोती पहि‍रैमे नीक लागए लगल तहि‍एसँ फाटब शुरू भेल। मुदा बात दोसर दि‍स बहकि‍ जाएत।
बात बहकब‍ सुनि‍ मुरारी बाजल-
ईहो कीनने छि‍ऐ?”
कीनब सुनि‍ते जगदम्‍बकेँ मन पड़लनि‍। बजला-
नै, ई धोती जहलेमे देने रहए।
जहलमे देने रहए सुनि‍ मुरारीक मन भरमि‍ गेल। भरमि‍ ई गेल जे जहलोमे धोती दइ छै! बाजल कि‍छु ने। मुदा जगदम्‍ब बूझि‍ गेला जे भरि‍सक जहलक बातमे भोति‍या गेल। बजला- 
बौआ, जि‍ला भरि‍क लोक कोसी नहरि‍ आ पनि‍बि‍जली डैमक संग मैथि‍ली भाषाक मांग करैत जहल गेेलौं। पनरह दि‍न रखलक। सोलहम दि‍न एक-एकटा धोती दऽ वि‍दा केलक, वएह धोती छी।
जगदम्‍बक पछुलका इति‍हास मुरारीक मनकेँ झि‍कझोड़ि‍ रहल छल। शि‍ष्‍टाचारक लगाम ऐ तरहेँ कसि‍ रहल छेलै जे कि‍छु बाजि‍ नै पाबि‍ रहल छल। मुदा बि‍नु मँह खोलनौं तँ अपन मनक फल खाइओ केना सकै छी। तइले तँ वि‍चारक बात बाजए पड़त। तत्मत करैत मुरारी बाजल-
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍-धोतीक बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ लूँगीओ-गमछाक कहि‍ दि‍यौ।
मुरारीक बात सुनि‍ जगदम्‍बक मन आरो-पतालक पानि‍ जकाँ शीतल-स्‍वच्‍छ-सुअदगर बनि‍ गेलनि‍। लूँगी-गमछाकेँ संगे उठबैत बजला-
बौआ, ईहो जहलेक छी। अपन कीनल लूँगीक सि‍रमाक खोल छी आ जहलक लूँगीकेँ पेटभर देने छि‍ऐ।
सि‍रमा खोलसँ लऽ कऽ पेटभर धरि‍क इति‍हास सुनि‍ मुरारी बाजल-
बाबा, नवका सि‍रमा नै लेबै?”
पोताक टुटल आस देखि‍ जगदम्‍ब बजला-
हँ हौ, कि‍ए ने लेब मुदा चारूक एक-एकटा कोन काटि‍ नवकाक पेटमे भरि‍ दहक, जाबे जीबैत रहब ताबे माथ टेकने रहब।¦¦¦  


३१ मार्च २०१४

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