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Sunday, April 6, 2014

लघुकथा- ''सि‍रमा''

सि‍रमा




बंगालक शान्‍ति‍ नि‍केतनसँ तीन दि‍न एला पछाति‍ बारह बर्खक मुरारी बाबा जगदम्‍बक संग तेना घूलि‍-मि‍लि‍ गेल जेना बाँसक पोर मि‍लल रहै छै। ओना गाममे बाबा छोड़ि‍ दोसर कि‍यो नै, कारण रहै बंगालमे रहने जहि‍ना घेरामे पड़ल गाछ ओतबे दूर कुदै-फनैए, तहि‍ना अनभुआर समाजक बीच सेहो गामे अनभुआर भऽ गेल रहै। सात बर्खक पछाति‍ मुरारी माए-बापक संग गाम आएल। बाबा लेल देहक वस्‍त्रक संग ओछाइन-बि‍छाइन सेहो अनलक अछि‍। सि‍रमाक संग चद्दरि‍, जाजीमक मोटरी नेने मुरारी जगदम्‍ब लग पहुँच बाजल-
बाबा, पुरनाकेँ बदलि‍ दि‍यौ, सभ कि‍छु नवका अनलौं अछि‍।
पुरनाकेँ बदलू नवका अनलौं सुनि‍ जगदम्‍बक मन ठमकलनि‍। की नवका अनलौं? रूइयाक मोटका सूत बदलि‍ मेही, चि‍क्कन सूतक वस्‍त्र आकि‍ पेट्रोलि‍यमक। मुदा एक तँ गामक अपरि‍चि‍त बच्‍चा, दोसर दायि‍त्‍वो तँ बनि‍ते अछि‍ जे जे नै बुझै छै ओ बुझा दि‍ऐ। मुदा बुझबैयोक तँ दू रस्‍ता छै, एकटा छै जे मुँह-मुँह मुख बनबैत मुखधारा जकाँ बहि‍ जाइ छै, आ दोसर अपन इति‍हास तँ सभ अपना पेटमे रखने अछि‍। तहूमे सि‍र तरक सि‍रमा। जगदम्‍ब बजला-
बाउ मुरारि‍, अपना जनैत तँ नीके जानि‍ अनने छह, तँए बदलबे करब। मुदा...?”
कहि‍ माथ तरक सि‍रमा उठा भंुडी छि‍टका देलखि‍न। पाँच तह झोराक खोलमे एक-एकटा फाटल चद्दरि‍, धोती, लँूगी, गमछा। पुरान लूँगीक झोरा। शान्‍ति‍ नि‍केतनक वि‍द्यार्थी मुरारी। धोती, चद्दरि‍, लूँगीकेँ तँ परेखि‍ गेल मुदा गमछा बेर भोति‍या गेल। भोति‍या ई गेल जे बंगलि‍या ढाठी छी आकि‍ छपरि‍या। तैबीच मुरारीक मनमे उठि‍ गेलै जे कनी गल्‍ती भेल। पहि‍ने पुछि‍ नै लेलि‍यनि‍। खैर जे भेल मुदा सि‍रमा बदलि‍ सि‍रमा लि‍तथि‍ आकि‍ खोलि‍ कऽ आगूमे पसारि‍ देलनि‍। जखनि‍ पसारि‍ देलनि‍ तँ बाल-बोधकेँ बोधबो ने करता। तँए चुप। पाँचो तह लूँगीक खोल खोलैत जगदम्‍ब बजला-
बौआ, जे लूँगी फटि‍ जाइए ओकर सि‍रमो खोल बना लइ छी आ रूमालो बना लइ छी, तँए पाँच तह अछि‍। सालमे एकबेर जुड़शीतल दि‍न खीचि‍ कऽ खोलो सुखा लइ छी आ पेटमे जे देने छी तेकरो रौद लगा लइ छी।
कोनो नव जगहपर सभ एके रंग नव थोड़े रहैए, जे पहि‍नेसँ जड़ि‍ खोदि‍या नेने रहल ओ गुलि‍याएल नव भेल आ जे नै खोदने रहल ओ छेहा नव भेल। तीन दि‍नक बीच मुरारी जगदम्‍बक बीच केते रंगक सवाल-जवाब भऽ गेल छल, सि‍रमा खोलकेँ एकठाम सैंति‍ चद्दरि‍ उठबैत जगदम्‍ब बजला-
बौआ, जइ दि‍न ई चद्दरि‍ कीनलौं, ओही दि‍न एकटा केसमे सजा भऽ गेल, दुनूक (अपनो आ चद्दरि‍ओक) बीच पहि‍ल भेँट जहलेमे भेल। अखनो मन अछि‍ जे नि‍रदोस चद्दरि‍ संगे जहल कटलक, केना बि‍सरि‍ जेबै?”
सि‍नेह भरल जगदम्‍बक ममत्‍व, प्रेम देखि‍ मुरारी चौंकन हुअ लगल। हुअ ऐ दुआरे लगल जे फाटल-पुरानक संग जखनि‍ एहेन प्रेम छन्‍हि‍, तँ कि‍ए ने पुछि‍ए लि‍यनि‍। बाजल-
बाबा, प्रेम कहलि‍ऐ?”
उत्‍साहि‍त होइत बाबा कहलखि‍न-
हँ-हँ, जे सालमे गाहीक गाही कपड़ा कीनत ओ केकरासँ प्रेम करत, प्रेम तँ ओ भेल जे जि‍नगी भरि‍ प्रेमसँ संगे रहल। जीवैतमे जे रहल से तँ रहबे कएल, जे मुइला पछाति‍ओ सि‍रमेमे रखने छी।
मुरारीक पि‍ता वि‍श्वभारतीमे चपरासीक काज करै छथि‍ जइसँ मुरारीकेँ शि‍क्षा भेटि‍ रहल छै। आन ठाम जकाँ नै जे शि‍क्षकक बेटा आ कि‍रानी-चपरासीक बेटाक संस्‍कारपर चोट पड़ैत, कि‍छु छी तँ आखि‍र वि‍श्वभारती छी। दोसमुक्‍त संस्‍कार मुरारीक। बाजल-
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍क इति‍हास-बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ बँकि‍योहोकेँ कहि‍ए दि‍यौ?”
मुरारीक सि‍नेह भरल शब्‍द सुनि‍ जगदम्‍बक मन मोम जकाँ पि‍घलए लगलनि‍। हाथसँ धोती उठा पहि‍ने फाट सबहक सि‍अनि‍ गनलनि‍। सि‍अनि‍ गनि‍ बजला-
बौआ, जहि‍एसँ धोती पहि‍रैमे नीक लागए लगल तहि‍एसँ फाटब शुरू भेल। मुदा बात दोसर दि‍स बहकि‍ जाएत।
बात बहकब‍ सुनि‍ मुरारी बाजल-
ईहो कीनने छि‍ऐ?”
कीनब सुनि‍ते जगदम्‍बकेँ मन पड़लनि‍। बजला-
नै, ई धोती जहलेमे देने रहए।
जहलमे देने रहए सुनि‍ मुरारीक मन भरमि‍ गेल। भरमि‍ ई गेल जे जहलोमे धोती दइ छै! बाजल कि‍छु ने। मुदा जगदम्‍ब बूझि‍ गेला जे भरि‍सक जहलक बातमे भोति‍या गेल। बजला- 
बौआ, जि‍ला भरि‍क लोक कोसी नहरि‍ आ पनि‍बि‍जली डैमक संग मैथि‍ली भाषाक मांग करैत जहल गेेलौं। पनरह दि‍न रखलक। सोलहम दि‍न एक-एकटा धोती दऽ वि‍दा केलक, वएह धोती छी।
जगदम्‍बक पछुलका इति‍हास मुरारीक मनकेँ झि‍कझोड़ि‍ रहल छल। शि‍ष्‍टाचारक लगाम ऐ तरहेँ कसि‍ रहल छेलै जे कि‍छु बाजि‍ नै पाबि‍ रहल छल। मुदा बि‍नु मँह खोलनौं तँ अपन मनक फल खाइओ केना सकै छी। तइले तँ वि‍चारक बात बाजए पड़त। तत्मत करैत मुरारी बाजल-
बाबा, जखनि‍ चद्दरि‍-धोतीक बात कहि‍ए देलि‍ऐ तखनि‍ लूँगीओ-गमछाक कहि‍ दि‍यौ।
मुरारीक बात सुनि‍ जगदम्‍बक मन आरो-पतालक पानि‍ जकाँ शीतल-स्‍वच्‍छ-सुअदगर बनि‍ गेलनि‍। लूँगी-गमछाकेँ संगे उठबैत बजला-
बौआ, ईहो जहलेक छी। अपन कीनल लूँगीक सि‍रमाक खोल छी आ जहलक लूँगीकेँ पेटभर देने छि‍ऐ।
सि‍रमा खोलसँ लऽ कऽ पेटभर धरि‍क इति‍हास सुनि‍ मुरारी बाजल-
बाबा, नवका सि‍रमा नै लेबै?”
पोताक टुटल आस देखि‍ जगदम्‍ब बजला-
हँ हौ, कि‍ए ने लेब मुदा चारूक एक-एकटा कोन काटि‍ नवकाक पेटमे भरि‍ दहक, जाबे जीबैत रहब ताबे माथ टेकने रहब।¦¦¦  


३१ मार्च २०१४

रमण- दरिहरे- बिहारी नाम्ना तिथि चोर


रमण, बिहारी आ दरिहरेक कथा गोष्ठीक तिथि ८२ म सगर राति दीप जरयक तिथि ३१ म इ २०१४ घोषित भेलाक बाद भेल। मुदा ऐ तीनू लग मौलिकताक सर्वथा अभाव अछि। कोनो नव चीज ई लोकनि सोचि नै सकै छथि, हँ प्रतिक्रियावादी, धुरफंदी चीज करबामे ई लोकनि सभसँ आगाँ छथि। से रमण ७९ म कथा गोष्ठी ओरहामे विदेह साहित्य आन्दोलनक खिलाफ गोलैसी करबाक प्रयास केलन्हि, गोष्ठी प्रारम्भ हेबासँ पहिने सायास अही काज लेल पहुँचला, आ बजैतफिरला जे विदेह साहित्य आन्दोलन- तान्दोलन नै छिऐ, खाली गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डल अपन नाम कर' चाहै छथि, जे उत्तर भेटलन्हि तकर बाद ओ परदाक पाछाँ चलि गेला, जातिवादी बयान देलन्हि, हीरेन्द्र झाक उसकेलासँ अशोक मेहता सेहो ओइ गोष्ठीक बहिष्कार केलन्हि, इच्छा तँ रमणोक रहन्हि बहिष्कार करबाक मुदा हुनकर गाड़ी ड्राइवर समधियौर ल' क' चलि गेलन्हि, से कारण ओ मुन्नाजीकेँ कहलखिन्ह।
शंकरदेव झा बहुत पहिने सूचित केने रहथि जे जे रमण प्रबोध नारायण सिंहकेँ प्रबोध नारायण सिंह एण्ड कम्पनी कहै छला आ सएह आब नचिकेताक बडीगार्ड बनल छथि। ई अवसरवादिता रमणक चरित्रमे छन्हि से जखन ओ दरिहरे आ बिहारीक संग अपन साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग आ ओकरा द्वारा मान्यता प्राप्त फ़र्ज़ी संस्था द्वारा संपोषित कथा गोष्ठीक घोषणा केलन्हि तँ ओ सभ ३१ म इ २०१४ क तिथिये सोचि सकला, तकर दू टा कारण छलै हुनका सभमे मौलिकताक अभाव जे हिनकर सभक रचनामे सेहो दृष्टिगोचर होइत अछि, दोसर घृणित अवसरवादिता आ जातिवादी सोच। दरिहरे कहै छथि जे सगर राति हुनकर दलान अछि, ओइमे सर्वहाराक प्रवेश हुनका लेल कष्टकर छन्हि, बिहारीक कष्ट अही बात ल' क' छन्हि जे पहिने एक दू टा कम्पटीटर छल तँ अस्तित्व जोड़ तोड़सँ बनबैत छला, आब तँ मामले खत्म, रमण कतेक छल-प्रपंचसँ मोहन भारद्वाजकेँ सगर रातिसँ बाहर केलन्हि, मुदा आब नव समीक्षक सभ आबि गेला। से यात्री दिससँ अमर-सुमनकेँ गारि पढ़' बला आ अमर- सुमन दिससँ यात्रीकेँ गारि पढ़ैबला, ई दुनू ब्राहम्णवादी ग्रुप मैथिली साहित्यक विदेह साहित्य आन्दोलनक विरुद्ध मैथिली साहित्यमे जातिवादितापर ऐ घोर संकटक कालमे एक होथि, ई इच्छा राखैत "रमण- बिहारी- दरिहरे" कथा गोष्ठीक घोषणा केलन्हि, मुदा गजेन्द्र ठाकुर, विदेह आदि हुनका डरब' लगलन्हि से ओ एकटा चोरि केलन्हि, तिथिक चोरि, से किछु गोटे तँ कम हेतै जे सगर रातिमे ३१ मइ २०१४ केँ "रमण- दरिहरे- बिहारी" द्वारा घृणा कएल जाएबला गजेन्द्र ठाकुरक गाममे ओइ राति नै जा सकता। बड़ा आएल छथि आन्दोलनी, ब्राह्मणवादी घुरछीमे तेनाने फँसेबनि जे रमण- बिहारी- दरिहरेकेँ मोन रखता। हौ बाबू यएह छी असली विलेन, एकरा ख़त्म करू, विदेह आन्दोलन खतम आ मैथिली साहित्यपरसँ ब्राह्मणवादक पकड़ खतम हेबाक ख़तरा खतम, मैथिली जिबियेकेँ की फ़ायदा जँ अपना सभक वर्चस्व रहबे नै करए,, अखन यात्री ग्रुप, अमर- सुमन ग्रुप नै करू, सभ ऐ संकटमे मिलि जाउ, बादमे झगड़ा करब, नै तँ गजेन्द्र ठाकुर खोप सहित कबूतराय नम: क' देत।
मुदा की गजेन्द्र ठाकुरकेँ खतम केने मैथिली साहित्य आन्दोलन खतम भ' जाएत, की परिवर्तनक धारा जे भयंकर रूपेँ विदेह द्वारा छोड़ि देल गेल छै ओकर अस्तित्व गजेन्द्र ठाकुरसँ अलग नै भ' गेल छै, गजेन्द्र ठाकुरकेँ खतम केलासँ की ओकरा रोकलजा सकत? साहित्य अकादेमीसँ फ़ोन आएल जे ओकर मैथिली विभागमे जे गड़बड़ी भ' रहल छै ओइले साहित्य अकादेमी कोना ज़िम्मेवार अछि? किछु गोटेक फ़ोन आएल जे ओ सभ सगर रातिक अतिरिक्त रमण- दरिहरे- बिहारीक साहित्य अकादेमी संपोषित गोष्ठीमे सेहो जाए चाहै छथि कारण ओ पब्लिक फंडसँ आयोजित होइ छै, आ जँ सगर रातिक तिथि हम बदलि दी रमण- दरिहरे- बिहारी नाम्ना तिथि चोर की करता? आरती कुमारी संग कएल टॅार्चरक बाद रमण- बिहारी- दरिहरेक मोन जे बहसल से किए नै बूझि सकल ऐ परिवर्तनकेँ? मेडियोक्रिटी नै जानि कत' ल' जेतनि तीनूकेँ।

Saturday, April 5, 2014

बाल साहि‍त्‍य लघुकथा- भोँटक गहमी

बाल साहि‍त्‍य

लघुकथा- 

भोँटक गहमी



पाँच बर्ख पहि‍लुका भोँटक बात कि‍छु गोटेकेँ मनो रहल आ अधि‍क गोटे बि‍सरि‍ए गेला। मनो रहैक कारण छेलै आ बि‍सरबोक कारण अपन-अपन छेलै। कि‍ए लोक बि‍सरि‍ जाएत जे हमरे भोँटपर सरकार नै बनल। नै बनैत तँ करोड़क लाभ केना भेटल, मुदा अधि‍क लोक ओहने जेकरा भोँटक अधि‍कार तँ छै, चीन-पहचीन नै छै। दू देशक सीमान परहक पगलखन्ना जकाँ, केकरो नै दुनूक। भलहिं पगलपनी दुआरे दुनूमे सँ केकरो मोजरे कि‍ए ने नै दइत होइ।
रंग-रंगक मुखौटा, रंग-रंगक रूप बना एबे करत। मुखौटा ई जे कि‍यो सम्‍प्रदायकेँ अगुऔत कि‍यो पछुऔत मुदा रहत दुनू काते-कात। जँ से नै तँ पंथ नि‍रपेक्ष जीवन शैली छि‍ऐ आकि‍ भाषण? जँ जि‍नगी भाषण बनि‍ जाए आ लोक नै भँसियाए तँ भाषणे की भेल। कि‍यो जाइति‍क ढोल पीटि‍ सम्‍प्रदाय छि‍पबैत तँ कि‍यो ओकरे उजागर करैत, मुदा रहैत दुनू अगले-बगले। खैर जे होउ, मुदा छी तँ ओहन पावनि‍ नि‍सचि‍ते, जेकरा कि‍यो नि‍ष्‍ठा बूझि‍ करत कि‍यो पावती[1] बूझि‍ करत। तँ कि‍यो खेल बूझि‍ खेलाएत। खेल बूझब ई भेल जे देशक चक्की कोन दि‍स घुमए चाहैए। बामी आकि‍ दहि‍नी।
रंग-रंगक हवा-वि‍हाड़ि‍क बात सुनि‍ मोहन, दसम कि‍लासक वि‍द्यार्थी ठाढ़ भऽ कि‍लासमे बाजल-
मास्‍सैव, ओना पछि‍ला भोँट नीक जकाँ मनो ने अछि‍, मुदा ऐबेर तँ बहुत गहमा-गहमी देखै छि‍ऐ, से की?”
कुरसीपर बैसल शि‍क्षक-श्‍यामचरण मोहनक प्रश्न सुनि‍ मने-मन वि‍चार करए लगला। प्रश्नकेँ छोट मानल जाए आकि‍ नमहर। प्रश्न तँ बि‍नु ओर-छोरक अछि‍। देशक सरकार बनत। जे जन-जनसँ दुनि‍याँ धरि‍क सम्‍बन्‍ध बनबैक कड़ी हएत, तैठाम दसमा कि‍लासक अबोध बच्‍चाकेँ केना बुझौल जाए। मुदा जँ शि‍क्षकक आगू बच्‍चाक प्रश्नकेँ अनदेखी कएल जाए, तँ एकरा के उचि‍त कहत। लगले मन बदललनि‍, नीक हएत जे ओकरे (मोहने) टा सँ नै, आनो-आन बच्‍चा सभसँ आरो-आरो प्रश्न उठबाएब नीक हएत, जँ अपने उत्तर देब शुरू करब आ प्रश्नकर्ताक नजरि‍मे जे हएत, भऽ सकैए जे नजरि‍ नै जाए, तखनि‍ दुधमुहाँ बच्‍चाक मुँह घीमुख केना भेटत? आ जँ नै भेटत तँ अनेरे शि‍क्षक बनि‍ बाल-बोधकेँ ठकै कि‍ए छि‍ऐ। आँखि‍ खि‍ड़बए लगला। जेना आँखि‍क जोतसँ तीर छि‍टकैत होन्‍हि‍, तहि‍ना रंग-रंगक उलटा तीर आबए लगल। सोहन उठि‍ कऽ बाजल-
मास्‍सैव, अपन देश जनतंत्र छि‍ऐ, तखनि‍ कि‍ए प्रधानमंत्री के बनत से पहि‍ने लोक गर्द करै लगैए?”
कुरसीपर बैसल श्‍यामचरण सोहनक प्रश्न नोट करैत बजला-
बौआ, अखनि‍ सवाल अबैक समए अछि‍, तँए तोहर सवाल कागतपर लि‍खि‍ कऽ रखि‍ लेलि‍अ। पछाति‍ बुझा देबह।
सोहनक प्रश्नक दर्ज सुनि‍ भागेसर उठि‍ बाजल-
मास्‍सैव, लाउडस्‍पीकरपर प्रति‍बंध लगि‍ गेल अछि‍, मुदा गाड़ीक-गाड़ी बाजा बाजि‍ रहल अछि‍ से एना कि‍ए अछि‍?”
मुस्‍की दैत श्‍यामचरण बजला-
कि‍ए अछि‍ कि‍ए नै रहत, ई वि‍चारणीय प्रश्न छी। हमर संसद तँ यएह भेल, तोहीं सभ ने काल्हि‍ पटना-दि‍ल्‍ली संसदोमे बैसबहक, कानूनो बनेबहक। आ कानून बना लागुओ करबहक।
श्‍यामचरणक वि‍चार सुनि‍ सौंसे कि‍लासक वि‍द्यार्थी थोपड़ी बजबए लगल। जेना देव मंदि‍रमे भजनमे लीन भक्‍त थोपड़ी बजबैत बि‍सरि‍ जाइए जे भजनक कड़ी कखनि‍ खतम भेल। कि‍छु गोटे थोपड़ी बनो केलक आ कि‍छु गोटे बजबि‍ते रहल। थोपड़ीक स्‍वागत पाबि‍ दुनू हाथसँ बच्‍चाक थोपड़ी बन्न करबैत बजला-
आइ भरि‍ प्रश्न रखैक छह, काल्हि‍ सबहक बीच वाद-वि‍वाद करेबह, जँ समए बँचत तँ काल्हि‍ये नै तँ परसू, छुटल-बढ़ल सभ सवालक रस्‍ता बुझा देबह। अखनि‍ एतबे बूझि‍ लैह जे साम्राज्‍यवादी जालमे फँसल जा रहल छी।¦¦¦
२४ मार्च २०१४


[1] पौनाइ

Thursday, April 3, 2014

जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी

जगदीश प्रसाद मण्डल-
एकटा बायोग्राफी







गजेन्द्र ठाकुर








श्रुति‍ प्रकाशन
दि‍ल्‍ली

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ISBN : 978-93-80538-68-6
मूल्‍य : भा. रू. २००/-
संस्‍करण : २०१३
सर्वाधिकार © श्रीमती प्रीति ठाकुर
श्रुति ‍प्रकाशन
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Distributor :
Pallavi Distributors, Ward no-6, Nirmali (Supaul).
मो.- ९५७२४५०४०५, ९९३१६५४७४२
Author’s Acknowledgement: This biography is based on discussions held with Sh. Jagdish Prasad Mandal, with his son Sh. Umesh Mandal and with people of Berma and other adjacent villages. It was corroborated with contemporary records. I belong to Mehath Village, which is in vicinity of Berma, that gave me added advantage so far as veracity of facts are concerned.

 “Jagdish Prasad Mandal A Biography” by Gajendra Thakur (in Maithili)


जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी


सन् सैंतालीस...
भारतक स्वतंत्र त्रिवार्णिक झण्डा फहरा रहल छल।
मुदा कम्यूनिस्ट पार्टीक माननाइ छल जे भारत स्वतंत्र नै भेल अछि।
असली स्वतंत्रता भेटब बाँकी छै...
मिथिलाक एकटा गाम...
जनम भेल रहए एकटा बच्चाक... ओही बरख...
ओइ स्वतंत्र वा स्वतंत्र नै भेल भारतमे...
पिताक मृत्यु... गरीबी... केस मोकदमा...
वंचित लेल संघर्षमे भेटलै स्वतंत्र भारतक वा स्वतंत्र नै भेल भारतक जेल...
आइ बेरमामे पाँच-दस बीघासँ पैघ जोत केकरो नै...
ओइ गाममे जीवित अछि आइओ किसानी आत्मनिर्भर संस्कृति...
पुरोहितवादपर ब्राह्मणवादक एकछत्र राज्यक जेतए भेल समाप्ति...
संघर्षक समाप्ति पछाति‍ जिनकर लेखन मैथिली साहित्यमे आनि देलक पुनर्जागरण...

जगदीश प्रसाद मण्डल- एकटा बायोग्राफी... गजेन्द्र ठाकुर द्वारा






जगदीश प्रसाद मण्डल जीक जनम ५ जुलाइ १९४७ इस्‍वीमे भेलन्हि। भारतक स्वतंत्रताक तिथि तँइ भऽ गेल रहए। अंग्रेज जाइए बला छल।
दि‍नांक ५-७-१९४७ इस्‍वीमे जनम भेल। भरल-पुरल परि‍वार। तीन पीढ़ीसँ एक ‍पुरुखियाह परिवार चलि अबै छल। जहिना बाबा तहिना पिता छला। घर लग पोखरि-इनार रहने पानिक सुविधा रहल।
माता-पिताक संग दीदीओक परिवारक संग मिलल-जुलल परिवार। तैसंग अपनो कि‍छु जमीन; आ गामक जे बहरबैया मालिक रहथि हुनकर खेतो बटाइ करै जाइ छला जइसँ खाइ-पिबैक अभाव सेहो नै। एक तँ वंशगतो आधार दोसर जगदीश प्रसाद मण्डल जीक पितोक ऊपर पारि‍वारि‍क-समाजि‍क प्रभाव पड़ल छेलन्‍हि जइसँ कि‍छु अगुआएल वि‍चार रहनि।
जहिना भतभोजमे बरी पड़ि‍ते पंच बूझि‍ जाइत जे भोज अंति‍म दौड़मे आबि‍ गेल तँए आब इन्‍तजार नै करबाक चाही, जौं इन्‍तजार करब तँ भुखले उठब। तइसँ नीक जे मारि-धूसि झब दऽ कसि ली नै तँ दोख केकर हेतै, तहिना अंग्रेजी शासन अपन सभ कि‍छु समेटि रहल छल। १९४२ इस्‍वीमे जे तूफानी आन्‍दोलन उठल ओ कमल नै, उग्रसँ उग्रतरे भेल जाइ छल, जेकर परिणाम १५ अगस्‍त १९४७ इस्‍वी छी।
मुदा देशोक दशा एकमुड़ि‍या नै, अपनोमे खटपट होइते छल। केतौ जातीय उन्‍माद तँ केतौ साम्‍प्रादायि‍क उन्‍माद। केतौ धन-सम्‍पति‍क तँ केतौ इज्‍जत-आबरूक। जहि‍ना स्‍वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने तहि‍ना बंगालक अकाल आ बि‍हारक भुमकम (१९३४)क प्रभावसँ सेहो आर्थिक स्थिति प्रभावि‍त छल।
स्‍वतंत्रताक लड़ाइमे मि‍थि‍लांचलक योगदान देशक कोनो भागसँ कम नै रहल। एक दि‍स पुश्‍तैनी सोचक मुँह पुरुख रहथि तँ दोसर दिस १९४० इस्‍वी पछाति‍ सोशलि‍स्‍ट पार्टी आ कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी, राजनीति‍क सोच पैदा करैत रहल छल। समाजोक बीच जागरूकताक लहरि‍ चलैत रहल। जहि‍ना सोशलि‍स्‍ट पार्टी अपन कि‍छु कार्यक्रम लऽ ठाढ़ छल तहि‍ना कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी सेहो, दरभंगा जि‍लाक पहि‍ल टीम १९३९-४० मे पार्टीक सदस्‍यता ग्रहण कऽ चुकल छला, वफादार कार्यकर्ता बनि‍ उतरि‍ चुकल छला। तहि‍ना सोशलि‍स्‍टो पार्टी, गाम-गाम पहुँच चुकल छल। १९४२ इस्‍वीक जन-आन्‍दोलन पुश्‍तैनी सोचमे धक्‍का मारलक, धक्कासँ वि‍चारमे टुट-फाट भेल, धक्कासँ धकि‍या‍ लोक नव सोचक संग सेहो एला। सामाजि‍क परि‍वेश ई सोच पैदा कऽ चुकल छल जे जमीन्‍दारी समाप्‍त हेबे करतै, राजा-रजबार ढहबे करतै, आइ धरि‍क जे जमीन नि‍लामीक प्रथा छल आ मालगुजारी असुलक जुल्‍म छल ओ मेटेबे करतै। नव वि‍चार जन-गणक बीच पैदा लऽ चुकल छल।
मि‍थि‍लांचलक बीच झंझारपुर इलाकाक अप्‍पन प्रति‍ष्‍ठा रहल अछि‍। जहि‍ना शि‍क्षाक क्षेत्रमे तहि‍ना आर्थिक क्षेत्रमे। देशक पैमानामे इलाका पछुआएल नै छल, अगुआएल छल। एक-सँ-एक महान पुरुष पैदा लऽ चुकल छथि‍। ई आजादीक लड़ाइमे खून बहौनि‍हार क्षेत्र छी। झंझारपुर अंग्रेजक मुख्‍य अड्डामे छल। दमन नीति‍ केतौ चलल तँ अहू क्षेत्रमे चलल। मि‍थि‍लांचलक बीच झंझारपुर इलाका ओ क्षेत्र छी, जइमे मि‍थि‍लाक इति‍हास-दर्शन, अखनो झलकि‍ रहल अछि‍। अखनो पाथरमे फूल, माटि‍-पानि‍मे सुगंध जीवि‍त अछि‍‍। क्षेत्रक गाम-समाजमे दर्जनो जाति‍, दर्जनो सम्‍प्रदाय अदौसँ अखनि धरि‍ मि‍लि‍-जुलि‍ एकठाम बास करैत एला अछि‍। भूमि‍योक शक्‍ति‍ ओहने उर्वर अछि, ई देशक एक नम्बर श्रेणीक सघन आबादीबला क्षेत्र अछि‍।
बीसम शताब्‍दीक पाँचम दशक देशकेँ ऐ रूपेँ आन्‍दोलि‍त कऽ देलक जे जन-गण घर-परि‍वारसँ आगू बढ़ि‍ देश लेल अपनाकेँ अर्पित कऽ देलक। जहि‍ना दशकक पूर्वार्द्ध आन्‍दोलि‍त केलक, तहि‍ना एक संग अनेको प्रश्न उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। ओना आइ धरि‍क देशक इति‍हासमे एकसंग खुशी कहि‍यो नै भेल छल जेते भेल। जेना-जेना आजादीक झंडा फहरबैक दि‍न लगि‍चाइत गेल तेना-तेना खुशीमे बढ़ोतरी होइत गेल। अदहा दशक जहि‍ना जगैमे लागल, तहि‍ना अदहा दशक रंग-रंगक सपना देखैमे खुशीसँ बितल।
समाजक बीच तँ नै मुदा देशक राजनीति‍मे आर्थिक मुद्दा स्‍पष्‍ट वि‍भाजि‍त कऽ देने छल। कि‍यो देशक पूर्ण आजादी देखै छला तँ कि‍यो एकरा नेङरा आजादी बुझै छला। ओना देशक भीतर रौदी, भुमकम, जाति‍-सम्‍प्रदायक उन्‍माद एते जोर पकड़ि‍ लेने छल जे भीतर-बाहरक लड़ाइमे राजनीति‍क दल ओझराएल छल। ओना तेलांगना लड़ाइ देशक संघर्षक नक्शामे आबि‍ चुकल छल। भारत-पाकि‍स्‍तान वि‍भाजनक एक-एक विभाजक तत्‍व जनमानसकेँ झकझोरि‍ रहल छल। दसो बर्खक जेलक जुड़ल हृदए संगी सबहक बीच टुटि‍ रहल छेलन्‍हि‍। काला-पानी जहलमे ओ सभ संगे छला मुदा गाम-समाज वि‍भाजि‍त भऽ गेलन्‍हि‍।
१५ अगस्‍त (१४ अगस्‍तक बारह बजे राति‍क बाद)केँ ि‍तरंगा झंडा फहराएल। अंग्रेजी शासनक अन्‍त भेल।
जन-मानसक हृदैमे खुशीक लहरि‍ असथि‍रो नै भेल छल आकि‍ गाँधीजीकेँ राजधानीमे दि‍न-दहा गोली लगलन्‍हि‍, जे शासनक स्‍पष्‍ट चि‍त्र प्रस्‍तुत करैत अछि‍। संवि‍धान सभामे संवि‍धान बनब शुरू भेल। संवि‍धान बनल आ १९५२ ई.सँ आम चुनावक प्रक्रि‍या शुरू भेल। राज्‍य आ केन्‍द्र सरकार बनैले चुनाव भेल आ नव सरकारक गठन भेल।
ओना देशक वि‍स्‍तारो अंग्रेजी शासनसँ भेल, मुदा ई देशकेँ हजारो समस्‍याक बीच पटकि सेहो‍ देलक। नव सरकारक बीच हजारो समस्‍या उपस्‍थि‍त‍ भऽ गेल। गाम-गाममे बकास्‍त जमीनक लड़ाइ पसरि‍ गेल छल। राजनीति‍क सभ पार्टीक एकमुहरी समर्थन रहने लड़ाइ सफलो भेल।
१९५० इस्‍वीमे जगदीश प्रसाद मण्डल जीक पि‍ताक नि‍धन भऽ गेलन्‍हि‍।
पि‍ताक मृत्‍युक कि‍छुओ नै यादि‍ अछि‍, सिरिफ गाछीमे जरैत अछि‍या टा...। जखनि तीन बर्खक रही। दू भाँइक भैयारीमे छह बर्खक भैया रहथि‍। पि‍ताजी करीब एक मास बेमार रहला। इलाजोक नीक बेवस्‍था नै, ताबत दरभंगा अस्‍पताल नै बनल छेलै। झाड़-फूकसँ लऽ कऽ जड़ी-बुटीक इलाज समाजमे चलै छल।
संयुक्त परिवारक बेवस्‍था सुदृढ़ रहने पिताक मृत्यु भेने बच्चाक लालन-पालनमे कोनो कमी नै होइ छेलन्‍हि‍
आजुक परि‍वार जकाँ नै जे ने बेटा बाप-माएकेँ देखैत, आ ने माए-बाप बेटा-पुतोहुकेँ। कारण अनेक अछि‍ मुदा अपनो परि‍वारक जौं जि‍म्‍मा नै लऽ चलब तँ अनेरे हम सभ मातृभूमि आ देशकेँ महान कहै छि‍ऐ। इमानदारी पूर्वक हृदैपर हाथ रखि कऽ कहए पड़त जे देलि‍ऐ की‍ आ लेलि‍ऐ की। हमरा नै भेल तेकर दोखी हम नै। एक तँ अपनो परि‍वारमे समांग, दोसर गामक कोनो जाति‍ एहेन नै जइ जाति‍सँ पारि‍वारि‍क सम्‍बन्‍ध नै छल। तैसंग जाति‍ओनमहर टोल। गामक चारू कातक गाममे कुटुमैती सेहो छल आ अखनो अछि‍। ओहो सभ अपनामे समए ि‍नर्धारि‍त कऽ अबैत-जाइत रहै छला। कान्‍ही सेहो नीक बनौलन्‍हि‍। एक-सँ-एक खि‍स्‍सकर आ एक-सँ-एक गप केनि‍हार। तँए दि‍न-राति‍मे कोनो अंतर नै। अभाव परि‍वारमे नहि‍येँ छल तँए अनुकूल परि‍स्‍थि‍ति‍ बनल छल।
अनुकूल परि‍स्‍थि‍ति‍ बनने परि‍वारक भवि‍ष्‍य दि‍स‍ सेहो नजरि‍ पड़लन्‍हि‍। भैयाक बि‍आह भऽ गेल रहनि‍। ताबत चारि‍-पाँच बर्खक अवस्‍थामे बि‍आह होइ छल।
तहूमे हमर मौसी (सात-भाए बहि‍नमे सभसँ जेठ मौसी आ सभसँ छोट माए) वि‍धवा भऽ गेली। मौसीकेँ मात्र दुइएटा बेटी, परि‍वार अन्‍त भऽ गेलन्‍हि‍। मौसीक प्रभाव माइक ऊपर, तँए जेठ-भायक बि‍आह पाँचे बर्खमे भऽ गेलन्‍हि‍। भवि‍ष्य दि‍स‍ दृष्‍टि‍ पड़ि‍ते हमरापर नजरि‍ पड़लन्‍हि‍। ओछाइन पकड़ल रोगीक अवस्‍था ओहेन होइत जेकर कोनो नि‍श्‍तुकी नै। जीवि‍ओ सकै छथि,‍ मरि‍ओ सकै छथि‍। तँए एहेन अवस्‍थामे वि‍चारोमे इमानदारी अबै छै।
मछधी (सि‍मरा)मे ददि‍या ससुर परि‍वार सुभ्‍यस्‍त, ददि‍या ससुरक कुटुमैती गोधनपुर मौसीक परि‍वारमे से मौसीक आवाजाही बेरमा बहि‍न ठाम।
ददि‍या ससुर सुराग भिड़ा कऽ गोधनपुरक मौसाक छोट भाए बचाइ मण्डल संग अाबए लगला, छल-प्रपंच विहिन मौसी माएकेँ कहि‍ देलखि‍न। जेठ-छोटक वि‍चार रखैत माए आश्वासन दऽ देलखि‍न जे अखनि तँ अपने अछोइन धेने छथि‍, राजा-दैवीक कोनो ठेकान नै छै, तँए अखनि कि‍छु नै, बादमे बूझल जेतै।
मछधीक परि‍वार बेवहारि‍क दृष्‍टि‍ए दब। ताड़-खजुरक गाछ बेसी से ताड़ीक पीबाक चलनि‍ ओइ गाममे छल। एक-लगाइत बुढ़ा (ददि‍या ससुर) अपन जोड़ो भरि‍ धोती आ चद्दैर नेनइ पहुँच पि‍ताक‍ मृत्‍युक आखि‍री समए तक बेरमामे रहि‍ गेला। मृत्‍युक अंति‍म राति‍, डि‍बि‍या जरि‍ते सभकेँ अन्‍हार बूझि‍ पड़ए लगलन्‍हि‍।
जे बोल जीवि‍त छल, बन्न भऽ गेल। हाथ-पएरक डोलब बन्न भऽ गेल।,
माएकेँ लगमे बजा बुढ़ा (ददि‍या ससुर) गोधनपुरबला मौसाकेँ सम्‍बोधित करैत कहलखि‍न-
समधि‍, ई बच्‍चा हमरा दऽ दथु। गोबर पाथैले पोती देबनि‍।
मि‍टि‍ंगक प्रस्‍ताव जकाँ गोधनपुरबला मौसा समर्थन करैत कहलखि‍न-
ई तँ घर-कथा भेल, ऐमे की हँ-हूँ कहल जाएत।
तही बीच मौसी टपकि‍ गेली-
बहि‍न, अखनि बाल-बोध अछि‍ हि‍नका बच्‍चा देलि‍यनि‍। तीनि‍येँ बर्खमे बि‍आहक बात पक्का भऽ गेल।
अखनि धरि‍‍ परि‍वारमे अपनासँ गाए दुहैक, हर जोतैक आ खुट्टापर बच्‍छा बधि‍या करेबाक चलन्‍हि‍ नै रहए। पि‍ताक परोछ भेनौं समैपर स्‍कूल पहुँचलौं। गाममे लोअर प्राइमरी स्‍कूल छल। भीत घर रहने १९३४ इस्‍वीक भुमकममे खसि‍ पड़ल। राजा-दैव भेने जहि‍ना लोक घराड़ी बदलि‍ लइए तहि‍ना बेरमामे स्‍कूलक घराड़ी बदलल। ओइ समैमे तीनटा कचहरी बेरमामे छल। दछि‍नबरि‍या कचहरीक घरमे स्‍कूल चलए लगल। पछाति‍ ओहो बदलि‍ अखुनका जगहपर पहुँचल।
बेरमा पंडि‍तक गामक श्रेणीमे गनल जाइत अछि‍। परोपट्टाक लोक गेठरी झाकेँ जनै छन्‍हि, जि‍नका सात सए बीघा जमीन राज-दरभंगासँ भेटल छेलन्‍हि‍ ओना ओ जमीन बेरमा सीमामे नै पड़ैत अछि‍ मुदा दू कोस हटि‍ कऽ छल; आब नै छन्‍हि‍।
पछि‍ला पीढ़ीमे चारि‍ गोटे, वेद, व्‍याकरण साहि‍त्‍यसँ आचार्य केलन्‍हि‍। दू गोटेकेँ मेडल भेटलन्‍हि‍। ओना तीन गोटे गामसँ बाहर वि‍द्यालय पकड़ि‍ लेलन्‍हि‍, मुदा एक गोटे (मेडलधारी) गाममे नून-तेलक दोकान कऽ लेलन्‍हि‍। ‘पढ़े फारसी बेचए तेल’ चरि‍तार्थ भऽ गेल। मुदा अपन लगन आ मेहनति‍सँ तीनू गोटेकेँ आर्थिक क्षेत्रमे पछुआ देलन्‍हि‍, समाजपर बहुत अधि‍क प्रभाव पड़ल। बेरमा मेहनती गाम तहि‍यो छल अखनो अछि‍। आन गाममे क पढ़ल-लि‍खल लोककेँ लोक चुटकी लैत अछि‍, से बेरमामे नै अछि‍। झंझारपुर बाजारसँ माथपर दोकानक वस्‍तु-जातक मोटरी बैशाखक रौदमे अनै छला, जे सभ देखै छल। गाममे एक्केटा दोकान। सबहक लाट दोकानसँ। ओना एकटा झंझारपुरक बनि‍याँ (श्री जयदेव चौधरी) सेहो आबि बेरमामे‍ दोकान खोलने‍ रहथि‍। झंझारपुरक बनि‍याँक परि‍वार भुमकममे नष्‍ट भऽ गेलन्‍हि‍। ईटाक घर रहने सभ दबि कऽ मरि‍ गेलन्‍हि‍। वएह आब बेरमामे आबि‍ बसि‍ गेला। जहि‍ना राजनीति‍क दृष्‍टि‍सँ बेरमा गाम जागल तहि‍ना शैक्षणि‍क दृष्‍टि‍सँ सेहो ई गाम अगुआएल रहल अछि‍।
ओना अंग्रेजी शि‍क्षा सेहो गाममे कम प्रति‍शतमे पहुँच चुकल छल। गामक उत्तर नवानी वि‍द्यालय आ दछि‍न दीप वि‍द्यालय चलि‍ रहल छल। तमुरि‍या आ झंझारपुरमे हाई स्‍कूल सेहो बनि‍ गेल छल। गामक जे तीनू पंडि‍त बाहर रहै छला हुनको सबहक परि‍वार गामेमे रहै छेलन्‍हि‍ अपनो छुट्टी गाममे बि‍तबै छला।
गाममे स्‍कूल कहि‍या बनल, एकर नि‍श्चि‍त ति‍थि‍क जानकारी तँ नै मुदा १९३४ इस्‍वीक भुमकममे वि‍द्यालयक भीत खसल, ई जानकारीमे अछि‍। मुदा वि‍द्यालयक जगह बदलि‍ गेल। कि‍एक तँ ओइ जगहकेँ जनमानस अशुभ बुझए लगल। ओना ओ स्‍थान गामक बरहम स्‍थान छी, शक्‍ति‍शाली जगह। अखनि ओइ स्‍थानमे बाल-बोधक आँगनवाड़ी चलि‍ रहल अछि‍। ओइठामसँ वि‍द्यालय उठि‍ लछमीकान्‍त-रमाकान्‍त साहुक कचहरीमे चलि‍ आएल। ओइ कचहरीमे १९५२ इस्‍वीक पहि‍ल चुनावक केन्‍द्र सेहो बनल। अखनि वि‍द्यालय तेसर स्‍थानपर अछि‍। जे जगह सरि‍सव-पाहीक प्रो. हेतुकर झाक छि‍यनि‍। ओना ओ रजि‍स्ट्री करैले तैयार भेल छथि‍, मुदा जमीन्‍दारीक तेहेन ओझरौठमे पड़ल अछि‍ जे हुनका लि‍खले ने होइ छन्‍हि‍! बुढ़ि‍या गाछीक नाओं जमीनक पड़ि‍ गेल अछि‍। सम्‍प्रति‍ पंचायत भवन, आठमा धरि‍क स्‍कूल, खंडहर रूपमे अस्‍पतालक घर आ भव्‍य दुर्गास्‍थान सेहो अछि‍।
एकडोरि‍मे तीनू गाम, नवानी, बेरमा दीप, रहि‍तो सामाजि‍क वातावरणमे तीनूमे बहुत अधि‍क भि‍न्नता अछि‍। एक तँ परगन्नाक प्रभाव दोसर सामाजि‍क बनाबटि‍। जइ नवानी दीपमे ताड़-खजूरक गाछ सेहो भरपुर अछि, माने ताड़ी पिनहारक नीक संख्या अछि,‍ तैठाम बेरमामे एक्कोटा ताड़-खजूरक गाछ नै अछि‍। दोसर भिन्नता ई अछि‍ जे मध्‍य वर्गीय जाति बेरमामे‍ बहुसंख्‍यक अछि, नवानी दीपमे खूब धनिके आकि खूब गरीबे। खास कऽ दीपमे ई स्थिति भयावह अछि जइ गाममे एक्केटा खूब धनिक परिवार रहैए ओइ गामक शेष लोक गरीब रहैए, सएह स्थिति दीप गामक अछि।
जगदीश प्रसाद मण्डल पाँच-छह बर्खक रहथि तखनेसँ भैया संग माने कुलकुल मण्‍डल संगे स्‍कूल जाए लगला। गामेमे लोअर प्राइमरी स्‍कूल छल जे दुनू पालीमे चलै छल। अखनि तँ आठम धरि‍क पढ़ाइ हुअ लगल अछि‍ तहि‍ना एक शि‍क्षकसँ चलैत स्‍कूल सेहो आब सतरह शि‍क्षक धरि‍ पहुँच गेल अछि‍।
तँए कि‍ शि‍क्षा अगुआ गेल? जि‍नगी लेल सर्वांगीन वि‍कास अनि‍वार्य अछि‍, जौं से नै तँ ओ अपलांग-वि‍कलांग भेल पड़ल रहत। सामान्‍य स्‍कूल-कअोलेज तँ ठाम-ठीम बनल मुदा तकनीकी शि‍क्षाक वि‍कास नै भेल। परि‍णाम बनि‍ गेल अछि‍ जे काजक दि‍शे बदलि‍ गेल अछि‍। खर जे होउ, मुदा आजादीक पहि‍नौं आ पछाति‍ओ बेरमा राजनीति‍क शैक्षणि‍क दृष्‍टि‍सँ अगुआएल रहल
आजादीक आन्‍दोलनमे बचनू मि‍श्र उभड़ला। नवानी वि‍द्यालयमे भनसि‍याक काज करैत रहथि‍। लि‍खनाइ तँ नै सीखि‍ भेलन्‍हि‍ मुदा वक्‍ता भऽ गेला। देशक प्रति‍ ओहेन समरपित जे आजादीक दौड़मे तीन मास धरि‍ बि‍ना नूनक भँट्टे-बैगन उसनि‍-उसनि‍ खा दि‍न-राति‍ काज करैत रहला, आन्‍दोलन गाम-गाम पकड़नइ रहए। काजेसँ इमानदारी सेहो अबै छै। १९३४ इस्‍वीक भुमकम पछाति‍ राशनक जे बँटवारा हुअ लगल, तइमे एतेक इमानदारीक परि‍चए मधेपुर थानामे देलन्‍हि‍ जे समाजक सभ हुनका गाँधीजी कहए लगलन्‍हि‍। तैसंग आरो-रो लोक रहथि‍। बेरमा पंचायत बनबैमे हुनकर योगदान बहुत रहलन्‍हि‍। जनसंख्‍याक हि‍साबसँ ओइ समयक पंचायतक हि‍साबसँ, बेरमा छोट पड़ैत रहए। सामाजि‍क बुनाबटि‍ एहेन जे गाम-गामक बीच अपन-अपन सम्‍बन्‍ध, तँए के केकरा संग रहत, ई जबरदस समस्‍या। मुदा दीप गामक नेतृत्‍वक सहयोगसँ, जे अपन पंचायत काटि‍ पंचायत बनबैमे सहयोग केलथि‍, पंचायत बनल।
पछाति‍ बचनू मि‍श्रक दि‍माग गड़बड़ा गेलन्‍हि‍। ओना अस्‍सीसँ ऊपर बर्खक उमेरमे मुइला मुदा प्रभाव कमि‍ गेलन्‍हि‍। ब्रेन प्रभावि‍त होइक कारण दूटा भेलन्‍हि, पहि‍ल पारि‍वारि‍क आर्थिक स्‍थि‍ति‍ आ दोसर राजनीति‍क क्षेत्रमे इमानदारीक अभाव। मुदा अंत-अंत धरि‍ समाजकेँ जगबैत रहला
अठारहम शताब्‍दीक पूर्वार्द्धमे एकहरे खड़का मूलक परि‍वारमे पंडित कंचन झा आ पंडित बबुए झा वैदि‍क भेला। ओना ओइ समैमे अंग्रेजी शि‍क्षाक प्रचार-प्रसार नै भेल छल, मुदा संस्‍कृत शि‍क्षाक स्‍वार्णिम युग अवस्‍स छल। स्‍वर्णिम अइले जे सामाजि‍क ढाँचा, कि‍छु वि‍च्‍छृंखला छोड़ि‍, वैदि‍क पद्धति‍सँ चलै छल। आस्ते-आस्ते बि‍च्‍छृंखला बढ़ि‍ते गेल। पछाति‍ अंग्रेजी शि‍क्षाक प्रभाव सेहो खूब पड़ल।
पंडित कंचन झाक बालक पंडित भुटाइ झा प्रसिद्ध गेठरी झा ख्‍याति‍ प्राप्‍त वैदि‍क भेला, हुनका दरभंगा राजसँ सात सए बीघा जमीन लाखेराज ब्रह्मोत्तर रूपमे भेटल छेलन्‍हि‍ ओइ समैमे कि‍नको ताधरि‍ पंडि‍तक बीच स्‍थान नै भेटनि‍ जाधरि‍ ओ काशीसँ पढ़ि‍ नै अबै छला।
पंडित चि‍त्रधर ठाकुर हुनके घरक भगि‍नमान परि‍वार। पंडि‍त चि‍त्रधर ठाकुरकेँ तीन बालक, पंडित जयनाथ ठाकुर, पंडित तेजनाथ ठाकुर आ पंडित खर्गनाथ ठाकुर। तीनू पंडि‍त मुदा जेठका भाय खेती करैत कि‍सान बनि‍ गेला आ बाँकी दुनू भाँइ पंडित तेजनाथ ठाकुर आ पंडित खर्गनाथ ठाकुर काशीसँ पढ़ि‍ एला। उच्‍चकोटि‍क श्रेणीमे गि‍नती छेलन्‍हि‍ पंडि‍त तेजनाथ ठाकुर जीवन-पर्यन्‍त लोहना संस्‍कृत वि‍द्यालयमे सेवा देलन्‍हि‍। तेकर पछाति‍ परि‍वारमे पंडित गौरीनाथ ठाकुर, अनि‍रूद्ध ठाकुर आ सुन्‍दर ठाकुर भेला। शरीरसँ अबाह रहने पंडित सुन्‍दर ठाकुर वैद्यक रूपमे गामेमे वैद्यगि‍री करैत रहला। पंडित अनि‍रूद्ध ठाकुर व्‍याकरणक पंडि‍त, ओ सीतामढ़ीक एकटा वि‍द्यालयमे जि‍नगी भरि‍ सेवा देलन्‍हि‍।
अखनि धरि दुइए परि‍वारक चर्च भेल अछि‍ मुदा एतबे नै अछि‍। पंडित कामेश्वर झा, जे खगड़ि‍या वि‍द्यालयक संग दीप महावि‍द्यालयमे सेहो सेवा देलन्‍हि‍। वेद-व्‍याकरणक प्रकाण्‍ड पंडि‍त छला। पंडि‍त चण्‍डेश्वर झा अरड़ि‍या मध्‍य वि‍द्यालयक संस्‍थापि‍त शि‍क्षक बनि‍ अध-वयसे मरि‍ गेला।
पंडि‍त उपेन्‍द्र मि‍श्र सभसँ भि‍न्न छला। एक संग ज्‍योति‍ष, वेद, व्‍याकरण साहि‍त्‍यक वि‍शेष ज्ञाता छला। केतेको महावि‍द्यालयमे सेवा दैत शरीर ति‍याग केलन्‍हि‍। सभसँ भि‍न्न ओ ऐ अर्थमे छला जे कोनो महावि‍द्यालयमे अधि‍क दि‍न नै टि‍क पबै छला। सालक भीतरे कि‍छु-ने-कि‍छु खटपट भइए जाइ छेलन्‍हि‍ जखने खटपट होइ छेलन्‍हि‍, सोझे घरमुहाँ भऽ जाइ छला। मुदा गामो एलापर केकरो कि‍छु कहैत नै छेलखि‍न। कि‍यो पुछबो ने करनि‍ जे ओहि‍ना एलौं आकि‍ झगड़ा-दन कऽ क एलौं। अद्भुत गुण छेलन्‍हि‍ जे अपने-आप वि‍मर्श करैत, समए संग अपन कर्त्तव्‍यकेँ छुटैत देखि‍ दोसर महावि‍द्यालय दि‍स‍ वि‍दा होइ छला। खराम छोड़ि‍ पएरमे कहि‍यो जूत्ता-पप्‍पल नै पहिरलन्‍हि‍। परोपट्टाक वि‍द्वानक बीच अपन पहि‍चान छेलन्‍हि‍, जइसँ कोनो वि‍द्यालय, महावि‍द्यालयमे स्‍वागत रहै छेलन्‍हि‍
पंडि‍त उदि‍त नारायण झा, जे गोल्‍ड मेडलसँ सम्‍मानि‍त छला, शि‍क्षण कार्य छोड़ि‍ दोकानदारी बेवसायकेँ अपन जीवि‍का बनौलन्‍हि‍। परि‍वारक स्‍थि‍ति‍ खराछेलन्‍हि‍ बि‍नु उपारजने चलैबला नै छेलन्‍हि‍ मुदा कि‍छुए दि‍नक मेहनति‍क फल नीक भेटि‍लन्‍हि‍। जीवन-यापन करैत बीस बीघा जमीन परि‍वारमे बनौलन्‍हि‍।
पंडित रामनारायण झा व्‍याकरणक ज्ञाता छला। शरीरसँ पुष्‍ट रहने शुरूमे पुलि‍सक नोकरी शुरू केलन्‍हि‍, मुदा वि‍देशी शासनक उठैत वि‍रोधमे नोकरी छोड़ि‍ शि‍क्षण कार्यमे चलि‍ एला, बेसि‍क स्‍कूल घोघडि‍हामे प्रवासी जीक संग रहि‍ सेवा देलन्‍हि‍।
गामक स्‍कूलसँ १९५६ ई.मे जगदीश प्रसाद मण्डल नि‍कलला। गामसँ सटले पूब कछुबीमे मि‍ड्ल स्‍कूल बनि‍ गेल छल। तइसँ पहि‍ने चमा धरि‍क स्‍कूल छल। मि‍ड्ल स्‍कूल अलग बनल। ओना अखनि दुनू मि‍लि‍ एक भऽ गेल अछि‍ मुदा पहि‍ने दुनू अलग-अलग छल। ओइ समैमे पँचमा धरि‍ फीस नै लगै छल, मुदा छठा-सातमामे अढ़ाइ रूपैआ महिना फीस लगै छल।
जगदीश प्रसाद मण्डल १९६० इस्‍वीमे मि‍ड्ल स्‍कूलसँ नि‍कलि‍ केजरीबाल हाइस्‍कूल झंझारपुरमे नाओं लि‍खेलन्‍हि। बेरमाक वि‍द्यार्थी तमुरि‍या हाइ स्‍कूल आ झंझारपुर हाई स्‍कूल, ऐ दुनू ठाम साले-साल वि‍भािजत होइत रहै छल। कारणो रहए। जइ रूपक शि‍क्षकक टीम झंझारपुरमे छल ओइ तरहक टीम तमुरि‍यामे नै छल। तमुरि‍या हाइ स्‍कूलमे एक-आध शि‍क्षक साले-साल जाइ-अबै छला जखनि कि‍ झंझारपुरमे से नै छल, जइसँ झंझारपुरकेँ नीक मानल जाइ छल। जहि‍ना गामक आन-आन वि‍द्यार्थी पएरे जाइ-अबै छला तहि‍ना ईहो जाइ-अबै छला। कि‍छु गोटे होस्‍टलोमे रहै छला। सालो भरि‍ कि‍छु-ने-कि‍छु असुवि‍धा रहि‍ते छेलन्‍हि, ओना अखनो कि‍छु-कि‍छु छन्‍हि‍येँ। सालो भरि‍ ऐ तरहेँ रहै छल।
अगहनसँ माघ धरि‍ दि‍नो छोट होइए, मुदा वि‍द्यालयक समए छोट नै होइ छल। काजक अनुकूल समए भेटने दि‍न-राति‍मे अन्‍तर भलहिं नै बूझि‍ पड़ैए, मुदा गाम-घर लेल तँ ई कठि‍न अछि‍ए। मौसमी छुट्टीक नाओंपर दिसम्बरमे आठ-दस दि‍न बड़ा दि‍नक छुट्टी होइ छल, जे परीछोपरान्‍त आ रि‍जल्‍टसँ पूर्व होइ छल।
गरमीओ मासमे असुवि‍धा तँ तहि‍ना मुदा ओ असुविधा दोसर तरहक होइ छल। ओना एकरा आम खाइक छुट्टी सेहो कहल जाइ छै मुदा ग्रीष्‍मावकासक नाअों सेहो छै, ई नमगर छुट्टी, मास दि‍नक होइ छल। नीक परि‍वारक वि‍द्यार्थीकेँ अनुकूल वातावरण रहने दोहरी लाभ होइ छेलन्‍हि‍, साधारण परि‍वारक वि‍द्यार्थी आम खाइत-खाइत अदहा-छि‍दहा बि‍सरि‍ जाइ छला। शैक्षणि‍क वातावरण स्‍पष्‍ट रूपमे वि‍भाजि‍त भऽ जाइ छल। जहि‍ना जाड़क मास जाड़सँ बरेड़ी छुबैत अछि तहि‍ना गरमीओ गाछक फुनगी छुबैत अछि‍। जइसँ अप्रील माने चैतसँ ताधरि‍ वि‍द्यालय भि‍नसुरका होइ छल, जाधरि‍ गर्मी छुट्टी नै भऽ जाइ छल।
तमुरि‍या हाइ स्‍कूल आ झंझारपुर हाइ स्‍कूलमे ईहो अंतर छल जे अदहा घंटा आगू-पाछू खुजबो करै छल आ बन्नो होइ छल। कारणो छेलै, कमला पछि‍मक गाम मेंहथ, नरूआर आदि‍सँ लऽ कऽ पूबमे बेरमा धरि‍ आ गंगापुर खरबाइरसँ लऽ कऽ अलपुरा-अरड़ि‍या धरि‍क वि‍द्यार्थी झंझारपुरमे पढ़ै छला। ते नमहर क्षेत्र, तँए वि‍लम्‍बसँ स्‍कूल खुलै छल। ओइ समए साढ़े एगारह बजे वि‍द्यालयमे छुट्टी होइत रहए। तखनि पान-सात मील पएरे चलब कठि‍न छल। ओना ई बड़ कठि‍न नै कि‍एक तँ बेरमाक वि‍द्यार्थी पएरे चलि‍ लोहनो वि‍द्यालयसँ पढ़ने छला। तहि‍ना बर्खा मासमे सेहो होइ छल। कखनि पानि‍-वि‍हाड़ि‍ आबि‍ जाए, तेकर कोनो ठीक नै। तहूमे केतेकाल बरि‍सत तेकरो ठेकान नै। खैर जे हो...
केजरीवाल हाइ स्‍कूल झंझारपुरमे १९६३ ई.मे हायर सेकेण्‍ड्रीक पढ़ाइ शुरू भेल। मुदा थोड़े पेंच लागि‍ गेलै। कला-विज्ञान आ वाणि‍ज्‍य तीनूक पढ़ाइ होइ छेलै। कला-वि‍ज्ञानक मंजूरी भेट‍‍ गेल, वाि‍णज्‍यक भेटबे ने कएल। केते रंगक हवा बहए लगल। ओना शि‍क्षकमे बढ़ोत्तरी पछाति‍ भेल, मुदा शुरूमे असुवि‍धा रहल।
१९५९ ई.मे जनता कौलेज खुजल। जन-सहयोगसँ कौलेज खुजल। मुदा कौलेजक जे नमगर-चौड़गर घर चाही, जे औगताएलमे नै भेलै तँए हाइए स्‍कूलमे साधारण रूपे पढ़ाइ शुरू भेल। कि‍छु गनल चुनल विषयक पढ़ाइ शुरू भेल। खएर जे भेल, मुदा शि‍क्षामे नव जागरण क्षेत्रमे आएल। बहुतोक मनक मुराद पूरा होइक संभावना बढ़ल। बी.ए. तकक पढ़ाइ लगमे हएत, तखनि पढ़ैबला बच्‍चा आ पढ़बैबला गारजनक मनमे किए ने उत्‍साह जगतनि‍। कि‍छु दि‍न पछाति‍ कौलेजक अपन कँचका ईंटा आ खपड़ाक मकान बनलै।
जगदीश प्रसाद मण्डल १९६५ ई.मे हायर सेकेण्‍ड्री पास केलापर बी.ए. पार्ट वनमे नाओं लि‍खेलन्‍हि। पहि‍ने दू बर्खक आइ.ए. आ दू बर्खक बी.ए. प्री हुअ लगलै दुनू दि‍ससँ वि‍द्यार्थीक प्रवेश हुअ लगल। बी.ए. पार्ट वन केलापर आनर्स पढ़ैक वि‍चार भेलन्‍हि। आ आन कौलेजमे आनर्सक पढ़ाइ होइ छल, जनता कौलेजमे नै होइ छल। एक-दू-तीन शि‍क्षकसँ अधि‍क कोनो वि‍षयमे शि‍क्षक नै छल। हि‍न्‍दी वि‍भागमे सेहो दुइए गोटे छला। प्राइवेट रूपमे तैयारी करए लगला। सी.एम. कौलेजक नाओंसँ फार्म भराएल आ परीक्षो भेल।
१९५२ इस्‍वीक चुनाव पछाति‍ देशक अपन वि‍धि‍वत सरकार बनल। मुदा एक संग केतेको प्रश्न उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेल। सरकारी कार्यालयमे कर्मचारीक जरूरति‍ भेल। जेकर बहालीमे जाति‍वाद आ पैरवी-पैगाम शुरू भेल। आम जनताक जगाएल सरकार जनतासँ बहुत दूर हटि‍ गेल।
ओना जे कोनो नव-स्‍वतंत्र देशक स्‍थि‍ति‍ होइए तहि‍ना अपनो ऐठाम रहए। मुदा ओइ लेल जेते सकारात्‍मक सोच आ काजक औसत हेबाक चाहि‍ऐ से नै भेल।
सामंती सोच; आ सामंत मजगूत छल, जइसँ आम-अवामक बीच आक्रोश पनपए लगलै। राजा-रजबाड़े जकाँ शासन पद्धति‍ चलए लगल। तही बीच भूदान आन्‍दोलनक उदय सेहो भेल। ओना तेलांगनासँ शुरू भेल भूमि‍ आन्‍दोलन देशकेँ डोला देने छल। तैसंग केरल, बंगालक संग छि‍टफुट अनेको राज्‍यमे भूमि‍ आन्‍दोलन पकड़ि‍ रहल छल। दरभंगा जि‍लामे सेहो भूमि‍ आन्‍दोलन शुरू भेल।
१९५७ इस्‍वीक चुनावमे काँग्रेस सरकारक स्‍थि‍ति‍ कमजोर भेल। केरलमे वामपंथी सरकार बनि‍ गेल। आजादीक दौड़क जे जागरण छल आे ताजा छल, जइसँ अखुनका जकाँ नै छल। ऐ बीच गोटि‍-पङरा हाइ स्‍कूल, कौलेज, प्राइवेट रूपमे बनए लगल छल। मुदा औसत कम रहल। खादी भंडार उद्योगक ह्रास होइत गेल आ होइत-होइत ई मेटा जकाँ गेल। तहि‍ना नगदी पैदावारमे कुशि‍यार सेहो छल, जे उद्योगपति‍क चलैत सेहो मरए लगल।
मि‍थि‍लांचलमे मूलत: जीवि‍काक साधन कृषि‍ छल। ओना सघन रूपमे कृषि जीवि‍काक पैघ साधन छी, मुदा से नै छल। जेहो छल तहूमे रंग-बि‍रंगक छल-प्रपंच चलि‍ रहल छल। बटाइ खेतीमे अधि‍या उपज उपजौनि‍हारकेँ भेटै छेलै। जखनि कि‍ उपजबैमे, खेती करैमे कि‍छुए अन्नक खेती लाभप्रद छल। उपजाक अनुपातमे लागत खर्च किछुमे कम छल आ कि‍छुमे अधि‍क। जइमे अधि‍क छल ओइमे बटेदारकेँ घाटा लगैत छेलै। तैसंग रौदी-दाहीक प्रभाव ओहेन कि‍सानपर सेहो पड़ै छल जे खेती करै छला। जे बेसी खेतबला छला हुनकर खेती अधि‍कतर बटाइक माध्‍यमसँ चलै छल। तैसंग अधि‍क अन्न रहने अन्नक महाजनीओ चलैत छेलन्‍हि‍ महाजनीओक प्रथा गाम-गामक फुट-फुट छल। कोनो गाममे सवाइ (एक मोनक सवा मोन, एक सि‍जीनक), तँ कोनो गाममे एगारही (आठ पसेरीक मोन, एक मोनक एगारह पसेरी), तँ कोनो गाममे डेढ़ि‍या (एक मोनक बारह पसेरी) छल। जेकर मतलब भेल जे एक मोनक अदहा मोन सूदि‍ए भेल। तैसंग हो होइ छल जे सालक कर्ज सालमे चुकाएल जाइ छल आ जौं से नै तँ सूदो मूड़े बनि‍ जाइत छेलै जइसँ दू साल बितैत-बितैत कर्ज दोबरा जाइ छेलै।
अखुनका जकाँ बि‍आह तँ तेते भारी नै छल मुदा माए-बापक सराधमे सामाजि‍क आ जातीय एहेन चाप छल जे खेत-पथार बेचि‍ काज चलै छल। खेतक हि‍साबसँ चारि‍-पाँच मेलक कि‍सान छला। गामक-गाम एक-एक गोटेक छेलन्‍हि‍, जखने एकठाम जमीन समटाएल रहत तखनि दोसर-तेसरक की आ केते हेतनि‍?
खेतमे काज करैबला बोनि‍हारोक स्‍थि‍ति‍ बद-सँ-बदत्तर छल। एक तँ दि‍न भरि‍क बोइन‍ कम, तहूमे सालक गनल दि‍न काज होइत।
कि‍सानोक बीच खेतीक नव वैज्ञानि‍क खेतीक पद्धति‍क अभाव छेलन्‍हि‍ अभावोक कारण छल जे ने सरकारक धि‍यान खेती दि‍स छल आ ने खेतीक साधन उपलब्‍ध छल।
त्रेता युगक जनकक हर जकाँ खेत जोतैक हर होइ छल! जहि‍ना मरियाएल बड़द तहि‍ना जोति‍नि‍हार। तैसंग खेत पटबैक पानि‍क कोनो दोसर बेवस्‍था नै। जहि‍या पानि‍ हएत तहि‍या खेती शुरू हएत। जइसँ बे-समए खेती होइ छल। पोखरि‍-झाँखड़ि‍मे अनेरूआ माछ जे होइ, सएह माछ पोसब कहाइ छल। तहि‍ना तीमनो-तरकारी आ फलो-फलहरीक हाल छल। मोटा-मोटी कृषि‍क ओहेन दशा बनि‍ गेल छल जैपर जीवन यापन करब कठि‍न भऽ गेल छल।
पशुपालनक रूपमे गाए-महिंस बकरी पोसब मात्र चलै छल। गाए-महिंस पोसैक बीच महाजनीक एहेन सूत्र लागल छल जे पोसि‍नि‍हार सिरिफ पोसै छला। एक तँ नस्‍ल पछुआएल रहने पछुआएल कारोबार, दोसर एहेन जालमे ओझराएल जे धीरे-धीरे ई तेना कमि‍ते गेल जे बढ़ैक कोनो संभावना नै रहल।
नगदी फसि‍लक रूपमे कुशि‍यार आ पटुआक खेती छल। मुदा उद्योगपति‍क कारामातसँ ओहो दुनू कमजोरे होइत गेल। मुदा सरकारक प्रति‍ जन-आक्रोश बढ़ल। गाम-घरक लोक सरकारी लाभक माने बुझै छल मात्र कोटाक वस्‍तु धरि‍। सेहो रस्‍ते-पेरे लूटाइ छल।
१९६७ इस्‍वीक चुनाव आएल। जगदीश प्रसाद मण्डल बी.ए.क वि‍द्यार्थी रहथि। आजादी पछाति‍ पहि‍ल जन-जागरण छल। पढ़लो-लि‍खल आ वि‍द्यार्थीओ सभ अइमे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूपेँ मैदानमे उतरल।
जगदीश प्रसाद मण्डल बी.ए. पार्ट-केलन्‍हि आ करि‍ते १९६७ ईस्‍वीक आम चुनाव आएल। जहि‍ना काग्रेस पार्टी जन-समूहसँ हटि कि‍छु खास जाति‍क पार्टी बनि‍ रहल छल तहि‍ना आनो-आन पार्टीक स्‍थि‍ति‍ छेलै। कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टी ि‍कछु क्षेत्रमे मजगूत छल मुदा झंझारपुर इलाकामे कमजोर छल, मुदा तैयो ई एतए जोर-सोरसँ पकड़ि‍ रहल छल। काग्रेसक प्रति‍ लोकक आक्रोश बढ़ि‍ रहल छल। सरकार वि‍रोधी (काग्रेस सरकार) हवा बनि‍ रहल छल। कारणो छेलै, स्‍वतंत्रता आन्‍दोलनमे स्‍वतंत्र देशक जे आकांक्षा होइत ओ तँ छेलैहे मुदा ओकर पूर्तिक कोनो उपए नै भेल। संगे-संग काग्रेस पार्टी जनसमूहक संग छोड़ि‍ परि‍वार वि‍शेष वा जाति‍-वि‍शेषमे समटा चुकल छल। ग्रामीण समाजमे स्‍वतंत्रताक कोनो लाभ स्‍पष्‍ट रूपेसोझहा नै आएल। कि‍सान प्रधान मि‍थि‍लांचलक स्थिति आजादी पूर्वेक बनल रहल। ओना देशेमे पंजाबक कि‍सानक स्‍थि‍ति‍ सुधरि‍ गेल। कारण ओइठामक सरकार कृषिकेँ प्रमुखतासँ पकड़ि‍ पानि‍-बि‍जलीक बेवस्‍था कऽ लेलक। पानि‍ आ बि‍जली, कृषि लेल दुनू साधन प्रमुख अछि। से बि‍हार (मि‍थि‍लांचल)मे नै भेल। शि‍क्षा-बेवस्‍थामे सेहो जेहेन हेबाक चाही से नै भेल। संग-संग आरो बहुत कारण भेल, जइसँ वि‍द्यार्थीक बीच आक्रोश सेहो बढ़ल। राजनीति‍क चेतना बढ़ने जगौनि‍हारोक संख्‍या बढ़ल। मुदा अपनेमे लड़ने-झगड़ने सभ वि‍रोधी पार्टीक स्‍थि‍ति‍ सेहो खरापे। नव चेतनाक संग वि‍रोधी (काग्रेस वि‍रोधी) सभ राजनीति‍क पार्टी एक मंचपर आएल। अंग्रेजीए शासन जकाँ काग्रेसो शासनक वि‍रूद्ध लोक उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। ओना देशेक, मुदा बि‍हारक तँ कहले जेतै जे स्‍वतंत्रताक उपरान्‍त पहि‍ल जन-जागरण छल।
सभ पार्टीकेँ एक मंचपर एने कोनो नि‍श्चि‍त कार्यक्रम बनब असंभव छल, कारण एते जल्‍दि‍बाजीमे भइए की सकैए। तखनि तँ आम-चुनाव पीठपर अछि‍ तँए सरकार बदलैक कार्यक्रम बनल।
कि‍सान-बोनि‍हारक संग बुद्धि‍जीवि‍ओ मैदानमे उतरला। कांग्रेस वि‍रोधीक नीक हवा बनल।
अपन मधुबनी जि‍लामे अखनि दूटा पार्लियामेंट क्षेत्र अछि‍, तइ दि‍न दरभंगे जि‍ला छल। दुनू क्षेत्रमे काग्रेस हारल। हारबे नै कएल, वोटोक प्रति‍शत बहुत नि‍च्‍चा उतरल। एकसूत्री कार्यक्रम, कांग्रेस हटाउ, रहने काेनो राज्‍यमे एक पार्टीक सरकार नै बनल। खि‍चड़ीए सरकार बि‍हारो, बंगालो, उत्तरो प्रदेश आ आनो-आन राज्‍यमे बनल। समस्‍यासँ ग्रसि‍त राज्‍य सभ छेलैहे, केम्हरसँ समस्‍या पकड़ल जाए, ई मुख्‍य समस्‍या छल। तैबीच चतरल-गछगर भूदानो आन्‍दोलन उधि‍आए गल। मुदा तैयो कि‍छु गोटे भूदानसँ राजनीति‍क मंचपर एला।
भूदानकेँ आन्‍दोलनक रूपमे ठाढ़ कएल गेल। ओना तेलांगनाक भूमि‍ आन्‍दोलन चरमपर छल। जमीनक छअम भाग (छअम हि‍स्‍सा दान दिअ) हि‍स्‍सा मंगैक अभि‍यान शुरू भेल। लोक लाखक-लाख बीघा दान देलन्‍हि‍। सबहक अनुमान भेलन्‍हि‍ जे देशक छअम हि‍स्‍सा गरीबोक बीच आैत। कोनो गाम दू प्रति‍शतसँ लऽ कऽ पनरह बीस प्रति‍शत तकक जमीन घर-घराड़ीमे लगै छै। तैठाम छअम हि‍स्‍सा सोलह प्रति‍शतसँ ऊपर, जमीनक आमद-खर्च दुनू भऽ गेल। भलहिं आइओ, २०१२ ई.मे ढेरो परि‍वार एहेन अछि‍ जेकरा चारि‍ डि‍समि‍ल जमीन नै छै जे घरो बना सकत।
जहि‍ना हवामे उधियाइत भूदान आन्‍दोलन आएल आ गेल तेकर ओते प्रभाव नै पड़ल जेते गामक एकटा गृह-उद्योग समाप्‍त भेने भऽ गेल। खादी-भंडारक माध्‍यमसँ कारोबार चलै छल, तइमे तेना कऽ मुसहनि‍ लागल जे अन्न-माटि‍ दुनू एकबट्ट भऽ गेल। जेहने दाना अन्न तेहने मुसहनि‍क माटि‍, केना बेरौल जाएत। ओना अखनो कि‍छु गोटे भूदानी जमीन पाबि‍ खुशहालीक जि‍नगी बनौने छथि‍, तहि‍ना कपड़ोक (खादी) कारोबार चलैए, मुदा नगण्‍य रूपमे। जहि‍ना लूटमे चरखा नफा कहल जाइ छै तहि‍ना चरखोक नफा सठि‍ रहल छल, मुदा अखनो बुनि‍यादी समस्‍याक भीड़ कि‍यो जाए नै चाहैत अछि‍। ओहेन समाजो नै बनि‍ सकल अछि‍। ओना समाजो केना बनत, दुरूस्‍त केनि‍हारसँ बेसी भङठेनि‍हारे अछि‍। बेरोजगारोक संख्‍या कम नै छै मुदा ओहनो बेरोजगार तँ अछि‍ए जेकरा मोटर साइकि‍ल, होटल, मोबाइल होइत कपड़ा-लत्ता, भोजन-छाजन सहि‍त बीस हजार रूपैआ महिनाक जि‍नगी बनि‍ गेल अछि‍।
तैंतीस सूत्री कार्यक्रम लऽ कऽ मि‍लल-जुलल सरकार बनल। मैट्रि‍कक परीछामे अंग्रेजी भाषाकेँ कमजोर कएल गेल, संग-संग हाइ स्‍कूल तकक शि‍क्षा फ्री करैक अावाज उठल। १९५७ इस्‍वी पछाति‍ अंग्रेजी शि‍क्षा आगू बढ़ल। जइ अंग्रेजीक पढ़ाइ आठमा (हाइ स्‍कूल) सँ शुरू होइ छल ओ मि‍ड्ल स्‍कूलमे प्रवेश कऽ गेल। छठासँ पढ़ाइ शुरू भऽ गेल। घीच-तीड़‍ कऽ अठारह महिना सरकार चलल। फेर मध्‍यावधि‍ चुनाव भेल। मुदा पहुलका खि‍चड़ी, जे सोलहन्नी घीसँ अलग छल, ऐबेर घी-खि‍चड़ी सरकार बनल। समस्‍या-समाधानक प्रति‍ ओते नै भेलै मुदा जन-जागरण जरूर भेलै। तैबीच हरि‍त क्रान्‍ति‍ कृषि‍मे सेहो भेल। केतौ-केतौ तँ एहेन भेल जे जइ खेतमे पाँच सेर कट्ठा होइ छल ओ क्विन्‍टल कट्ठा उपजए गल। मुदा अपना ऐठामक जमीनक ईहो दुर्भाग्‍य रहल जे खेतबला नोकरी-चाकरी करए शहरसँ वि‍देश धरि‍ पहुँच गेला, मुदा खेत तँ गामेमे रहि‍ गेलन्‍हि‍। बटाइक एहेन बेवहार जे बटेदारकेँ लाभ नै होइत, पाइ-कौड़ी कमेने संस्‍कारो तेज भेलन्‍हि‍। अभावमे लोक खेत बेचैए आकि‍ पाइओ-कौड़ी रहने लोक बेचत। से पड़ले रहत। मुदा बेचि‍ कऽ बाप-दादाक नाक केना कटाएब!
तैसंग सरकारी कार्यालय कागजी झंझटि‍क अड्डा बनल अछि‍। मि‍थि‍लांचलक एक-एक समस्‍या मि‍थि‍लावासीक छि‍यनि‍। अखनो बच्‍चा सबहक स्‍कूलमे ऐ ढंगसँ बच्चाकेँ मारल-पीटल जाइ छै जे ओ स्‍कूल छोड़ि‍ दैत अछि‍। एक्कैसम शताब्‍दीमे जौं अठारहम सदीक बेवहार चलत तँ ओइसँ समुचि‍त लाभक आशा नै कएल जा सकैए।
जगदीश प्रसाद मण्डल १९६७ इस्‍वीक चुनावी दौड़मे जनवरी १९६७ ई.मे भारतीय कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक सदस्‍य बनला। चुनावो पीठेपर रहै, मधेपुरोसँ काग्रेस पार्टी हारल।
गाम-समाजसँ लऽ कऽ देशक राजनीति‍ तकमे अराजक स्‍थि‍ति‍ बनए लगलै। १९५७ इस्‍वीक केरलक वामपंथी सरकार तोड़ैमे सरकारक (कांग्रेस सरकार) साख खसल। स्‍वतंत्रता सेनानीओक (आजादीक लड़ाइ लड़नि‍हारोक) संख्‍यामे बहुत कमी नहि‍येँ भेल छल। कि‍छु प्रखर नेता जरूर मरि‍ गेल छला। राजनीति‍क क्षेत्रमे भाइ-भातिज आ जाति‍वाद, सम्‍प्रदायवाद, दल-बदल इत्यादि जोर मारलक। नेतृत्‍वक साख सेहो घटल। जाति‍वाद रूपमे जेतए जनताक साख नेतृत्‍वक नजरि‍मे गि‍रल तेतए कोनो पार्टीक वि‍धायक सांसद कुरता-धोती पहिरि‍-पहिरि‍ लोकक बीच अबए लगला। बड़का नेताक संग छोटकाक बलि‍ चढ़ए गल कि‍एक तँ जाति‍, कुटुम, गौआँ, पड़ोसी लेन-देन ओकर आधार बनल। बि‍हारोक राजनीति‍ जटा-जटिनक नाच जकाँ झि‍लहोरि‍ खेलए लगल। प्रशासनो लाभ उठौलक। वोटक पार्टीकेँ बि‍नु वोटक पार्टी दबा-दबा शासन पकड़ए लगल। एक तँ ग्राम-पंचायत सि‍नेमा पोस्‍टर जकाँ मात्र नाम गाम छल, जेकरा मजगूत करब सभसँ अहम, मुदा देशक ई एहेन संस्था छल जेकरा आरो कमजोर बना सरकारी तंत्रक हाथमे समेटि‍ कऽ रखि‍ देल गेल छल। कोट-कचहरीक चलती आबि‍ गेल, केना नै अबैत? एक दि‍स‍ हारल मुखि‍या आरो-आरो सत्तासीन हुअ लगल आ जनताक प्रति‍नि‍धि‍ सड़कपर रहि‍ गेल। जमीनदार-सामंत घसाइत-घसाइत घसा गेल, गाम-गामक ओकर जमीन गौआँक अखड़ाहा बनि‍ गेल। जेकर लाठी, तेकर भैंसक स्‍थि‍ति‍ बनि‍ गेल।
वि‍चारधाराक बीच राजनीति‍क पार्टीक बीच सेहो उठा-पटक हुअ लगल। मोटा-मोटी सामाजि‍क, आर्थिक, बौद्धि‍क, राजनीति‍क सभ मंचपर वैचारि‍क संघर्षक संग सामाजि‍क-आर्थिक विश्लेषण सेहो हुअ लगल, जेकर परि‍णाम इन्‍दि‍रा जीक नेतृत्‍वकालमे स्‍पष्‍ट भऽ गेल। आजादी पछाति‍ कांग्रेसक बीच पहि‍ल वैचारि‍क लड़ाइ छल।
गाम-गाममे सेहो पुरोहि‍तवादकेँ धक्का लागल। जति‍या आगू पति‍या नै लगै छै, ई ि‍नर्णायक भेल। मुदा जइ रूपमे आर्थिक शोषण होइ छल तइमे कमी नै भेल। जाति‍मे कि‍छु बदलाव आएल मुदा बेवहारि‍क पक्ष ठामक ठामहि‍ रहि‍ गेल। केतबो ठामक-ठामे रहल तैयो बेवस्‍थाक वि‍रोधमे कि‍छु-ने-कि‍छु लाभ भेबे कएल। कारणो भेल, होहामे काज तँ शुरू भेल मुदा पोथी-पत्राक भाषा तँ संस्‍कृते रहए। पढ़नि‍हारोक संख्‍या कम आ बुझि‍नि‍हारक तँ सहजहि‍ नै। मुदा तैयो कि‍छु-ने-कि‍छु चक-चूक चलि‍ते रहल। केतौ “ॐ” लऽ कऽ मारि‍-पीटि‍ तँ केतौ कि‍छु। जहि‍ना पोथी-पतराक दशा भेल तहि‍ना राजनीति‍क मंचपर गाँधीवादक दशा भेल‍। एक्के बात एक्के पाँति‍क व्‍याख्‍या, जेते-मुँह तेते रंगक व्याख्या हुअ लगल। जरूरत अछि‍ जे ऐ समस्‍याक समाधान मजगूतीसँ कएल जाए। नै तँ मूड़न आ सराधक भोजमे कोनो भेद नै रहत।
शि‍क्षण-संस्‍थान आरो एकटा अड्डा बनि‍ गेल। कोनो तरहक प्रति‍बंध नै। वएह कौलेजमे गाँधीवादी सि‍द्धान्‍तो पढ़ौता आ फील्‍डमे आबि‍ खि‍ल्‍लीओ उड़ौता, आ वि‍धानसभा संसदमे ओ सभ बि‍केबो करता। एहेन खेल धरल्‍लेसँ भेल। मुदा एकटा जरूर भेल जे जहि‍ना १९४२ इस्‍वीक अंगेज वि‍रोधी हवा पैदा केलक, तहि‍ना १९६७ इस्‍वीक हवा सेहो केलक। एक दि‍स रौदीक मारल कि‍सान, सामंत-पूजीपति‍क बीच वि‍वाद, जाति‍-जाति‍क आ वर्ग-जाति‍क बीचक दूरी, जोतल खेत जकाँ चौकि‍या कऽ एकबट्ट भऽ गेल, मुदा से सोलहन्नी नै भेल।
ओना कोसीक पुल-बान्ह (नेपाल फाटक सहि‍त) बनल, कोसी नहरि‍मे हाथ लागल मुदा की लाभ भेल? देखि‍ते छि‍ऐ।
जइ तरहक हलचल कौलेज आ हायर शि‍क्षण संस्‍थानमे भेल तइ तरहक हलचल हाइ स्‍कूलमे नै भेल। मि‍ड्ल स्‍कूलक तँ चर्चे नै। जे युनि‍वर्सिटीक सर्वोच्‍च पद (भी.सी) वि‍द्वत मंडलीक बीच छल ओ प्रशासनि‍क अफसरक हाथ जाए लगल। केना ने जाइत, वि‍द्वता आ प्रशासनमे तँ कि‍छु बेवहारि‍क अंतर अछि‍ए। कोनो कारगर नि‍अमो नै लगौल जा सकैए। कि‍छु सरकारी कौलेज तँ कि‍छु गैर सरकारी। कि‍छु बनि‍ते तँ कि‍छु बनैक वि‍चारे करैत। एहेन स्‍थि‍ति‍मे नि‍अममे मजगूती केना आैत। उपरका धार नि‍च्‍चाँ दि‍स बहल। वि‍द्यार्थीओ जे साल भरि‍ नेतागि‍री केलन्‍हि‍ ओ परीछा केना पास करता। तहूले तँ कानूनेक जरूरति‍। हूड़ उठल आ एक्के-दुइए कि‍छु कौलेज छोड़ि‍ परीछामे चाेरी शुरू भेल। काॅपी जौं जँचनि‍हारोकेँ अगहन हाथ लगलन्‍हि‍। केतेक कंठी शि‍क्षकक बीच टुटल। पाइ हाथ लगने लोक शहर दि‍स सेहो बढ़ला। मुदा कि‍छु होउ, कि‍छु कमजोर लोकक वि‍द्यार्थीकेँ जरूर लाभ भेलन्‍हि‍, ओना जेते हेबाक चाही से नै भेलन्‍हि‍। रंग-बि‍रंगक प्राइवेट कौलेज कागजेपर उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। कागजेपर पढ़ाइ, कागजेपर परीछा आ कागजेक डि‍ग्री बि‍काए लगल, जइसँ बुनि‍यादी समस्‍या छुटि‍ गेल। ने मेडि‍कल कौलेज बढ़ल आ ने इंजीनि‍यरि‍ंग, ने इंजीनि‍यर ने कारखाना, ने टेकनीकल कौलेज बढ़ल आ ने कुशल कारीगरक ि‍नर्माण भेल। ने एग्रीकल्‍चर कौलेज बढ़ल आ ने कुशल कि‍सान बढ़ल। उत्तर-दछि‍न बि‍हारक सम्‍बन्‍धसँ ऐठामक (मि‍थि‍लांचल) पढ़ल-लि‍खलकेँ दछि‍न बि‍हारमे नोकरी भेटलन्‍हि‍। बहुत गोटे घरो-अँगना बना लेलन्‍हि‍, मुदा दुनू राज्‍यकेँ वि‍भाजि‍त भेने भाषाक सीमाबंदी भेल। ओना जेहेन एकरंगाह भाषा मि‍थि‍लांचलक अछि‍ ओहेन दछि‍न बि‍हारक नै अछि‍। कारणो अछि‍ जे जखनि कल-कारखाना अछि‍ए नै तखनि कोन नोकरी पाबए आन राजक लोक औता। तँए भाषामे कोनो धक्का नै लागल अछि‍।
हि‍न्‍दी आनर्सक संग बी.ए. पास केलन्हि जगदीश प्रसाद मण्डल, १९६९-७१ इस्‍वीक बैचमे सी.एम. कौलेजमे नाओं लि‍खेलन्हि। पढ़ाइक स्‍तर सेहो कमि‍ चुकल छल। प्रोफेसर आ वि‍द्यार्थीक बीचक सम्‍बन्‍धमे जबरदस धक्का लागल। जइसँ शि‍क्षकक प्रति‍ष्‍ठामे कमी आबि‍ रहल छल। नीक शि‍क्षक अपन मुँह बन्न कऽ अपन प्रति‍ष्‍ठा बँचबैमे लगि‍ गेला। आक्रोश शि‍क्षकोक बीच बढ़बे कएल। पाइ-कौड़ीक लेन-देन आ पैरबी-पैगाम खूब बढ़ल। जाति‍ आधारि‍त छात्र-शि‍क्षकक बीच सम्‍बन्‍ध बढ़ल तँ दोसर दि‍स (आन-जाति‍क) सम्‍बन्‍धमे कमि‍यो भेल। ओना तँ सभ क्‍लासक मुदा एम.ए.क परीछा तीन साल पछुआएल रहए। क्‍लास सम्‍पन्न केला पछाति‍ गाम आबि‍ परीछाक प्रतीक्षा करए लगला। तैबीच गाममे (बेरमा) दुर्गापूजाक वि‍चार उठल। जेतए-तेतए चर्चा हुअ लगल। अधि‍कांश लोक पूजाक पक्षमे रहथि‍। मुदा दुर्गापूजा तँ आन पूजा नै जे कमो जगहमे कएल जा सकैए। अइले अधि‍क जगहक जरूरति‍ होइत अछि‍। कारण जे एक तँ दस दि‍नक पूजा, तैपर दोकान-दौरी, मेला, नाच-तमाशा सेहो होइए।
गौआँक सहमति‍ बनले रहै, स्‍कूलक प्रांगनमे बैसार भेलै, ओना तइसँ पहि‍नौं गौआँक बैसार केते बेर भेल मुदा जेते लोक ऐ बैसारमे उपस्‍थि‍त भेला ओते कहि‍यो नै भेल छल। तहि‍ना बैसारमे बजनि‍हारोक संख्‍या बढ़ल। नव पीढ़ी कान्‍ह उठौलन्‍हि‍।
बैसारमे पूजा स्‍थलक चुनाव हुअ लगल। दू-तीनटा जगह ओहेन भेटल जइमे दुर्गापूजा सम्‍हरि‍ सकैए। मुदा खाली जगहेटा सँ तँ नै हुअए, दि‍न-राति‍क मेला, तँए सुरक्षो अनि‍वार्य अछि‍। जइसँ सुरक्षि‍त जगहक महत बढ़ल। स्‍कूलेक प्रांगनक सहमति‍ बनल। दोसर प्रश्न उठल बलि‍ प्रदानक। परोपट्टाक दुर्गापूजा दुनू ढंगक चलैत, वैष्ण दुर्गा सेहो जेतए बलि प्रदान नै होइत। कि‍छु ठाम बलि‍ प्रदानो होइत आ कि‍छु ठाम नहि‍योँ होइत। मुदा गप आेझरा गेल। एक मतक गाममे दुनू मत पनपल। जहि‍ना बैसार एक मतसँ शुरू भेल तहि‍ना दू मतमे वि‍भाजि‍त भऽ गेल। बलि‍ प्रदानक पक्षसँ अधि‍क लोक वि‍पक्षक। दोसर दि‍स पूजा करीब आबि‍ गेल रहए। जौं हूसि‍ जात तँ साले हूसि‍ जाएत, ईहो बात सबहक मनमे रहनि‍। घमर्थन होइत-होइत बलि‍ प्रदान रूकल। मुदा वि‍वाद बढ़ि‍ए गेल। वि‍वाद बढ़ैक कारण भेल जे पंचायतक जे मुखि‍या रहथि‍, हुनकर प्रभाव अधि‍क रहनि‍। मुदा समाजोमे नव चेतना जागि‍ चुकल छल। शुरूमे (१९५२ ई.) जखनि पंचायत बनल तखनि जे मुखि‍या बनला ओ १९६२ इस्‍वीक चुनावमे हारि‍ चुकल छला। ओहो मतभेद रहबे करनि‍।
पूजा दस-बारह दि‍न पहि‍ने एकटा जबरदस घटना घटल। ओ घटना ई जे मौजुदा मुखि‍या कि‍छु गनन-चुनल लोकक वि‍चारसँ दोसर स्‍थानपर, माने स्‍कूलक प्रांगनसँ अलग स्‍थानपर पूजाक न्‍यों लऽ लेलन्‍हि‍। समाजक बीच आक्रोश बढ़ल। मुदा आगू बढ़ैक हि‍म्‍मति‍ नै। मनमे उत्‍साह जरूर मुदा डरो। कारणो स्‍पष्‍ट छल जे इलाकाक मुँहगर लोकक समर्थन ओही स्‍थानकेँ भेट गेल। जगदीश प्रसाद मण्डल जी आ आर लोक सभ दोहरा कऽ बैसार केलन्हि। सोझहा-सोझही कि‍यो वि‍रोध नै केलखिन्ह‍, खुलि‍ कऽ अबैओले कियो तैयार नै। जबरदस समस्‍या उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेल। ई बात सभ बुझैत जे जहि‍ना खटपट भेलोपर बि‍आह पछाति‍ समझौता भइए जाइत अछि‍ तहि‍ना ऐबेरक हुसलापर पूजोमे हेबे करत। तँए मौका हाथसँ नि‍कलने पूजे नि‍कलि‍ जाएत। बैसारमे तँइ भेल जे दोसरो पूजा हुअए। सएह भेल। संग-संग ईहो तँइ भेल जे समाजसँ बाहर चंदा करए नै जाएल जाए, भलहिं जेतबे चंदा हएत ततबे लऽ कऽ पूजा कएल जाए। नै पान तँ पानक डंटी‍एसँ काज चलाएल जाए। मुदा दोसर दि‍स (जइ दि‍स मुखि‍या रहथि‍) चंदाक भरमार भेल। सरकारीसँ लऽ कऽ आनो-आन पंचायतक चंदा भेल। संग-संग ईहो भेल जे गाममे बन्‍हुआ चंदा सेहो भेल, चंदा देनि‍हारक वि‍चारसँ होइत अछि‍ नै कि‍ जबर्दस्‍ती, मुदा सेहो भेल। चंदाक नाओंपर जुरि‍मानाक रूप पकड़लक, खुलि‍ कऽ नै, चुपे-चाप। परि‍स्‍थि‍ति‍ओ अनुकूले पकड़ाएल। जे आदमी झगड़ा-झंझटि‍मे ओझरा गेल अछि‍ ओ केतए जाएत। मुदा समाज (गाम)मे तँ कोनो बात छपि‍त नहि‍येँ रहै छै। तीन-पार्टीमे समाज बँटि‍ गेल। दुनू दुर्गास्‍थानक दू पार्टी आ तेसर दु-दि‍सि‍या। दु-दि‍सि‍याबला सभ बन्‍हुआ चंदामे फँसला।
पूजाक आरम्‍भ भेल। दुनू स्‍थानक बीच कि‍छु खास-खास अंतर भेल। ओ ई भेल जे जगदीश प्रसाद मण्डल आ आर लोक सभ गामक लोककेँ नव दोकानदारक रूपमे ठाढ़ केलन्हि। कि‍यो मि‍ठाइ तँ कि‍यो दोसर चीजक दोकान केलन्‍हि‍। समाजक चंदासँ पूजा हएत, समाजेक लोक दोकान करता, तँए मेलामे बट्टी (टेक्‍स)क प्रावधान समाप्‍त कऽ देल गेल। कि‍छु गोटे ताल ठोकि‍ ठाढ़ भऽ गेला जे हमहूँ सभ ओहि‍ना पूजाक आयोजन करब जहि‍ना ओ सभ करता। भलहिं चंदा नै पूरत तँ बेक्‍ति‍गत रूपमे देब। एहेन करीब पान-सात गोटे भेला। तैसंग ईहो भेल जे, जे सभ ओइ स्‍थान (दोसर स्‍थान) पर नै जेता। फेर दु-दि‍सि‍या सभ फँसला। फँसबे नै केला जे‍म्हर जाथि‍ तेम्हर लोक लू-लू, थू-थू करनि‍। एम्हर आबथि‍ तँ ओमहुरका आ ओम्हर जाथि‍ तँ एमहुरका मुहेँ-काने बोकि‍अाबए लगलन्‍हि‍। पुरान पीढ़ीक वि‍चारकेँ धक्का लागल। नव पीढ़ीक हाथमे समाज आएल। तैसंग ईहो भेल जे बेरमाक बगलक गाम जगदरो आ कछुबीओ बँटा गेल, जइसँ दुनू गामक समर्थन दुनू स्‍थानकेँ भेटल।
मि‍लि‍-जुलि सरकार बनने हाइओ स्‍कूल प्रभावि‍त भेल। कि‍एक तँ कि‍छु स्‍कूल सरकारक नि‍यंत्रणमे आएल। मुदा सभ नै आएल। जे आएल ओकर हालतो सुधरलै आ शि‍क्षकक वेतनो बढ़लन्‍हि‍। मुदा जे नै आएल ओ ठामक ठामहि‍ रहि‍ गेल। जइसँ एक नव लड़ाइ शि‍क्षो वि‍भागमे शुरू भेल।
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१९६० इस्‍वी पछाति...

१९६० इस्‍वी पछाति‍ जगदीश प्रसाद मण्डल केजरीबाल हाइ स्‍कूलमे नाओं लि‍खा लेने रहथि। स्‍कूल अबै-जाइक परेशानीसँ साइकि‍ल कीनैक वि‍चार परि‍वारमे भऽ गेलन्‍हि‍। ओना जखनि टेन्‍थ (स्‍पेशल नाइन्‍थ) मे रहथि तखनि दू सए बासठि‍ रूपैआमे सैब्रो साइकि‍ल कीनि लेलन्‍हि। मुदा जहि‍ना सीमा परहक सि‍पाहीकेँ दुश्‍मन सि‍पाहीक हाथ पकड़ेलासँ होइए तहि‍ना समस्‍याक सि‍पाही चारू दि‍ससँ परि‍वारकेँ घेर लेलकन्हि। दुनू पि‍सि‍यौत भाय (जेठ गोनर मण्‍डल आ तइसँ छोट कारी मण्‍डल) केँ अपन बाप-दादाक डीह-डाबर जगलन्‍हि‍। कोसी धारक मुँह जे पछि‍म दि‍स जोर केने छेलै ओ आब पूब दि‍स जोर केलक, जइसँ कि‍छु गाम जेना हरि‍नाही, मैनही, अमही, हर्ड़ी इत्‍यादि‍ गामक जमीनक कि‍छु भाग जागलै। भागल-पड़ाएल गामक लोक, अपन बाप-दादाक डुमल सम्‍पति‍क आशामे कान ठाढ़ केनइ रहथि‍, गाम (हरि‍नाही) घुमबाक वि‍चार केलन्‍हि‍। बनल-बनाएल गाममे लोकक एहेन थोड़ेक स्‍वार्थी प्रवृत्ति‍ बनिए‍ जाइए जे सौंसे गामक सभ कि‍छु हमरे भऽ जाए। प्रवृत्ति‍ बेजाए नै, मुदा खाली सम्‍पति‍‍ए नै मनुक्‍खोक भार जौं उठा लेथि‍। हरि‍नाहीक कि‍यो केतौ, कि‍यो केतौ, केतौ-केतौ एहनो जे पान-सात परि‍वार एकोठाम छला। अपन कुटुमैतीक संग-संग नेपाल धरि‍ पसरि‍ गेल छला। सभसँ दुखद स्‍थि‍ति‍ गामक तखनि भेल जखनि सुभ्‍यस्‍त परि‍वार सबहक, जइ परि‍वारक लोक अपन घर-अँगनाक काजसँ बाहर नै भेल छलि, ओ सभ जखनि बोनि‍हारि‍न बनि‍ भरि‍-भरि‍ दि‍न अनका खेतमे जि‍नका घरमे पचमनही कोठी-बखारी सभ छेलन्‍हि‍, एक पसेरी (कच्‍ची) अन्नपर अपन श्रम बेचैले मजबूर भेली। मुदा उपए की? ई बात सत्‍य अछि‍ जे समयानुसार हाथकेँ हथि‍यार नै भेटत तँ ओ पाछू भगबे करत, हरहरा-हरहरा कऽ पाकल जामुन जकाँ हुनका सबहक जि‍नगी उतरि‍ गेलन्‍हि‍। जि‍नगीक सभ कि‍छु हराए लगलन्‍हि‍। हराइए गेलन्‍हि‍। भागल-पड़ाएल लोकक आन देश आ आन गाममे सरकारी सहायताक केते आशा होइत ओ तँ सबहक सोझहेमे अछि‍। जे अखनो गाममे ओहेन गरीब लोककेँ इन्‍दि‍रा आवास नै भेट रहल छन्‍हि‍ जि‍नका अपना नामे जमीनक कागत नै छन्‍हि‍।
साठि‍ इस्‍वीक काति‍क। अपन गाम देखैले पि‍सि‍यौत भाय-गोनर मण्‍डल हरि‍नाही गेला। घोघरडीहामे ट्रेनसँ उतरि‍ भाँज लगौलन्‍हि‍ तँ पता लगलन्‍हि‍ जे पहि‍ने हटनी, हटनीसँ नौआ-बाखरि‍, नौआ बाखरि‍सँ अमही तेकर बाद हरि‍नाही। केते दूर हएत तँ दू कोस। दू कोस बूझि‍ मनमे उत्‍साह जगलन्‍हि‍ जे दू कोस जाइमे बेसी-सँ-बेसी दू घंटा लागतन्हि। मुदा ई नै बूझि‍ पौलन्‍हि‍ जे घोघरडीहा हटनीएक बीच तीनटा धार पार करए पड़तन्हि। तहूमे गमैया सवारी छि‍ऐ कि‍ने, लोकेक वि‍चारे ने चलैत अछि‍। चारि‍ घंटामे हटनी पहुँचला। हटनी नौआ-बाखरि‍क बीचक सीमामे एकटा सेहो नीक धार माने नमहर धार। सूर्यास्‍त भेलापर हरि‍नाही पहुँचला। गोनर मण्‍डलक एकटा दि‍याद पहि‍नइ आबि‍ गेल छला जइसँ ओ बीघा डेरहेक जमीनक मालि‍क बनि‍ रसाएल खेतक उपजा पाबि‍ कुटुम-परि‍वार दि‍स सेहो ताकए लगला। हरि‍नाही पहुँचिते दि‍यादी भाय चुल्हाइ मण्‍डलक पाहुन बनि‍ गेला। गरूगर रास्‍ता देखि‍ दू दि‍न रहैक आग्रह चुल्‍हाइ मण्‍डल केलखि‍न।
गामक जे पहुलका बास-भूमि‍ छेलन्हि ओ गहींर भऽ गेल रहै आ बाध ऊँच बनि‍ गेल छेलै। मुदा ओ अखनि सुपौल जि‍लाक सीमा कात। घर मधुबनी जि‍लाक हरि‍नाही गाममे आ सभ अगवास सुपौल जि‍लाक हर्ड़ी गाममे। जैठामक हेमलताजी छथि‍ जे फुलपराससँ वि‍धायक रहि‍ चुकल छथि‍। करीब पनरह परि‍वार आबि‍ गाममे बसि‍ गेल। तइमे दू परि‍वारक खूँटापर बड़दो आबि‍ गेल। बाँकी सभ कोदारि‍क जि‍नगीमे। अपन जागल घराड़ी आ पोखरि‍ देखि‍ गोनर मण्‍डल आकर्षित भऽ गेला। बास जोग तँ नै मुदा चास जोग जमीन देखि‍ चुल्हाई मण्‍डलकेँ कहलखि‍न-
भैया अगि‍ला आठम एतै छी।
चारि‍म दि‍न बेरमा आबि‍ मामीकेँ कहलखि‍न‍-
मामी, हम अपन गाम, हरि‍नाही जाएब।
मामी- केना जेबहक?”
गोनर- बाँस अपना अछि‍ए। एकटा लऽ जा कऽ पहि‍ने घर बनाएब तखनि बूझल जेतैक।
जहि‍ना कोनो ब्रह्मचारी ब्रह्माश्रमसँ नि‍कलि‍ दुनि‍याँ दि‍स देखि‍ते सतरंगी दुनि‍याँ देखए लगैत तहि‍ना ओहो (गोनर मण्‍डल) देखलन्‍हि‍। केना नै देखि‍तथि‍। पूर्वक हराएल गाम-घर, दि‍याद-वाद, सर-समाज जे इति‍हास बनि‍ चुकल छेलन्‍हि‍, से जे सोझहामे आबए लगलन्‍हि‍। ओना हुनका (गोनर मण्‍डल) एक बीघा धनहर आ अढ़ाइ कट्ठा बासक भूमि‍ माम (जगदीश प्रसाद मण्डल जीक पि‍ताजी) कीनि‍ देने छेलखि‍न। ओहो दुनू भाँइ (गोनर मण्‍डल आ कारी मण्‍डल) हरि‍नाही बि‍सरि‍ गेल छला। केना नै बि‍सरि‍तथि‍ हराएलो जमीनक दस्‍ताबेज, खति‍यान जौं हाथमे छै तँ आशा बनल रहैए‍। जैठाम ओहो (दस्‍ताबेज, खति‍यान) नै रहल ओ तँ पानि‍क पाथर जकाँ केतए डुमल अछि‍ तेकर कोन ठेकान। आ जौं हेलबैया (पानि‍क भाँज बुझि‍नि‍हार) रहल तँ भाँजो-भुज लगा सकैए मुदा अनाड़ी तँ अनाड़ि‍ए छी।
सातम दि‍न एकटा बाँस काटि‍ पाँङि-पुङि कऽ गोनर मण्‍डल तैयार केलन्‍हि‍ जे काल्हि‍ गाम जाएब। बेरमासँ हरि‍नाही जाएब। चारि‍ दि‍न रहि‍, पहि‍ने रहै जोकर घर बना लेब, तखनि आगू बूझल जेतैक। मामीकेँ गोनर मण्‍डल कहलखि‍न-
मामी, चारि‍ दि‍न रहि‍ पहि‍ने घर बना लेब। पाँचम दि‍न फेर‍ एतै छी।
मामी-
बड़बढ़ि‍याँ, एक अढ़ैया चाउर आ एक अढ़ैया चूड़ासँ तँ काज चलि‍ जेतह?”
असमंजसमे गोनर पड़ि‍ गेला। जेते अधि‍क बेसी खाइक ओरि‍यान करब ओते रस्‍तामे भारीओ हएत। एक तँ सात-आठ कोस धार-धुरक रास्‍ता, तैपर बाँस आ खाइक समान। बहुत भारी हएत। गाममे माने बेरमामे भरि‍ पेट जलखै कऽ लेलथि‍ आ रास्‍तोले बान्‍हि‍ लेलथि‍। अपन लोटा-थारी, आ लत्ता-कपड़ा नै लेब, सेहो नै बनत। अंतमे एकटा छि‍पली, एकटा लोटा, बि‍छबैले दूटा बोरा, एक अढ़ैया-चूड़ा आ एक अढ़ैया चाउर लऽ कऽ दोसर दि‍न वि‍दा भेला। एक तँ ओहेन भारी काज जि‍नगीमे कहि‍यो नै केने रहथि‍। हँ एते जरूर छेलन्‍हि‍ जे बँसबारि‍सँ बाँस काटि‍ आ बाधसँ धानक बोझ उघि‍ कऽ अनै छला तहि‍ना बाधसँ हर जोता दूगोरा चौकी अनै-लऽ जाइ छला, मुदा एते भारी काजसँ पहि‍ल दि‍न भेँट भेलन्‍हि‍।
बेरमासँ नि‍कलि‍ कछुबी-तमुरि‍या होइत सुन्‍दर-बि‍राजीत जाइत-जाइत बेदम भऽ गेला। पाछू हि‍अबथि‍ तँ दुइए कोस टपला, आगू हि‍अबथि‍, तँ अखनि पौनी-चपराम, कलि‍कापुर, मेटरस तँ कोसी बान्हक बाहरे भेल। मेटरसमे ने कोसी बान्‍ह टपि‍ भीतर हेता। तैयो तँ मेटरस टपि‍ दू कोस भीतरो जाइए पड़तन्हि। अबूह लागि‍ गेलन्‍हि‍। जि‍नगीक बाटमे बच्‍चा जकाँ बुकौर लागि‍ गेलन्‍हि‍। सुसतेलाक कि‍छु काल बाद फेर हूबा केलन्‍हि‍। पानि‍ पीब बाँस उठा वि‍दा भेला। मेटरस बान्‍हपर पहुँचैत-पहुँचैत धाह-जाड़ आबि‍ गेलन्‍हि‍। एहेन जगहमे के भेँट हएत? क्‍यो चि‍न्‍हारे नै। गाम-घरमे ने माए-बाप रहने बच्‍चा फोंसरी‍ओकेँ गुड़-घा कहै छै मुदा नै रहने तँ गुड़ो-घा फोंसरी‍ए भऽ जाइ छै।
बेरमाक पच्‍चीसोसँ बेसी कुटुमैती मेटरसमे तहि‍यो छल आ अखनो अछि‍। कोसी बान्‍हपर बाँस राखल आ हि‍नका (गोनर मण्‍डलकेँ) पड़ल देखि‍ एक गोटे लगमे एलन्‍हि‍। ओ बाध-सँ-गामपर जाइत रहथि‍। लगमे आबि‍ पुछलखि‍न-
केतए रहै छी?”
धाह-जाड़सँ कँपैत गोनर मण्‍डल कहलखि‍न-
बेरमा।
केतए जाएब?”
हेरनाही।
एहेन अवस्‍थामे केना जाएब?”
सएह ने कि‍छु फुड़ैए।
एकटा काज करू। हमहूँ कि‍यो आन नै छी। हमरो बहि‍न अहीं गाममे बसैए। कुटुमे भेलौं।
कुटुमक नाओं सुनि‍तहि‍ जेना एकाएक केतौसँ होश एलन्‍हि‍। कहलखि‍न-
कुटुम नारायण, कहुना-कहुना जौं गाम (बेरमा) घूमि‍ जाएब तँ जान बचि‍ जाएत, नै तँ नै बँचब।
ऐठामसँ घोघरडीहा गेल हएत?”
खाली देहे चलि‍ जाएब।
सभ समान हमरा ऐठीम रखि‍ दियौ आ अहाँ चलि‍ जाउ। यएह (बान्‍हसँ सटले पूब) हमर घर छी।
आशा पाबि‍ गोनर बजला-
अपना संगमे चूड़ो अछि‍। चलू कनि‍येँ खाइओ लेब आ रखि‍ कऽ चलि‍ओ जाएब।
जोशपर तँ घोघरडीहा स्‍टेशन वि‍दाह भेला मुदा रास्‍तामे एहेन स्‍थि‍ति‍ भऽ गेलन्‍हि‍। जे ने बाट सुझन्‍हि‍ आ ने डेगे उठन्‍हि‍‍। ओइ समए चारि‍ बजे गाड़ी ि‍नर्मलीसँ अबैत रहए। संजोग नीक बैसलन्‍हि‍। गाड़ी पकड़ा गेलन्‍हि‍। सात बजे साँझमे बेरमा पहुँचला। एक तँ भरि‍ दि‍नक थाकल तैपर बोखार, गाम अबि‍ते बोम फाड़ि ओहि‍ना कानए लगला जेना माए-बापक सोझाँमे बेटा-बेटी कनैए। अपन पोसल-पालल केर दशा देखि‍ मामी (जगदीश प्रसाद मण्डल जीक माए) ऐ रूपे कानए लगली (डाक स्‍वरमे) जेना भागि‍न नै बँचतनि‍। ताधरि‍ दुनू भाँइक बि‍आह-दुरागमन भऽ गेल रहनि‍। दुनू दि‍यादि‍नीओ बेरमेमे। ले बलैया जहि‍ना साँझू पहर एकटा नढ़ि‍या कोनो झारीसँ नि‍कलि‍ पू-कहैत आकि‍ जहाँ-तहाँसँ नढ़ि‍या भूकए लगैत। ततबे नै, पास-पड़ोसक नढ़ि‍या सभ समटा-समटा एकठाम भऽ समवैत स्‍वरमे भुकए लगैए। किए ने भूकत? डरे जे भरि‍ दि‍न झाड़ी धेने रहैए, ओकरा तँ अन्‍हारे ने संगी हेतै। जहि‍ना चोर दुनू रंगक होइए दि‍नुको आ रौतुको, तहि‍ना ने नढ़ि‍ओकेँ चरौर करैक समए भेटै छै। तहि‍ना मामीकेँ कनि‍ते दुनू दि‍यादि‍नी सेहो झौहरि‍ करए लगली। झौहरि‍ सुनि‍ एके-दुइए टोलक लोक ससरि‍-ससरि‍ आबए लगली। गोनर मण्‍डलकेँ बि‍नु देखनौं लोक आँखि‍ मीड़ि‍-मीड़ि‍ कि‍यो ठुनकए लगली तँ कि‍यो कि‍छु तँ कि‍यो कि‍छु बाजए लगली। पाँच दि‍न पहि‍ने भदबा बित चुकल छल मुदा एकटा बुढ़ीकेँ, अंति‍म दि‍न भदबाक पता लगलन्‍हि‍। ओ ओही दि‍नसँ जोड़थि‍ जे आइ छठम दि‍नक भदबा छी। बजली-
केना पहि‍ले-पहि‍ल डेग भदबामे उठौलक। जानि‍ कऽ आगि‍मे पाकए जाएब तँ जरब नै।
जैठाम सभ कननि‍हारे जमा भऽ जाएत तैठाम चुप के करत। खैर जे हौ...
मास दि‍न पछाति‍ ओ (गोनर) काज-उदम करैबला भेला। अगहनक कटनी बजरि‍ गेल रहए। तहूमे १९५८ ई.मे सेहो नमहर बाढ़ि‍ आएल रहए। कहैले तँ बाढ़ि‍ दहारक कारण छी मुदा उपजोक कारण छी। ई ि‍नर्भर करैत गाम-गामक जमीनक बुनाबटि‍पर। कोनो गाममे गहींर खेत बेसी अछि‍ जइमे जौं शुरूहोमे दूटा नमहर बर्खा भऽ जाएत तँ पानि‍ पकड़ि‍ लैत आ एहनो ऊँचगर गाम सभ अछि‍ (बलुआहा गाम) जइमे जेतबे काल बर्खा भेल ततबे काल पानि‍ रहल, बाँकी बरखो गेल पानि‍ओ गेल। गाम सुखल-क-सुखले रहि‍ गेल। ओहेन गाम लेल बाढ़ि‍ खेलौना छी, तँए जौं छहरो-बान्‍ह काटि‍ कऽ खेल-खेलल जाए तँ की हर्ज जे एहेन खेल नै हुअए।
दुश्‍मन सि‍पाही हाथे घेराएल सि‍पाही जकाँ परि‍वार घेरा गेल रहए। एक तँ १९५८ इस्‍वीक बाढ़ि‍सँ परि‍वार धँसि‍ गेल रहनि‍। किए ने धँसैत। एक बाढ़ि‍ वा रौदी, कृषि‍ आधारि‍त परि‍वारकेँ पाँच साल धक्का मारैत अछि‍। शुरूहे फागुनमे दुनू भाँइ (पि‍सि‍यौत) बाँस, खाइक-खरचाक संग हरि‍नाही गेला। बाँसक खुट्टापर मनेजरक कोरो-बातीक घर ठाढ़ कऽ काशसँ छाड़ि‍ लेलन्‍हि‍। रहैक ठौर होइते अपन पोखरि‍बला जमीनकेँ साफ कऽ ताम-कोर करए लगला। खट्ठा पटेर-झौआक बोन। जहि‍ना वि‍यतनामक लोक एक-एक इंच भूमि‍, जे बम-बारूदमे नष्‍ट भऽ चुकल छल, खेती योग्‍य बनौलन्‍हि‍। तहि‍ना हरि‍नाहीक लोक गामक बोन उजाड़ए लगला। बोन एहेन जे दस धुर तमनि‍हार अपनाकेँ मेहनती बुझैत। दुनू भाँइ बोनो तोड़थि‍ आ गाम (बेरमा) आबि-आबि‍ खरचो लऽ जाथि‍। छह मास पछाति‍ पहि‍ल उपजा हाथ लगलन्‍हि‍। ढेनुआर गाए जकाँ एक संग जली (धान), मकइ, काउन इत्‍यादि‍‍ हाथ लगलन्‍हि‍। परि‍वारक काज बढ़लन्‍हि‍। खेती लेल एकटा बड़द सेहो कीनि‍ कऽ लऽ गेला। परि‍वारक एकटा रूप रेखा तैयार भऽ गेलन्‍हि‍।
अखनि धरि‍ हरि‍नाही गाममे बीस परि‍वार बसि‍ चुकल छला। तीनटा चापाकल सेहो गरि‍ चुकल छल। पानि‍क सुवि‍धा से भऽ गेल छेलै। बीस फीट पाइप, छह फीट फील्‍टरमे चापाकल भऽ जाइत छेलै। नगदी फसल पटुआक खेती शुरू भेल। तीस-पेंतीस बीधा जमीन उपजाउक हरि‍नाही गाम बनि‍ गेल।
१९६२ ई.मे कारी मण्‍डल (जगदीश प्रसाद मण्डल जीक छोट पि‍सि‍यौत भाए) बीमार पड़ला। नीक बीमार। इलाजक कोनो सुवि‍धा हरि‍नाहीमे नै। तइ समैमे दरभंगा जि‍लाक झगडुआ गामक एक गोटे बेरमेमे डाक्‍टरी करै छला। मुसलमान छला। जगदीश प्रसाद मण्‍डलक मनसारा मात्रि‍क। मनसारा-झगड़ुआ सटले दुनू गाम। जइसँ हिनका सबहक मामा-भगि‍नाक सम्‍बन्‍ध ओइ डाक्‍टर साहैबक संग बनल छेलन्हि। ओना ओ रहै छला मुसलमान टोलमे, मुदा मात्रि‍कक अनेसँ बेसी काल अहीठाम रहै छला। हुनका माए कहलकनि‍ जे भैया, भागि‍न बड़ दुखि‍त अछि‍।
ओ जाइले तैयार भऽ गेला।
ओइ समए बेरमामे दूटा वैद्य छला। पहि‍ल सुन्‍दर ठाकुर आ दोसर छला नीरस महतो। सुन्‍दर ठाकुर पंडि‍त छला। आचार्य छला। मुदा शरीरसँ अबाह (नांगर) छला आ थोड़ेक बोली तोतराइ छेलन्‍हि‍ मुदा ओ जि‍नगीकेँ एते लगसँ देखै छेलखि‍न जे परि‍वारसँ कि‍छु हटि‍ अपन आश्रम बनौने छला। औषधालय नाम छेलै। खेत-पथारबला परि‍वार रहने औषधालय अइल-फइलसँ बनौने छला। औषधालयक आँगनमे सएओ रंगक जड़ी-बूटी सभ लगौने छला। नि‍अमबद्ध जि‍नगी छेलन्‍हि‍ ओना नि‍अम भंग सेहो होइत छेलन्‍हि‍ नि‍अम भंगक कारण रहनि‍ वैदागरी करब। वैदागरी (डाक्‍टरी) ओहेन पेशा छी जे जि‍नगीक अंति‍म घाट धरि‍ बसैत अछि‍। तँए कखनि कोन घाटक यात्री चलि‍ आैत तेकर ठेकान नै। मुदा वैद्यजी मे कि‍छु कर्मक प्रति‍ मजगुतीओ रहनि‍। मजगूती ई रहनि‍ जखनि ओ पूजा करए लागथि‍ तखनि कि‍यो हुनका टोकि‍ नै पबैत। तइले ओ एकटा ओगरबाह रखै छला। मुदा मनमे ई कचोट रहबे करनि‍ जे जइले पूजा करै छी जौं ओ देवता आगूमे चलि‍ आबथि‍ तखनि की करब? मुदा कि‍छुए दि‍न पछाति‍ रूटि‍ंग बदलि‍ लेलन्‍हि‍। चौबीस घंटाक गाड़ीमे लोक अपना-अपना ढंगसँ रूटि‍ंग (काजक हि‍साबे) बना लैत अछि‍। तहि‍ना ओहो दि‍नक पूजा करब छोड़ि‍ राति‍मे करए लगला। जइसँ सभकेँ बरबैरे लाभ हुअ लगलन्‍हि‍। जि‍नगीओ नमहर बनौने छला, अठबारे घोड़ापर चढ़ि‍ आन-आन गामक वैद्य सभ ऐठाम जाइ छला, हि‍नको ऐठाम अबै छेलन्‍हि‍ जइसँ वैचारि‍क सम्‍बन्‍धसँ लऽ कऽ बेवहारि‍क (जड़ी-बूटीक गाछ लगबैक सम्‍बन्‍धसँ लऽ कऽ दबाइ बनबैक ढंग धरि‍) सम्‍बन्‍ध मजगूत छेलन्‍हि‍
दोसर वैद्य छला नीरस महतो। पंडित सुन्‍दर ठाकुर जकाँ पढ़ल-लि‍खल नै मुदा मनुक्‍खोक तँ अजीव बुनाबटि‍ अछि‍। कि‍यो कौलेजसँ पढ़ि‍ डाक्‍टर-इंजीनि‍यर बनै छथि‍ तँ कि‍यो गामे-घरमे घूमि‍-फि‍रि‍ बनि‍ जाइ छथि‍। तहि‍ना ओहेन रामायण आ महाभारत पढ़नि‍हार (गाबि‍ कऽ पढ़नि‍हार) केतेको छथि‍ जि‍नका अपन नाओं-गाओं लि‍खए नै अबै छन्‍हि‍। माटि‍सँ उपजल वैद्य नीरस महतो छला। गाममे दुनू गोटेक इलाज चलैत छेलन्‍हि‍ मुदा एलोपैथी दबाइक आगमन गाममे सेहो भऽ चुकल छल। जइसँ बेरमाक बगलक गामक टूनीबाबू आ बुचकुन बाबूक आबा-जाही सेहो भऽ गेल छेलन्‍हि‍ झगड़ुआबला डाक्‍टर करीब पनरह बरख बेरमामे रहला। जगदीश प्रसाद मण्डलक माएओ, भैयै कहनि‍ आ ओहो बहिनियेँ कहथि‍न। टोलक (मुसलमान) लोक डाक्‍टर साहैब कहनि‍ तँ कि‍छु टोलक लोक मोलबी-साहैब कहनि‍। ओना ओ नवाजी सेहो छला। कि‍छु टोलक लोक मोलबी साहैब डाक्‍टर कहनि‍ तँए हुनकर असल नाउँए हरा गेल रहनि‍।
जगदीश प्रसाद मण्डलक जेठ भाय (कुलकुल मण्‍डल) माए आ मामा (डाक्‍टर) तीनू गोटे तमुरि‍यामे गाड़ी पकड़ि‍ घोघरडीहा बान्‍ह (कोसी) तक तँ उत्‍साहसँ गेला, मुदा बान्‍हपरसँ जे देखलन्‍हि‍ तँ माएओ आ भैयोक मन डरि‍ गेलन्‍हि‍। आगू डेग बढ़बैक हि‍आउए ने होन्‍हि‍। बान्‍हक बगलेमे नमहर धार। जेकर पानि‍ काफी तेज गति‍मे चलैत। मामा बूझि‍ गेलखि‍न। ओ धैर्य बढ़बैत कहलखि‍न-
बहि‍न, ई कोन धार छि‍ऐ, ऐसँ नमहर-नमहर धारमे नाह चलबै छी आ हेलबो करै छी। केहेन बढ़ि‍याँ नाह छै। जहि‍ना सभ पार करत तहि‍ना अपनो सभ पार करब।
तैबीच एक गोटे हरि‍नाहीएक भेट गेलन्‍हि‍। बान्‍हेपर पूछ-आछसँ भाँज लागि गेलन्‍हि‍। शहर-बाजारमे बि‍ना मतलबे कि‍छु पूछब नीक नै होइ छै मुदा धारक इलाका, बोनक इलाका, मरूभूमि‍क इलाकामे ओहेन नीक होइ छै जे संगी भेट जाइ छै।
तीनू गोटे हरि‍नाही पहुँचला। डाक्‍टरक नाओं सुनि‍‍ते आनो-आन परि‍वारक लोक जमा भऽ गेल। पहुँचिते सूइया-दबाइ चालू केलन्‍हि‍। कारी मण्‍डलक इलाज शुरू भेल।
चाहक नीक अभ्‍यासी डाक्‍टर साहैब। ओना चाहे टा अमलो रहनि‍। गाममे चाहक दोकानक कोन बात जे चाहपत्ती चि‍न्नीओक दोकान नै। बेरमासँ जखनि वि‍दा भेला वा घोघरडीहामे जखनि गाड़ीसँ उतरला तैयो नै मन पड़लन्‍हि‍। मनो केना पड़ि‍तनि‍? बि‍नु देखल जगह केहेन अछि‍ केहेन नै तइ दि‍स नजरि‍ किए पड़ि‍तनि‍। पहि‍ल दि‍न तँ कहुना खेपि‍ गेला मुदा दोसर दि‍न तबाही हुअ लगलन्‍हि‍। बि‍नु चाह पीने मने भङठि‍ गेलन्‍हि‍। इम्हर माएओ आ भैयोकेँ बूझि‍ पड़नि‍ जे केतए आबि‍ गेलौं।
पहि‍ल दि‍नक इलाजसँ हुनका (कारी मण्‍डल) मे कि‍छु सुधार भेलन्‍हि‍। मामाकेँ (डाक्‍टर साहैब) एक दि‍स चाहक झपनी धेने रहनि‍ तँ दोसर दि‍स रोगक इलाजसँ मनमे खुशीओ उपकैत रहनि‍।
अखनि धरि‍ गाममे गोर दसेक महि‍सो-गाए भऽ गेल छेलै। सहरसा जि‍ला (अखनि सुपौल) आ मधुबनी जि‍लाक सीमाक कातमे हरि‍नाहीओ आ हर्ड़ी‍ओ बसल अछि‍। बीचमे एकटा मरने धार, जे हरि‍नाहीओ आ हर्ड़ीओ दुनू गामकेँ उपटौने छल। भैयाक घर (गोनर मण्‍डलक) गाममे सभसँ पछि‍म। कि‍एक तँ जहि‍ना बजार आगू मुँहे कऽकऽ घुसकैत चलैए तहि‍ना ने नव गामो चलैए। पूवे-पच्‍छि‍मे गाम, ओना ओ सूर्यमंडल गाम भेल। जे बासक हि‍साबसँ (पहुलका) नीक नै भेल, कि‍एक तँ आगि‍-छाय आ हवा-बि‍हारि‍क दृष्‍टि‍सँ उजार बेसी हएत। धारक भीता-काते-काते जहि‍ना पच्‍छि‍म तहि‍ना पूब। गोनर मण्‍डल अपन दि‍याद चुल्‍हाइ मण्‍डल कहलखि‍न जे सभ दि‍याद लगाइए कऽ घर बान्‍हब। पछबारि‍ भाग हुनकर घर तँए हुनको (गोनर मण्डलक) पच्‍छि‍मे दि‍स घर बन्‍हलन्‍हि‍। ओइ समए सभसँ पच्‍छि‍म घर रहनि‍ मुदा अखनि ओइसँ बहुत पच्‍छि‍म तक गाम बढ़ि‍ गेल अछि‍।
दि‍नक करीब तीन बजे, हरि‍नाहीओक महिंस आ हर्ड़ी‍ओक पछबारि‍ टोलक महिंस (जइ टोल परहक हेमलताजी छथि‍। जे फुलपरासक पूर्व वि‍धायक रहि‍ चुकल छथि‍।) धारेक पेट आ कि‍नछरि‍मे दुनू गामक महिंस सभ चरैत रहए। बीचमे एकटा घार, हरि‍नाही बीस-पच्‍चीस घरक गाम आ हर्ड़ी तीन टोलमे बँटल। जे थोड़े हटि‍-हटि‍ कऽ बसल। धारेक पेट आ कि‍नछरि‍मे दुनू गामक महिंस सभ चरैत रहए। की नै की चरबाहा सभमे झगड़ा शुरू भेलै। दुनू गाम लगे-लगे। हँसेरा-हँसेरी भऽ गेल। खूब नमहर मारि‍ (लाठी-लठौबलि‍) भेल। केते गोटेकेँ कपार फुटल, हाथ-पएर टुटल। दू जाति‍क दुनू टोल, खूब मनसँ मारि‍ भेल। कम घर रहि‍तो हरि‍नाहीक कि‍छु परि‍वार सि‍ंहेश्वर स्‍थान दि‍ससँ आबि‍ बसल रहए, तीनटा सेसर खलीफा रहए, तँए मारि‍ बेसी हर्ड़ीबला खेलक। मुदा केस-फौदारी नै भेल। तेकर कारणो रहै जे एम्‍हर फुलपरासक थानाकेँ चारि‍ धार टपि‍ आबए पड़ैत तँ ओम्‍हर सुपौल सन्‍मुख कोसीक केते छाँट-छुँट पार करए पड़ैत।
गोनर मण्‍डलक घरसँ करीब पाँच बीघा पच्‍छि‍म मारि‍ भेल। मरदा-मरदी तँ मारि‍ करए गेल रहथि‍ मुदा स्‍त्रीगण आ बच्‍चा सभ तमाशा देखलक। बेरमोक तीनू गोटे- डाँक्‍टरो साहैब माएओ आ भैयो मारि‍ देखलन्‍हि‍। मारि‍ देखि‍ तीनू भयभीत भऽ जाइ गेला। तीनूक पाछू अपन-अपन कारण रहनि‍। डाक्‍टर साहैब थाना-कचहरी जनैत रहथि‍ तँए भयभीत रहथि‍। अंदाज रहनि‍ जे जखने थाना आैत तखने मारि‍ केनि‍हार गाम छोड़ि‍ देत। मुदा हम...?
तहि‍ना जगदीश प्रसाद मण्डलक माए आ भायकेँ सेहो बेरमाक १९५६-५७ इस्‍वीक पुलि‍सक दौड़ देखल रहनि‍। साँझू पहर सभ वि‍चार केलन्‍हि‍ जे काल्हि‍ भाेरे ऐठामसँ मरीज (कारी मण्‍डल) केँ लेने गाम (बेरमा) चलि‍ जाएब। सहए केलन्‍हि‍।
अपना ऐठाम (बेरमामे) तीनटा महिंस आ दूटा बड़द खूँटापर रहै छेलन्हि। समांग घटने महिंस तीन-सँ-एक भऽ गेल। बड़द बि‍ना बनैबला नै। चारि‍-पान साल पहि‍नइ १९५६-५७ ई.मे कुलकुल मण्‍डल मि‍ड्ल स्‍कूल छोड़ि‍ अमानत (अमीनी) मे नाओं लि‍खाैलन्‍हि‍‍‍ छबे मासक पढ़ाइ। मुजफ्फरपुरसँ एकटा शि‍क्षक (अमीन) आबि‍ गाममे स्‍कूल चलौने रहथि‍। जइमे पहि‍ने दस गोटे नाओं लि‍खौलन्‍हि‍। मुदा कि‍छु दि‍न पछाति‍ आबि छह गोटे छोड़ि‍ देलन्‍हि‍। चारि‍ गोटे अन्‍तो-अन्‍त पढ़ि‍ अमीन बनला।
अखनि धरि‍ जगदीश प्रसाद मण्डल महिंस पाछू तँ नीक जकाँ नै पड़ल रहथि मुदा भाय सबहक संगे चरबए जाइत रहथि‍। समांग घटने भारे पड़़ि‍ गेलन्हि। परि‍वारक आमदनी रहन्हि। पि‍सि‍औत भाइक परि‍वार गेने (हरि‍नाही गेने) परि‍वार कमलन्हि। जइसँ परि‍वारक काजो घटलन्हि। अखनि तक माए घरसँ नि‍कलि‍ खेत-पथार नै जाइ छेलन्हि, सेहो जाए लगली। जगदीश प्रसाद मण्डलक भैयाकेँ (गोनर मण्‍डल) जे जमीन देल गेल रहनि‍ ओ बेचि‍ कऽ लऽ गेला। जइसँ खेतो कमलन्हि। उपजो कमलन्हि। मुदा चारि‍म पीढ़ीमे आइओ ओइ परि‍वारक संग ओहने सम्‍बन्‍ध बनल छन्हि‍ जहि‍ना पहि‍ने छेलन्हि। अखनो उमेश मण्‍डल (पुत्र) जीक संग जे संजय रहैए‍ ओ पि‍सि‍औते भाइक पोता छि‍यनि‍।
जगदीश प्रसाद मण्‍डल हाइए स्‍कूलमे रहथि तखनि दुरागमन भेलन्हि। बि‍आह पहि‍नइ भऽ चुकल छेलन्हि। पि‍सि‍औत भायकेँ गेलासँ परि‍वारे नै कमलन्हि, घरक कारोबार सेहो कमि‍ गेलन्हि। परि‍वारक भीतर अन्‍दरूनी वि‍वादक जनम सेहो भेल। जगदीश प्रसाद मण्डलक पढ़ब वि‍वादक कारण मूलमे छल। जेकर दूटा सि‍र (स्रोत) छेलै। पहि‍ल, कुलकुल मण्‍डल आ दोसर समाजक हि‍त-अपेछि‍तक। खुल्‍लम-खुल्‍ला तँ परि‍वारमे नै छल मुदा कुलकुल मण्‍डलक क्रि‍या-कलाप बदलए लगलन्‍हि‍। जइसँ घरक काज छोड़ि‍ कुलकुल मण्‍डल भरि‍ दि‍न नाचक पाछू पड़ि‍ गेला। सासुरोमे नाच पार्टी चलन्‍हि‍।
१९६७ इस्‍वीक चुनाव आएल। जगदीश प्रसाद मण्डलो कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक सदस्‍य बनि‍ गेल रहथि। चुनावमे जि‍ला भरि‍क बूथपर खूब धाँधली भेल। ओना जहि‍ना खूब धाँधली भेल तहि‍ना गामे-गाम मारि‍ओ-पीट खूब भेल। केस-मोकदमा खूब बढ़ल। जहलक आबा-जाही सेहो बढ़ल। केस-मोकदमा भेने कोट-कचहरीक काज बढ़ल। राज्‍यमे (बि‍हार) सत्तरहे टा जि‍ला छेलै। ओइमे बढ़ोत्तरीक संभावना बढ़ल। सवडि‍वीजन, ब्‍लौक इत्‍यादि‍ सभमे बढ़ोत्तरीक संभावना बढ़ल।
१९६७ इस्‍वीक चुनावमे (अखुनका मधुबनी जि‍ला, तइ समए अनुमंडले छल) कम्‍युनिस्ट पार्टीक एम.पी. भोगेन्‍द्र जी (भोगेन्‍द्र झा) भेला। दूटा पार्लियामेंट सीटमे एकटा कम्‍युनि‍स्ट पार्टीकेँ आ एकटा सोशलिस्ट पार्टी (शि‍वचन्‍द्र झा) केँ भेल। ओना जि‍लासँ काँग्रेस जहि‍ना पार्लियामेंटसँ हारल तहि‍ना वि‍धान सभामे सेहो हारल। कम्‍युनि‍स्ट पाटीकेँ चारि‍टा एम.एल.ए. आ एकटा एम.पी.क सीट भेटल। राज्‍यक सरकार बदलि‍ गेल मुदा देशक (दि‍ल्‍लीक) सरकार नै बदलल। वि‍रोधी दलक सदस्‍य बढ़ल। जइ-जइ राज्‍यमे काँग्रेसी सरकार टुटल ओइ-ओइ राज्‍यमे वि‍रोधीक सरकार बनल। मुदा एकछाहा केतौ ने बनल। खि‍चड़ी सरकार बनल। काँग्रेस पार्टीसँ एक ग्रुप टूटि‍ जनक्रान्‍ति‍ दल बि‍हारमे बनौने छल। जेकर नेतृत्‍व माहामाया बाबू करै छला। मुख्‍यमंत्री बनला। अखनि भ्रष्‍टाचार मुख्‍य समस्‍या बनि‍ गेल अछि‍। मुदा ओहू समैमे चोरनुकबा खूब रहए। चाहे जे कोनो वि‍भाग रहै भ्रष्‍टाचारसँ आक्रान्‍त छल। माहामाया बाबूक सरकार पछि‍ला काँग्रेसी मंत्रीक वि‍रोधमे सुप्रीम कोर्टक जजक नेतृत्‍वमे जाँच आयोग बनौलक। अय्यर आयोग नाओं पड़ल।
बैद्यनाथ राम अय्यर सुप्रीम कोर्टक जज छला। दक्षिणक छथि‍। करीब पनचानबे-छि‍यानबे बर्खक छथि‍। जीवि‍ते छथि‍। पूर्व बि‍हार सरकारक छहटा मंत्रीक वि‍रूद्ध अपन जाँच रि‍पोर्ट दऽ देलखि‍न। करोड़ोक लूट सावि‍त कऽ देने रहथि‍न।
१९६६ ई.मे बि‍हार रौदीक चपेटि‍मे आबि‍ गेल। ओना पहि‍ल बरख रहने ओते बुझि‍ओ नै पड़लै। जौं बूझि‍ पड़ि‍तै तँ १९६७ इस्‍वीक चुनावी मुद्दा बनैत से नै बनल। मुदा सरकार बनला उत्तर दोसर बरख खूब बूझि‍ पड़ए लगलै। भुखमरी हुअ लगल। सरकारक सोझा जबरदस सबाल उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। जमाखोर सबहक वि‍रोधमे अभि‍यान चलबैक ि‍नर्णए भेल। मुदा तेहेन नाटक ठाढ़ भऽ गेल जे अभि‍यान मजाक बनि‍ गेल। नाटक ई भेल जे दस बीसटा ओहेन सभ पकड़ाएल जेकर कारोबार (अन्नक कारोबार) घोड़ा-घोड़ीपर चलैत रहए। मुदा सोलहन्नी सएह नै भेल, कि‍छु एहनो जमाखोर पकड़ाएल जेकरा गोदाममे लाखो क्‍वीन्‍टल अनाज रहए।
पार्लियामेंटक शपथ ग्रहण केला पछाति‍ भोगेन्‍द्र जी जखनि मधुबनी घुमला तँ सकरीमे पहि‍ल आम सभा केलन्‍हि‍। एक तँ नव सदस्‍य रहने दोसर अपन पार्टीक रहने करीब पनरह-बीस गोटे गाम (बेरमा) सँ सभामे भाग लि‍अ गेलथि। गाड़ीक सुवि‍धा रहबे करन्हि। तहूमे लाल झंडाबला सभ दि‍ल्‍ली तक प्रदर्शन करि‍ते छल। ओना भोगेन्‍द्र जीक भाषणक गुण रहलन्‍हि‍ जे ओ पहि‍ने बाजि‍ दइ छेलखि‍न जे जि‍नका जे प्रश्न पुछैक हुअए ओ पूछि‍ दि‍अ। जवाब देब हुनक भाषणक मूल बि‍न्दु छेलन्‍हि‍ भाषणो नमहर करै छला। समए भेटलापर तीन-तीन, चरि‍-चरि‍ घंटा बजि‍ते रहि‍ जाइ छला।
ओइ समए ि‍नर्मली-सँ-समस्‍तीपुर एकटा गाड़ी चलैत रहए। बड़ी लाइनक केतौ पता नै। मुदा कम्‍युनिस्ट पार्टीक लड़ाइक एकटा मुद्दा ईहो रहए। कखनो उग्र तँ कखनो धीमी गति‍सँ चलि‍ते रहए। ओना पूबोसँ आ पच्‍छि‍मोसँ अबैबला गाड़ीक मेल सकरीएमे रहै मुदा से नै भेलै। काकरघटीमे मेल भेने पछबरि‍या गाड़ी पछुआ गेलन्‍हि। जइ कारणे सभाक आयोजन कि‍छु बि‍लमि‍ कऽ भेल। सकरी स्‍टेशनसँ थोड़बे हटि‍ कऽ दछि‍नबारि‍ भाग सभाक आयोजन भेल। गाड़ीसँ उतरि‍ झंडा फहरबैत आ नारा लगबैत जुलुस बनि‍ सभा स्‍थल पहुँचला। तैसंग झंझारपुरक इर्द-ि‍गर्दक सेहो बहुत गोटे संग भऽ गेल रहथि‍न। आयोजक रहथिन्हचीनी मि‍लक श्रमि‍क-संगी। ओइ समए छबे मास मि‍ल चलै। सालमे छह मास काज भेने छह मास बैसारीक समस्‍या रहबे करै। तैसंग कि‍सानकेँ नहि‍येँ कुशि‍यारक कटनी होइ आ नहि‍येँ समैपर दाम भेटै। सेहो सभ समस्‍या रहबे करै। कुशि‍यारक एके कि‍स्‍मक खेती होइ जे अगहनमे तैयार भऽ जाइ। मुदा नमहर इलाकामे खेती भेने, समैपर कटनी नै भऽ पबै। मीले कम। जेतबे ओ पेड़ि‍ सकत ततबे ने लेत। तहूमे चलाकी ओकर ई रहै जे शुरूमे तैयार भेने शुरूहेसँ नीक उत्‍पादन (चीनीक मात्रा) हुअ लगै आ जेते पछुआइत तेते रस गाढ़ भेने चीनीक मात्रा बढ़ि‍ जाइ।
पच्‍छि‍मसँ गाड़ी अबि‍ते दरभंगा-जालेक वि‍धायक खादि‍म हुसेन संगे भोगेन्‍द्र जी हाथमे चमड़ाक बैग लटकौने आगू-आगू आ दस पनरह गोटे पाछू-पाछू स्‍टेशनसँ सभा स्‍थल पहुँचला। हाफ शर्ट धोती पहि‍रने रहथि‍। पएरमे चमड़ाक जूता रहन्‍हि‍। मंचपर सँ नारा हुअ लगल। अदहासँ बेसी मंच भरल। जे वक्‍ता बजैत रहथि‍ ओ अपन वि‍चार सम्‍पन्न केलन्‍हि‍। चीनी मि‍लक ट्रेड-युनि‍यनक जे नेता रहथि‍ ओ वि‍स्‍तारसँ अपन समस्‍या रखलन्‍हि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल सभ आगूसँ नि‍च्‍चाँमे बैसल रहथि। भोगेन्‍द्रजी दिससँ बजैसँ पहि‍ने आने सभा जकाँ प्रश्नक आग्रह भेल। कि‍छु प्रश्न एबो कएल।
अढ़ाइ-तीन घंटा पछाति‍ सभा वि‍सर्जन भेल। सभामे भाग लेनि‍हार चारू कातक लोक चलि‍ गेला, मुदा गाड़ीबला सभ स्‍टेशनपर आबि‍ गेला। दुनू गाड़ी (ि‍नर्मली आ जयनगरवाली) मे एक-डेढ़ घंटा देरी रहए। स्‍टेशनेपर भोगेन्‍द्रजीसँ पहि‍ल भेँट आ सोझहा-सोझही परि‍चए भेलन्हि।
पहि‍ले-पहि‍ल भोगेन्‍द्रजी पार्लियामेंटक सदस्‍य भेल रहथि‍। जहि‍ना १९४२ई.मे अंग्रेजक खि‍लाफ देशक जन-जनमे राजनीति‍क नव चेतना जागल रहै तहि‍ना १९६७ इस्‍वीक चुनाव पछाति‍ सेहो भेल। बि‍हारोमे ओहेन- ओहेन राजनीति‍क पार्टी बहुमतमे आएल जे अखनि धरि‍ (१९६७) वि‍धान सभामे नै पहुँचल छल। जे पार्टी (काँग्रेस) अखनि धरि‍ बि‍हारोमे सत्ता-सीन रहल ओ नीक हारि‍क मुँह देखलक। ओना बि‍हारे मात्रमे नै आनो-आनो राज्‍यमे भेल। काँग्रेसो एक ग्रुप टूटि‍ कऽ जनक्रांति‍ दल कऽ कऽ पार्टीमे उतरल छल। काँग्रेस वि‍रोधी दलक स्‍पष्‍ट बहुमत भेल छल। मुख्‍य पार्टीक रूपमे सोशलि‍स्‍ट पार्टी आ कमो-बेसी आनो-आनो पार्टी जीतल। सिरिफ वि‍धान सभामे एहेन परि‍वर्त्तन भेल से बात नै, गाम-गामक जन-गणमे अपन हार-जीत सेहो महसूस भेल। बेवहारि‍क दौड़मे जे कि‍छु मुदा भाषणक क्रम (सि‍द्धान्‍ति‍क) मे तँ जनताक सभ समस्‍या सामने ऐबे कएल। कारण जे सभ पार्टीक अपन-अपन वि‍चार तँ लोकक बीच पहि‍नेसँ आबि‍ रहल छल। ३४ टा सीट माने ३४ टा वि‍धायक वि‍धान सभामे आ पान-सात टा कम्‍युनि‍ष्‍ट पार्टीक सदस्‍य पार्लियामेंटोमे पहुँचला। आजादी पछाति‍ पहि‍ल बेर आमजन सत्ता (शासन) दि‍स बढ़ल। ओना अखनि धरि‍ सरकारक अर्थ आम जन-गण कोटाक शासनक मटि‍या तेल आ जे मुख्‍य वि‍न्‍दु कोटाक वस्‍तु बनल छल मात्र ततबए। डीलरक काजक लेखा-जोखा भरि‍ शासन चलै छल। आन-आन समस्‍या तँ भाषणेक क्रमटा मे छल। कि‍छु-ने-कि‍छु बाढ़ि‍-रौदी चलि‍ते छल ओकरे बँचबैक उपए सरकारक कहब रहै छेलै। नवका तूर (आजादीक करीब आ पछाति‍क) सेहो जुआन भेल। जइसँ आनो-आनो काज (सरकारक) सोझहामे आएल। अखुनका मधुबनी जि‍ला जे ओइ दि‍नमे अनुमंडल छल। एगारहटा एम.एल.ए. आ दूटा एम.पी.मे बँटाएल छल। छह-छहटा एम.एल.ए. पर एम.पी.। दरभंगाक जाले क्षेत्र सेहो मधुबनीएमे।
ओना अखुनका मधुबनी जि‍लाक पच्‍छि‍मी भागमे जमीनक लड़ाइ सेहो नीक जकाँ चलि‍ रहल छल, मुदा मुख्‍य छल पच्‍छि‍मी कोसी नहरि‍। मि‍थि‍लांचलमे कोसी, कमला, बागमतीक जे उपद्रव साले-साल चलि‍ रहल छै आ क्षति‍ पहुँचबै छै, भरि‍सक तेतेटा बजटो ने केते सरकारकेँ होइ छै। खैर जे होउ! उनैस सए साठि‍क दशकक सवाल, समस्‍या आ लड़ाइ कम्‍युनिस्ट पार्टीक मुख्‍य लड़ाइ रहल जेकर दशा, मनुखक एक जि‍नगीक (६५-६६ बर्ख) उपरान्‍तो की अछि से‍ सबहक सोझेमे अछि‍! जौं योजना हि‍साबसँ काज होइत तँ आजुक मि‍थि‍ला ई मि‍थि‍ला नै, ओ मि‍थि‍ला बनि‍ गेल रहैत जइ मि‍थि‍लामे ऋृषि‍-मुनि‍ इच्‍छानुसार बर्खा बरि‍सबै छला। एते पनि‍बि‍जलीक उत्‍पादन होइत जे घर-घरमे पहुँचल रहैत। जइसँ जापान जकाँ लघु-उद्योगक संग-संग भारीओ उद्योग लागि‍ गेल रहैत। मुदा आइ की देखै छी। चुनाव होइत रहल, एमेले-एमपी बदलैत रहला। मुदा समस्‍या आइ ओहेन वि‍कराल रूप लऽ लेलक अछि‍ जे आर्थिक तंगीक चलैत दि‍न-दहार लूट-पाट भऽ रहल अछि‍। जौं जापान, जर्मनी आ पड़ोसी देश चीनक जमीनक प्रति‍ एकड़ उपजाक तुलना अपन मि‍थि‍लांचलक भूमि‍सँ करब तँ आश्चए नै बि‍सवासो नै हएत। की मि‍थि‍लामे सिरिफ साढ़े तीन हाथक मनुखेटा अछि‍ जेकरा मात्र पेटेटा छै आकि‍ ओकरा दूटा हाथो-पएर छै आ मातृभूमि‍ओ छै। मि‍थि‍लांचलक ओ भूमि‍ आ जलवायु अछि‍ जे दुनि‍याँमे केतौ नै अछि‍। ने एते सुन्‍दर मुलाइम माटि‍ अछि‍ आ ने एहेन नीक पानि‍ अछि‍ आ ने एते रंगक मौसम अछि‍। मुदा आइ की देखै छी? ने अखनि धरि‍ नेपाल सरकारसँ नीक जकाँ समझौता भेल अछि‍ आ ने कोसीक पच्‍छि‍मी-पूर्बी नहरि‍क समुचि‍त वि‍कास। एक तँ योजनाक काज पछुआएल तैपर काजक एहेन पेंच-पाँच अछि‍ जे एकटा नहरो बनब कठि‍न अछि‍, दोसर बनलापर ओ समुचि‍त काज कठि‍न अछि‍। पानि‍ ऊपर-सँ-नि‍च्‍चाँ असानीसँ अबैत अछि‍। मुदा नि‍च्‍चाँ-सँ-ऊपर असानीसँ जाएत? नै जाएत। जौं गहींरमे नहर खुनि‍ देल जाए तँ ओकर पानि‍ ऊपर केना जेतै। हँ मशीनक माध्‍यमसँ जा सकैए, मुदा घरमे फुसि‍-फासि‍, सोम दि‍न बि‍आह। जैठाम त्रेता युगक तीन बीता हर, आ सतयुगक बसहा-बड़दसँ अखनो खेती होइए तैठाम केना मानल जाएत।
स्‍टेशन (सकरी प्‍लेटफार्म)पर आबि‍ सभ गोलि‍या कऽ बैसला। पल्‍था मारि‍ भोगेन्‍द्रजी सभकेँ सेहो तहि‍ना बैसए कहलखि‍न। गाड़ी पकड़ैले सबहक मन छनगल। पल्‍था माि‍र बैसैक अर्थ नि‍श्चि‍न्‍ती। पहि‍ने ओ सभकेँ नाओं-ठेकान पुछलखि‍न। नाओं-ठेकान पुछला उत्तर कहलखि‍न,
“कम्‍युनिस्ट अपन पार्टी छी, अपन पार्टीक ई अर्थ नै जे कोनो जाति‍-मजहबक होइ, मनुख-मात्रक पार्टी छी। हमरा सभकेँ ओहेन समाज बनेबाक अछि‍ जइमे ने कि‍यो भूखल रहत आ ने नांगट। सबहक बाल-बच्‍चा पढ़तै, सभकेँ रोग-व्‍याधि‍क इलाज हेतै तखनि ने सभ आगू मुहेँ बढ़ैक कोशि‍श करता। अपना ऐठाम जे ऋृषि‍-मुनि‍ भेला, ओ की केलन्‍हि? हुनका नै अपन सुखक चि‍न्‍ता छेलन्‍हि‍किए ओ सभ अपन जि‍नगी गला लेलन्‍हि‍। ओ सभ बहुत केलन्‍हि‍। जौं से नै केलन्‍हि‍ तँ एक कट्ठा जमीनमे जीवन बसर करैत केना छला‍। मुदा अपन धरोहरि‍केँ जौं ताला लगा रखबै तँ के बूझत? लखनजी (डाक्‍टर लक्ष्‍मण झा) मि‍थि‍लांचल लेल जे जि‍नगी समरपित केलन्‍हि‍ से की केलन्‍हि‍। के बूझत?”
दि‍ल्‍ली जाइसँ पहि‍ने भोगेन्‍द्रजी कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टीक जि‍ला-कार्यालयमे जगदीश प्रसाद मण्डल जी केँ कहि‍ देलखि‍न जे-
“आब जे आएब तँ बेरमो जेबे करब, तँए ओइपर नजरि‍ राखब।”
जहि‍ना हाटो-बजारमे आ गामो-घरमे वस्‍तुक लेन-देन तीन तरहक लोकक बीच होइत अछि‍, एक वस्‍तुबला, दोसर लेबाल (कीनैबला)क बीच मुदा ऐ बीच तेसरो फड़ि‍ जाइए, ओ फड़बैए गर्ज। जखनि वस्‍तु बेचि‍नि‍हारो आ लेनि‍हारोकेँ समानक गर्ज रहैए तखुनका बेवहार सुलभ होइए। कारणो होइ छै जे वस्‍तु बेचि‍ वा कीनि‍ कऽ अमुख काज करब, जे जरूरी अछि‍। दोसर तरहक होइए जे बेचि‍नि‍हारकेँ काजक दुआरे अधि‍क गर्ज रहल आ किनिनि‍हार अगधाएल रहल। तैठाम बेचि‍नि‍हार कटाइए आ किनिनि‍‍हार नफगर रहैए। तहि‍ना केतौ लेबाल (किनिनि‍‍हार) गरजू रहल आ बेचि‍नि‍हार ना-गरजू। तैठाम किनिनिहार कटाइए आ बेचि‍नि‍हार नफामे रहैए। कि‍एक तँ मने-मन अगधाइत रहल जे पानि‍मे पाथर सड़ैए। तहि‍ना लेबालोक बीच होइत रहै छै जे पाइ की कोनो कुट-कुट कटैए जे अनेरे केतौ फेक‍ देब। यएह बिचला दुनि‍याँक कलाकार छी, जे अपने संग दुनि‍योँकेँ नचबैए।
अदौसँ एक दि‍सक लोक दोसर दि‍सक लोककेँ वि‍कट परिस्‍थि‍‍ति‍ पैदा करैत रहल अछि‍ आ कंठ दबैत रहल अछि‍। मुदा से नै भेल। जहि‍ना भोगेन्‍द्र जीक कार्यक्रमक जि‍ज्ञासा बेरमा लोककेँ छल तहि‍ना भोगेन्‍द्रोजी आ कम्‍युनिस्ट पार्टीओकेँ छेलै। सकरी सभाक बात बेरमा गाममे जोर-शोरसँ चलए लगल। नीक-सँ-नीक कार्यक्रम हुअए, तइ पाछू सभ लागल, तँ दोसर दि‍स नव क्षेत्र भेट‍ने भोगेन्‍द्रोजी आ पार्टीओ कार्यक्रमकेँ नीक-सँ-नीक बनबैक फि‍राकमे लागल। ओना आइसँ १९६७ ई.सँ पूर्व एकबेर कम्‍युनस्ट पार्टी बेरमामे सेहो बनल छल मुदा बेवहारि‍क पक्ष कमजोर रहने टि‍क नै पाएल रहए। नव-युवक बीच पार्टी बनल, कमोबेश अधि‍कतर युवक पढ़ल-लि‍खल। सबहक बीच पार्टीक कोनो तौर-तरीका नै बूझल तँए थाहि‍-थाहि‍ कि‍छु-कि‍छु सि‍खैत, अकास-सँ-पताल धरि‍क बात उड़ि‍-उड़ि‍ सबहक कानमे आबै जइसँ कि‍छु-ने-कि‍छु उत्‍साह तँ जगि‍ते रहए। जौं से नै होइतै तँ आन पार्टीक (पँूजीवादी) अपेक्षा चरि‍त्र ि‍नर्माण केना एतए होइ छै? संघर्षे चरि‍त्र खरादै छै।
संसद बैसार समाप्‍ति‍क तेसर दि‍न भोगेन्‍द्रजी मधुबनी पहुँच गेला। अखनि धरि‍ भोगेन्‍द्रजी केँ तेना भऽ कऽ लोक नै चि‍न्‍हैत रहनि‍ तँए औता आकि नै औता से असमंजस बनल रहए, बनबो स्‍वाभावि‍के रहै कि‍एक तँ आन-आन केतेक कार्यक्रम एहेन भऽ चुकल रहै जइमे नेता नै पहुँचल रहथि‍। संसद समाप्‍ति‍क पराते भेने भोगेन्‍द्रजी पटना पहुँच गेल रहथि‍। पहि‍ल बेर बि‍हारसँ कांग्रेसक वि‍रोधी दलक सांसद बहुमतमे दि‍ल्‍ली पहुँचल रहथि‍। बि‍हारोमे वि‍रोधीए दलक सरकार महामाया प्रसाद सि‍ंहक नेतृत्‍वमे बनल रहए। कर्पूरी ठाकुर उपमुख्‍यमंत्री बनला। ओना महामाया बाबू कांग्रेससँ टूटि‍ कऽ आबि‍ जनक्रान्‍ति‍ दल बनौने रहथि‍। बि‍हार सरकारमे सभसँ बेसी सोशलिस्ट पार्टीक वि‍धायक रहथि‍ जइसँ सरकारोमे अधि‍क भागीदारी भेलन्‍हि‍। पहि‍ल बेर धनिकलाल मण्‍डल जीत कऽ गेल रहथि‍, मुदा तैयो वि‍धान सभा अध्‍यक्ष बनला। भारतीय कम्‍युनि‍स्‍ट पार्टीक कोटामे दूटा केबि‍नेट आ दूटा राज्‍य मंत्री बनला। दरभंगा जि‍लाक कोटामे तेजनारायण जी (श्री तेज नारायण झा) राज्‍य मंत्री बनला। ओना चारू गोटे अपना-अपना क्षेत्रमे कर्मठ रहथि‍। जहि‍ना इन्‍द्रदीप भाय (श्री इन्‍द्रदीप सि‍ंह) वि‍द्वान (अर्थशास्‍त्री) रहथि‍ तहि‍ना चन्‍द्रशेखर भाय (श्री चन्‍द्र शेखर सि‍ंह) सेहो क्रान्‍ति‍कारी रहथि‍। श्री शत्रुध्‍न बेसरा आदि‍वासीक नेता रहथि‍ तँ तेजनारायण जी कि‍सान नेता। एक तँ ओहि‍ना सरकार दल-दलमे डोलैत रहए तैपर रौदी आरो डोलबैत रहए।
कि‍सान नेताक संग-संग भोगेन्‍द्र जी बि‍हारक नेता सेहो रहथि‍ तँए काजक भार बहुत अधि‍क पड़ि‍ गेल रहनि‍। पटना आबि‍ राज्‍यक स्‍थि‍ति‍क वि‍चार-वि‍मर्श करैत-करैत पहि‍ल दि‍न बीति‍ गेलन्‍हि‍। मुदा पराते भनेसँ क्षेत्रक समए बना लेने रहथि‍। राता-राती मधुबनी आबि‍ गेला। मधुबनी अबि‍ते सभकेँ खबड़ि‍ भऽ गेल जे काल्हि‍ भोगेन्‍द्र जी बेरमाक कार्य-क्रममे रहता। ओना सभ प्रचार करि‍ते रहथि, पर्चो छपबाइए नेने रहथि, दि‍नमे आम सभा करता आ राति‍मे कार्यकर्ता-मीटि‍ंग। खाएओ-पिबैक ओरि‍यान भेल रहए। आम सभाक अंति‍म समए पाँच बजे पछाति‍ भोगेन्‍द्रजी जीपसँ बेरमा पहुँचला। आम सभामे उपस्‍थि‍त सबहक मनमे भऽ गेलै जे आब ओ नै औता। फौनो-फान अखुनका जकाँ नहि‍येँ रहै, भोगेन्‍द्र जीकेँ अबैसँ पहि‍ने, आम सभा मरहन्ने जकाँ रहल मुदा हुनका अबि‍ते जेना रंगे-रूप बदलि‍ गेल। केते गोटे जे उठि‍-उठि‍ कऽ रस्‍ता पकड़ि‍ नेने रहथि‍, ओहो सभ घुमला। संग-संग कि‍छु नवो लोक पहुँचला। जीपसँ उतरि‍ भोगेन्द्र जी बजला-
एक गि‍लास पानि‍ आ चाह पि‍आउ। ताबे मंचपर बैसै छी।
लोक औग जे जखनि भोगेन्‍द्रजी पहुँच गेला तखनि हुनक समैकेँ अनेरे दुइर करै छि‍यनि‍। मंचपर भोगेन्‍द्रजी चुपचाप बैस देखैत-सुनैत रहथि‍। पानि‍ पीब चाह पि‍लन्‍हि‍। चाह पिबैते बजैक आग्रह भेलन्‍हि‍। आग्रह होइते ओ कहलखि‍न जे सभकेँ पूछि‍ लि‍अनु जे कि‍नको कि‍छु पुछबाक छन्‍हि‍। मुदा सभ तँ सुनैले उत्‍सुक तँए एकोटा प्रश्न नै आएल रहए। उठि‍ते दि‍ल्‍लीक कांग्रेसी सरकारक खेरहा संक्षेपमे ओ कहलखि‍न जे केना अखनि पूजीपति‍, कारखानादार आ सामंत (राजा-महराजाक) क बीच वि‍वाद फँसल अछि‍। वि‍वादक चर्च करैत कहलखि‍न जे देशक वि‍कास अवरूद्ध भऽ गेल अछि‍। मुदा से बात कमे लोक बुझलक। कि‍एक तँ गामक लोक सरकारक माने कोटाक गहुम आ थाना मात्र बुझै छल, गोटि‍-पंगरा चापा-कलो गड़ा जाइ छेलै। ताबत चीनी-मटि‍या तेलक कोटाे भेल रहै ओना गहुमो कोटेक हि‍साबसँ भेटै मुदा लेबालक अभाव (पाइक दुआरे) रहने से नै बूझि‍ पड़ै। दि‍ल्‍ली सरकारक लगले बि‍हार सरकारक चर्च केलखि‍न। रौदीक स्‍थि‍ति‍ भयावहता आ बि‍हार सरकारक आँट-पेट खोलि‍ कऽ रखि‍ देलखि‍न। कोसी-नहरि‍क चर्च वि‍स्‍तारसँ केेलखि‍न जे ई योजना मि‍थि‍लांचल लेल की‍ अछि‍? मि‍थि‍लांचल चर्चक क्रममे ऐठामक सामाजि‍क शोषण, जे एक-दोसरकेँ आगू बढ़ैसँ रोकैत अछि‍ इत्‍यादि‍, वि‍स्‍तारसँ चर्च केलखि‍न।
ओना भोगेन्‍द्र जीक भाषण दू घंटा-सँ-चारि‍ घंटा होइ छल, मुदा से नै भेल। घंटा पुरैत-पुरैत समए समाप्‍त भऽ गेल। सभा समाप्‍ति‍ होइते ओ कहलखि‍न जे ओना कार्यकर्ता-बैसार करैक कार्यक्रम सेहो अछि‍ मुदा से नीक जकाँ नै भऽ सकत। मुदा तैयो अहाँ सभ तैयारी करब जेते काल छी तहीमे ओहो भइए जेतै। तैबीच चाह एलै, ओ जलखै नै केलन्‍हि‍। चाहे पिबैकाल अय्यर-आयोगक चर्च सेहो केलखि‍न। कि‍छु कांग्रेसी नेता, जे सभ सरकारमे रहला, गोल-मालक जाँच करता।
ओना जइ हि‍साबसँ कम्‍युनिस्ट पार्टीक पहि‍ल आम सभा छल तइ हि‍साबसँ बहुत नीक भेल छेलै, जे भोगेन्‍द्रजी अपनो बजला।
कार्यकर्ता मीटि‍ंग शुरू होइते जेना भोगेन्‍द्र जीक रूप बदलि‍ गेलन्‍हि‍। बजला-
कम्‍युनिस्ट पार्टी राजनीति‍क पार्टी छि‍ऐ, अहाँ सभ पार्टीक सदस्‍य बनि‍ पार्टी बनेलौं, एकरा सम्‍हारबोक भार अहीं सबहक ऊपर रहत। अहाँ सभ अपनाकेँ क्रान्‍ति‍कारी पार्टीक सदस्‍य बूझि‍ सामाजि‍क बेवस्‍थाकेँ बदलि‍ सुधारू, जाधरि‍ सामाजि‍क बेवस्‍था नै बदलत ताधरि‍ सर्व-कल्‍याणकारी समाज नै बनत। जाधरि‍ सर्व-कल्‍याणकारी समाज नै बनत ताधरि‍ कि‍छु गोटे लुटबे करत आ कि‍छु गोटे लुटेबे करत। कमाएब अहाँ, खा जाएत दोसर। मुदा पार्टी तँ गामसँ लऽ कऽ दुनि‍याँ भरि‍मे पसरल अछि‍। तँए एक-दोसरमे जुटि‍ कऽ केना रहब, ई तौर-तरीका सीखए पड़त। गामसँ लऽ कऽ दुनि‍याँ भरि‍मे लूट-खसोट चलि‍ रहल अछि‍, जे साधारण नै अछि‍, सभ तरहक शक्‍ति‍ ओकरा छै। ओइ शक्‍ति‍क मुकाबला करैक जे शक्‍ति‍ छैक ओ बनबए पड़त। अखनि तँ हमहूँ औगताएले छी तँए नीक जकाँ नै बुझा पाएब। कनी नि‍चेन होइ छी तखनि फेर आएब। अखनि कि‍छु मूल बात जे छै से कहि‍ दइ छी। अहाँ गाममे पार्टी बनेलौं, गामक जे समस्‍या अछि‍ ओकरा पकड़ू। पार्टीक सभ सदस्‍य एकठाम बैस ओइ समस्‍यापर वि‍चार करू। लोके लऽ कऽ समाज बनै छैक। जेते गोटे अहाँ सभ छी जौं ओतबो गोटे एकजुट भऽ समाधान करब तँ असानीसँ समाधान होइत जाएत। ओना जेते असान बुझै छि‍ऐ बेवस्‍था तोड़ब ओते असान नै छै। वि‍रोधीक आक्रमणक संग अपना पार्टीओमे मतभेद हएत, तैसंग परि‍वारोमे हएत। बड़-बढ़ि‍याँ खाइ-पिबैक जोगाड़ सेहो केने छी। सभ एकठाम बैस खाएब-पीब तखनि ने खाइ-पिबैक छुआछुतक रोग जे अछि‍, से टुटत। जाबे से नै टुटत ताबे मन-भेद होइते रहत। नि‍अमि‍त बैसार करू। जाबे अपना पार्टी कार्यालय नै भेल अछि‍ ताबे टोले-टोल बैसार करू। ओइ टोलक की समस्‍या छै आ ओकर समाधान केना हेतै, बैसारक मुख्‍य काज भेल। ई तँ सामाजि‍क स्‍तरपर भेल मुदा ऐ संग आरो क्षेत्र अछि‍। कोनो समस्‍या लऽ कऽ ब्‍लौकमे प्रदर्शन करब, ब्‍लौक भरि‍क पार्टीक प्रदर्शन हएत। ओहीमे बेरमाक जे समस्‍या अछि‍ ओकरो मुद्दा बनाएब। अहि‍ना जि‍लोमे होइ छै। राज्‍यक राजधानीओमे होइ छै, दि‍ल्‍लीओमे होइ छै। सभमे भाग लेब। दुनू दि‍सक समस्‍या रहत, तँए ऊपरका समस्‍या प्रमुख भेल।
ओ औगताएल रहबे करथि‍, नअ बजे करीब वि‍दा भऽ गेला। हुनका गेला पछाति‍ खेनाइ-पिनाइ भेल। कार्यक्रम समाप्‍त भेल।
गाममे एकटा नव नजरि‍क जनम भेल। जेना पहि‍ने गामकेँ लोक बुझै छल तइसँ भि‍न्न बुझैक प्रक्रि‍या शुरू भेल। ओहुना चारि‍ गोटे एकठाम भऽ कोनो काज शुरू केलक। ओना पहि‍नौं कि‍छु लोक सामाजि‍क काजमे समाज सहयोगी बनै छला, मुदा ओ दायरा कमि‍ गेल। कि‍छु परि‍वार धरि‍ समटा गेल छल। अपन काज, अपन बातकेँ छि‍पा कऽ राखब स्‍वभाव बनि‍ गेल छल, अखनो अछि‍।
अंतमे, चारि‍ गोटेक बीच रहला आ बजलासँ बजबाक अभ्‍यास हुअ लगै छै। तैसंग ईहो होइ छै जे दोहरा-तेहरा कऽ एके बात बाजी वा कि‍छु नव गप बाजी। पार्टीमे जुटलासँ दि‍ल्‍लीक रैली तक जगदीश प्रसाद मण्डल भाग लि‍अ लगला। नव-नव लोकसँ भेँट-घाँट, क्षेत्रक हि‍साबसँ नव-नव कला-संस्‍कृति‍ देखैक अवसर जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ भेटए लगलन्हि। तैसंग ईहो भेलन्हि जे दू-अना, चारि‍-अनामे नीक कि‍ताब भेटए लगलन्हि जइसँ नव-नव जानकारी हुअ लगलन्हि।
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१९६७ इस्‍वी पछाति...


१९६७ इस्‍वी पछाति‍ गामसँ लऽ कऽ देश भरि‍मे दोरस हवा उठल। मुदा हवोक रूखि‍क सीमा तँ भि‍न्न-भि‍न्न अछि‍, केतौ रेत बला भूमि‍मे अपनो रस चटबैत अछि‍, तँ केतौ समुद्रमे ज्‍वार उठबैत अछि‍, केतौ पहाड़सँ टकरा या तँ मेघे दि‍स उड़ि‍ जाइत अछि‍ वा पजरबाहि‍ ताकि‍-ताकि‍ पड़ाइत अछि‍। केतौ समतल भूमि‍मे गाछ-बिरिछ उखाड़ैत तँ केतौ सरोवरक हल्‍फी, तँ केतौ मन्‍द गति‍क सुहावन हवा सेहो दैत अछि‍। अवसरक लाभ जेकरा जेते भेटैक चाहि‍ऐ से नै भेट‍ पेलै। जौं से नै पेलै तँ औद्योगि‍क क्षेत्रक अपेक्षा कृषि‍ क्षेत्र किए पछुआ गेल। भलहिं तमसेलापर बाजि‍ दि‍अए जे महाराष्‍ट्र कर्नाटक औद्योगि‍क क्षेत्रमे अगुआ गेल आ बि‍हार पछुआ गेल, ई तामसपर बाजल भेल। मुदा महाराष्‍ट्र वा कर्नाटकक उद्योगकेँ देखै छि‍ऐ तँ ईहो देखए पड़त जे ओइठाम जमीनपर जीनि‍हारक दशा की‍ छै। की ई बात झूठ जे बि‍हारक अपेक्षा ओइठामक कि‍सानकेँ आत्महत्‍याक नौवत छन्‍हि‍। तँए देशक सभ राज्‍यक अपन-अपन समस्‍या छै। अपना-अपना ढंगसँ देखए पड़तै। मुदा की‍ ई उचि‍त नै जे बि‍हारो स्‍वतंत्र भारतक अंग छी, एकरूपता हेबाक चाहि‍। आइ बि‍हारे नै, आनो-आनो राज्‍यकेँ बि‍हारोसँ बेसी समस्‍या छै जेकर समाधान जरूरी अछि‍। भलहिं बंगाल, केरल जकाँ नै, मुदा आनो-आन राज्यमे देखौंस तँ लगबे कएल। मि‍थि‍लांचलो ऐ दोरस हवासँ अलग नै रहल। पुरना दरभंगा जि‍लाक मधुबनी सवडि‍वीजनमे, जे अखनि जि‍ला अछि‍, जमीनक भरपूर एकरूपता आएल, मुदा खेत तँ तखनि ने खेत जखनि ओकरा भरपूर पानि‍ भेटै। उचि‍त बीआ, उचित खादक संग मशीन नेने कुशल कि‍सान सेहो भेटै। दस बरख पूर्वहि‍सँ कोसी नहर योजनाक पाछू प्रगति‍शील कि‍सानो आ वुद्धि‍जीवि‍ओ उठि‍ कऽ ठाढ़ रहला, मुदा कियो सुनि‍नि‍हार नै। जौं सुनौलो गेल तँ काजक तेहेन रूप धेलक जे पचास बर्खोमे योजना नै पूर्ति भऽ सकल अछि‍। धार-धुरक संग एहेन लापरवाही भेल जे मि‍थि‍लांचलक अदहासँ बेसी जमीन माटि‍सँ बालु बनि‍ गेल अछि‍। ओना धार बहुतो अछि, जइमे कि‍छु एहनो अछि‍ जे हजारो बरखसँ अपन दि‍शा नै बदललक, मुदा कोसी-कमला-बलानकेँ तँ भगैतो खेला-खेला, आ गीतो गाबि‍-गाबि‍ तेते सुआगत होइत रहल अछि‍ जे अदहासँ बेसी जमीनकेँ कमजोर माने शक्‍ति‍हीन बना देलक अछि‍। बालु केना उपजा भूमि‍ बनत, छोट सवाल नै अछि‍। राजनीति‍क दशा एहेन जे मुँहपुरुखि‍आइएक पाछू पड़ि‍ सभ अपनेमे ओझराएल अछि‍। मि‍थि‍लांचलक कोनो समस्‍या मि‍थि‍लेक नै अपि‍तु देशक छी। समस्‍याक समाधान केना हएत तहीमे सभ ओझरा-ओझरा राजनीति‍ कऽ रहला अछि‍। खाली आठ बजे राति‍मे सि‍तारपर सुनता-
पवन प्रि‍य पावन मि‍थि‍ला देश!”
जहि‍ना बेरमा देशक अंग छी तहि‍ना तँ देशो बेरमाक अंग छि‍ऐ। तँए देशक दाेरस हवा बेरमोमे बहल। साइकि‍लक औभर-वाइलि‍ंग जकाँ गामक वाइलि‍ंग शुरू भेल। एक संग रंग-बि‍रंगक हवाक प्रवेश भेल। अड्डा बन्‍दी हुअ लगल। कि‍छु लुत्ती गामोसँ उठै तँ कि‍छु बाहरोसँ पसहि‍-पसहि‍ बए गल।
अखनि धरि‍ गाममे जाति‍-सम्‍प्रदायक हवा नै आएल छल। जहि‍या कहि‍यो मारि‍-दंगा हुअए ओ या तँ आन गामसँ हुअए, वा एक-टोल दोसर टोलक बीच। बीसो जाति‍सँ ऊपरबला गाम बेरमा। पावनि‍-ति‍हारमे गजपट होइते आएल अछि‍। मुदा तैयो तँ चलि‍ते रहलै। गजपटो केना ने होउ, अदहासँ बेसी स्‍त्रीगण भादवक रवि‍ करि‍ते छथि‍। मुदा पावनि‍क वि‍धानो भि‍न्न-भि‍न्न। कि‍यो दुनू साँझ नि‍खंड करै छथि‍, तँ कि‍यो एक संझू। कि‍यो नोनेटा परहेज करै छथि‍, तँ कि‍यो अन्न छोड़ि‍ फलेटा सेवन करै छथि‍। तहि‍ना घड़ी पावनि‍। एक तँ सालक दू-तीन मास, सौन, आसीन चैतमे होइए तँ दोसर बुधवारि‍, सोमवारि‍ आ शुक्रवारि‍ सेहो होइए।
कबीर पंथक प्रवचनकर्ता आबि‍-आबि‍ माया-जालक नि‍न्‍दा करैत आ सेवक सभकेँ चेतेबो करै छथि‍। सेवको रंग-बि‍रंगक। तहूमे बेरमामे आरो गजपट। एक दि‍स सए घरक ब्रह्मण बस्‍ती टोल, टोल ऐ दुआरे नै जे गोठि‍या नै फुटझाड़ा अछि‍, मे एकोटा बैष्‍णव नै। ओना समाजक पंथनि‍रपेक्षक खि‍यालसँ नीके अछि‍। तहि‍ना दोसर दि‍स दलितोक टोल अछि‍। थाल-पानि‍सँ लऽ कऽ अकास धरि‍क शि‍कारी। बीचक जे जाति‍ अछि‍ ओ धार्मिक पंथ (साम्‍प्रदायि‍क) सँ जुड़ल अछि‍। जाति‍क भीतर वैष्‍णव-साकठ केर बीच बि‍वाद चलैत अछि‍ तँ एक जाति‍क दोसराक बीच सेहो चलैत अछि‍। कबीर पंथक बीच समझौता भेल। समझौता भेल जे श्राद्ध-कर्म पछाति‍ सत्‍यनारायण पूजा पछाति‍ कबीर पंथी भनडारा सेहो हुअए, से हुअ लगल। एक दि‍स दोसर सम्‍प्रदायक वि‍रोधमे बजबो करैत आ दोसर दि‍स संग मि‍लि‍ रहबो करैत अछि‍। तहि‍यो कबीर पंथ मजगूत छल, अधि‍क समर्थक अछि, आइओ अछि‍। तैबीच एकटा घटना मण्‍डल (धानुक) जाति‍मे फँसल। द्वालख सुबे दासक प्रभाव, मण्‍डलो-मुखि‍यो (धानुक-मला) आ बरैइओमे रहनि‍। रमौतक चला-चलती गाममे कम। ननौरमे बुद्दी दास रमौतक महंथ बनि‍ गेला। दि‍यादि‍क लाटसँ बेरमा आबि‍ अपने दि‍यादमे एक गोटेकेँ कंठी दऽ सेवक बना लेलन्‍हि‍। दि‍याद सेवक बनि‍ गेलन्‍हि‍। ओना सालमे एकबेर सुबेदास मास दि‍न लेल एबो करै छला मुदा बीचमे जौं केतौ भनडारा भेल तँ दल दऽ बजाइओ लेल जाइत छेलन्‍हि‍
ननौरबलाक चेलाकेँ अपन चेला (रमौत-सँ-कबीरपंथी) बना लेलन्‍हि‍। एक दि‍स बि‍नु वैष्‍णव (साकठ) केँ चेतैबतो तँ दोसर दि‍स लुटो-पाट चलैत। सेवक लुटेलासँ ननौरबला वुद्दी दास फरमान जारी केलन्‍हि‍-
जहि‍ना ओकरा (घुरण दास सेवक) कानमे मंत्र देलि‍ऐ आ ओ दोसर मंत्र लऽ लेलक तहि‍ना करुतेल टहका कऽ ओकरा कानमे देबै आ ओइ संग लागल मंत्रो नि‍कालि‍ देबै।
डंकापर चोट पड़ल। द्वालखबला जवाब देलखि‍न जे हुनकर (वुद्दी दासक) पंथे कमजोर छन्‍हि‍। ओइसँ जीवकेँ थोड़े गति‍-मुक्‍ति‍ हेतै। पहि‍ने दान कऽ थु। जौं से नै करता तँ सेवकक कानमे तेल ढारि‍ देता, से नै चलतनि‍। कसम-कस हुअ लगल। गामक दुआर-दरबज्‍जाक गपक मुख्‍य मुद्दा यएह बनि‍ गेल। समाजक कि‍छु लोक खुशी जे भने धानुक-धानुकक बीच लड़ाइ अछि‍ तँ दोसर दि‍स जाति‍-पाति‍पर चोट पड़ि‍ गेल छल। कारण जे जहि‍ना कम्‍युनिस्ट पार्टीक रैली, धाक तोड़ि‍‍ सड़कपर अनैत अछि,‍ तहि‍ना समाजक बीच जे कबीर पंथ माननि‍हार छला, हुनका सबहक बीच खेनाइ-पीनाइमे एकरूपता आबि‍ गेल छेलन्‍हि‍ कबीर पंथीमे भनडाराक महतपूर्ण आधार छै। जहि‍ना जगन्नाथमे अँटका प्रसाद होइ छै तइ सदृश कबीर पंथक बीच एक-दोसराक बीच प्रसादीक चलनि‍‍ अछि‍।
कबीर पंथ-रमौत दुनू पंथक तना-तनीमे गाम बँटाए गल। तीन-चारि‍ टुकड़ीमे गाम बँटि‍ गेल। कबीर पंथ (सम्‍प्रदाय) सँ कमजोर संगठन रमौत सम्‍प्रदायक छल। एक-गाम-दू-गाम केतेको गामक कबीर पंथबला सभ मैदानमे उतरैक तैयारी करए लगला। बेरमाक बगलेक गाम जगदर अछि। ओना परोपट्टामे जगदर-बेरमाक नाओंसँ जानल जाइत अछि‍। जगदर छोटेटा गाम अछि‍। भूमि‍हार ब्रह्मण आ राजपूत बहुसंख्‍यक अछि‍। ओना बरही, यादव, तेली, दुसाध, धुनि‍या, सोनार, मल्लाह सेहो अछि‍ मुदा अल्‍पसंख्‍यक। जगदरमे नथुनी सि‍ंहक सरदारी छेलन्‍हि‍, आ अस्‍सी प्रति‍शत भूमि‍हार हुनकर लठैत छेलन्‍हि‍ जइसँ पचकोसीमे झगड़ा-झंझटि‍क कारोबार चलैत छेलन्‍हि‍ जगदरक नथुनी सि‍ंह सेहो कबीरपंथी। ओ लोहि‍या पट्टीक राजपूते महात्‍माक सेवक। ओ संख्‍यामे कम मुदा शक्‍ति‍शाली रहथि‍। सम्‍प्रदायक रूपमे जगदर केतेको टुकड़ीमे बँटल। राजपूत कबीर पंथी दि‍स तँ भूमि‍हार राधा-कृष्‍ण सम्‍प्रदाय दि‍स, यादव-बरही, दुसाध कबीर पंथ दि‍स। तँ धुनि‍याँ इस्‍लाम दि‍स। मल्‍लाह तँ सहजहि‍ थाल-पानि‍मे रहनि‍हार छी तँए वैष्‍णव सम्‍प्रदायमे किए जेता। कबीर पंथीक झंझटिक हल्ला सूनि‍ लोहि‍यापट्टीबला महात्‍मा जगदरमे आबि‍ कऽ आसन लगा देलन्‍हि‍ आ आन-आन सेवकान सभकेँ अबैले सेहो कहि‍ देलखि‍न। महाभारत लड़ाइ जकाँ बेरमाक धरती सन-सन करए गल।
शास्‍त्रार्थक समए ि‍नर्धारि‍त भेल। मेला जकाँ गाम भऽ गेल। परोपट्टाक आँखि‍ बेरमा दि‍स टकटकी लगौने, मुदा उचि‍त भेल, सही भेल ननौरबला वुद्दी दास कनी पाछू हटि‍ मारि‍-दंगासँ गामकेँ बचा लेलन्‍हि‍।
जगदीश प्रसाद मण्डल जीक परि‍वार आरो सतरंगी। एक दि‍स समाजक सभ पावनि‍, देवस्‍थानसँ जुड़ल तँ पि‍ताजी सुबे दासक पि‍ताक सेवक (कबीर पंथमे जेकरा सेवक कहल जा छै ओकरे दोसर ठाम चेलाे कहल जाइ छै।) जगदीश प्रसाद मण्डल जीक पि‍ताजीपर कबीर पंथी वि‍चारधाराक प्रभाव। मास-मास दि‍न दरबज्‍जापर सतसंग-भजन चलि‍ते रहै छेलन्हि। तेसर दि‍स जगदीश प्रसाद मण्डल जीक माए, समस्‍तीपुर जि‍लाक साहो-पटनि‍या बलाक सेवक। नहि‍रेसँ सीख भऽ आएल रहथि‍, हुनकर तेसरे सम्‍प्रदाय, गुरु वैष्‍णवो बनबैत आ साकठो चेला मंत्र दऽ बनबैत, सालमे एकबेर घुमैत-घामैत ओहो आबि कऽ पान-सात दि‍न रहै छला। ब्राह्मण छला, अपने हाथे भोजन रन्‍है छला।
बेरमा दुर्गास्‍थानमे बलि‍-प्रदान नै हेबाक यएह कारण छल जे एक स्‍थानक समाज वैष्‍णव सम्‍प्रदायसँ जुड़ल तँ दोसर स्‍थानमे नथुनी सि‍ंहक वर्चस्‍व रहनि‍ तँए से नै भेल।
जहि‍ना चुल्हि‍पर चढ़ल बर्तनमे चाउर-पानि‍ देला पछाति‍ मड़सटको, मड़बझुओ, गुड़-खीरो खि‍चड़ि‍ओ आ सुन्‍दर भात सेहो बनैत अछि‍ तहि‍ना बर्तन देल चाउर-पानि‍ जकाँ बेरमाक दुर्गा-पूजा एक संग केतेको वस्‍तु बनौलक। अखनि धरि‍ इलाकामे दुर्गा-पूजा एक जाति‍क वा महनथानाक पूजा छल, ओइपर चोट पड़ल। संग-संग ईहो चोट पड़ल जे सभ जाति‍क कुमारि‍क पहुँचक संग साँझ सेहो पहुँचाैल (दीप लेसि‍ साँझ देब) गेल। जेकर प्रचार आनो-आन गाममे भेल। दोसर दि‍स बलि‍ प्रदान नै हएब सेहो एकटा रंग पकड़लक। यएह परि‍स्‍थि‍त बेरमा दुर्गापूजाकेँ राजनीति‍क रूप पकड़ौलक।
दुनू स्‍थानक बीच एकटा जबरदस खाधि‍ बनौलक। एक स्‍थान छेहा समाजक बनल रहल तँ दोसर सत्तासँ जुड़ि‍ गेल। सत्तासँ जुड़ैक कारण भेल जे मधेपुर ब्‍लौक प्रमुख बेरमेक छला। अट्ठाइस पंचायतक ब्‍लौक मधेपुर। ओना मि‍ला-जुला कऽ जाति‍क आधार नै राजनीति‍क आधार ठाढ़ भेल। साैंसे मधेपुरमे केते जाति‍क मुखि‍या छल। सिरिफ मुसलमान मुखि‍या हटल रहल। नै तँ सबहक समर्थन रहनि‍। कारणो छल जे जाति‍ कोनो‍ कि‍एक ने हुअए मुदा मुखि‍याक माने काग्रेसी छल। तइसँ आॅफि‍सो एकछाहा छल। दुनू हथि‍यारक प्रयोग ओ सभ केलन्‍हि‍। जेतए जाति‍क गर लहनि‍ तेतए जाति‍क आ जेतए से नै तेतए राजनीति‍क रंग चढ़बथि‍। जइसँ चन्‍दाक रूप रोजगार दि‍स बढ़ल। ब्‍लौक ऑफि‍स उठि‍ कऽ सेहो दुर्गा स्‍थान पहुँचए गल। जइ दि‍न मेला होइ तइ दि‍न या तँ कोनो नव योजनाक आवेदन लि‍अ पहुँच जाइत वा कोनो बँटवारा करए। ओना दुर्गापूजाक पहि‍ल लाभ गौंआँकेँ ई भेल जे कि‍छु गोटे छोड़ि‍ अधि‍कांश परि‍वारमे वृद्धावस्‍था पेंशन भेट‍ गेल। ब्‍लौकक सभसँ छोट पंचायत बेरमा आ सभसँ बेसी गोटेकेँ पहि‍ल बेर वृद्धा पेंशन भेटल।
मुदा भीतरे-भीतर जबरदस प्रति‍क्रि‍या भेल। कि‍छु गोटे बलि‍क प्रसाद दुआरे रूसि‍ रहला तँ कि‍छु गोटे फज्‍झति‍ सुनि‍ गाम-गाम चर्चक मुद्दा बनल। गामक राजनीति‍मे सेहो मोड़ आएल। मोड़ अबैक कारण भेल जे गामक भीतर जे जाति‍क बनाबटि‍ अछि‍ ओहो केते रंगक अछि‍। ओना दुर्गापूजामे बाह्मण बँटा गेल रहथि‍। दुनू स्‍थानमे हुनकर समर्थन रहनि‍। एक दि‍स पंडि‍त व्‍याकरणाचार्य उदि‍त नारायण झा पंडि‍त भेला तँ दोसर दि‍स वैदि‍क व्‍याकरणाचार्य पंडि‍त कामेश्वर झा भेला। १९६२ इस्‍वीक मुखि‍या (पंचायत मुखि‍या) चुनावमे ब्राह्मणे मुखि‍या हारबो केला आ जीतबो केला। बचनू मि‍श्र, जि‍नका अक्षरक बोध नै रहनि‍ मुदा इमानदारीसँ काज करैक चलैत गामे नै अंचलक नेताक श्रेणीमे छला। अपने तँ मुखि‍या नै बनला मुदा अपन समर्थक मुखि‍या रहनि‍। हारला उत्तर राजनीति‍मे पछार खेलन्‍हि‍। सरसठि‍क चुनावमे काँग्रेसकेँ जबरदस धक्का लगल रहए। मधेपुर ब्‍लौकक नेता जानकी बाबू (श्री जानकीनन्‍दन सि‍ंह) छला, जे वि‍धायक रहि‍ प्रति‍नि‍धि‍त्‍व कऽ चुकल छला। ओ टूटि‍ कऽ महामाया बाबूक संग जनक्रान्‍ति‍ दलमे आबि‍ चुकल छला। जे लाभ सोशलि‍स्ट पार्टीकेँ भेटल आ वासुदेव बाबू (श्री वासुदेव प्रसाद महतो) एम.एल.ए. भेला।
जाि‍तक बनाबटि‍- बेरमाक ब्राह्मण पाँच खण्‍डमे वि‍भाजि‍त अछि। ओना चुनावक नाओंपर एक रहै छल मुदा सामाजि‍क बेवहारमे दूरी बनल छेलन्‍हि‍ कम्‍युनिस्ट पार्टी जे १९६२ ई.मे पहि‍ने बनल छल ओइमे ब्राह्मण सभ टूटि‍ कम्‍युनि‍स्ट पार्टी बनेने रहथि‍। पाँचो खण्‍डक अलग-अलग सामाजि‍कता छेलन्‍हि‍ कथो-कुटुमैती आ खानो-पीनमे दूरी छेलन्‍हि‍ बरइ, कोइर, कि‍योटमे एकरूपता छल। एकरूपता ई जे खेनाइ-पीनाइ, पावनि‍-ति‍हार एकरंगाह छेलन्‍हि‍ धानुक दू खण्‍डमे वि‍भाजि‍त छल, अखनो अछि‍। दुनूक बीचक दूरी अधि‍क अछि‍। तेकर कारण अछि‍ जे बहुत पहि‍नेसँ धानुक खबासीओ करैत आएल अछि‍ आ कि‍सानीओ जि‍नगी बना जीबैत आएल अछि‍। तहि‍ना मल्लाहो वि‍भाजि‍त अछि‍। मुसहर परि‍वार जेरगर अछि‍ मुदा ओकरामे सेहो फुटफाट होइते रहै छै। तेकर कारण होइ छै जे कोनो भोज-काजमे सभकेँ सभ नै खुआ पबैत अछि‍ जइसँ अपनामे वि‍भाजि‍त रहैए।
मधेपुर ब्‍लौकसँ लऽ कऽ गाम धरि‍क चोटसँ बचनू मि‍श्र चोटा गेला। पुरना संगी सभ जे रहनि‍ ओ सभ सन्‍यास लऽ लेलन्‍हि‍। सि‍द्धान्‍तक नाओंपर अपन वोट अर्पित केने रहला। बचनू मि‍श्रक ब्रेन प्रभावि‍त भऽ गेलन्‍हि‍। जइसँ यत्र-कुत्र बाजए लगला। नतीजा भेलन्‍हि‍ जे पोखरि‍मे डुबा-डुबा एते मुकि‍औलकनि‍ जे पीठीमे जबरदस घा भऽ गेलन्‍हि‍। दरभंगामे ऑपरेशन भेलन्‍हि‍ तखनि घा ठीक भेलन्हि।
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बेरमामे दुर्गास्‍थान बनैसँ पूर्व...


 


दुर्गास्‍थान बनैसँ पूर्व छोट-पैघ अनेको स्‍थान छल, कोनो-ने-कोनो रूपमे अखनो अछि‍। बलदेव बाबू (सरि‍सब पाही) बेटाक उपलेखनामे एकटा शि‍वालय बड़की पोखरि‍क उत्तरवरि‍या महारपर बनौलन्‍हि‍। अखुनका हि‍साबसँ मंदि‍र छोटे मुदा जइ दि‍न बनौल गेल, बहुत सुन्‍दर मंदि‍र रहए। ओना अठासीक भुमकममे खसि‍ पड़ल मुदा स्‍थान आरो चमकि‍ गेल। ओही मैदानमे दुर्गोपूजा होइए आ मुसलमानक दाहाक मेला सेहो लगैए। मेलामे अकसरहाँ वेपारीओ आ देखि‍नि‍हारो हि‍न्‍दुएक परि‍वार रहैत अछि‍। दोसर स्‍थान राधा-कृष्‍ण, राम-जानकी, हनुमान-महादेव सबहक सम्‍मि‍लि‍त स्‍थान अछि‍। एके स्‍थानपर रामो-जानकी आ राधो-कृष्‍ण छथि‍। स्‍थान बहुत पुरान अछि‍। बौधू दास स्‍थान बनौलन्‍हि‍। शुद्ध वैरागी छला। परि‍वार नै छेलन्‍हि‍, मुदा स्‍थानकेँ स्‍थान बनौने रहथि‍। कम-सँ-कम एकबेर अपनो सौंसे गाम घुमै छला आ सभसँ हब-गब करै छला। लोको उपकड़ि‍-उपकड़ि‍ कहै छेलन्हि जे बाबा औझुका सि‍दहा हमरे दि‍ससँ रहतै। असगरे घुमै छला। ओना ओ ठकुरवाड़ी बनौने छला, मुदा बि‍नु मुर्तिएेक। लोकक दुख-दर्दकेँ हृदैसँ पकड़ै छला। भखरौली (सुखेत) नील कोठीक सेहबाक (अंग्रेज वेपारी) अन्‍याय नै बरदास कऽ सौंसे बेरमा लोककेँ कहलखि‍न जे एकरा भगबैक अछि‍। तेपटा जमीन लऽ लऽ सभटा खेत मारने जाइए। डेढ़-हत्‍थी लऽ कऽ अपनो घुमै छला आ वएह नेने आगू भेला। भेबे नै केला, कऽ कऽ देखा देलखि‍न। ओही स्‍थानपर महावीर दास भेला। गरीब परि‍वारक महावीर दास कबीर पंथक सीख, स्‍थानपर आबि‍ गेला। बौधूओ दासक उमेर नि‍च्‍चाँ मुहेँ भेलन्‍हि‍‍। महावीर दासकेँ रखि‍ लेलन्‍हि‍। वैष्‍णव रहबे करथि‍। मुदा बौधू दासक प्रभाव रहबे करनि‍, जइसँ बहुत उमेर पछाति‍ बि‍आह केलन्‍हि‍। साधारण परिवारसँ आएल महावीर दासक वि‍चार बहुत उदार छेलन्‍हि‍ भूमि‍हार रहि‍तो सबहक परि‍वारमे कबीर पंथी परि‍वार बूझि‍ भात-रोटी सभ खाइ छला। वैदागि‍रीक ज्ञान भेलन्‍हि‍‍। वैदागि‍री खूब बढ़लन्‍हि‍। वएह आमदनी देखि‍ बि‍आहो करौल गेलन्‍हि‍ आ केबो केलन्‍हि‍। ताधरि‍ स्‍थानमे बीघा पाँचेक, समाजक दान कएल, जमीनो भऽ गेल छेलन्‍हि‍ हफीम खाइ छला। मुदा स्‍वाभवसँ बहुत उदार छला। परोपट्टामे नाम कमेने छला। भगवानक दरवार (ठकुरवारी) मे पैघ-सँ-पैघ आ छोट-सँ-छोट जे कि‍यो संगीतज्ञ औता जहाँ धरि‍ बनि‍ पड़त खुशीसँ वि‍दा करबनि‍। से भेबो कएल। परोपट्टाक दरवारी दास होथि‍ आकि‍ छठू दास, हि‍ताइ दास होथि‍ आकि‍ लखन दास, जि‍नके ढोलकि‍या बम्‍बइमे नामी छथि‍, तहि‍ना नाटक-नौटंकी इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍। अपन स्‍वभाव वएह रहनि‍ जे जखनि हफीमक नि‍शा सि‍रचढ़ रहनि‍ तखनि वि‍दा करथि‍। तेसर स्‍थान छी बरहम स्‍थान। अखनो बीघासँ ऊपर जमीन स्थानमे अछि। पक्का माकन। आँगनवाड़ी केन्‍द्र, धर्मराज स्‍थान सभ सटले-सटल। जाधरि‍ पंडि‍त उपेन्‍द्र मि‍श्र, जे वेद, व्‍याकरण, साहि‍त्‍य आ ज्‍योति‍षक आचार्य छला, साले-साल काति‍क मासमे पनरह दि‍न भागवत करै छला। ओना ओ तेते गंभीर आ संयमी छला जे एक शब्‍द फाजि‍ल ने बजै छला जइसँ बनौआ पंडि‍तक बीच उपहासक पात्र बनल छला जे हुनका थोि‍थए ने छन्‍हि‍। अपन स्‍थान बूझि‍ गामेपर सँ चौकी नेने अबै छला आ आसनक जे प्रक्रि‍या छै से करैत बैस‍ जाइ छला। पहि‍ने दू-तीन दि‍न प्रचारे होइमे लागि‍ जाइ छल मुदा जेना-जेना प्रचार होइत जाइत छेलै तेना-तेना सुननि‍हारोक आ भागवतकेँ आगू बढ़बैक ओरि‍यानो करैत जाइ छला।
एकटा महावीर जी स्‍थान, पोखरि‍क माहरपर अधसुखू कटहरक गाछ लग धूजा गाड़ि‍ स्‍थान स्‍थापि‍त भेल। पूजा शुरू भेल। एकटा अद्भुत भेल। अद्भुत ई भेल जे अधसुखू कटहरक गाछ पानि‍ पीब जोर केलक। गाछ लहलहा उठल। मझोलके गाछ, जेना डारि‍-पात सभमे फड़ैक शक्‍ति‍ आबि‍ गेलै। डेढ़ सएसँ अढ़ाइ सए तक फड़ हुअ लगलै। भलहिं तीन-चौथाइमे कोह नहि‍येँ होइ, कमरीए टा होइ। वएह कटहरक गाछ स्‍थानक प्रभावकेँ तेज केलक। इलाकामे समाचार पसरि‍ गेल। अष्‍टयाम कीर्तन (रामनवमी, चैत) शुरू भेल जइमे तीन मनसँ पाँच मनक बीच गहुम-चाउरक प्रसाद बनैत आ खर्च होइ छल। जे एक-एक मुट्ठी कऽ बाँटल जाइ छल। लकड़ीक मंडप बनल रहै छल जत्तऽ वि‍सर्जन पछाति‍ नगर कीर्तन होइ छल। नगर कीर्तनक अर्थ भेल चारि‍ गोटे मंडपकेँ उठा आगू-आगू सौंसे गाम घुमै छला आ पाछू-पाछू कीर्तन-भजन होइत समाजो घुमै छला। जि‍नका जे जुड़ैत छेलन्हि‍ से चढ़ेबा चढ़बै छला। जइसँ साज-बाज कीनल जाइ छल। तहि‍ना मुसहर सभ सेहो आसीन मासमे पूजा करै छला आ अखनो करै छथि, मिरदंग-झालि‍ लऽ दस गोटे सौंसे गाम घूमि‍ चंदा करै छेलथि/ छथि‍ जइसँ पूजाक खर्च चलै/ चलैए। तहि‍ना मुसलमानो सभ दाहा बनबै छथि‍ आ सौंसे गाम घुमै छथि‍। एहेन भायचारा चलि‍ आबि‍ रहल अछि‍। तहि‍ना सालमे दू स्‍थानपर दुर्गा पूजा, महावीर जी स्‍थानमे दर्जनो अष्‍टयाम, नवाह, तीन दि‍नक कबीर पंथक संत सम्‍मेलन दर्जनो साहि‍त्‍यि‍क गोष्‍ठी, दुआर-दरबज्‍जापर कीर्तन-भजन इत्‍यादि‍-इत्‍यादि‍ चलि‍ते रहैए। ततबे नै तीन-तीनटा महंथो, तीन सम्‍प्रदायक, अदहा दर्जन कीर्तनो मंडली, जे रोजगार बनौने छथि‍, सभ चलि‍ रहल अछि‍। आखि‍र मि‍थि‍लाक समाज छि‍ऐ कि‍ने।
एक तँ ओहि‍ना सरसठि‍क चुनाव हवा बहौलक, तैपर बेरमाक भगवती (१९६९ स्‍थापि‍त) सेहो अपन दुआरि‍ खोलि‍ देलन्‍हि‍। गामक आयात ि‍नर्यात आन-आन समाजसँ बढ़ल। दुनू हवा चलल, एक दि‍स सभ जाति‍क बीच दुर्गापूजा एली तँ दोसर-दि‍स नव जवानक हृदैमे कि‍छु करैक उत्‍साह सेहो भरल। ओना समाज समुद्रोसँ नमहर अछि‍। तँए समाजक भीतर की सभ होइ छै, कहब कठि‍न अछि‍। मुदा कि‍छु जे देखबामे अबैए ओ छी स्‍त्रीगणक माध्‍यमसँ नैहर-सासुरक बीच पाइ-कौड़ी, गहना-जेबरक बन्‍हकी-छनकी। कोन गामक गहना कोन गाम गेल कहब कठि‍न। दोसर गामोक बीच महाजनी आ आनो-आनो गामक बीच। जमीन्‍दारीक रूआब तँ खनदानी रूआब बनैए, जौं से नै बनैए तँ अंग्रेज सेहबा चलि‍ गेल आ साहैबक बीआ‍ छि‍टा गेल। मैनजन, महाजन, जमीन्‍दारक संग जाति‍ साम्‍प्रदायि‍क केते सूत्र लागि‍ गेल अछि, बेरमावासीकेँ ऋृण दइमे अगुआएल जाति‍क। खाली एकटा पछुआएल दाता, मुदा कारोबार छोट। वेपारीक शासनो जमीन्‍दारसँ भि‍न्न होइत। खैर जे होउ? श्राद्ध-कर्म आ बि‍आह-कर्म रोकब पुरोहि‍त सभ घोषणा कऽ देलन्‍हि‍। गामक लोकक बीच समस्‍या ठाढ़ भेल जे आब की हएत? कबीर पंथी महात्‍मा सभकेँ रास्‍ता भेटलन्‍हि‍, घोड़-दौड़ शुरू केलन्‍हि‍। समाजमे उठैत आगि‍ ठमकल रहल। कबीर पंथी सभ तेहेन जे जएह घर बसबए चाहै छथि‍ तहीमे आगि‍ लगबै छथि‍। गति‍-मुक्‍ति‍क वि‍चार तँ समाजमे दइ छथि‍न मुदा औझुका बात कहबे ने करै छथि‍न। आइ हम की छी, सबहक प्रश्न छी। कबीरक पाँति‍ छन्‍हि-
साइ इतना दीजि‍ए...
मुदा के केतए सँ दैथि‍ तैठाम कनी झल भऽ जाइ छै। तहि‍ना मायाक बुनि‍यादसँ ऊपर उठि‍ वि‍चार रखै छथि‍ जइसँ झल अन्‍हार भऽ जाइ छै। अध्‍यात्‍म ओहेन पद्धति‍ छि‍ऐ जे मनुखकेँ मनुख बनैक लूरि दइ छै। खाली लूरि‍‍ए नै ओहेन बुधि‍ओ दइ छै जेकरा सुपर मैन कहै छि‍ऐ। कि‍नका ई अभि‍लाषा नै छन्‍हि‍ जे सुपरमैन बनी। मुदा, से किए ने भऽ पबैए। जंगलमे लाखो गाछ एक संग जीवन-यापन करैत हवो-वि‍हाड़ि‍क झोंक सहैए। एकैसम शताब्‍दीक मांग अछि‍ जे स्‍वतंत्र मनुख बनि‍ स्‍वतंत्र वि‍चरण कऽ सकी। जैठाम बाट-घाट सभ असुरक्षि‍त अछि‍ तैठाम दि‍ल्‍ली दूर नै तँ लग अछि‍। तखनि जाए दियौ जेहो खेलक सेहो पचताएल जे नै खेलक सेहो पचताइए।
ओना १९६० ई.सँ जगदीश प्रसाद मण्डल खेतीसँ थोड़-बहुत जुड़ि‍ गेल रहथि। मि‍रचाइ, भट्टा, कोबी, अल्‍लू इत्‍यादि‍ लगसँ खेती शुरू केलन्‍हि। धान, मरूआ, रब्‍बी-राइक खेती जने हाथे हुअ लगलन्हि। भायकेँ खेतीसँ कम सरोकार। तहूमे अमानत पढ़ि‍ लेने रहथिन्ह‍। जमीनक खि‍स्‍सा-पि‍हानी ओहेन जे महि‍नो भरि‍मे अन्‍त नै लैत रहए। मुदा अपनो जि‍नगी लेल तँ लोक कि‍छु सोचि‍ते अछि‍। नाच दि‍स झूकि गेला। मुदा गरीबक कलाकेँ उभाड़ब धीया-पुताक‍ खेल नै। खैर जे होउ।
भोगेन्‍द्र जी सम्‍पर्कमे एला पछाति‍ खेतीक प्रति‍ आरो जि‍ज्ञासा तेज भेलन्‍हि‍। तेज ऐ दुआरे भेलन्‍हि‍ जे जर्मनी, जापानक खेतीक बात ओ मनमे बैसा देलखिन्ह‍। हि‍साब जोड़थि तँ दस कट्ठा खेत एक परि‍वारक (पाँच गोटे) लेल बेसीए‍ बूझि पड़नि। तहूमे साइबेरि‍याक ओहेन कि‍सान अछि‍ जे सालक छह मास, आठ मास ढकल बर्फ हटि‍ते औगताएलमे तेना कऽ खेती कऽ लइए जे बढ़ि‍याँ उपजा उपजा लइए। आइ भलहि‍ं मि‍थि‍लांचलक अदहासँ बेसी भाग बलुआ गेल अछि‍, माटि‍ ऊपर बालु भरि‍ गेल अछि‍। समस्‍या ओते भारी अछि‍ जे जहि‍ना बालु तरसँ ऊपर आबि‍ भूमि‍केँ मारि‍ देलक तहि‍ना ओकरो अटावेश करैत कि‍सानक हाथमे खेत आबए। बि‍हारक मूल पूजी‍ खेत छी, जेते खेती समृद्ध हएत तेते राज्‍यो समृद्ध हएत।
एक तँ अपन हाथक पूजी खेत, दोसर जखनि राजनीति‍सँ जुड़ि‍ गेलथि तखनि तँ काजो बढ़ि‍ गेलन्‍हि। खेती ि‍दस ढंगसँ बढ़ैक कोशि‍श केलन्‍हि। पूसा मेलासँ खेतीक कि‍ताब कीनि‍-कीनि‍ आनए लगला। कि‍सानक जे कार्यक्रम होइ तइमे जाए लगला। राजनीति‍सँ जुड़ने कोट-कचहरी सेहो घुमए लगला। मधेपुर ब्‍लौकमे जुबेर साहैब पी.ओ. रहथिन्ह‍। बहुत शरीफ लोक‍। अपनापन बहुत अधि‍क रहनि‍। हुनकासँ सम्‍पर्क भेलन्‍हि‍। ओ एग्रीकल्‍चर ग्रेजुएट। स्‍कूल-कौलेज जकाँ घंटो-घंटो खेतीक बात लोककेँ बुझबैत रहथि‍न। हुनका सम्‍पर्कसँ ई भेलन्‍हि‍ जे जेतए हुनकर कार्यक्रम होन्‍हि‍ जानकारी देथिन‍। एग्रीकल्‍चर महावि‍द्यालय- पूसो-ढोलीमे सालमे एकबेर नमहर आ छोट-मोट कार्यक्रम चलि‍ते रहै छल।
१९६० ई.सँ पूर्व बेरमा गाममे ने एकोटा बोरिंग रहए आ ने दमकल। सभसँ पहि‍ने (१९७१-७२) स्‍व. सत्‍य देव झा, जे पढ़ल-लि‍खल तँ नहि‍येँ छला मुदा एवरेडी बैट्रीक कम्‍पनी कलकत्तामे नोकरी भऽ गेल रहनि‍, सेवा ि‍नवृत्त‍ भेल रहथि‍। बंगालक खेतीक जानकारी भइए गेल रहनि‍। सोचलन्‍हि‍ जे पाँच बीघा खेत कीनि‍ जौं बोरिंग करा लेब तँ परबरि‍स भऽ जाएत। से करबो केलन्‍हि‍। वएह बोरिंग पहि‍ल छी। खेतीक जानकारी भेने पानि‍क महत लोक बुझए लगै छै। राजनीति‍क पार्टी बनि‍येँ गेल रहए। सरसठि‍क रौदी पछाति‍ बोरिंग-दमकलक योजना सेहो जनमल, मुदा सतमसुआ। बेरमा गाममे बी.डी.सी.क बैसार भेल। डी.एम. सेहो आएल रहथि‍। ब्‍लौकक सभ रहबे करथि‍। तोहफाक रूपमे डी.एम. साहैब, ति‍हाइ सवसि‍डीक रूपमे बोरिंग-दमकलक चर्चक संग कि‍सानक दशा-दि‍शाक चर्च सेहो केलन्‍हि‍। चारि‍ श्रेणीमे कि‍सानक बँटबाराक चर्च करैत सबहक लाभक चर्च केलन्‍हि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल आ चारि गोटे माने पाँचटा कि‍सान वि‍चार केलन्‍हि जे अवसरक उपयोग करता। पूसा-ढोलीसँ लऽ कऽ जि‍ला-ब्‍लौकक बीच जे कि‍सान मेला वा गोष्‍ठी होइ तइ सभमे जाइत-अबैत रहथि, ओना पाँचो गोटे बोरिंग गड़बैक वि‍चार केलन्‍हि मुदा दू गोटे नै गड़ौलन्‍हि‍। बोरिंग गरौला पछाति‍ नव-नव धान, गहुम इत्‍यादि‍क बीआ सेहो आनए लगला। अखनि (२०१२ ई.मे) जेते धानक उपज नै भऽ रहल अछि‍ तइसँ बेसी आठम दशकमे हुअ लगल छल। सीता धान, जे मेही सेहो होइत अछि‍ आ खाइओमे नीक होइत अछि, सवा क्‍वीन्‍टल कट्ठा उपजए लगल। सिरिफ धाने गहुम नै, अल्‍लू-कोबी, टमाटर इत्‍यादि‍क खेती सेहो जोड़ पकड़लक। जे गाम कर्जक तरमे दबल छल ओ अपना पएरपर ठाढ़ हुअ लगल। गामसँ जमीन्‍दारो सभ चलि‍ गेल रहथि‍। एक गोटे मात्र बँचल रहला, जि‍नका भाँजमे एक सय दस बीघा जमीन। जैपर पछाति‍ जबरदस लड़ाइ भेल। बी.डी.सी.क बैसारमे डी.एम. साहैब सूदखोर महाजनक चर्च वि‍स्‍तारसँ केने रहथि‍। संग-संग ईहो कहि‍ देलखि‍न जे दोबरसँ फाजि‍ल जे महाजन लेता हुनकापर कानूनी कारवाइ हेतनि‍। कर्जदार सभ नि‍चेन भऽ गेला जे जहि‍या हएत‍ तहि‍या ने देबै। नै रहने केतए सँ देबै। मुदा महाजनक आक्रमण भेल। पकड़ा-पकड़ी शुरू भेल।
खेतीक संग-संग गाममे आरो-आरो काज सभ हुअ लगल। गामक जेते बान्‍ह-सड़क अछि‍ ओकरा नक्‍शाक अनुकूल बनौल गेल। जइसँ गामक रूपे-रेखा बदलि‍ गेल। ई भेल जन-सहयोगसँ। पछाति‍ सरकारीओ योजना सभसँ माटि‍क काज, खरंजा इत्‍यादि‍ होइत रहल। अखनि तँ सहजहि‍ गामक ओहेन रूप बनि‍ गेल अछि‍ जे एकोटा परि‍वार नै अछि‍, जेकरा घरक आगू चरि‍पहि‍या सवारी नै जा सकैए। तहि‍ना प्रति‍ दू परि‍वारपर पानि‍ पिबैक साधन बनि‍ गेल अछि‍। तहि‍ना प्रति‍ आठ बीघापर बोरिंग (प्राइवेट) अछि‍। ओना पच्‍छि‍मी कोसीक नहरि‍क दूटा शाखा सेहो उत्तरे-दछि‍ने, पूबो आ पछि‍मो बनि‍ रहल अछि‍। तैसंग स्‍टेट बोरिंग सेहो गड़ाएल अछि‍। मुदा चालू नै भेल अछि‍। तहि‍ना आबागमनक सुवि‍धा सेहो अछि‍ए। एक दि‍स रेलबे स्‍टेशन तीन कि‍लोमीटरपर अछि‍ तँ दाेसर दि‍स एन.एच. दू कि‍लोमीटरपर अछि‍। जहि‍ना वसंत ऋृतु अबि‍ते मेघमे ठेकल गाछसँ लऽ कऽ माटि‍मे ओंघराएल ध‍रतीमे नव पात, नव कलश, नव कोढ़ीक संग नव फूल दैत तहि‍ना समाजक फुलवाड़ीमे फूलक अंकुर दि‍अ लागल। रंग-बि‍रंगक समस्‍या (पोजीटि‍व-नि‍गेटि‍व दुनू) उठि‍-उठि‍ ठाढ़ हुअ लगल। जगदीश प्रसाद मण्डल सभ सेहो वि‍चार केलन्‍हि जे समाजक उत्‍थानमे जाति‍क कट्टरपन बाधा छी। ओना जौं जाति‍क बीच कथा-कुटुमैती होइत अछि‍ तँ ओ दू समाजक बीचक प्रश्न बनि‍ जाइत अछि‍। मुदा समाजक बीच जाति‍क छुआ-छुत बहुत नमहर खाधि‍ बनबैए। तँए महि‍नामे एकबेर बैसार करब आ ओ करब टोले-टोल घूमि‍-घूमि‍, ई सबहक विचार भेलन्‍हि‍। बैसारमे कोनो बेसी जोगाड़क प्रश्न नै, मुदा टोलबैयाक वि‍चारसँ, जौं ओ सभ खाइ-पिबैक बेवस्‍था करथि‍ तँ सेहो बढ़ि‍याँ, सभ खाएब, ई सबहक विचार भेलन्‍हि‍। अखनो धरि‍ खाइते छथि। सभ जाति‍क बरि‍आतीओ आ भोजो-काजमे खाइते छथि। हँ ई बात जरूर अछि‍ जे अखनो ति‍तम्‍हा चलि‍ते रहल अछि‍, मुदा सभ जाति‍क सहयोग रहने कम पड़ि‍ जाइए। ई बहुत नीक कदम भेल। परोपट्टामे जेना पसाही लागि‍ गेल। ओना झंझारपुर ब्‍लौकमे कमलासँ पछि‍म नागेन्‍द्रजी (डाॅ. नागेन्‍द्र कुमार झा डाॅ. धीरेन्‍द्रक माि‍झल भाए), पूब फुलपरास ब्‍लौकमे कामेसर जी (श्री कामेश्वर राम) सेहो क्रान्‍ति‍क सूत्रपात केलन्‍हि‍। जमि‍ कऽ तीनू ब्‍लौकमे पार्टीक प्रभाव बढ़ल। तैबीच नागेन्‍द्रजी पार्टी स्‍कूल चलौलन्‍हि‍। लग रहने तीनू दि‍न जगदीश प्रसाद मण्डल सभ भाग लेलन्‍हि। केन्‍द्रक नेता सबहक संग रहैक मौका भेटलन्‍हि। हुनको सबहक इच्‍छा भेलन्‍हि‍‍ जे बेरमोमे अहि‍ना हुअ। से भेबो कएल।
टोले-टोलक मीटि‍ंगमे टोलक समस्‍या मुख्‍य मुद्दा बनल रहै छल जइसँ गामक अध्‍ययन अधि‍क-सँ-अधि‍क गोटेकेँ हुअ लगलन्‍हि‍। चौक-चौराहापर सि‍नेमा-सर्कशक गप-सप्‍प नै भऽ गामक समस्‍याक गप शुरू भेल। मुदा चालैन जकाँ रोगाएल समाज।
ओना आन गामसँ भि‍न्न बेरमाक बनाबटो अछि‍। तेकर मुख्‍य कारणमे एकटा ईहो कारण अछि‍ जे आइ धरि‍ गमकट्टा (धार)क पल्‍ला नै पड़ल। कहैले बहुत पहि‍नेसँ एकटा सुपैन (प्राचीन नाम सुपर्णा) धार अछि‍ मुदा अजेगर साँप जकाँ ई एकेठाम बैसल रहल। तहूमे तीनि‍येँ मास धार रहैए बाँकी मास मुर्दघट्टीसँ लऽ कऽ चारागाह बनल रहैए। गाममे अधिक बासभूमि रहने ऊँचगर जमीन पर्याप्‍त अछि‍। मझोलका कि‍सान बेसी रहने जमीनक छोट सीमांकन। मुदा पटबैक बेवस्‍था नै रहने वाड़ीओ-झाड़ीमे मड़ुए-गम्‍हरिक खेती होइ छल। तरकारीक खेतीले ऊँचगर जमीन माने चौमास खाली बरसातीए लेल होइए, बाँकी मध्‍यमो जमीन (चौर छोड़ि‍), दू बेर (दू फसल) उपजैत अछि‍। कि‍छु बोरिंग भइए गेल, चापाकल सेहो लोक गड़ौलक। तरकारी खेती जोर पकड़लक। केतेक परि‍वार उठि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेल। महाजनी सेहो बन्न भइए गेल रहए। जइसँ समस्‍या सेहो उठल रहए।
भुमहुर आगि‍ जकाँ गामक राजनीति तरेतर जोड़ पकड़ए गल। भगवती‍ स्‍थान अगुआएल। तैसंग एकटा आरो भेल। आरो ई भेल जे खुदरा-खुदरी सभ कि‍यो सभ-स्‍थान (देव स्‍थान) अबै-जाइ छला मुदा मने-मन बँटाएल छला। खाली डि‍हवारे स्‍थान सार्वजनि‍क बूझल जाइ छल। जेकर स्‍पष्‍ट रूप बि‍‍आह, मूड़न, उपनैन इत्‍यादि‍मे देखल जाइत अछि‍। डि‍हवार स्‍थान एकहरे वंशक स्‍थापि‍त कएल अछि‍। दुर्गापूजा एकहरे दि‍यादकेँ तोड़लक। भेल ई जे एकहरे परि‍वार (दि‍यादी) गामक ब्राह्मणमे सभसँ नमहर दि‍यादी अछि जे दू टोलमे वि‍भाजि‍त छथि‍। उत्तरवारि‍ टोल आ दछि‍नवारि‍ टोल। बड़की पोखरि‍क उत्तरवरि‍ओ आ दछि‍नवरि‍ओ महारपर दुर्गापूजा होइत अछि‍। पोखरि‍ बीचमे सीमा अछि। गामक सीमा (टोल-टोलक) गजपटे रहि‍ गेल। जेना आन-आन गाममे केतौ सड़क सीमा होइ तँ केतौ स्‍कूल, से नै भेल। पानि‍एमे सीमा गड़ा गेल।  
उत्तरवारि‍ दुर्गा-स्‍थानक अगुआइ बेरमा नि‍वासी मधेपुर ब्‍लौकक प्रमुख आ जगदरक नथुनी सि‍ंह केलन्‍हि‍। प्रमुख गामक भगि‍नमान, तँए एकहरे परि‍वारमे गुन-गुनी उठल। मुदा दुनू गोटे माने प्रमुखो आ नथुनीओ सि‍ंह एकहरे परि‍वारसँ दुर्गाक माटि‍ लेलन्‍हि‍। दछि‍नवारि‍ टोलक एकहरे अपन स्‍थान बूझि‍ दस-अना छ-अना हुअ लगला। आबाजाहीमे बढ़ोतरी भेल। भोज-भात सेहो बढ़ल। ओइ समए बचनू मि‍श्र जे राजनीति‍क दृष्‍टि‍सँ माटि‍ धऽ नेने छला। आर्थिक वि‍षमता रहबे करनि‍। ओना चारि‍ भाँइक भैयारी छेलन्‍हि‍ चारू भाँइ गामक सेसर देहबला माने हाड़-काठक। मुदा मोकदमामे ओझरा गेल रहथि‍। दछि‍नवारि‍ टोलक एकहरे परि‍वारमे बचनू मि‍श्रक नीक पठ रहनि‍। ओ दि‍न-राति‍ एकबट्ट कऽ दछि‍नवरि‍या दुर्गाक माटि‍ सेहो एकहरे परि‍वारसँ लि‍औलन्‍हि‍। एकहरे परि‍वार वि‍भाजि‍त भऽ गेल। ब्राह्मण बँटा गेला, जइसँ पूजा-पाठक कोनो अभाव कहि‍यो नै भेल अछि‍। अही बीच कपिलेश्वर राउतक बाबा मरलन्‍हि‍। पुरोहि‍त अपन ललकारा भरलन्‍हि‍। लड़ाइ फँसि‍ गेल। लड़ाइ ई फँसल जे एक दि‍स पुरोहि‍त अपन शक्‍ति‍ देखबए लगला तँ दोसर दि‍स कपि‍लेश्वर राउत अड़ि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलथि‍। मुदा पाँचे-सात दि‍नक बीच (सराध-मृत्‍युक बीच) इलाका गनगना गेल। मृत्‍यु दि‍न वि‍वाद तँ नै उठल मुदा नव चेतना जरूर जागल। नव चेतना ई जे पार्टीक भीतर बन्‍हनक रूपमे जि‍नगीकेँ पकड़लक, मृत्‍युक समाचार सुनि‍ते लोकक ढबाहि‍ लागि‍ गेल, जेना समस्‍ये हरा गेल। कि‍यो कपड़ा कीनए गेल, कि‍यो बाँस काटि‍ चचरी बनबए गल, कि‍यो अछि‍या खुनए गेल। बजरूआ करखाना जकाँ कारोबार चलल। मुदा जहि‍ना एक कम्‍पनीक इंजनक पार्ट दोसर कम्‍पनीक लगौने अनेरो खड़खड़ाइत-झड़झड़ा रहैत अछि‍ तहि‍ना शुरूहेसँ हुअ लगल। चचरी बनबैसँ पहि‍ने बाँस कटैमे रक्का-टोकी शुरू भेल। रक्का-टोकीक मूल कारण भि‍न्न-भि‍न्न जाति‍क भि‍न्न-भि‍न्न वि‍धि‍-वि‍धान। मुदा संयोग तँ एहेन भेल जे सभ टोलक लोक एकठाम पहुँच गेला। जहि‍ना गजेरी धुआँक गंध लगि‍ते प्रेमी दि‍स आँखि‍ उठा-उठा देखए लगै तहि‍ना जइ काजक जे प्रेमी ओ अपन-अपन प्रेमी दि‍स ताकए लगला। मुदा ऐ बातपर सभ सहमत जे जइ जाति‍क काज छी हुनकर महत बेसी होइ। घरबैया (कपि‍लेश्वर तीनू भाँइ) कुबेरक खजाना खोलने। जइ काजमे जे जरूरति‍ होइ, पुछैक कोनो खगता‍ नै। अपन गाछी-कलम अछि‍, बँसबारि‍ अछि‍। तीनटा बाँस चचरी ले कटल। चचरी बनबै काल केहेन बल्‍ला आ फट्ठा होइ, तइले फेर रक्का-टोकी उठल। मुदा पार्टीक भीतर एहेन-एहेन नेता रहथि‍ जे घरहटि‍ओ रहथि‍। तँए हुनके जुति‍सँ चचरी बनल। फेर लकड़ी कटैमे झंझटि उठल। एकटा शीशोक (जइमे शारील नै भेल रहै) सूखल गाछ। जइसँ काज चलि‍ सकै छल। मुदा भेल ई जे बि‍ना बुझने-सुझने अपने फुरने दू गोटे फड़ैबला आमेक गाछ काटि‍ कऽ खसा देलक। मुदा कएले की जा सकैए। सूखल जरनाक सेहो जरूरत अछि‍ए, ओहो शीशो कटाएल। तीन-चारि‍ दि‍न तक डोम लकड़ी उघि‍ते रहि‍ गेला। खैर जे होउ..। मुदा सैकड़ो आदमी एकठाम बैस‍ असमसान देखलक। पसाही जकाँ कोन लुत्ती केम्हर उगि‍ कऽ पकड़ि‍ लैत, तेकर ठेकाने ने रहल। एक गोटे असमसानसँ आएल। आन गाम जाइक रहै, दाढ़ी-केश कटा कऽ चलि‍ गेल। दाढ़ी केश तेसर दि‍न कटाइ छै, तहि‍ना सीमा टपैक बात सेहो उठल। जेना सौंसे गाम रंग-बि‍‍रंगक पसाही लागि‍ गेल। कोनो एक मुहरी गप नै, सभ गरमुड़ाह। केकरो मुँह कि‍म्हरो तँ केकरो नागड़ि‍ कि‍म्हरो। मुदा ललकाराक मैदानमे तँ ललकरे जोर पकड़ै छै। तँए कि‍यो अपना तर्ककेँ वि‍तर्क-कुतर्क मानैले तैयारे नै। मुदा जहि‍ना कलकत्ता सड़कपर गाड़ीपर गाड़ी, लगले रहै छै तहि‍ना तेते समस्‍या (गप-सप्‍पक क्रममे) उठए गल जे गप्‍पे-गपमे ओझरा जाइ छल। कोनो घटनाक गप कोनो घटनामे मि‍लि‍ जाए। जहि‍ना दू देशक बीच लड़ाइमे सीमा कातक लोककेँ नीन हराम भऽ जाइ छै तहि‍ना गामक लोकक बीच भऽ गेल। पहि‍ल दि‍न बहुतो गोटे नै बूझि‍ पेला, दोसर दि‍न पता चललन्‍हि जे कि‍छु गोटे जहि‍ना अपन कुरहड़ि‍‍-टेंगारी लऽ कऽ गेल रहथि‍ ओ संगे नेने चलि‍ओ एला, चलनि‍ अछि‍ जे तेराइत तक सभकेँ छुतका लागि‍ जाइ छै, तँए तीन दि‍न ओहो सभ कि‍छु ने करत। जे सभ कुरहड़ि‍‍-टेंगारी लऽ कऽ आएल रहथि‍ हुनका जगदीश प्रसाद मण्डल पुछलखिन‍ जे किए अनलि‍ऐ? ओ सभ जवाब देलखिन‍ जे झंझारपुरबला पार्टीक (लकड़ी कारोबार केनि‍हार) कुरहड़ि‍‍ छि‍ऐ, आइ समाज दुआरे काज कामै केलौं, जौं कुरहड़ि‍ बरदा जाइत तखनि तँ काजे बन्न भऽ जइतै। तही बीच एक गोटा बाजि‍ उठला जे आन गामक कुरहड़ि‍ भेल कि‍ने, गामक कुरहड़ि‍केँ ने छुतका लगतै आकि‍ आनो गामक ओजारकेँ छुतका लागत। मुदा कुरहड़ि‍बला गप ओते नै पकड़लक जेते केशबला पकड़लक। रंग-रंगक गप चलए गल। तेरहा सराध होइत तँ दि‍याद-वाद सहि‍त नह-केश दि‍न केश कटौता, तँए घरवारीकेँ कोनो मतलबे नै। समाजमे एक जाति‍क संग नो जाति‍ आ एक टोलक संग आनो टोलक लोक रहथि‍ मुदा वैचारि‍क टकराव टोले-टोल, घरे-घर हुअ लगल। वि‍चि‍त्र स्‍थि‍ति‍ बनि‍ गेल। जहि‍ना गाममे झंझटि बढ़ल तहि‍ना पंचैतीओ बढ़ल। अधि‍क पंचैतीओ बढ़ने झंझटि कमबो कएल आ बढ़बो कएल। कि‍यो बजै छल जे जखनि मुरदा जरौला पछाति‍ पोखरि‍मे नहेलौं, आँगन आबि‍ लोह-पाथर छुलौं, अपना ऐठाम आबि‍ सोहराइ वा मि‍रचाइ खा नहा कऽ कपड़ा बदलि‍ लेलौं तखनि छुतका केतेटा अछि‍ जे तैयो लगले रहि‍ गेल। तँ कि‍यो बजै छल जे केश-कट्टा दि‍याद होइ छै आकि‍ आनो हेतै। तँ कि‍यो बजै छल जे काल्हि‍ए दस रूपैआ दऽ कऽ केश बनौने छेलौं, केना कटा लेब। गाममे गपो चलैत आ पराते भने कि‍छु गोटे केश कटा लेलन्‍हि‍। बि‍ना पनचैतीएक पनचैती भऽ गेल जे केशमे कि‍छु लागल रहै छै जि‍नकर मन मानए कटाबए, नै मन मानए नै कटाब। दू दि‍न अहि‍ना चलल। तेसर दि‍न ौर-झप्‍पी हएत। अखनि धरि‍ सभ (समाज) कोनो ि‍नर्णए नै केने छल जे की कएल जाए, मुदा परि‍स्‍थि‍ति‍क सामना जरूर कएल जाएत से तँइ छल, ई सबहक मनमे रहबे करनि‍। जखनि जे समस्‍या उठत तेकर समाधान तखने करब। जइ दि‍न छाैर-झप्‍पी छल ओइ दि‍न घरवारी (कपि‍लेश्वर राउत) एकटा समांगकेँ महापात्र ऐठाम पठौलन्‍हि। बेरमामे महापात्र नै अछि, कछुबीक पुजबै छथि‍। जेहो सभ नै बाजक चाही सेहो सभ महापात्र कहि‍ ि‍नर्णए सुना देलखि‍न जे नै जाएब, कछुबीसँ आबि‍ ओ समांग बाजल। छाैर-झप्‍पीक समए भेल जाइत रहए। की कएल जाए? बि‍देश्वर ठाकुर (नौआ) बाजल जे छाउर-झप्‍पीक सभ लूरि‍‍ हमरा अछि‍। हम झँपबा देबै। सएह भेल। राति‍मे सराध कर्ममे पुरोहि‍तक (ब्राह्मण) ओते महत नै होइत अछि जेते महापात्रक। ि‍नर्णए कि‍छु नै भेल, भेल एतबे जे जहि‍ना महापात्रकेँ कहलि‍यनि‍ तहि‍ना पुरोहि‍तोकेँ पुछि‍ लि‍अनु। सएह भेल। दोसर दि‍न जखनि पुरोहि‍तकेँ पुछल गेलन्‍हि‍ तखनि ओहो ओहने जवाब देलखि‍न जे नै जाएब। सभ वि‍चारि‍ए नेने रहथि‍। दि‍नेमे बेरूपहर अपनामे बैसार भेल। सर्वसम्‍मति‍ ि‍नर्णए भेल जे पुरोहि‍त-पात्र छोड़ि‍ देल जाए। सराधमे दू काज होइ छै। क्रि‍या-कर्म आ भोज। जे खर्च क्रि‍या-कर्ममे हएत ओ भोजेमे लगा दियौ। ओना बरइ सभ गाममे नै छथि‍, कि‍छु गनल-गूथल गाममे छथि, जइसँ सभ कुटुमैतीमे सघन गूथल छथि‍। जहि‍ना शंख फूकि‍ महाभारत शुरू भेल तहि‍ना शंख फुका गेल। चौबगली गाममे समाचार पसरि गेल। आन-आन गाममे सेहो रंग-बि‍रंगक सवाल उठए गल। केतौ उठल जे जौं क्रि‍या-कर्म नै हएत, तँ भोज नै खाएब। केतौ उठल जे कि‍यो अपन बाप-दादाक करैए तइसँ की पंचक (भोज खेनि‍हारक) मुँह छुबा जाएत। कुटुम सभ जि‍ज्ञासा करए अाबए लगलन्‍हि‍। जे आबथि‍ हुनकर जवाब होन्‍हि‍ जे सामाजि‍कता टुटने कुटुमैती थोड़े टूटि‍ जाएत। समाज बनि‍ कऽ नै कुटुम बनि‍ कऽ तँ खेबे करब। गामोमे जाति‍क बीच वि‍वाद उठल। मृत्‍युक दसम दि‍न, जइ दि‍न नह-केश कट्टी हएत। भि‍नसुरके पहर करीब आठ बजे बैसार भेल। बैसार अइले भेल जे अखनि धरि‍क भोज-भात खाजा-मूंगबापर अँटकल छल। लोकक जीवन स्‍तर एते नि‍च्चाँ छल। जे खाजा-मूंगबा वा लड्डू धरि‍ मात्र पहुँचल छल तँए खान-पानमे धक्का मारल जाए। तँए रसगुल्‍ला-लालमोहनक संग पर्याप्‍त दहीक बेवस्‍था हुअए। भोज-भातक ई स्‍थि‍ति‍ अखनो थोड़-थाड़ अछि‍ए मुदा पहि‍ने कि‍छु जाति‍ भोजक मामलामे बदनाम छल। एक बर्तन चाह बनल, जि‍नका जेते मन फुरलन्‍हि‍ से तेते पिलन्‍हि‍। पान चलल, ओना पान बर्जित अछि तैयो‍। अखनि धरि‍ जाति‍क ओझरी छुटि‍ चुकल छल। एगारहो गामक जाति‍ सहमत भऽ गेला जे भोज खाएब। वातावरणमे उठल जे कि‍यो अपन माए-बापक कि‍रि‍या-कर्म करत आकि‍ अनकर। तइसँ अनका की जे अनेरे कुटुम-परि‍वारसँ मुँह फूल्‍ली कऽ लेब। अखनि धरि‍क सोझराएल काज देखि‍ सबहक मन हरि‍अर। तैपर चाहक झोंक सेहो रहए। तइमे रसगुल्‍ला-लालमोहन आगूएमे अछि‍, सभकेँ बुझले जे गौआँसँ अनगौआँ धरि‍क हि‍स्‍सा बरबैरे अछि‍।प शुरू होइते तीनू बहि‍न (बेटी) आबि‍ प्रश्न ठाढ़ केलक जे नह-केशक भोज हम करब, प्रश्न जटि‍ल भऽ गेल, तीनू कहै छै हम करब। अच्‍छा कहि‍ तीनू बहि‍नकेँ वि‍दा कएल गेल। मुदा ओझरी लगि‍ते गेल। जखनि नमहर भोजक योजना बनि‍ गेल तखनि छोटकाकेँ तँ रोकए पड़त। कुबेरक भंडार तँ नै छि‍ऐ जे जेते निकालब तेते बढ़तै। नह-केश भोजमे खाइले केकरा देल जाइ छै ओकरे ने जे कठि‍यारी गेल रहल। भोज कथीक होइ छै, तँ भतभोज। सभ जाति‍क बीच तँ भातक चलनि‍ नै छै। तखनि? एक्के काज केनि‍हारमे दू रीति‍ नीक हएत। होइत-हबाइत नह-केश दि‍नक भोजे उठाव भऽ गेल। तीनू बहि‍नकेँ कहल गेल जे भोज नमहर भइए रहल अछि‍ तहीमे अहूँ सभ जे ि‍दअ चाहै छी से मि‍ला दियौ। ओते घरवारीकेँ असान हेतै। तीनू बहि‍न राजी भऽ गेली। दोसर प्रश्न उठल जे पुरोहि‍त-महापात्र नै औता तेकर की करब। कि‍यो जाति‍क पुरोहि‍त ताकए लगला तँ कि‍यो कि‍छु। मुदा कि‍छु आन जाति‍मे शुरू भऽ गेल मुदा से नै भेल। तँए जाति‍मे भेटबे ने कएल। कि‍छु गोटेक वि‍चार जे जखनि ओ सभ (पुरोहि‍त-पात्र) एबे नै करता तखनि सोलहो अना छोड़ि‍ दियौ। कि‍छु गोटेक वि‍चार जे जखनि गामेमे देखै छि‍ऐ राम, सदाय, पासवान इत्‍यादि‍केँ अप्‍पन सभ कि‍छु छै तखनि हमहूँ सभ किए ने बना ली। तखनि की हुअए? रामअवतार राउतकेँ पुजबैक भार देल गेलन्‍हि‍ आ बि‍देश्वर ठाकुर सहयोगी बनि‍ पुजा देथि‍न। पुजौल केना जाए? कोन जरूरी कोनो चीजक अछि‍, से नै तँ केरे पातपर पुजौता आ दछि‍नामे दुनू गोटेकेँ एक-एक जोड़ धोती देल जेतनि‍। सएह भेल। सराधे दि‍न (एकादशा) भोज करैक वि‍चार भेल। भोज भलै। काफी जस भोजमे भेल। मुदा जाति‍क बीच जे रि‍एकशन भेल ओ...
अखनि धरि‍ दसो दि‍न रंग-रंगक बैसार गामसँ आन गाम धरि‍ होइते रहल। अंतमे रतीश बाबूक (नवानी) ि‍नर्णए भेल, जे जति‍या आगू पति‍या नै लगै छै।
कपि‍लेश्वर राउतक ऐठामक घटना (बाबाक सराध) गाम-सँ-बाहर धरि‍ जेना आगि‍क लुत्ती भऽ गेल। ऐ घटनासँ छोट-पैघ अनेको घटना जनम लेलक दूटा घटना ओइमे महत्वपूर्ण रहल, पहि‍ल रामावतार राउतक संग जे भेल आ दोसर बि‍‍देसर ठाकुरक संग जे भेल। दुनू गोटेक योगदानो नीक रहलन्‍हि‍।
मधेपुर ब्‍लौक-थानाक संग-संग वि‍धान सभा क्षेत्र सेहो छल। आब नै अछि‍। ओइ समए अट्ठाइस पंचायतक ब्‍लौको आ थानो छल, तँए राजनीति‍क अड्डा सेहो रहल। कोसी-कमलाक बीच बसल ब्‍लौक अछि‍। तँए दुनूक (पूबमे कोसी, पछि‍ममे कमला) बीच जेते छोटका-बड़का, मुइलहा-जीतहा धार अछि‍ सभ मधेपुर ब्‍लौक होइत गुजरि‍ते अछि‍। एक दि‍स काेसी कटनि‍या कऽ बालुसँ बलुऔने अछि‍ तँ दोसर दि‍स कमलो। कि‍म्‍हरो बालु अछि‍ तँ कि‍म्‍हरो मोनि‍-मान सेहो अछि‍। देशक आजादीक लड़ाइमे मधेपुर ब्‍लौकक योगदान बि‍हारक कोनो ब्‍लौकसँ कम नै रहल अछि‍। जय प्रकाश बाबू, सुरज बाबू आ लखन जीक (डाक्‍टर लक्ष्‍मण झा) आवाजाही बेसी रहलन्‍हि‍, जइसँ अधि‍कांश गाममे स्‍थानीय नेतृत्‍व सेहो उभ, अंचल स्तरपर सेहो उभल। मधेपुर ब्‍लौकक उत्तरी छोरपर बेरमा पंचायत अछि‍ जे झंझारपुर आ फुलपराससँ लागल अछि‍। जहि‍ना उत्तरी छोरपर बेरमा पंचायत अछि‍ तहि‍ना पूर्बी छोरपर मैटरस पंचायत अछि‍।
मैटरस पंचायतक जानल-मानल परि‍वार रामावतार राउतक छेलन्‍हि‍ सम्‍पति‍शाली रहथि‍ मुदा कोसीमे गामे तहस-नहस भऽ गेल। कोसीक पछबरि‍या बान्‍हक भीतर पंचायत पड़ैत अछि‍। गामे होइत धार सेहो बहै छै। १९४७ इस्‍वीक आजादी पछाति‍ क्षेत्रक जे सम्‍पति‍शाली लोक सभ छला वएह सभ गामक मुखि‍यो आ मुँह-पुरुखो छला। वर्गीय आधारपर राजनीति‍क पार्टी (कांग्रेस) ठाढ़ छल। तँए जेते गुदगर लोक छला, सबहक भितरि‍या सम्‍बन्‍ध सेहो छेलन्‍हि‍। भितरि‍या सम्‍बन्‍धक माने ई जे हुनका सबहक बीच जातीय बन्‍हन कमजोर छेलन्‍हि‍ ऐठाम एकटा वि‍चारणीय प्रश्न अछि‍ जे हुनका सभकेँ अपनामे माने एक-दोसर परि‍वारक बीच लेन-देन, खान-पीन, मदति‍-सहायता सभ कि‍छु छेलन्हि‍ मुदा जाति‍क बीच राजनीति‍क वि‍भाजन सेहो पनपि‍ गेल छल, जेकर बल राजनीति‍क पार्टी सभकेँ भेटै छल। लत्ती जकाँ ओ परि‍वार माने सुभ्‍यस्‍त परि‍वार सभ सजल छला। बेरमाक रामअवतार राउत जे तहि‍या मैट्रीक पास नव युवक छला, भारतीय कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक वफादार कार्यकर्त्ता रहथि। भा.क.पा.मे एक टर्म (तीन वर्ष) जि‍ला परि‍षदमे सेहो रहला। जहि‍ना कपि‍लेश्वर राउत तीन भाँइ, कपि‍लेश्वर, जागेश्वर आ लखन राउत तहि‍ना रामअवतार राउत सेहो तीन भाँइ, सीताराम, रामअवतार आ राम प्रसाद राउत‍। दू भाँइ रामअवतारक बि‍आह मैटरसे भेल। ओना बर जाति‍ सभ-गाममे नहि‍येँ अछि‍ मुदा कि‍छु गाम सघन आबादीबला तँ अछि‍ए। जेहने सघन वादीबला गाम मैटरस तेहने बेरमाे अछि‍, सए घरक लगभग अखनो अछि‍। मुदा दुनू गामक बीच एकटा दूरी सेहो अछि‍। जहि‍ना मैटरसमे एक परि‍वारक वर्चस्‍व, जइसँ सामंती सूत्र अधि‍क मजगूत, मुदा बेरमामे से नै अछि‍। कम आँट-पेटक (नि‍म्न-मध्‍यम) परि‍वार सभ, तँए वि‍चारोमे दूरी अछि‍ए। तहूमे कम्‍युनिस्ट पार्टी कोनो-ने-कोनो रूपमे १९६२ई.सँ रहल। ओना ओइसँ पूर्वेसँ केस-फौदारी गाममे पकड़ि‍ लेने छल। मालि‍क सभ (जमीन्‍दार) सँ लड़ाइ चलि‍ रहल छल। चाहे ओ बलदेव बाबू (बलदेव झा, सरि‍सव पाही) होथि‍ आकि‍ लक्ष्‍मीकान्‍त, रमाकान्‍त साहु, झंझारपुर होथि‍। आन्‍दोलनक रूपमे तँ नै मुदा बेक्‍ति‍गत रूपमे तँ छेलैहे, जइसँ कि‍छु बजनि‍हार तँ छलाहे। राजनीति‍क आधारपर १९६२ ई.सँ मोकदमा उठल जे कि‍छुए दि‍न पछाति‍ मरि‍ गेल। सभकेँ (पार्टीबला) अगि‍लगी केसमे फँसा सजा करबा देलकनि‍। मैटरसक मुखि‍या रामावतार राउत बेरमाक रामअवतार राउतपर आक्रमण केलक। आक्रमण ई भेल जे दुनू भाँइ सीताराम राउत आ रामअवतार राउतक बि‍आह मैटरसे भेल। सीताराम राउतक ससुर साधारणे परि‍वारक आ रामअवतार राउतक ससुर (बेटाक अभावमे) बबाजीए। दुनू गोटेकेँ मैटरसक रामावतार सामंती चाप दऽ कऽ दुनूकेँ बेटी आपस अनैले कहलखि‍न। दुनू मजबूर भऽ गेला। रामअवतारक ससुर तँ कहि‍ देलखि‍न जे तोरा सबहक गाम छि‍अ, जे मन-फुरह से करह, हम जाइ छि‍अ। घुमन्‍तू बबाजी भऽ गेला। अपन दल-बलक संग रामावतार राउत बेरमा एला। बेरमाक प्रमुख अपन दल-बलक संग तैयारे रहथि‍न। जाति‍क बीच वि‍भाजनक मजगूत बान्‍ह (खेनाइ-पिनाइ बन्न) पड़ि‍ए गेल रहए। वि‍षम स्‍थि‍ति‍ बनि‍ गेल। वि‍षम ई जे जाति‍-सम्‍प्रदाय एते सक्कत बनल छल जेकरा तोड़ब धि‍या-पुताक खेल नै। जौं रोकल जाए तँ केना? जखने लड़ाइ उठत आकि‍ जाति‍क मुद्दा बनि‍ जाएत। घटनाक समए करीब बारह बजे दि‍न रामावतार राउत बेरमा पहुँचला। वि‍न्‍घ्‍यनाथ ठाकुर पहि‍नेसँ मुसताइज। टोलबैए (गामक बड़ै टोल) अगि‍ला वाहन, बेरमाक रामअवतार राउतक घरक चारूकात मर्द-औरत थहाथही करैत। रामअवतारक पि‍ता सुबध राउत दुनू परानीक संग तीनू बेटाक बीच दरबज्‍जापर बैस‍ नौताएल छागर जकाँ मरैले पुश्‍तैनी घराड़ीपर पीठ अोरि‍ देने रहथि‍। एक-दोसरक सभ मुँह तकैत, मन कहैत माए तूँ केते काल, बाबू अहाँ केते काल, बेटा तूँ केते काल, बौआ तँू केते काल...। दुनू दि‍यादि‍नी (रामअवतारक पत्नीओ आ भौजाइओ) भनसा घरक ओसारक खूटा लगा बैस‍ कनैत रहथि‍। दुनू दि‍यादि‍नीकेँ कहल गेलन्‍हि‍-
अपना गहना-गुरि‍या जे अछि‍ से लऽ लि‍अ।
मुदा दुनू दि‍यादि‍नी कि‍छु नै बजली। दुनूक बाँहि‍ पकड़ि‍ टोलक स्‍त्रीगण आँगनसँ नि‍कालि बलजोरी सीमा टपा देलकन्‍हि‍। ऐ संग दोसर घटना-रामावतारकेँ करीब चारि‍ बीघा जमीन छेलन्हि, जइमे जमीन्‍दारीक घुरछीक चलैत अस्‍सी प्रति‍शत जमीनपर मोकदमा ठाढ़ कएल गेल। कोर्टक सभ बेवस्‍थाक भार आने-आन लऽ लेलखि‍न। मुदा जमीनक सबूतो होइ छै आ दखलो होइ छै। दखलबलाकेँ एते लाभ होइ छै जे उपजबैक मौका भेटै छै। सबूतक वि‍वाद कोर्टमे उठल। मुदा समाजक तागत मजगूत। तँए दखल रामअवतारेक रहलन्‍हि‍। पछाति‍ सबूतो कोर्टसँ भइए गेल। करीब देढ़-दू बरख पछाति‍ रामावतार राउत (मैटरसबला) समझौता केलन्‍हि। समझौताक मुख्‍य कारक भेल जे सुबध राउत डटि‍ गेला जे पहि‍ने ओ अपना बेटीक बि‍आह कर तखनि देखा देब‍ै, देखा देबैक अर्थ भेल जे जाति‍ तोड़ि‍ आन जाति‍मे कुटुमैती शुरू कऽ देब। होत-सँ-होतांग होइत देखि‍ सभ सहमला। तेकर एकटा कारण ईहो भेल जे केते दि‍न लाठी उठि‍ चुकल छल। शक्‍ति‍ परीक्षण भऽ चुकल छल। मुदा असल परीक्षण भेल जइ दि‍न इन्‍दि‍रा गाँधी शही‍द भेली घटना पछाति‍। समझौता पछाति‍ दुनू लड़की आपस तँ एली मुदा मानसि‍क रोगसँ पीड़ि‍त भऽ गेली। एक सन्‍तान पछाति‍ जेठकी, सीतारामक पत्नी आ दू सन्‍तान पछाति‍ मझि‍ली माने रामअवतारक पत्नी, मरि‍ गेलखि‍न। पछाति‍ दुनू भाँइक बि‍आह भेलन्‍हि‍ जे परि‍वार अखनि चलि‍ रहल छन्‍हि‍।
दुर्गा पूजासँ होइत कपि‍लेश्वर राउतक घटनामे बि‍‍देसर ठाकुरक नीक योगदान रहलन्‍हि‍। बोनि‍हार परि‍वार रहि‍तो बि‍‍देसर ठाकुरकेँ बात पकड़ैक ढंग आ दोसरकेँ बुझै-बुझबैक ढंग नीक छेलै। परि‍वार बड़ नमहर नै मुदा छोटो नै। संयुक्‍त परि‍वार टुटैक पैघ कारण गरीबी सेहो होइत अछि‍। समाजमे एहेन परि‍वारक कमी नै जे कहता-
ई सएओ घरक टोल फल्‍लेँक वंश छि‍अनि‍।
मुदा अखनि तेते केसा-केसी भऽ गेल अछि‍ जे सम्‍पति‍ तँ गेबे केलन्‍हि‍ जे एक्कोटा-समांगो एहेन नै बँचला जे जहल जा खनदानक मर्यादा नै तोड़लन्‍हि‍। तीन पीढ़ी ऊपरसँ बि‍‍देसर ठाकुरक एक पुरखि‍याह परि‍वार तँए पुश्‍तैनी खेतो आ जजमनि‍कोमे काट-खोंट नै भेल, पोता धरि‍ सेहो सएह भेल अछि‍। एकटा बेटा आ चारि‍टा बेटी बि‍‍देसर ठाकुरकेँ। अपन आठ कट्ठा खेत, जइमे तीन कट्ठा धनहर, डेढ़-दू कट्ठा घराड़ी, महार (बड़की पोखरि‍क ढि‍मका) बाँकी गाछी-बि‍रछी। दस कट्ठा बटाइओ धनहर करैत रहथि‍। गामक जजमनि‍कामे करीब चौथाइ गाम। जेकर कमाइलक (साली) तरीका सेहो रंग-रंगक। मुदा ओहेन गि‍रहस्‍त (दाढ़ी-केश कटबैबला) बेसी जे समैपर अगहनमे कमाइल दऽ दइ छथि‍न। दाढ़ी-केश मि‍ला कऽ एक पूर्ण आदमीक कमाइल एक धारा माने १२ सेर कच्‍ची, जे करीब सात कि‍लोक लगभग होइ आ अदहा कमाइल एकटा केशक होइ‍। अही जि‍नगीमे चारू बेटीओ-जमाए, नाइतो-नाति‍न देखलन्‍हि, तहि‍ना बेटो-पुतोहु आ पोतो-पोती देखलन्‍हि।
बि‍‍देसर ठाकुर संग एकबेर जगदीश प्रसाद मण्डल मधुबनीक चकि‍या जहलमे रहथि आरो करीब दस आदमी। बि‍‍देसर ठाकुर कातमे जा कऽ गाजा पिबैत रहथि। जहलक जमेदार देख लेलक। पकड़ने आबि‍ डंडा-बेड़ी कऽ देलकनि। एहेन परि‍स्‍थि‍ति‍मे की कएल जाए। खर जे होउ, पच्‍छि‍मी मधुबनीक एकटा साथी सेहो रहथिन, मुँहगर-कन्‍हगर। राति‍मे खेला-पीला पछाति‍ सांस्‍कृति‍क कार्यक्रम एक-डेढ़ घंटा करै छला। डंडा-बेड़ी नेने बि‍‍देसर ठाकुर सेहो अपने बनौल गीत-
हमरा सन के अछि‍ बुरि‍बलेल
बाले-बच्‍चे महिंस पोसलौं।
प्रमुख-नथुनी सि‍ंह, दरोगा
खुटापर आबि‍ खोलि‍ लेल।
हमरा सन...?
जखने जेलक अन्‍दर एलौं
पीपरक गाछ तर गाँजा लटेलौं।
जमेदार आबि‍ डंडा-बेरी‍ ठोकि‍ देल।
हमरा सन...?
घामे-पसि‍ने खेती केलौं
तुलसी-फूल ओ कनकजीर।
खोहे तरसँ सरूप सि‍ंह
डेढ़ि‍यामे तोल लेल
हमरा सन...?
और-तँ-और
कवि‍-कोकि‍ल महाकवि‍ विद्यापतिकेँ
बहुत पहिनहियेँ छीनि लेल
हमरा सन...?”
गाबि‍ अपन वृतान्‍त सुनौलन्‍हि‍। पछमी मधुबनीबला साथी काफी प्रभावि‍त भेला। अपना लग बजा अपनो जि‍नगीक बात आ बि‍देश्वरो ठाकुरक बात सुनौलकनि‍/सुनलन्‍हि‍। भि‍नसरे जमेदारकेँ कहि‍ डंडा-बेड़ी हटबैत कवि‍ घोषि‍त कऽ देलकनि‍। जेलक स्‍टाफ सभ कवि‍ जी कहए लगलन्‍हि‍। मुदा जहलक भीतरेमे, बाहर नै। मनचोभि‍या नाचक नीक कलाकारमे बि‍‍देसर ठाकुर। अपन एहेन गुण जे फि‍ल्‍मि‍ओ गीत आ सामाजि‍को गीतमे दू-चारि‍-पाँति‍ ओही तर्जपर गाबि‍ लइ छला।
मृत्‍यु दुखद भेलन्‍हि‍‍। आम तोड़ै काल गाछपरसँ खसि‍ पड़ला जइमे डाँड़क हड्डी थकुचा गेलन्‍हि‍। ओना इलाज-बात जरूर भेलन्‍हि‍‍ मुदा कोनो कि‍ गट्टा टुटब आकि‍ घुट्ठी टुटब छी जे बड़बढ़ि‍याँ-बड़ बेश? मुदा साल भरि‍ ओछाइ धेला पछाति‍ उठि‍ कऽ ठाढ़ भेला। चौकपर सैलून शुरू केलन्‍हि‍। जइसँ पनरह-बीसक नगदो आ जजमनि‍को काज सम्‍हारए लगला। सुति‍ कऽ जगदीश प्रसाद मण्डल उठले रहथि आकि सुनलन्‍हि, बि‍‍देसर ठाकुर मरि‍ गेला। साँझमे गप-सप्‍प भेले रहनि। तँए बि‍सवासे ने होन्‍हि‍, मुदा एहेन गप झूठो तँ नहि‍येँ होइत अछि‍। किए तँ गारि‍‍ओक सीमा जीवि‍ते धरि‍क अछि‍, मृत्‍यु तँ सराप छी।
बि‍‍देसर ठाकुरक घटना देखि‍ जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ सजल-धजल सामंत आँखि‍क परदापर नाचए लगै छन्‍हि‍। कि‍छु परि‍वार (जाति‍-वि‍शेष नै सम्‍पदा वि‍शेष) केँ छोड़ि‍ अधि‍कांश परि‍वार अपन जि‍नगीक अनुसार काज-उदम करि‍ते छन्‍हि‍‍, बि‍‍देसर ठाकुरक पत्नी महिंसि‍क पर्ड़ू कीनि‍ बहनतू महिंस बनौलन्‍हि‍। नीक पोस एकटा बड़द सेहो। थानाक दारोगा सि‍पाही-चौकीदारक संग, नथुनी सि‍ंह अपन लठैतक संग आ वि‍न्‍ध्‍यनाथ ठाकुर अपन दूत-भूतक संग बि‍‍देसर ठाकुर ऐठाम पहुँचल। रस्‍ता कातमे घर, थहाथही लोक करैत। तीनू गोटे नथुनी सि‍ंह, वि‍न्‍ध्‍यनाथ ठाकुर आ दरोगा कनफुसकी कऽ महिंस खोलि‍ लेलकनि‍! खोलला पछाति‍ की हुअए। कोनो कि‍ घुमा कऽ देब अछि‍ आकि‍ अपन बनाएब अछि‍। दरोगाजी की कहि‍ लऽ जेता? केतबो ढील कानून छै तैयो तँ कोर्टकेँ कागत चाहबे करी।‍ वि‍न्‍घ्‍यनाथ ठाकुरकेँ दमे नै अँटलन्‍हि‍। दुत-भूत मुड़ी डोला देलकनि‍। लंठोक शक्‍ति‍मे जाति‍क वि‍भाजन रहल अछि‍। होइत-हबाइत महिंस नथुनी सि‍ंह अपना ऐठाम लऽ गेला। सभतूर बि‍‍देसर ठाकुर गाममे घूमि‍-घूमि‍ गौआँकेँ कहलकनि‍। मुदा एक नोर कानैक सि‍बा दोसर उपाइए की अछि‍। जखनि बि‍‍देसर ठाकुर सबहक (करीब दस-बारह आदमी) बीच पहुँचला तखनि जान दइले तैयार। लड़ाइओक उत्‍साह होइ छै, जौं से नै तँ मनोरंजन लेल लोक किए जान गमबैए। कि‍छु गोटे एहने, तँए एक रंगक वि‍चार उठल। एक पंचायत‍क समस्‍या दोसर पंचायत पहुँच गेल तँए एक पंचायत‍क नै दू पंचायतक समस्‍या बनि‍ गेल। मुदा मूल तँ ओतए अछि‍ जे एकटा महिंसक खाति‍र मनुखक जि‍नगी जाए। महिंसक तँ बोन लगा सकैए मनुख, मुदा हजारो महिंसि‍क बोन बुते एकटा मनुख ठाढ़ कएल हएत? तत्-काल वातावरणमे नरमी आएल। मुदा जहि‍ना हरदी जड़ि‍मे जहर सेहो फड़ैए, किएक तँ हरदी कहै छै हम बिखकट्टा छि‍औ। तहि‍ना कि‍छु दि‍न पछाति‍ बि‍‍देसर ठाकुर सभकेँ बैसा बाजल-
जेते लोक महिंस खोललक ओइमे बेसी हमरे जजमान अछि‍, ओकरा सभकेँ केश-दाढ़ी काटब छोड़ि‍ देबै। हमर कमाइ जाएत, ओकरा बत्तू बना टहलेबै। मुदा कमाइओ केना जाएत? कमेबे ने करबै तँ कमाइल कथीक लेबै।
प्रश्न उठैत अछि‍ जदी कि‍यो अपन समस्‍याक समाधान लेल ठाढ़ हुअए तँ की कएल जाए? सबहक बीचेमे बि‍देसर ठाकुर संकल्‍प लऽ लेलन्‍हि जे केश नै कटबै। केश नै कटैक बात जेना अकासमे उड़ि‍या गेलै; बलजोरी करैक दम कि‍नको नै अँटलन्‍हि‍। इलाकाक स्‍थि‍ति‍ भि‍न्न-भि‍न्न तरहक, तँए भि‍न्न-भि‍न्न तरहक लड़ाइओ। जमीनक लड़ाइमे नागेन्‍द्रजी (डाक्‍टर नागेन्द्र झा, पैटघाट) केँ थानामे टांगि‍ सैयो लाठीसँ देह चूरि‍ देने रहनि‍, जइसँ जि‍नगी भरि‍ हाथ-पएर टेढ़े रहलन्‍हि‍। कामेसर राम (फुलपरास) पच्‍चीस-तीस गोटेक संग तीन सालसँ जहलमे, जे सभ मर्डर केसमे फँसल। तहि‍ना राम प्रसाद सहनी (पचही) केँ ट्रकमे उनटा बान्‍हि‍ रोडपर घि‍सि‍औने रहनि‍। अखनि धरि‍ जे कोनो मोकदमा भेल छल ओकर कोनो जवाब मोकदमासँ नै देल गेल छल, जे महिंसक घटनासँ शुरू भेल। तीनू गोटे दरोगा, नथुनी सि‍ंह आ वि‍न्‍ध्‍यनाथ ठाकुरपर मोकदमा कएल गेल। ओना दर्जनो केस भऽ चुकल छल। थानाक एक पक्षीय बेवहार देखि‍ सभ ि‍नर्णए कऽ लेलन्‍हि जे ने थाना केस करए जेता आ ने कोनो केसक सम्‍बन्‍धमे कहए जेता। जे हेतै से कोर्टेसँ हेतै। महिंसक बरामदगी हाई कोर्टसँ भेल। वीरेन्‍द्र जी (माननीय न्‍यायमूर्ति, उच्‍च न्‍यायालय-पटना) काज केने रहथि‍। बि‍देसर ठाकुरक केशकट्टी झंझटिक पंचैतीमे प्रमुख जीक पंच बौकू ठाकुर (नौए) भेला। बि‍देसर ठाकुर अपन पंच अपने हेता, दसटा समाज सुनि‍नि‍हार हेता, प्रमुखोजी अपन सुनि‍नि‍हार रखथि‍, मुदा बजता दुनू पंचेटा, निर्ण भेल। पनचैतीक अजीव आकर्षण, आकर्षणक कारण भेल जे केते-बेर बि‍देसर ठाकुर असगरोमे पटका-पटकी कऽ लइ छला। तइमे बि‍देसर बदनाम भऽ गेल छला। पनचैतीक दोसर आकर्षण छल बौकू ठाकुरक भाषा।
जि‍नगीक पहि‍ल दि‍न एहेन भाषासँ भेँट भेल।”, जगदीश प्रसाद मण्डल मोन पाड़ै छथि।
एक तँ लंकारि‍क शैली, तैबीच एक पाँति‍ प्रमुख जीक पक्ष आ बि‍देसर ठाकुरक वि‍पक्षमे बाजि‍ जाथि‍ तँ दोसर पाँति‍ बि‍देसरक पक्षमे प्रमुख जीक वि‍पक्ष बाजि‍ जाथि‍। सुनि‍नि‍हार सभ भाषेक (शब्‍द-जाल) जालमे ओझरा जाथि। बि‍देसरो ठाकुरक समाज आ प्रमुखो जीक समाज बौकू ठाकुरक भाषेमे ओझरा जाथि। पनचैती की हएत जे घौंघाउजे भऽ जाए। पक्ष-वि‍पक्षक बीच जाधरि‍ समदर्शी बनि‍ सोलह (सोरह) अनापर कील नै गड़त ताधरि‍ ओकर सोर पताल दि‍स केना जाएत? जाधरि‍ सोर-सँ-सि‍र बनि‍ धरती-सँ-अकास दि‍स नै उठत ताधरि‍ सोर पाबि‍-पाबि‍ सोरहा केना हएत। केते बेर पर-पनचैती बैसल मुदा ने समझौता टुटल आ ने झंझटि फड़ि‍याएल। तैबीच एहेन भेल जे सभ दि‍याद बि‍देसरो ठाकुर अपना समाज (नौआ समाज) मे बैस‍‍ फेरसँ गि‍रहस्‍तक बँटबारा कऽ लेलन्‍हि। मुदा पनचैती पछुआएले रहल‍।
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बि‍नु डायरीक जि‍नगीमे...


बि‍नु डायरीक जि‍नगीमे तारीक-मड़कुमा घटना होइत अछि‍ दि‍न-महिना नै। तैबीच लौकहीमे जि‍ला-सम्‍मेलन भेल। लौकही हा स्‍कूलपर सम्‍मेलनक आयोजन भेल रहै, लौकहा स्‍टेशनसँ सवारीक अभावमे कि‍छु गोटे छोड़ि‍ जगदीश प्रसाद मण्डल सभ पएरे गेल रहथि। सवारी अभावक कारण सड़क रहनि। एकटा जीप, तइमे के सभ जेता। ऑफि‍सक कागजातक संग जि‍ला कार्यालय। तैसंग भोगेन्‍द्रजी चारि‍ दि‍नक सम्‍मेलन भेलन्‍हि‍। नीक जुटान भेल छल। जि‍ला भरि‍क संगी, जि‍ला भरि‍क चालि‍-ढालि‍क संग जुटान। सम्‍मेलनक दोसर दि‍न दुनू गोटे प्रति‍नि‍धि‍, माने जगदीश प्रसाद मण्डल आ रामअवतार राउत। दुनू गोटे संगे भोगेन्‍द्रजी सँ भेँट केलन्‍हि‍, ओ एकटा छोटे कोठरीमे असगरे सि‍मटीएपर बि‍छान बि‍छा चरि‍हत्‍थी गमछा ओढ़ने जगले पड़ल रहथि‍। दुनू गोटेकेँ पहुँचि‍ते उठि‍ कऽ बैस‍ पुछि‍ देलखि‍न-  
की हाल-चाल गामघरक अछि‍?”
भोगेन्‍द्रजीमे जबरदस गुण रहनि‍ जे कोनो बातकेँ जड़ि‍सँ पकड़ैत छेलखि‍न। कपि‍लेश्वर राउत ऐठामक सराधबला घटना भऽ चुकल छल, एक-हरफीमे रामअवतार सुना देलकनि‍। मुदा हालेमे अपनो ओही काजसँ गुजरल रहथि‍, केस कटौले रहनि‍। काे तरहेँ समाज छानि‍-बान्‍हि‍ कऽ पार लगाैलकनि‍, तइसँ गुजरले रहथि‍। बि‍टि‍या-बि‍टि‍या सभ सवाल उठौलखि‍न। सवि‍स्‍तार घटनाक चर्च रामअवतार कऽ देलखिन‍, गुम भऽ गेला। कि‍छु समए पछाति‍ गुम्‍मी तोड़ि‍ अपनो घटनाक चर्च केलन्‍हि‍। रामअवतार नवका पुरहि‍त भेले रहथि‍, तँए भोगेन्‍द्रजी मानि‍ जाथि‍। पुन: दोहरबैत रामअवतार पुछलखिन‍-
कॉमरेड, हमरा ऐठामक केहेन भेल?”
भोगेन्‍द्रजी जवाब देलखि‍न-
जहि‍ना सोझे नाक छुअब होइ आ घुमा कऽ छुअब सेहो होइ, तहि‍ना सूदखोरी, महाजनी सोझे छुअब भेल बाँकी जे भेल से घुमा कऽ छुअब भेल। तँए एकरा सामाजि‍क आर्थिक रूपमे देखि‍यौ। समाजक भीतर आर्थिक ढाँचा एहेन ठाढ़ अछि‍ जेकर समीकरण जरूरी भऽ गेल अछि‍। मुदा से के करत?”
कहि‍ चुप भऽ गेला। तही बीच पूर्व वि‍धायक लाल बि‍हारी आबि‍ गेला। सम्‍मेलनक काज बूझि‍ दुनू गोटे बहरा गेला जगदीश प्रसाद मण्डल मधेपुर जि‍ला सम्‍मेलन पछाति‍ जि‍ला नेतृत्‍वमे एला क्षेत्रमे समए देब शुरू केलन्‍हि। गामे-गाम ओझराएल, अपन-अपन मुद्दा अपन-अपन लड़ाइ। केतौ माछक कारोबार तँ केतौ मुँह-पुरखीक। जमीनक छुति‍ओ ने केतौ, तहि‍ना महाजनीओक। जि‍ला सम्‍मेलनक कार्यक्रममे जे मुद्दा छै तइसँ भि‍न्न लड़ाइ छै। लक्ष्‍मीकान्‍त-रमाकान्‍त साहुक जमीनपर बटाइदारी शुरू भेल। अपनो बुझै छथि‍ आ बेरमाक लोक सेहो बुझैत अछि‍ जे अपने खेती करै छला आकि‍ बटेदार करै छल। बटाइदारी शुरू होइते एकटा मुर्दघट्टी परतीपर आठ-दसटा सरधुआ पोखरि‍क घर जकाँ घर ठाढ़ कऽ, जखनि जगदीश प्रसाद मण्डल सभ खेत दि‍स बढ़ला आकि‍ अपना-अपना घरमे आगि‍ लगा, अट्ठाइस गोटेकेँ अगि‍लग्‍गी केसमे फँसा देलकनि। आठ-दसटा घर बनबैक कारण छेलै केसकेँ सीरि‍यस बनाएब, मुद्दै-गबाह हएत। तैबीच एकटा घटना घटल। कि‍सुन देव मण्‍डल चाहक दोकान करै छला। ओहो पार्टीक जुझारू कार्यकर्त्ता।
जगदीश प्रसाद मण्डल सबहक बैसारक अड्डा सेहो छेलन्‍हि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल सभ चारि‍-पाँच गोटे रहथि। पचाससँ ऊपर सदाए (मुसहर) सभ कोदारि‍-सहत लेने आबि‍ चाहक दोकानक आगूमे यत्र-कुत्र बाजए लगला। ठाढ़ भऽ कऽ जगदीश प्रसाद मण्डल सभ जवाब दि‍अ लगलखिनसदाय सबहक हाथमे हथि‍यार, तैपर ताड़ी-दारू पीने, दोसराक कहलमे। तैबीच गाम दि‍स हल्‍ला भऽ गेलै जे कि‍सुनदेव ऐठाम हसेरा-हसेरी भऽ गेलै। जे जत्तै रहए से तत्तैसँ लाठी नेने दौगल। टोल आ दोकानक बीचेमे मारि‍ फँसि‍ गेल। जबरदस मारि‍ भेल। केते गोटेकेँ कान-कपार फुटल। केस-फौदारी आ जहलक भय समाप्‍त भऽ गेल छेलै। एकतीस दि‍नक भीतर अट्ठाइसो मुदालहक जमानत भऽ गेलै। जमानत पछाति‍ जमीनक दखल दि‍हानी शुरू भेलै। गड़बड़ भऽ गेल रहै जे, जे असल बटेदार रहै ओ केस नै केलक आ जे बटेदार नै रहै ओ केस केलक। स्‍पष्‍ट रूपमे गाम दू भागमे बँटा गेल रहए। ओना ऊपरसँ दुइए पार्टी बूझि‍ पड़ै मुदा चोरनुकबा माने भीतरे-भीतर तेसरो पार्टी बनि‍ गेल रहए। तेसर ई रहै जे खूलि‍ कऽ सोझहामे नै आबै मुदा दि‍न-राति‍ कनफुसकी पाछू लागल रहए। पहुलके धक्कामे जमीनदार बूझि‍ गेल जे जमीन जेबे करत, बनि‍याँ रहबे करए, तरे-तर जमीन बेचब शुरू केलक। ओना जमीनसँ संबन्‍धि‍त कि‍छु पुरनो कानून छेलै, कि‍छु नवको बनल जेना हदबंदी, आ कि‍छु नहि‍योँ छेलै। तीस-चालीस बरख पहि‍ने बकास्‍तक लड़ाइ भऽ चुकल छल। ओना कास्‍तक लड़ाइ असानीसँ सम्‍पन्न भेल रहए। लोकोक बीच अधि‍कारक महत छल। कि‍छु गोटे बेक्‍ति‍गत रूपमे केस लड़ि‍ बिनु अधि‍कारक सेहो जमीन दखल कऽ लेने छला। जमीनक बीच कानूनी ओझरी नीक जकाँ नै मुदा लागि‍ जरूर गेल छल। १९३५ ई.सँ पूर्व जे अंग्रेज वि‍रोधी आजादीक दि‍शा छल ओइमे धक्का लागल। वामपंथी वि‍चार अपन पहचान बना नेने छल। १९२५ ई.मे कम्‍युनिस्ट पार्टी सेहो बनि‍ गेल छल। सुभाष बाबू सेहो अपन दृष्‍टि‍कोण रखलन्‍हि‍।   
जमीनक ओझरी ई भेल जे बटाइदारी कानून पछि‍ला सर्वेमे सि‍कमी बटाइ कऽ कऽ खति‍यान बनि‍ चुकल छल। भूदानी आन्‍दोलन सेहो उठि‍ए चुकल छल। बटाइदारीक संग हदबंदी (अर्थात् बीस बीघासँ ऊपर बलाक जमीन लऽ लेल जेतै।) कानून सेहो बनि‍ चुकल छल। तहूमे पच्‍छि‍मी मधुबनी जि‍लामे बटाइदारी लड़ाइ झूर-झार चलैत रहए। ओना सिरिफ जमीनदारे नै, बेसीओ जमीनबला आ ओकर जे लगुआ-भगुआ रहै ओहो आ कि‍छु राजनीति‍क दल सेहो जाति‍-सम्‍प्रदायक नामपर राजनीति‍क पार्टी ठाढ़ कऽ नेने छल। एक तँ गरीबक बीच सामंती संस्‍कार धकेल कऽ नि‍च्‍चाँ खसौने रहै, दोसर कम्‍युनिस्ट पार्टीकेँ समाजक भीतर जाति‍-धर्म वि‍रोधी कहि‍ घृणाक पात्र बनौने रहै, जइसँ कि‍नको दरबज्‍जापर पहुँचलापर वि‍चि‍त्र स्‍थति‍ पैदा होइ छल। मधुबनी-दरभंगा जि‍लाक सौभाग्‍य रहल जे, जे जाति समाजक नि‍यामक रहला ओही जाति‍क नेतृत्‍वमे कम्‍युनि‍स्ट पार्टी बनल रहए, कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक भीतर ब्राह्मण नेतृत्‍व अधि‍क छल। ओना सभ जाति‍क बीच कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक पहुँच रहल। खास कए कऽ खजौली आरक्षि‍त भेने अनि‍वार्यो भऽ गेल रहए। १९५५ इस्‍वीक पूर्व बि‍हारक राजनीति‍मे जाति‍क प्रभाव नगण्‍य छल मुदा जोर पकड़ए गल। जइसँ वर्गीय स्‍वरूप नै पनपि‍ जातीय स्‍वरूप पनपि‍ गेल। जाति‍-जाति‍क वि‍भाजन भऽ गेल। मुदा आजादीक फल एते तँ भइए गेल छल जे सभकेँ भोँटक अधि‍कार भेट गेल छेलै। सरकारक बीच कुर्सी पटका-पटकी १९६२ ई.सँ शुरू भऽ गेल छल। एम.एल.ए, एम.पी.क बदला-बदली हुअ लगल। आमजन ठकाइत रहला। ठकाइत-ठकाइत एते ठका गेला जे गामक बीस बीघा जमीनबलाकेँ बेटी बि‍आहमे जमीन बेचए पड़ए लगलन्‍हि‍! क्षेत्रक वि‍कास मात्र रूकबे ने कएल अपि‍तु पाछू मुहेँ ससरए गल। पच्‍छि‍मी कोसी नहर, मैथि‍ली भाषा, जमीनक सवाल कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक मुख्‍य मुद्दा सभ दि‍न रहल। एक दि‍स कोसी नहर हुअए तेकर आन्‍दोलन! तँ दोसर दिस नै हुअए तेकर आन्‍दोलन! भूदानी आन्‍दोलन अपन स्‍वरूप बि‍गाड़ि‍ पाइक अड्डा बनि‍ गेल, जइसँ मामिला आरो ओझरा गेल। ओझरा ई गेल जे एक-एक जमीनकेँ तीन-तीन गोटेकेँ पर्चा भेटल। जइसँ जमीनबलाक झगड़ा जमीन लेनि‍हारोक बीच फँसि‍ गेल। प्रशासनक स्‍थि‍ति‍ ओहने छल जे एकछाहा बूझि‍ पड़ैत। बेरमाक जे कम्‍युनि‍स्ट वि‍रोधी रहथि‍, नमहर साँस छोड़लन्‍हि‍। जहि‍ना अड़ना पाड़ा मुइने नढ़ि‍या सभ साँझू पहरमे ढोल बजा-बजा नचै तहि‍ना साँस छोड़ि‍ नाचए लगला। लूटा-लूटी जोर पकड़लक। गाममे खेतक जजातक (तरकारी, अन्न, फल) चोरि‍ बढ़ल। ओना तइसँ पूर्व चोरि‍सँ गाम एते आक्रान्‍त रहै छल जे जबरदस समस्‍या रहै, मुदा संक्षेपमे, एक गोटेकेँ गाछमे टाँगि‍ आ दोसर गोटेकेँ सामूहि‍क मारि‍ जखनि पड़ल तहि‍एसँ चोरि‍मे कमी आएल। ओना चोरि‍क रंग-रूप बदलने चोरक कमी नै भेल मुदा रंग-रूप बदलने लोक ठकेबे करत। चाहे पि‍तरि‍या सोना होइ आकि‍ एकक तीन। जमीनक लड़ाइ उठने जे जत्तै रहए से ततैसँ बन्‍शी पाथि‍ देलक। झंझारपुरक लक्ष्‍मीकान्‍त रामाकन्‍त दुनू भाँइ छथि‍। एक भाँइक हि‍स्‍सा कृष्‍ण चन्‍द्र झा (कैलू मास्‍टर) लेलन्‍हि‍ दोसर हि‍स्‍सा बैजनाथ मण्‍डल लेलन्‍हि। कम्‍युनि‍स्ट पार्टी महादेव मण्‍डलसँ बटाइदारी केस करबौने छल जगदीश प्रसाद मण्डल सभ अट्ठाइसो मुदालहक संग अट्ठाइसटा गबाह लऽ कऽ जमानत करबए एक दि‍न पहि‍ने गेला। कि‍यो-कि‍यो साइकि‍लसँ जाइ छल, सेहो रखि‍ देलक जे जौं भीतर जाए पड़त तँ साइकि‍ल जपाल भऽ जाएत। जौं थाना गेल तँ पेशेवर मनुक्‍खक गति‍ हेबे करतै। पहि‍ले दि‍न, गामसँ नि‍कलला पछाति‍ बैजनाथ मण्‍डल हल्‍ला उठौलन्‍हि‍, एकटा लि‍फाफ नेने चि‍ट्ठी गाममे, देखौलक जे कैलू मास्‍टरक बेटा हमरा माए-बहि‍नकेँ गाि‍र लि‍ख कऽ पठा देलकहेँ। ओना अखनो धरि‍ चि‍ट्ठी देखैक मौका जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ नै भेटलन्‍हि। ओना दुनू गोटेक भीतरि‍या इच्‍छा जे सोलहो अना हमरे हुअए। एक गोटे जबुरि‍या करबैक फि‍राकमे दोसर गोटे बलजोरी कब्‍जा करैक फेरमे। महादेव मण्‍डलक बटाइकेँ जगदीश प्रसाद मण्डल सभ रोकि‍ देलन्‍हि। रोकैक कारण बैजनाथ मण्‍डलक जेठ भाय महादेव मण्‍डल। ओही परि‍वार लेल ने जे कीनि‍ए लेलक। अगि‍लग्‍गी केसक जमानत करा गाम पहुँचि‍ते कि‍छु गोटे बाजला जे कैलू मास्‍टरक बेटाकेँ बैजनाथ मण्‍डल मारबो केलक आ पकड़ि‍ कऽ दरबज्‍जापर रखनौं अछि‍। कि‍छुए काल पछाति‍ कैलू मास्‍टर साहैबक बहि‍न जे जीवि‍ते छथि‍‍, डाँड़क ऑपरेशन भेल छन्‍हि‍, तइसँ जौं ब्रेन प्रभावि‍त भऽ गेल होइ तेकर तँ नै मुदा जौं नीक छन्‍हि‍‍ तँ मुखौतरी भऽ जाए, आबि‍ कऽ जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ कहलकन्‍हि‍‍ जे बैजनाथ हमरा भाति‍जकेँ मारबो केलक आ पकड़ि‍ कऽ रने अछि‍ से कहक छोड़ि‍ दइले। जगदीश प्रसाद मण्डल गेला, कहलकन्‍हि‍, छोड़ि‍ देलखि‍न। ओ घटना ३०७ क रूपमे उठल। कैलू मास्‍टर, तीनू भाँइ महादेव मण्‍डलकेँ जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ, रामअवतार राउतकेँ आ सत नारायण राउतकेँ मुदालह कऽ देलकनि‍, ओइ केसमे सजा भेलन्‍हि‍ जे हाइकोटसँ फड़ियाएल। वीरेन्‍द्रे जी (न्‍यायमूर्ति, पटना हाई कोर्ट‍।) काज केने रहथि‍।   
कैलू मास्‍टर साहैबक घटनाक प्रभाव सभसँ बेसी दुर्गा स्‍थानपर पड़ल। शुरूक बैचमे कैलूओ मास्‍टर साहैब, रामअवतारो राउत आ जगदीश प्रसाद मण्डलो संगे-संगे चंदा करए जाथि; दुर्गा स्‍थानक बेवस्‍था करथि। भलहिं ओ अपना भगवतीकेँ कहथि‍न जे दुश्मनकेँ सांगि‍ करि‍हअ आ जगदीश प्रसाद मण्डल अपना भगवतीकेँ वएह बात कहथिन‍। पनरह बरख पछाति‍ ओहो (कैलू मास्‍टर साहैब) आ जगदीश प्रसाद मण्डल आ रामअवतार अगि‍ला पीढ़ीकेँ सुमझा देलखिन‍। लक्ष्‍मीकान्‍तबला जमीन चौथाइ-सँ-अधि‍या दाममे नि‍कलि‍ गेल, ओना कि‍छु इम्‍हरो-आम्‍हरो भेल, कहबी छै, लूटमे चरखा नफा। एक गोटे रजिस्ट्री आॅफि‍समे मुंशीयागरी करै छला, हदवंदीक नकल लऽ नेने रहथि‍। बि‍क्रीक सूनि‍-गूनि‍ पबि‍ते ि‍वरोध कऽ दैथि आ तरेतर झाड़ि‍ लैथि। गामक जमीन गौआँक हाथ आएल। केस-मोकदमा सोलह कऽ समाप्‍त भेल। लक्ष्‍मीकान्‍त साहुक जमीनक लड़ाइक पश्चात बेरमामे आन्‍दोलनक रूपमे ने एकोटा जमीन्‍दार रहला आ ने लड़ाइ उठल। आन-आन जमीन्‍दार जमीन बेचि‍ कऽ पहि‍नहि‍येँ चलि‍ गेल छला, खाली लक्ष्‍मीएकान्‍त-रमाकान्‍त बँचल रहि‍ गेल छला। सेहो भइए गेल।
भूदानी आन्‍दोलन- बेरमामे भूदानी आन्‍दोलन तेनाहे जकाँ भेल। कारण जे जइ समए भूदानक जमीन देल गेल ओइ समए बेरमामे तेहेन जमीनबला नहि‍येँ छला। एकटा परि‍वार छल, ओ छल गठरी झाक परि‍वार। गठरी झाकेँ पण्‍डि‍ताइमे लाखे राज-ब्रह्मोत्तर कऽ कऽ जमीन भेटल रहनि‍ मुदा ओ जमीन बेरमा गाममे नै गामसँ बाहर छेलन्‍हि‍ मालि‍क-मलि‍कानक गाम बेरमा, जइसँ भूदानमे कम जमीन देल गेल। तहूमे बँटबारा होइसँ पूर्वे ओ सभ बेचि‍-बि‍कीन नेने छला। तैसंग ईहो भेल जे तेहेन-तेहेन कार्यकर्त्ताकेँ जमीनक सबूत आ बँटैक भार देल गेलन्‍हि‍ जे ओ सभ आरो डुमा देलन्‍हि‍। एक-एक जमीनक सबूत तीन-तीन गोटेकेँ जि‍ला कार्यालयमे भेट गेल। एक तँ ओहि‍ना कमजोर आदमीकेँ उठबैक आन्‍दोलन छल, मुदा सबूतक ओझरी तेहेन ओझरी लगा देलक जे कोनो लाभ कि‍नको नै भेलन्‍हि‍‍। जौं थोड़-थाड़ कि‍छु भेबे केलन्‍हि‍ तँ ओइसँ समस्‍याक समाधान थोड़े भऽ पबैत, भूदानी आन्‍दोलनसँ तँ तेहेन लाभ नहि‍येँ भेल मुदा बसैबला घराड़ीक जमीनक समस्‍या जरूर हल भऽ गेल। तेकर कारण भेल जे एक दि‍स आम जमीन, दोसर लक्ष्‍मीकान्‍त बला, तेसर एक गोटे (गंगाराम/भोला राम मण्‍डल) गंज परहक छला हुनको जमीन छिना गेलन्‍हि‍‍। तैसंग अपनो छेलन्हि‍ आ कि‍छु गोटे कीनबो केलन्‍हि‍। लक्ष्‍मीकान्‍त, रमाकान्‍तक लड़ाइक बीचेमे एकटा दोसर झंझटि ठाढ़ भऽ गेल। छोट-छीन मुद्दा नमहर बनि‍ गेल। ओ एना भेल- सतदेव झा नामक एक गोटे बेरमामे। शुरूमे माने जुआनी अवस्‍थामे अपराधि‍क प्रवृत्ति‍क छला, जे चालीस बरखसँ ऊपरक भेला तखनि गाम छोड़ि‍ कलकत्ता गेला। शुरूमे मोटि‍या सभ संग मोटि‍यागि‍री केलन्‍हि‍। कि‍छु साल पछाति‍ बैट्री (अमेरि‍कन कम्‍पनी, एवरेडी) फैक्‍टरीक चि‍मनीक काज भेलन्‍हि‍‍। वि‍देशी कम्‍पनी रहने नीक दरमाहा भेटलन्‍हि‍। वएह जखनि रि‍टायर कऽ गाम एला तँ कम्‍युनिस्ट पार्टीक संग उलझि‍ नमहर वि‍वाद ठाढ़ कऽ देलन्‍हि‍। भेल ई जे सतदेव झाकेँ बेटा नै भेलन्‍हि‍‍। सिरिफ एकटा बेटी‍ए टा भेल छेलन्‍हि‍ गरीबीक चलैत बेटीक बि‍‍आह अधि‍क उम्रक लड़काक संग केलन्‍हि‍। दू सन्‍तान पछाति‍ जमाए मरि‍ गेलखि‍न। अपनो परि‍वार छोटे रहनि‍। दुनू नाति‍ओ आ बेटीओकेँ अपना ऐठाम-माने बेरमा गाम लऽ अनलन्‍हि‍। अपनो सेवा ि‍नवृत्ति‍ भेला पछाति‍ दुनू परानी कलकत्ता-सँ-गाम आबि‍ गेला। गाम आबि‍ पाँच बीघा खेत कीनलन्‍हि‍। एकटा बोरिंग गरौलन्‍हि‍, एकटा दमकल लेलन्‍हि‍। बेवस्‍था ऐ ढंगसँ शुरू केलन्‍हि‍ जे, जौं समुचि‍त ढंगसँ चलाैल जाइत तँ नीक कि‍सान परि‍वार ठाढ़ होइत, से नै भेलन्‍हि‍‍। खेतक बेवस्‍थाक संग जोड़ा बरद लेलन्‍हि‍, घर बनौलन्‍हि‍। बहुत नीक तँ नै मुदा मजगूत घर जरूर बनौलन्‍हि‍। गौआँक मतभेदक एकटा कारण ईहो भेल जे अपन घराड़ी छोड़ि‍ दोसर घराड़ी कीनि‍ दोसर ठाम घर बनौलन्‍हि‍। जे जमीन कीनि‍ घर बनौलन्‍हि‍ ओ जमीन बि‍का गेल छल। दोसर गोटे कीनने रहथि‍ मुदा रजिस्ट्री नै भेल रहए। सतदेव झाकेँ रजि‍स्ट्री भेलन्‍हि‍‍, जमीन कब्‍जा भेलन्‍हि‍‍, घर बनौलन्‍हि‍। मुदा समाजक मनमे अाबि‍ए गेलन्‍हि‍ जे ई अनुचि‍त भेल। पहुलका कीनि‍ि‍नहार पाछू हटि‍ गेला। कलकत्ता सन शहरमे जि‍नगी बि‍तौनि‍हार सतदेव झा खेती नै कऽ पाबि‍ सकला। दुनू नाति‍ओ बचहने रहनि‍। पछि‍ला (कलकत्ताक) कमाइ सठि‍ गेलन्‍हि‍। मुदा खाइ-पिबैक चसकीक संग जीवन-शैली सेहो खर्चीला बनि‍येँ गेल रहनि‍। खेत बेचब शुरू केलन्‍हि‍। जेठका नाति‍क बि‍आह सेहो करा लेलन्‍हि‍। अदहा-सँ-बेसी खेत जखनि बि‍का गेलन्‍हि‍, तखनि बेटीओ आ दुनू नाति‍ओ झगड़ा करब शुरू केलकनि‍। सतदेव झाकेँ बेटीओ आ नाति‍ओसँ झगड़ा अइले शुरू भेलन्‍हि‍ जे जखनि अपना ऐठाम (बेटीक सासुर आ नाति‍क गाम) सँ चलि‍ एलौं आ एतुको सभटा बेचि‍नहि‍येँ जाइ छथि‍ तखनि हमरा सभकेँ की हएत। अपने दुनू परानी बूढ़ छथि‍, दू-चारि‍ सालमे मरि‍ जेता मुदा हम सभ केतए जाएब? उचि‍त वि‍चार रहि‍तो पारि‍वारि‍क छल तँए दोसर हाथ नै बढ़बए चाहैत। मुदा बेटी-नाति‍क झगड़ासँ सतदेव झाकेँ दूरी बनलन्‍हि‍ आ वि‍रोधी (कम्‍युनिस्ट वि‍रोधी) सँ नजदीकी बनलन्‍हि‍। नाति‍ (प्रमोद झा) सासुर गेल। सासुर रहि‍का ब्‍लौकक भोज-परोर। ओइ इलाकामे जमीनक लड़ाइ झूर-झार चलै छल। सासुर पहुँच प्रमोद झा ससुरकेँ सभ बात कहलखि‍न। संगे लागल ससुर बेरमा एलन्‍हि‍। प्रमोद झाक ससुर गाँजा पिबै छेलथि‍, अखनो छथि‍ए। बेरमा आबि‍ तीनि‍-चारि‍ दि‍न रहला। गजेरीक पार्टी बना लेलन्‍हि‍। तइमे कि‍छु कम्‍युनिस्टो पार्टीक लोक। खूब नीक जकाँ खा-पीब भोजनो बनौलन्‍हि‍ जे आइ सतदेव झा जेतए भेटता तेतए पकड़ि‍ औंठा नि‍शान लऽ लेब। ई गप जगदीश प्रसाद मण्डल सबहक जानकारीमे नै रहनि। पान-सात गोटेक बीचक योजना रहै, सएह भेल। बाधमे पकड़ि‍ पाँचो गोटे पटकि‍ कऽ स्‍टाम्‍पपर नि‍शान लऽ लेलकनि‍। वि‍रोधी (कम्‍युनिस्ट वि‍राधी) केँ मौका हाथ लगलन्‍हि‍। अपन-अपन चालि‍ सभ चालि‍ देलकनि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल सभकेँ मुदालह बना केस कऽ देलनि‍। थानासँ कहि‍यो लाट-घाट नै रहलन्‍हि, थाना खुलि‍ कऽ वि‍रोधीक संग छल। जखने केस होइ छल तखने कोर्टमे हाजि‍र भऽ जमानत करा लइ छला। सिरिफ (३०७ दफा) एकटा केसमे एहेन भेल जे जाबे एकटा मुदालह हाजि‍रा करा जमानत कराबथि-कराबथि‍ तैबीच जप्‍ती-कुर्कीक आदेश करा थाना आबि‍ जब्‍ती-कुर्की कऽ लेलकनि। घरक केबाड़ खोलि‍ लेलकनि, दमकल सीज कऽ लेलकनि। पछाति‍‍ जमानत करेलन्‍हि। पार्टी आन्‍दोलनसँ हटि‍ दोसर दि‍स मोड़ा गेला। सतदेव झाक एगारह कट्ठा जमीन जगदरक भीड़मे। नथुनी सि‍ंहक वि‍चारसँ ओ जमीन एकटा जगदरेबला हाथसँ बि‍क्री भऽ गेल छल। खेतमे धान रहै, धान काटैक झंझटि उठल। बेरमा-जगदरक भीड़ानी भेल। ओही दि‍न नथुनी सि‍ंह अपन दल-बलक संग पाछू हटला। मुदा भीतरे-भीतर गरमाहटि‍ बढ़ल। जगदरक संग दूरीक आनो कारण छल,‍ ओ कारण छ पाँचक दशकमे एक गोटे (जगदरेक) बेरमा एला। संगमे पाछू-पाछू कुत्तो रहनि‍। कुत्ता-कुत्तामे पटका-पटकी भऽ गेल। यत्र-कुत्र गारि‍ कुत्ताबलाकेँ पढ़लखि‍न। बाता-बाती बढ़ि‍ गेल। ओइ समए गरीबीक चलैत बेरमाक बोनि‍हार जगदरमे काजो करै छला आ रीनो-पैंइच करै छला। बाता-बाती होइते जगदरक हँसेरी बेरमा पहुँच गेल। नि‍आरल लड़ाइक योजना होइ छै बि‍नु नि‍आरल लड़ाइ तँ नारेपर होइ छै। बेरमा-जगदरक नारा उठल, जगदरक सभ लोक मारि‍ खा गाम गेला। मुदा प्रश्न तँ मालि‍क-बोनि‍हारक उठल। जेकरा ऐठाम रूपैओ आ धानो कर्जाक अछि‍ ओ सोहाइ लाठी कपारपर मारलक, केना बरदास कि‍यो करत। खूब जमगर आगि‍ उठए गल मुदा ठंढाएल। तैबीच एकटा आरो घटना भेल। घटना भेल जे चनौरा महंथकेँ दरभंगा महंथानामे लड़ाइ उठल। चनौरा महंथक दहि‍न गबैया जगदरक नथुनी सि‍ंह। राय-वि‍चार कऽ दरभंगामे मारि‍ करैक योजना बनौलन्‍हि‍। गेबो केला। कानूनक दायरामे झंझटि रहबे करै; महंथक संग नथुनी सि‍ंह आ नथुनी सि‍ंहक संग जेते जगदर-बेरमाक लंठ सभ रहए ओ सभ, भरि‍ पेट मारि‍ओ खेलक, जहलो गेल। मुदा से ततबे नै भेल? भेल ईहो जे जहलोक भीतर ओहि‍ना कुटनी भेलन्‍हि‍‍।
१९७८ ई.मे पंचायत चुनाव भेल। जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ सीधा मुकाबला भेल। दुइए गोटे उम्‍मीदवार रहथि‍। बहुमत-अल्‍पमतक परि‍चए गामक सभ बुझै छल। एकटा कनीटा उदाहरण- जखनि वि‍रोधी नीक जकाँ ओझरा गेला, तैबीच भोगेन्‍द्र जीक मध्‍यस्थतामे पनचैतीओ मानि‍ लेल गेल। मुदा पंचेक बीच वि‍वाद फँसि‍ जाए। अंतमे ई भेल जे ने कम्‍युनि‍स्ट पार्टीक बहरबैया पंच औता आ ने प्रमुखजी (वि‍न्‍ध्‍यनाथ ठाकुर) क बहरबैया पंच अबैले तैयार रहलखि‍न। मुदा पनचैती तँ पछुआएले अछि‍। जखनि सभ छोड़ि‍ देलन्‍हि‍ तखनि गामेक पंच बनथि‍। जइमे एकटा शर्त्त लागल जे दुनू पक्षक बीच जे नै संबन्‍धि‍त होथि‍ ओ पंच हेता। तकति‍यान भेल तँ एको गोटे शेष नै बँचला। ओहने शेष बँचला जे भीम जकाँ अभि‍मन्‍युक संग रहथि‍न।
पंचायत चुनावसँ पूर्व १९७७ ई.मे दि‍ल्‍लीओ सरकार आ पटनो सरकार बदलि‍ गेल। देशमे एक नव परि‍स्‍थि‍ति‍ पैदा लेलक। बेरमोक कम्‍युनिस्ट पार्टी अनेको लड़ाइ लड़ि‍ चुकल छल। जइसँ गुण-अवगुण बूझि‍ चुकल छल। तँए चौगुणा उत्‍साह रहबे करै। टुटैत सामंती बेवस्‍थाक एकोटा घृणि‍त काज पंचायत चुनावमे शेष नै रहल। एकटा उदाहरण- बहुमत अल्‍पमतमे नामो बदलि‍ देल जाइ छल। जहि‍ना केतौ राक्षसक अर्थ रक्षा केनि‍हार छल, सुरक अर्थ सुरापान करैबला। काज करैमे फल्‍लाँ राक्षसे छी। असगरे लहासकेँ पीठपर लादि‍ असमसान लऽ गेल।
चुनाव घोषणाक वि‍रोधमे मुखि‍यो आ सरपंचोक मामला कोर्ट पहुँचल। सरपंचक मामला निचले कोर्टसँ फड़ि‍या गेल। मुखि‍या चुनावक मामला हाइ-कोर्ट पहुँचल। चुनाव अवै भेल। जहि‍ना ठाकुरक बरि‍आती ठाकुरे-ठाकुर तहि‍ना बि‍नु पंचायती‍क मुखि‍या बि‍ना सभ मुखीए-मुखि‍या। मुखि‍या-सरपंचक काजो तहि‍ना। मात्र गामक पनचैती। सरपंच भेने सेहो बदलि‍ गेल। ओना पार्टीक भीतर कि‍छु दरारि‍ बनि‍ गेल। दरारि‍ ई जे जि‍नका सरपंचक उम्‍मीदवार बनौल गेलन्‍हि‍ हुनके खि‍ला दोसर नोमीनेशन कऽ देलन्‍हि‍। पार्टी अपन ि‍नर्णए आपस करैत चुनाव लड़ल।
गामक वातावरणमे गुमराहट रहए। नीक-नीक अपराधीक गाओं बेरमा। एक ग्रुप छह-छह बरख जेल काटि‍ चुकल छला। ओहो सभ जीवि‍ते छथि‍। जे चुनाव (पंचायत चुनाव) मे बूथपर लाठी हाथे कि‍छु गोटे बैसलो आ कि‍छु गामोमे घुमैत। कसमकस रहने चुनाव शान्तिसँ भेल। मुदा गि‍नती काल एक गोटे (प्रमुखक गि‍नती एजेंट) दस-बारहटा मोहर देल बाइलेट हाँइ-हाँइ कऽ खा गेल। तही बीच पार्टीक एजेंट देखलक आकि हाँइ-हाँइ कऽ पान-सात थापर मुँहमे लगा देलकनि‍। थापर लगि‍ते मुहसँ उगललक।
छह बरख जहल कटलाहा एक गोटे एकटा खस्‍सीक चोरि‍मे पकड़ा गेल। खस्‍सी शि‍वलाल महतोक। चोर-मोट पकड़ाएल। मारि‍-पीट शुरू भऽ गेल। आदति‍ छोड़बै जोकर मारि‍ लगलन्‍हि। संग-संग ईहो भेल जे पकड़ि‍ कऽ थाना पहुँचा देल गेल। तहि‍ना दोसराक संग (दोसर अपराधीक) सेहो भेल। ओना खुदरा-खुदरी झंझटि होइते रहै छल, मुदा से सभ कमल।
पंचायतक वि‍धि‍-वि‍धानक जे कि‍ताब छल सेहो तेहने छल। लोक-सभामे भोगेन्‍द्र जीक प्रस्‍तावकेँ स्‍वीकृति‍ भेटल। गाँधी जीक कल्‍पना आ मगध जनतंत्र वैचारि‍के दुनि‍याँमे छल बेवहारि‍क जमीनपर नै।
तही बीच (१९७७ ई.मे) एकटा मि‍त्र जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ भेटलन्हि। ओ रहथि‍ स्‍व. काली कान्‍त झा, आइ.पी.एस।
बेरमाक बगले पूबमे कछुबी गाम छै। कालीबाबू कछुबीएक। १९६९ इस्‍वीक बैचक आइ.पी.एस। ओ गाम आएल रहथि‍। झंझारपुर बजारक कोनो काज रहनि‍। बेरमा कछुबीक बीच बाधक ‍अड़ि‍पेरि‍यासँ लऽ कऽ पक्की सड़क धरि‍ केतेको रास्‍ता अछि‍। जगदीश प्रसाद मण्‍डलक घरसँ सीधा पूब हुनकर घर छन्‍हि‍। कालीकान्‍त झा असगरे पएरे झंझारपुर जाइत रहथि‍ तँए सोझ-साझ रस्‍ता हि‍आ-हि‍आ बढ़ैत रहथि‍। जखनि बेरमा मुसहरी लग एला तँ रस्‍ता दू-दि‍शि‍या बूझि‍ पड़लन्‍हि‍। दुनू घूमि‍ कऽ आगू मि‍लैत अछि‍ जैठाम सँ झंझारपुरक रास्‍ता सोझ भऽ जाइ छै। मुसहरीक बगलेमे गामक डि‍हवारक स्‍थान। स्‍थान रहने चारू दि‍ससँ लोकक आवाजाही तँए चारू कात रास्‍ता अछि‍। ओइठाम आबि‍ जखनि आगू हि‍औलन्‍हि‍ तँ सोझका पछि‍म मुहेँ बूझि‍ पड़लन्‍हि‍। डि‍हवार स्‍थान जगदीश प्रसाद मण्‍डलक घरक बगलेमे पूबारि‍ भाग अछि‍। ओही रस्‍तासँ आगू बढ़ला। तँ हि‍नकर दरबज्‍जेपर चलि‍ एला। ओना चेहरासँ जगदीश प्रसाद मण्डल ि‍चन्‍हैत रहथिन‍। मुदा एक स्‍कूलमे पढ़ैक कहि‍यो अवसर नै भेटलन्‍हि। तेकर कारण ल, शुरूमे ओ गाममे कि‍छु दि‍न पढ़ि‍ नवानी वि‍द्यालयमे नाओं लि‍खाैलन्‍हि‍ आ जगदीश प्रसाद मण्डल गामक स्‍कूलसँ टपि‍ कछुबीमे अपन प्राइमरीमे नाओं लि‍खेलन्‍हि। अखनि तँ मि‍ड्ल स्‍कूल धरि‍ मि‍लि‍ गेल अछि‍ मुदा ओइ समए मि‍ड्ल स्‍कूल अलग छल। सभ बेवस्‍था अलग छेलै।
मध्‍यमा पास कऽ जखनि धुड़झाड़ संस्‍कृत पढ़ए-लि‍खए आबि‍ गेलन्‍हि‍, पि‍ताकेँ संतोष भऽ गेलन्‍हि‍। तखनि ओ (कालीबाबू) तमुरि‍या हाइ स्‍कूलमे दसमामे नाओं लि‍खौलन्‍हि‍। ओइ समए बि‍नु सर्टि‍ओ-फि‍केटक दसमा धरि‍ एडमीशन होइ छल। दसमा-एगरहमाक मि‍श्रि‍त सि‍लेवस छल। साल भरि‍ पछाति‍ दसमाक परीछा होइ छल जे स्‍कूलेमे होइ छल। नहि‍येँ जकाँ वि‍द्यार्थी फेल करै छला। जेना आन-आन बहुत देशमे अखनो अछि‍। दसमा-एगरहमाक बीच एसेसमेंट प्रथा सेहो छल। दू सए नम्‍बरक होइ छल। जइसँ मैट्रि‍कक बोर्ड परीछामे अस्‍सीए-अस्‍सीए नम्‍बरक वि‍षय होइ छल। असि‍समेंटक नम्‍बर वि‍द्यालयइए अर्थात स्‍कूलेसँ पठाैल जाइ छेलै जे बोर्डक अर्थात् मैट्रि‍कक रि‍जल्‍टमे जोड़ि‍ होइ छल। मुदा एकटा बात बीचमे जरूर छेलै जे बाइस-बाइस नम्‍बर एलापर पास होइ छल। मुदा तहू भीतर एकटा आरो छेलै जे समाज अध्‍ययन दसे नम्‍बरमे पास होइ छल। एकर माने ई नै जे दस नम्‍बर असान भेल। अधि‍कांश वि‍द्यार्थी बीस नम्‍बरक भीतरे रहै छला, गोटि‍-पङरा आगू बढ़ै छला। आर्ट वि‍षय (फेकेल्‍टी) लऽ कऽ नाओं लि‍खौलन्‍हि‍। मुदा साले भरि‍ पछाति‍ अर्थात् दसमाक परीछा स्‍कूले नै आनो-आन स्‍कूलमे चर्चाक पात्र कालीबाबू बनि‍ गेला। कारण भेल जे अखनि धरि‍ हाइ स्‍कूलमे अठमासँ लऽ कऽ बोर्ड धरि‍क परीछामे साइंसक वि‍द्याथीक रि‍जल्‍ट अगुआएल रहै छल। दसमामे फस्‍ट अर्थात् पहि‍ल स्‍थान भेलन्‍हि‍‍। आर्ट वि‍षयमे एकटा धक्का लागल। धक्का ई लागल जे अखनि धरि‍ परीछाक नम्‍बर दइक बेवहार छल ओ दोसर रंगक छल। घुसुकुनि‍याँ कटैत आर्टक नम्‍बर घुसुकै छल, जखनि कि‍ साइंसक वि‍षयमे सए-मे-सए छल। कनीटा उदारहण- जखनि हाइ स्‍कूलक सम्‍बन्‍धमे चर्च भेल तखनि ओ कहलन्‍हि‍-
खा कऽ स्‍कूल वि‍दा होइ काल हाथक तरहत्‍थीपर पाँचटा अंग्रेजी शब्‍द वा एकटा प्रश्नक उत्तर लि‍खि‍ लइ छेलौं आ स्‍कूल पहुँचैत-पहुँचैत रटि‍ लइ छेलौं। जाइओ काल आ अबैओ काल करै छेलौं। स्‍कूल पहुँचिते पहि‍ने कलपर जा बढ़ि‍याँ जकाँ हाथ धोइ लइ छेलौं, तखनि बैसै छेलौं। ओना शि‍क्षा पद्धति‍मे सेहो कि‍छु अन्‍तर अछि‍। रटैक चलनि‍ सभ रंग अछि‍।
प्रथम श्रेणीसँ मैट्रीक पास केलन्‍हि‍। मुदा घरक स्‍थि‍ति‍ ओते नीक नै तँ खराबो नै। कारण जे महापात्र परि‍वारक छला। से जमीनदारीए जकाँ पसरल अछि‍। तहूमे महापात्रक कम जन-संख्‍या रहने अखनो धरि‍ अबादे छन्‍हि‍। ओइ समए सी.एम कौलेज बहुत नीक कौलेज बूझल जाइ छल। नीक वि‍द्यार्थीक एडमि‍शनो होइ छल। १९५९ ई.मे चारि‍टा कौलेज खुजल जइमे जनता कौलेज झंझारपुरो आ सरि‍सो कौलेज सेहो खुजल। मैट्रीक केला पछाति‍ सी.एम. कौलेज नै जा, ओना आर.के. कौलेज सेहो नीक छल, मुदा दुनूक बेवहारि‍क पद्धति‍मे कि‍छु अन्‍तर छल। जैठाम आर.के. कौलेजमे सबहक गुनजाइश छल तैठाम सी.एम. कौलेजमे नै छल। दोसरो कारण छल सी.एम. कौलेज सरकारी बनि‍ चुकल छल। छात्र प्रवेशक सीमा ि‍नर्धारि‍त छल। सी.एम. कौलेजक इच्‍छा रहि‍तो कालीबाबू सरि‍सो कौलेजमे नाओं लि‍खौलन्‍हि‍। कारण भेलन्‍हि‍‍ जे एकठाम दूटा वि‍द्यार्थी पढ़बैक बदलामे रहै-खाइक जोगाड़ लगि‍ गेलन्‍हि‍। परि‍वारक आमदनी ओते खराब नै जइसँ सी.एम.कौलेज नै जा सकै छला मुदा सहयोगक अभाव रहलन्‍हि‍। लि‍टरेचर इंग्‍लीशक संग प्रथम श्रेणीमे आइ.ए. पास केलन्‍हि‍। दरभंगामे रहैक गर लागि‍ गेलन्‍हि‍। अंग्रेजी आनर्सक संग सी.एम. कौलेजमे नाओं लि‍खौलन्‍हि‍। आनर्स ग्रेजुएट भऽ नि‍कलला।
एकटा कनीटा बात- जगदीश प्रसाद मण्डल जइ समैमे जनता कौलेजमे पढ़ैत रहथि तइ समए आनर्सक पढ़ाइ नै होइत रहए। खाली मैथि‍लीमे तीन शि‍क्षक रहथि‍, जइसँ मैथि‍लीमे होइत रहए। जगदीश प्रसाद मण्डल हि‍न्‍दी, राजनीति‍ शास्‍त्रक वि‍द्यार्थी रहथि। प्राइवेटे सँ हि‍न्‍दी आनर्सक तैयारी केलन्‍हि। ओना दू गोटे अर्थात् दूटा शि‍क्षक कौलेजमे रहथि‍ मुदा पढ़ाइ नै होइत रहए। बी.ए.क फार्म धरि जनते कौलेजसँ भरलन्‍हि, परीछा सी.एम. कौलेजमे भेलन्‍हि‍।
कालीकान्‍त झा डि‍हवार स्‍थानक पछवरि‍या रस्‍ता पकड़ने जगदीश प्रसाद मण्‍डलक दरवज्‍जापर आबि‍ गेला। आइ.पी.एस. अफसरक आएब अपनाकेँ सौभाग्‍यशाली बुझलन्‍हि। पकड़ि‍ कऽ दरवज्‍जापर बैसौलन्‍हि‍। पुछलखि‍न‍ तँ कहलखि‍न‍ जे झंझारपुर जाइ छी, काज अछि‍। कहलखिन‍ जे अहाँ असगरे छी, तहूमे पाएरे छी दि‍क्कत हएत। कहलन्‍हि‍ जे कोनो दि‍क्कत नै हएत। फेर कहलन्‍हि‍ जे हमहूँ संग भऽ जाइ छी। कि‍छु गप-सप्‍प करैक मौका सेहो भेटत। मुदा ओ पुलि‍स नजरि‍बला। कहलन्‍हि‍ जे साइकि‍ल दि‍अ घुमैकालमे दऽ देब।
साइकि‍लसँ झंझारपुर गेला। तेना कऽ जि‍नगीक पहि‍ल भेँट दुनू गोटेक बीच भेल छेलन्‍हि‍ ओइ दि‍न ई अंदाजमे नै आएल छेलन्हि जे सम्‍बन्‍ध एते गाढ़ आ जि‍नगी भरि‍ नि‍महतनि। अंदाजमे नै अबैक कारण छेलन्हि जे केतेको पुरान हि‍त-अपेछि‍त टूटि‍ गेल छेलन्‍हि‍ ओना नवको बढ़बो कएलन्‍हि। एकटा उदाहरण- एकटा गामेक संगी छेलखिन, कौलेजमे संगे पढ़ने रहथि। मुदा हुनका जाति‍क सीमा घेरने छेलन्‍हि‍ स्‍टेट बैंकमे हुनका नोकरी भेलन्‍हि‍‍। नीक दरमाहा। अनधुन आमदनी। वि‍चार एते बदलि‍ गेलन्‍हि‍ जे गाम एलापर भेँट-घाँट नै होइ छेलन्‍हि‍ कुसंयोग एहेन भेलन्‍हि‍ जे दसे-बारह बरख पछाति‍ स्‍कूटर एक्‍सीडेंटमे जखमी भेला आ गाम आबि‍ कि‍छु दि‍न पछाति‍ मरि‍ गेला। जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ अखनो दुख होइ छन्‍हि‍ जे मुइला पछाति‍ देखए (जि‍ज्ञासा) नै गेलखिन‍। मुदा जि‍नगीक अनुभवसँ वि‍चार एहेन बनि‍ गेल छेलन्हि, जे दोस्‍त-दुश्‍मनक बीचक दूरीक फलाफल की होइ छै से बूझि‍ गेल छला। कनीटा उदाहरण- एक गोटे नजदीकी रहथिन‍। हुनका ऐठाम बि‍आह रहनि। दि‍न-राति‍ रहला। मुदा हुनका (जि‍नकर काज रहनि) दोस्‍त-दुश्‍मन बुझैक नै रहनि‍। सभ रंगक लोक काजमे लागल छल। एक गोटे जि‍नका बदनाम करैक वि‍चार मनमे रहनि‍, चाहे जे पछि‍ला कोनो कारण होउ, दालि‍मे दोहरा कऽ नून दऽ देलखि‍न। पछाति‍ जखनि दालि‍ नुनगर भऽ गेलै तखनि जगदीश प्रसाद मण्डलक नाओं लगा देलखिन‍। अहि‍ना दोसरठाम भेल। बि‍नु अदहन देने बर्तनमे सुखले दाि‍ल दऽ नाओं लगा देलनि‍। तहूसँ एकबेर भेल जे गामक दुर्गापूजामे कार्यकर्ता छला, नाचक भार भेटलन्‍हि जे नीक नाच हुअए। तइ समए गाम-घरमे नाटक-नौटंकी कम छल आ नाच बेसी अनेको तरहक छल। एक गोटे नाच अनैक भार लऽ लेलन्‍हि‍। बढ़ियाँ नाचक खूब प्रचार भेल। जखनि नाच आएल तँ जेहने नीकक प्रचार भेल रहए तेहने हहासो भेल। मुदा जखने कि‍यो परि‍वारसँ नि‍कलि‍ समाजमे डेग उठबैए तँ ओ ई मानि‍ चलैए जे नमहर काजमे बेसीओ आ भारीओ, दुनू काज होइ छै अपना भरि‍ लोक परि‍यासे करैए, मुदा कि‍छु त्रुटि‍ रहि‍ जाइ छै, तखनि कि‍ कएल जाएत। हँ एते जरूर जे अधि‍क-सँ-अधि‍क काजक सभ पहलूपर नजरि‍ राखक चाही। अहि‍ना कोनो घटनोक होइ छै। कि‍यो बेमार छथि‍ वा कोनो दोसरे कारण छन्‍हि‍, रंग-बि‍रंगक सुझाव लोक दैत अछि‍। नीको रहै छै अधलो रहै छै, तैठाम एहने समस्‍या उठबाक संभावना रहै छै।
स्‍वर्गीय कालीबाबूक पहि‍ल बहाली डी.एस.पी.क रूपमे अगरतला (त्रि‍पुरा)मे भेल रहनि‍। चारि‍ सए रूपैआ महिना दरमाहा। समैयो सस्‍त रहए। अन्‍त तक ई बात बजैत रहला जे सि‍गरेट आ दारू पिबैत छेलौं। करीब पाँच बरख पीलौं। परि‍वारमे मतभेद उभरि‍ गेल रहनि‍। उभरैक कारण स्‍पष्‍टे छल। एक साधारण थाना सि‍पाही दस बीघाक प्‍लॉट कीनि‍, तीनि‍ मंजि‍ला मकान बना, पाँच लाखक बेटीओ बि‍आह कऽ लइए तैसंग समांगो सभकेँ नोकरी लगा लइए तैठाम ई (कालीबाबू) छुच्‍छे हाकि‍म छथि‍। मुदा ओ परि‍वारकेँ बुनि‍यादी ढंगसँ बदलए चाहै छला। अपन खनदानी वृत्ति‍केँ अधला वृत्ति‍ कहै छला। परि‍वार कर्जमे डुमल छल। दि‍यादीक झगड़ा कोर्टमे चलैत छेलन्‍हि‍ ओइ वि‍वादकेँ जेना-तेना कालीबाबू ि‍नपटौलन्‍हि‍। कर्जसँ परि‍वारकेँ मुक्‍त केलन्‍हि‍। पछाति‍ घर बनबैक वि‍चार केलन्‍हि‍। भट्ठा लगा बनौलन्‍हि‍। अपनासँ छोट भाए माझि‍ल भाएकेँ अगरतलेक हाइ-स्‍कूलमे काज धरौलन्‍हि‍।
सालमे एकबेर नि‍श्चि‍त रूपे गाम अबि‍ते छला। मास दि‍न गाममे रहै छला। तइ-बीच तीन-चारि‍ भेँट जगदीश प्रसाद मण्डलसँ भऽ जाइ छेलन्‍हि‍ मुदा मात्र तीन-चारि‍ भेँटमे साल भरि‍क कि‍रि‍या-कलापक की हएत। हुनक अपन रूटि‍ंग छेलन्‍हि‍ काजो-उदेम ठेकना कऽ अबै छला। आठ दि‍न होइत-होइत काज नि‍पटबै छला। पछाति‍ कुटुमारे (सासुर-मात्रि‍क-बहि‍न इत्‍यादि‍) करै छला। मास दि‍न पुरैत-पुरैत काजो नि‍बटि‍ जाइ छेलन्‍हि‍ आ छुट्टीओ बित जाइ छेलन्‍हि‍ काजक दौड़मे काजे गप-सप्‍प करैक मौको दइए। एकटा काजक भार जगदीश प्रसाद मण्‍डलक ऊपर रखै छला आ समांगो सभकेँ लगबै छला। सम्‍बन्‍ध बढ़लन्‍हि। एनाइ-गेनाइक संग खेनाइ-पीनाइ सेहो बढ़ि‍ गेलन्‍हि।
हाइ स्‍कूलमे फस्‍ट करैमे भूगोलक योगदान बेसी छेलन्‍हि‍ एक दू नम्‍बर कम होइ छेलन्‍हि‍ पूर्वाचलक ि‍त्रपुरा, मणीपुर, मि‍जोरम, अरूणाचल, नागोलैंड इत्‍यादि‍क नीक अध्‍ययन छेलन्‍हि‍ ओना धार्मिक प्रवृत्ति‍ दि‍स बढ़ला। पूजा-पाठ दि‍स बढ़ि‍ गेला। डी.एस.पी.-सँ-एस.पी. भेला पछाति‍ अपन बदली ट्रेंनि‍ग कौलेजमे करा लेलन्‍हि‍। ता एस.पी. ओहीमे रहला। तीन-चारि‍ साल पछाति‍ (अपेछा भेलापर) जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ त्रि‍पुरा अबैले कहए लगला। मुदा जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ दोहरी ओझरी लागल रहनि। परि‍वारसँ लऽ कऽ मोकदमाक खर्च धरि‍क। ने कोट-कचहरी अबै-जाइसँ छुट्टी आ ने दोसर दि‍स जाइ-अबैक छुट्टी।
जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ १९९८ ई. धरि‍ अबैत-अबैत पूर्वांचल देखैक एते जि‍ज्ञासा बढ़ि‍ गेलन्हि जे अपनाकेँ नै सम्‍हारि‍ पेलन्हि। ओना समैक पलखति‍ भेट गेलन्‍हि आ से भेटलन्‍हि दुर्गापूजाक जि‍म्‍मासँ अलग भेलापर। दोसर कारण ईहो भेलन्‍हि‍ जे पचासो सँ ऊपर मोकदमा नि‍वटि‍ गेल छेलन्हि जइसँ काेट-कचहरीक आवाजाही सेहो कमि‍ गेलन्‍हि। दूटा सेशन केस (३०७ आ ४३६ अर्थात् मृत्‍युक प्रयास आ अगि‍लग्‍गी।) मात्र बचि‍ गेल छेलन्‍हि‍ तहूमे ४३६ (अगि‍लग्‍गी) केस हराइए गेलै। हरा ई गेलै जे झंझारपुर-मधुबनीक बीच जे कोर्टक बदला-बदली भेलै ओइमे ई केस हरा गेलै। ओना केते गोटे मुहेँ सुनने रहथि जे कोटसँ केसक फाइलो गाइब होइ छै। आ ईहो सुनने रहथि जे केशो हरा जाइ छै। ओना दुवि‍धा रहबे करन्हि। जइसँ खुशीओ होइन्हि आ चि‍न्‍तो। दोसर ३०७ (एटेम्‍प टू मर्डर) रहन्हि ओइमे तँ सजा भऽ गेल रहनि मुदा खुशी ई रहन्हि जे जेते सजाए कानूनी दौड़मे हेबाक चाहैत रहए से नै भेल रहै, तँए मजगूतो डोरी भत्ता तोड़ि‍-तोड़ि टूटि‍ जाइ छै, लाभ-हानि‍ मोकदमासँ (३०७सँ) जे भेल होन्हि मुदा एकटा अनुभव जरूर भेलन्हि जे भ्रष्‍ट न्‍यायालयक कुरसी केना डोलैत रहै छै। ओना कोट-कचहरीसँ नि‍सचि‍नती जकाँ जरूर भेला। मुदा चि‍न्‍ता तँ रहबे करन्हि। हजार देवी-देवतासँ जहि‍ना एक जगदम्‍बा तगतगरि‍, तहि‍ना दुनू केस रहन्हि। एक दि‍न जखनि सभ केसकेँ मन पाड़ि‍ आइ.पी.सी.सँ मि‍लेलन्हि तँ बूझि‍ पड़लन्हि जे जौं शुरूहे सँ सजाए होइत अबैत रहितन्हि तँ भरि‍सक सभ दि‍न जहलेमे अगि‍ला केसक फैसला सुनि‍तथि। मुदा केहेनो फड़ल आमक गाछ किए ने हुअए मुदा पकलापर बा बि‍हाड़ि‍मे हहरि‍ एक्की-दुक्की गि‍नतीमे चलि‍ अबै तहि‍ना भेल रहन्हि। भीम जखनि अभि‍मन्‍युकेँ सातम फाटक तोड़ैक भार लऽ लेलन्‍हि‍ तेहने मनमे उठलन्‍हि। फेर ठमकल सभ केसक सजाए जोड़लन्हि तँ १०७ बरख पुरैत रहन्हि। जि‍नगी दि‍स तकलन्‍हि तँ बूझि‍ पड़लन्हि जे सए बर्खक काज तँ पुरि‍ए गेलन्हि। जौं नै केने रहि‍तथि तँ दोखी केना भेला? साउनक साँप जकाँ केचुआ छोड़ैक मौसम देखि‍ जि‍नगी बदलैक वि‍चार केलन्‍हि। पछि‍ला जि‍नगी तँ अगि‍ला जि‍नगीक सोंगर बनि‍ गेल छेलन्‍हि‍ साहि‍त्‍य-दि‍शामे बढ़ैक वि‍चार उठलन्‍हि। मुदा साहि‍त्‍यक वि‍द्यार्थी तँ रहि‍ चुकल छला, सूर-पता तँ बूि‍झ चुकल छला। टेबि‍या-टेबि‍या कि‍छु साहि‍त्‍यकारक साहि‍त्‍य पढ़ए लगला, मुदा मन फेर ठमकि‍ गेलन्‍हि। मन ठमकि‍ गेलन्‍हि ई जे कि‍ताब बात जौं आँखि‍क देखल हुअए ओ बेसी नीक होइए। कि‍ताब कीनैक खर्चक कटौती कऽ घूमैक वि‍चार केलन्‍हि। देशक केरल, कर्नाटक, कश्‍मीर छोड़ि‍ सभ राज्‍य देखलन्‍हि। मुदा जून २०१२ ई.मे केरलक धरतीपर कोच्चिमे जखनि “गामक जिनकी” लघुकथा संग्रह लेल टैगोर साहि‍त्‍य पुरस्‍कार प्राप्‍त भेलन्‍हि‍ तँ केरल सेहो घुमि लेलन्‍हि। १९५७ ई.मे केरलमे वामपंथी सरकार बनल छल। देशक ओ राज्‍य जैठाम शत-प्रति‍शत पढ़ल-लि‍खल छथि‍। खुशी भेलन्‍हि‍।
अखनि धरि‍ भूगोल एतबे बुझै छला जे देशक पूर्वी भाग असाम छी। आन-आन राज्‍य जे बनल ओ पछाति‍ओ बनल आ चर्चो संक्षेपे छल। हायर सेकेण्‍ड्री धरि‍ भूगोल पढ़ने छला। पछाति‍ नहि‍येँ पढ़लन्‍हि। तहूमे कि‍छु घटबीए भऽ गेलन्‍हि, घटबीओ स्‍वाभावि‍के भेलन्‍हि‍। स्‍वाभावि‍क ई जे जहि‍ना एम.ए. पास, हाइ स्‍कूलक शि‍क्षक बनि‍, हाइ स्‍कूल पास मि‍ड्ल स्‍कूल भेलोपर बरदास कइए लइ छथि‍ तहि‍ना जगदीश प्रसाद मण्‍डलो केलन्‍हि।
आसीन मास, दुर्गापूजाक समए। जगदीश प्रसाद मण्डल एटलस नि‍कालि‍ अजमबए लगला। घरसँ बि‍राटनगर पहुँच जेता, बि‍राट नगरसँ सि‍लीगुड़ी। ओतौ रहैक ठौर छन्हि, ओतए सँ असाम आ गौहाटीसँ त्रि‍पुरा। मुदा दुनूमे बहुत अंतर भेल। गौहाटीसँ अगरतलाक बस चारि‍ बजे अपराहन जे खुजलन्‍हि ओ दोसर दि‍न डेढ़ बजे अगरतला पहुँचल। जहि‍ना भेड़ी जेरमे हूड़ार चलि‍ अबै तहि‍ना बससँ उतरलापर हि‍नका बूझि पड़लन्‍हि। भाषाक दूरी, जहि‍ना हि‍न्‍दी जननि‍हार तहि‍ना अंग्रेजी। बस धरि‍ तँ हि‍न्‍दीसँ काज चलि‍ चुकल छेलन्हि, बससँ उतरि‍ते, भुखाएल रहबे करथि, पहि‍ने हाेटलमे जा खेलन्‍हि। मुदा एकटा स्‍पष्‍ट अंतर ई बूझि‍ पड़लन्‍हि जे जे सस्‍त खेनाइ सि‍लीगुड़ीमे भेटलन्‍हि ओ आगू केतौ ने भेटलन्‍हि। कनीटा उदाहरण- बरपेटा असाम राति‍क एक बजे बस एकटा होटलक आगूमे लागि‍ गेल, अकड़ल यात्री सभ उतरि‍ होटल पहुँचल। हॉल जकाँ होटल जइमे तीन बसक यात्रीक बेवस्‍था। चारि‍टा रोटी-तरकारीक दाम बीस रूपैआ लेलकनि। मुदा देखलन्‍हि जे एक प्‍लेट माछ वा मांसबला रहै तँ ओकरा सभसँ एक-एक सए रूपैआ लेलकै जे सि‍लीगुड़ीमे दू रूपैआ पचास पाइमे खुअबैत रहए। होटलसँ नि‍कलि‍ थानापर गेला। कि‍यो हि‍न्‍दी बुझनि‍हार नै। कालीबाबूक नाआें कहि‍ते एकटा सि‍पाही डेरापर पहुँचा देलकनि
करीब अढ़ाइ बजे कालीबाबूक ऐठाम जगदीश प्रसाद मण्डल पहुँचला। नीक फुलवाड़ी, आठ कोठरीक नीक डेरा, होम गार्डक ड्यूटी। पहि‍ने हुनकर पत्नी देखलखिन कारणो छेलै जे ओ रोडे दि‍सक कोठरीमे रहथि‍, खि‍ड़की खोलि‍ बाहर आबि‍ गेट खोलि‍ आगू बढ़ि‍ कालीबाबूकेँ कहलखिन, ओ डेराक सभसँ दछि‍नवरि‍या कोठरीमे भुँइयेँपर शतरंजी बि‍छा पड़ल रहथि‍। औगताएले उठि‍ आबि‍ कऽ एकटा कोठरी देखा कहलखिन,‍ झोड़ा रखि‍ दियौ। बाथ रूम देखबैत कहलखिन,‍ गाड़ीक झमाड़ल छी पहि‍ने नहा लि‍अ। जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ अपनो सएह मन रहनि। सएह केलन्‍हि। नहा कऽ कोठरीमे अबि‍ते कहलखिन,‍ खेला पछाति‍ अराम करब। जगदीश प्रसाद मण्डल कहलखिन‍-
भूख लागल छलए, बसे स्‍टेण्‍डमे खा लेलौं।
साँझू पहर चाह-ताह पीब दुनू गोटे टहलए वि‍दा भेला। कालीबाबू दोबरा कऽ लुंगी जकाँ धोती आ बि‍ना गंजीएक कुर्ता पहि‍रने रहथि। कारणो छेलै, मौसम। डेरासँ बगलि‍ते पछवरि‍या डेराक सम्‍बन्‍धमे कहए लगलखिन्ह। ओ डेरा डी.एम.क छल जे मणीपुरी छला। १९८४ बैचक आइ.ए.एस। डेराक आगूमे ठाढ़ देखि‍ ओ नि‍कलि‍ कऽ एला। अबि‍ते कालीबाबू बंगलामे कहलखि‍न जे बंधु छथि‍। तखनि ओ हि‍न्‍दीमे गप-सप्‍प केलखिन। आगू बढ़ि‍ते आइ.जी.क डेरा। आइ.जी.क बेटा संग कालीबाबूक बेटाकेँ दोस्‍ती। डेरा लग पहुँचिते दुनू गोटे हूल दऽ डेरासँ नि‍कलल। ओ बंगाली छला। अगरतला बंगला भाषी। पहि‍ल दि‍न १९६० ई. धरि‍क अपन चरि‍कोसीक वि‍द्यार्थीक चर्च भेल छल। दोसर दि‍न सबेरे चाहे पिबैकाल ओ कहलखिनजे आइ ऑफि‍स होइत दछि‍नमे बूढ़ी काली मंदि‍र अछि‍ तैठाम तक चलब। सबेरे दस बजे संगे दुनू गोटे ऑफि‍स गेला। ऑफि‍स सभ नमहर-नमहर रहै मुदा अपन आॅफि‍स छोटेटा छेलन्‍हि‍ एकटा अलमारी, दूटा कुर्सी, एकटा टेबुल। सोझे अपना कोठरीमे पहुँचला। पहुँचिते एकटा बंगाली प्‍यून (बी.ए. पास धुड़झाड़ बजैबला) पहुँचलन्‍हि‍। ऑफि‍सक सम्‍बन्‍धमे पुछलखि‍न। सभ बात सुनि‍ कहलखि‍न-
“चाह पि‍आउ।”
चाह पी दुनू गोटे वि‍दा भेला। बाजारसँ नि‍कलि‍ते चाहक खेती दि‍स बढ़ला। सड़कक दुनू कात पहाड़ी जमीन छै। भरि‍-भरि‍ छातीक गाछ। ओइमे अधि‍क महि‍ला पीठपर बोको लदने चाह-पत्ती तोड़ै छेली। चाहक गप-सप्‍प चलबैत कहलखिनजे हालेमे ग्रीन टी कऽ कऽ नव ि‍कस्‍म आएल अछि‍, ओना खेती बहुत अधि‍क नै भेल अछि‍ मुदा दुनि‍याँक बजारमे सभसँ बेसी मांग अछि‍। कीमतो सभसँ ऊपर छै। कनि‍येँ आगू बढ़लापर रबड़क गाछ देखलन्‍हि। पतियानी लगा रोपल। गाछक आकारसँ बूझि‍ पड़लन्‍हि जे पनरह-बीस बर्खक गाछ हएत। बहुत भारी नै। छाती भरि‍ ऊपरमे खोधल, जइमे सँ लस्‍सा (दूध) नि‍कलैत। सभ दि‍न भि‍नसरू पहर ओइ दूधकेँ समेटि‍-समेटि‍ लऽ कऽ रबड़ बनबैत।
दुनू गोटे करीब बारह बजे बूढ़ी काली स्‍थान पहुँचला। छोट-छीन जगह। कमे दोकान-दौरी। सए बरखसँ ऊपरक मंदि‍र बूझि‍ पड़लन्‍हि। सुर्खीपर जोड़ल मकान फाटि‍-फुटि‍, झड़ि‍-झूड़ि‍ गेल छेलै। मूर्ति देखि‍ नि‍कलि‍ गेला। पुरान कलाक मूर्ति। मुदा कालीकान्‍त झाकेँ बहुत रास मंत्र सभ पढ़बाक छेलन्हि तँए ओ मंदि‍रमे रहला। जगदीश प्रसाद मण्‍डल बाहर नि‍कलि‍ गाछ सभ ि‍हयेलन्‍हि तँ कैम्‍पसेमे एकठाम आम, कटहर, गमहारि‍, शीशो-जामुनक गाछ देखि‍लन्‍हि। अखनि धरि‍ गौहाटीक उपरान्‍त एहेन पचमेल गाछ केतौ ने देखने छला। तँए कि‍छु बात मनमे उठलन्‍हि। अंतमे मन-मानि‍ गेलन्‍हि जे मि‍थि‍लाक कि‍यो पुजेगरी रहल हेता। जगदीश प्रसाद मण्डल पुजेगरीसँ कि‍छु काल गप-सप्‍प करि‍ते रहथि आकि‍ ताबे ओहो नि‍कलला। नि‍कलि‍ते कहलखिन जे कहने जे छेलौं कमल सागर देखब, से यएह छी। हि‍आ कऽ देखलन्‍हि तँ बूझि‍ पड़लन्‍हि जे बेरमाक बड़की पोखरि‍सँ छोटे छै‍। पंचो ठीके-ठाक बूझि‍ पड़लन्‍हि। कि‍एक तँ बेरमा बड़की पोखरि‍सँ ओहो परि‍चि‍ते। तहूमे बेरमा बड़की पोखरि‍ आ कछुबी बड़की पोखरि‍क तुलना तँ दुनू गामक लोक करबे करैत रहैए। तइमे बेरमा बीस, तँ बड़कीओ पोखरि‍ बीस। जगदीश प्रसाद मण्डल कहलखिन‍-
एकर नाओं किए सागर पड़ल?”
भूगोलक वि‍द्यार्थी रहने ठमकि‍ गेला। ठमकि‍ते दोहरा देलखिनजे बेरमा बड़की पोखरि‍मे एक महारक लोक दोसर महारबलाकेँ नै चि‍न्‍है छै, से तँ देखै छि‍ऐ दस कट्ठा पेट हेतै। पोखरि‍क पछबरि‍या महारपर बंगला देसक सीमा गाड़ल। बाँसक खुट्टा। तखने थोड़े हटि‍ चटगाम बला रेलगाड़ी पास केलकै। जगदीश प्रसाद मण्डल वि‍दा होइसँ पहि‍ने मि‍ठाइ खा पानि‍ पीब चाह पिलन्‍हि। ओना कालीकान्‍त झा चीनि‍या बेमारीसँ ग्रसि‍त, मुदा तैयो प्रसाद जकाँ खेलन्‍हि‍। दि‍नगरे डेरापर पहुँचै गेला।
अखनि धरि‍ कालीबाबूक परि‍वार वैष्‍णव बनि‍ गेल छेलन्‍हि‍ शुद्ध शकाहारी परि‍वार। चारि‍ बजे भोरेसँ नाचि‍-नाचि‍ भजन करए लगै छला जे पड़ोसि‍या, मणीपुरबला कहबो करैत छेलन्‍हि‍ ईटा सि‍मटीक छहरदेवाली नै रहने झलफले झाझनक टाट। हुनका देखथिजे व्‍यायाम बहुत करै छला। मांसक प्रि‍य। अपने ओ मि‍थि‍लांचलेक लोक जकाँ (शरीरसँ) रहथि‍ मुदा पत्नी पहाड़नी जकाँ छोटे कदक। दुर्गापूजाक समए रहबे करै, बगले पूवारि‍ कात, करीब दू बीघा पूब पूजा होइ छल। अपन-अपन परि‍वारक संग अफसर सभ देखै छला। अपना सभ ऐठाम जकाँ दस दि‍नक पूजा नै। परीबसँ शुरू नै भऽ सातम दि‍नसँ शुरू होइत अछि‍। मुदा मि‍थि‍लांचलसँ बहुत बेसी होइत अछि‍। कालीबाबू कहलखिनजे ऐठाम त्रि‍पुरो आ बंगलो देशमे काली पूजा सभ करैत अछि‍। असामसँ उत्तर-पूब लऽ कऽ दछि‍न धरि‍ मेघालय, त्रि‍पुरा, मि‍जोरम, मणि‍पुर, अरूणाचल, नागालैंड राज्‍य अछि‍। ट्रेनक रास्‍ता थोड़ेक आगू धरि‍। मुख्‍य सवारी बस-ट्रक छी। जंगल-पहाड़सँ भरल। हजारो कि‍सि‍मक गाछ-बिरिछ। उपजाऊ जमीन कम। ओना जैठाम रंग-रंगक गाछ-बिरिछ अछि‍ तैठाम खाइबला फल सेहो हेबे करतै। ढकि‍या साग बाध-बोनक घास जकाँ उपजल। ओना गेलापर कहि‍ देलखिन जे अपना ऐठामसँ जे भि‍न्न अछि‍ ओ देखबो करब आ खेबो करब। एक तँ ओहि‍ना ओ (कालीबाबू) तेते भँजि‍आह अपने जे सभ ठेकनौने रहथिन‍। तुलनात्‍मक दृष्‍टि‍सँ ओइ इलाका (त्रि‍पुरा आदि‍) मे अपना सभसँ बेसी बर्खा होइ छै जइसँ अपने सबहक चौरी खेत जकाँ अधि‍कांस धानक कटनी पानि‍एमे होइत अछि‍। जइसँ अपना सभ जकाँ कति‍का खेती कम लगै छै। अपना ऐठाम काति‍क नीक मास अइले बूझल जाइत अछि‍ जे अन्नक एक मौसम बनैत अछि‍। तैसंग तीमन-तरकारी, फल-फलहरीक सेहो बनैत अछि‍। मोटामोटी यएह जेते कि‍सि‍मक खेती कातिक‍मे होइत अछि‍, ओते ने आन कोनो मौसममे। बि‍लंबसँ खेतक पानि‍ सूखने कि‍छु तेलहन, पटुआ आ धानक खेती होइत अछि‍। त्रि‍पुराक करीब साठि‍-सत्तरि‍ प्रति‍शत जंगल-झाड़, पहाड़सँ घेरल अछि‍। तीस-चालि‍स प्रति‍शतक जमीन उपजाउ। धान मुख्‍य फसि‍ल छी। जइ तरहक सम्‍पदा इलाकामे छै, ि‍वकास नै भेल अछि‍। जनमानसँ धोखा अखनो कएल जा रहल अछि‍। त्रि‍पुराक आदि‍वासी समुदायकेँ एते महगाइक सामना करए पड़ि‍ रहल छै, जे बि‍सवास नै कएल जा सकैए। ओना वि‍देशी संस्‍था सभ शि‍क्षाक एहेन ढर्रा धड़ा देने अछि‍ जे रेलक वि‍कास नै होउ। हँ ई बात जरूर अछि‍ जे अपना सभ जकाँ रेलवे लाइन बैसबैमे असान नै छै, पहाड़ी क्षेत्र रहने महग अछि‍। अोना अपनो ऐठाम कि‍छु राजनीति‍क दल ओहनो छथि‍ जे सड़क-पुल ि‍नर्माण, नहर-छहर ि‍नर्माणमे मशीनक प्रयोग नै होउ। ट्रेक्‍टर माटि‍ नै उघए। लोके उघत आ बनौत। हुनका सभकेँ देखए पड़तन्‍हि‍ जे गाममे सिरिफ गि‍रहस्‍तीकेँ समुचि‍त बनौल जाए तइ लेल केनि‍हार (श्रमि‍क) नै भेटतनि‍। तैठाम नहर-छहर, बान्‍ह-सड़क बाधि‍त कएल जाए, ई केते उचि‍त भेल। पशुपालन नहि‍येँ जकाँ ओइ इलाकामे छैक, तेकर अर्थ ई नै जे से केनइ‍ अछि‍ आकि‍ पशु छइहे नै। जंगलमे ओहेन-ओहेन पशुक भरमार अछि‍ जेकरा आगू अपना सबहक गाए-महि‍ंसक मूल्‍य फीका पड़ि‍ जाएत। तहि‍ना गाछो-बिरिछक हाल अछि‍। सुन्‍दरवन इलाकामे हजारक कोन बात, लाखक कोन बात जे करोड़-करोड़ रूपैआक मूल्‍यक गाछ सभ अछि‍। बाँसक तँ चर्चे नै। खि‍स्‍सा जे फल्‍लाँ खलीफा बाँसे उखाड़ि‍ कऽ दतमनि‍ करै छला, से प्रत्‍यक्ष भेलन्‍हि‍। ओहनो बाँसक बोन सभ अछि‍ जहि‍ना मि‍थि‍लांचलमे जेहेन बाँसक कड़ची होइए। एकटाकेँ काटि‍ कऽ दतमनि‍ केलन्‍हि। एकर माने ई नै भेल जे एहेने बाँस ओइ इलाकामे होइ छै। बाँसक दर्जनो कि‍स्‍म। कड़चीसँ लऽ कऽ ओहनो-ओहनो बाँस सभ अछि‍ जे अपना ऐठामक सँ डेढ़ि‍या-दोबर मोट अछि‍।
बि‍नु माटि‍क खेती पहाड़पर होइ छै। झूम सि‍स्‍टम कहल जाइ छै। छोट-छोट किआरी बना ओइमे उगल घास-फूस, बोन-झाड़ काटि‍ आगि‍ लगा जरा देलक आ खेती केलक। ई तीन साल पछाति‍ छोड़ि‍ दोसर खेत बनौलक। बंगला देशक लोक बहुत गरीब छथि‍। तेकर कारणो अछि‍, एक तँ अपने सभ जकाँ १९४७ ई.सँ पूर्व छला। आजादीक संग बँटा कऽ पाकि‍स्‍तानक हाथ पड़ि‍ गेल। दुनूक बीच अनेको रंगक वि‍षमता अछि‍; भाषा, बेवहार, खेती इत्‍यादि‍क। सत्ता पाकि‍स्‍तानक हाथ पड़ल, पूर्वी बंगाल पछुआ गेल। एक तँ अहुना समुद्री इलाकाक देश, समुद्री-तूफानसँ बेसी बेरबादी होइत अछि‍ तैपर शासनक वि‍परीतता, आरो धकि‍या देलक। एक तँ त्रि‍पुरोक आर्थिक-स्‍थि‍ति‍ ओते सुदृढ़ नहि‍येँ अछि‍, मुदा सरकारी अनुदान भरपूर भेटै छै। ई बात अलग जे सरकारी अनुदानक सही उपयोग नै भऽ बेसी लूटाइते छै। मुदा तैयो कि‍छु उद्योग-धंधा छोट पैमानापर चलि‍ते अछि‍। जूटक एकटा कारखानाक संग लघु उद्योगक रूपमे बाँसक छत्ताक बेंट (डंटा), बाँसक बनल आरो-आरो वस्‍तु बनैत अछि‍। अगरतल्‍लाक बजारो तेते नमहर तँ नहि‍येँ अछि‍। अल्मुनि‍या बर्तन सेहो बनैत अछि‍। बंगला देशक हजारो श्रमि‍क अगरतलामे रि‍क्शो चलबैत अछि‍ आ मजदूरीओ करैत अछि‍। दुनूक बीच बीजाक (पासपोर्टक) बेवस्‍था प्रायोगिक स्तरपर नै छै। सभदिन बंगला देशक श्रमि‍क भि‍नसरे अगरतलामे प्रवेश करैत अछि‍ आ साँझू पहर घूमि‍ जाइत अछि‍। सीमापर अबि‍तो काल आ जाइतो काल गि‍नती कऽ लेल जाइ छै वा नै से नै जानि। जगदीश प्रसाद मण्डल जखनि सीमाक चौकी देखए गेला, तखनि मध्‍य प्रदेशक सि‍पाही ड्यूटीमे छला। हि‍न्‍दी भाषी, तँए कि‍छु गप-सप्‍प भेलन्‍हि‍। पुछलखिन तँ कहलकनि‍ जे सभ दि‍न भि‍नसर ६ बजेसँ आठ बजे तक ई सभ (बंगलादेशी) प्रवेश करैए, सभकेँ गनि‍ कऽ लइ छि‍ऐ आ वापसी काल ५ बजेसँ सात बजे सेहो गनि‍ लइ छि‍ऐ!
भाषाक दृष्‍टि‍सँ त्रि‍पुरामे अंग्रेजी, ककवार्क, बंगला आ मणि‍पुरी चलैत अछि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल जइ समए गेल रहथि (१९९८) ओइ समए कालीबाबू डी.आइ.जी. (होमगार्ड) रहथि‍। काजो हल्‍लुके रहनि‍। अपनो जहि‍ना झड़-झंझटिसँ कात रहए चाहै छला तहि‍ना छेलन्‍हि‍ जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ चारि‍ दि‍न जखनि पहुँचना भेलन्‍हि‍ आकि‍ बदली भऽ गेलन्‍हि‍। डी.आइ.जी. (प्रशासन) बना उत्तरी त्रि‍पुरा बदली कऽदेलकनि‍। पाँचम दि‍न अपनो सभ परि‍वार आ जगदीश प्रसाद मण्डल कैला शहर लेल वि‍दा भेला। दस बजे छहटा फोर्सक संग वि‍दा भेला। अगरतला पच्‍छि‍मी त्रि‍पुरामे पड़ैत अछि‍। बंगलादेशसँ सटले। दछि‍नी त्रि‍पुरामे उग्रवादी उपद्रव अधि‍क छल तँए नै घूमि‍ पेला। ओना जाइ काल बेसी राति‍एकेँ पास केने रहथि तँए बेसी नै देखि‍ पेला मुदा अगरतलासँ कैला शहर अबैमे देखैक बेसी समए भेटलन्‍हि। दस बजेमे जे वि‍दा भेला अगरतलासँ से साढ़े चारि‍ बजे कैला शहर पहुँचला। बीचमे तीन ठाम, पनरह-बीस मि‍नट कऽ कऽ रूकबो केला। नव जगहपर सभ नबे रहथि तँए दू दि‍न घुमै-फिरैक कोनो कार्यक्रम नै बनलन्‍हि। तेसर दि‍नसँ घुमब-फि‍रब फेर शुरू भेलन्‍हि‍। आसीन मास रहने बाधमे धानोक फसल रहए। ओना ऊँचगर जमीन सेहो तेलहन आ अल्‍लू लेल तैयारी चलैत रहए। जंगल-पहाड़क क्षेत्र छीहे अपना ऐठामसँ भि‍न्न गाछ-बिरिछ देखथि। ओना आमक गाछ सेहो अछि‍। मुदा अपना सबहक आमसँ भि‍न्न अछि‍। ओइठामक आम अपना सभ जकाँ पकलापर नै खाएल जाइत अछि‍। जखने आम पकैपर होइत आकि ओइमे किड़ी फड़ि‍ जाइत अछि‍ जे गुद्दाकेँ भुर-भूरा बना दइत, जे खाइ जोकर नै रहि‍ पबैत अछि‍। त्रि‍पुराक प्रमुख स्‍थानमे उनीकुटी सेहो अछि‍। उनीकुटीक कार्यक्रम बनलन्‍हि। उनीकुटीक सम्‍बन्‍धमे कहल जाइत अछि‍ जे जखनि द्वापर जुगक अन्‍त हुअ लगल आ कलयुगक आवाहन हुअ लगल तखनि देवता सभ सोचलन्‍हि‍ जे कलयुग बहुत खराब जुग आबि‍ रहल अछि‍। मान-मर्यादा, इज्‍जत-आवरू बँचब कठि‍न अछि‍। से नै तँ धरती छोड़ि‍ समुद्रे बास करब नीक हएत। उनक अर्थ एक होइत अछि‍। जहि‍ना अपना सभ उनचालीस, उन्नैस, उनतीस, उनहतरि‍ इत्‍यादि‍ कहै छि‍ऐ, जेकर अर्थ होइत चालीसमे एक कम, बीसमे एक कम इत्‍यादि‍ तहि‍ना उनकुटि‍क करोड़मे एक कम। स्‍थानक नाअों सुनि‍ मन खूब खुशी भेलन्‍हि‍। खुशीक कारण ईहो रहै जे कालीबाबू तेहेन ढंगसँ नाचि‍-नाचि‍ कथा सुनौलखिन‍ जे आरो जि‍ज्ञासा बढ़ि‍ गेल रहनि। तैपर सँ अखनि धरि‍ चौरासीए लाखक नाआें सुनने छला, आइ तँ करोड़ देखैक मौका भेटलन्‍हि‍। लाभ ईहो जे दोसर स्‍थान नहि‍योँ जेता तैयो तँ फल भेटबे करतनि। राता-राती सभ देवता पड़ा कऽ समुद्र दि‍सक रस्‍ता धेलन्‍हि‍। पएरे रहथि‍। जाइत-जाइत त्रि‍पुरा (उनीकुटि‍-माताहारी) पहुँचैत-पहुँचैत भोर भऽ जाइ गेलन्‍हि। महि‍ंसबार सभ महिंस खोलि‍-खोलि‍ चरबए वि‍दा भेल रहए। सभ देवता सोचलन्‍हि‍ जे दि‍न-देखार पड़ाएब नीक हएत, सभ कि‍यो एकेठाम डेरा खसौलन्‍हि‍। ओहए स्‍थान उनीकुटी छी। नमहर क्षेत्रमे स्‍थान पसरल अछि‍। नमहर-नमहर पहाड़, गाछ-बिरिछ, बोन-झाड़सँ भरल। पहाड़पर सँ झरना झहरैत। मनुखसँ पूर्वक जे जीव-जन्‍तु अछि‍ वएह सभ देवी-देवता। पहाड़ी भूमि‍ मुदा रंग-रंगक पाथर सभक अछि‍। बाल-पाथर काँच पत्‍थरसँ सक्कत जुआएल पत्‍थर धरि‍क स्‍थान। ओहनो पत्‍थर जे हाथसँ टूटि‍ जाइत अछि‍। आ ओहनो पत्‍थर जे खूब सक्कत अछि‍। खाइओबला फलक आ केरोक बोन अछि‍। बीचमे दोकान-दौड़ी। ओ बाहरे अछि‍। जैठाम पहाड़पर सँ झरनाक पानि‍ झहरैत अछि‍ तैठाम द्वापर युगक अर्जुन-कृष्‍णक रथक चि‍त्र बनौल अछि जे स्‍थानक मुख्‍य बि‍न्‍दु छी। पूर्वांचल (असाम, मेघालय, मणि‍पुर, मि‍जोरम, त्रि‍पुरा, अरूणाचल, नागालैंड आ सि‍क्कि‍म) मि‍ला अपने-आपमे एक देश छी। जंगल, पहाड़, झील, नदी घाटीक समूह। भाषाक दृष्‍टि‍सँ सेहो बहुभाषी अछि‍। अपन-अपन क्षेत्रक भाषा सेहो छै। मोटा-मोटी बंगला, अंग्रेजी, हि‍न्‍दी, खासी, गारो, ककवार्क, मणि‍पुरी, मि‍जो, आओ, कोंयक, अंगामी, सेमा, लोथा, मोंपा, अका मि‍जू, शर्दुकमेन, नि‍शि‍, अपतनी, हि‍लमि‍दि‍, तगि‍न, अदी, इदु, दि‍गारू, मि‍जि‍खम्‍री, सि‍ंगफू, तंगला, नोक्‍टे, वांचू, लोपचा, भोटि‍या, नेपाली लिंबू इत्‍यादि‍। अगरतलाक राजा (सामंती युगमे) बर्म्‍मन-परि‍वारक छला। अखनि जे फि‍ल्‍मीस्‍तानमे गीतकार-संगीतकार वर्म्‍मन सभ छथि‍ ओ ओतुके छथि‍। हुनके देल मकानमे त्रि‍पुराक सभा भवन (सदन) अछि‍। आदि‍वासीक बीच अपना सभसँ भि‍न्न भोजनक चलनि‍ अछि‍। खाइ-पिबैक वस्‍तुमे सेहो अन्‍तर अछि‍। हुनका सबहक भोजमे अपना सभ जकाँ नै जे भात-दालि‍-तरकारीसँ शुरू केलौं आ जना-जना आगू बढ़ैत जाएत तेना-तेना नीक-नीक वि‍न्‍यास आैत। ओइठाम से नै छै। नीक-नीक वस्‍तु पहि‍ने बँटाइत अछि‍ आ जेना-जेना आगू बढ़ैत अछि‍ तेना-तेना पछुआइत जाइत अछि‍।
दू हजार ईस्‍वी पछाति‍ काली-बाबू रोगाए लगला। पहि‍ने आँखि‍ खराब भेलन्‍हि‍‍। कलकत्तामे ऑपरेशन करौलन्‍हि‍। कब्‍जि‍यतक शि‍काइत शुरूहेसँ भऽ गेल रहनि‍। मधुमेह सेहो भऽ गेलन्‍हि‍। आइ.जी. बनला उत्तर कि‍छु दि‍न नीक रहला। ओना बीचमे डी.जी.पी. बनि‍ मेघालय (शि‍लाँग) सेहो एला। मुदा ओइठाम मन नै लगलन्‍हि‍। छह मास पछाति‍ पुन: घूमि‍ कऽ अगरतले आइ.जी. बनि‍ चलि‍ गेला। रि‍टायर होइसँ चारि‍ बरख पूर्व ओछाइन पकड़ि‍ लेलन्‍हि‍। नोकरीदार रहने गाम नै एला। ओतै इलाज करबैत रहला। दि‍ल्‍ली, कलकत्ता सभ ठाम गेला मुदा स्‍वस्‍थ नै भऽ सकला। देहक कोनो गंजन नै रहलन्‍हि‍। तीन या चारि‍ बेर पेटक ऑपरेशन भेल छेलन्‍हि‍ कष्‍टसँ मनो चि‍ड़चि‍ड़ा गेलन्‍हि‍। दू बरख पछाति‍ (सेवा-नि‍वृत्त होइसँ पहि‍ने) गाम आबि‍ गेला। दुनू तरहक रोग -शारीरि‍क-मानसि‍क- सँ भीतरे-भीतर ग्रसि‍त भऽ गेला। मानसि‍क रोगक कारण भेलन्‍हि‍-‍ जखनि आइ.जी. बनला, गृह वि‍भाग ३२ करोड़ रूपैआ बि‍ना योजनाक पठा देलकनि‍। मंशा जे होउ मुदा कालीओ बाबू अपनाकेँ सैद्धान्‍ति‍क बुझै छला। बि‍नु योजनाक रूपैआ केतए खर्च कएल जाए से फुड़बे ने केलन्‍हि‍। एकटा पत्र गृह-वि‍भागकेँ लि‍खलन्‍हि‍ जे रूपैआ प्राप्‍त भेल मुदा योजना तँ कि‍छु अछि‍ए नै, से योजना पठाउ। तेकर कोनो उत्तर नै भेटलन्‍हि‍। ओ जाल छेलै। रूपैआ आपस कऽ देलखि‍न। आपस करब एहेन घातक भेलन्‍हि‍‍ जे ओझरा गेला। जवाब-तलब भेलन्‍हि‍‍। लि‍खि‍तमे जवाब तँ दऽ देलखि‍न मुदा बेमरि‍याह शरीर भेने दौड़-धूप तँ कऽ नै सकला। ड्यूटीसँ सेहो अलग भऽ गेल रहथि‍। एक दि‍श गृह-वि‍भागक चाप, दोसर दि‍स ड्यूटीसँ अलग हएब, आर्थिक समस्‍या उपस्‍थि‍त भऽ गेलन्‍हि‍। तैपर पथ्‍य-पानि‍, दबाइ-दारूक खर्च काफी बढ़ि‍ गेल रहनि‍। बेवस भऽ गेला।
कालीबाबूकेँ पंडि‍त कहैक कारण अछि‍ जे गीता (श्रीमद्भगवदगीता) पर अपन दृष्‍टि‍कोण छेलन्‍हि‍ आचार्य रजनीशक आठो खंडक (आठ खंडमे संगृहि‍त, जेकर ओइ समैमे अठारह सए दाम छेलै) नीक अध्‍ययन छेलन्हि‍, जे दृष्‍टि‍कोणकेँ बदलने छेलन्‍हि‍ जि‍नगीक आशा टूटि‍ गेलन्‍हि‍। अंति‍म दौड़क भेँटमे वि‍भागीय बहुत बात कहलखिन‍ जे देखैआ की अछि‍ आ चोरौआ की अछि‍। नोकरीक शुरूक जि‍नगीसँ लऽ कऽ अखनि धरि‍क बहुत बात संगी होइक नाते जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ ओ कहलखिन‍। अगरतला पहुँचिते (डी.एस.पी.) अपन पहि‍चान छबे मासमे बना लेलन्‍हि‍। इमानदार अफसरक रूपमे प्रशासनसँ जनमानसक बीच आबि‍ गेला। नगद रूपैआ, गहना-जेबर वा लत्ता-कपड़ा कहि‍यो केकरोसँ नै छुलन्‍हि‍, मुदा खाइ-पिबैक वस्‍तु नै घुमबै छला। शुरूक पाँच बर्खक जि‍नगी एक कालखंडक जि‍नगी बनि‍ गेल छेलन्‍हि‍ शराब पिबै छला, सि‍गरेट पिबै छला, मुर्गी-अंडा खाइ छला। ओही दौड़मे (१९७२ ई.) बंगला देशक लड़ाइ-पाकि‍स्‍तानक संग भेल रहए। मि‍थि‍लांचलक भाय लोकनि‍केँ मन हेतन्‍हि‍ जे सालो भरि‍ बर्खा सेहो भेल रहए। साले बरसातक भऽ गेल। घर छाड़ैले जे कि‍यो खढ़-पात रखलन्‍हि‍ सबहक सड़ि‍ गेलन्‍हि‍। एक तँ ओहि‍ना लत्ती-फत्ती माने चार परहक सजमनि‍ कदीमा रहने खढ़क घरकेँ कोनो दशा नै रहैए, तँए नै छड़ाएब तँ पटोटनो देबक आवश्‍यकता भइए जाइत छेलै। ओना बोनि‍हार श्रेणीक अधि‍कतर धनखेती (धानसँ पहि‍ने जे मरूआ होइ छल) ओकर सस्‍ती छेलै। सस्‍ती ई जे जखनि मरूआ पाकि‍ जाइ छेलै तखनि गि‍रहत खेतमे रहै छला, नार कटनि‍हार सभ मरूआ गि‍रहतकेँ दऽ दैत छेलखि‍न आ नार लऽ कऽ अपन घर छाड़ै छला। बंगला देशक (१९७१ ई.) लड़ाइमे बंगला देशकेँ भारत संग देलक‍। इन्‍दि‍राजी प्रधान मंत्री रहथि‍। रूसक (सोवि‍यत संघक) भरपूर सहयोग भेटलन्‍हि‍। ओइ समए सोवि‍यत संघ बहुत शक्‍ति‍शाली छल। ओना अखनो अछि‍ मुदा...? बीस बर्खक दोस्‍तीक समझौता भारत-सोवि‍यत संघक भेल। नीक जवाब पाकि‍स्‍तानक संग देनि‍हार अमेरि‍काकेँ भेटल। दुनि‍याँक इति‍हासमे ३१ हजार सेना बंगलेदेशमे हाथ उठौलक। सरेण्‍डर केलक। बंगला देशक ओइ लड़ाइमे शीर्ष नेता सभ त्रि‍पुरेक अगरतलामे रहथि‍। इन्‍दि‍राजी सेहो चुप-चाप (बि‍ना कि‍छु जानकारीक) जाि‍थ। त्रि‍पुरा मलेट्रीक छाबनी बनल रहए। ओइ समए मलेट्रीक हाथमे लड़ाइक कमान रहै, सुरक्षाक कमान तँ प्रशासनेपर रहए। ओइ गेस्‍ट हाउसक जि‍म्‍मा हि‍नके (कालीबाबूक) रहनि‍। जइमे बंगला देशक कर्णधार सभ रहथि‍। ओइ बीच (बंगला देशक लड़ाइसँ पूर्व) एकटा जि‍म्‍मेदार अध्‍यक्षकेँ कालीकान्‍त झा गारि‍ओ पढ़लखि‍न आ मारबो केलखि‍न, भेल ई जे हि‍नका नाओंपर एकटा माछक वेपारीसँ ओ खूब माछ खाए। बंगाली भाय, तहूमे त्रि‍पुराक पानि‍ आरो मन्‍द छै, एक दि‍न ड्यूटीमे जाइत रहथि‍ आकि सलाम ठोकि‍ ओ वेपारी हँसैत कहि‍ देलकनि‍। ओइ बातकेँ पीठि‍या ठोक केलन्‍हि‍, वएह (अध्‍यक्ष) पकड़ा गेला। मुदा लूटमे चरखा नफा। त्रि‍पुरामे कम्‍युनिस्ट पार्टी आ कांग्रेस पार्टीक बीच कसमकस राजनीति‍ रहए। तीन गोटेक कमि‍टी नृपेन बाबूक (नृपेन चक्रवर्ती, जे आजन्‍म अवि‍वाहि‍त रहला, कम्‍युनिस्ट पार्टीक नेतृत्‍व करैत रहथि‍ ट्रि‍पुल एम.ए. रहथि‍, दू बेर मुख्‍य मंत्री सेहाे बनला) अध्‍यक्षतामे बनल। जि‍नगीक संघर्षक अनुभव कालीबाबूकेँ वि‍द्यार्थीए जीवनक रहनि‍। संगी-साथी प्रशासनि‍क अफसर सभ कहनि‍ जे मोटरी बान्‍हि‍ कऽ रखने रहू। तेकर जवाब देथि‍न- बन्‍हले अछि‍। नृपेन बाबू घटनाक जड़ि‍ तक पहुँचला। इनक्‍वाइरी दौड़मे गप-सप्‍प करैक बहन्ने जंगलक एकटा गेस्‍ट हाउसमे लऽ गेलन्‍हि‍। कोनो जानकारी केकरो नै देलखि‍न। मुदा देखि‍नि‍हारो तँ देखि‍ते रहए। भरि‍ राति‍ ओतै रहला। जइसँ आरो प्रति‍ष्‍ठा बनि‍ गेल रहनि‍। मुदा प्रति‍ष्‍ठो तँ जनमारा होइ छै। कालीबाबू अपने पाँच भाइक भैयारी आ चारि‍ संतान अपने छन्‍हि‍। तीन कन्‍या एक लड़का। तीनू कन्‍याक बि‍आह कऽ लेने छला। भाए आ पि‍ता जीवि‍ते छेलखि‍न। थेहगर दुनू, अपनासँ एक बरख पहि‍ने पि‍ता मुइलखि‍न। भाए छन्‍हि‍येँ। बेटाक बि‍आह पछुआएल छेलन्‍हि‍ ओना गप-सप्‍प (बि‍आहक) सुपौल जि‍लामे चलैत रहनि‍। ओहो (कन्‍यागत) रेलबेक एस.पी., जखनि मन मानि‍ गेलन्‍हि‍ जे आब नै जीब, तखनि हुनका तत्‍काल बजा मंदि‍रमे बि‍आह सम्पन्न केलन्‍हि‍। नोकरी समाप्‍त भेला पनरहे-बीस दि‍न पछाति‍ मरि‍ गेला। मुदा पेंशनक समस्‍या तँ उठि‍ए गेलन्‍हि‍।
जगदीश प्रसाद मण्डल त्रि‍पुरा जाइसँ पहि‍ने हैदराबाद गेल रहथि। हैदराबादमे राष्‍ट्रीय स्‍तरक साहि‍त्‍यि‍क-राजनीति‍क कार्यक्रम छल। ग्रुपमे मधुबनी जि‍लासँ गेल छला। रेलक एक मासक पास सभ कि‍यो बनबौने रहथि। मुदा रूटक हि‍साबसँ बनल रहनि। ओही समए मधुबनी जि‍लाक पार्टी अन्‍तर्गत स्‍व. अनन्‍त भगत साहि‍त्‍यि‍क मोर्चापर जि‍म्‍मामे रहथि‍। साधारण परि‍वारसँ आएल अनन्‍त भगत, जेहने पितमरू रहथि‍ तेहने वफादार। आर्थिक स्‍थि‍ति‍ नीक नै रहलोपर पार्टीक होलटाइमर नेता रहथि‍। ओइ समए मधेपुरक भार हुनके भेटल रहनि‍। चारि‍ दि‍नक कार्यक्रम हैदराबादमे छल। साि‍हत्‍यि‍क मंचपर प्रेमचन्‍द साहि‍त्‍य छल आ राजनीति‍क मंचपर देशमे कानून बनैक, ओकर व्‍याख्‍या आ ि‍नर्णए लइमे की समस्‍या अबैत अछि‍, तैपर वि‍षद चर्चो आ आगू लेल कार्यक्रमोक ि‍नर्णए भेल छेलै। प्रेमचन्‍द साहि‍त्‍यपर वि‍षद व्‍याख्‍या रमेश चन्‍द्र उद्घाटन भाषणमे देलन्‍हि‍। ओना ओ पंजाबक छला मुदा अंग्रेजीमे बाजल रहथि‍। कारण छल जे एक तँ दछि‍नी भारतमे कार्यक्रम छल, तहूमे जैठाम हि‍न्‍दीसँ अधि‍क अंग्रेजीक बोलवाला अछि‍। बहुत पैघ कार्यक्रम छल। एकमतसँ प्रेमचन्‍द प्रगति‍शील वि‍चारक साहि‍त्‍यकार मानल गेला। राजनीति‍क मंचपर मुख्‍य वक्‍ता छला-भूपेश गुप्‍त जे राज्‍य सभामे लगातार एक सएसँ ऊपर बैसारमे सम्‍मि‍लि‍त छला। कानून बनबैक प्रक्रि‍यामे की बाधा उपस्‍थि‍त होइत अछि‍, तेकर वि‍षद व्‍याख्‍या करैत कोन रूपमे काज कएल जाइत अछि‍, कहलन्‍हि‍। भूपेश गुप्‍त बंगालक छला। आजन्‍म अवि‍वाहि‍त रहला। एक संग स्‍व. इन्‍दि‍राजी (प्रधानमंत्री इन्‍दि‍रा गाँधी) स्‍व. ज्‍योति‍ बाबू (ज्‍योति‍ बसु, मुख्‍यमंत्री बंगाल) आ भूपेश गुप्‍त इंग्‍लैडमे कानूनक शि‍क्षा लेने रहथि‍। दोसर मुख्‍य वक्‍ता रहथि‍ न्‍यायमूर्ति बी. आर. अय्यर। बी. आर. अय्यर साहैब सुप्रीम कोर्टसँ सेवा नि‍वृति‍ भेल छथि‍। समस्‍याक ि‍नर्णए करब केते कठि‍न अछि‍ तैपर वि‍षद भाषण देलन्‍हि‍। वएह बी. आर. अय्यर साहैब जे १९६७ ई. मे बि‍हारमे महामाया बाबू कांग्रेसी सरकारक भ्रष्‍ट पूर्वमंत्री सभपर जे आयोग बैसौने रहथि‍। एकटा जानल-मानल न्‍यायाधीश। तेसर मुख्‍य वक्‍ता छला, मध्‍यप्रदेश हाइकोर्टक एकटा सीनि‍यर अधि‍वक्‍ता। न्‍यायालयमे बहस करैमे की समस्‍या उपस्‍थि‍त होइत अछि‍ तैपर वि‍षद चर्च केने रहथि‍।
स्‍वभावो आ मेहनतोमे ओ सभ (दछि‍न भारतक लोक) भि‍न्न छथि‍। ओ सभ जी खोलि‍ कऽ काज करैमे बिसवास रखै छथि‍। जगदीश प्रसाद मण्डलक अपन इच्‍छा छेलन्हि जे कि‍छु ग्रामीण क्षेत्र देखथि, मुदा से नै भेल। गाड़ीसँ (ट्रेन) जे देखबो केलन्‍हि ओ से नै भेल जे देखए चाहै छला। चारि‍ए दि‍न हैदराबादमे रहबाक छेलन्हि‍, तहूमे जइ कार्यक्रममे आएल छला ओ छोड़ि‍ केना जाइओ सकै छला। हैदराबाद शहरो नमहर। तैयो मुख्‍य-मुख्‍य जे दर्शनीय अछि‍ से तँ देखबे केलन्‍हि। ऊषा कम्‍पनी, संगमरमरक पहाड़, चारमीनार, नि‍जामक राजशाही मकान, झील इत्‍यादि‍ देखलन्‍हि। काफी बेस्‍त शहर हैदराबाद अछि‍। ओतए गाड़ी-सवारीक पर्याप्‍त बेवस्‍था अछि‍, मुदा तैयो काफी भीड़-भारबला शहर हैदराबाद अछि‍। खाइ-पिबैक ि‍वन्‍यास अपना सभसँ कि‍छु भि‍न्न अछि‍। मुदा देश स्‍तरक कार्यक्रम तँए देश भरि‍क खान-पानक बेवस्‍था रहबे करै। ओना कटहरक जे वि‍न्‍यास छेलै ओ अपना ऐठाम सँ भि‍न्ने नै नीको अछि‍। वि‍दा होइ काल, वापसीमे कि‍छु औगताहटि‍ भऽ गेलन्‍हि। ओना टि‍कट आरक्षि‍त रहनि मुदा प्‍लेटफार्मपर पहुँचैत-पहुँचैत गाड़ी खुजि‍ गेलन्‍हि। सभ कि‍यो (मधुबनीक) सभ दि‍स भऽ गेला। अगि‍ला स्‍टेशनपर एकठाम हेता, लेडी कम्‍पार्टमेंट (महि‍ला बोगी) मे चढ़ि‍ गेला। अखनि धरि‍ महि‍ला बोगी नै देखने छला। चढ़ि‍ कऽ बैसैक जे वि‍चार केलन्‍हि‍ तँ देखलन्‍हि‍ सौंसे बोगी महि‍ले बैसलि‍। टी.टी सेहो महि‍ला। मुदा अपना ऐठाम जकाँ यात्री झौं-झौं कऽ नै छुटलन्‍हि। जगदीश प्रसाद मण्डल ओकरा सभ दि‍स देखैत जे कि‍छु पुछतन्‍हि‍ तखनि ने कहथिन। ओहो सभ चुपचाप देखबो करैत आ मुस्‍कीओ दैत। जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ कोनो चि‍न्‍ते ने रहनि। एक्के देशक रेलगाड़ीमे दू रीति‍ अछि‍, तखनि की हेतै? कि‍छु काल पछाति‍ टी.टी. लगमे एलखिन। ओ बूझि‍ गेल रहथिनजे ई उत्तर भारतक मेल गाड़ी छी। कहलकनि जे ई लेडी कम्‍पार्टमेंट छि‍ऐ। ओना ओ हि‍न्‍दीएमे कहलकनि मुदा जहि‍ना अपना ऐठामक मि‍ड्ल स्‍कूलक बच्‍चा हि‍न्‍दी बजैत अछि‍ तहि‍ना। परि‍चएक जरूरी बूझि‍ पड़लन्‍हि। अपना यात्राक चर्च करैत कहलखिनजे औगता कऽ चढ़ि‍ गेला तँए ऐ कोठरीमे चलि‍ एला। ने तँ किए अबि‍तथि। कहलखिन जेआगू बदलि‍ लेब, संगीओ सभ छथि‍न, ओहो सभ भेट जेतनि।
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रामपट्टीक जहल...


रामपट्टीक जहल बनि‍ गेल छल। मुदा उद्घाटन नै भेने ओहि‍ना पड़ल छल। नरकोमे की कम ठेलम-ठेल होइ छै। मधुबनी चक्की वार्डमे जे दसो-बीस दि‍न रहल हेता, हुनका मोने हेतनि‍। तैठाम साल के कहए जे केतेको सालसँ केतेको गोटे छला। आजादीसँ पहि‍नौं आ पछोँ मधुबनी जेलक चलती रहबे कएल। तइमे मुदा एकटा जरूर भेल रहै जे जेलक भीतरो वि‍भाजि‍त रहए, वार्ड न. ०२ राजनीति‍ पार्टीबला सबहक रहनि‍, बाँकी सहरगंजा।
हरगंजा अइले जे ने अपराध एक रंगक छै आ ने अपराधी। मुदा जेल तँ जेल छी मठाधीशसँ लऽ कऽ फुलतोड़ा धरि‍ एकेठाम रहता। मुदा जहलोक कारोबारमे चोरी-चपाटी रहबे करै, कि‍यो जलखैक बदाम चोरा लइ तँ कि‍यो गुड़। कि‍यो करू तेल हेर-फेर कऽ दइ, कि‍यो कि‍छु। आजादीक समए मधुबनी जि‍ला (तइ दि‍नक सवडि‍वीजन) जखनि आजादीक सीमापर आबि‍ गेल तखनि कनी भाषा-प्रेमी-अंग्रेजक देखि‍ए ली। एकटा एस.डी.ओ. भेला ग्रि‍यर्सन। जे गाम-गाम घूमि‍ भाषाक मर्मकेँ बुझैक कोशि‍श केलन्‍हि‍। कोशि‍शे नै केलन्‍हि‍ भोलूमक-भोलूम पोथीओ लि‍खने छथि‍। पैघ-पैघ पुस्‍तकालयक सि‍ंगारक वस्‍तु बनि‍ जेवर-जेवरात जकाँ आलमारी धेने अछि‍। भाषा-साहि‍त्‍य लेल सरकारीओ-गैर-सरकारीओ संस्‍था सभ खूब काज केलक‍, मुदा ग्रि‍यर्सनक कएल मैथि‍ली सेवा आलमारीक दराजेमे फँसि‍ गेल अछि‍! जहि‍ना साहि‍त्‍य सृजन अनुभावात्‍मक आ बौधात्‍मक होइत अछि‍ तहि‍ना भाषाक सेहो अछि‍। मैथि‍ली शब्‍दकेँ सिरिफ संस्‍कृतसँ आएल शब्‍द बुझै छी तँ मैथि‍ली संग अन्‍याय होइ छै। न्‍याय तखनि हेतै जखनि मैथि‍ली शब्‍दकेँ वैदि‍क जीवन-पद्धति‍क शब्‍द रूपमे देखल जेतै। एक-एक शब्‍द एक-एक जीवनक काजक नक्‍शा तैयार करैक शक्‍ति‍ रखैए। संस्‍कृतक प्रभाव अइले मानल जाइत जे वैदि‍क भाषा संस्‍कृत रहल। ओना भाषाक दौड़मे आगू नै बढ़ब मुदा एकटा बात आवश्‍यक बूझि‍ पड़ैए तँए, वैदि‍क संस्‍कृतक शैली अनुभवात्‍मक अछि‍ जखनि कि‍ लौकि‍क संस्‍कृतक भावात्‍मक बेसी। भावात्‍मक दि‍शा कल्‍पनाशील बनैत गेल। जेना-जेना भावात्‍मक दि‍शा मजबूत होइत गेल तेना-तेना साहि‍त्‍य जि‍नगीसँ (जीवन पद्धति‍) दूर हटैत गेल।
रामपट्टी जेलक उद्घाटन नै होइक कारण रहै जे प्रशासनसँ ठीकेदार धरि‍ कि‍यो फाइनल करैले तैयारे नै। कि‍छु काज पछुआएल तँ कि‍छु बि‍ल-भुगतान पछुआएल। मुदा नजरि‍ सबहक योजना खाइक पाछू।
राज्‍य वामपंथी (भाकपा-माकपा) पार्टी अपन ज्‍वलंत समस्‍या सभ लऽ कऽ ‘जेलभरो’ आन्‍दोलन केलक। ओना सौंसे राज्‍यक ज्‍वलंत समस्‍या सभ मुद्दा रहए मुदा मि‍थि‍लांचल लेल दूटा प्रमुख मुद्दा छल। पहि‍ल कोसी नहरि‍क संग नूनथर, शीशापानी आ बराहक्षेत्रमे डैम बना पनि‍बि‍जली उत्‍पादन कएल जाए जइसँ कृषिक संग उद्योगो धंधा बढ़तै। कि‍छु गोटेक एहेन धारणा अखनो छन्‍हि‍ जे कारखानाक जरूरति‍ खाने क्षेत्रटा मे होइ छै। मुदा से नै, ईहो होइ छै जे जेते-रंगक कारखाना अछि‍ तइमे ५५ प्रति‍शत जौं खान क्षेत्रक मालसँ चलैत तँ ४५ प्रति‍शत कृषि उत्‍पादि‍त वस्‍तुसँ सेहो चलैत। दोसर मुद्दा छल मैथि‍ली भाषाकेँ सरकारी मान्‍यता भेटौ अर्थात् अष्‍टम अनुसूचीमे शामि‍ल हाेउ। जइसँ मि‍थि‍लाक वि‍कासमे एक कड़ी जुड़त।
मधुबनी जि‍ला बढ़ि‍-चढ़ि‍ कऽ ओइ आन्‍दोलनमे हि‍स्‍सेदारी दर्ज करौलक। दर्जनो वकील सेहो रहथि‍। हजारसँ ऊपर कार्यकर्त्ता जेलमे रहथि‍। जइ दि‍न मधेपुर-लखनौर ब्‍लौकक समए (प्रदर्शनक संग जेल) रहै तइ दि‍न वि‍स्‍फीक सेहो रहए। जगदीश प्रसाद मण्डल सभ जि‍ला-कार्यालय (डी.एम. ऑफि‍स)क गेटक बाहर रहथि। पूर्वेजी (स्‍व. राजकुमार पूर्वे) कार्यालयक पछि‍ला गेट देने आबि‍, पाछूमे ठाढ़ भेल एस.पी.केँ कालर पकड़ि‍ लेलखि‍न। भीतर-बाहर हूड़-बड़ेरा भऽ गेल। लाठी चार्च भऽ गेलै। मुदा बहुत नै भेलै।
जगदीश प्रसाद मण्डल रामपट्टी जेल पहुँचला। बेरमाक अट्ठारह गोटे रहथि। नागेन्‍द्रजी (डाक्‍टर नागेन्‍द्र कुमार झा, पैटघाट) आ जगदीश प्रसाद मण्डल सभ लेडी वार्डक ओसारा पकड़ने रहथि। जि‍लाक सभ वि‍धायको आ वि‍धान पार्षदो रहथि‍। वि‍धायक रहथि‍ पूर्वेजी (स्‍व. राज कुमार पुर्वे) तेजनारायण जी (श्री तेज नारायण झा) लाल बि‍हारीजी (श्री लाल बि‍हारी यादव) रमणजी (राम लखन ‘रमण’ भाकपा.क वि‍धायक) पूर्व वि‍धायक बैजनाथजी (श्री वैद्यनाथ यादव) चौधरीजी (श्री कृष्‍ण चन्‍द्र चौधरी)
जेलक भीतर दि‍नमे दू बेर भाषण-भूषण चलै। मुख्‍य वक्‍ता रहथि‍ चौधरीजी। माजल वि‍द्वान। भाषापर एते पकड़ रहनि‍ जे एकाे शब्‍द कम-बेसी नै होन्‍हि‍। कोनो वि‍षयकेँ यथास्‍थि‍त व्‍याख्‍या करैक अद्भुत क्षमता रहनि‍। ओइ समए पार्टीक जनशक्‍ति‍ दैनि‍क पत्रि‍का नि‍कलै छल। सम्‍पादक रहथि‍ चौधरीजी। जगदीश प्रसाद मण्डल जनशक्‍ति‍ पत्रि‍काक संवाददाता रहथि
स्‍व. कृष्‍णचन्‍द्र चौधरी नीक वक्‍ता छला। लि‍खबो नीक करै छला। मैथि‍लीमे तँ भरि‍सक नै मुदा हि‍न्‍दी-अंग्रेजीमे केतेको पोथी लि‍खने छथि‍। जेहने वि‍द्वान तेहने सुभ्‍यस्‍त परि‍वारक सेहो छला। पानो खूब खाइ छला आ सि‍गरेटो पिबै छला। जेल तँ छुच्‍छे देहे आबि‍ गेला मुदा भि‍नसरू पहर चाह पीला पछाति‍ पान खाइले मन छटपटाए लगलन्‍हि‍। जगदीश प्रसाद मण्डल सभ पानक ओरि‍यान कऽ कऽ रखने रहथि। जहलो कोनो जहल जकाँ नहि‍येँ रहए। ने सरकारीक पर्याप्‍त स्‍टाफ रहै आ ने सरकारी बेवस्‍था। अपने सभ सभ कि‍छु। गेटो खुजले रहए। भीतर बाहर प्रदर्शनकारी लोक सौंसे टहलैत। बेरू पहर ढोलकपर अल्‍हा होइ। चौधरीजीकेँ चाहोक हि‍साब नहि‍येँ रहनि‍। आबथि‍ तँ जगदीश प्रसाद मण्डल चाह पिआ पान खुअबथिन‍। तेकर बाद गप-सप्‍प शुरू होइ।
ओना बि‍हारक केतेको जि‍लाक प्रदर्शनकारी दुइए दि‍न पछाति‍सँ नि‍कलए लगला। मुदा मधुबनीक मारि‍-पीट केस भरि‍या देलकै। दू दि‍न पछाति‍ भोगेन्‍द्रजी सेहो दरभंगा जेलसँ नि‍कलि‍ मधुबनी जेल चलि‍ एला। तेरह दि‍न पछाति‍ नि‍कलैक आदेश आएल रहए। मुदा सबहक नै। ३५ गोटेकेँ मुजफ्फरपुर जेल पठबैक आदेश सेहो आएल रहए। तेरहम दि‍न नि‍कलै बेर कि‍यो नि‍कलैले तैयारे नै भेला। कि‍छु वि‍दाइ भेने बि‍ना केना नि‍कलता। गप उठल धोती-कुर्ता, गंजी-गमछा आ चद्दरि‍क मुदा से नै भेलै। होइत-हबाइत एकटा लूंगी आ एकटा गमछा सभकेँ भेटलन्‍हि‍। पार्टी आन्‍दोलनक अंति‍म जेल यात्रा छेलै। तेकर बाद जे जगदीश प्रसाद मण्डल गेबो केला तँ एक-दि‍ना-दु-दि‍नामे। जे कएक बेर थानेसँ चलि आबथि
ओना जगदीश प्रसाद मण्डल सभ दोहरी जेलक यात्री रहथि। अपनो गाममे तेते मोकदमा भऽ गेल रहनि जे एक ने एकटा वारंट सभ दि‍न रहबे करनि। दू हजार ईस्‍वी अबैत-अबैत सभ केस समाप्‍त भऽ गेलन्‍हि, खाली दूटा शेष बँचल रहलन्‍हि। एकटा ३०७ (हत्‍याक प्रयास) जे हाई कोर्टमे छेलन्हि, दोसर ४३६ (अगि‍लग्‍गी) जे डि‍स्‍टि‍क जजक कोर्टमे छेलन्‍हि‍ जहि‍ना बाढ़ि‍क पानि‍ पोखरि‍मे प्रवेश करैकाल सौंसे पोखरि‍क पानि‍ गति‍शील भऽ जाइ आ घुमती बेर (बाढ़ि‍ सटकैक समए) धीरे-धीरे गति‍हीन हुअ लगै तहि‍ना मोकदमाक दौड़मे भऽ गेलन्‍हि। मुदा अस्‍थि‍र नै भेल छेलै। कारण दुनू केस शेन छेलै। ई भेलै जे जि‍लाक केस (अगि‍लग्‍गीक) क फाइले तरमे पड़ि‍ गेलै आ हाईकोर्टमे दौड़ो-बरहा कम होइ छेलै।
अखनि धरि‍ माने २०००ई.सँ पूर्व जगदीश प्रसाद मण्डल देशक अदहासँ बेसी भ्रमण कऽ नेने छेलथि। एक दि‍स देशक आर्थिक राजधानी मुम्‍वई देख नेने छेलथि तँ दोसर दि‍स नागालैंड-अरूणाचल सेहो देखने छेलथि। रवि‍न्‍द्र बाबूक (महर्षि रवि‍न्‍द्र नाथ टैगौर) शान्‍ति‍ नि‍केतनक संग सुन्‍दर बोन, गंगासागर, समुद्रक कात कबीर दासक गाड़ल खन्‍ती, तँ सूर्य मंदि‍र सेहो देखने छला। रंग-रंगक द्वैत (द्वन्‍द्व) एक दि‍स जौं हजारी बाबू (आचार्य हजारी प्रसाद द्वि‍वेदी) जे शान्‍ति‍ नि‍केतनमे १९३० ई.सँ १९५० ई. धरि‍ हि‍न्‍दीक अध्‍यापक रहला। सि‍रीसक फूलक महमहीसँ मुग्ध होइत रहथि तँ दोसर दि‍स मि‍थि‍लांचलमे सि‍री बर्जित अछि‍! ने घरक काजमे आैत आ ने चौकी, कुरसीक काजमे!बे नै, फलक गति‍ सेहो सह। गाछ तँ बड़का-बड़का होइ छै जहि‍ना कहबी छै-
मनुख तँ बलवीर मुदा मोछ ने तँ कि‍छु ने।
तहि‍ना। मन मानि‍ गेलन्‍हि जे पुरबा-पछि‍याक लहड़ि‍ छी। फूल लेल केहेन गाछ लगाैल जाए, फूलक संग फल लेल केहेन गाछ लगाैल जाए आ बि‍नु फूल-फलक गाछ केतए लगाैल जाए, ई तँ प्रश्न भेल। मुदा पछि‍याकेँ पूर्वाक लपेट तर कऽ दइ छै। जौं से नै करै छै तँ मि‍थि‍लांचलक भूमि‍मे केतए-कहाँसँ आबि‍ बोन-झाड़ लागि‍ गेल छै, जैठाम एक-सँ-एक फल, एक-सँ-एक फूल आ एक-सँ-एक सुकाठ लकड़ीक बास भूमि‍ अछि‍। मि‍थि‍लांचलक वि‍कास तखनि हएत जखनि मि‍थि‍लांचलकेँ गहराइसँ अध्‍ययन कऽ अनुकूल परि‍स्‍थि‍ति‍ बना उपयोग हएत।
जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ यात्राक दौड़मे राजस्‍थान सन दर्शनीय जगह सेहो छुटले छेलन्‍हि‍ यात्रा तँ गरपर छेलन्हि मुदा समैओ आ पाइक तंगी छेलन्‍हि‍ ममि‍यौत भाति‍ज राजस्‍थानक पाली जि‍ला अन्‍तर्गत डी.एल.एफ. सि‍मेंट कारखानामे सुपर-वाइजर छेलखिन‍ जे बेर-बेर अबैक बात करैत रहथिन। ओना ओ (तेज नारायण मण्‍डल) पढ़ल-लि‍खल नै। कोसि‍कन्‍हा भेने गामक स्‍कूलो नष्‍ट भऽ गेलन्‍हि आ गामो। जमीन-जत्‍था गुजर करैबला जरूर छै मुदा कोसी-कमलाक बीच पड़ि‍ गेल छै। भागि‍ कऽ ओ राजस्‍थान चलि‍ गेला। डी.एल.एफ. सिमेंट कारखानामे उट्ठा मजदूरक रूपमे नोकरी भऽ गेलन्‍हि। एन.के. पारीख नाओंक एक गोटे जे चारि‍ कोठरी मकानो बनौने छला आ ओही सि‍मेंट कारखानामे नीक पदपर सेहो छला, हुनके मकानमे एकटा कोठरी भाड़ा लऽ तेज नारायण रहए ला। धीरे-धीरे दुनू गोटेक बीच सम्‍बन्‍ध बढ़ैत गेलन्‍हि‍। हुनकर (एन.के. पारीखक) सासुर नेपालक काकरभि‍ट्टा तँए पत्नी मि‍थि‍लांचलसँ परि‍चि‍त, सम्‍बन्‍धक मजगूतीक कारण वएह भेल। भाए-बहि‍न जकाँ दुनूक सम्‍बन्‍ध बनि‍ गेलन्‍हि‍। एक-दोसरक पारि‍वारि‍क जि‍नगीक संबंध बढ़लन्‍हि। एन.के. पारीख तेजनारायणकेँ कहलखि‍न जे बैसारीमे पढ़ा देब। सचमुच पढ़ा कऽ कारखानाक सुपर-बाइजर बना देलखि‍न।
जगदीश प्रसाद मण्डल मनमे अँटकारि लेलन्‍हि जे मात्र जाइ धरि‍क समस्‍या छन्‍हि‍‍। जखनि जेता तँ एतबो ओ नै करत? देखैबला जगहो देख लेता आ ओइठामक माटि‍-पानि‍-हवाक क्षेत्रो देख लेता। एक दि‍न अहि‍ना कि‍छु पारि‍वारि‍क आमदनी भेलन्‍हि‍, उठि‍ कऽ वि‍दा भेला। असगरे घुमैक स्‍वभावो छेलन्हियेँ। दि‍ल्‍ली होइत राजस्‍थान पहुँचला। सुपर-वाइजर भेला पछाति‍ तेजनारायण अपना परि‍वारो (पत्नी) आ एकटा भाइओकेँ गामसँ लऽ गेला। भाएकेँ ओइ कारखानामे नोकरी धड़ा देलखिन। एन.के. पारीखक मकानसँ हटि‍ तीन कोठरीक मकान भाड़ा लऽ रहए लगला। पैखाना कोठरीक ओतेक जरूरी नै, एक तँ क्षेत्रक हि‍सासँ पातर जनसंख्‍या दोसर झाड़दार सांगरीक (बगूर जकाँ पातो आ काँटो होइ छै) छि‍टफुट गाछक परदा। बससँ उतरि‍ सोझे कारखाना गेला आ ऑफि‍समे भातीजक सम्‍बन्‍धमे पुछलखिन। तेजनारायण ड्यूटीमे नै रहथि। एक गोटे पटनाक संग भेलखिन आ तेजनारायणक डेरापर दोसरि‍ साँझ होइत पहुँचा देलखिन‍। बि‍जलीक इजोत। बगलमे तीस-चालीस दोकानक छोट-छीन बाजार। जइ बीच होइत बसक रास्‍ता। अन्‍हार रहने बेसी नै देखि‍ पेला
चैत मास रहने गरमी खूब पड़ै, दस बजे पछाति‍ घरसँ ि‍नकलैक मन नै होइ। मुदा बारह बजे राति‍ पछाति‍ (जेना-जेना राति‍ ढलै) मोटगर चद्दैरि‍क जरूरति‍ भऽ‍ जाइ छेलै। रहैले एकटा खाट, सि‍रकक संग भेटल छेलन्‍हि‍ भि‍नसर होइत देखैक अवसर भेटलन्‍हि। डेराक आगूमे चारि‍-पाँचटा अशोक गाछ लागल, मझोलके गाछ। मकान मालि‍कक घर अदहा कि‍लोमीटर हटि‍ कऽ रहए। मुदा मालक घर बगलेमे बनौने रहए। मालो की बिनु बच्‍चा दूटा तौड़ि‍या महिंस। तीन बापूत मकान मालि‍क। पि‍ता बुढ़े जे बेसीकाल महिंसक ताक-हेरि‍ करै छल। एक भाँइ ओही सि‍मंेट कारखानामे नोकरी करै छला। आ दोसर खेती-गि‍रहस्‍तीसँ लऽ कऽ महिंस दुहनाइ आ मोटर साइकि‍लपर दूध बेचनाइ धरि‍‍। तीन-कि‍लो मीटरपर एकटा दोकानदारकेँ प्रति‍दि‍न दूध दइत। साइठ बीघा जमीनो रहनि‍ आ एकटा बोरिंग सेहो। शुद्ध दोखरा बालुक खेत। पहाड़-बालुक क्षेत्र। गाछक रूपमे मात्र सांगरी। पहाड़क अति‍रि‍क्‍त खेत सभमे पाथरक छोट-पैघ टुकड़ा ओंघराएल। पराते भने मकान मालि‍कसँ जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ चि‍न्‍हा-परि‍चए भऽ गेलन्‍हि। पँइसठि‍-सत्तरि‍क उमेर, देहमे मात्र एकटा धोती। परात भने जखनि बेटा महिंस दुहए लगलन्‍हि‍ तँ जगदीश प्रसाद मण्डल देखलन्‍हि जे दूध तँ कमे भेलै‍ मुदा ओइमे पानि‍ ढारि‍ देलकै। पुछलखिन‍ जे पानि‍ किए देलि‍ऐ? जवाब देलनि‍ जे जौं दूधमे पानि‍ नै देबै तँ महिंसक थन जरि‍‍ जाएत! जवाब सुनि‍ कि‍छु फुड़बे ने केलन्‍हि। आेहो चलि‍ गेला।
तेसर दि‍न अजमेर दर्गा देखैक कार्यक्रम बनलन्‍हि। बहुत सुन्‍दर स्‍थान। पहाड़ी इलाका तँए बेसी चि‍क्कनो-चुनमुन। स्‍थानक पूबारि‍ भाग ऊँचगर पहाड़। पहि‍ने तँ मनमे भेलन्‍हि‍ जे हि‍न्‍दूकेँ रोक हेतै मुदा से नै। देखि‍नि‍हारमे बेसी हि‍न्‍दू। कबूलो-पाती बेसी। स्‍थानक भीतरे रहथि आकि गाजा-बाजाक संग एकटा जुलुस दे‍लनि। हाथी, ऊँटक संग मनुखकेँ चलबैत चरि‍पहि‍या गाड़ी (बि‍नु इंजि‍नक, आगू-पाछू आदमी ठेलैत) मर्द-औरतसँ सजल जुलुस। रंग-रंगक बबाजीओक समूह। नंगासँ लऽ कऽ रइस धरि‍।
दर्गा देखला पछाति‍ पुष्‍कर गेला। अजमेरमे आम, जामुन, लताम इत्‍यादि‍क गाछ सेहो देखलन्‍हि। गुलाब फूलक खेती बहुत बेसी। पुष्‍कर एकटा नमहर पोखरि‍नुमा अछि‍। जैपर ब्रह्माक मंदि‍र अछि‍। अनेको धर्मशाला आ अनेको घाट बनल अछि‍। जहि‍ना दर्गामे भीड़ तहि‍ना पुष्‍करोमे रहए।
ओना जेबाकाल जयपुरेमे बससँ उतरला। मुदा राति‍मे गेला। भोरे अन्‍हरगरे दोसर बस पकड़ि‍ लेलन्‍हि तँए देखैक अवसर ओइ दि‍न कि‍छु नै भेटलन्‍हि। अजमेरक तेसरा दि‍न पछाति‍ जयपुर पहुँचला। सचमुच कला-कृत्ति‍ श्रेष्‍ठ छै‍ खास कऽ प्राचीनक। मीराक स्‍थान (मैरता) सेहो गेला। बसनुमा रेलक गाड़ी चलै छै‍।
एकटा मंदि‍र अछि‍ जइमे अनेको मूर्ति अछि‍। मंदि‍र बहुत नमहर नै मुदा छि‍पगरो नै। ढोलपेटा जकाँ अछि‍। अोना भीतर एबा-जेबा लेल लोहाक केबाड़ी लागल‍। मुदा सदि‍खन लगले रहै छै। छाती भरि‍ ऊपर चारू कात नमगर-चौड़गर खि‍ड़कीनुमा मोटगर लोहाक सरी लागल छै। जइ होइत चारू कात घूमि‍ कऽ देखल जाइत अछि‍। भीतरमे राजदरबारक दृश्‍य बनल छै। जहि‍ना राजदरबारमे सभ कि‍छु सजल रहै छै तहि‍ना सभ कि‍छु सोनाक बनल छै। ओना देशमे एक-पर-एक स्‍थानो अछि‍ आ मंदि‍रो अछि‍। जहि‍ना कलाक क्षेत्रमे अछि‍‍ तहि‍ना आर्थिक क्षेत्रमे। मुदा मूल वस्‍तु अधि‍कांश स्‍थानक गाइब अछि‍। ओ छी ओकर महात्‍म्‍य। उदाहरणक रूपमे कामरूप कामाख्‍या कामरूप कामाख्‍यामे सभ कथूक बलि‍ प्रदान होइ छै, मुदा दोसर-तेसरमे अंतर छै। कि‍छु स्‍थानमे खास चीजक बलि‍ पड़ै छै। तहि‍ना प्रसादो अछि‍। जगन्नाथक प्रसादक अलग रूप-गुण अछि‍।
ओना कोनो स्‍थानक महगाइक परिचए बारहो मास रहलापर होइ छै, से तँ राजस्‍थानमे नै रहला, मुदा जेतबे दि‍न रहला तइमे देखलन्‍हि जे बीत भरि‍क सजमनि‍क दाम, जेकर दाम अपना ऐठाम आठो अना नै हेतै ओ दस रूपैआमे बि‍‍काइत। १९९९ ई.मे गेल रहथि। तीन रूपैए चाह बि‍काइ छल। तहि‍या अपना ऐठाम एक रूपैए कप बि‍काइत छेलै। तीन रूपैए पानक खि‍ल्‍ली बि‍काइ छल अपना ऐठाम बारह-अने रहए। एक तँ अपना सभ जकाँति‍ सैकड़ो अन्न दोकानमे नै देखलन्‍हि मुदा अन्नक भाउमे अपना सभसँ कम अन्‍तर छेलै। किछु सस्‍तो छेलै। जेना चीनि‍या बदाम। चीनि‍या बदामक खेती होइ छै। खएब-पीअब अपना सभ जकाँ नै, सीमि‍त जि‍नगी सीमि‍त भोजन। गरीबी सेहो छै। मुदा अपना ऐठामक कारण भि‍न्न अछि‍ ओइठामक कारण भि‍न्न छै। जहि‍ना नाओं मरूभूमि‍ तहि‍ना सचमुच मरलो अछि‍। ने अपना सभ सन मौसम सुहावना आ ने गाछ-बिरिछक आनन्‍द। मुदा राजाघराना आ औद्योगि‍क घरानाक बसने कलो-कारखाना आ आरामदेह गाड़ीओ-सवारी।
ओना ठीक-ठीक नै बूझल छेलन्‍हि‍ मुदा चारू कात जे छहरदेवाली देने रहै‍ ओ दस कि‍लो मीटरसँ बेसीएमे बूझि‍ पड़लन्‍हि। बीचमे सि‍मेंटक कारखाना बनल। पानि‍, बि‍जलीक बेवस्‍थाक खास बेवस्‍था सेहो। कारखानासँ दछि‍न नमगर चौड़गर पहाड़ छै। जइमे सँ डायनामाटि‍सँ तोड़ि‍ पाथर अबै छै। ओना तीन हजारसँ ऊपर श्रमि‍क कार्यरत मुदा बि‍ना ठौर-ठेकानक। कि‍छु गोटे छथि‍ जि‍नका दरमहो नीक छन्‍हि आ आनो आन सुवि‍धा छन्‍हि‍ मुदा अधि‍कांश श्रमि‍कक जि‍नगीक कोनो ठौर-ठेकान नै छन्‍हि‍। ने कर्मचारीकेँ रहैले आवासक बेवस्‍था छै आ ने नीक मजूरीक।
कारखानाक जे मुख्‍य प्रबंधक छला ओ सेवा-ि‍नवृत्ति‍ आइ.ए.एस छला। कारखानाक भीतरे नीक आवासक बेवस्‍था छेलन्‍हि‍ दरमहो नीक। मि‍थि‍लांचलक दुर्भाग्‍य ईहो अछि‍ जे सेवा-नि‍वृत्ति‍ नीक-नीक पदाधि‍कारीओ आ अध्‍यापको दोहरा-दोहरा नोकरी करए लगला अछि‍। आँइ यौ, अहाँले वानप्रस्थ आश्रम/ सन्‍यास अवस्‍था कहि‍या आैत आकि‍ अबै-ने देबै! जैठाम मिथि‍-मालि‍नक एहेन स्‍थि‍ति‍ रहत तैठाम भगवान मालि‍क छोड़ि‍ के हेता? काँच माटि‍क एकटा दि‍आरी बना लि‍अ। फाटल-पुरान साड़ी फाड़ि‍ टेमी बना लि‍अ। करुतेलक मालीमे मखा दियौ आ साँझू पहर डि‍हवार स्‍थानमे लेसि‍ दियौ आ एकटंगा दऽ दुनू हाथ जोड़ि‍ मांगि‍ लि‍अ जे वि‍द्या दि‍अ, धन दि‍अ, समांग दि‍अ!!
मुख्‍य प्रबंधककेँ देखि‍ मनमे उठलन्‍हि जे कि‍ सेवा-ि‍नवृत्ति पछाति‍ जे नोकरी केनि‍हार छथि‍ ओइसँ भ्रष्‍टाचारकेँ बल भेटै छै।
चौथाइओसँ कम कर्मचारीकेँ स्‍थायी नोकरी भेटल छेलन्‍हि‍ जि‍नका कि‍छु-कि‍छु सुवि‍धो छेलन्‍हि‍बाँकी तीन-चौथाइ ठीकेदारक अन्‍तर्गत काज करैत। ओना दरमाहा कम जरूर छेलन्‍हि मुदा गामक बोनि‍यातसँ बेसी छेलन्‍हि‍हेँ। काजक ढंगो बेवहारि‍क। जेना दूटा सुपर-बाइजर छला। दुनूक बीच एकटा मोटर साइकि‍ल। चौबीसो घंटा कारखाना चलैत अछि‍। जइ सुपार-बाइजरक ड्यूटी समाप्‍त भेलन्‍हि‍‍ ओ मोटर साइकि‍लसँ डेरा जेता, ओही गाड़ीसँ जइ गाड़ीसँ ड्यूटी करैबला सुपर-बाइजर आएल छला। तँए ड्यूटीक हि‍साव लेनि‍हार संगी भऽ जाइ छेलन्‍हि‍ तँए सभ अपन ड्यूटीक पक्का छला।
दोखरा बालु सभठाम एके रंग नै। केतौ-केतौ मेही बालु सेहो छै जेकरा खेतीक उपयोगमे आनल गेल छै। बहुत तरमे पानि‍ (लेअर) तँए बोरि‍ंगो महग। गहुम, बदाम, चीनि‍या बदाम, बाजरा, ताेरक खेती ठाम-ठीम रहए।
अपना सभ जकाँ ने रंग-रंगक पशु आ ने पक्षी। गोटि‍ पंगरा-मोर। अपना ऐठाम जेरक-जेर कौआ, मेना, बगरा-बुगरी अछि‍ से नै। वातावरणो अनुकूल नै। ने रहैले गाछ-बिरिछ आ खाइक रंग-रंगक वस्‍तु आ ने पीवैक पानि‍क बेवस्‍था। गोटि‍-पंगरा गाएओ मुदा खढ़-पानि‍क अभाव जेर बनौने‍। भि‍नसरू पहरकेँ ट्रैक्‍टरपर हरि‍अरो आ सुखलो ठठेर नेने अबै आ छीटि‍ दइ। गाए-सभ अपन-अपन खाए। परबा सेहो छै मुदा खाएब वर्जित‍। जौं खेबै आ पकड़ा जाएब तँ जुर्माना लागत।
राजस्‍थान जाइसँ डेढ़ बरख पूर्व पनचानबे बर्खक अवस्‍थामे जगदीश प्रसाद मण्डलक माए मरि‍ गेली। माइक अंति‍म दर्शन। दि‍नक बारह बजैत। जगदीश प्रसाद मण्डलक पत्नीकेँ ओ कहलखि‍न-
तूँ सभ खाइ-पिबै गेलह?”
पुतोहु- हँ।
बच्‍चा, गाममे अछि‍ कि‍ने?”
खाइ कालमे देखनइ रहथि‍, मुदा लगले बि‍सरि‍ गेली। मनमे शंका भेलन्‍हि‍।
हमरो कनी बि‍छान कऽ दाए।
पुतोहु ओसारेपर बगलेमे बि‍छान कऽ देलकनि‍। बैसले-बैसल घुसुकि‍ कऽ बि‍छानपर पहुँचि‍ते पड़ि‍ रहली से पड़ले रहि‍ गेली! एकादशीक दि‍न।
अंति‍म समए धरि‍ माएकेँ आशा नै टुटलन्‍हि‍। जि‍नगीमे नमहर-नमहर दुर्दिन सेहो एलन्‍हि‍, तँ सेवो एते मजगूत रहलन्‍हि‍ जे आशाक बाट पकड़नइ रहलन्‍हि‍।
सुभ्‍यस्‍त परि‍वारमे माइक जनम भेल छेलन्‍हि‍ दू भाए-बहीनि‍क माने नानाक बीच पि‍ताक परि‍वार छेलन्‍हि‍ बहीनि‍क बेटा नर्सिग मण्‍डल दीप गामक छेलखि‍न। जि‍नका १९४२ ई.मे झंझारपुर सर्कलक आन्‍दोलनमे गोली लागल छेलन्‍हि‍ दुनू गोटेक (जगदीश प्रसाद मण्डल आ हुनको) मात्रि‍क मनसारा (दरभंगा जि‍ला, घनश्‍यामपुर ब्‍लौक) एके परि‍वार। बेरमामे माइक सासुर, दीपमे पीसक (दीदीक, जि‍नकर बेटा नरसि‍ंग मण्‍डल) सासुर, गोधनपुरमे जेठ बहि‍न जे सात भाए-बहि‍नमे सभसँ जेठ। मनसारा परि‍वार सम्‍पति‍‍एमे अगुआएल नै समांगोमे अगुआएल। माइक मौसीक सासुर बेरमे। हुनके परि‍वारक पोखरि‍ अधि‍कारी पोखरि‍क नाओंसँ जानल जाइत अछि‍, जे जगदीश प्रसाद मण्डलक घरक बगलेमे अखनो कारगर अछि‍। घरे-घरे कल भेने नहाएब तँ कमि‍ गेल छै मुदा माछ-मखानक बखारी छै। तहि‍ना एक लकीरमे तीनटा इनार सेहो छेलन्‍हि, जे भग्‍नावशेष मात्र रहि‍ गेल छै‍। तीन भाँइक भैयारीक बँटबारामे चानीक रूपैआ गनि‍ कऽ नै अपि‍तु तराजूपर तौल कऽ बारह-बारह पसेरीक बँटबारा भेलन्‍हि। आेइ परि‍वारक लागि‍मे जगदीश प्रसाद मण्डलक पि‍ताक बि‍आह हेबाक कारण छल पछि‍ला इति‍हास। जइमे कूल-मूलसँ लऽ कऽ पारि‍वारि‍क बेवहार धरि‍ अबैत अछि‍। जगदीश प्रसाद मण्डलसँ ऊपरक पीढ़ी धरि‍ परि‍वारमे हर जोतब आ गाए दूहब वर्जित छल। मुदा आब नै। मौसीक (माइक मौसी) अनुशंसासँ माइक बि‍आह एक साधारण परि‍वारमे भेलन्‍हि‍‍। घरदेखीमे पाँच गोटे जे एलखि‍न से पाँचो पाँच रंगक। अपन-अपन नजरि‍ए सभ परि‍वार देखलन्‍हि‍‍। एकटा नमगर-छड़गर खलीफा सेहो रहथि‍। खेला पछाति‍ घरसँ जखनि नि‍कलए लगला तँ चौकठि‍मे कसि‍ कऽ चोट लगलन्‍हि‍। ओइ तामसपर बाजि‍ गेला-
“एहनो ठाम कुटुमैती करब। जेकरा घर ने दुआर छै।”
मुदा सभ चुपचाप सुनि‍ लेलन्‍हि‍। मौसीक (माइक मौसी) जि‍ज्ञासा रहनि‍ जे अपना सम्‍पति‍ नहि‍येँ छै तँ की हेतै। अपना खेत-पथार, पोखरि‍-इनार तखनि दुख कथीक हेतै। कारणो छेलन्‍हि‍ जे सासुर कि‍छुए दि‍न बसला पछाति‍ वि‍धवा भऽ गेल रहथि‍।
दोसर सि‍फारि‍श (माएक बि‍आहक) मौसीक रहनि‍। माइक जेठ बहि‍न गोधनपुरमे। गोधनपुर बेरमा सटले अछि‍। सात भाए-बहि‍नमे मौसी सभसँ जेठ आ माए सभसँ छोट। करीब तीस बर्खक दूरी। ओना ओहो पुत्र विहिन वि‍धवा भऽ गेल छेलखि‍न। मुदा दूटा सन्‍तान तँ छेलन्‍हि‍हेँ। हुनको सि‍फारि‍श भेलन्‍हि‍। तेसर सि‍फरि‍श दीपक (नरसिंह मण्‍डलक) दीदीक भेलन्‍हि‍। परि‍वारमे महि‍ला समूहक वि‍चार काटब कठि‍न भऽ गेलै। माएक बि‍आह भऽ गेलन्‍हि‍।
३५ बर्खक आयुसँ पहि‍ने वि‍धवा भऽ गेली। पि‍ता मृत्‍यु पछाति‍ करीब साठि‍ बरख जीवि‍त रहली। ऐ साठि‍ बर्खमे एकटा (नैहरक) सुभ्‍यस्‍त परि‍वारकेँ उजड़ल-उपटल देखलखि‍न। कोसी-कमलाक चपेटमे मनसारा गाम उजड़ि‍ गेल। बीच स्‍ती (पुरना स्‍ती) देने कमला बहि‍ रहल अछि‍। तीनू भातिज आ दुनू पोताकेँ एक-एक साल जहलमे बन्न देखलन्‍हि‍। वि‍धवा मौसी देखलन्‍हि, वि‍धवा दीदी आ बहि‍न देख अपनो वैधव्‍य स्‍वीकार केलन्‍हि‍। नरसिंह भायकेँ गोली लागल देखलन्‍हि‍। ततबे नै देखलन्‍हि‍, परि‍वारक भागि‍नक उजड़ल परि‍वार (हरि‍नाही) सेहो देखलन्‍हि‍। जि‍नगीक धक्के ने पंजा मजगूत करै छै!
मनसारा उजड़लासँ दीप, गोधनपुर आ बेरमाक एक परि‍वारसँ संबन्‍धि‍त रहने संबंध मजगूत भऽ गेल‍। परि‍वारक दू सूत्र अछि‍। एक वंशगत दोसर बेवहारगत। एकठाम रहने आ एकठाम नै रहने (हटि‍ कऽ रहने) संबंध प्रभावि‍त होइते अछि‍। नरसि‍ंह मण्‍डलक परि‍वार आ बेरमाक परि‍वारमे मात्रि‍कक सम्‍बन्‍ध बनि‍ गेल अछि‍। जखनि नरसि‍ंह मण्‍डलकेँ गोली लगलन्‍हि‍, इलाजक दरमि‍यान बहुत दि‍न धरि‍ बेरमेमे रहला
माएक मुइला पछाति‍ सराधक सवाल उठलन्‍हि। स्‍थि‍ति‍ नीक नै छेलन्‍हि, मुदा समाजो तँ ऐ समस्‍याकेँ मेटा चुकल अछि‍ तँए तेहेन समस्‍या नहि‍येँ बूझि‍ पड़लन्‍हि। मुदा मनमे दूटा सवाल अपनो उठल रहनि, बाजथि नै। कारण स्‍पष्‍ट, बरि‍आतीक मरजादी भोजक ठहाका तँ नै, तीस-चालीस हजारक काज। प्रश्न रहै जे एकबेर खेलहो-बि‍नु-खेलहोकेँ खुआ सम्‍बन्‍ध तोड़ि‍ लेता। भेरि‍ पेट भोज खाइ दुआरे दि‍न-राति‍क समए लूटा देल जाए, ई नीक नै भेल। मुदा डर ईहो रहनि, एहनो लोकक तँ कमी नै जे अनका ऐठाम पल्‍था मारि‍ दइ छथि‍न आ अपना बेरमे...।
दोसर कारण मनमे नचैत रहनि जे कर्मकांडकेँ तँ हटेलन्‍हि, मुदा भोज तँ लधले रहि‍ गेलन्‍हि। एक दि‍स होन्‍हि‍ जे एकबेर भोज खुआ हरदा बजा दैथि, कम-सँ-कम एतबो तँ हएत जे पाँच गामक पंचो आ समाजो आँखि‍क सोझमे देख लेथि‍न। मुदा कि‍छु बाजथि नै। मुदा अखढ़ुआ मेघ तड़तड़ाएल। तेराति‍ (सारा बनौला पछाति‍) ि‍दन सराधक गप-सप्‍प उठल, पि‍सि‍औत भाय (गोनर मण्‍डल) आबि‍ कऽ (हरि‍नाहीसँ बेरमा) चालि‍ देलखि‍न जे मामी तँ बेटे जकाँ पोसलन्‍हि‍ तँए हम भोज करबै। आठ बरख पहि‍ने गाया सेहो लऽ गेल रहथि‍न। अपन स्‍थि‍ति (गोनर मण्‍डलक) ओते नीक नै, मुदा छोट भाएक बेटा सभ (पाँचो भाँइ) कमासुत तेकर हूबा रहबे करनि‍। भातिज-बि‍लट मण्‍डल-केँ हुनक पि‍ताक बिमारीक खि‍स्‍सा बेर-बेर सुना तैयार (भोज करैले) कऽ नेने रहथि‍। ओ सभ (भातिज) गछि‍ लेलकनि‍। जहि‍ना पोखरि‍मे माछ चाल दैत तहि‍ना भैयाक चाल देखि (जेठ भाय, जे पहि‍नइ मरि‍ गेल छला) भौजी परि‍वारसँ चाल देलखि‍न जे जेते ओ (पि‍सि‍औत भाय गोनर मण्‍डल) करथि‍न तेते हमहूँ करबै। कारण छेलन्‍हि‍ जे दूटा बेटा (राजदेव मण्‍डल आ रामानंद मण्‍डल) दिल्‍लीमे नौकरी करए गल रहनि‍।
जगदीश प्रसाद मण्डल हि‍सा जोड़थि तँ देखथि जे दूटा भोज पचगामामे भेल जइमे तीस-पइतीस हजार खाइ-पिबैमे आ तीस-पइतीस हजार क्रि‍या-कर्ममे खर्च होइ छै। अपन हि‍साअदहामे जोड़थि। एकटा नव बि‍मारी गामक भोजमे सेहो पकड़ि‍ लेने रहै जे मि‍ठाइक भोज रसगुल्‍लाक भोज भऽ गेल रहए। भोजपर नजरि‍ जान्‍हि‍ तँ मन भटकि‍ जान्‍हि‍। होन्‍हि‍ जे अनेरे फेरामे पड़ता। भोज अजसक कांड छी। भनसि‍याक गलती वा बारिकक गलती भोजैतकेँ चटै छै‍। तैसंग मनमे एकटा ईहो उठैत रहनि जे अखुनका जे पचगामा बनल अछि‍, ई तँ हालमे बनल अछि‍। एकर खेबे केते केलन्‍हि‍। भोज खेने छथि ननौर, भोज खेने छथि लकसेना, परसा इत्‍यादि‍मे। से तँ आब फुटि‍ कऽ ओहो दोसर दि‍स चलि‍ गेलैजगदीश प्रसाद मण्डल सभ दोसर दि‍स भऽ गेला। अपन आँट-पेट देखथि तँ चौथाइपर बूझि‍ पड़नि। भात-दालि‍क भोज केलन्‍हि। जहि‍ना कथा गोष्‍ठी सगर राति‍ दीप जरयमे भाय-बंधुकेँ करौने रहथि‍, तेहने भोज केलन्‍हि, नीक जस भेलन्‍हि। भोज खुआ भोज खाएब छोड़ि‍ देलन्‍हि।
माइक मुइला पछाति‍, जेना कुम्‍हारक आबामे ढबाि‍ह लगै छै तहि‍ना ढबाहि‍ लगि‍ गेलन्‍हि। कि‍छुए दि‍न पछाति‍ सासु मरि‍ गेलन्‍हि। हुनको उमेर करीब नब्‍बे बरख छेलन्‍हि‍ ओहू भोजकेँ छोट केलन्‍हि। छोट एना जे तीन-भाए एक बहि‍नक बीच सासुक सराध। जेठ भाय सरकारी नोकरी करैत तँए सरकारी धाही। पत्नीसँ तकरार हेबे करतनि। मुदा सुतरलन्‍हि। नैहर लगमे रहने पत्नी माएक जीवि‍त मुँह देखए गेली से भरि‍ सराध रहि‍ए गेली। जगदीश प्रसाद मण्डल अनठा देलन्‍हि। मुदा सासुरेसँ समाद पहुँचलन्‍हि जे एक-सवा सए कठि‍आरी गेल रहै, तेकर खर्च अपने लागत कि‍ने। सुनि‍ कऽ अनठा देलन्‍हि। जखनि आठ दि‍न बिलै, परसुए नह-केश हएत तँ समाद पठा देलन्‍हि जे अहाँ सभ अशौचक भोज नह-केश दि‍न करै छी। हम सभ (बेरमा) छोड़ि‍ देने छि‍ऐ तखनि अहीं कहू जे हमर आएब उचि‍त हएत। मुदा खूब घौचाल भेलै। दुइए दि‍नमे केते घौचाले हएत, अनठा देलन्‍हि।
सासुर बि‍सरलो ने रहथि आकि‍ नरसि‍ंह मामा (करीब ८०-८५ बर्खक रहथि‍) मरि‍ गेलखिन‍। मुदा दीपक भोज नमहर होइतो छोट होइ छै। गाम नमहर तँए सौंसे गामक भोज करैत-करैत भोजैतक दम खड़ा जाइ छै। मुदा आन गाम तँ एको घरक किए ने हुअए ओ तँ गामे कहाएत। संयोग थोड़ेक नीक भेलन्‍हि‍ जे मृत्‍युसँ करीब आठ बरख पूर्व स्‍वतंत्रा सेनानी भेट गेल रहनि‍। जइसँ दू-अढ़ाइ बीघा खेत कीनि‍ लेलन्‍हि‍। स्‍वतंत्रता सेनानी भेटैसँ पूर्व गामेमे एक गोटे ऐठाम नौकरी करए गल रहथि‍। जे पेंशन भेटलापर छोड़लन्‍हि‍।
चारि‍म भेलन्‍हि जे पत्नीक मामा (ममि‍औत ससुर) सेहो ओही पतियानीमे चलि‍ गेलन्‍हि। ओना हुनको उमेर अस्‍सी पार कऽ गेल रहनि‍। मुदा ओइठामसँ आबा-जाही नै रहने कोनो भारे ने पड़लन्‍हि।
ऐ तरहेँ एक पीढ़ीक (पुरान पीढ़ीक) अन्‍त भऽ गेन्‍हि‍।
जगदीश प्रसाद मण्डल लेल १९९९ ई. अबैत-अबैत आशा-ि‍नराशाक बीच संक्रमणक स्‍थि‍ति‍ बनए लगल रहनि‍। १९९८ ई.मे दफा ३०७क केसमे सजाए भऽ गेल रहनि‍। हाइ कोर्ट अपील होइमे २०-२५ दि‍न लागि‍ गेलन्‍हि‍। तइ समैमे रामपट्टी जेलमे रहथि‍। मने-मन आश्चर्य होन्हि‍ जे बि‍ना कि‍छु केनौं जहलमे छथि‍। तहि‍यो आ अखनो मन नै मानि‍ रहल छेलन्‍हि‍‍ जे कोनो गलती हुनकासँ भेल हुअए। खएर, अपील भेल, जमानत भेलन्‍हि‍। वर्माजी (माननीय न्‍यायमूर्ति वीरेन्‍द्र प्रसाद वर्मा, पटना हाइकोर्ट) केँ फोन केलखि‍न तँ कहलकनि‍‍ जे कि‍छु ने हएत, नि‍चेनसँ अपन काज करू। सएह भेल। केस समाप्‍त भऽ गेलन्‍हि से चारि‍ मास पछाति‍ बुझलखि‍न। तेकर कारण रहए जे केस पैरवी करैक जिम्मा नै रहनि‍। जखनि बहुत अधि‍क केस भऽ गेल रहनि‍ तखनि अपनामे वि‍चारि‍ लेलखि‍न जे एक-एक केसक भार सभ कोइ आपसमे लऽ लि‍अ। जखनि केस खुजत आ खर्च बढ़त तखनि चन्‍दा कऽ लेब तैबीच एक आदमीक जिम्मामे रहत। हाइ कोर्टबला ३०७-केस पहि‍नइ जजमेंट तकक खर्च जमा भऽ गेल रहए। तँए नै बूझि‍ सकला। दोसर केस जे बँचल रहै तइमे समझौताक बात भऽ गेल रहनि‍। ओना तैयो कि‍छु गोटे छह-पाँच कऽ देबे केलकनि‍। तँए केसक चि‍न्‍ता मनसँ हटि‍ गेल रहनि‍। ओना तीन बर्खक वारंट पछाति‍ केसक भाँज तखनि लगलन्‍हि‍ जखनि थानासँ सूचना भेटलन्‍हि‍। झंझारपुर-मधुबनीक बीच जे कोर्टक हेरा-फेरी भेल तइमे केस हरा गेल छेलै। फास्‍ट-ट्रेक कोर्ट खुजला पछाति‍ जखनि ताक-हेर भेल तखनि भेटलै। कि‍छु गोटे (२८गोटेमे) मरि‍ गेल रहथि‍, जइमे तीनटा मुद्दालह आ दूटा गवाह सेहो। संगठनक रूप सेहो छि‍ड़ि‍या जकाँ गेल रहनि‍। तेकर बहुत रास कारण छेलै। सामाजि‍क, आर्थिक, साम्‍प्रदायि‍क इत्‍यादि‍। जहि‍ना अंति‍म केस छेलै तहि‍ना समाजक अंति‍म अस्‍त्रक प्रयोग नीक जकाँ भेलै। मुदा जे भेलन्‍हि‍, दि‍नांक ५-५-२००५ इस्‍वीमे ओहो समाप्‍त भऽ गेलन्‍हि‍। तैबीच जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ दोसर दि‍स बढ़ब उचि‍त नै बूझि‍ पड़नि‍। उपदेशक सभ तँ कहबे करनि‍‍ जे अनेरे परेशान होइ छी। मुदा सि‍मरि‍या पंडाक उपदेशे की। धार गंगा आ वि‍चारधाराक घाट सि‍मरि‍या छी आकि‍ की छी से तँ एके धारमे देखाइ छै। एक घाट (उत्तर) दोसर (दछि‍न) मग्‍गह।
जगदीश प्रसाद मण्‍डलकेँ नव काल्हि‍ देखैक इच्‍छा शुरूहेसँ रहलन्‍हि‍। ओहि‍ना नै केला पछाति‍ आरो मजगूत भेलन्‍हि‍। उदाहरण, परि‍वारमे साधारण शि‍क्षाक आगमन भेल छेलन्‍हि‍तैठाम एम.ए. तक पढ़लन्‍हि। परि‍वारे नै गामेमे पहि‍ल एम.ए. भेला। ओना पछिला पीढ़ीमे संस्‍कृतक माध्‍यमसँ एक-पर-एक वि‍द्वान बेरमामे भेला मुदा जेनरलमे जगदीश प्रसाद मण्‍डलेटा रहथि‍। दोसर, बोरिंग-करौने खेती‍ओमे कि‍छु नवता आबि‍ गेल छेलै गाममे। दुनू रंगक खेती करै छला मण्‍डलजी। दुनू रंगकसँ मतलब- अन्नो आ नगदीओक। नगदी खेतीमे तरकारी आ फलक खेती सेहो करए लगला। ओना जइ रूपे करए चाहै छला ओइ रूपे नै होइक कारण छल, कि‍छु समैओक अभाव आ कि‍छु उपद्रवो। खेतीक एहेन उजाड़ि‍ होइत रहनि‍ जे जौं मारि‍-झगड़ा करए लगि‍तथि‍ तँ दि‍नमे तीन बेर होइतनि‍। पैघ समस्‍याक आगू छोट गौण पड़ि‍ जाइ छै। मुदा मन तोड़ैक तँ अस्‍त्र भेबे कएल। उपद्रवो चाहे जेतए होउ मुदा मनकेँ प्रभावि‍त तँ करि‍ते अछि‍। तहूमे खेतीक उजाड़ि‍ मेहनति‍, पूजी, समए सबहक क्षति‍। जइ दि‍न मधुबनी कोर्टमे ३०७ केसक जजमेंटमे सजा भेलन्‍हि‍ ओइ दि‍नक घटना- गामक जेते देखार वि‍रोधी रहनि‍ ओकरा सभकेँ ई बूझल रहै जे सजा हेतनि‍, जहल जेता। जखने जेता तखने दस बरखसँ पहि‍ने थोड़े नि‍कलता। सजाए भेलन्‍हि‍ जहल गेला। तीन कट्ठा बन्‍धा कोबी बोरिंगबला चौमासमे केने रहथि‍। हाँ एकटा बात आरो बीचमे कहि‍ दि‍अ चाहै छी जे १९७०-७१सँ १९८६-८७ धरि‍ बेरमाक खेती आगू ससरैत रहल। अनेको दमकल, बोरिंग भऽ गेल। हालर चक्की, थ्रेशर इत्‍यादि‍ सेहो सभ भऽ गेल। मुदा १९८६-८७क बाढ़ि‍-भुमकम खेतीकेँ पाछू धक्का मारि‍ देलक। एक तँ सरकारी राशनक चहटि‍ बाढ़ि‍-भुमकम पछाति‍ लागि‍ गेल दोसर अनेको बोरिंग माटि‍क तरमे टूटि‍-फूटि गेल। गामक खेती पाछू ससरि‍ गेल। मुदा हि‍नकर तँ जीवि‍का रहन्‍हि‍, छोड़ने केना बनि‍तनि‍‍। जइ दि‍न ३०७क जजमेंट भेलन्‍हि‍ ओइ समए जे कोबी छेलन्‍हि ओ २ कि‍लोसँ लऽ कऽ चारि‍ कि‍लो धरि‍क फूल १८ सए गाछ रहनि। बन्‍धा कोबीक भाव २-५ रूपैए किलो रहए। अन्‍दाजि‍ लि‍औ जे केहेन नोकसान भेलन्‍हि‍। अट्ठारहो सए गाछ दि‍न-देखार उखाड़ि‍ कऽ लऽ गेलन्‍हि। दाेसर, जहल‍ नि‍कललाक तीन मास पछाति‍ कछुबी गेला। कछुबी उत्तरवारि‍ टोलमे एकटा चाहक दोकानदार, जे बि‍शौलसँ कछुबी आबि‍ बसि‍ गेल अछि‍, चाहेक दोकानपर जेना केते भारी अपराध कऽ जहलसँ आएल होथि‍ तही ढंगक बेवहार हि‍नका संग केलकनि‍। आ से ओ जेकरा अपने ठेकान नै छै, मुदा की करि‍तथि‍। कछुबीक रत्न कालीबाबूक (काली कान्‍त झा, आइ.पी.एस.) परि‍वार संग खेनाइ-पीनाइ आबा-जाही छन्‍हि‍‍। ओना अखनि धरि‍ कछुबीमे दुइए गोटे आइ.पी.एस केलन्‍हि‍ अछि‍, तइमे कालीबाबू पहि‍ल। तहूमे वि‍द्यार्थीए जीवनसँ मंचक वक्‍ता बनि‍ गेल रहथि‍, गीताक मंच (गीता प्रवचन) पर अधि‍क बैसै छला।
राजनीति‍ सेहो ठमकि‍ गेलै। १९६० इस्‍वी पछाति‍ मधुबनी जि‍ला कम्‍युनिस्ट पार्टीक मुख्‍य आन्‍दोलन कोसी नहरि‍, नूनथर, शीशा पानी, बराह क्षेत्रक डैमपर केन्‍द्रि‍त भऽ गेल। ओना आनो मुद्दा रहबे करै। बटाइदारी जमीनक लड़ाइ जोर पकड़नइ रहए। नहरि‍क पानि‍ आ पनि‍बि‍जली जेना कम्‍युनिस्टे पार्टीक होइ तहि‍ना लोकक धारणा बनि‍ गेल छेलै। जेकरा समाधान भेने मि‍थि‍लांचलक उद्धार भऽ जाइत। खेतीसँ उद्योग धरि‍ बढ़ि‍ जाइत, से नै भेल। जेते वि‍रोधी (कम्‍युनिस्ट वि‍रोधी) ताकत छल रंग-रंगक आन्‍दाेलन, षड्यंत्र कऽ योजनाकेँ अखनि धरि‍ सफल नै हुअ देलक। पार्टीओक राजनीति‍मे ठहराव आबि‍ गेल। एतबे नै जेकरा सभकेँ बटाइ-जमीन भेल ओहो सभ ओकरा (ओइ खेतकेँ) भरना लगा पंजाब-दि‍ल्‍ली जाए गल। परि‍णाम ओहेन बए लगलन्‍हि‍ जे की केला तँ कि‍छु नै। सिरिफ जि‍लेक राजनीति‍ नै। गामोमे सए भेलन्‍हि‍। मनमे उठलन्‍हि‍ जे हजारो बर्खक गाछ कि‍छु-ने-कि‍छु अपनामे नवीनता अनि‍ते रहैए। चाहे नव टुसा होउ आकि‍ नव मुड़ी आकि‍ नव पात आकि‍ नव कल। वि‍चार तँ उठलन्‍हि‍ मुदा मनमे दुनू केस तँ रहबे करनि‍। जाइ-अबैक परेशानी नै, केसक सजाएक परेशानी। दुनू सेशन केस। दू-दि‍ना-चारि‍-दि‍ना तँ छी नै जे बुझथि‍न पहुनाइ करए जहल गेल छला। सालक-साल दस साल, बारह साल। दुनू मि‍ला बीस सालसँ बेसी। तैबीच की कएल जाए। जाधरि‍ केससँ छुटकारा नै पाबि‍ लेता ताधरि‍ दोसर दिस‍ बढ़ब नीक नै हेतनि‍।
केसक छुटकारा पछाति‍ करबे की करि‍तथि‍। गुजर लेल खेती करि‍ते छला। नोकरी दि‍स कहि‍यो मनसँ तकबे ने केला, वेपार कएले ने हेतनि‍। मुदा जि‍नगीओ तँ छोट नै अछि‍। कठही साइकि‍ल (काठक पाइडि‍ल लगाैल साइकि‍ल) तँ नै जे थालो-कादो आकि‍ रस्‍ताक कटारि‍ओमे कन्‍हापर उठा लेता आ टपि‍ जेता। जि‍नगीक गाड़ी छी। एक पटरीपर सँ दोसर पटरीपर आनब। एकर अर्थ ई नै जे जैठाम पाहि‍ कटैक जोगाड़ छै तैठाम गाड़ीकेँ लऽ जा कऽ दोसर पटरीपर चढ़ा दियौ। दोसर पटरीपर नैक अर्थ ई जे छोटी लाइन (मीटर गेज लाइन) सँ बड़ी लाइनपर चढ़एबाक अछि‍। ओकर आँट-पेट छोट छै मुदा कि‍छु पार्ट- धुरी-चक्का बदलने तँ डि‍ब्‍बा आ आनो-आनो वस्‍तु उपयोगी बनि‍ जाइ छै। प्रश्न एतबे नै अछि‍, ऐसँ आगूओ अछि‍। ओ ई अछि‍ जे अदौसँ अबैत जि‍नगीक गाड़ी छी। जेते रंगक पटरी तेते रंगक पटरीक गति‍। तैठाम गाड़ीकेँ दोसर पटरीपर लऽ जाएब, असान नै। साहि‍त्‍यो जगतक जे दशा-दि‍शा अछि‍ ओ छपि‍त नहि‍येँ अछि‍। तहूमे लाठी सबहक हाथ पड़ल अछि‍। कोनो वस्‍तु मंगलापर नै दऽ छि‍पा लेब, लाथ कहबैत अछि‍। मैथि‍ली साहि‍त्‍य जगत समाजसँ एते दूर हटि‍ गेल अछि‍ जे जोड़ब असान नै अछि‍। ई सिरिफ मैथि‍लीएमे नै अछि‍ आनो-आन साहि‍त्‍यमे भरपूर अछि‍। जना- कबीर दासक चर्च मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे कम अछि‍ मुदा कबीर दासक जे जि‍नगीक (जीवन पद्धति‍) इति‍हास प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍ ओ वि‍वेकपूर्ण जकाँ नै अछि‍। वि‍वेकपूर्ण नै हेबाक कारणे कबीर दर्शन समाजसँ हटि‍ गेल अछि‍। जेहो सभ दर्शनक प्रचार-प्रसार कऽ रहल छथि‍ ओहो सभ या तँ अपनो गुमराहे छथि‍ नै तँ लाथी छथि‍ जे गुमराह केने छथि‍। तहि‍ना तुलसी दास गोस्‍वामी कहबै छथि‍, मुदा केतेक गाए पोसने छला? जरूरति‍ अछि‍ युगानुसार साहि‍त्‍यक ि‍नर्माण करब।
तहि‍ना जाधरि‍ मैथि‍लीओ साहि‍त्‍य समाजक वस्‍तु (समाजक साहि‍त्‍य) नै बनत ताधरि‍ के केकरा की कहै छिऐ से भाँज थोड़े गत? तँए शुभेक्षु साहित्‍यकारक दायित्‍व बनै जे एक आँखि‍ समाजपर रखि‍ दोसर आँखि‍ कागत-कलमपर रखता तखने मैथि‍ली साहि‍त्‍ये नै मि‍थि‍लाक कल्‍याण हएत। राज्‍यक अर्थ जौं राजधानीक एकटा कार्यालयसँ लइ छी तँए मि‍थि‍लाक समाज छूटि‍ जाइए। मि‍थि‍लाक समाजि‍क पद्धति‍ वैदि‍क पद्धति‍सँ आगू बढ़त तखने सर्वांगी‍न वि‍कास हएत।
जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक, हाइ स्‍कूलक एकटा स्‍मृि‍त- केजरीवाल हाई स्‍कूलमे नाआें लि‍खेने छला। स्‍पेशल नाइन्‍थक (हायर सेकेण्‍ड्री) सि‍लेसक वि‍स्‍तार भेल। मुदा तैयो आनर्स जकाँ वि‍षय नै भेलन्‍हि‍, समटाएले रहलन्‍हि। पुरने सेकेण्‍ड्री पद्धति‍क रहलन्‍हि‍। मुदा वि‍षयक वि‍स्‍तार तँ भेबे कएल। अर्थोशास्‍त्रक पढ़ाइ होइ छेलन्‍हि‍शुरूहक छह-मास पछाति‍ (हायर सेकेण्‍ड्री कोर्सक) अर्द्धवार्षिक परीछा भेलन्‍हि‍। केजरीवाल स्‍कूलक बेवहार छल जे अर्द्धावार्षिक परीछाक काँपीए वि‍द्यार्थीकेँ दऽ देल जाइ छल। कि‍छु वि‍द्यार्थी जे परीछा पछाति‍ दोहरा कऽ जे प्रश्नक उत्तर पढ़लन्‍हि‍ तँ ओ तँ पढ़ि‍ए कऽ मुदा जे से नै केलन्‍हि‍ तँ घरपर पोथीसँ मि‍ला देख लइ छला। ने शि‍क्षकक बीच कोनो मलानता छेलन्‍हि‍ आ ने वि‍द्यार्थीकेँ होन्‍हि‍ जे मास्‍टर साहैब जति‍आरए केलन्‍हि‍। ततबे नै लत्ती बाबूक (स्‍व. यदुनन्‍दन साहु) अलग सोच रहनि‍। हुनकर नम्‍बर दइक अलग कसौटी रहनि‍। हुनकर समझ रहनि‍ कम नम्‍बर देने वि‍द्यार्थी आरो मेहनति‍ करत। कि‍एक तँ सभ वि‍द्यार्थी पास करैक जि‍ज्ञासासँ पढ़ैत अछि‍। फेलक डर हेतै। तैसंग ईहो शि‍क्षक-सँ-वि‍द्यार्थी धरि‍-सभ बुझैत जे लत्ती बाबू हाथसँ जौं बीसो प्रति‍शत नम्‍बर आबि‍ जाएत तँ बोर्डमे पास हेबे करब।
हँ, अर्थशास्‍त्रक चर्च केने छेलौं। स्‍पेशल नाइन्‍थमे पचास प्रति‍शतसँ अधि‍क नम्‍बर एलन्‍हि‍। सभ वि‍षयसँ बेसी। क्‍लासमे जखनि श्‍याम बाबू (स्‍व. श्‍यामा नन्‍द झा) जोरसँ पढ़ि‍ काँपी देलकनि‍ तखनि जेना अर्थशास्‍त्र मनकेँ एना पकड़ि‍ लेलकनि‍ जे दास कैपि‍टलसँ लऽ कऽ बादमे अमर्त्‍य सेन धरि‍क परि‍चए करा देलकनि‍। अोना हायर सेकेण्‍ड्री टपला पछाति‍ मनक दूटा वि‍षय- अर्थशास्‍त्र आ भूगोल तँ हटि‍ गेलन्‍हि‍ मुदा मनसँ नै हटलन्‍हि‍। वि‍षय समटा कऽ अंग्रेजी, हि‍न्‍दी आ राजनीति‍ शास्‍त्र धरि‍ रहि‍ गेलन्‍हि‍। ओहो एम.ए.मे घटि‍ गेलन्‍हि‍। प्रश्न उठैए कि‍यो एक वि‍षयसँ वि‍शेषज्ञ छथि‍ आ कि‍यो बहु वि‍षयी छथि‍, दुनूमे जि‍नगीक गाड़ी कि‍नकर समटल चलतनि‍?
बीसम शताब्‍दीक मृत्‍यु आ एकैसम शताब्‍दीक जनम बुझबे ने केला। गुनधुनेमे रहि‍ गेला जे की करी की‍ नै करी। ने बीसम दीक सराध कऽ पेला आ ने एकैसम दीक जन्‍मोत्‍सव। मुदा एकटा लाभ तँ जरूर भेलन्‍हि‍ जे सराधोक खर्च बँचलन्‍हि‍ आ जन्मदि‍नोक।
पंचवर्षीय चुनाव पद्धति‍क आगमन भेल। मन्‍हुआएल मन शि‍शि‍रक सि‍ताएल भौम्‍हरा खुजल। पंचायतसँ जि‍ला-परि‍षद धरि‍क योजना बना समाजकेँ ठाढ़ करए चाहलन्‍हि‍। आठ पंचायतक चुनाव जि‍ला परि‍षदक। आन समाजमे जाइसँ पहि‍ने अपन समाज मजगूत बनाएब आवश्‍यक बुझलन्‍हि‍। अंचल सम्‍मेलन गंगापुरक स्‍कूलमे भेल। पंचायत चुनावक कार्यक्रम बनल। बेरमाक योजना रखलखि‍न। सर्वमान्‍य भऽ गेलन्‍हि‍। मुदा एक नै अनेको सूत्र राजनीति‍क लागि‍ गेलन्‍हि‍। जइसँ चारि‍टा जि‍लो परि‍षदमे पार्टीक आ चारि‍टा पंचायतो मुखि‍या लेल पार्टीक (कम्‍युनिस्ट पार्टी) उम्‍मीदवार बनि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलन्‍हि‍। खएर जे भेल।
पंचायत चुनाव (मुखि‍या लेल) हारलथि‍। चुनाव भरि‍ तँ उत्‍साह रहलन्‍हि‍ मुदा समाजसँ जि‍ला पार्टीक बहुत बात बुझैमे आबि‍ गेलन्‍हि‍। एक दि‍स सरकारी योजना (चुनावमे आरक्षण) देखथि‍ तँ बूझि‍ पड़नि‍ जे अनेरे ऐ चुनावक भाँजमे पड़ला। आरक्षणक एहेन तरीका अछि‍ जे एक चुनावसँ दोसर चुनावक रस्‍ते बन्न भऽ जेतै। पचास प्रति‍शत महि‍ला आरक्षणमे एक-एक टर्म हेबाक चाहै छेलै। मुदा से नै भेल। जौं दू-दू टर्मपर चुनाव होइए तँ पूर्ण राउण्‍ड केते दि‍नमे हएत। खएर जे होउ, मुदा सरकारी लूट तँ बढ़ि‍ए गेल। जइ गति‍ए समाजकेँ ठाढ़ भऽ चलैक गति‍ हेबाक चाही से अखनो धरि‍ नै आबि‍ सकल अछि‍। अनेको कारणमे मुख्‍य भ्रष्‍टाचार बनि‍ गेल अछि‍। भ्रष्‍टाचारी ओहेन-ओहेन अछि‍ जेकर सरकार छि‍ऐ। के केकरा देखार करत। जौं देखारे करत तँ कानूने की करतै। वि‍चि‍त्र महजालमे समाज फँसि‍ गेल अछि‍। आम आदमीकेँ आर्थिक तंगी छै। ओ केना पूर्ति हएत? पूर्तिक जे पद्धति‍ अछि‍ ओ एहेन बनल अछि‍ जे चरवाहीएमे गाएओ बि‍का जाइए! तैपर सँ देखौआ-चोरौआ फुट्टे!!
जेकरा लेल अट्ठारह दि‍न जहलमे रहला ओ आगू आबि‍ ठाढ़ भऽ गेलन्‍हि‍। मन पड़लन्‍हि‍ महाभारतक ओ कथा जे महाभारतक उपरान्‍त भेल। मनमे मि‍सि‍ओ भरि‍ शंकाक जनम नै भेलन्‍हि‍। वि‍परीत भेलन्‍हि‍। पाछू उनटि‍ देखलन्‍हि तँ बूझि‍ पड़लन्‍हि‍ जे अखनि धरि‍क जे मोटा कपारपर लादल छन्हि‍ ओकरा हेट करैक ऐसँ नीक अवसर नै भेटि‍तन्‍हि‍। सएह केलन्हि
मुदा एकटा प्रश्न तैयो रहबे केलन्‍हि‍ जे आगूसँ उसारी आकि पाछूसँ आकि‍ दुनू दि‍ससँ आकि‍ एक्केबेर। आगूसँ उसारैक वि‍चार भेलन्‍हि‍। संयोगो नीक रहलन्‍हि। मधुबनी जि‍लाक वासोपट्टीमे पार्टीक (भाकपा) राज्‍य सम्‍मेलन भे। पार्टीक महासचि‍व वर्द्धन (ए.बी. वर्द्धन) साहैबक संग-संग बंगालोक कामरेड सभ रहथि‍न। संग-संग ि‍बहारक सभ जि‍लाक तँ रहबे करथि‍। नीक सम्‍मेलन भेल। जि‍लाक एकटा कार्यकर्त्ता होइक नाते जगदीश प्रसाद मण्‍डल अपनो उपस्‍थित रहबे करथि‍। राज्‍यक (पार्टीक) जे साहि‍त्‍य प्रेमी छथि‍ हुनका सभकेँ कहि‍ देलखि‍न‍-
आब अहीं सबहक संग आबि‍ रहल छी।
mmm