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Tuesday, March 25, 2014

81म सगर राति‍ दीप जरए देवघरमे 22 मार्च 2014केँ पठि‍त वि‍हनि‍ कथा ''आन्‍हर''

आन्‍हर
 


हाइ स्‍कूल, झंझारपुर, केजरीवालमे पढ़ै छी। बेसी वि‍द्यार्थी कौमर्स पढ़ैए। हम अर्थशास्‍त्र पढ़ै छी। 
इन्‍द्रपुजाक हलहोड़ि‍मे माएसँ ठकि‍ कऽ पचास रूपैआ लऽ लेलौं। खेबो-पीबो केलौं, रामहि‍लोरोपर चढ़लौं मुदा कदमक झूला छूटि‍ गेल। पाइए सठि‍ गेल। होटलो की आब ओ होटल रहल जे छअ आनामे भरि‍ पेट दालि‍ अल्‍हुआ भेटैत।
पचासो रूपैआक हि‍साब माए बाबूकेँ दऽ देलकै। साँझमे जखनि‍ मलड़ैत गामपर एलौं आकि‍ बाबू पुछलनि‍-
कोन-कोन कि‍ताप लेलँह?”
बाबू लग झूठ नै बजै छी, मुदा ई नै बुझै छी जे सतो-सभटा बजले जेतै। जेना-जेना खर्च केलौं खोलि‍ कऽ कहि‍ देलि‍यनि‍। तमसेला नै मुदा तमसाएल बात कहला-
 “आन्‍हर छेँ, अन्‍हारमे अनहेर होइ छै। ओइ अनहेरमे परमेँ तँ अनेरे अन्‍हरा जेमे। कान पकड़ि‍ ले।mmm

अखिलेश कुमार मण्‍डल
बेरमा, मधुबनी।

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