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Friday, October 18, 2013

डीहक बँटबारा (दोसर संस्‍करण)

डीहक बँटबारा

अमानतक दिन। चारि बजे भोरेसँ पुड़ी-जिलेबी-तरकारी इत्‍यादि‍क सुगंध गामक हवामे पसरि गेल। सौंसे गामक लोककेँ बुझले तँए केकरो सुगंधसँ आश्चर्य नै होइ। भोरे श्रीकान्तो आ मुकुन्दोक पत्नी फूल तोड़ि नहा-सोना कऽ बरहम स्थान पूजा करए गेलि। हलुआइ दू-चुल्हियापर तरकारीओ बनबैत आ जिलेबीओ छनैत। कुरसीपर बैसल श्रीकान्त मोने-मन बरहमबाबाक कबुला केलक जे जँ हमरा मनोनुकूल नापी भेल तँ तोरा जोड़ा छागर चढ़ेबह। तहिना मुकुन्दो। गामक सुगंधित हवामे सबहक मन उधियाइत। चाह बनबैबला चाह बनबैमे बेस्‍त। पान लगबैबला पानमे। दुनू दिस कट्ठा-कट्ठा भरिक टेंट लागल। दड़ी आ जाजीम बिछाैल। एक भागमे गाँजा पीनिहारक बैसार आ दोसर भागमे दारूक। जहिना बुचाइ कूदि कऽ कखनो हलुआइ लग जा देखैत तँ कखनो दारूबलाक बैसारमे जा दू-गिलास चढ़ा लैत। तहिना सरूपो। सभ कथूक ओरियान काल्हिए दुनू गोटे दुनू दिस कऽ नेने तँए अनतए जेबाक जरूरते नै केकरो, चाह-पानक इत्ता नै। जेकरा जेते मन हुअए से तेत्तै खाउ-पीबू। जलखैमे पुड़ी-जिलेबी डलना आ कलौमे खस्सीक माँस आ तुलसीफुल-भात। तँए भरि दिनक चिन्ता सबहक मनसँ पड़ाएल। जीविलाह सभ दुनू दिस टहलि-टहलि खाइत-पीबैत।
श्रीकान्तो आ मुकुन्दो इंजीनियर। दुनू एक्के वंशक। दुनूक परदादा सहोदरे भाए। पाँच कट्ठाक घराड़ी, जइमे दुनू गोटेक अदहा-अदहा हिस्सा। जहिएसँ दुनू गोटे नोकरी शुरू केलनि, तहिएसँ गाम छोड़ि देलनि। एक पुरिखियाह वंश तँए परिवारमे दोसर नै। पैंतीस सालक नोकरीक बीच कहियो दुनूमेसँ कियो गाम नै एला। जइसँ पहुलका बापक बनौल घर दुनूक खसि पड़लनि। गामक स्त्रीगण सभ ठाठ-कोरो, धरनिकेँ उजाड़ि-उजाड़ि जरा लेलक। ढि‍मका-ढि‍मकीकेँ सेरिया गामक छौड़ा सभ फील्ड बना लेलक। गामक जेते खेलौड़ि‍आ छौड़ा सभ छल ओ सभ अपन-अपन खेलक जगह बाँटि लेलक। एकटा फील्ड कबड्डीक, दोसर गुड़ी-गुड़ीक, तेसर चिक्का-चिक्काक, चारिम गुल्ली-डंटाक आ पाँचम रूमाल चोरक बनि गेल। उकट्ठी छौड़ा सभ एक दोसराक फील्डमे राता-राती झाड़ा फीर दइ। मुदा खेल शुरू करैसँ पहिने दस-बीसटा गारि पढ़ि सभ अपन-अपन फील्ड चिक्कन बना लिअए। ओना दुनू गोटे -श्रीकान्तो आ मुकुन्दो- बाहरे घर बना नेने छथि मुदा मरै बेरमे दुनूकेँ गाम मन पड़लनि। साले भरिक नोकरी दुनूक बाँचल तँए तीन मासक छुट्टी लऽ लऽ गाम एला। गाम अबैसँ पहिने दुनू गोटे फोनक माध्यमसँ अबैक दिन निर्धारित कऽ नेने रहथि। किएक तँ परोछा-परोछी नापी करौलासँ आगू झंझटिक डर दुनूक मनमे रहनि।
घराड़ी नापी होइसँ दस दिन पहिने श्रीकान्त गाम एला। अपना तँ घरो नै, मुदा अबैकाल एकटा रौटी, सुतै-बैसैक समान संग भानसो करैक सभ कि‍छु नेने एला। गाम आबि पितियौत भाइकेँ कहि सभ बेवस्था केलनि। सभ गर लगला पछाति‍ भाएकेँ पुछलखिन-
“बौआ, गाममे के सभ मुँहपुरखी करैए?”
भाए कहलकनि-
“गाममे तँ कियो राजनीति नहियेँ करैए मुदा बुचाइ आ सरूप सभ धंधा करैए।
“की सभ धंधा?”
“जेना कियो खेत किनैए वा बेचैए तैबीचमे पड़ि किछु कमा लइए। तहिना गाएओ-महिंसमे करैए। भोट-भाँटसँ लऽ कऽ कथा-कुटुमैती धरिमे सेहो किछु-ने-किछु हाथ मारिए लइए।
भाएक बात सुनि इंजीनियर साहैब कनीकाल गुम्म भऽ गेला। मोने-मन सोचि-विचारि कहलखिन-
“कनी बुचाइकेँ बजौने आबह?”
“बड़बढ़ियाँ
कहि भाए बुचाइकेँ बजबए विदा भेल। मोने-मन श्रीकान्त सोचए लगला जे गाममे तँ सबहक हालत तेनाहे सन अछि। देखै छिऐ जे जेहने घर-दुआर छै तेहने बगए बानि। दू चारिटा जे ईंटो घर देखै छिऐ सेहो भितघरे जकाँ। तँए गाममे ओहेन घर बना कऽ देखा देबै जे गामक कोन बात, परोपट्टाक लोक देखए औत। पुरान लोक सबहक कहब छन्‍हि‍ जे जेहेन हवा बहै ओइ अनुकूल चली। जुग पाइक अछि। जेकरा पाइ रहतै ओ बुधियार। जेकरा पाइ नै रहतै ओ किछु नै। असगर ब्रहस्‍पैतो फूसि। जेकरा पाइ छै वएह नीक घर बनबैए, नीक गाड़ीमे चढ़ैए। ओकरे धिया-पुता नीक स्कूल-कौलेजमे पढ़ैए। ओकरे परिवारक लोक नीक लत्ता-कपड़ा पहिरैए। बेटा-बेटीक बि‍आह नीक परिवारमे होइ छै। आइक जे सुख-सुविधा विज्ञान करौलकहेँ ओकर सुख भोगैए। यएह ने जुग संग चलब छी। समाजक बीच प्रतिष्ठा बनाएब तँ बामा हाथक काज छी। अधलासँ अधला काज करि कऽ पाइ कमा लिअ आ समाजकेँ भोज खुआ दियौ, बस जशे-जश, प्रतिष्ठे-प्रतिष्ठा। हाथमे पाइ अइछै, सभ कि‍छु करि कऽ गौआँकेँ देखा देबै। बेटो-बेटीकेँ पढ़ा-लिखा, बिआह-दुरागमन करा कऽ निचेने छी। तहन‍‍ तँ एकटा काज मात्र पछुआएल अछि, ओ अछि सामाजिक प्रतिष्ठा। सेहो बनाइए लेब।
मोने-मन श्रीकान्त विचारिते रहथि आकि बुचाइ संग भाए पहुँचलनि। लगमे अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि बाजल-
“गोड़ लगै छी काका। अहाँ तँ गामकेँ बिसरि गेलिऐ। सरकारक एयर कंडीशन मकान भेटले अछि तहन‍‍ कथीले थाल-कादोमे आबि मच्छर कटाएब?”
अपनाकेँ छिपबैत श्रीकान्त बजला-
“नै बौआ, से बात नै अछि। जखने नोकरीक जिनगी शुरू केलौं तखने दोसराक गुलाम बनि गेलौं। जे-जे हुकुम देत से से करए पड़त। तूँ सभ कम उमेरक छह तँए नै देखलहक, मुदा हम तँ अंग्रेजक शासन देखने छी कि‍ने! शासन तरे-तर चलै छै, जे सभ थोड़े बुझैए। अंग्रेजक पीठिपोहू छल ऐठामक राजा-रजबार आ ओकरा सबहक फाँड़ी छी जमीनदार सभ। ओ सभ जे ऐठामक लोक संग बेवहार करै छल आ करैए से तँ तहूँ सभ देखते छहक। मुदा ऐ सभ गपकेँ छोड़ह। तोरा जे बजौलियऽ से सुनह। साले भरि आब नोकरी अछि। नोकरी समाप्त भेला पछाति‍ गामेमे रहब। तँए तीन मासक छुट्टी लऽ कऽ एलौं हेन जे घराड़ीक अमानत करा घर बनाएब। बिनु घरे रहब केतए?
बुचाइ-
“हँ, ई तँ जरूरीए अछि। मुदा हमरा किए बजेलौं?”
पासा बदलैत श्रीकान्त-
“मुकुन्द जीकेँ सेहो खबरि दऽ देने छि‍यनि‍। ऊहो काल्हिसँ परसू धरि एबे करता। ऐठाम तँ दुइए गोटेक घराड़ी खाली अछि, तँए दुनू गोटेक रहब जरूरी अछि। तोरा तँ नै बूझल हेतह, हमर परबाबा आ मुकुन्दक परबाबा सहोदरे भाए छला। अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठाक हिस्सा जमीन दुनू गोटेकेँ अछि। तँए कोनो पेंच लगाबह जे हमरा तीन कट्ठा हुअए।
श्रीकान्तक पेटक मोलि‍ बुचाइ देखि गेल। मुस्‍कीआइत बाजल-
“एँह, अहीले अहाँ एते चिन्तित छी। ई तँ बामा हाथक काज छी। अमीनकेँ मिला लेब, सभ काज भऽ जाएत। किएक तँ अमीनक गुनियाँ-परकालमे पाँच-दस धूर जमीन नुकाएले रहै छै। मुदा ऐ ले खरचा करए पड़त। हम तँ जोगारे ने बैसाएब, खर्च तँ अहींकेँ करए पड़त।
पाइक गरमी श्रीकान्तकेँ रहबे करनि। मनमे ईहो बात रहनि जे भलहिं‍ं मुकुन्दो इंजीनियर छथि, दुनू गोटेक दरमहो एक्के रंग अछि मुदा पाइमे बरबरि‍ कऽ लेता, से केना हेतै। मुस्की दैत कहलखिन-
“तोहर मेहनति‍ आ हम्मर पाइ। सएह ने। जेते खर्च हएत, हएत। मुदा मैदानसँ जीति कऽ अबैक छह।
श्रीकान्तक बात सुनि बुचाइ मोने-मन खुश भेल। मनमे एलै, नीक मोकि‍र हाथ लागल। भरिसक राशि घुमल हेँ। ओह! बहुत दिनसँ अखबारो ने पढ़लौं जे कनी राशि देखि लैतिऐ। खैर नहियोँ पढ़लौं तैयो शुभ बूझि पड़ैए। जोशमे बाजल-
“काका, रूपैआ-पुत पहाड़ तोड़ैए। ई तँ मात्र अमानते छी। जे चाहबै, से हेतै। मुदा अहाँ कंजूसी नै करबै।
कंजूसीक नाओं सुनि श्रीकान्त कहलखिन-
“मरदक बात छिऐ। जे बाजि देब ओ बिनु पुरौने छोड़ब।
बैगसँ पाँच हजार रूपैआ निकालि श्रीकान्त बुचाइकेँ देलखिन। रूपैआ जेबीमे रखि बुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेल।
गामक पेंच-पाँचमे बुचाइ माहिर मुदा समाजमे अनुचित हुअए, से कखनो नै सोचए। जहिया कहियो उकड़ू काज अबै तहन‍‍ गुरुकाकासँ पूछि लैत। मोने-मन रस्तामे सोचए लगल जे ऐ बेर हिनका तेहेन सिखान सिखेबनि जे मरै काल तक मन रहतनि। जहिना सरकारी खजानासँ लऽ कऽ ठीकेदार धरिसँ समेटि‍लाहा रूपैआ केहेन होइ छै, से सिखता।
आँगन पहुँच‍ बुचाइ चारि हजार पत्नीक हाथमे आ एक हजार अपना हाथमे रखलक। जहिना अगहनमे धानक ढेरी देखि, दुनू परानी किसानक मन खुशीसँ गदगदा जाइत तहिना दुनू परानी बुचाइकेँ भेलै। मुदा दुनूक खुशीमे अन्तर होइए। किसानक खुशी मेहनति‍क फल देखि होइत जहन‍‍ कि बुचाइक खुशी दलालीक। मुस्की दैत बुचाइ घरवालीकेँ कहलक-
“खिड़कीपर एकटा शीशी अछि, नेने आउ?”
मुँह चमकबैत घरवाली बाजलि-
“खाइ-पीबै रातिमे शीशी की करब?”
बुचाइ-
“शीशीओ नेने आउ आ खेनाइओ नेने आउ। दुनू संगे चलतै। जाबे भरि मन नै पीअब ताबे मूड नै बनत। बहुत बात सोचैक अछि। अहाँ नै ने हमर बात बुझबै?”
पत्नी-
“अहाँक बात बुझैक जरूरति‍ हमरा कोन अछि। हमरा तँ अपने मन केनादन करैए। देह भँसिआइए।
“अच्छा ठीक अछि, अहूँ दू घोंट पीब लेब।
भोरे बुचाइ चौकपर पहुँचल। गामक बीचमे चौबट्टी। जइ चौबट्टीपर चारू भरसँ तीस-पैंतीसटा छोट-छोट दोकान। दस-बारहटा दू-चारी घर, बाँकी कठघारा। ओना एक्कोटा नम्‍हर दोकान नै मुदा सभ कथुक दोकान। जइसँ गामक लोककेँ हाट-बजार जेबाक जरूरत कम पड़ैत। जहिया कहियो कोनो परिवारमे नम्‍हर काज होइत-जेना बिआह, सराध इत्यादि, तखने बजार जेबाक खगता पड़ैत। ओना भरि दिन चौकक दोकान खुजल रहैत मुदा गहिंकीक भीड़ साँझे-भिनसर होइत। भरि दिन लोक अपन-अपन काज-उदम करैत आ साँझू पहरकेँ दोकानक काज कऽ लैत। खाली चाहे-पानक बिकरी भिनसरु पहरकेँ बेसी होइत। चौकपर पहुँच‍ बुचाइ दुनू चाहबलाकेँ एक-एक सए रूपैआ दऽ दोकानपर बैसलि सभकेँ चाह पीअबैले कहलक। गाँजा पिआकक सेहो तीन ग्रुप चलैत। चाह पीब पान खा बुचाइ चिलमक ग्रुपमे पहुँच‍, दू दम लगा, तीनू ग्रुपमे पचास-पचास रूपैआ गाँजा लेल दऽ देलक। सबहक मन खुशी भऽ गेलै। मुस्‍कीआइत बुचाइ अमीन ऐठाम विदा भेल। गाममे तीनटा अमीन। रामचन्द्र, खुशीलाल आ किसुनदेव। कहैले तँ तीनू अमीन मुदा पढ़ि कऽ अमीन रामचन्द्रेटा भेल। मिडिल पास केला पछाति‍ रामचन्द्र हाइ स्कूलमे नाओं नै लिखा सकल। आब तँ लगेमे हाइ स्कूल खुगि‍ गेल मुदा ओइ समैमे एक्कोटा हाइ स्कूल परोपट्टामे नै छल, जइसँ रामचन्द्र आगू नै पढ़ि सकल। बाहर पठा बेटा पढ़बैक ओकाइत रामचन्द्रक पिताकेँ नै। सर्वे अबैसँ दस-पनरह बर्ख पहिने मुजफुरपुरक एकटा अमीन गाममे आबि अमानतक स्कूल खोललक। छह मासक कोर्स। चारि विषयक- पैमाइस, क्षेत्रमिति, कानून आ चकबन्दीक-पढ़ाइ। ओना समानो सभ- गुनियाँ, परकाल, मास्टर, स्केल, लेन्स, राइटऐंगिल, प्लेन, टेबुल, कंघी, टाँक, थ्याजो रैटर, जंजीर, फीता रखने। पाँच रूपैआ महि‍ना फीस लैत। मधुकान्तक दरबज्जेपर स्कूल खोललक। मधुकान्ते खाइओले दइ। जेकरा बदलामे मधुकान्तकेँ सेहो पढ़ा देलक। ओना गामोक आ गामक चारू भरक गामक विद्यार्थी सेहो पढ़लक। कुल मिला कऽ पनरह गोटे पढ़लक। मुदा जमीनक नापी-जोखी कम होइत, तँए रामचन्द्र छोड़ि सभ अमीनी छोड़ि देलक।
सर्वे अबैसँ महि‍ना दिन पहिने बेगूसरायक एक गोटे आबि पँच-पँच सएमे अमानतक सर्टिफिकेट बेचए लगल। ओकरेसँ खुशीलालो आ किसुनदेवो सर्टिफिकेट कीनि लेलक।
गामे-गाम सर्वे शुरू भेल। अमीन सबहक चलती आएल। नक्शा बनब शुरू होइते दलाली शुरू भेल। पाइ दऽ दऽ लोक अपन-अपन खेतक नक्शा बढ़बए लगल। लोकक दलाल अमीन आ सरकारक सर्वेयर। खुशीलालो आ किसुनदेवो उठि बैसल। मुदा रामचन्द्र कात रहल। गाए-महिंस, गाछ-बिरिछ बेचि-बेचि लोक रूपैआ बुकए लगल। रामचन्द्र दबि गेल मुदा खुशीलाल आ किसुनदेव, नाओं कमा लेलक। जेम्‍हर निकलैत तेम्‍हर लोक सभ चाहो-पान करबैत आ अमीन साहैब, अमीन साहैब कहि परनामो करैत। दुनू गोटे सर्वेक नांगड़ि पकड़ि किस्तवारसँ लऽ कऽ तसदीक खानापुरी, दफा-३, दफा-६,८,९ धरि दौग-बड़हा करैत रहल। जइसँ मोटर साइकिल मेन्टेन करए लगल।
खुशीलाल ऐठाम पहुँच‍ बुचाइ श्रीकान्त दिससँ नापीक अमीन मुकर्रर कऽ लेलक। नापीक फीसक अतिरिक्त पक्ष लेबाक फीस सेहो गछि लेलक।
दोसर दिन मुकुन्दजी सेहो गाम पहुँचला। बाहरेसँ रहैक सभ ओरियान केने एला। गाम अबिते दूटा जन रखि‍ परती छिलबा रौटी ठाढ़ करौलनि। जहन‍‍ जन जाए लगलनि तहन‍‍ पुछलखिन-
“गाममे के सभ नेतागिरी करैए?”
मुकुन्दजीक बात सुनि एक गोटे बुचाइक नाओं कहलकनि। बुचाइक नाओं सुनि बजा अानैले कहलखिन। दुनू गोटे विदा भेल। दुनू कोदारि लऽ एक गोटे घरपर गेल आ दोसर गोटे बुचाइ ऐठाम। मुकुन्दजी पत्नीकेँ कहलखिन-
“कनी चाह बनाउ?
पत्नी चाह बनबैक ओरियान करए लगली। गैस चुल्हिपर ससपेन चढ़ा बजली-
“केकरा लेल तीन महला मकान बनेलौं।
पत्नीक बात सुनि मुकुन्दजीक करेज दहलि गेलनि। करेजकेँ दहलिते आँखिमे नोर आबि गेलनि। आँखि उठा पत्नी दिस देखि आँखि निच्चाँ कऽ लेलनि। रूमालसँ नोर पोछि मुकुन्दजी मोने-मन सोचए लगला जे अपन हारल केकरा कहबै। सपनोमे नै सपनाएल रही जे पढल़-लिखल मनुख एते नीच होइए। केते मेहनतिसँ बेटाकेँ पढ़ेलौं, नोकरी दिएलौं। नीक घर नीक पढ़ल-लिखल कन्या संग बि‍आह करेलौं। मुदा फल उल्टा भेटल। पढ़ल-लिखल लोक जे अपन सासु-ससुर संग एहेन बर्ताव करैए तँ लोक जीवि‍ए कऽ की करत? ऐसँ नीक मरनाइ। मुदा मृत्युओ तँ ओते असान नै होइत। तहन‍‍ तँ जे भाग-तकदीरमे लिखल अछि, से भोगब। अगर जँ बुढा़ढ़ीमे गनजने लिखल रहत तँ कियो बाँटि लेत। ओ तँ विधाताक रेख छी। के बदलि देत? मुड़ी गोंतने मुकुन्द घुनघुना कऽ बजैत। पत्नीक आँखि तँ ससपेनपर रहनि मुदा करेज पीपरक पात जकाँ, जे बिनु हवोक डोलैत रहैत। आँखिसँ समतल भूमिक पानि जकाँ नोर टघरैत रहए।
चाह बनल। दुनू गोटे आमने-सामने बैसि चाह पीबए लगला। एक घोंट कऽ चाह पीब दुनू गोटे दुनू गोटेक मुँह दिस देखैत। मुदा कियो किछु बजथि‍ नै। जेना दुनूक हृदैक भीतर विर्ड़ो उठैत रहनि‍। दुइए घोंट चाह पीलनि, बाँकी सभ सरा कऽ पानि भऽ गेलनि। तही काल बुचाइ पहुँचल। अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि, दुनू गोटेकेँ प्रणाम कऽ बैसल। बुचाइकेँ देखिते मुकुन्द मनकेँ थीर करैत पत्नीकेँ कहलखिन-
“भरि दिनक थकान देहकेँ खण्ड-खण्ड तोड़ैए। मन केनादन करैए। कनी एटैचीसँ एकटा बोतल नेने आउ। जाबे पीब नै ताबे कोनो बाते ने कएल हएत।
पतिक बात सुनि पत्नी एटैचीसँ एकटा हजार लि‍टरक ब्राण्डीक बोतल आ दूटा गिलास निकालि कऽ आनि आगूमे रखि‍ देलकनि। तीनू गोटे- मुकुन्द, राधा आ बुचाइ- त्रिकोण जकाँ तीनू दिससँ बैसल। बीचमे मोड़ुआ टेबुल लोहाक। टेबुलपर गिलास बोतल। बोतलक मुन्ना खोलि मुकुन्द दुनू गिलासमे ब्राण्डी देलखिन। एक गिलास अपनो लऽ एक गिलास बुचाइ दिस बढ़ौलनि। ब्राण्डी देखि बुचाइक मन तँ चटपटाए लगल मुदा अनभुआर लोक संग पीबैक परहेज करैत बाजल-
“काका जी, ई सभ हम नै पीबै छी। गाममे हमरा केतए ई चीज भेटत। गरीब-गुरबा लोक छी, जँ कहियो मनो होइए तँ एक दम चीलममे लगा लइ छी। नै तँ पीसुआ भाँगक एकटा गोली चढ़ा दइ छिऐ।
जिद्द करैत मुकुन्द कहलखिन-
“ई तँ फलक रस छिऐ। कोनो की मोहुआ दारू आकि पलोथि‍न छिऐ जे अपकार करतह।
मुकुन्दक मनमे रहनि जे शराब पीआ बुचाइसँ सभ बात उगलबा लेब। जाबे गामक तहक बात नै बुझबै ताबे किछु करब कठिन हएत। दुनू गोटे एक-एक गिलास पीलनि। गिलास रखि‍ मुकुन्द सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकालि, एकटा अपनो हाथमे लेलनि आ एकटा बुचाइओकेँ देलखिन। दुनू गोटे सिगरेट पीबए लगला। सिगरेटक धुआँ मुहसँ फेकैत मुकुन्द कहलखिन-
“बुचाइ, हम तँ आब बुढ़हा गेलौं, तूँ सभ नौजवान छह। तोरे सभपर ने गामसँ लऽ कऽ देश तकक दारोमदार छै। शहरमे रहैत-रहैत मन अकछा गेल। साले भरि नोकरीओ अछि। तँए चाहैै छी जे जल्दी नोकरी समाप्त हुअए जे गाम आबि अपन सर-समाजक बीच रहब। मुदा गाममे तँ अपना किछु अछि नै। लऽ दऽ कऽ थोड़े घराड़ी अछि। जेकरा नपा कऽ घर बनबए चाहै छी। तइमे तूँ कनी मदति कऽ दाए।
बुचाइ-
“हमरा बुते जे एत से जरूर कऽ देब। अहाँ तँ अपने तेत्तै कमा कऽ टलिया नेने छी जे अनकर कोन जरूरत पड़त?”
मुकुन्द-
“तूँ तँ जनिते छहक जे सभ दिन नीक एयर कंडीशन घरमे रहै छी, नीक गाड़ीमे चढै़ छी, नीक लोकक बीच आमोद-प्रमोद करै छी, से केना हएत?
बुचाइ-
“अहाँ की कोनो खेती-पथारी करब आकि माल-जाल पोसब, जे तइले खेत-पथार चाही। लऽ दऽ कऽ रहैक घर चाही। से तँ घराड़ी अछिए।
मुकुन्द-
“कहलह तँ ठीके, मुदा रहैले तँ घर बनाबए पड़त। बिजली गाममे नै छै तइले जेनरेटर बैसबए पड़त, पानिक टंकी नै छै तइले कल संग-संग मोटर सेहो लगबए पड़त। गाड़ी रखैले घर आ साफ करैले सेहो जगहक जरूरत हएत। पैखाना नहाइले सेहो घर चाही, घरक आगूमे दसो धूरक फुलवाड़ी, बैसैले चबुतरा सेहो चाही। चारू भर छहरदेवाली बनबए पड़त। सभले तँ जमीने चाही।
बुचाइ-
“हँ, से तँ चाहबे करी। मुदा हमरा की कहए चाहै छी?
मुकुन्द-
“तोरा यएह कहै छिअ जे अपना अढ़ाइए कट्ठा घराड़ी अछि तइमे सभ कि‍छु केना हएत? कहुना कऽ दसो धूर बढ़बैक गर लगाबह।
मुकुन्दक बात सुनि बुचाइक मनमे हँसी उठल। हँसीकेँ दबैत बाजल-
“देखियौ काका, पान-दस धूर जमीन अमीनक हाथमे रहै छै, मुदा ओ तँ तखने हएत जहन‍‍ पंचो आ अमीनो पक्षमे रहत।
मुकुन्द-
“तहीले ने तोरा बजेलियऽ। हमरा तँ केकरोसँ जान-पहि‍चान नै अछि। मुदा तोरा तँ सभसँ छह, तँए, तूँ हमरा अप्पन बूझि मदति करह।
मोने-मन बुचाइ सोचलक जे ई पनहाएल गाए जकाँ छथि तँए सेरिया कऽ हिनका सिखबैक अछि, चपाड़ा दैत बाजल-
“देखियौ काका, गामक लोक गरीब अछि, ओ जे पक्ष लेत से ओहिना किए लेत? गौआँक लिए जेहने अहाँ तेहने श्रीकान्तकाका। तहन‍‍ तँ कियो जे नेत घटौत से बिनु मीठ खेने किए घटौत?”
मुकुन्द-
“तइले हमहूँ तैयारे छी। जेना जे तूँ कहबह से हम देबह।
बुचाइ-
“अच्छा हम भाँज-भूज लगबैले जाइ छी। मुदा काल्हि खन श्रीकान्तकाका सेहो कहने रहथि। ओना हम हुनका कहि देने रहियनि जे अमानतक दिन हमहूँ रहब। तँए थोड़े दिक्कत हमरा जरूर अछि। मुदा तैयो दिन-देखार तँ हम अहाँक भेँट नै करब, साँझमे जरूर करब। जेना जे हेतै से सभ बात अहाँकेँ कहैत रहब आ अहूँ ओइ हिसाबसँ अपन गर अँटबैत रहब। ओना गाममे अखनि‍ सरूप संग बेसी लोक छै, तँए अहाँकेँ ओकरासँ भेँट करा दइ छी। ओ जँ तैयार भऽ जाएत तँ कियो ओकरा रोकि नै सकतै।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि मुकुन्द बैगसँ दस हजार रूपैआ निकालि बुचाइकेँ दऽ देलखिन।
रूपैआ गनि बुचाइ बाजल-
“ऐसँ की हएत? हम ने गामक पेंच-पाँच बुझै छिऐ। काजो तँ उकड़ूए अछि।
“एते ताबे राखह। जेना-जेना काज आगू बढै़त जाएत तेना-तेना कहैत जइहऽ।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि बुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेल।
मोने-मन मुकुन्द सोचए लगला जे भलहिं‍ं श्रीकान्तो इंजीनियरे छथि मुदा जेते पाइ हम कमेलौं तेते हुनकर नन्नो ने देखने हेतनि। भऽ जाए पाइएक भिड़ंत। मोने-मन सोचबो करथि‍ आ खुशीओ होथि‍।
मुुकुन्द ऐठामसँ निकलला पछाति‍ रस्तामे बुचाइ विचारए लगल, आरौ बहिं, आइ धरि एहेन-एहेेन बुढ़बा चोट्टा नै देखने छेलौं। जिनगी भरि पाइए होंसतैत रहल मुदा सबुर नै भेलै। अच्छा, ऐ बेर दुनू सिखता। जइ गामक लोक आइ धरि सहि-मरि अपन बाप-दादाक गाम आ घराड़ी धेने रहल समाजक बेर-बिपतिमे संगे प्रेमसँ रहल ओइ गाममे जँ एहेन-एहेन चोट्टा आबि कऽ रहत तँ कए दिन गामकेँ सुख-चैनसँ रहए देत। सभकेँ टीकमे टीक ओझरा नाश करत की नै?”
दोसर दिन, सबेरे सात बजे बुचाइ सरूप ऐठाम पहुँचल। दुनूकेँ बच्चेसँ दोस्ती, तँए धियो-पुता भेलोपर दुनूक बीच रउए-रउ चलैत। सरूपकेँ दरबज्जापर नै देखि बुचाइ हाक पाड़ैए लगल-
“दोस छेँ रौ, रौ दोस।
अँगनाक दछिनबरिया ओसारपर बैसि सरूप दारूक बोतलक मुन्ना खोलैत रहए। बुचाइक अवाज सुनि, जवाब देलकै-
“दोस रौ, आ-आ। अँगने आ।
घरक कोनचर लग अबिते बुचाइ सरूपक घरवालीकेँ देखि बाजल-
“दोस रौ, दोसतीनीक थुथुन बड़ लटकल देखै छियौ। रतुका झगड़ा अखनि‍ तक फड़िएलौहेँ नै रौ। हम तँ रतुका झगड़ा रातिएमे उठा-पटक कऽ फड़िया लइ छी आ तूँ अखनि‍ तक रखनइ छेँ।
बुचाइक बात सुनि सरूप-
“धुर-बूड़ि, सभ दिन एक्के रंग रहि गेलेँ। कहियो तोरा बजैक ठेकान नै हेतौ।
कहि पत्नीकेँ कहलक-
“एकटा गिलास नेने आउ?”
एकटा गिलास आनि पत्नी सरूपक आगूमे रखलक। दुनू गोटे एक-एक गिलास दारू पीलक। बोतलकेँ डोला कऽ देखि सरूप फेर दुनू गिलासमे ढारलक। तैबीच बुचाइ बाजल-
“एक गिलास दोसतीनीओकेँ दहुन?”
बुचाइक बात सुनि सरूपक पत्नी कला बाजलि-
“हम नै गाएक गोत पीबै छी।
बुचाइ-
“कनी पी कऽ देखियौ जे केहेन ताउ चढै़ए।
सरूप-
“भोरे-भोर दोस किम्‍हर एलेँ?”
जेबीसँ पाँच हजार रूपैआक गड्डी निकालि बुचाइ सरूपक आगूमे रखैत बाजल-
“ले, ई तोहर हिस्सा छियौ। गाममे दूटा मोकि‍र फँसलौहेँ। तँए सेरिया कऽ दुनूकेँ सिखबैक छौ। एकटाकेँ हम संग देबै आ दोसरकेँ तूँ दही। जहिना धिया-पुता दूटा मुसरीकेँ नंागड़ि पकड़ि लड़बैए तहिना दुनू गोटे दुनूकेँ लड़ा।
सरूपक आगूमे रूपैआ देखि कलाक मुहसँ हँसी निकलल। हँसी देखि बुचाइ बाजल-
“एकटा बात बुझै छिऐ दोसतीनी, लछमी दुइएटा होइए। एकटा घरवाली आ दोसर रूपैआ। दोस, तोहर भाग बड़ जोरगर छौ। किएक तँ दुनू तोरा लगेमे छौ।
बुचाइक बात सुनि कला पाछू दिस मुँह घुमा लेलक। कलाकेँ पाछू मुहेँ घुरल देखि बुचाइ कहलक-
“मुँह घुमौने नै हएत दोसतीनी। अहीमे सँ रूपैआ लिअ आ दोकानसँ अंडा नेने आउ। भुजल चूड़ा आ अंडाक कोफ्ता खुआउ।
एकटा पचसटकही लऽ कला अंडा आनए दोकान विदा भेल। खाली अँगना देखि बुचाइ सरूपकेँ फुसफुसाइत कहलक-
“दोस, दूटा जुएलहा चोर गाम एलौहेँ। दुनू जेहने `चोर' तेहने `लोभी'। दुनू अपन-अपन घराड़ी नपाैत। दुनूकेँ अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठा जमीन छै। जे खतिआनी छिऐ। किएक तँ दुनू एक्के वंशक छी। एक पुरखियाह अछि तँए दोसर-तेसर नै छै। दुनू चाहैए जे हमरा तीन कट्ठा हुअए तँ हमरा तीन कट्ठा हुअए। दुनूकेँ पाइक गरमी छै, तँए एक-दोसरकेँ निच्चाँ देखबै चाहैए। गामक लोक तँ दुनूक नजरिमे बोन झाँखुर छी। से थोड़े हुअए देबै। पाइओ खा जेबै आ सुपत-सुपत बँटबरो करा देबै।
कनीकाल गुम्म रहि सरूप बाजल-
“आँइ रौ दोस, अपने सभ कोन नीक लोक छेँ रौ। भरि दिन झूठ-फूस बजै छी, ताड़ी-दारू पीबै छी, तहन‍‍ नीक केना भेलौं रौ।
बुचाइ-
“धूर बूड़ि, तोरा निशाँ चढ़ि गेलौ, तँए नै बुझै छीही। तोहीं कह जे गाममे कोनो जातिक लोक किए ने हुअए मुदा जहन‍‍ मरैए तँ कठिआरी जाइ छिऐ की नै? गरीबसँ गरीब लोक किए ने हुअए, कियो बिनु कफने जराैल गेल हेन? अपना हाथमे जँ पाइ नहियोँ रहल तँ दू-चारि गोटेसँ मांगि-चांगि पूरा दइ छिऐ। तेसर सालक गप मन छौ की नै। देखने रही कि‍ने जे मखनाक गाए बाढ़िमे भँसल जाइत रहै तँ भरि छाती पानिमे सँ पकड़ि अनलौं। मोतिया बेटीक बिआह कोन पेंचपर करा देलिऐ से बिसरि गेलही। खंजनमा-डोमक घरमे जे आगि लगल रहै तँ देखने रही की नै जे अपन घैलची परक घैल लऽ कऽ सभसँ पहिने आगि मिझबैले गेल रहिऐ। हमरा देखलक तहन‍‍ पाछूसँ सभ गेल। जइकेँ चलैत माए केते दिन तक गरियबैत रहल जे तहूँ छुबा गेलेँ आ घैलो छुबा गेल। आँइ रौ, गारि‍ओ-फज्झति सुनि कऽ जे सेवा करै छी उ धरम नै भेल रौ।
मुड़ी डोलबैत सरूप-
“हँ, से तँ ठीके कहै छेँ।
बुचाइ-
“हम श्रीकान्तकक्काक पछ लऽ कऽ रहब आ तूँ मुकुन्दकाकाकेँ संग दहुन। जहिना इलेक्शनमे परचार करैक, आॅफिस चलबैक, चाह-पानक खर्च, लाउडस्पीकर आ सवारीक खर्च, बूथपर दसटा कार्यकर्ता रखैक खर्च, एजेंटक खर्च, नेता सबहक सुआगत लेल मेहराओ बनबैक खर्च नेतासँ लइ छिऐ तहिना अखनि‍सँ जाबे तक नापी हेतै ताबे तकक खरचा दुनू गोटेसँ दुनू गोटे लेब। हेतै तँ उचिते मुदा ठकसँ ठकब कोनो पाप थोड़े छी।
सरूप-
“केना-केना पाइ लेबही से तँ प्लानिंग कऽ लेमे कि‍ने?”
बुचाइ-
“घबड़ाइ छँए किए, इलेक्शनोसँ बेसी लेबै। अमीनक घूस, पंचक घूस, चौक-चौराहाक चाह-पान, गाँजा-भाँग, ताड़ी-दारूक, लठैतक, केते कहबौ। जेना-जेना काज अबैत जेत्तै तेना-तेना टनैत जेबै। अखनि‍ जे आएल हेन ओ सगुन छी। साँझमे जहन‍‍ खूब अन्हार तेसरि साँझ भऽ जेत्तै तहन‍‍ चलिहेँ। तोरा-दुनू गोटेकेँ मुँह-मिलानी करा देबौ। चौकपर दूटा चाहक दोकान छेबे करै, एकटा पर साँझ-भिनसर तूँ बैसिहेँ आ एकटा पर हम बैसब। तूँ मुकुन्दजी दिससँ बजिहेँ जे हुनका तीन कट्ठा घराड़ी छन्‍हि‍ आ दोसरपर हम बैसि बाजब। मुदा एकटा बात मन रखिहेँ जे जहन‍‍ श्रीकान्तकाका चौकपर आबथि, तहन‍‍ अपने दिससँ चाह-पान खुआ, हुनके बात बजिहेँ आ जहन‍‍ मुकुन्दकाका औता तँ हमहूँ बाजब। जइसँ हुनका सभकेँ हेतनि जे सौंसे गौआँ हमरे दिस अछि। अखनि‍ तँ गौआँ सभकेँ चाहे-पान, गाँजा, ताड़ी पइर लगतै मुदा नापी दिन पुड़ी-जिलेबी जलखै आ मासु-भात भोजन करा देबै।
सरूप-
“बड़बढ़ियाँ प्लानिंग छौ।
बुचाइ-
“हम श्रीकान्तकाका दिससँ खुशीलाल अमीनकेँ ठीक केलौं हेन, तूँ मुकुन्दकाका दिससँ किसुनदेव अमीनकेँ ठीक करिहेँ। दुनू अमीन तँ दुनू पार्टीक हएत कि‍ने मुदा मध्यस्त अमीन तँ सेहो चाही। तइले रामचन्द्र भायकेँ पकड़ि लेब। तहिना गामक लोक तँ दुनू दिससँ बँटाएल रहत कि‍ने मुदा एक्कोटा तँ तेहल्ला पंच चाही। तइले गुरुकाकाकेँ पकड़ि लेब। जखने गुरुकाका पंच आ रामचन्द्र भाय अमीन रहता तखने एक्को तिल जमीन एम्‍हर-ओम्‍हर थोड़े हएत।
दोसर दिन दुनू गोटे -बुचाइओ आ सरूपो- गुरुकाका लग पहुँचल। गुरुकाका दलानेपर रहथि‍। दुनू गोटे प्रणाम कऽ बैसल। दुनू गोटेकेँ देखि गुरुकाका पुछलखिन-
“की बात छिऐ हौ बुचाइ? दुनू भजारकेँ संगे देखै छिअ?”
बुचाइ-
“अहीं लग तँ एलौहेँ काका। श्रीकान्तोकाका आ मुकुन्दोकाका घराड़ी नपौता। तहीमे अपनो रहबै।
गुरुकाका-
“की करता ओ सभ घराड़ी नपा कऽ। केहेन बढ़ियाँ तँ धिया-पुता सभ खेलाइए।
सरूप-
“रिटायर केला पछाति‍ गामेमे रहता। नोकरीओ लगिचाएले छन्‍हि‍। तँए अखने नपा कऽ घरमे हाथ लगौता।
गुरुकाका-
“सुनै छी जे दुनू गोटे शहरेमे घर बनौने छथि, तहन‍‍ गाममे बना कऽ की करता। हुनका सभकेँ गाममे थोड़े बास हेतनि। जिनगी भरि तँ बड़का-बड़का होटल देखलखिन, नीक रोडपर नीक सवारीमे चललथि, दामी-दामी वेश्यालय देखलनि, से सभ गाममे थोड़े भेटतनि। अनेरे गाममे आबि कऽ किए थाल-कादोमे चलता आ मच्छर कटौता।
गुरुक्काक बात सुनि लपकि कऽ बुचाइ बाजए लगल-
“से नै बुझलिऐ काका, दुनू गोटे भारी चोट खा कऽ चोटाएल छथि। तँए गाम दिस झुकला।
“से की?”
अकचकाइत गुरुकाका पुछलकनि‍।
बुचाइ कहए लगलनि‍-
“तेसर सालक घटना छिऐ। श्रीकान्तक्काक पत्नी ड्राइवरकेँ संग केने बजार गेली। बजारसँ समान कीनि जहन‍‍ घुमली तँ दोसर गाड़ी सेहो पछुअबैत रहनि। जहन‍‍ फाँक-पाँतरमे गाड़ी पहुँचलनि तँ पछिला गाड़ी आगू आबि रोकि देलकनि। गाड़ीसँ चारि गोटे उतरि हिनका गाड़ीमे बैसि ड्राइवरकेँ दोसर रस्तासँ गाड़ी बढ़बैले कहलक। वेचारा की करैत। बढ़ल। थोड़े दूर गेलापर गाड़ी रोकि, काकीकेँ उतारि ड्राइवरकेँ कहलकै, मालिककेँ जा कऽ कहियनु जे पाँच लाख रूपैआ नेने आबथि आ पत्नीकेँ लऽ जाथि। दू घंटाक समए दइ छिअ।
ड्राइवर विदा भेल। एम्‍हर काकीकेँ चारि-पाँच ठूसी मुँहमे लगा देलकनि। जइसँ अगिला चारिटा दाँतो टूटि गेलनि। ठोह फाड़ि कऽ कानए लगली। कनिते काल मोबाइल दऽ कहलकनि जे पतिकेँ कहियनु जे जल्दी रूपैआ लऽ कऽ आउ नै तँ हम नै बँचब। ताबे ड्राइवरो पहुँच‍ कऽ कहलकनि। अपना हाथमे दुइए लाख रूपैआ छेलनि,‍ जे हालक आमदनी रहनि बाँकी रूपैआ सभ बैंकमे रहनि‍। वएह दुनू लाख रूपैआ लऽ कऽ गेला आ पएर-दाढ़ी पकड़ि कऽ पत्नीकेँ छोड़ा अनलनि।
बुचाइक बात सुनि ठहाका मारि हँसि गुरुकाका-
“मुकुन्द किए औता?”
मुस्की दैत बुचाइ-
“हुनकर तँ आरो अजीव बात छन्‍हि‍। एक दिन एकटा ठीकेदारक पार्टी चललै। जेते बड़का-बड़का हाकिम आ ठीकेदार सभ छल, सभ रहए। मुकुन्द अपन पुरना गाड़ी छोड़ि नवका गाड़ी, जे बेटाकेँ सासुरमे देने रहनि, लऽ कऽ गेला। जहन‍‍ पार्टीसँ घूमि कऽ एला तँ पुतोहु कहलकनि- पुतोहुक गाड़ीपर चढ़ैत केहेन लागल?”
ऐ बातक चोट हुनका खूब लगलनि। बेटा-पुतोहुसँ मोह टूटि गेलनि। तँए गामेमे रहता।
बुचाइक बात सुनि गुरुकाका गुम्म भऽ गेला। कनीकाल गुम्म रहि, मोने-मन वि‍चारि कहलखिन-
“गाम तँ गामे छी। शुद्ध मिथिला। भारत। जे स्वर्गोसँ नीक अछि। मुदा सभ गामक अपन-अपन चरित्र आ प्रतिष्ठा छै। जे चरित्र आ प्रतिष्ठा गामक कर्मठ, तिआगी लोकनि बनौने छथि, अपन कठिन मेहनति आ कर्तव्यसँ सजौने छथि। ओकरा जीवित राखब तँ अखुनके लोकक कान्हपर भार अछि कि‍ने? नोकरीक जिनगीमे किछु कियो केलनि तइसँ समाजकेँ कोन मतलब। अपना लेल केलनि। समाजक एक अंग होइक नाते हुनको सबहक कान्हपर किछु भार छेलनि जे अखनि‍ धरि नै कऽ सकला। मुदा तैयो जँ समाजमे आबि, समाज रूपी फुलवाड़ीमे फूल लगबए चाहता तँ बढ़ियाँ बात। से तँ लक्षणसँ नै बूझि पड़ैए। समाजमे रहैले समाजक चरित्रक अनुकूल अपन चरित्र बनौता, तखने ने समाजमे अँटाबेश हेतनि। ई तँ नै जे गदहा गेल स्वर्ग तँ छान-पगहा लगले गेलै।
गुरुक्काक बात सुनि बुचाइओ आ सरूपो पुछलकनि-
“काका, गामक विषएमे हम सभ किछु ने बुझै छी, से कनी बुझा दिअ?”
गुरुकाका-
“अखनि‍ काजक बेर अछि तँए बहुत बात तँ नै कहि सकबह, मुदा जहन‍‍ बुझैक जिज्ञासा छह तँ दूटा जरूर कहबह। देखहक, गामक पढ़ल-लिखल वा बिनु पढ़ल-लिखल लोक, पेट भरै दुआरे नोकरी करैले बाहर जाइ छथि, नीक बात। मुदा गामकेँ सोलहन्नी नै छोड़ि दथि। अखनि‍ देखै छी जे अमेरिका, इंग्लैडसँ लोक तीन दिनमे गाम आबि सकै छथि। तँए सालमे कम-सँ-कम एक्को बेर, नै तँ हुनको गाम छि‍यनि‍, केतेको बेर आबि सकै छथि। जइसँ गामक लोक आ खेत-पथार संग सम्बन्ध बनल रहतनि। मुदा से नै कऽ गामकेँ सोलहन्नी छोड़ि, अनतइ घर बना रहए लगै छथि। जे गामक दुर्भाग्य छी। जेकर फल होइए गामक ज्ञान निर्यात भऽ जाइए। जइसँ सूतल गाम सुतले रहि जाइए। संगे गामक बेवहार, कला-संस्कृति सभ टूटि जाइए। रिटायर केला पछाति‍ वा जिनगीक अंतिम अवस्थामे, जँ कियो गाम आबि रहए चाहता तँ हुनका गाम केहेन लगतनि। डेग-डेगपर टक्कर आ बात-बातमे विवाद हेबे करतनि। दोसर बात सुनह, अपना गाममे वैदिकजी भेल छथि। जिनके पोता शुभकान्त छि‍यनि‍। वेदक प्रकाण्ड विद्वान वैदिक जी। नाओं तँ छेलनि गंगाधर मुदा वैदिकजी नाओंसँ विख्यात भेला। अपनो राजमे आ आनो-आनो राजमे जहन‍‍ पंडितक बीच शास्त्रार्थ होइ तँ हुनकर जवाब देनिहार कियो ने ठहरैत। अनेको तगमा आ प्रशस्ति पत्र भेटलनि। अखनो परोपट्टाक लोक हुनके नाओंपर अपना गामक नाओं वैदिक जीक गाम बुझैए। हुनके चलाैल अपना गामक पानि छी। पहिने पानिक छुआछूत अपनो गाममे छल, मुदा ओ सभकेँ बैसार करि कऽ बुझा देलखिन जे दुनियाँमे जेते मनुख अछि, सभ मनुख छी, तँए मनुख-मनुखक बीच छुआछूत नै हेबाक चाही। थोपड़ी बजा सभ हुनकर विचारक समर्थन कऽ देलक। ओइ दिनसँ पानिक छुआछूत गामसँ मेटा गेल तहिना दोसर भेल जोगिनदर। भिखारीदासक पक्का चेला। अजीब कला हुनकोमे छेलनि। जहिना नचैमे अगिया-बेताल, तहिना गीत गबैमे। जे पार्ट लऽ कऽ स्टेजपर अबैत, धऽ कऽ झहरा दैत। एहेन बिपटा अखनि‍ धरि कोनो नाचमे नै देखलिऐहेँ। ओकरो परसादे गाममे भिखारीदासक नाच केतेको बेर भेल। जहन‍‍ भिखारीदासक पार्टी छपरासँ पूब मुहेँ असाम, बंगाल, नेपाल विदा होइ तँ अपने गाममे रूकै। खाली खेनाइ आ इजोतक खर्च गौआँक होइ। तहिना जब तीन-चारि मासमे घुमै तँ फेर अँटकै। तहिना भेल महावीर। वेचारा बड़ गरीब छल। नोकरी करैले कलकत्ता गेल। मुदा नोकरी नै कऽ रिक्शा चलबए लगल। अजीब संस्कार ओकरोमे छेलै। रिक्शो चलबै आ गीतो-कविता बनबै। पहिने तँ लिखल-पढ़ल नै होइ। मुदा अ-आसँ सीखब शुरू केलक। किछुए दिन पछाति‍ लिखबो आ पढ़बो सीखि लेलक। रिक्शापर जहन‍‍ चलै तँ अपन बनौल गीत गाबए। एक दिन एकटा साहित्य प्रेमी रिक्शापर चढ़ल रहथि आ महावीर रिक्शो चलबै आ गीतो गाबै। उतरै काल कवि पूछि देलखिन। सभ बात महावीर कहलकनि। ओ एकटा कवि गोष्ठीमे आमंत्रित कऽ देलखिन। ओइ गोष्ठीमे पहुँच‍ महावीर तीनटा कविता आ दूटा गीत गौलक। तइ दिनसँ कवि गोष्ठीमे आमंत्रित हुअ लगल। बंगाल सरकार दस हजारक पुरस्कार आ प्रशस्तिपत्रसँ सम्मानित केलकनि। तहिना भेल कारी खलीफा। जेकरा इलाकाक लोक खलीफा मानैत। बड़का-बड़का दंगलमे पहुँच ओ आन-आन जिलाक केतेको खलीफाकेँ पटकलक। ओकरा चलैत गाममे कियो केकरो बहु-बेटीकेँ खराब नजरिसँ नै देखैत। एक बेर एकटा घटना जमीनदारक सिपाही संग घटलै। एक सए लाठी सिपाहीकेँ समाजक बीचमे मारलकै। तही दिनसँ जमीनदार दू बीघा खेत ओहिना दऽ देलकै। एहेन-एहेन पंडित, कलाकारक बनौल गाम छी, तेकरा हम सभ अपना जीबैत केना दुइर कऽ देबै। आइ जँ गाम दुइर हएत तँ अगिला पीढ़ी केकरा गारि पढ़तै। तँए जँ दुनू गोटे मनुख बनि गाममे रहए चाहता तँ बड़बढ़ियाँ, नै तँ गाममे रहने कियो समाज तँ नै बनि जाइत।
अमानत भेल। कोनो बेसी झमेल रहबे नै करए। पाँच कट्ठा कऽ दू भाग केनाइ। बँटवारा करैत रामचन्द्र अमीन कहलखिन-
“जिनका संदेह हुअए ओ चाहे कड़ीसँ वा फीतासँ वा लग्गीसँ आकि‍ डेगसँ भजारि लिअ।

¦¦¦

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