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Friday, October 18, 2013

पछताबा कथा (दोसर संस्‍करण)

पछताबा

इंजीनियरिंगक रिजल्ट निकलिते रघुनाथ संगी-साथी संग नोकरी करए अमेरिका जेबाक तैयारी कऽ नेने छल। सासुरसँ गाम आबि पिताकेँ कहलनि-
“बाबू, आइए रतुका गाड़ी पकड़ि चलि जाएब। परसू दस बजे सुभाषचन्द्र एयरपोर्टसँ जहाज फ्लाइ करत।
जहिना पाकल आम तोड़ैले कियो गाछपर चढ़ैए आ आम तोड़ैसँ पहिनइ खसि पड़ैए, तहिना शिवनाथोकेँ भेलनि। अचंभित होइत पुछलखिन-
“किए? तोरा जोकर काज अपना ऐठाम नै छै?”
पिताक बात सुनि कनीकाल गुम्म भऽ रघुनाथ बाजल-
“ओइठाम अधिक दरमाहा दइए। संगहि अपना ऐठामक रूपैआसँ ओतुका रूपैओ महग छै।
अमेरिकाक सम्बन्धमे शिवनाथ किछु नै जनै छथि‍ खाली एतबे बूझल छन्‍हि‍ जे ऊहो एकटा देश छी। किछु काल गुम्म रहि कहलखिन-
“तइसँ की, हम ओइ वंशक छी जे देशक गुलामी मेटबैले गोली खाए स्वतंत्र देशक उपहार-भार देलनि। तोरा सन-सन पढ़ल-लिखल जँ देशसँ चलि जाएत तँ तोहर सनक काज के करत आ केना हएत?”
पिताक बातकेँ अनसून करैत गोड़ लागि, बैग लऽ ओ चुपचाप विदा भऽ गेल। शिवनाथ दुनू परानीक नजरि ताधरि रघुनाथक पीठपर रहलनि जाधरि ओ गाछीक अढ़ नै भऽ गेल। अढ़ होइते दुनूक मन ऐ रूपे चूर-चूर भऽ गेलनि जहिना एेनापर पाथरक लोढ़ी खसलासँ होइए। अखनि‍ धरि दुनूक मनमे पैघ-पैघ अरमान पैघ-पैघ सपना छेलनि जे एकाएक फुटल बैलूनक हवा जकाँ वायुमंडलमे मिलि गेलनि। बाढ़िक पानिमे डुमल खेतमे जहिना पानि सुखिते नव-नव पौघक अंकुर उगए लगैए तहिना शिवनाथोक मनमे नव-नव विचार उगए लगलनि, अखनि‍ दुनियाँ भलहिं‍ं गामे-घरक रूपमे किएक ने बूझि पडै़त हुअए मुदा बापो-बेटाक दूरी हजारो कोस हटि रहल अछि। की हम सभ फेर गुलामीक रस्ता पकड़ि रहल छी आकि आजादीक रस्ता धऽ चलि रहल छी। एक दिस‍ मातृभूमि लेल पिताक तियाग आ दोसर दिस बेटाक भटकल रस्ता...। भलहिं बेटाक आशा हुअए मुदा एहनो लोक तँ छथि जि‍नका बेटा नै छन्हि। मन पड़लनि पिताक ओ बात जे मृत्युसँ चौबीस घंटा पहिने मृत्यु-सय्यापर कहने रहथिन-–
“बाउ, हमर खून वीरक खून छी जे भारतमाताकेँ चढ़ौलियनि। भलहिं‍ं अखनि‍ लड़ाइक दौड़ अछि मुदा ओ खून स्वतंत्रता लइए कऽ छोड़त। तूँ सभ स्वतंत्र देशक स्वतंत्र मनुख हेबह। तँए अपन देशकेँ परिवार बूझि सभकेँ भाए-बहि‍न जकाँ इमानदारीसँ सेवा करैत रहिहऽ। जइसँ हमर आत्मा अनवरत प्रसन्न रहत। सेवाक मतलब खाली एतबे नै होइत जे देशक सीमाक रक्षा करैए बल्‍की ईहो होइत जे माथपर ईंटा उघि सड़क बनबैत आ हर-कोदारिसँ अन्न उपजबैए।
पिताक बात मन पड़िते शिवनाथक हृदए तरल पानिसँ ठोस पाथर बनए लगलनि। नव-नव विचार मनमे जागए लगलनि। पत्नीक खसल मन देखि कहलखिन-
“अहाँ, एते सोगाएल किए छी?”
आँचरक खूटसँ दुनू आँखिक नोर पोछि रुक्मिणी कँपैत अवाजमे बजली-
“की सपना मनमे रहए आ कि देखि रहल छी। जौं से बुझितिऐ तँ एते देहकेँ किए धौजनि करितौं। नढ़िया-कुकुर जकाँ अनेर छोड़ि दैतिऐ।
पत्नीक बेथा सुनि शिवनाथक हृदए पसीज गेलनि। मुदा अपन बेथाकेँ मनमे दबैत मुस्‍कीआइत कहलखिन-
“अखनि‍ धरिक जे जिनगी रहल ओ कर्तव्यनिष्ठक रहल। अपन कर्तव्य इमानदारीसँ निमाहलौं। सभकेँ अपना-अपना आशापर अपन जिनगी ठाढ़ कऽ जीबाक चाही। जहिना बर्खाक एक-एक बुन्न रस्ता धए चलैत-चलैत अथाह समुद्रमे पहुँच‍‍ जाइए तहिना अपनो सभ अपन काजकेँ परिवारसँ आगू बढ़ा समाज रूपी समुद्रमे फेंटि दी। बेटा अछि तँए बेटापर अपन भार देमए चाहै छेलौं मुदा जि‍नका अपना बेटा नै छन्हि ओ केकरापर अपन भार देथिन। तँए अपनो सभ वएह बुझू! बाबूजी एते अरजि कऽ दऽ गेलथि जे इज्जत संग हँसैत-खेलैत जिनगी जीबैत रहब।
सन् १९४२क असहयोग आन्दोलन सुनगैत-सुनगैत सौंसे देश पजरि गेल। जइमे मिथिलांचलोक योगदान केकरोसँ कम नै अछि। दसकोसी लोकक मन एते उत्साहित भऽ गेलनि जे चान-सुरूजमे आजादीक झंडा फहराइत देखथि। सुतली रातिमे ओछाइनपर सँ चहा कऽ उठि नारा लगबैत सड़कपर आबि जाइ छला। जे मिथिला याज्ञवल्क्य, गौतम, नारद सन-सन ऋषि पैदा केलक ओ पंचानन झा आ पुरन मण्‍डल सन वीर अभिमन्यु सेहो पैदा केने अछि। दसकोसीक वीर सिपाही माथमे कफन बान्हि, लाठीमे झंडा फहरा झंझारपुर सर्कल, रेलबे स्टेशन आ पोस्ट आफिसमे आगि लगबैले संग-संग रेल-लाइन तौड़ैले सर्कलक मैदानमे एकत्रित भेला। अंग्रेज पलटनक केन्द्र सर्कल छेलै। आन्दोलनकारीकेँ एकत्रित होइत देखि ऊहो सभ अपन बन्दूकमे गोली भरि-भरि तैयार भऽ गेल। आन्दोलनकारी भारत माताक नारा जगबैत आगू बढ़ल। अनधुन गोली पलटन सभ चलौलक। एक नै अनेक गोली पंचानन आ पुरनक छातीमे लगलनि। दुनू गोटे नारा लगबैत दम तोड़ि देलनि। खाली दुइए गोटेकेँ गोली नै लागल छेलनि, अनेको गोटे गोलीसँ घाइल भेला। ओइ घाइलमे शिवनाथक पिता देवनाथो छला। दहिना जाँघमे गोली लागल छेलनि। गोली तँ जांघक माँस-चमराकेँ कटैत हड्डी तोड़ैत निकलि गेलनि। मुदा घाइल भऽ ऊहो खसि पड़ला। पितियौत भाए हुनकर लटकल जांघक माँसकेँ तौनीसँ बान्हि, हुनका पीठपर उठा घरपर अनलकनि। चिकित्साक समुचित बेवस्‍था नै, तैपर गामे-गाम सिपाही दमन शुरू केलक। गामक-गाम आगि लगौलक। मर्द-औरतकेँ पकड़ि-पकड़ि बन्दूकक कुन्दा आ पएरक बूटसँ मारि-मारि बेहोश केलकनि। ओछाइनपर पड़ल देवनाथक हृदैमे आगि धधकैत रहनि मुदा किछु करैक शक्ति नै रहि गेलनि। जीवन-मृत्युक बीच लटकल रहथि। तीसम दिन पराण छूटि गेलनि।
दस बर्खक शिवनाथ १५ अगस्त १९४७ ई. केँ आजादीक समए पनरह बर्खक भऽ गेल। पतिक मुइने शिवनाथक माए-राधाक मन टुटलनि नै बल्‍की आगिमे तपल सोना जकाँ आरो चमकए लगलनि। पाकल आमक आंठी जकाँ करेज आरो सक्कत भऽ गेलनि। गुलामीसँ मिझाएल दीपकेँ आजादीक नव तेल-बत्ती भेटलै, जइसँ नव-ज्योति प्रज्वलित भेल। अखनि‍ धरिक अबेवस्थित परिवारकेँ दुनू माए-बेटा मिलि सुढ़ियाबए लगला, बेवस्थित बनबए लगला। अढ़ाइ बीघा खेतकेँ अपन दुनियाँ आ कर्मक्षेत्र बूझि दुनू माए-बेटा जी-जानसँ मेहनति‍ करए लगला, जैपर परिवार नीक नहाँति ठाढ़ भऽ गेलनि। ओना शिवनाथक बिआह बच्चेमे भऽ गेल छेलै मुदा दुरागमन पछुआएल रहै। परिवारक बढ़ैत काज देखि बेटाक दुरागमन माए करा लेलनि।
देश आजाद होइते गामे-गाम स्कूल बनए लगल। ओना पढ़लो-लिखल लोक कम छला मुदा जेतबे छला ओ ओइ रूपे विद्या-दानमे भीड़ि गेला, जइसँ सभ गाममे तँ नै मुदा अधिकांश गाममे लोअर प्राइमरी स्कूल ठाढ़ भऽ गेल। केतौ-केतौ मिड्लो स्कूल आ हाइओ स्कूल बनल। केतौ-केतौ कौलेजो ठाढ़ भऽ गेल। अखनि‍ धरि जे स्कूल ठाढ़ भेल ओ सामाजिके स्तरपर, सरकारी स्तरपर बहुत कम बनल। स्कूल खोलैक पाछू लोकक मनमे धरमस्थानक बूझब छेलै। गुरुओजी ओहने रहथि जे मात्र भोजनपर सेवा करैत रहथि। शनीचरा मात्र जीविकाक आधार छेलनि। पाइ लऽ कऽ पढ़ाएब पाप बूझल जाइ छेलै। ओना मिड्ल स्कूल, हाइ स्कूल आ कौलेजमे महिनवारी फीस लगै छल, जे संस्थागत सहयोग छल। स्कूल-कौलेज खुजने विद्याक ज्योति प्रज्वलित भेल मुदा अंडी तेलमे जरैत डिबियाक इजोत जकाँ, जखैनकि जरूरी अछि हजार वोल्ट बौलक इजोत जकाँ। ओना ठाम-ठीम संस्कृत विद्यालय सेहो अछि, मुदा...।
दुरागमनक तीन साल पछाति‍ शिवनाथकेँ बेटा भेलनि। रघुनाथक जनम
होइते राधाक हृदए खुशीसँ सूप सन भऽ गेलनि। मनमे नाचए लगलनि बाँसक ओ बीट जइमे दिनानुदिन बेसी बाँसोक जनम होइत आ नमगर,
मोटगर सुन्दर-सुडौलौ होइत। मनक खुशीसँ दुनियाँ फुलवाड़ी सदृश बूझि पड़ए लगलनि। बाधक-बाध धानक फूल, गाछीक-गाछी आमक मंजर, जामुन, लताम इत्यादिक फूलसँ सजल ई दुनियाँ सोहनगर लागए लगलनि। मुदा जहिना आसिन मास अकासकेँ करिया मेघ झँपने रहैए आ केतौ-केतौ मेघक फाटसँ सुरूजक इजोत निकलैए आ सेहो गाछे-बिरिछपर अँटकि जाइए, धरती-जमीन ओहिनाक-ओहिना अन्हार रहि जाइए, तहिना।
छबे मासक रघुनाथकेँ राधा अपन मुँह चमका-चमका दा-दा-दा सिखबए लगली। दादामे देवनाथक ओ रूप देखै छेली जे माथपर वीरक मुरेठा बान्हि, हरोथिया लाठीमे लाल झंडा टांगि, हँसैत गोली खेने रहथि।
चारि बर्ख टपिते शिवनाथ रघुनाथक नाओं गामक स्कूलमे लिखा देलखिन साले-साल टपैत रघुनाथ गामक स्कूल टपि गेल। मिड्ल स्कूल टपि साइंस रखि रघुनाथ केजरीवाल हाइ स्कूल झंझारपुरमे नाओं लिखौलक। जहिना विज्ञान विषए पढ़ैमे नीक लगै तहिना अंग्रेजीओ। जइसँ ठाकुरबाबू आ लत्तीबाबू बेसी मानथिन। चारि बर्ख पछाति‍ प्रथम श्रेणीमे मेट्रिक पास केलक। बाढ़ि-रौदिक दुआरे उपजो-बाड़ी नीक नै होइ जइसँ परिवारो लड़खड़ाइते चलैत। बाहर जा कऽ आगू पढ़ब असंभव जकाँ रहै। मुदा संजोग नीक रहलै जे जनतो कौलेजमे साइंसक पढ़ाइ शुरू भेलै। रघुनाथो कौलेजमे नाओं लिखौलक।
रघुनाथकेँ कौलेजमे नाओं लिखेलाक सालभरि पछाति‍ राधा -दादी- मरि गेली। पिताक श्राद्ध तँ शिवनाथ केनइ नै रहथि मुदा माएक श्राद्ध नीक जकाँ केलनि। जइसँ पाँच कट्ठा खेतो बिका गेलनि। तइले मन मलिन नै भेलनि। किएक तँ भोजमे खूब जश भेलनि। दू साल पछाति‍ रघुनाथ फस्ट डिविजनसँ आइ.एस.सी. पास केलक। सत्तरि प्रतिशतसँ ऊपरे नम्बर एलै। आइ.एस.सी.क रिजल्ट सुनि शिवनाथकेँ बेटा पढ़बैक उत्साह बढ़लनि। खेत बेचब अधला नै बुझेलनि। मनमे एलनि जे रघुनाथ पढ़ि कऽ नोकरी करत आकि खेती करत। तहन‍‍ खेतक जरूरते की रहतै। संगहि हमहूँ समाजकेँ एकटा सक्षम मनुख देबै।
इंजीनियरिंग, डाक्टरी पढ़बैमे केहेन खर्च होइ छै से तँ नीक जकाँ बुझथि नै। मनमे होन्‍हि‍ जे पाँच-दस कट्ठा जमीन बेचि बेटाकेँ पढ़ा देबै। मनमे उत्साह रहबे करनि तँए महग बूझि घराड़ीएमे सँ दू कट्ठा बेचि इंजीनियरिंग कौलेजमे बेटाक नाओं लिखा देलनि। नाओं लिखौलाक डेढ़ बर्ख बीतैत-बीतैत अदहा जमीन बिका गेलनि। आगूक अढ़ाइ बर्ख बाँकी देखि चिन्ता घेरए लगलनि। मन मानि गेलनि जे सभ खेत बेचनौं पार नै लागत। सोचैत-वि‍चारैत तँइ केलनि जे पढ़ैक खर्चपर रघुनाथक बिआह करा देबै। बिआह भेनौं ओकरा पढ़ैमे बाधा थोड़े हेतै, पाँच बर्खक बादे दुरागमन कराएब। समस्याक समाधान होइत देखि मनमे खुशी एलनि। फेर मोनमे उठलनि जे समैओ बदलि रहल अछि। पहिने माए-बाप बेटा-बेटीक बिआहकेँ अप्‍पन कर्तव्य बुझै छला तँए पुछब जरूरी नै बुझथि‍। मुदा आब पूछब जरूरी भऽ गेल अछि। परिस्थिति देखि रघुनाथो बिआह करब मानि लेलक मुदा शर्त एकटा लगौलकनि जे लड़की रंग-रूपमे सुन्दर हुअए। जँ गुणवानक शर्त रहितनि तहन तँ ओझरा जइतथि। मुदा से नै भेलनि। बिआहक चर्च शिवनाथ चला देलखिन।
इंजीनियर वर तँए कथकियाक ढबाहि लागि गेलनि। मुदा कोनोक गाम अधला बूझि पड़नि तँ कोनोक परिवारक कुल-गोत्र। केतौ लड़की दब तँ केतौ उमरगर लड़की भाँज लगनि। होइत-हबाइत एकठाम कथा पटि गेलनि। गाम तँ नीक नै मुदा लड़कीओ गोर आ पढ़ैक खर्चो गछि लेलकनि। बि‍आह भऽ गेलै। बि‍आहक पछाति‍ दुनू समधि वि‍चारि लेलनि जे सालो भरि जे भार-दौरक फेरीमे पड़ब से नीक नै। तँए भार-दौरक बेवहार छोड़िए दियौ। दुनू गोटे सएह केलनि।
इंजीनियरिंगक अंतिम परीक्षा दऽ रघुनाथ सभ सामान लऽ सासुर आबि गेल। ओना दुरागमन बाँकीए मुदा सासुर तँ सासुरे छी, तँए चलि आएल। रिजल्ट निकलैमे तीन मास लागत। काजो तँ अखनि‍ किछु नहियेँ अछि, तँए निश्चिन्तसँ सासुरमे रहैक विचार रघुनाथ कऽ लेलक। दसे दिन पछाति‍ विदेशमे इंजीनियरक भेकेन्सी खूब भेलै। सभसँ बेसी अमेरिकामे भेलै। नव टेकनोलौजी एने नव जुगक आगमन भेल। नव मशीन नव इंजीनियरकेँ जनम देलक। मुदा पुरना तकनीको आ इंजीनियरो, अछैते औरुदे, फाँसीपर लटकए लगला। जहिना गामक-गाम हैजासँ मरैए तहिना इंजीनियरक जमात पटपटाए लगला। मुदा दबाइक करखन्ने नै जे दबाइ बनाैत!
परीक्षाक पेपर रघुनाथक नीक भेल तँए फेल करैक अन्देशे नै रहै। हाइए स्कूलसँ अमेरिकाक उन्नतिक आ सुख-मौजक सम्बन्धमे किताबो-पत्रिकामे पढ़ने आ लोकोक मुहेँ सुनने रहए। तँए मनमे गुदगुदी लगैत रहैए। ई भिन्न बात जे आठ मासमे अस्सीटा बैंक अमेरिकामे दिवालिया भेल!
रघुनाथ फस्ट डिवीजनसँ पास केलक। एक तँ फस्ट डिवीजन रिजल्ट, तैपर अमेरिकाक नौकरी। खुशीसँ रघुनाथक मन उड़िया गेलै। आवेदन केलाक आठे दिन पछाति चिट्ठी भेटलै। स्त्रीक गहना बेचि कऽ दुनू परानीक टिकट बनबौलक। ससुर पढै़ धरिक खर्चा गछने रहनि तँए टिकटक खर्च दइसँ इन्कार केलकनि।
मिशिगन राज्यक राजधानीक शहर लानसिंग। ठंढ़ इलाका। ने अपना सभ जकाँ छह ऋतुक मौसिम बनैत आ ने ओकर हास-परिहास होइत आ ने रंग-बिरंगक गाछ-बिरिछ अपना सभ जकाँ होइत। लानसिंगक सतरह तल्लाक छोट-छोट तीन कोठरीक आँगन। जइमे ने सभ दिन सुरूजक रोशनी अबैए आ ने भोरे कौआ आबि ओसारपर बैसि सारि-सरहोजिक समाचार सुनबैए। रहैत-रहैत दुनू परानी रघुनाथकेँ पनरह बर्ख बि‍त गेलनि। जवानीक सभ सपना मोने-मन गुमसड़ि रहल छेलनि।
रघुनाथकेँ अमेरिका गेने शिवनाथक जिनगीक गाछ मौलाएल नै, चतरि कऽ पाखरिक गाछ जकाँ झमटगर भऽ गेलनि। दुनू बेकतीक विचारो सुधरलनि। वंशगत सम्बन्ध क्षीण होइत-होइत सूखि गेलनि, सामाजिक सम्बन्ध मोटा कऽ जुआएल गाछक शील जकाँ बनि गेलनि। जहिना कोनो समांगकेँ मुइलापर परिवारक लोक आस्ते-आस्ते बिसरि जाइए, तहिना रघुनाथोकेँ दुनू परानी शिवनाथ सोलहन्नी बिसरि गेला। साल भरिक छाया आ सएक-सए बरिषक बर्खी करैक खगते नै रहलनि। वंश अंत हएत से सदः आँखिसँ शिवनाथ देखै छला। स्वतंत्र देशक गुलाम बुधि‍। केना नै बिसरितथि? ने कहियो एक्कोटा पत्र लिखि मन राखए चाहलनि आ ने कोनो मनोरथ मनमे संजोगि कऽ रखने रहथि। पढ़ल-लिखल तँ शिवनाथ नै मुदा `हरिवंश पुराण' कथा, गप-सप्‍पक क्रममे बेसी काल दोसराक मुहेँ सुनै छला।
स्वतंत्रताक पछाति‍ विकासपुरक लोकोक विचार सुधरलनि। केना नै सुधरितनि? बूढ़-बच्चा छोड़ि गामक सभ लाठी-झंडा लऽ झंझारपुर सर्कल आगि लगबए जे गेल रहथि! आँखिसँ सभ किछु देखने रहथि! ओना हजार बीघा रकबाक गाम विकासपुर, जइमे साढ़े चारि सए परिवार हँसी-खुशीसँ कताक पुश्‍तसँ एकठाम रहैत आएल छला। स्वतंत्राक पूर्व मलिकाना -जमीनदारक- गाम रहए। मालगुजारीक लेन-देनमे सबहक जमीन निलाम भऽ जमीनदारक हाथमे चलि गेल छेलै। कियो अपन खेतक दखल तँ हुनका नै देलकनि मुदा बटेदार बनि उपजा बाँटि-बाँटि दिअ लगलनि। जागल गामक लोक देखि जेतबे-तेतबे दाम लए मालिक खेत घुमा देलकनि। अपन खेतकेँ स्थायी पूजी बूझि श्रमक पूजी जोड़ि जिनगीकेँ ठाढ़ करए लगला। बाढ़ि-रौदीक प्रकोप सालो-साल होइते रहै छेलै मुदा विचार आ कर्म बदलने ऊहो अभिशाप नै वरदान बनि गेलै। बाढ़ि देखि माथपर हाथ लऽ नै बैस, ओकर प्रतिकार करैक रस्ता अपनौलनि। तहिना रौदिओक प्रति केलनि। जइसँ बाढ़ि-रौदीसँ बचैक उपए कऽ लेलनि। सबहक एहेन धारणा बनि गेलनि। जे बाढ़िक उपद्रव मात्र सौन-सँ-कातिक चारि मास होइए बाँकी बारह मासक सालमे आठ मास तँ बचैए। जे आठ मास जमि कऽ मेहनति‍ कएल जाए तँ बारहो मास हँसी-खुशीसँ गुजर चलि सकैए। तेतबे नै, पानि तँ आगि नै छी जे सभ किछुकेँ जरा देत। पानि तँ उत्पादित पूजी छी, तँए जरूरत अछि ओकर उपयोग करैक। तहिना रौदिओक सम्बन्धमे धारणा बनौने रहथि। खेतमे रंग-बिरंगक अन्न, फल, तरकारी अछि। ने सभ अन्न लेल एक रंग पानिक जरूरत होइए आ ने फले-तरकारी लेल। अधिक वर्षा भेने अधिक पनिसहू फसल होइए आ कम वर्षा भेने कम पनिसहू हएत। तैपर थोड़ेक सुविधा सरकारो देलक। नब्बे प्रतिशत अनुदानमे बोरिंग आ पचास प्रतिशत अनुदानमे पम्पसेट देलक। जइसँ पर्याप्त बोरिंग-पम्पसेट गाममे भऽ गेलै। किसानक हाथमे पानि चलि आएल। समाजक किसानक कान्हमे कान्ह मिला शिवनाथो चलए लगला। कम खेत रहितो हुनका अन्न-पानि उगरिए जाइ छन्हि।
छह बजे भोरे रघुनाथ धीपल-सराएल पानि मिला अदहा-छि‍दहा नहा, कपड़ा पहि‍र, चाह-बिस्कुट खा ड्यूटी चलि जाथि। असगरे श्यामा डेरामे रहि जाइ छेली। ने अंग्रेजी भाषाक बोध छेलनि‍ जे दोकानो-दौरीक काज कऽ सकितथि आ दोसरोसँ गप-सप्‍प करैत समए बितैबि‍तथि। ओना बगलेक फ्लेटमे आरो-ओरो भारतीय -इंडियन- सभ रहैए। मुदा ऊहो कियो केरलक तँ कियो मद्रासक छथि। भाषाक दूरी देखि श्यामा मोने-मन सोचए लगली जे मनुखसँ नीक पशु होइए जे अपन स्वभावसँ एक-दोसरासँ मेलो रखैए। मनुख तँ मनुक्खे छी जे बोलेसँ राजा बनि जाइए। जहिना पिजराक सुग्गा अकासमे उड़ैत सुग्गा देखि कनैए तहिना कोठरीमे बैसलि श्यामाकेँ मोने-मन कुही होइ छेलनि‍। मनमे होइ छेलनि, कोन जनमक पाप कएल अछि जे एहेन गति भऽ गेल अछि। नैहरसँ सासुर धरिक सभ किछु हरा गेल।
भिनसरे डेरासँ निकलि रघुनाथ कार्यालय पहुँच‍ जाइ छथि। कार्यालयेमे खाइ-पीबैक बेवस्‍था सेहो छै। मशीने संग रघुनाथ बारह घंटा बितबै छथि। बुधि‍सँ लऽ कऽ हाथ धरि मशीने संग भरि दिन रहैत-रहैत मशीन बनि गेलनि। संवेदनशून्य मनुख। जइमे दया, श्रद्धा, प्रेमक केतौ जगह नै। मुदा आइ रघुनाथकेँ कार्यालय पहुँचि‍ते मनमे उड़ी-बीड़ी लागि‍ गेलनि। काजक दिस एको-मिसिआ धि‍याने नै जाइ छेलनि। छुट्टीक दरखास दऽ कार्यालयसँ डेरा विदा भेला। डेरा आबि, देहक कपड़ा आ जुत्ता बिनु खोलनइ पलंगपर, चारू नाल चीत भऽ ओंघरा गेला। जहिना जेठ मासक तबल धरतीपर बिहरिया बर्खाक बुन्न खसिते गरमी-सरदीक बीच घनघोर लड़ाइ शुरू भऽ जाइए तहिना रघुनाथक मनमे वैचारिक संघर्ष हुअ लगलनि। एहेन जोरसँ वैचारिक बिहारि मनमे उठि गेलनि जे बुधि‍ चहकए लगलनि। चहकैत बुधि‍सँ अनासुरती निकलए लगलनि-
“हमरासँ सएओ गुना ओ नीक छथि जे अपना माथपर पानिक घैल उठा मातृभूमिक फुलवाड़ीक फूलक गाछ सींचि रहल छथि। अपन माए-बाप, समाज संग जिनगी बिता रहल छथि। आइ जे दुनियाँक रूप-रेखा बनि गेल अछि ओ किछु गनल-गूथल लोकक बनि गेल अछि। जिनगीक अंतिम पड़ावमे पहुँच आइ बूझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुधि‍ भेल आ ने गाम-समाजकेँ...। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर चुबि गालपर होइत पलंगपर खसए लगलनि।
शिवनाथ हँसैत ओछाइनपर सँ उठि पत्नीकेँ हाक पाड़लखि‍न-
“केतए छी, कनी एम्हर आउ?”
मुस्की दैत लग आबि रुक्मिणी बजली-
“भोरे-भोरे की रखने छी जे हाक पाड़लौं।
“मनमे आबि रहल अछि जे अपन दुनू परानीक श्राद्ध कइए लैतौं। जँ हम पहिने मरि जाएब तँ अहाँक श्राद्ध हएत की नै। नै जँ पहिने अहीं मरि जाएब तँ हमर श्राद्ध हएत की नै।
“अखनि‍ हम थोड़े मरैवाली भेलौं हेन, जे मरब।
“अपन बिआह बिसरि गेलिऐ? जहन‍‍ अहाँ छह बर्खक रही आ हम सात बर्खक रही तहिए ने बिआह भेल रहए। मन अछि आकि नै जे खरहीसँ नापि कऽ जोड़ा लगौल गेल रहए।
किछु काल गुम्म रहि रुक्मिणी बजली-
“अपन बिआह-दुरागमन आ माए-बाप जँ लोक बिसरि जाएत तँ ऊहो कोनो लोके छी।
मुस्की दैत शिवनाथ कहलखिन-
“हमरा आँखिमे अहाँ वएह छी जे दुरागमन दिन झाँपल पालकीमे बैसि नैहरसँ सासुर आएल रही। अहीं कहूँ जे हमरा किए ने अहाँक चूड़ीक खनखनीक अवाजमे स्वर लहरी आ माथक सेनूरमे जिनगीक मधुर फल देखाए पड़त। पचहत्तरि पार कऽ अस्सी बर्खक बीच दुनू गोटे पहुँच‍ चुकल छी तँए खुशी अछि। आँखिक सोझमे देखै छी जे बि‍आहक पाँचे दिन पछाति‍ चूड़ीओ फूटि जाइ छै आ माथो धुआ जाइए। तैठाम हम-अहाँ भाग्यशाली छी की नै?”
पतिक बात सुनि रुक्मिणी मुस्‍कीआइत पतिक आँखिमे अपन आँखि गाड़ि पाछूसँ आगू धरिक जिनगी देखए लगली।

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