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Friday, October 18, 2013

बहि‍न (दोसर संस्‍करण)

बहि‍न

“आब अधिक दिन माए नै खेपती। ओना उमेरो नब्बे बर्खक धतपत हेबे करतनि। तहूमे बर्ख पनरह-बीसेकसँ कहियो बोखार के कहए जे उकासीओ ने भेलनि। एक तँ ओहिना पाकल उमेर तैपर सँ देहक रोगो पछुआएल, तँए भरिसक ऐ बेर उठि कऽ ठाढ़ हेबाक कम भरोस। किएक तँ एक-ने-एक उपद्रव बढ़िते जाइ छन्हि। अन्नो-पानि अरुचिए जकाँ भेल जाइ छन्‍हि‍।
भखरल स्वरमे राधेश्याम पत्नीकेँ कहलखि‍न।
पतिक बात सुनि, कनीकाल गुम्म रहि, रागिनी बाजलि-
“केकरो, औरुदा तँ कियो नहियेँ दऽ सकैए। तहन तँ जाधरि जीबै छथि ताधरि हम-अहाँ सेबे करबनि कि‍ने?”
“हँ, से तँ सएह कऽ सकै छियनि। मुदा जिनगीक कठिन परीक्षाक घड़ी आबि गेल अछि। एते दिन जे केलौं, ओकर ओते महत नै जेते आबक अछि। किएक तँ कखनो पानि मंगती वा किछु कहती, तइमे जौं कनि‍को देरी हएत आ कियो सुनि लेत तँ अनेरे बाजत जे फल्लां माए पानि दुआरे किकिहारि कटैत रहै छथिन। मुदा बेटा-पुतोहु तेहेन छै घूमि कऽ एको बेर तकितो ने छै। केकरो मुँहमे ताला लगेबै? देखिते छिऐ जे गाममे केना लोक झूठ बाजि-बाजि झगड़ो लगबैए आ कलंको जोडै़ छै। तँए चैबीसो घंटा केकरो-ने-केकरो लगमे रहए पड़त। जँ से नै करब तँ अंतिम समैमे कलंकक मोटरी कपारपर लेब।
“कहलौं तँ ठीके, मुदा बच्चा सबहक हिसाबे कोन, तहन तँ दू परानी बचलौं। बेरा-बेरी दुनू गोटे रहब। अन्तुका काज अहूँ छोड़ि दियौ। किएक तँ अँगनेक काज बढ़ि गेल। बहिनो सभकेँ जनतब दइए दियनु।
“अपनो मनमे सएह अछि। जँ तीनू बहि‍न आबि जाएत तँ काजो बँटा कऽ हल्लुक भऽ जाएत। ओना अँगनासँ दुआरि धरि काजो बढ़बे करत। जखने सर-सम्‍बन्‍धी, दोस्त-महिम बुझता तँ जिज्ञासा करए एबे करता। जहन‍‍ दरबज्जापर औता तँ सुआगत बात करैए पड़त
मुड़ी डोलबैत रागिनी बजली-
“हँ, से तँ हेबे करत।
“अखनि‍ निचेन छी आ काजो करैएक अछि। तँए अखने तीनू बहिनो आ ममोकेँ जनतब दइए दइ छि‍यनि‍। आन कुटुमकेँ अखनि‍ जनतब देब जरूरी नै छै।”
कहि‍ मोबाइलमे मामाक नम्बर लगौलनि‍। रिंग भेलै।
“हेलो, मामा। हम राधेश्याम।
“हँ, राधेश्याम। की हाल-चाल?”
“माए, बड़ जोर दुखित पड़ि गेली।
“अखनि‍ हम एकटा जरूरी काजमे बँझल छी। साँझ धरि आबि रहल छीअ।
मोबाइल बन्न कऽ राधेश्याम जेठ बहि‍न गौरीक नम्बर लगौलक।
“हेलो, बहि‍न। माए दुखित पड़ि गेलखुन।
“अखनि‍ हम स्कूलेमे छी आ अपनौं कौलेजेमे छथि। छुट्टीक दरखास दइए दइ छिएे। साँझ धरि पहुँच‍‍ जाएब।
मोबाइल बन्न कऽ छोटकी बहिनक नम्‍बर लगौलक।
“सुनीता। हम राधेश्याम।
“भैया, माए नीके अछि कि‍ने?”
“अखनि‍ की नीक आ कि अधला। तीन दिनसँ ओछाइन धेने छथुन। तँए किछु कहब कठिन।
“हम अखने छुट्टीक दरखास दऽ आबि रहल छी।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि मझिली बहि‍न रीताक नम्बर लगौलक।
“हेलो, रीता। हम राधेश्याम। माए, बड़ जोर दुखित छथुन।
“भैया, हम तँ अपने तेते फिरीसान छी जे खाइओक छुट्टी ने भेटैए। काल्हिएसँ दुनू बच्चाक प्रतियोगिता परीक्षा सेहो छिऐ
बिनु स्विच ऑफ केनइ राधेश्याम मोबाइल रखि अकास दिस देखए लगला। ठोर पटपटबैत बड़बड़ाए लगला-
“बच्चाक परीक्षा..., मृत्यु सज्जापर माए...! केकरा प्राथमिकता देल जाए? एक दिस, जे बच्चा अखनि‍ धरि जिनगीमे पएरो ने रखलक, सौंसे जिनगी पड़ल छै। दोसर दिस कष्टमय जिनगीमे पड़ल वृद्ध माए। खैर, सभकेँ अपन-अपन जिनगी होइ छै आ अपना-अपना ढंगसँ सभ जीबए चाहैए। हम चारि भाए बहि‍न छी तँए ने दोसरपर ओंगठल छी। मुदा जे असगरे अछि, से केना माए-बापक पार-घाट लगबैए। किछु सोचिते छल कि नव उत्साह मनमे जगलनि‍। नव उत्साह जागिते नजरि पाछू मुहेँ ससरलनि‍। चारू भाए-बहि‍नमे माए सभसँ बेसी ओकरे मानैत रहलखि‍न आ ओकर सेवो सभसँ बेसी भेलै। कारणो छेलै जे बच्चेसँ ओ रोगा गेल छलि। मुदा आश्चर्यक बात तँ ई जे जेकरा माए सभसँ बेसी सेवा केलनि‍ उहए सभसँ पहिने बिसरि रहलि छन्‍हि‍।
गोसाँइ डुमैत-डुमैत मामो आ दुनू बहिनो-बहनोइ पहुँच‍‍ गेलखि‍न।
अबिते डाक्‍टर सुधीर -छोट बहनोइ- आला लगा सासुकेँ देखि कहलखिन-
“भैया, माए बँचती नै। मुदा मरबो दस दिनक बादे करती। तँए अखनि‍ ओते घबड़ेबाक बात नै अछि। अखनि‍ हम जाइ छी, मुदा बहि‍न डाक्‍टर सुनिता रहती। ओना हमहूँ दू-दिन तीन-ि‍दनपर अबैत रहब।
डाक्‍टर सुधीरक बात सुनि सभकेँ क्षणिक संतोख भेलनि। मामा कहलखिन-
“भागिन, ओना हम केकरो छींटा-कस्सी नै करै छि‍यनि‍ मुदा अपन अनुभवक हिसाबे कहै छिअ जे भरि दिन तँ स्त्रीगण सभ मुस्तैज रहथुन मुदा रातिमे नै। ओना हमरो गाम बहु दूर नहियेँ अछि। अखनि‍ तँ औगताएले चलि एलौं। तँए अखनि‍ जाइ छी। काल्हिसँ साँझू पहरकेँ एबह आ भोर कऽ चलि जेबह। भरि राति दुनू माम-भगिन गप-सप्‍प करैत ओगरि लेब।
दुनू बहनोइओ आ मामो चलि गेलखिन।
“आइ सातम दिन माएकेँ अन्न छोड़ब भऽ गेलनि। दू-चारि चम्मच पानि आ दू-चारि चम्मच दूध, मात्र अाधार रहि गेल छन्‍हि‍। -आँगनसँ दरबज्जापर आबि रागिनी पतिकेँ कहलखि‍न।
पत्नीक बात सुनि राधेश्याम मोने-मन सोचए लगला। मनमे उठलनि चारू भाए-बहि‍नक पारिवारिक जिनगी। केतेक आशसँ माए-पिता हमरा चारू भाए-बहि‍नकेँ पोसि-पालि, पढ़ा-लिखा, बि‍आह-दुरागमन करा परिवार ठाढ़ कऽ देलनि। जहिना गौरी जेठ बहि‍न एम.ए. पास अछि। तहिना एम.ए. पास बहनोइओ छथि। हाइ स्कूलमे बहि‍न नोकरी करैए तँ कौलेजमे बहनोइ। परिवारक प्रतिष्ठा, समाजोमे बढ़बे केलनि जे कमलनि नै। तहिना छोटकीओ बहि‍न अछि। बहिनो डाक्‍टर आ बहनोइओ डाक्टर। तहिना तँ पिताजी मझिलीओ बहि‍नकेँ केलनि। दुनू परानी इंजीनियर अछि‍। बम्बइमे दुनू गोटे नोकरी करैत अछि‍।
जहिना तीनू बहि‍न पढ़ल-लिखल अछि तहिना बहनोइओ छथि। अजीव नजरि पितोजीक छेलनि। मनुखक पारखी छला। तँए ने बहि‍नक बि‍आह समतुल्य बहनोइ संग केलनि। एक माए-बापक तीनू बेटी, पढ़ल-लिखल, एक परिवारमे पालल-पोसल गेली, मुदा तीनूक विचारमे एते अंतर केना अबि गेल। ऐ प्रश्नक जवाब राधेश्यामकेँ बुझैमे एबे ने करनि जइसँ मन घोर-घोर होइत रहनि‍। एक दिस माएक अंतिम अवस्थापर नजरि जान्‍हि‍ तँ दोसर दिस मझिली बहि‍नक बेवहारपर।
विचारक दुनियाँमे राधेश्याम औनाए लगला। प्रश्नक जवाब भेटबे ने करनि। अपन परिवारपर सँ नजरि हटा बहि‍न सबहक परिवार दिस दौड़ौलनि।
गौरीक ससुर उमाकान्त हाइ स्कूलक शिक्षक रहथिन। अपने बी.ए. पास मुदा पत्नी साफे पढ़ल-लिखल नै। नाओं-गाओं लिखल नै अबनि। ओना पिता पंडित रहथिन। मुदा बेटीकेँ परिवार चलबैक लूरि‍केँ बेसी महत देथिन। जइसँ कुशल गृहिणी तँ बनि जाएत, मुदा ने चिट्ठी-पुरजी पढ़ल होइ छै आ ने लिखल। ओना जरूरतो नै रहैए। किएक तँ ने पति-पत्नीक बीच चिट्ठी-पुरजीक जरूरत आ ने कुटुम-परिवार संग। मुदा दुनू परानी उमाकान्त आ सरिताक बीच असीम सि‍नेह। मास्टर साहैबकेँ अपन बाल-बच्चासँ लऽ कऽ विद्यालयक बच्चा सभकेँ पढ़बै-लिखबैक मात्र चिन्ता। जइ पाछू भरि दिन लगलो रहथि। जहन‍‍ कि पत्नी सरिता परिवारक सभ काज सम्हारैत। अखनुका जकाँ लोकक जिनगीओ फल्लर नै, समटल रहए...।
गौरीक परिवारपर सँ नजरि हटा राधेश्याम छोटकी बहि‍न डाक्‍टर सुनिताक परिवारपर देलनि। जहिना बहि‍न डाक्टरी पढ़ने तहिना बहनोइओ। जोड़ो बढ़ियाँ। सुनिताक ससुर वैद्य रहथिन। जड़ी-बुटीक नीक जानकार। जहिना जड़ी-बुटीक जानकार तहिना रोगो चिन्हैक। जइसँ समाजमे प्रतिष्ठो नीक आ जिनगीओ नीक जकाँ चलनि। तँए अपन चिकित्साक वंशकेँ जीवित रखै दुआरे बेटाकेँ डाक्टरी पढ़ौलनि। पत्नीओ तेहने। अँगनाक काज सम्हारि, बाध-बोनसँ जड़ीओ-बुटी अानथि‍ आ खलमे कुटबो करैत रहथिन। दबाइ वैद्यजी अपने बनाबथि किएक तँ मात्राक बोध गृहिणीकेँ नै रहनि...।
छोटकी बहि‍नक परिवारपर सँ नजरि हटा मझिली बहि‍नक परिवारपर देलनि। रीताक ससुर मलेटरीक इंजीनियरिंग विभागमे हेल्परक नोकरी करै छला। अपनै विचारसँ मलेटरीक बेटीसँ बि‍आहो -लभ-मैरिज- केने रहथि‍न। मलेटरीक नोकरी, तँए पाइओ आ रूआबो। हाथमे हरिदम हथियार तँए मनो सनकल। मुदा बेटा-बेटीकेँ नीक जकाँ पढ़ौलनि। जहिना रीता इंजीनियरिंग पढ़ने तहिना घरोबला। दुनू बम्बइक कारखानामे नोकरी करैत। कमाइओ नीक खरचो नीक, तहिना मनक उड़ानो बेसी...। एकाएक राधेश्यामक मनमे उठलनि‍ जे आब तँ माएक अंतिमे समए छी तँए एक बेर रीताकेँ फेर फोन करि कऽ जनतब दऽ दिएे। मोबाइल उठा रीताक नम्‍बर लगौलनि। रिंग भेल‍-
“हेलो, हम राधेश्याम।
“हेलो, भैया। अखनि‍ हम स्टाफ सबहक संग काजमे बेस्‍त छी।
रीताक जवाब सुनि राधेश्याम सन्न रहि गेला। रातिक दस बजैत। इजोरियाक सप्तमी अन्हार-इजोतक बीच घमासान लड़ाइ छिड़ल। किछु पहिने जइ चन्द्रमाक ज्योति अन्हारपर शासन करैत, वएह चन्द्रमा पछड़ि रहल छथि‍। तेज गतिसँ अन्हार आगू बढ़ि रहल अछि। तैबीच छोटकी बहि‍न डाक्‍टर सुनीता आँगनसँ आबि भाय राधेश्यामकेँ कहलकनि‍-
“भैया, हम तँ भगवान नै छी, मुदा माएक दशा जइ तेजीसँ बिगड़ि रहल छन्‍हि‍, तइसँ अनुमान करै छी जे काल्हि साँझ धरि पराण छूटि जेतनि।
एक दिस माएक अंतिम दशा आ दोसर दिस रीताक वि‍चारक बीच राधेश्यामक धैर्यक सीमा डगमग करए लगलनि। विचित्र स्थिति। जिनगीक तीनिबट्टीपर
बौआए लगला। तीनिबट्टीक तीनू रस्ता तीन दिस जाइत। एक रस्ता देवमंदिर दिस जाइत तँ
दोसर दानवक काल-कोठरी दिस। बीचक रस्तापर राधेश्याम ठाढ़। एकाएक निर्णए करैत राधेश्याम सुनिताकेँ कहलखिन-
“कनी गौरीओकेँ बजाबह।
आँगन जा सुनिता गौरीकेँ बजौने आएल। दुनू बहि‍नक बीच राधेश्याम बजला-
“बहि‍न, जहिना हमर बहि‍न रीता तहिना तँ तोरो सबहक छिअ। तँए, तहूँ सभ एक बेर फोन लगा माएक जनतब दऽ दहक। हम निर्णए कऽ लेलौं जे जहिना ऐ दशामे माएकेँ रहनौं, ओकरा अपन धिया-पुतासँ अधिक नै सुझै छै तहिना हमहूँ ओकरा भरोसे नै जीबै छी। तँए जँ माएक जीवि‍तमे नै औत तँ मुइला पछाति‍ नहो-केश कटबैक जनतब नै देबै। हमरा-ओकरा बीच ओतबे काल धरि सम्बन्ध अछि जेते काल माएक पराण बँचल छै। कहलो गेल छै `भाए-बहि‍न महिंसक सींग, जखने जनमल तखने भीन।' मन तँ होइए जे भने ओ अखनि‍ स्टाफ सबहक बीच अछि, तँए अखने सभ बात कहि दिऐ। मुदा कहनौं तँ किछु भेटत नै, तँए छोड़ि दइ छिऐ।
बाजि‍ राधेश्‍याम भनभनाए लगला-
“जहिना अकासमे उड़ैत चिड़ैकेँ वंश रहितो परिवार नै होइ छै तहिना जँ मनुखोक होइ तँ अनेरे भगवान किएक बुधि‍-विवेक दइ छथिन। किएक ने मनुखोकेँ चिड़ैइए-चुनमुनी आकि चरिटंगा जानवरेक जिनगी जीबए देलखिन?
बजैत-बजैत राधेश्यामो आ दुनू बहिनोक करेज फाटए लगलनि। आँखिसँ नोर टघरए लगलनि। भाए-बहि‍नक टुटैत सम्बन्धसँ सभ अचंभित हुअ लगला। सबहक हृदैमे रीता नाचए लगलनि। बच्चासँ बि‍आह धरिक रीताक जिनगी सबहक आँखिमे सटि गेलनि। एक दिस रीता बम्बइक घोड़दौड़ जिनगीक प्रतियोगितामे आगू बढ़ए चाहै छलि तँ दोसर दिस देबालमे टांगल फोटो जकाँ सबहक हृदैमे चुहटि‍ कऽ पकड़ने। जहिना बाँसक झोंझसँ बाँस काटि निकालैमे कड़चीक ओझरी लगैत तहिना धि‍या-पुताक ओझरीमे रीता पड़ल।
तीनू ननदि-भौजाइ माने गौरीया, सुनिता आ रागिनी, माए लग बैसि मोने-मन सोचए लगली। कियो-केकरो टोकैत नै। तीनू गुमसुम। खाली आँखि नाचि-नाचि एक-दोसरपर जाइत। मुदा मन श्वेतवाण रामेश्वरम् जकाँ। एक दिस जिनगी रूपी भूमि स्थल जकाँ विशाल भूभाग देखैत तँ दोसर दिस मृत्यु रूपी अथाह समुद्र। यएह छी जिनगी आ जिनगीक खेल। जइ पाछू पड़ि लोक आत्माकेँ बलि चढ़बैए। तैबीच माएक मुहसँ नि‍कललनि‍-
“रीता...।
रीताक नाओं सुनि तीनू गोरेक हृदैमे ऐहेन धक्का लगलनि जइसँ तीनू तिलमिला गेली।
रातिक एगारह बजैत। गामक सभ सूति रहल। इजोरिओ डुमैपर। झल-अन्हार। दलानक आगूमे, कुरसीपर बैसि राधेश्याम आँखि मूनि अपन वंशक सम्बन्धमे सोचैत रहथि। मनमे एलनि, आइ सप्तमीक चान डूमि‍ रहल अछि, अन्हार पसरि रहल अछि, मुदा कि कल्हुका चान आइसँ कम ज्योतिक हएत? की अगिला ज्योति पछि‍ला अन्हारक अनुभव नै करत? सभ दिनसँ अन्हार-इजोतक बीच संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत...। फेर मनमे उठलनि, आजुक राति हमरा लेल ओहेन राति अछि जे भरिसक माएक जिनगीक अंतिम राति हएत। जि‍नका संग हजारो राति बि‍तल ओइपर विराम लागि‍ रहल अछि...। विचारक दुनियाँमे राधेश्याम उगैत-डुमैत रहथि‍। तखने शबाना पोती संग पहुँचली। दलान-आँगनक बीच रस्तापर दुनू गोटे चुपचाप ठाढ़ि। दुनू डराएल। राधेश्याम आँखि मुनने तँए नै देखैत। परोपट्टामे हिन्दु-मुसलमानक बीच तना-तनी। जइ डरसँ शबाना दिनमे नै आबि अन्हारमे आएल। किएक तँ सरोजनीक सि‍नेह घीच कऽ लऽ अनलकै। रेहना शबानाकेँ कहलक-
“दादी, ऐठीम किए ठाढ़ छीही, अँगना चल ने?”
रेहनाक अवाज सुनिते राधेश्याम आँखि तकलनि तँ दुनू गोटेकेँ ठाढ़ देखलनि। पुछलखि‍न-
“के?”
शबाना बाजलि-
“बेटा, राधे।
“मौसी।
“हँ।
एत्तीराति कऽ किएक एलँहेँ?”
“बौआ, से तूँ नै बुझै छहक जे गाम-गाममे केहेन आगि लागि रहल छै। पाँचम दिन सुनलौं जे बहि‍न बड़ जोर अस्सक छथि। जखने सुनलौं तखने मन भेल जे जाइ। मुदा की करितौं? मन छटपटाइ छेलए। बेटाकेँ पुछलिऐ तँ कहलक जे से तूँ नै देखै छीही रस्ता-बाटमे इज्जत-आवरूक लुट्टीस भऽ रहल छै। मार-काट भऽ रहल छै। एहेन स्थितिमे केना जेमए। मुदा मन नै मानलक। जिनगी भरि दुनू बहि‍न संगे रहलौं, आइ वेचारी मरि रहल अछि तँ मुहोँ नै देखब? जी-जाँति पोतीकेँ संग केने एलौं।
कुरसीपर सँ उठि राधेश्याम शबानाक बाँहि पकड़ि आँगन दिस बढ़ैत बहि‍नकेँ कहलखि‍न-
“मौसी एलखुन। पएर धोइले पानि दहुन।
राधेश्यामक बात सुनि दुनू बहिनो आ पत्नी-रागिनीओ घरसँ निकलि आँगन एली। गौरी बाजलि‍-
“मौसी, शबाना मौसी!
“हँ।
शबानो आ रेहनो पएर धोइ सोझे बहि‍न सरोजनी लग पहुँच‍‍ दुनू पएर पकड़ि कानए लगली। कनैत देखि सरोजनी पुछलखि‍न-
“कनै किए छेँ। हम कि कोनो आइए मरब? एत्ती रातिकेँ किए एलैहेँ?”
शबाना कहलकनि‍-
“बहि‍न, रस्ता-पेरा बन्न अछि। दू बर्खसँ भौरिओ-बट्टा बन्न भऽ गेल। जहन‍‍सँ अहाँ दऽ सुनलौं, तखनेसँ मनमे उड़ी-बीड़ी लागि‍ गेल तँए दिन-देखार नै आबि चोरा कऽ अखनि‍ ऐलौं हेन।
सरोजनी बहुत कठीनसँ बजली-
“धिया-पुता नीके छौ कीने?”
शबाना कहलकनि-
“शरीरसँ तँ सब नीके अछि, मुदा कारबार बन्न भऽ गेल छै।
“गामो दिस गेल छलेँ?”
“नै। कन्ना जाएब....। तेसर सालक बाढ़िमे अहूँक गाम कटि कऽ कमला पेटमे चलि गेल आ हमरो गाम कोसीमे। आब सुने छी जे हमरो गाम भरनापर बसल हेँ आ अहूँक गाम कमलाक पछबरिया छहरक पछबरिया बाधमे। घनश्यामपुर तक तँ रस्ता छइहो मुदा ओइसँ आगू रस्ते सभपर मोइन फोड़ि देने छै। पौरुकाँ जे जाइत रही तँ लगमा लगमे डुमए लगलौं।
सरोजनी गौरीकेँ इशारासँ कहलक-
“दाइ, बड़ राति भेलै। मौसीकेँ खाइले दहक।
शबाना बाजलि-
“बहि‍न, पहिने हम केना खाएब? पहिने बौआ राधेश्यामकेँ खुआ दियौ। खा कऽ सूति रहत। हम भरि राति बहि‍नसँ गप-सप्‍प करब। बहुत दिनक गप्‍प पछुआएल अछि।
शबानाक बात सुनि राधेश्याम मोने-मन सोचए लगलाह जे दुनियाँमे बहिनक कमी नै अछि। लोक अनेरे अप्पन आ बीरान बुझैए। ई सभ मनक खेल छिएे। हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैमे जे संग रहए, वएह अप्पन। शवानाकेँ कहलक-
“मौसी, माए तँ ने खाली हमरे माए छी आ ने अहींक बहि‍न। सबहक अप्पन-अप्पन छिअए, तँए कियो अप्पन करत कि‍ने?”
पुबरिए घरक ओसारपर राधेश्याम सूतल। बाँकी सभ पुबरिया घरमे बैसि गप-सप्‍प करए लगली। गौरी मौसीकेँ पुछली-
“मौसी, अहाँ दुनू बहि‍न तँ दू गामक छिएे। दुनू गोटेमे चीन्हा-परिचए कहिया भेल?”
शबाना बाजलि‍-
“जहि‍एसँ ज्ञान-पराण भेल, तहि‍एसँ अछि। हमरा बाप आ तोरा नानाकेँ दोस्‍तीआरए रहनि। कोस भरि पूब हमर गाम झगड़ुआ अछि आ कोस भरि पच्‍छि‍म बहिनक। अखनि‍ तँ दुनू गाम उपटि कऽ दोसरठीम बसल अछि। मुदा पहिने बड़ सुन्दर दुनू गाम छेलै।
गौरी-
“मौसी, हम तँ बच्चेमे, बहुत दिन पहिने गेल रही। तइ दिनमे तँ बड़ सुन्दर गाम रहए।
शबाना-
“हँ, से तँ रहबे करए। मुदा आब देखबहक तँ बिसबासे ने हेतह जे यएह गाम छिएे। हँ, तँ कहै छेलिअ, काकाकेँ बहुत खेत-पथार रहनि। चारि जोड़ा बड़द खुट्टापर, चारि-पाँचटा महि‍ंसो रहनि। मुदा हमरा बापकेँ खेत-पथार नै रहए। गामेमे खादी-भंडार छेलै। सौंसे गामक लोक चरखोे चलबै आ कपड़ो बीनै। सभसँ नीक कारीगर रहए हमर बाप। घरक सभ कियो सुतो काटी आ कपड़ो बनबी। सलगा, चद्देरि, गमछी आ धोती बीनैमे हमरा बापक हाथ पकड़िनिहार कियो नै। बहि‍नक गामक सभ हमरे बापसँ कपड़ा किनए। सौंसे गामसँ अपेछा रहए। पाँचे-सात बर्खक रही तहिएसँ बहि‍नक ओठीम जेबो करिऐ आ खेबो करिऐ।
शबानाक बात सुनि गौरीकेँ अचरज लगलै। मोने-मन सोचए लगली जे एक तँ गरीब तहूमे मुसलमान। तैबीच दोस्ती...। मुस्की दैत बि‍च्‍चेमे रागिनी मौसीकेँ पुछलकनि‍-
“कोन पुरना खिस्सा मौसी जोति देलखिन। ई कहथु जे दुनू बहि‍नक बिआह एक्के दिन भेलनि?”
“धूर्र कनियाँ! अहाँ की बजै छी। हमरासँ बहि‍न दू-तीन बरख जेठ छथि। बहि‍नक बि‍आहसँ दू बरख पाछू कऽ हमर बि‍आह भेल। काका हमरा बापकेँ कहलखिन जे पुबरिया आ दछिनबरिया इलाका कोसि‍कन्हा भऽ गेल तँए आब कथा-कुटुमैती उत्तरेभर करब नीक हएत।
कनी गुम रहि शबाना पुन: बाजलि-
“बेटी, कपारक दोख भेल। आब अपनो बुझै छी जे नैहरक काजक जे महौत छेलै से ऐ काजक–-भौरीक- नै अछि। मुदा की करितौं? ऐ ठीम उ काज अइछे नै। ने खादी-भंडार छै आ ने कारोबार अछि।
मुस्की दैत रागिनी बाजलि-
“मौसी, अपना बि‍आहमे तँ हम कनियेँटा रही। सभ गप मनो ने अछि। हिनका तँ मन हेतनि, बि‍आहमे झगड़ा किए भेल रहए?”
कनीकाल गुम रहि शबाना ठाहाका मारि हँसि, बाजलि‍-
“अहाँक बावू बड़ मखौलिया रहथि। हँसी-चौलमे केकरो नै जीतए देथिन। घरदेखीमे एलथि। हम दुनू बहि‍न खूब छकौलियनि। पीढ़ी तरमे खपटा, बैसैले आ रूइयाँ तरि कऽ खाइले सेहो देलियनि। खा कऽ जहाँ उठला कि एक डोल करिक्का रंग कपारपर उझलि देलियनि। मुदा हुनका लिए धनि सन। तहिना बरियातीमे ऊहो छकौलकनि। सबहक धोतीमे चारि-पाँच दिनक सड़लाहा खइर लगा देलकनि। पहिने तँ बरियाती सभ अपनमे रक्का-टोकी केलक। मुदा जहन‍‍ भाँज लगलै जे घरवारी सभकेँ सड़लाहा खइर लगा देलक। तहन‍‍ बरियातीओ सभ टुटल। मुदा कहे-कही भऽ कऽ रहि गेलै। मारि-पीटि नै भैल।
कहि हँसए लागलि। सभ हँसल।
राधेश्याम ओसारपर सूतल रहथि। मुदा एक्को बेर आँखि बन्न नै भेलनि। किएक तँ मनमे शंका होइत रहनि‍ जे अनचोकेमे ने माए मरि जाए। खिस्से-पिहानीमे राति कटि गेल।
भोर होइते शबाना राधेश्यामकेँ कहलक-
“बौआ, अपन मन अछि जे आब बहि‍नकेँ एक काठी चढ़ाइए कऽ जाएब। मुदा गामे-गाम जे आगि लगल देखै छिऐ तइसँ डर होइए?
राधेश्याम-
“मौसी, ऐठाम कियो किछु नै बिगाड़ि सकै छौ। जहिया तक तोरा रहैक मन होउ, निर्भीकसँ रह।
शबाना बाजलि-
“बौआ, मन होइए जे बहि‍नक सभ नुआ-बिस्तर हम खीच दिएे। फेर ई दिन कहिया भेटत
राधेश्याम-
“दुनू बहि‍नक बीच हम की कहबौ मौसी। जे मन फुड़ौ से कर।

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