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Friday, October 18, 2013

डाक्‍टर हेमन्‍त (दोसर संस्‍करण)

क्टर हेमन्त


सभ दिन चारि बजे भोरे उठैबला डाक्टर हेमन्त आइ छह बजे भि‍नसर उठला। अबेरे कऽ नीन टुटलनि। एना किए भेलनि? एना ऐ दुआरे भेलनि जे आन दिन परिवारसँ लऽ कऽ अस्पताल धरिक चिन्ता दबने रहै छेलनि। तँए कहियो भरि-भरि राति जगले रहि जाथि तँ कहियो-कहियो लगले-लगले निन्न टूटि जान्‍हि‍। कोनो-कोनो राति अनहोनी-अनहोनी सपना देखि चहा-चहा कऽ उठनि‍ तँ कोनो-कोनो राति पत्नीसँ झगड़ैत रहि जाथि‍। छह बजे नीन टुटिते हेमन्त घड़ी देखलनि। मुदा अबेरो कऽ निन्न टुटने मनमे एक्को मिसिआ चिन्ता नै। मन हल्लुक, एकदम फुहराम। जेना मनमे चिन्ताक दरस नै। आन दिन ओछाइनेपर ढेरो चिन्ता घेरि लन्‍हि‍। अनेको समस्या, अनेको उलझन मनकेँ गछारि दन्‍हि‍। केसक की हाल अछि, बेटाकेँ नोकरी हएत की नै। क्‍लिनिकमे कम्‍पाउण्डरक चलैत रोगी पतरा रहल अछि। चोट्टा सभ दारू पीब-पीब अन्ट-सन्ट करैत रहैए आ पाइएक भाँजमे पड़ल रहैए। जइसँ मुँह-दुबर रोगी सबहक कुभेला होइ छै। अस्पतालोसँ बेर-बेर सूचना भेटैए जे ड्यूटीमे लापरवाही करै छिऐ। बातो सत्य छै मुदा की करब? केस छोड़ि देब तँ पिताक अरजल सम्पति‍ बहि जाएत। क्‍लिनिकमे कम्पाउण्डर सभकेँ जँ किछु कहबै तँ क्लिनिके बन्न भऽ जाएत। जइसँ जेहो आमदनी अछि सेहो चलि जाएत। पुरान कम्पाउण्डर सभ अछि। सभ दिन छोट भाए जकाँ मानैत एलिऐ तेकरा किछु कहबै सेहो उचित नै। मुदा हमहींटा तँ डाक्टर नै छी, बहुतो छथि। रोगीकेँ की, जैठाम नीक सुविधा हेतै तैठाम जाएत...।
ओझड़ाएल जिनगी हेमन्तक। तँए सोझ-साझ वि‍चार मनमे अबिते ने रहनि‍। मुदा आइ अबेर कऽ उठनौं मनमे कोनो ओझरी नै रहनि‍। किएक तँ काल्हिए कोर्टमे लिखि कऽ दऽ देलखिन जे, पिताक सम्पतिसँ कोनो मतलब नै अछि, तँए केससँ अलग कएल जाए। दोसर बेटोकेँ नोकरी भऽ गेलनि जे ज्वाइन करए काल्हिए माए आ स्त्री संग गेल। पिताक देल सम्पतिक लड़ाइमे अपनो बीस बर्खक कमाइ गेल रहनि। मुदा प्राप्तिक नाओंपर जान बचा लड़ाइसँ अलग भेला। हेमन्तक मनमे उठलनि जे जहिना पिताक सम्पतिमे किछु नै प्राप्त भेल तहिना तँ रमेशोकेँ हमरा अरजल सम्पतिमे नै हेतै। मुदा हमरा आ रमेशमे अन्तर अछि। हम तीन भाँइ छी, जहिक बीच विवाद भेल मुदा रमेश तँ असगरे अछि। ओना हेमन्तक मनक चिन्ता काल्हिए समाप्त भऽ गेल रहनि मुदा काजक बेस्‍तता मनकेँ असथिर हुअए नै देलकनि। एके बेर आठ बजे रातिमे असथिर भेला। तेकर पछाति‍ पर-पैखाना करैत, हाथ-पएर धोइत, खाइत नअ बजि गेलनि। भरि दिनक झमारल तँए ओछाइनपर पहुँचि‍ते नीन आबए लगलनि। रेडियो खोलि समाचार सुनए चाहलनि, सेहो नै भेलनि। रेडियो बजिते रहल आ अपने सूति रहला।
नीन टुटिते डाक्टर हेमन्तकेँ चाहक तृष्णा एलनि। मुदा घरमे कियो नै। असगरे। नोकर ऐ दुआरे नै रखने जे काल्हि धरि पत्नी, बेटा-पुतोहु सभ रहनि। जे सभ घरक काज सम्हारैत रहथि‍न। ओना चाहक सभ समचा घरेमे मुदा बनौनिहारे नै। बिछानपर सँ उठि नित्य-कर्म केलनि। मनमे एलनि जे चाह पीब। मुदा चाह औत केतएसँ। से नै तँ पहिने दाढ़िए बना लइ छी आ क्‍लिनिक जाए लगब तँ रस्तेमे चाह पीब लेब। मुदा भोरे-भोर चाहक दोकानपर तँ ओ जाइए, जेकरा घर-परिवार नै रहै छै। हमरा तँ सभ कि‍छु अछि। ओह! से नै तँ अपने चाह बना लेब। चाह बना, कुरसीपर बैसि चाह पीबए लगला आकि‍ तखने फाटकपर सँ आवाज आएल-
“डाक्टर साहैब, डाक्टर साहैब।
टेबुलपर कप रखि‍, फाटक दिस बढ़ैत डाक्‍टर हेमन्त कहलखिन-
“हँ, अबै छी।
फाटकक बाहर डाकिया कन्हामे झोरा लटकौने हाथमे दूटा लिफाफ आ रसीद नेने ठाढ़। डाकियाकेँ देखि मुस्की दैत हेमन्त पुछलखिन-
“भोरे-भोर कोन शुभ-सन्देश अनलौं हेन?”
मुदा डाकिया किछु बाजल नै। खाँखी शर्टक ऊपरका जेबीसँ पेन निकालि, रसीदो आ पेनो बढ़ा देलकनि। दुनू रसीदपर हस्ताक्षर कऽ दुनू लिफाफ नेने फेर कुरसीपर बैसि डाक्‍टर हेमन्‍त चाहक चुस्की लि‍अ लगला‍‍। एकटा लिफाफकेँ टेबुलपर रखि‍, दोसरकेँ खोलि पढ़ए लगला। सरकारी पत्रमे लिखल रहए-
“पत्र देखिते डेरा छोड़ि दिअ। बाढ़िसँ बहुत अधिक जान-मालक नोकसान भेल अछि, तँए आइए लछमीपुर पहुँच‍‍ जेबाक अछि। तइमे जौं कोनो तरहक आनाकानी करब तँ पुलिसक हाथे पठाैल जाएब। एक काँपी पुलिसोक थानामे भेज देल गेल अछि।
पत्र पढ़िते हेमन्तकेँ ठकमुड़ी लागि‍ गेलनि। मोने-मन सोचए लगला जे घरमे असगरे छी। केना छोड़ि कऽ जाएब। समए-साल तेहेन भऽ गेल अछि जे दिनो-देखार डकैती होइए। केतौ डकैती तँ केतौ चोरि‍, केतौ अपहरण तँ केतौ हत्या हरिदम होइते रहैए। एहेन स्थितिमे घर छोड़ब उचित नै हएत। मुदा जहन‍‍ नोकरी करै छी तँ आदेश मानै पड़त। जौं से नै मानब तँ जहिना बीस बर्खक कमाइ कोट-कचहरीक ईंटा गनैमे गेल तहिना जे पाँच बर्ख नोकरी बँचल अछि ऊहो ससपेंड, डिस्चार्जमे जाएत...।
डाक्‍टर हेमन्‍तकेँ कहियो जिनगीमे चैन नै। घोर-घोर मन होइत गेलनि‍। चाहो सरा कऽ पाि‍न भऽ गेलनि‍। गुन-धुन करैत दोसर पत्र खोलला। पत्रमे लिखल रहए-
“डाक्टर हेमन्त, काल्हि चारि बजे पछबरिया पोखरिक पछबरिया महारमे जे पीपरक गाछ अछि, ओइ गाछ लग पहुँच‍ हमरा आदमीकेँ दू लाख रूपैआ दऽ देबै। नै तँ परसू ऐ दुनियाँकेँ नै देखि सकब।
पत्र पढ़िते केरा-भालरि जकाँ हेमन्तक करेज डोलए लगलनि। सौंसे देहसँ पसीना निकलए लगलनि। थरथराइत हाथसँ पत्र खसि पड़लनि। मनक वि‍चार विवेक दिस बढ़ए लगलनि। जहिना कियो सघन बोनमे पहुँच‍ जाइत आ एक दिस बाघ-सिंहक गर्जन सुनैत तँ दोसर दिस सुरूजक रोशनी कम भेने अन्हार बढ़ैत जाइत, तहिना हेमन्तकेँ हुअ लगलनि। खाली मन छटपटा गेलनि। की करब, की नै करब, बुझबे ने करथि। जहिना भोथहा कोदारिसँ सक्कत माटि नै खुनाइत तहिना हेमन्तोक विचार समस्याकेँ समाधान नै कऽ पबैत। रस्तेमे विलीन भऽ जाइत। कियो दोसर नै! जे मनक बात सुनैत, जइसँ मन हल्लुक होइतनि। तखने अस्पतालक एकटा कम्पाउण्डर रिक्शासँ आबि गेटपर पहुँच‍ बाजल-
“डाक्टर साहैब...?
कम्पाउण्डरक अवाज सुनि औगता कऽ उठि हेमन्त गेट दिस बढ़ला। गेटपर रिक्शा लागल। रिक्शापर दूटा काटुन लादल। कम्पाउण्डरो आ रिक्शोबला रिक्शासँ हटि, बीड़ी पिबैत। डाक्टर हेमन्तपर नजरि पड़िते कम्पाउण्डर हाथक बीड़ी फेक, आगू बढ़ि प्रणाम करैत कहलकनि-
“लगले तैयार भऽ चलू, नै तँ पुलिस आबि कऽ बेइज्जत करत। बेइज्जत तँ हमरो करैत मुदा पुलिसकेँ अबैसँ पहिने हम काटुन रिक्शापर चढ़बैत रही। तँए किछु ने कहलक। रस्तामे अबै छेलौं तँ मोहनबाबूकेँ गरियबैत सुनलियनि। तँए देरी नै करू। नबे बजे गाड़ी अछि। सबा आठ बजैए। अपना दुनू गोटे एक टीममे छी।
जहिना जूड़शीतलमे मुइलो नढ़ियापर लाठी पटकैत तहिना कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तकेँ भेलनि‍। मिरमिराइत स्वरमे बजला-
“दिनेश, हमरा तँ रातिएसँ तेते मन खराब अछि जे किछु नीके ने लगैए। एक्को मिसिआ देहमे लज्जतिए ने अछि। होइए जे तिलमिला कऽ खसि पड़ब।
कम्पाउण्डर-
“दबाइ खा लिअ। थोड़बे कालमे ठीक भऽ जाएब।
हेमन्त-
“देहक दुख रहैत तहन‍‍ ने, मनक दुख अछि। ओ केना दबाइसँ छुटत।
हेमन्तक मन आगू-पाछू करैत देखि कम्पाउण्डर कहलकनि-
“एक तँ ओहिना मन खराब अछि...।
कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तक मन आरो मौला गेलनि। मनमे अनेको प्रश्न उठए लगलनि। देरी हएत तँ जबाबो देमए पड़त। मुदा घरो छोड़ब तँ नीक नै हएत। जखने घर छोड़ब तखने उचक्का सभ सभटा लूटि-ढङेरि कऽ लऽ जाएत। अपने नै रहने क्लिनिको नहियेँ चलत। अखनि‍ जँ रमेशोकेँ अबैले कहबै सेहो केना हएत? काल्हिए तँ ऊहो ज्वाइन केलकहेँ। अगर जँ ओकरा माइएकेँ अबैले कहबनि तँ ऊहो जपाले। किएक तँ रोज देखै छिऐ अपहरणक घटना। हड़बड़बैत कम्पाउण्डर कहलकनि-
“अहाँ दुआरे हमहूँ नै मारि खाएब। हम जाइ छी।
अधमड़ू भेल हेमन्त-
“दू मिनट रूकह। कपड़ा बदलै छी।
हाँइ-हाँइ कऽ हेमन्त कपड़ा बदलि, बैगमे लुंगी, गमछा, शर्ट, पेन्ट, गंजी रखि‍ विदा भेला। रिक्शापर चढ़िते रहथि आकि पुलिसक गाड़ी पहुँच‍‍ गेल। तेते हड़बड़ा कऽ विदा भेल रहथि जे मोबाइल, घड़ी, दाढ़ी बनबैक वस्तु छुटिए गेलनि। पुलिसक गाड़ी देखि जे हड़बड़ा कऽ रिक्शापर चढ़ैत रहथि तखने चश्मा खसि‍ पड़लनि। जेकर एकटा शीशो आ फ्रेमो टूटि गेलनि। पुलिसक गाड़ीकेँ घुमैत देखि मनमे शान्ति एलनि। रिक्शापर चढ़ि थोड़े आगू बढ़ला आकि डाक्टर सुनीलकेँ बच्चा सबहक संग बजारसँ डेरा जाइत देखलखिन। सुनीलबाबूकेँ देखि कम्पाउण्डरसँ पुछलखिन-
“सुनीलबाबू सभकेँ ड्यूटी नै भेटि‍लनि अछि, की?”
कनीकाल चुप रहि कम्पाउण्डर कहलकनि-
“नीक-नहाँति तँ नै बूझल अछि मुदा बूझि पड़ैए जे, जे सभ अस्पतालमे बेसी समए दइ छथिन हुनका सभकेँ छोड़ि देल गेलनि अछि।
कम्पाउण्डरक बात सुनि डाक्‍टर हेमन्तकेँ अपनापर ग्लानि भेलनि। मन पड़लनि सुनीलबाबूक परिवार आ जिनगी। सुनीलबाबू सेहो डाक्‍टर। दू भाँइक भैयारी। पितो जीविते। चारि बहि‍न। चारू सासुर बसैत। बहि‍न सबहक सासुर देहातेमे। जैठाम पढ़ै-लिखैक नीक बेवस्था नै। ओना अपनो सुनीलबाबू गामेमे रहि पढ़ने रहथि। डाक्टरी पास केलापर गाम छोड़लनि। हुनकर भैया दरभंगेक हाइ स्कूलमे शिक्षक। परिवारो नम्‍हर। माए-बाप संग दुनू भाँइक पत्नी आ बच्चा। तैपर सँ चारू बहि‍नक पढ़ै-लिखैबला बच्चा सभ। सुनीलबाबूक जिनगी आन डाक्टरसँ भिन्न। मात्र दू घंटा अपन क्‍लिनिक चलबैत रहथि‍। आठ घंटा समए अस्पतालमे दथि। अपना क्‍लिनिकमे चारिटा कम्पाउण्डर आ जाँच करैक सभ यंत्र रखने। जाँच करैक पाइमे सभ कम्पाउण्डरकेँ परसेनटेज दथि। जइसँ काजो अधिक होइत। कम्पाउण्डरो सभकेँ नीक कमाइ भऽ जाइत तँए इमानदारीसँ ऊहो सभ श्रम करैत। ओना सभ काज कम्पाउण्डरे कऽ लैत मुदा हिसाब-बाड़ी आ जाँचक चेक अपनेसँ करथि‍। जइसँ अस्पतालोमे जाँच करौनिहार दोहरा कऽ अबैत। आ आन-आन प्राइवेट खानगी जाँच घरक काज सेहो पतराएल। तेतबे नै डाक्‍टर सुनीलक चर्चा सीतामढ़ी, दरभंगा, सुपौल आ समस्तीपुर जिलाक गाम-गामक लोकक बीच होइत। जहिना धारक पानि शान्त आ अनवरत चलैत रहैत, तहिना सुनीलक परिवार। कोनो तरहक हड़-हड़-खट-खट परिवारमे कहियो नै होइत। डाक्टर सुनीलक परिवारक सम्बन्धमे सोचैत-सोचैत डाक्टर हेमन्त अपनो परिवारक सम्बन्धमे सोचए लगला। मन पड़लनि पिता। पि‍ता बंगालसँ डाक्टरी पढ़ि गामेमे प्रैक्टीश शुरू केलनि। किएक तँ सरकारी अस्पताल गनल-गूथल। मुदा रोगीक कमी नै। कमी इलाज आ इलाज कर्ताक। नम्‍हर इलाका। दोसर डाक्टर नै। गाम-घरमे ओझा-गुनी, झार-फूक, जड़ी-बुटीसँ इलाज चलैत। ओना हेमन्तक पिता-डाक्टर दयाकान्त सभ रोगक जानकार, मुदा तीनिए तरहक रोगक -टुटल हाथ-पएरक पलस्तर, साँपक बीख उतारब आ बतहपन्नी- इलाजसँ पलखति नै। तँए ओझो-गुनीक चलती पूर्ववते। कमाइओ नीक। जइसँ दू महला मकानो आ पचास बीघा खेतो किनलनि। तीनू बेटोकेँ खूब पढ़ौलनि। जेठका ओकील, मझिला डाक्टर आ छोटका प्रोफेसर। जाधरि दयाकान्त जीबैत रहलखिन ताधरि गामो आ इलाकोमे सुसभ्य आ पढ़ल लिखल परिवारमे गिनती होन्‍हि‍। तीनू भाँइओक बीच अगाध सि‍नेह। जेठ-छोटक विचार सबहक मनमे। जइसँ माएओ-बाप खुशी। ओना माए पढ़ल-लिखल नै मुदा परम्परासँ सभ बुझैत। जखैनकि पिता आधुनिक शिक्षा पाबि आधुनिक नजरिसँ सोचथि‍। तीनू भाँइक मेहनति देखि पिताकेँ ई खुशी होइत जे परिवारक गाड़ी आगू मुहेँ नीक जकाँ ससरत। बेटा सबहक बिआह इलाकाक नीक-नीक परिवारमे पढ़ल-लिखल लड़की संग केलनि। दहेजो नीक भेटलनि।
दयाकान्त मरि गेलखिन मुदा स्त्री जीवि‍ते रहनि‍। तीनू भाँइ अपन-अपन जिनगीमे ओझराएल। अपन-अपन परिवार संग रहैत, घरपर खाली माइएटा। तीनू भाँइक परिवारक गारजनी स्त्रीक हाथमे। एक-दोसरसँ आगू बढ़ैक हरिदम प्रयास करैत। जइसँ गामक सम्‍पति‍पर नजरि जाए लगलनि। गामक सम्पति अधिकसँ अधिक हाथ लागए तइ भाँजमे बौद्धिक व्यायाम नीक-नहाँति शुरू भेल। मुकदमा बाजी भेल। एकटा कोठरी आ दू बीघा खेत माएकेँ कोटसँ भेटलनि। बाँकी घरो आ खेतो जप्‍त भऽ गेलनि‍। एक सए चौआलीस लागि‍ गेलै जइसँ पुलिसक ड्यूटी भऽ गेलै। बीस बर्ख पछाति‍ डाक्टर हेमन्त लिखि कऽ कोर्टमे दऽ देलखिन जे हमरा ऐ सम्पतिसँ कोनो मतलब नै।
दरभंगा प्लेटफार्मपर डाक्‍टर हेमन्त देखलनि जे दर्जनो डाक्टर जा रहल छी। दर्जनो कम्पाउण्डरो छै। मुदा सबहक मुँह लटकल। एक्को मिसिआ मुँहमे हँसी नै। जहिना ठनका ठनकलापर सभ अपने-अपने माथपर हाथ रखि‍ साहोर-साहोर करैत तहिना बाढ़िक इलाकाक ड्यूटीसँ सबहक मनपर भारी बोझ, जइसँ सभ मोने-मन कबुला-पाती करैत। हे भगवान, हे भगवान करैत। कियो-केकरो टोकैत नै। आँखि उठा कऽ देखि फेर निच्चाँ कऽ लैत।
निर्मली जाइवाली गाड़ी पहुँचल। गाड़ी पहुँचिते सभ हड़बड़ करैत, अपनो आ समानो सभ उठा-उठा गाड़ीमे चढ़ौलनि। हेमन्तो चढ़ला। कम्पाउण्डरकेँ बीड़ीक तृष्णा चढ़लै। दुनू काटुन गाड़ीमे चढ़ा अपने उतरि कऽ पानक दोकान दिस बढ़ल। तखने पनरह-बीसटा तरकारीवाली आबि गाड़ीक डिब्बामे कियो छिट्टा चढ़बैत तँ कियो मोटा। तेसर यात्री सभ, तरकारीवालीक काँइ-कच्चर सुनि-सुनि आगू बढ़ि जाइत। कम्पाउण्डरो हाँइ-हाँइ कऽ चारि दम बीड़ी पीब दौगल आबि बोगीक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। तरकारीवाली सबहक झुण्ड देखि कम्पाउण्डरकेँ मनमे हुअ लगलै जे हमरा चढ़िए ने हएत। चुपचाप निच्चाँमे ठाढ़। गाड़ीक भीतर बैसल एकटा पसिन्जर उठि कऽ आबि एकटा मोटाकेँ निच्चाँ धकेल देलक। जइ तरकारीवालीक मोटा खसल रहै ओ ओइ आदमीक गट्टा पकड़ि निच्चाँ उतारल। निच्चाँ उतारिते घोरन जकाँ सभ तरकारीवाली लुधकि गेल। गारिओ खूब पढ़लक आ मारबो केलकै। तखने बोगीक मुँह खाली देखि कम्पाउण्डर चढ़ि गेल। गाड़ीकेँ पुक्की दैते सभ हाँइ-हाँइ कऽ चढ़ए लगल मुदा झगड़ा नै छुटलै। गारि-गरौबलि होइते रहल। जेते हल्ला सौंसे गाड़ीमे लोकक बजलासँ होइत रहै, ओते खाली ओइ एक्के डिब्बामे होइ। अकछि कऽ डाक्टर हेमन्त सीटपर सँ उठि समान रखैबला ऊपरकापर जा कऽ बैगकेँ सिरमामे रखि‍ सूति रहला। ओंघराइते अपना जिनगीपर नजरि गेलनि। मोने-मन सोचए लगला जे पिताजी तँ हमरे सबहक सुख लेल ने ओते सम्पति अरजलनि। मुदा की हमरा सभकेँ ओइ सम्पतिसँ सुख होइए? अपनो कमाइ तँ कम नै अछि। मुदा चौबीस घंटाक दिन-रातिमे चैनसँ केते समए बीतैए? जहिना खाइ काल फोन अबैए तहिना सुतै काल। की यएह छी सुखसँ जिनगी बिताएब? मुदा ऐ प्रश्नक उत्तर सोचमे ऐबे ने करनि। फेर मन उनटि कऽ जिनगीक पाछू मुहेँ घुरलनि। मनमे एलनि, जे माए धाकड़ सन-सन तीन बेटाक छी, वेचारीकेँ कियो एक लोटा पानि देनिहार नै। किएक ने वेचारीक मनमे उठैत हेतनि जे ऐ बेटासँ बिनु बेटे नीक? हमरो अहि‍ना ने हएत, तेकर कोन गारंटी।
गाड़ी घोघरडीहा पहुँचल। यात्री सभ उतरबो करए आ बजबो करए जे किसनीपट्टीसँ आगू लाइन डूमि‍ गेल छै, तँए गाड़ी आगू नै बढ़त। कम्पाउण्डर उठि कऽ हेमन्तक पएर डोलबैत पुछलकनि‍-
“डाक्टर साहैब, नीन छिऐ।
“नै
“सभ उतरि रहल अछि। गाड़ी आगू निर्मली नै बढ़त। उतरि जाउ?”
कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तक मनमे अस्सी मन पानि पड़ि गेलनि। मुदा उपए की? अधमड़ू जकाँ उतरलथि। प्लेटफार्मपर रिक्शाबला, टमटमबला हल्ला करैत जे कोसीक पछबरिया बान्हपर जाएब।
एकटा रिक्शाबलाकेँ हाथक इशारासँ कम्पाउण्डर हाक पाड़ि पुछलक-
“हम सभ लछमीपुर जाएब। तोरा बूझल छह?”
रिक्शाबला-
“हमरो घर लछमीएपुर छी। बाढ़ि दुआरे ऐठाम रिक्शा चलबै छी।
कम्पाउण्डर-
“ऐठीमसँ केना-केना रस्ता हेतै?”
रिक्शाबला-
“ऐठीमसँ हम बान्हपर दऽ आएब। ओइठीमसँ नाव भेटत, जे लछमीपुर पहुँचा देत। ऐठीमसँ हम नेने जाएब आ अपने भैयाबला नावपर चढ़ा देब।
कम्पाउण्डर-
“बड़बढ़ियाँ, काटुन चढ़ाबह।
सभ कियो रिक्शापर चढ़ि विदा भेल। पुबरिया गुमती लग जैठाम चाउरक बड़का मिलक खंडहर अछि तेतए पहुँच‍ रिक्शावलाकेँ हेमन्त पुछलखिन-
“लछमीपुर केहेन गाम अछि?”
रिक्शाबला-
“बड़ सुन्दर गाम अछि। सन्मुख कोसीसँ मील भरि पछिमे अछि। गामक सभ मेहनती। बाढ़िक समैमे हम सभ रिक्शा चलबै छी आ जहन‍‍ पानि‍ सटैक जाइ छै तहन‍‍ जा कऽ खेती करै छी। गाएओ-महिंस पोसने छी। केते गोटे नाव चलबैए आ केते गोटे मछबारि करैए। हमरा गामक लोक पंजाब, डिल्ली नै जाइए। आन-आन गाममे तँ पंजाब, डिल्लीक धरोहि लागि जाइ छै। से हमरा गाममे नइए। माछक नाओं सुनिते कम्पाउण्डर पुछलक-
“तब तँ माछ खूब सस्ता हेतह?”
“हँ, कोनो की जीरा रहै छै। सभ अनेरूआ। एहेन सुअदगर माछ शहर-बजारमे थोड़े भेटत। शहर-बजारक माछ तँ सड़ल-सुड़ल पानिक डबरा महक रहैए।
कोसीक पछबरिया बान्हपर पहुँचि‍ते रिक्शाबला अपन भाैयाक घाटपर रिक्शा लऽ गेल। भाएक रिक्शा देखिते भागेसर नावपर सँ बान्हपर आएल। दुनू भाँइ दुनू काटुन नावपर रखलक। अदहा नावपर तख्ता बिछौने आ अदहा ओहिना। तख्तापर पटेरक पटिया बि‍छौल। नावपर बैसि हेमन्त पूब मुहेँ तकलनि तँ बूझि पड़लनि जे समुद्रमे जा रहल छी। सौंसे देह सर्द भऽ गेलनि। मनमे डर पैसि गेलनि जे केना ऐ पानि‍मे जाएब। मन पड़लनि दरभंगाक पीच परक कार। मुदा एक्सिडेंट तँ ओतौ होइ छै। ओतौ लोक मरैए। फेर मनमे एलनि जे महेन्द्रूक नाव जकाँ नावमे इंजनो नै छै। जँ कहीं बीचमे लग्गी छूटि-टूटि जेत्तै तँ भँसिए जाएब। केतए जाएब केतए नै। अनासुरती मनमे एलनि जे अखनि‍ धरि कम्पाउण्डरकेँ नोकर जकाँ बुझै छेलिऐ ओ उचित नै। ई तँ छोट भाए तुल्य अछि। नव विचार मनमे उठिते कम्पाउण्डरकेँ कहलखिन-
“बौआ, धन्य अछि ऐठामक लोक। जे सचमुच देवीक पूजो करैए आ लड़बो करैए। किए ने जिबठगर हएत।
नाव खुगलै, माङि‍ सोझ कऽ नैया–कमलेसरीक गीत उठौलक। नैयाकेँ लग्गी उठबैत आ पानि‍मे रखैत देखि डाक्‍टर हेमन्त मोने-मन सोचए लगला जे एहेन मेहनति केनिहारकेँ कोन जरूरत दबाइ आ व्यायामक छै। मन पड़लनि रामेश्वरम। समुद्रक झलकैत पानि। जइमे लहरि सेहो उठैत। तहिना तँ ओहूठाम पानिक लहरि अछि। फेर मन पड़लनि जेसलमेरक बालु। अहि‍ना उज्जर धप-धप केतौ-सँ-केतौ बालु। कमलेसरीक गीत समाप्त होइते नाविक कोसी मैयाक गीत उठौलक। अजीब साजो। जहिना नावमे खट-खटक अवाज तहिना लग्गीक। लग्गीक पानि‍ देहोपर खसै मुदा तँए की ओकर पसीना निकलब रूकलै?
डाक्‍टर हेमन्तक मन फेर उनटलनि। मिलबए लगला समुद्रक लहरि आ कोसीक धाराकेँ। समुद्र रूपी समाजमे सेहो समुद्र जकाँ लहरिओ उठैए आ धारक बेग जकाँ सेहो रहैए। कहियो काल समुद्रक लहरि जकाँ सेहो लहरि समाजमे उठैए मुदा ओ धीरे-धीरे असथिर भऽ जाइए। मुदा कोसीक धार जकाँ जे बेग चलैत ओ पैघसँ पैघ पहाड़केँ तोड़ि धारो बना दैत आ समतल खेतो। पुरानसँ पुरान गामक अधला परम्पराकेँ तोड़ि नवमे बदलि दैत। जहिना मौसिम बदललापर गाछक पुरान पात झड़ि नव पातसँ पुनः लदि जाइत, तहिना। असीम विचारमे डुमल हेमन्तक मुँह अनासुरती नाविककेँ पुछलक-
“केते दूर अहाँक गाम अछि?”
नैया-
“छह कोस।
“केते समए जाइमे लागत?”
“भट्ठा दिस जाएब। तँए जल्‍दीए पहुँच‍‍ जएब।
जल्दीक नाओं सुनि हेमन्तक मनमे आशा जगल। मुदा ओ आशा लगलेमे जाए लगलनि। किएक तँ सौंसे पानि‍ए देखथि, गाम-घरक केतौ पता नै। चिन्तित भऽ चुपचाप भऽ गेला। अपना सुढ़ि‍मे नैया गीत गबैत। मनमे कोनो विकारे नै। मुदा हेमन्तकेँ कखनो गीत नीको लगनि आ कखनो झड़कबाहिओ उठनि। तखने एकटा मुर्दा भँसल जाइत रहए। सबहक नजरि ओइ मुर्दापर पड़ल। मुर्दा देखि हेमन्तक नजरि अस्पतालक मुर्दापर गेलनि। मुदा दुनूक दू कारण। एकक जिनगीक अंत रोगसँ तँ दोसराक बाढ़िसँ। नब-नब समस्या उठि-उठि हेमन्तक मनकेँ घोर-मट्ठा कऽ देलकनि। मनक सभ विचार हराए लगलनि। तैबीच एकटा किलो चारिएक रौह माछ कूदि कऽ नावमे खसल। माछ देखि हेमन्तोक आ कम्पाउण्डरोक मन चट-पट करए लगलनि। लग्गीकेँ माङि‍पर रखि भागेसर माछकेँ पकड़ि, पानि उपछैबला टीनमे रखलक। माछकेँ टीनमे रखि‍ नैया बाजल-
“अहाँ सबहक जतरा बनि गेल।
नैयाक शुभ बात सुनि हेमन्तक मन फेर ओझरा गेलनि। मनमे उठए लगलनि जे जतरा केकरा कहबै। घरसँ विदा भेलौं तेकरा आकि कार्यस्थल तक पहुँचैकेँ आकि काज सम्पन्न कऽ घर पहुँचलाकेँ कहि‍ऐ? तहूसँ आगू जे काजक बीचोमे नव काज उत्पन्न भऽ जाइत। फेर नैयाकेँ पुछलखिन-
“आब केते दूर अछि?”
हाथ उठा आँगुरसँ दछिन दिस देखबैत नैया कहलकनि-
“वएह हमर गाम छी। गोटे-गोटे जमुनीक गाछ देखै छिऐ? अदहा कोस करीब हएत।
अदहा कोस सुनि कम्पाउण्डर चहकि उठल-
“डाक्टर साहैब, पाँच बजैए। अदहा घंटा आरो लागत। साढ़े पाँच बजे तक पहुँच‍ जाएब।
“भने सबेरे-सकाल पहुँच‍ जाएब।”
कहि‍ डाक्‍टर हेमन्‍त देखए-सोचए लगला, अकासमे चिड़ै सभ नै उड़ैए। किएक तँ चिड़ै ओइठाम उड़ैत जैठाम रहैक ठौर होइत। मुदा से तँ नै। सौंसे बाढ़िए पसरल। मुदा तैयो गोटे-गोटे मछखौका चिड़ै जरूर उड़ैए...।
लछमीपुर दिस अबैत नावकेँ देखि गामक धियो-पुतो, स्त्रीगणो आ गोटे-गोटे पुरुखो घाटपर ठाढ़ भऽ एक दोसरसँ कहैत।
“चाउर-आँटाबला छिऐ।
“नुओ-बसतर हेतै।
“तिरपालो हेतै।
“बड़का हाकीम सभ छिऐ।
घाटपर आबि नाव रूकल। मुदा पेंट-शर्ट पहिरने डाक्टर आ कम्पाउण्डरकेँ देखि जनिजाति सभ मुँह झाँपए लागलि। मरद सभ सहमि गेल। धि‍या-पुता डरा गेल। नावकेँ बान्हि नैया सुलोचनाकेँ कहलक-
“हे गइ सुलोचना, डाकडर सैब सभ छथिन। बक्सामे दबाइ छिऐ। हम दबाइ उतारै छी तूँ टीन उतार। टीनमे एकटा नम्‍हर माछ छौ। खूब नीक जकाँ माछकेँ तरि डाकडर सैबकेँ खुआ दहुन।
माछ उतारि सुलोचना अँगना लऽ गेल। टीन रखि‍‍ बाड़ीक कलपर आबि हाथ धोलक, आँचरसँ हाथ पोछि, स्‍कूलक ओछाइन झाड़ि बिछबए लागलि। बिछान बिछा, दौग कऽ आँगनसँ बड़का जाजीम आ दूटा सिरमा आनि लगौलक। हेमन्तो आ दिनेशो आगूमे ठाढ़। मुदा ओते लोकक बीच हेमन्तोक आ दिनेशोक नजरि सुलोचनेक देह आ काजपर नचैत। बिछान बिछा सुलोचना हेमन्तकेँ कहलकनि-
“डाक्टर साहैब, बिछान बिछा देलौं, आब आराम करू।
दिनेश चुप्पे। मुदा हेमन्त बजला-
“बुच्ची, देह भारी लगैए। ओना नावपर आरामेसँ एलौं। मुदा तैयो देह भरियाएल लगैए। पहिने नहाएब।
“बड़बढ़ियाँ।
कहि सुलोचना आँगन बाल्टी-लोटा अानए गेलि। आँगनसँ बाल्टी-लोटा नेने कलपर पहुँचल। दुनूकेँ माटिसँ माँजि, बाल्टीमे लोटा रखि‍‍, पानि‍ भरि, हेमन्तकेँ कहलक-
“डाक्टर साहैब, नहा लिअ।
चहारदेबालीसँ घेरल टंकीपर नहाइबला डाक्टर हेमन्त खुला धरती-अकासक बीच नहाइले जेता। तँए किछु सोचै-वि‍चारैक प्रश्न मनमे उठि गेलनि। मुदा बहुत सोचैक जरूरत नै पड़लनि। अपना-अपना उमरबला सभकेँ डोरीबला पेंट तैपर सँ केकरो लुंगी तँ केकरो चरिहत्थी तौनी पहिरने देखलखिन। ऊहो सएह केलनि। मुदा बारह बर्खक सुलोचना कलपर सँ हटल नै। मातृत्वक दुआरिपर पहुँचल सुलोचनामे फूलक टुस्‍सी जरूर अबि गेल छेलै। मुदा हेमन्तोक मनमे डाक्टरक विचार। ओना डाक्टर हेमन्त शरीरक सभ अंगक गुण-धर्म बुझथि‍ मुदा एहनो तँ वस्तु अछि जे गर्म हवाक रूपमे रहैत। जइमे आनन्द आ सृजनक गुण होइत। सुलोचनोमे फूलक कोढ़ी जे सुगंधक वाल्यावस्थामे प्रस्फुटित होइत, महमही हवामे...। एक लोटा माथपर पानि ढारला पछाति‍ हेमन्तक मनमे एलनि‍ जे अखनि‍ हम दुनियाँक ओइ धरतीपर छी जैठाम जीवन-मरण संगे रहैए। मुदा तैठाम एहेन सौम्य-सुशील-अल्हड़ वाला केते खुशीसँ चहचहा रहल अछि।
तीन साल पहुलका बात छिऐ। जइ बाढ़िमे केतेक गाम, केतेको मनुख आ केतेको सम्पति नष्ट भेल छल। तँए की? जे बँचल अछि ओ ओइ गामकेँ छोड़ि देत। कथमपि नै। मुदा बाढ़ि अनहोनी नै रहए। बैरेजक फाटक खोलल गेल रहए। फाटको खोलैक मजबुरी रहए। किएक तँ बैरेजक उत्तर तेते पानिक आमदनी भऽ गेलै जे दुर्दशाक अंतिम शिखरपर पहुँच‍‍ सकै छेलै। मुदा सुदूर गाममे जानकारीक साधन नै आ ने बँचैक उपए। कोसीक दुनू बान्हक बीच समुद्र जकाँ पानि पसरि गेलै। थाहसँ अथाह धरि। कुनौलीसँ दछिन, कोसी धारक कातमे एकटा गाम। ओही गामक सुलोचना। जेकर सभ कि‍छु मनुखसँ घर धरि दहा गेलै। मुदा सुलोचना जे बँचल से पढ़ैले कुनौली गेल छलि तँए। स्कूलसँ घर जाइ काल बाढ़िक दृश्य देखलक। दृश्य देखि बान्हेपर बपहारि काटए लागलि। तखने लछमीपुरक चारि गोटे बजारसँ समान खरीद नाव लग अबैत रहए। सुलोचनाकेँ कनैत देखि जीयालाल पुछलकै-
“बुच्ची, किए कनै छेँ?”
कनैत सुलोचना-
“बाबा, हम पढ़ैले गेल छेलौं। तैबीच हमर गामे दहा गेल। आब हम केतए रहब?”
जीयालाल-
“हमरा संगे चल। जहिना बारहटा पोता-पोतीकेँ पोसै छी तहिना तोरो पोसबौ।
जीयालालक विचार सुनि सुलोचनाक हृदैमे जीबैक आशा जगल। कानब रूकि‍ गेलै। मुदा कखनो-काल हुचकी होइते। नावपर सभ समान रखि‍‍ चारू गोटे बान्हपर आबि चीलम पीबैक सुर-सार करए लगल। एक भागमे सुलोचनो किताब नेने बैसलि। बटुआ खोलि रघुनी चीलम, कंकड़क डिब्‍बा आ सलाइ निकालि बीचमे रखलक, एक गोटे चीलमक ठेकी निकालि, चीलमो आ ठेकीओकेँ साफ करए लगल। दोसर गोटे डिब्बासँ कंकड़ निकालि तरहत्थीपर औंठासँ मलए लगल। चीलम साफ भेलै। ओइमे ठेकी दऽ कंकड़बला हाथमे देलक। कंकड़बला चीलममे कंकड़ बोझि दुनू हाथसँ चीलमक पछि‍ला भाग पकड़ि मुँहमे भिरौलक। मुँहमे भिरैबते रघुनी सलाइ खड़रि‍ कंकड़मे लगबए लगल। दू-चारि बेर मुँहक इंजनसँ प्रेशर दैते चीलम सुनगि गेल। चीलमकेँ सुनगिते तेते जोरसँ दम मारलक जे धुआँ संग धधरो उठि गेलै। मुदा चीलमक दुषित हवासँ धधड़ा मिझा गेल। बेरा-बेरी चारू गोटे चीलम पीब मस्त भऽ नाव दिस विदा भेल। साँझू पहरकेँ जहिना गाए-महिंस बाधसँ घर दिस अबैत। जेकरा पाछू-पाछू छोट-छोट नेरू-पर्ड़ू झुमैत, लुदुर-लुदुर मगन भऽ चलैत, तहिना सुलोचना लछमीपुरबला सबहक संगे पाछू-पाछू नावपर पहुँचल। नावपर चढ़िते लग्गा चलौनिहार कोसी महरानीक दुहाइ देलक। सुलोचनो बाजलि-
“जय।
नाव खुगल। लछमीपुरक चारू गोटेक मन सुलोचनाक जिनगीपर। मुदा सुलोचनाक परिवारक बिछोह, दुखसँ सुख दिस जाए लगल। जे सुलोचना गाम आ परिवारक केतौ अता-पता नै देखलक, ओइ सुलोचनाक मनमे उठए लगल जे गाम-घर भलहिं‍ं दहा गेल मुदा माए-बाप जरूर जीबैत हएत। किएक तँ मनुख निर्जीव नै सजीव होइत। बुधि‍-विवेक होइत। तँए ओ दुनू गोटे जरूर केतौ जीबैत हएत। जे आइ-ने-काल्हि जरूर मिलबे करत। तँए सुलोचनाक मनमे जिनगी भरिक दुख नै, किछु दिनक
दुख अछि। जे कहुना नै कहुना कटिए जाएत। नाव लछमीपुर पहुँचल। जीयालालक बारहोटा पोता-पोती दौग कऽ नाव लग आएल। पोता-पोतीकेँ देखि जीयालाल कहलक-
“बाउ, तोरा सभले एकटा बहि‍न नेने एलिअ।”
सुलोचना पोता-पोती सबहक पहुन भऽ गेलि। दोसर दिन जीयालाल एकटा घर बना, सुलोचनाकेँ गामक बच्चा सभकेँ पढ़बैले कहलक। गामक बच्चा सभकेँ सुलोचना पढ़बए लागलि। वएह सुलोचना छी।
हेमन्तो आ दिनेशो नहाएल। नहा कऽ जाबे हेमन्त कपड़ा बदलि, केश सेरिया, तैयार भेला ताबे सुलोचनो आ जीयालालक जेठकी पोती, कमलीओ चूड़ा भूजि, माछ तड़ि लेलक। दूटा थारीमे चूड़ा-भुजा आ तड़ल माछ साँठि दुनू बहि‍न दुनू थारी नेने हेमन्त लग पहुँच‍ आगूमे रखि‍‍ देलकनि‍। बड़का फुलही थारी तइमे चूड़ाक ऊपरमे माछक नम्‍हर-नम्‍हर तड़ल कुट्टिया पसारल। थारी रखि‍‍ कमली पानि‍ अानए गेलि। सुलोचना आगूमे बैसि गेलि। दुनू गोटे खाइत-खाइत दसो माछक कुट्टिया आ थारीओ भरि चूड़ा खा लेलनि। शुद्ध आ मस्त भोजन। पानि पीब ढेकार करैत दिनेश बाजल-
“डाक्टर साहैब, आइ धरि हम एते नै खेने छेलौं।
हेमन्त-
“से तँ हमरो बूझि पड़ैए।
सुलोचना-
“डाक्टर साहैब, चाहो पीबै?”
हेमन्त-
“पीबै तँ जरूर मुदा दू घंटा पछाति‍। ताबे किछु काज करब। ओना साँझ पड़ि गेल मुदा जाबे फरिच्‍छ छै ताबे दसो-पाँचटा रोगी जरूर देखि लेब।
सुलोचना-
“अच्छा, अहाँ तैयार होउ, हम रोगीसभकेँ बजौने अबै छी।
कम्पाउण्डर काटुन खोलि दबाइ निकालि पसारि देलक। रोगी अाबए लगल। रोगी देखि-देखि हेमन्त कम्पाउण्डरकेँ कहैत जाथिन आ कम्पाउण्डर दबाइ दैत जाए। अस्पताल जकाँ तँ सभ रंगक रोगी नै। किएक तँ बाढ़िक इलाका तँए गनल-गूथल रोग। दबाइओ तेहने। तीनिए दिनमे सौंसे गामक रोगीकेँ देखि डाक्टर हेमन्त निचेन भऽ गेला। मुदा सात दिनक डयूटी। तहूमे कठिन रस्ता। मुदा पानि‍ टुटए लगलै। पाँचम दिन जाइत-जाइत रस्ता सूखि गेल। मुदा थाल-खिचार रहबे करए।
आठम दिन भोरे हेमन्त सुलोचनाकेँ कहलखिन-
“बुच्ची, आइ हम चलि जाएब।
सुलोचना-
“ई तँ मिथिला छिऐ डाक्टर साहैब, बिनु किछु खेने-पीने केना जाएब?”
कहि सुलोचना चाह बनबए गेलि। तखने एकटा दोस्तसँ भेँट करए कम्पाउण्डर गेल। असगरे हेमन्त। मोने-मन सोचए लगला जे सात दिनक समए जिनगीक सभसँ कठिन आ आनन्दक रहल। ई कहियो नै बिसरि सकै छी। बिसरैबला अछिओ नै। आइ धरि एहेन जिनगीक कल्पनो नै केने छेलौं, जे बि‍तल। एहेन मनुखक सेवो करैक मौका पहिल बेर भेटल। मौके नै भेटल, बहुत किछु देखैक, भोगैक आ सीखैक सेहो भेटल। आइ धरि हम एहेन रोगीकेँ जेकरा सचमुच जरूरत छै, सेवा नै केने छेलौं, खाली पाइ कमेने छेलौं। गाम-घरमे जेकरा पाइ छै वएह ने दरभंगा इलाज करबए जाइए। जेकरा पाइ नै छै ओ तँ गामेमे छड़पटा कऽ मरैए।
तैबीच सुलोचना चाह नेने आएल। कप बढ़बैत बाजलि-
“मन बड़ खसल देखै छी, डाक्टर साहैब।
“नै! कहाँ। एकटा बात मनमे आबि गेल तँए किछु सोचए लगलौं।
सुलोचना-
“ऐठीम केहेन लगैए डाक्टर साहैब?”
सुलोचनाक प्रश्नक उत्तर नै दऽ हेमन्त चुप्प रहला।
हेमन्तकेँ चुप देखि सुलोचना बाजलि-
“हम तँ बच्चा छी डाक्टर साहैब, तँए बहुत नै बुझै छी। मुदा तैयो एकटा बात कहै छी। जहिना चीनी मीठ होइए आ मिरचाइ कड़ू। दुनूमे कीड़ा फड़ि‍ ओइमे अपन-अपन जीवन-यापन करैए। चीनीक कीड़ाकेँ जँ मिरचाइमे दऽ देल जाए तँ एको क्षण जीवित नै रहत। उचितो भेलै। मुदा की मिरचाइक कीड़ा चीनीमे देला पछाति‍ जीवित रहत? तहिना गाम आ बाजारक जिनगी होइए।
सुलोचनाक बात सुनि डाक्टर हेमन्त मोने-मन सोचए लगला जे बात ठीके कहलक। अहिना तँ मनुखोमे अछि। मुदा ओ हएत केना। जाबे समाजिक जीवनमे समरसता नै औत ताबे अहि‍ना होइत रहत।
दस बजे भोजन कऽ दुनू गोटे -हेमन्त आ दिनेश- लुंगी-गंजी पहि‍र सभ कपड़ो आ जूत्तोकेँ बैगमे रखि‍‍, पएरे विदा भेला। हेमन्तक बैग सुलोचना आ दिनेशक बैग कमली लऽ पाछू-पाछू चलली। किछु दूर गेलापर हेमन्त कहलखिन-
“बुच्ची, आब तों सभ घूमि जा।
हेमन्तक बात सुनि सुलोचनाक आँखि नोरा गेल। डाक्टर हेमन्तकेँ बैग पकड़बैत बाजलि-
“अंतिम प्रणाम, डाक्टर साहैब।
एकाएक हेमन्तक हृदैसँ प्रेमक अश्रुधारा प्रवाहित हुअ लगलनि। मुहसँ प्रणामक उत्तर नै निकललनि। मुड़ी निच्चाँ केने आगू बढ़ि गेला। मुदा किछुए आगू बढ़लापर बूझि पड़लनि जे चारिटा तीर -सुलोचना आ कमलीक आँखि- पाछूसँ बेधि रहल अछि। पाछू उनटि कऽ तकलनि तँ देखलखिन जे दुनू गोटे ठाढे़ अछि। मन भेलनि जे हाथक इशारासँ जाइले कहि दिएे मुदा अपना रूपपर नजरि पड़ि गेलनि। खाली पएर जाँघ तक समटल –उलटा कऽ मोड़ल- लुंगी, देहमे सेन्डो गंजी, माथक केश फहराइत। तैपर सँ थालक छिटका घुट्ठीसँ लऽ कऽ माथ धरि पड़ल। हाथक इशारासँ सुलोचनाकेँ हाक पाड़लखिन। दुनू -सुलोचनो आ कमलीओ- हँसैत आगू बढ़ल। लगमे देखि हेमन्तोक हृदैमे हँसी उपकल। मुस्की दैत हेमन्त बजला-
“बुच्ची, हम अपन दरभंगाक पता कहि दइ छिअ। अबिहऽ।
सुलोचना-
“हम तँ शहर-बजारमे हराइए जाएब डाक्टर साहैब। अहाँ जाबे हमरा गाममे छेलौं ताबे बूझि पड़ै छल जे दरभंगा अस्पताल गामेमे अछि।
कहि सुलोचना डाक्‍टर हेमन्‍तक पएर छूबि गोड़ लागि‍ घूमि गेलि‍।
बान्हपर आबि दुनू गोटे थाल-कादो धोइ, पेन्ट-शर्ट पहि‍र स्टेशन दिस बढ़ला। गाड़ी पकड़ि दरभंगा पहुँच‍ गेलथि।

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